



केंद्र सरकार ने 15 कारसेवकों के मारे जाने का आँकड़ा दिया था, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने 59 लोगों के मारे जाने की बात कही थी। 1989 में अशोक सिंघल ने राज्य सरकार से 14 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगी थी। इतिहास ने अपने-आप को एक बार फिर से दोहराने की कोशिश की जब 2013 में मुलायम के बेटे अखिलेश की सरकार थी और सिंघल 84 कोसी परिक्रमा की इजाजत माँगने गए। अखिलेश सरकार ने विहिप को इसकी इजाजत देने से इनकार कर दिया था। 14 कोसी परिक्रमा में 25 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, जबकि 84 कोसी परिक्रमा में 135 किलोमीटर की परिक्रमा होती है।
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सरयू नदी में तैरती कारसेवकों की लाशें |
आज ही के दिन 1990 में मुल्लायम नें कारसेवकों पर गोलियाँ चलवाईं थी,और वही मुल्लायम न केवल कई बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना,देश का रक्षामंत्री बना अपितु उसका बेटा भी मुख्यमंत्री बना।— प्रशान्त पटेल उमराव (@ippatel) October 30, 2019
यह केवल सेक्युलर हिंदुओं के समर्थन से ऐसा सम्भव हुआ! Never Forget,Never Forgive.#सुप्रभात
Can justice finally come for the numerous Hindu devotees that the Mulayam Singh govt. had massacred in Ayodhya in 1990? Is devotion to Sri Ram a crime? #KarsevakMassacre https://t.co/HUxRqsoDcx— Dr David Frawley (@davidfrawleyved) February 2, 2019
हेमंत शर्मा लिखते हैं कि इस गोलीकांड के बाद अयोध्या की सड़कें, छावनियाँ और मंदिर खून से सन गए थे। सुरक्षा बलों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। जब कार सेवक सड़कों पर बैठ कर रामधुन गए रहे थे, तब उन पर गोलियाँ चलवाई गईं। जब वो जन्मस्थान परिसर के पास पहुँचे भी नहीं थी, तब भी उन पर गोलियाँ चलीं। स्थानीय प्रशासन ने तरह-तरह की बातों से अपने इस कृत्य को जायज ठहराने की कोशिश की। पत्रकारों ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से पूछा कि निहत्थे लोगों पर गोलियाँ क्यों चलाई जा रही हैं तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। ऐसा लग रहा था जैसे उन पर ख़ून सवार हो।
आज इस घटना को 29 साल हो गए हैं और लगभग 3 दशक बीतने के बाद राम मंदिर पर फैसले की घड़ियाँ नजदीक आ रही है। जबकि, कारसेवकों के परिवार ने सीधा कहा था कि मुलायम सिंह ने उनके घर के चिराग छीन लिए और वे न्याय की आस में अभी भी भटक रहे हैं। क्या मुलायम सिंह यादव इसके लिए सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगेंगे? ये पाप तो ऐसा था कि माफ़ी माँग लेने से भी इसका प्रायश्चित नहीं हो सकता। लेकिन अभी जब सेकुलरिज्म का कीड़ा अपने अंधे दौर से गुजर रहा है, इसकी कोई गारंटी नहीं है कि मुलायम जैसे नेता आगे ऐसा नहीं करेंगे। इरादे वही हैं, बस चेहरे बदल गए हैं।
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