महाराष्ट्र के सियासी ड्रामे में एक और नया अध्याय जुड़ गया। जिस अजित पवार के भरोसे पर भाजपा राज्य में अपनी सरकार बनाने का दावा कर रही थी, उन्होंने उप-मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
इससे पहले 24 नवम्बर की सुबह देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। इसी शपथ ग्रहण में अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की भी शपथ ली थी। दूसरी ओर महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कॉन्ग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच भी लम्बे समय से खिचड़ी पाक रही थी।
हालाँकि जब अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो शरद पवार ने खुद को उनके इस फैसले से दूर रखा था। उनको पार्टी से तो नहीं हटाया गया था लेकिन पद से जरूर हटा दिया था। इस राजनीतिक समीकरण के बाद से तीनों पार्टियाँ (शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस) अपने-अपने विधायकों को इकठ्ठा करने में लग गई थीं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के इस सियासी संकट में सबसे हैरान कर देने वाली घटना तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सदन में 27 नवम्बर को होने वाले फ्लोर टेस्ट से ठीक एक दिन पहले अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 27 नवम्बर को फ्लोर टेस्ट का आदेश आने के बाद अजित पवार ने उनसे खुद संपर्क किया और कहा कि वह इस गठबंधन को आगे अपना समर्थन नहीं दे पाएँगे। इसके बाद ही देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने का निर्णय कर लिया। आने वाले समय में सरकार बनाने वालों को उन्होंने अपनी शुभकामनाएँ दीं। हालाँकि इस दौरान उन्होंने सोनिया गाँधी के नेतृत्व में शपथ ले लेने की ओर इशारा करते हुए शिवसेना पर निशाना भी साधा।
टाइम्स नाउ की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डिप्टी सीएम पद से अजीत पवार के इस्तीफे के पीछे तीन कारण हो सकते हैं। दरअसल अजित को उम्मीद थी कि भाजपा संग उनके गठबंधन को समर्थन देने के लिए कम से कम 30 विधायक ज़रूर साथ होंगे हालाँकि अंत तक उन्हें सिर्फ 12 विधायकों का ही समर्थन मिल सका। इस सियासी घटनाक्रम में धनंजय मुंडे द्वारा यू-टर्न ले लेने से पवार के फैसले पर काफी असर पड़ा। 24 नवम्बर को ही धनंजय मुंडे ने ट्वीट कर यह साफ कर दिया था कि शरद पवार का समर्थन करेंगे।
महाराष्ट्र की सियासत के इन बदलावों के बाद संजय राउत ने कहा है कि अजित पवार शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं। उन्होंने कहा कि सदन में बहुमत साबित करने के बाद उद्धव ठाकरे पूरे पाँच साल के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे।
राजनीति संभव एवं असंभावनाओं का खेल है, जो गिरगिट की तरह कब कब रंग बदल ले, कहना कठिन है। देखा जाए तो सियासत के आगे गिरगिट भी अपना रंग बदलने में शरमा जाए। उद्धव ठाकरे ने अपने पिताश्री बालासाहब से कुछ नहीं सीखा, दूसरे इतिहास से कुछ नहीं सीखा, उनके मुख्यमंत्री के लालच ने उनकी सुध-बुध ही शायद खो दी है। एनसीपी और कांग्रेस ऐसे कच्चे खिलाडी नहीं हैं, जो अपने घोर विरोधी को अपना समर्थन दे दे। शिवसेना के मुख्यमंत्री(नाम से सभी परिचित हैं) से अपने घोटाले की समस्त फाइलें दुरुस्त करवाकर, संभव है अपना समर्थन वापस ले लें। ये सब ड्रामा केवल अपनी फाइलें ठीक करवाने के लिए खेला गया प्रतीत होता है। दूसरे, शिवसेना और भाजपा के कार्यकाल में हुए घोटालों को उजागर भी करवाया जा सकता है। जैसाकि पीछे उद्धव भाजपा के विरोध में कहते रहे हैं।
अवलोकन करें:-
इससे पहले 24 नवम्बर की सुबह देवेन्द्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। इसी शपथ ग्रहण में अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की भी शपथ ली थी। दूसरी ओर महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए कॉन्ग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच भी लम्बे समय से खिचड़ी पाक रही थी।
