हाथरस : इंडिया टुडे की पत्रकार का लम्बा ऑडियो लीक

                                       हाथरस केस से जुड़ा इंडिया टुडे पत्रकार तनुश्री पांडे का ऑडियो लीक
जैसाकि सर्वविदित है कि देश में जब कभी चुनाव होने को होते, भाजपा शासित किसी भी राज्य में हुई घटना को जी का जंजाल बनाने में भाजपा विरोधी पार्टियां और मीडिया इस प्रकार उछालती है, मानो कहर टूट पड़ा है। जबकि गैर-भाजपा शासित राज्यों में उससे अधिक जघन्न अपराध होने पर चुप्पी साध ली जाती है। क्या इसी का नाम सियासत है? अगर इसी का सियासत है, नहीं चाहिए ऐसे सियासतखोर। आज हाथरस पर आसमान सर पर उठाने वाले राजस्थान और अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों में हो रही ऐसी ही घटनाओं पर क्यों मौन रहे? अपराध अपराथ ही होता है, वह चाहे भाजपा शासित राज्य में हो अथवा गैर-भाजपाई राज्य में। ये सियासत और पत्रकारिता में दोहरा मापदंड क्यों? 

वैसे भी 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद से देश में होने वाले चुनावों से पूर्व मोदी विरोधी गैंग जैसे: #metoo, #intolerance, #not in my name, #award vapasi, #mob lynching, #freedom of speech आदि बिकाऊ गैंग सड़क पर उतर आते हैं, और मतदान होते ही कालकोठरी में जाकर बैठ जाते हैं। बिहार में मतदान होते ही, कोई नेता एवं मीडिया हाथरस को घास तक नहीं डालेगा। यह कटु सच्चाई है। दूसरे, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे निम्न वीडियो में लगाए जा रहे धन के आदान-प्रदान की योगी सरकार को जाँच करवानी चाहिए। अगर वीडियो में धन के लेन-देन की बात सत्यापित होती है, परिवार पर अन्यथा वीडियो में इस व्यक्ति पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।  

हाथरस की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालाँकि इस मामले में अब भी कई पहलुओं से राज उठना बाकी है। मगर कुछ राजनेता इस केस के जरिए अपनी राजनीति करने में जुटे हैं। इसी दौरान सोशल मीडिया पर भी मुख्यधारा मीडिया अपना अजेंडा चलाने के लिए कई झूठ फैला रहा है और इसी बीच एसआईटी को पूरे मामले की जाँच भी सौंप दी गई हैं। 

हाथरस की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। हालाँकि इस मामले में अब भी कई पहलुओं से राज उठना बाकी है। मगर कुछ राजनेता इस केस के जरिए अपनी राजनीति करने में जुटे हैं। इसी दौरान सोशल मीडिया पर भी मुख्यधारा मीडिया अपना अजेंडा चलाने के लिए कई झूठ फैला रहा है और इसी बीच एसआईटी को पूरे मामले की जाँच भी सौंप दी गई हैं।

बातचीत को सुनकर यह साफ पता चलता है कि तनुश्री पीड़िता के भाई से एक निश्चित बयान दिलवाने का प्रयास कर रही हैं और संदीप की दबी आवाज सुनकर लग रहा है जैसे वह ऐसा नहीं करना चाहते। संदीप इस ऑडियो में पहले दबाव की बात कहते हैं। मगर बाद में कहते हैं कि उनके पिता इस बात को लेकर स्पष्ट नहीं है कि उन पर दबाव बनाया गया या नहीं।

इसके बाद तनुश्री, संदीप से कहती हैं कि उसे कहीं से पता चला है कि परिवार पर ही बहन की मौत का इल्जाम लगाने का प्रयास किया जा रहा है। ये इस बातचीत का ऐसा हिस्सा है जिसे सुन कर लगता है कि ये सवाल खुद ही गढ़े गए, क्योंकि अभी तक कहीं भी मीडिया में ऐसी बात निकल कर सामने नहीं आई है। इससे पता चलता है कि पॉलिटिकल अजेंडा चलाने के लिए कैसे परिवार की स्थिति का फायदा उठाया गया।

