आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
राजनीति में कौन नेता कब गिरगिट की तरह रंग बदल लें, कहना कठिन है। भारत में बांग्लादेशी समस्या 1971 से बनी हुई है, जिस पर समय-समय पर आने वाली सरकारों ने निपटने का निर्णय जरूर लिए, लेकिन तुष्टिकरण की जंजीरें उनके हाथ-पैर जकड लेती थीं। और अपनी कुर्सी की खातिर उनके राशन कार्ड, मतदान अधिकार, आधार कार्ड और कई सरकारी सुख-सुविधाओं से नवाजते रहे, लेकिन जनता को मूर्ख बनाने के लिए देश से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने की तूती बजाते रहे।
आज मुसलमान वोट बैंक के लालच में बांग्लादेशी घुसपैठियों के चाचा-ताऊ बने विपक्ष के नेताओं का NRC मामले पर स्टैंड कितना खोखला है, यह सोशल मीडिया के ज़माने में खुल कर सामने आ रहा है। स्वराज्य के स्तम्भकार-सम्पादक और JNU के माइक्रोबायोलॉजी प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने सबकी पोल आज NRC जारी होने पर खोली है।
थरूर ने लिखा था "दीमक की तरह" भारत-रूपी लकड़ी में घुस जाते हैं"
शशि थरूर ने 2012 में एक किताब लिखी थी ‘Pax Indica’। उसमें से उनके लिखे शब्दों को आनंद रंगनाथन उनके आज के ट्वीट के स्क्रीनशॉट के बराबर में रख कर शशि थरूर का दोहरापन दिखाते हैं। 2012 में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में शशि थरूर ने लिखा था, “2 करोड़ के करीब बांग्लादेशी भारत में चोरी से घुस आए हैं और भारत के ‘woodwork’ (भारत की लकड़ी के किसी ढाँचे से तुलना) में छिप गए हैं (जैसे दीमक लकड़ी में छिप जाती है)”। उस समय शशि थरूर की पार्टी सत्ता में थी और बांग्लादेशी घुसपैठियों को पहचान कर बाहर करना उनकी सरकार का ही काम था।
अब जब वे विपक्ष में हैं (जिसकी परिभाषा उनके हिसाब से सरकार के हर काम की अंधी बुराई करना है), तो वे टैगोर को बिना किसी संदर्भ का परिप्रेक्ष्य के उद्धृत करते हुए ट्वीट करते हैं, “राष्ट्रवाद और xenophobia (दूसरे देश के नागरिकों से उनकी नागरिकता के चलते नफरत) में बहुत महीन अंतर है। इसके अलावा विदेशी से नफरत बाद में खुद से अलग भारतीय से नफरत में भी तब्दील हो सकती है।”
"डर है किसी दिन कोई बांग्लादेशी असम का मुख्यमंत्री न बन जाए' : UPA के गृह मंत्री
आनंद आगे वह समय भी याद कराते हैं जब जब यूपीए की सरकार थी और कॉन्ग्रेस खुद NRC का काम जल्दी-से-जल्दी पूरा करने पर ज़ोर दिया करती थी। उस समय केंद्रीय गृह मंत्री ने चिंता जताते हुए कहा था कि डर है किसी दिन कोई बांग्लादेशी असम का मुख्यमंत्री न बन जाए।
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी पर ममता ने फेंके थे पेपर
आज बांग्लादेशी घुसपैठियों की सबसे बड़ी पैरोकार ममता बनर्जी ने एक समय (अगस्त 4, 2005 में) बांग्लादेशी घुसपैठियों पर चर्चा कराने की माँग को लेकर तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी पर कागज़ फेंके थे।
राजनीति में कौन नेता कब गिरगिट की तरह रंग बदल लें, कहना कठिन है। भारत में बांग्लादेशी समस्या 1971 से बनी हुई है, जिस पर समय-समय पर आने वाली सरकारों ने निपटने का निर्णय जरूर लिए, लेकिन तुष्टिकरण की जंजीरें उनके हाथ-पैर जकड लेती थीं। और अपनी कुर्सी की खातिर उनके राशन कार्ड, मतदान अधिकार, आधार कार्ड और कई सरकारी सुख-सुविधाओं से नवाजते रहे, लेकिन जनता को मूर्ख बनाने के लिए देश से बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालने की तूती बजाते रहे।
