बेंगलुरु दंगा : दंगाइयों से वसूली जाएगी नुकसान की कीमत; "जल्दी से अपलोड कर" दंगाइयों को बचाने का ड्रामा शुरू

बेंगलुरु, भीड़, दंगे, आगजनी
                                                               साभार : News18  
पूर्वी बेंगलुरु में पुल्केशी नगर के कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति के एक रिश्तेदार नवीन पर आरोप लगा कि उसने पैगम्बर मुहम्मद को लेकर फेसबुक पोस्ट डाला है और इसके बाद हज़ारों मुसलमानों की भीड़ ने दंगे व आगजनी की। पहले मुस्लिम भीड़ में दंगाइयों की संख्या 100 बताई जा रही थी लेकिन ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने एक प्रत्यक्षदर्शी के हवाले से दावा किया है कि वहाँ 50-60 हजार दंगाई रुके हुए थे।
रात भड़की इस हिंसा में मुस्लिम भीड़ ने न सिर्फ विधायक बल्कि थाने की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया। डीजे हल्ली पुलिस स्टेशन पर भी हमला किया गया और शरीफ नाम का प्रत्यक्षदर्शी वहीं पर मौजूद था। उसने पुलिस में भी अपना बयान दर्ज कराया है। वो सिविल डिफेंस का सदस्य है, जो पुलिसकर्मियों को दंगाइयों से बचाने की कोशिश कर रहा था।
उसने स्पष्ट कहा है कि इस पूरे काण्ड में पुलिस की कोई गलती नहीं है बल्कि हिंसा कर रहे दंगाइयों ने सब कुछ किया। उसने कहा कि ये पुलिस थाना उसके लिए मंदिर-मस्जिद की तरह है और वो पुलिस का सहयोग करना चाहता है। अब तक इस मामले में 165 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। दोनों पुलिस थानों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। साथ ही पूरे बेंगलुरु में धारा-144 लागू कर दिया गया है।
 ‘न्यूज़ 18’ की एक खबर के अनुसार, पूरा पुल्केशी नगर विधानसभा क्षेत्र किसी युद्धस्थल की तरह दिख रहा है, जहाँ चीजें अस्त-व्यस्त पड़ी हुई हैं। कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, उसके मलबे पड़े हुए हैं। घरों की खिड़कियों के शीशे टूटे हुए हैं और दरवाजे क्षतिग्रस्त हैं। सूनी पड़ी सड़कों पर ईंट और पत्थर पड़े हुए हैं। पुलिस की फायरिंग में 3 लोगों के मारे जाने की ख़बर है।
तड़के सुबह तक दंगे जारी रहे और पुलिस से संघर्ष होता रहा। दलित कांग्रेस विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति की बहन जयंती ने रोते हुए बताया कि जब ये सब हो रहा था तब वो लोग घर पर नहीं थे। उन्होंने कहा कि सांत्वना की बात ये है कि उनके भाई और परिवार के लोग सुरक्षित हैं। पुलिस थाने की दीवार पर अभी भी काले निशान दिख रहे हैं, जो जलाने के कारण आए हैं।
कर्नाटक के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा है कि लूटपाट, दंगा और आगजनी- ये सब आपराधिक कृत्य हैं। उन्होंने कहा कि लोग कुछ भी कहना चाहते हों, कोई भी माँग उठाना चाहते हों, उन्हें ये सब क़ानूनी रूप दे करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पुलिस को कार्रवाई के लिए खुली छूट दे दी गई है। उन्होंने आश्वस्त किया कि जिसने भी क़ानून को अपने हाथों में लिया है, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने की माँग की है।




