
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आज भारत में गाँधी, आंबेडकर और तुष्टिकरण पुजारियों की कोई कमी नहीं। कदम-कदम पर मिल जाएंगे। कोई अपने कुर्सी की खातिर तो कोई अपनी तिजोरी भरने की खातिर इनका तीनो का भक्त बना हुआ है। लेकिन जब धरातल पर देखते हैं, गाँधी और तुष्टिकरण के ढोंगी भक्तों की तरह आंबेडकर भक्त भी ढोंगी ही दिखते हैं। सभी अपनी कुर्सी के भूखे। प्रमाण हैं, जिन्हें कोई झूठला नहीं सकता।
भारत का संविधान बनाने पर डॉ भीमराव आंबेडकर ने तत्कालीन सरकार से अपनी अनुसूचित जाति के लिए दस वर्ष का आरक्षण माँगा, जिसे स्वीकार कर लिया गया था, परन्तु जब उसी आरक्षण का उन्होनें दुरूपयोग होते देखा, तो तुरन्त इसे समाप्त करने की बात कही, और उनकी इस मांग को पूरी करने का किसी में साहस नहीं। विपरीत इसके आरक्षण के नाम पर इतनी पार्टियां बन गयीं हैं, परन्तु समस्याएं वहीँ की वहीं। जो सिद्ध करता है कि आरक्षण के नाम पर बनी पार्टियां अपनी जाति नहीं बल्कि अपना, अपने परिवार और अपने शुभचिंतकों का उत्थान कर रही हैं। आरक्षण की बीमारी केवल भारत में ही है, शायद किसी अन्य देश में नहीं। आखिर कब तक देश आरक्षण की आग में जलता रहेगा? विपरीत इसके नितरोज कोई न कोई जाति आरक्षण की मांग करती रहती है, और नेता किसी न किसी रूप में स्वीकार भी करते रहे हैं, अब इसे कुर्सी की भूख न कहा जाए तो क्या कहा जाए? इस आरक्षण के अन्य सामान्य जातियों को कितना नुकसान हो रहा है, किसी नेता अथवा पार्टी को चिंता नहीं। डॉ आंबेडकर तो अनुच्छेद 370 के विरुद्ध थे, फिर किस आधार पर इसे लागू रखा गया, क्या यही है आंबेडकर प्रेम या दूसरे अर्थों में यही कहा जा सकता है कि "जहाँ दिखी तवा परात, वहीं बिसाई सारी रात", यानि जनता को पागल बनाओ, और अपनी कुर्सी बचाए रखो।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कुल आरक्षण की सीमा 72 प्रतिशत करने के बाद पूरे देश मे आरक्षण पर फिर से बहस शुरू हो गया है, सामान्य वर्ग के लोग सड़कों पर उतरकर इसके विरोध में जहाँ आंदोलन कर इसे घटाने की माँग कर रहें हैं वहीं आरक्षण के लाभार्थी इस कार्य के लिए छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश सिंह बघेल को बधाई दे रहें हैं. सामान्य वर्ग समुदाय के अलग – अलग संगठन एकजुट होकर पूरे देश मे बड़े आंदोलन में लग गयी हैं वहीं दूसरी ओर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एकबार फिर से आरक्षण की समीक्षा करने की बात कहकर इस बहस को और तेज कर दिया है.



हैं और अभी भी ले रही हैं. शिक्षा में आरक्षण, सरकारी नौकरी में आरक्षण और सांसद व विधायक के लिए रिजर्व सीट का प्रावधान रखा गया है. एससी वर्ग से आईएएस और सांसद बनने वाले करीब 90 फीसदी ऐसे लोग हैं जिनकी पिछली पीढ़ी ने रिजर्वेशन का लाभ किसी न किसी रूप में लिया होता है. इस कारण उनके ही वर्ग से 95 फीसदी वंचित लोगों को अभी भी एक बार भी आरक्षण का लाभ नहीं मिला है.
सिर्फ एससी-एसटी में नहीं है क्रीमीलेयर: ओबीसी के लिए उच्च शिक्षा और नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण का नियम है. लेकिन इसका फायदा उन्हें ही मिलता जो क्रीमीलियर में नहीं आते हैं यानी उनकी या उनके पिता की वार्षिक आय आठ लाख रुपए से कम हो. वहीं एसटी का 7.5 और एससी का 15 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान उच्च शिक्षा और सरकारी नौकरी में है. वहीं इस वर्ग के लिए लोकसभा, विधानसभा और नगर पालिका में चुनाव लड़ने के लिए आरक्षित सीट रखी गई है. इनके लिए किसी भी प्रकार का क्रीमीलियर का नियम नहीं है. शहीदों पर आश्रित परिजन के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है। लेकिन ये दोनों ही प्रकार के रिजर्वेशन सिर्फ एक पीढ़ी तक ही दिया जाता है.