कुल मिलाकर इस बातचीत का मकसद सिर्फ़ मृतका के पिता का वीडियो निकलवाना था, जिसमें पिता किसी भी तरह बस यही बोल दें कि उनपर दबाव बनवाकर बयान दिलवाया गया कि वह संतुष्ट हैं।

उन्हें ऑडियो में कहते सुना जा सकता है, “संदीप, प्लीज मेरे लिए एक चीज कर दो। मैं तुमसे वादा करती हूँ कि जब तक तुम्हारे परिवार को इंसाफ नहीं मिल जाता मैं यहाँ से हिलूँगी भी नहीं… संदीप एक वीडियो अपने पिता की बनाओ जिसमें वो कहें, ‘हाँ, मुझ पर ऐसा बयान जारी करने का बहुत प्रेशर था कि मैं संतुष्ट हूँ। मैं जाँच चाहता हूँ क्योंकि हमारी बेटी मरी है और हमें न उसे देखने का मौका मिला और न उसके अंतिम संस्कार का।”

वे आगे कहती हैं, ”सिर्फ 5 मिनट लगेंगे। जल्दी से वीडियो बनाओ और सिर्फ़ मुझे भेज दो।” इस बातचीत में तनुश्री बार-बार संदीप को एसआईटी के ख़िलाफ़ भड़काती है। मगर, लड़की का भाई कहता है कि जाँच टीम सिर्फ़ उसे जरूरी सवाल कर रही थी और फिर वह चली गई।

पूरी बातचीत को सुनिए। मृतका का भाई वीडियो बनाने में अनिच्छुक नजर आता है और हिचकिचाता है। मगर तनुश्री उसे यह कहकर समझाती हैं कि वो भी उनकी बहन हैं।

इस मामले में एक अन्य ऑडियो भी सामने आई है। यह ग्रामीणों और संदीप के बीच की है। इसमें मृतका के भाई को सलाह दी जाती है कि उसे 25 लाख रुपए नहीं स्वीकारने चाहिए। इस बातचीत में महिला का कहना है कि कुछ राजनेता कह रहे हैं कि ‘फैसला’ नहीं होना चाहिए। बता दें कि इस बातचीत में, किसी राहुल, मनीष सिसोदिया और बरखा दत्त का नाम भी आता है।

उल्लेखनीय है कि यह पहली बार नहीं है जब तनुश्री का नाम ऐसे किसी मामले में सामने आया हो। सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान, उन्होंने जेएनयू में एक वामपंथी छात्र के साथ कान में फुसफुसाकर बातचीत करते देखा गया था। उस वीडियो को देखककर ऐसा लग रहा था जैसे वह उसे कैमरे पर बोलने की कोचिंग दे रही हैं। वीडियो में, पत्रकार को स्पष्ट रूप से छात्र से चर्चा करते देखा गया था। हालाँकि फुसफुसाने के कारण उनकी बात कैमरे व माइक में सुनाई नहीं पड़ी थी।

अवलोकन करें:-

राजस्थान जल रहा है और सेक्युलर मीडिया खामोश, क्यों?

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आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार एसटी आरक्षण की माँग के कारण राजस्थान का

पुलिस भी संदेह के घेरे में 

पीड़िता के कज़िन ने इंडिया टुडे को बताया कि पुलिस लगातार उन पर, परिवार पर बयान बदलने के लिए दबाव बना रही है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिसवाले परिवार के लोगों को डरा-धमका रहे हैं, पीट भी रहे हैं। साथ ही परिवार के सभी लोगों को घर से निकलने नहीं दिया जा रहा है, सबके फोन ले लिए गए है।ताकि कोई भी मीडिया से बात न कर सके। पीड़िता के कज़िन ने बताया कि वे किसी तरह पुलिस से बचकर बाहर निकले तो मीडिया से बात की। उन्होंने कहा कि परिवार गांव में बिल्कुल भी सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा। उन्हें पुलिस और राजनेताओं पर भरोसा नहीं है। परिवार को डर है कि कल को उन्हें गांव छोड़कर भी जाना पड़ सकता है