मुजम्मिल पाशा के साथ SDPI के दो और नेता साथ थे जो लगातार लोगों को भड़का रहे थे। उसके सहयोगी नेताओं जफ़र और खलील ने मुस्लिम भीड़ को पत्थरबाजी करने और थाने के बाहर गाड़ियों को आग के हवाले करने के लिए भड़काया था। जहाँ पुलिस मुजम्मिल पाशा को गिरफ्तार करने में कामयाब रही है, वहीं बाकी 2 नेता फरार हो गए। सीसीटीवी फुटेज से भी इस मामले में बड़ा खुलासा हुआ है।
पैगंबर मुहम्मद पर खबर, भड़के दंगे 
इस्लामिक भीड़ का आतताई चेहरा एक बार फिर बेंगलुरु में मंगलवार को देखने को मिला। अल्लाह-हू-अकबर और नारा-ए-तकबीर के नारों के बीच 1000 से भी अधिक मुस्लिमों ने एक पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया। यह पहली बार नहीं है, जब पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी के बाद इस्लामिक भीड़ का ऐसा रूप देखने को मिला हो। इतिहास के पन्नों में ऐसे कई मामले दर्ज हैं, जब लोकतंत्र की दुहाई देने वाले समुदाय विशेष के लोग पैगंबर मुहम्मद पर टिप्पणी सुनकर कानून को भूल गए और भीषण हिंसा को अंजाम दिया गया। इनमें कुछ मामले बहुत हालिया हैं और कुछ थोड़े पुराने हैं। आज हम उन 5 मौकों का जिक्र करेंगे, जब पैगंबर मुहम्मद के नाम पर इस्लामिक कट्टरता का भयावह चेहरा देखने को मिला।
कमलेश तिवारी कांड  
18 अक्टूबर 2019 को हिंदू महासभा के अध्यक्ष कमलेश तिवारी की उनके आवास स्थित कार्यालय में बर्बरता से हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद मालूम चला था कि इसके पीछे कट्टरपंथियों का हाथ है, जो बहुत पहले से तिवारी के खिलाफ़ साजिश रच रहे थे। कमलेश तिवारी का अपराध केवल यह था कि उन्होंने साल 2015 में पैगंबर मुहम्मद पर विवादित टिप्पणी कर दी थी। इसके बाद से ही उन्हें मारने के प्रयास और ऐलान किए जा रहे थे। 
शार्ली ऐब्दो नामक मैग्जीन द्वारा पैगम्बर मोहम्मद के कार्टून पर दंगा 
शार्ली ऐब्दो नामक मैग्जीन कुछ साल पहले पैगंबर मुहम्मद का कार्टून छापने के कारण चर्चा में आई थी। इसके बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों ने उस पर ईशनिंदा का आरोप लगाया। साल 2011 में इसके कार्यालय पर गोलीबारी हुई और बम फेंके गए। फिर 7 जनवरी, 2015 को कट्टरपंथियों ने इसे एक बार दोबारा निशाना बनाया और अल्लाह हू अकबर कहते हुए 12 लोगों को मौत के घाट उतार गए। इनमें तीन पुलिसकर्मी थे।
मोहम्मद की शादी पर आधारित "रंगीला रसूल" प्रकाशित करने पर महाशय राजपाल की हत्या  
साल 1924 में अनाम लेखक के नाम से रंगीला रसूल नाम की एक किताब प्रकाशित हुई थी। इस किताब में मुहम्मद साहब और एक औरत के परस्पर संबंधों का कथानक था। जिसके कारण मुस्लिम समुदाय ने इसका काफी विरोध किया और इसके प्रकाशक को वैमनस्यता फैलाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन प्रकाशक के रिहा होते ही इल्मुद्दीन नामक कट्टरपंथी ने महाशय राजपाल की हत्या कर दी और इल्मुद्दीन को बचाने के लिए केस फिर मुहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा।
700 साल पुरानी किताब से एक कोट लेने पर New Indian Express को मांगनी पड़ी थी माफ़ी 
साल 2000 में न्यू इंडियन एक्सप्रेस नामक समाचार पत्र ने 700 साल पुरानी एक किताब से एक कोट लेकर अपना आर्टिकल लिखा। जिसके कारण मुस्लिम भीड़ भड़क गई और बेंगलुरू के इस अखबार ने मुस्लिम भीड़ का एक भयानक चेहरा देखा। रिपोर्ट्स के मुताबिक करीब 1000 की भीड़ ने सिर्फ़ आर्टिकल में पैगंबर का नाम आने से कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था और 20 उलेमाओं ने बाद में अखबार के चीफ रिपोर्टर से मिलकर माँग की कि लेख लिखने वाले अखबार के सम्पादकीय सलाहकार टीजेएस जॉर्ज माफी माँगें।
1986 में Deccan Herald को भी झेलना पड़ा था कट्टरपंथियों को 
साल 1986 में डेक्कन हेराल्ड को ऐसे आक्रोश का सामना करना पड़ा था, जब एक छोटी से स्टोरी के कारण देश में साम्प्रदायिक हिंसा भड़क गई और 17 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। बाद में अखबार ने रेडियो और टेलीविजन के जरिए समुदाय से माफी माँगी। इस घटना में भी मुस्लिमों को स्टोरी में यही लगा था कि लिखने वाले ने पैगंबर का अपमान किया है।
बेंगलुरु दंगा मुस्लिम मंदिर
मुस्लिमों के मंदिर बचाने का ड्रामा अंत के 5 सेकंड में फुस्स
यह वीडियो कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव और सोशल मीडिया प्रभारी जाकिया खान ने शेयर किया। 11-12 अगस्त की रात लगभग 2 बजे इस वीडियो को शेयर किया गया। इस वीडियो को शेयर करते हुए जाकिया खान ने दावा किया कि मुस्लिम युवकों ने मंदिर को ‘अनियंत्रित भीड़’ से ‘बचाने के लिए’ ‘मानव श्रृंखला’ का निर्माण किया।
इस ट्वीट में बड़ी ही चतुराई से ‘temples’ हैशटैग का इस्तेमाल किया गया और ‘अनियंत्रित भीड़’ के मजहब को छिपाया गया, जबकि ‘मानव श्रृंखला’ बनाने वाले युवकों के मजहब को उजागर किया गया। जबकि सच्चाई यह है कि ‘अनियंत्रित भीड़’ का धर्म भी इस्लाम था।



