क्या रोमिला थापर के लिए वामपंथी नियम-कायदे ताक पर रखना चाहते हैं?

रोमिला थापर, जेएनयू
वामपंथी मीडिया गुट ने फासिज़्म का रोना शुरू कर दिया है। उनका शायद मानना है कि लेफ्ट लिबरल प्रोफेसरों या कथित विशेषज्ञों की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह नहीं खड़े किए जा सकते और वे जो कह दें, वही दुनिया का अंतिम सत्य होता है। खैर, आप यह जान कर चौंक जाएँगे कि वामपंथियों के इस तर्क में कोई दम नहीं है क्योंकि जेएनयू प्रशासन द्वारा सीवी माँगने का निर्णय एक रूटीन प्रक्रिया है

सिर्फ़ रोमिला थापर ही नहीं बल्कि 75 की उम्र पार कर चुके सभी एमेरिटस प्रोफेसरों से जेएनयू प्रशासन द्वारा उनकी सीवी माँगी गई है। जेएनयू ने कुल 25 प्रोफेसरों को आजीवन एमेरिटस प्रोफेसर की मान्यता दी है। अब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसकी समीक्षा करने का निर्णय लिया है। अधिकतर एमेरिटस प्रोफेसरों ने पिछले 3 वर्षों में एक बार भी यूनिवर्सिटी में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई है और न ही विश्वविद्यालय के अकादमिक कार्यों में कोई योगदान दिया है। ये रही सच्चाई:

 मीडिया में ये बात ज़ोर-शोर से चल रही है कि जेएनयू ने रोमिला थापर से सीवी माँगी है। अगर उन्होंने अपना सीवी नहीं दिखाया तो उन्हें एमेरिटस प्रोफेसर के पद से हटा दिया जाएगा। वामपंथियों ने सोशल मीडिया के माध्यम से कहा कि ये थापर का अपमान है। वहीं कुछ अन्य लोगों ने जेएनयू प्रशासन पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जेएनयू थापर से उनकी सीवी कैसे माँग सकता है? हालाँकि, उन्होंने इसका जवाब नहीं दिया कि जेएनयू ऐसा क्यों नहीं कर सकता।

क्या रोमिला थापर जेएनयू जैसे बड़े संस्थानों के नियम-क़ायदों से ऊपर हैं? क्या रोमिला थापर किसी संस्था में उसके नियम-क़ानून का पालन किए बिना बने रहना चाहती हैं। आख़िर रोमिला थापर के पास ऐसा क्या है कि जेएनयू उनके कहे अनुसार अपना काम करे? मीडिया आउटलेट्स ने यह भी लिखा कि किसी भी एमेरिटस प्रोफेसर से सीवी नहीं माँगी जाती और जानबूझ कर ऐसा किया गया है।

इसीलिए, जेएनयू की एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने 75 वर्ष की उम्र पार कर चुके सभी एमेरिटस प्रोफेसरों की सीवी माँगी है, ताकि उनकी समीक्षा की जा सके। यह जेएनयू के नियम-क़ानून के अंतर्गत किया जा रहा है। जेएनयू के नियम-क़ायदों के मुताबिक़ [Rule-32(g)], जब कोई एमेरिटस प्रोफेसर 75 की उम्र को पार कर जाता है तो यूनिवर्सिटी उनके स्वास्थ्य, उपस्थिति और क्रियाकलापों के आधार पर यह निर्णय लेगा कि उनको मिली मान्यता बरकरार रखी जाए या नहीं।
रोमिला थापर 87 वर्ष की हो गई हैं और 75 से ज्यादा उम्र वाले एमेरिटस प्रोफेसरों की समीक्षा होगी तो वह इस सूची में ऑटोमैटिक आ जाती हैं। फिर इतना हंगामा क्यों? क्या जेएनयू रोमिला थापर के लिए अपने नियम-क़ानून बदल ले? वामपंथियों की सोच यह है कि जेएनयू के पास दो नियम-क़ानून होने चाहिए। एक सामान्य लोगों के लिए और एक वामपंथी प्रोफेसरों के लिए।
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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार हिन्दुओं को बदनाम करने और उनके इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने के लिए कुख्यात इतिहासका.....

जितनी भी ट्वीट्स देखी, उन सभी में गिरोह विशेष ने मोदी और जेएनयू द्वारा रोमिला थापर को परेशान करने का आरोप लगाया है। अब प्रशान्त भूषण जैसे लोगों के बारे में क्या कहा जा सकता है, जो आतंकवादी की फांसी रुकवाने आधी रात को सुप्रीम कोर्ट खुलवा दे।  

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