पीड़िता के परिवार का आरोप- पुलिस ने पीटा, फोन ज़ब्त कर लिए, घर से निकलने नहीं दे रहे

इससे पहले एक अक्टूबर को हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें वो परिवारवालों को धमकी भरे अंदाज में कह रहे हैं कि आधे मीडिया वाले आज चले गए, आधे कल चले जाएंगे फिर हम लोग ही बचेंगे

हालांकि पुलिस-प्रशासन को लेकर लगातार आ रही शिकायतों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अक्टूबर को पूरे मामले में स्वतः संज्ञान भी ले लिया है जस्टिस राजन रॉय और जसप्रीत सिंह की बेंच ने उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव, डीजी, एडीजी-लॉ एंड ऑर्डर, डीएम हाथरस, एसपी हाथरस को नोटिस जारी किया है कहा है कि 12 अक्टूबर को होने वाली सुनवाई में आकर अब तक की जांच के बारे में बताएं

शेखर गुप्ता और उनके प्रोपेगेंडा पोर्टल ‘दी प्रिंट’ ने दक्षिणपंथी समाचार पोर्टल ‘स्वराज्य मैगजीन’ की जर्नलिस्ट स्वाति गोयल शर्मा पर एक कथित ‘विचार’ प्रकाशित किया, जिस पर हुए भारी विरोध के बाद आखिर में ‘दी प्रिंट’ को माफ़ी माँगते हुए अपनी वेबसाइट से चुपके हटाना पड़ा।

दरअसल, दी प्रिंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित करते हुए इसमें स्वाति गोयल शर्मा का नाम घसीटते हुए ‘लव जिहाद’ पर की गई उनकी रिपोर्टिंग के तरीकों पर कई तरह के आरोप लगाए थे। लेकिन स्वाति गोयल ने ना सिर्फ दी प्रिंट के अजेंडा को बेनकाब किया बल्कि उन्हें जमकर लताड़ा भी।

करवा ली बेइज्जती? ‘दी प्रिंट’ ने पहले थूका, फिर पकड़े जाने पर चाटा

दी प्रिंट ने एक रिपोर्ट (विचार)  प्रकाशित की जिसमें उन्होंने स्वाति गोयल शर्मा पर आरोप लगे कि उन्होंने ट्विटर पर ‘लव-जिहाद’ का कैम्पेन चलाया। यही नहीं, दी प्रिंट ने अपनी इस रिपोर्ट में स्वाति गोयल शर्मा पर आरोप लगाया कि उन्होंने उत्तर प्रदेश के हाथरस कांड में पीड़िता और आरोपितों की जाति को भी विवादित तरीके से पेश किया।

1 अक्टूबर को, शेखर गुप्ता के ‘दी प्रिंट’ ने यह ‘विचार’ प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने स्वाति गोयल शर्मा पर हाथरस हत्या मामले में जाति के नजरिए को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने ट्विटर पर ‘लव जिहाद’ के बारे में ‘एक अभियान चलाने’ के लिए भी स्वाति गोयल को निशाना बनाया और कहा कि उन्होंने ‘लव’ में ‘जिहाद’ देखा।

स्वाति गोयल शर्मा ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेखर गुप्ता को टैग किया और ‘दी प्रिंट’ की इस रिपोर्ट के स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखा, “यह गटर के स्तर की चीज है। क्या आपके कम अनभिज्ञ लेखकों की यह आदत है और उनके काम की जाँच के बिना ही उन पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाते हैं? आपने आईआईटी-कानपुर के वाशी शर्मा के साथ भी ऐसा ही किया और बाद में माफी माँगी थी।”