यह विशेष रूप से राम मंदिर भूमिपूजन की पूर्व संध्या पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा की गई धमकी के बाद और अधिक भयावह प्रतीत होता है, जहाँ इस्लामी निकाय ने हागिया सोफिया का उदाहरण दिया था और धमकी दी थी कि कैसे एक बार बनी मस्जिद हमेशा एक मस्जिद ही बनी रहेगी।
ट्वीट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने लिखा था, “बाबरी मस्जिद थी, और हमेशा एक मस्जिद रहेगी। हागिया सोफिया हमारे लिए एक बेहतरीन उदाहरण है। अन्यायपूर्ण, दमनकारी, शर्मनाक और बहुसंख्यक तुष्टिकरण वाले फैसले से भूमि का पुनर्निमाण इसे बदल नहीं सकता है। दुखी होने की जरूरत नहीं है। परिस्थति हमेशा के लिए नहीं रहती है।”
एक सोशल मीडिया यूजर मुहम्मद नुम्मिर ने भी इसी वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा कि यही तो भारत की सुंदरता है। लेकिन मंदिर को बचाने के लिए मानव श्रृंखला का उल्लेख करते हुए नुम्मिर यह आसानी से भूल गए कि हमलावर भी उनके अपने मुस्लिम भाई थे।
कांग्रेस नेता सलमान निजामी ने भी दंगाई को ‘भीड़’ के रूप में प्रदर्शित किया, मगर मंदिरों को बचाने के लिए मुस्लिमों ने मानव श्रृंखला बनाई’ थी।

निजामी ने 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को शहीद बताया था और 5 अगस्त को ‘काला दिन’ घोषित किया था, जिस दिन भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया था।


समाचार एजेंसी एएनआई ने भी उस इलाके का वीडियो शेयर किया, जिसमें उसने दंगाइयों को ‘आगजनी करने वाला’ बताया।



इंडिया टुडे के कर्मचारी राजदीप सरदेसाई ने भी मुसलमानों को ‘मानव श्रृंखला’ कहा। इन आगजनी करने वालों का कोई धर्म नहीं है, मगर मंदिरों की रक्षा के लिए मानव श्रृंखला बनाने वाले युवकों का मजहब है।



कई सोशल मीडिया यूजर्स का कहना है कि यह वीडियो फर्जी है। इसे कांग्रेस के नेताओं ने पीआर स्टंट के लिए बनवाया है, क्योंकि कांग्रेस नेता ही इस वीडियो को वायरल करने में लगे हुए हैं।
उसी स्थान से एक और वीडियो अब सामने आया है। वीडियो शूट करने वाले व्यक्ति को बैकग्राउंड से किसी को ये कहते हुए सुना जा सकता है कि इसे ‘जल्दी से अपलोड करे।’


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यह इस बात की उत्सुकता जागृत करती है कि क्या सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से शहर को उपद्रवियों द्वारा जला दिए जाने के बाद मंदिर की रक्षा के लिए मुस्लिमों द्वारा मानव श्रृंखला का वीडियो महज एक पब्लिसिटी स्टंट था।(एजेंसीज इनपुट्स सहित)

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