हालाँकि जब अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो शरद पवार ने खुद को उनके इस फैसले से दूर रखा था। उनको पार्टी से तो नहीं हटाया गया था लेकिन पद से जरूर हटा दिया था। इस राजनीतिक समीकरण के बाद से तीनों पार्टियाँ (शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस) अपने-अपने विधायकों को इकठ्ठा करने में लग गई थीं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के इस सियासी संकट में सबसे हैरान कर देने वाली घटना तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सदन में 27 नवम्बर को होने वाले फ्लोर टेस्ट से ठीक एक दिन पहले अजित पवार ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
इस मुद्दे पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा 27 नवम्बर को फ्लोर टेस्ट का आदेश आने के बाद अजित पवार ने उनसे खुद संपर्क किया और कहा कि वह इस गठबंधन को आगे अपना समर्थन नहीं दे पाएँगे। इसके बाद ही देवेन्द्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने का निर्णय कर लिया। आने वाले समय में सरकार बनाने वालों को उन्होंने अपनी शुभकामनाएँ दीं। हालाँकि इस दौरान उन्होंने सोनिया गाँधी के नेतृत्व में शपथ ले लेने की ओर इशारा करते हुए शिवसेना पर निशाना भी साधा।
I am with party, I am with Pawar saheb. Please don’t spread rumours.@PawarSpeaks @NCPspeaks— Dhananjay Munde (@dhananjay_munde) November 24, 2019
टाइम्स नाउ की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक डिप्टी सीएम पद से अजीत पवार के इस्तीफे के पीछे तीन कारण हो सकते हैं। दरअसल अजित को उम्मीद थी कि भाजपा संग उनके गठबंधन को समर्थन देने के लिए कम से कम 30 विधायक ज़रूर साथ होंगे हालाँकि अंत तक उन्हें सिर्फ 12 विधायकों का ही समर्थन मिल सका। इस सियासी घटनाक्रम में धनंजय मुंडे द्वारा यू-टर्न ले लेने से पवार के फैसले पर काफी असर पड़ा। 24 नवम्बर को ही धनंजय मुंडे ने ट्वीट कर यह साफ कर दिया था कि शरद पवार का समर्थन करेंगे।
महाराष्ट्र की सियासत के इन बदलावों के बाद संजय राउत ने कहा है कि अजित पवार शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन के साथ हैं। उन्होंने कहा कि सदन में बहुमत साबित करने के बाद उद्धव ठाकरे पूरे पाँच साल के लिए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे।
राजनीति संभव एवं असंभावनाओं का खेल है, जो गिरगिट की तरह कब कब रंग बदल ले, कहना कठिन है। देखा जाए तो सियासत के आगे गिरगिट भी अपना रंग बदलने में शरमा जाए। उद्धव ठाकरे ने अपने पिताश्री बालासाहब से कुछ नहीं सीखा, दूसरे इतिहास से कुछ नहीं सीखा, उनके मुख्यमंत्री के लालच ने उनकी सुध-बुध ही शायद खो दी है। एनसीपी और कांग्रेस ऐसे कच्चे खिलाडी नहीं हैं, जो अपने घोर विरोधी को अपना समर्थन दे दे। शिवसेना के मुख्यमंत्री(नाम से सभी परिचित हैं) से अपने घोटाले की समस्त फाइलें दुरुस्त करवाकर, संभव है अपना समर्थन वापस ले लें। ये सब ड्रामा केवल अपनी फाइलें ठीक करवाने के लिए खेला गया प्रतीत होता है। दूसरे, शिवसेना और भाजपा के कार्यकाल में हुए घोटालों को उजागर भी करवाया जा सकता है। जैसाकि पीछे उद्धव भाजपा के विरोध में कहते रहे हैं।
अवलोकन करें:-
जिस एनसीपी के अजित पवार के घोटालों के विरुद्ध भाजपा और शिवसेना ने चुनाव लड़ा था, आज ये दोनों पार्टियां सत्ता हथियाने उसी भ्रष्ट एनसीपी के तलवे चाट रही हैं, क्या है ये सब तमाशा? चर्चा यह हो रही है कि "यदि किसी कारण से समस्त गाँधी परिवार भाजपा में शामिल हो जाएं, उनके घोटाले एक स्वप्न मात्र रह जाएंगे।"
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