स्वाति शर्मा ने लिखा, “तुम्हारे अनपढ़ लेखक मुझे यह स्पष्ट करें कि मैंने हाथरस मामले में जाति की बात को कब नकारा या फिर माफ़ी माँगे।”

प्रिंट के इस लेख का शीर्षक था – “आप हाथरस बलात्कार के बारे में अन्य बलात्कारों को भी रखते हुए बात नहीं कर सकते – आईटी सेल की व्हाटअबाउट्री को धन्यवाद।”

‘व्हाटअबाउट्री’ का सामान्य शद्बों में अर्थ गुमराह करने की कला होता है। इस ‘विचार’ में स्वाति शर्मा पर यह कहते हुए हमला किया गया कि जब वह ‘लव’ में ‘जिहाद’ देख सकती हैं, तो वह ‘जाति के नजरिए’ को नहीं देख पाई क्योंकि ‘4 ऊँची जाति के पुरुषों ने एक दलित महिला का बलात्कार किया था’।

‘दी प्रिंट’ ने जो लिखा है, वह ट्विटर पर पत्रकार स्वाति गोयल शर्मा द्वारा साझा किए गए इन स्क्रीनशॉट्स में देखा जा सकता है –

दिलचस्प बात यह है कि, ‘दी प्रिंट’ इस लेख को प्रकाशित करने से पहले मूल तथ्यों की भी जाँच नहीं कर पाए। स्वाति गोयल शर्मा एक ग्राउंड रिपोर्टर हैं, जिन्होंने दलितों के अधिकारों और उनके खिलाफ अपराधों के बारे में कई मामले सामने रखे हैं। यहाँ तक ​​कि वह दलित कार्यकर्ता संजीव नेवार या अज्ञेय के साथ एक एनजीओ भी चलाती हैं।

स्वाति गोयल शर्मा द्वारा दी प्रिंट के झूठ को उजागर करने के बाद ‘दी प्रिंट’ ने चुपचाप अपने इस ‘विचार’ को हटा दिया। लेकिन तब तक स्वाति गोयल शर्मा लेख के स्क्रीनशॉट ले चुकी थीं। स्वाति गोयल शर्मा ने ट्विटर पर लिखा कि उन्हें ख़ुशी है कि यह लेख हटा लिया गया है लेकिन लेखक फैक्ट चेक करने का ध्यान अवश्य रखें।

यह देखने के बाद कि ‘दी प्रिंट’ का प्रोपेगेंडा बेनकाब हो चुका है, उन्होंने एक ट्वीट के माध्यम से स्वाति गोयल शर्मा से माफ़ी माँगी जिसमें कि डिलीट भी स्क्रीनशॉट रह गया था। दी प्रिंट ने अपने आर्टिकल की ही तरह फिर इस ट्वीट को भी डिलीट किया और दोबारा ट्वीट किया और इस बार स्वाति गोयल के ट्वीट को इसमें लिंक नहीं किया।

हाथरस कांड

सितम्बर 29, 2020 की सुबह दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में पीड़िता की मौत के बाद से हाथरस मामले को लेकर काफी बहस और राजनीतिक उथल-पुथल देखी जा सकती हैं। हाथरस पुलिस ने बृहस्पतिवार को कहा कि ‘जबरन यौन क्रिया’ अभी तक भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पुष्टि नहीं हो पाई है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंटने से मौत को मौत का कारण बताया गया था।

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक कथित सामूहिक बलात्कार पीड़िता की मौत हो गई। उसके साथ दो सप्ताह पहले कथित तौर पर बलात्कार किया गया था। इस मामले ने देशव्यापी आक्रोश देखा जा रहा है। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि हाथरस पुलिस ने परिवार के सदस्यों की सहमति के बिना मंगलवार रात लड़की का जबरन अंतिम संस्कार कर दिया। हालाँकि, पुलिस ने बाद में कहा था कि दाह संस्कार के दौरान पीड़िता के पिता मौजूद थे।

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