आज मुसलमान वोट बैंक के लालच में बांग्लादेशी घुसपैठियों के चाचा-ताऊ बने विपक्ष के नेताओं का NRC मामले पर स्टैंड कितना खोखला है, यह सोशल मीडिया के ज़माने में खुल कर सामने आ रहा है। स्वराज्य के स्तम्भकार-सम्पादक और JNU के माइक्रोबायोलॉजी प्रोफेसर आनंद रंगनाथन ने सबकी पोल आज NRC जारी होने पर खोली है।
थरूर ने लिखा था "दीमक की तरह" भारत-रूपी लकड़ी में घुस जाते हैं"
शशि थरूर ने 2012 में एक किताब लिखी थी ‘Pax Indica’। उसमें से उनके लिखे शब्दों को आनंद रंगनाथन उनके आज के ट्वीट के स्क्रीनशॉट के बराबर में रख कर शशि थरूर का दोहरापन दिखाते हैं। 2012 में बांग्लादेशी घुसपैठियों के बारे में शशि थरूर ने लिखा था, “2 करोड़ के करीब बांग्लादेशी भारत में चोरी से घुस आए हैं और भारत के ‘woodwork’ (भारत की लकड़ी के किसी ढाँचे से तुलना) में छिप गए हैं (जैसे दीमक लकड़ी में छिप जाती है)”। उस समय शशि थरूर की पार्टी सत्ता में थी और बांग्लादेशी घुसपैठियों को पहचान कर बाहर करना उनकी सरकार का ही काम था।
This man's hypocrisy is UNTAMABLE.— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) August 31, 2019
In his 2012 book Pax Indica, @ShashiTharoor said there are some 20 million illegal Bangladeshis in India. He wrote about them disparagingly, as though they were termites that had "disappeared into the Indian woodwork". Now he remembers Tagore. pic.twitter.com/NShVhppNMD
This man's hypocrisy is UNTAMABLE.— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) August 31, 2019
In his 2012 book Pax Indica, @ShashiTharoor said there are some 20 million illegal Bangladeshis in India. He wrote about them disparagingly, as though they were termites that had "disappeared into the Indian woodwork". Now he remembers Tagore. pic.twitter.com/NShVhppNMD
अब जब वे विपक्ष में हैं (जिसकी परिभाषा उनके हिसाब से सरकार के हर काम की अंधी बुराई करना है), तो वे टैगोर को बिना किसी संदर्भ का परिप्रेक्ष्य के उद्धृत करते हुए ट्वीट करते हैं, “राष्ट्रवाद और xenophobia (दूसरे देश के नागरिकों से उनकी नागरिकता के चलते नफरत) में बहुत महीन अंतर है। इसके अलावा विदेशी से नफरत बाद में खुद से अलग भारतीय से नफरत में भी तब्दील हो सकती है।”
"डर है किसी दिन कोई बांग्लादेशी असम का मुख्यमंत्री न बन जाए' : UPA के गृह मंत्री
आनंद आगे वह समय भी याद कराते हैं जब जब यूपीए की सरकार थी और कॉन्ग्रेस खुद NRC का काम जल्दी-से-जल्दी पूरा करने पर ज़ोर दिया करती थी। उस समय केंद्रीय गृह मंत्री ने चिंता जताते हुए कहा था कि डर है किसी दिन कोई बांग्लादेशी असम का मुख्यमंत्री न बन जाए।
लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी पर ममता ने फेंके थे पेपर
आज बांग्लादेशी घुसपैठियों की सबसे बड़ी पैरोकार ममता बनर्जी ने एक समय (अगस्त 4, 2005 में) बांग्लादेशी घुसपैठियों पर चर्चा कराने की माँग को लेकर तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी पर कागज़ फेंके थे।
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