पहली बार उन परिवारों के नाम जो कई जनरेशन से ले रहे हैं फायदा
जगजीवन राम परिवार (बिहार)
डाबी परिवार (दिल्ली)
गावित परिवार (महाराष्ट्र)
प्रसाद परिवार (उत्तरप्रदेश)
सिंह परिवार (उत्तरप्रदेश)
बौद्ध परिवार (मध्यप्रदेश)
चौधरी परिवार (पंजाब)
कश्यप परिवार (छत्तीसगढ़)
भेड़िया परिवार (छत्तीसगढ़)
बंसीवाल परिवार (राजस्थान)
इस परिवार के 25 से ज्यादा सदस्य राजनीति-अफसरशाही में हावी राजस्थान के बामनवास गांव से निकला श्रीनारायण मीणा का परिवार करीब 40 साल से पॉवर में है। वे सरपंच थे। मीणा समाज को प्रदेश में एसटी आरक्षण प्राप्त है। इस कुटुंब से निकले परिवारों मेें 25 से ज्यादा लोग राजनीति और अफसरशाही में हावी रहे हैं. परिवार के नमोनारायण मीणा आईपीएस रहे। बाद में केंद्र में मंत्री रहे। हरीश मीणा डीजीपी रहे। एसटी की रिजर्व सीट पर चुनाव भी लड़ा। ओपी मीणा भी मुख्य सचिव थे।
पहली पीढ़ी
जगजीवन राम उपप्रधानमंत्री रहे रिजर्व सीट से लड़ते थे. 30 से ज्यादा वर्षों तक मंत्री रहे।
टीना डाबी जो आरक्षण के सहायता से आईएस बनी उनके माता – पिता सहित दादा भी आरक्षण के सहारे से आईएस थे। माणिकराव होडल्या गावित 8 बार नंदूरबार से सांसद रहे। यूपीए-2 में मंत्री भी रहे।वरिष्ठ कांग्रेस नेता माता प्रसाद केंद्रीय मंत्री रहे और राज्यपाल रहे। देवी सिंह अशोक आईपीएस अफसर रहे। इनके बेटे भी आईपीएस अफसर हैं। 1952 में हरदास अहिरवार ने सेवढा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था, हार गए थे।
स्व. मास्टर गुरबंता सिंह जालंधर की करतारपुर (रिजर्व) सीट से कांग्रेसी विधायक रहे। स्व. बलीराम कश्यप, (एसटी) बस्तर की रिजर्व सीट से चार बार सांसद रहे। स्व. झुमुकलाल भेड़िया डौंडीलोहारा से छह बार विधायक रहे, मंत्री भी बने। सोहनलाल बंसीवाल एक बार दूदू और दूसरी बार दौसा की रिजर्व सीट से विधायक बने। दूसरी पीढ़ी इनकी पुत्री मीरा कुमार 5 बार सांसद रहीं। आईएफएस और लोकसभा स्पीकर भी रहीं।
नंदकिशोर के बेटे जसवंत ने यूपीएससी (इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेज) परीक्षा पास की थी। बेटी निर्मला नाशिक की इगतपुरी (एसटी) सीट से 2 बार विधायक रही हैं । बड़े बेटे केशव इनकम टैक्स कमिश्नर, मझले बेटे डॉ सर्व प्रकाश भास्कर सीएमओ हैं।
पुत्र बीपी अशोक आईपीएस हैं। बहू मंजू अशोक सरकारी अधिकारी हैं। पुत्र महेंद्र बौद्ध तीन बार सेवढा (रिजर्व) से विधायक रहे। गृह मंत्री भी रहे। एक बेटे संतोख सिंह मौजूदा सांसद हैं। दूसरे बेटे स्व. जगजीत सिंह मंत्री रहे थे। जगजीवन राम के बेटे सुरेश की बेटी मेधावी कीर्ति झज्जर (रिजर्व) से विधायक रहीं। जसवंत की बेटी टीना आईएस बनीं। पहली बार एससी कैंडीडेट ने टॉप किया। निर्मला की बेटी नयना ने 2017 में नाशिक (रिजर्व) जिला परिषद के लिए चुनाव लड़ा था। डॉ सर्व प्रकाश के बेटे प्रियदर्शी रंजन एमसीएच, छोटे बेटे डॉ रवि चेस्ट स्पेशलिस्ट हैं। बीपी अशोक की बेटी डाॅ. अवलोकिता और दामाद डॉ. योगेश भी आईएएस हैं।
अवलोकन करें:-
2018 में सिकराय सीट से जियालाल के बेटे विक्रम रिजर्व सीट से चुनाव हार गए
No comments:
Post a Comment