दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के बीच लंदन में भारतीय उच्चायोग से बड़ी खबर आ रही है। यहाँ किसानों के नाम पर खालिस्तान समर्थकों ने 10 दिसंबर को प्रदर्शन की तैयारी की है। जो इस बात को फिर सिद्ध कर कर रहा है कि किसानों के नाम पर किया जा रहा उपद्रव पूर्णरूप से प्रायोजित साज़िश है, इन्हें किसानों से कोई मतलब नहीं, इनका उद्देश्य भारत में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अकाली दल के माध्यम से अराजकता फैलाना है।
इस उपद्रव ने भारत के समस्त शांतिप्रिय--चाहे वह किसी भी धर्म, मजहब और जाति से हों--लोगों को सोंचने के लिए मजबूर कर दिया है कि भविष्य में इन पार्टियों को समर्थन एवं वोट दिया जाए अथवा नहीं? जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को ठोके जाने की बात करने के साथ-साथ वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ठोकने की बात खुलेआम कर रहे हों और किसी भी पार्टी द्वारा इस प्रदर्शन से अपना समर्थन वापस लेने एवं इन आपत्तिजनक बातों का विरोध भी नहीं करना, इन अराजक पार्टियों की मानसिकता को जगजाहिर कर रहा है कि जो पार्टी देश के प्रधानमंत्री की नहीं, जनता की क्या होगी?
हैरानी इस प्रायोजित किसान आंदोलन में अकाली दल कांग्रेस के साथ खड़ा है। इसी अकाली दल की सरकार को गिराने के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने संत भिंडरावाला का सहारा लिया था। और मतलब हल होने पर उसी संत को आतंकवादी घोषित कर दिया। दूसरे, यह कि विदेशी चंदे पर चल रहा खालिस्तान उस समय किस बिल में छुप गया था, जब इंदिरा गाँधी की हत्या के उपरांत बेगुनाह सिखों के खून की होली खेली जा रही थी, उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा था, यानि आग लगाओ, तमाशा देखो और उस पर अपनी रोटियां सेंकने के साथ-साथ तिजोरियां भरो। यह आरोप नहीं, कटु सत्य है, 1984 इसका प्रमाण है। पूछो फिल्म निर्माता, वितरक और कृष्णा नगर दिल्ली में स्वर्ण सिनेमा के स्वामी बेगुनाह सरदार स्वर्ण सिंह के परिवार से, जहाँ एक दिन में 12/13 सुहागिन विधवा हो गयीं थीं।
he is real Sikh 💪💪 pic.twitter.com/7KTeZgN2Nr
— Woke 🌈 (@reborn2ndtime_) December 8, 2020
प्रो-खालिस्तानी समूह सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) ने दिसंबर 7, 2020 को लंदन, बर्मिंघम, फ्रैंकफर्ट, वैंकूवर, टोरंटो, वाशिंगटन डीसी, सैन फ्रांसिस्को और न्यूयॉर्क में 10 दिसंबर को कार, ट्रैक्टर और ट्रक रैली के जरिए भारतीय वाणिज्य दूतावास को बंद करने की धमकी दी।
इससे पहले दिसंबर 6, 2020 को NIA की मोस्ट-वॉन्टेड लिस्ट में टॉप पर रहने वाले एसएफजे के कार्यवाहक परमजीत सिंह पम्मा को लंदन में ‘किसान रैली’ में देखा गया था। पम्मा को उनके समर्थकों के साथ रैली में देखा गया था। रैली में खालिस्तानी झंडे और भारत विरोधी नारे लगे।
यह दावा करते हुए कि ‘खालिस्तान पंजाब के किसानों की दुर्दशा का एकमात्र समाधान है’, एसएफजे, एस गुरुपतवंत सिंह पन्नू ने कहा कि उनके संगठन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार दिवस पर भारतीय दूतावासों को बंद करने का आह्वान किया है।
भारत में एक नामित आतंकवादी पम्मा 1990 के दशक में पंजाब से भाग गया था और 2000 में ब्रिटेन में राजनीतिक शरण दिए जाने से पहले कथित तौर पर पाकिस्तान की यात्रा की थी। उसके बब्बर खालसा इंटरनेशनल और खालसा टाइगर फोर्स जैसे आतंकी संगठनों से संबंध हैं। इसके अलावा टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार उसका 2010 में पटियाला और अंबाला में हुए बम विस्फोट और 2009 में राष्ट्रीय सिख संगत के नेता रुलादार की हत्या से भी कनेक्शन है।
भारत के प्रत्यर्पण का अनुरोध करने के बाद पम्मा को 2015 में पुर्तगाल में गिरफ्तार किया गया था। हालाँकि, उनका प्रत्यर्पण नहीं हुआ, और वे यूनाइटेड किंगडम लौट आए।
प्रो-खालिस्तानी SFJ सदस्यों ने लंदन में ‘किसान रैली’ में भाग लिया
एसएफजे नेता पन्नू ने आगे कहा कि कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो, ब्रिटिश संसद सदस्यों और संयुक्त राष्ट्र महासचिव के एक प्रतिनिधि द्वारा किसानों के विरोध का समर्थन करने के लिए संगठन का उत्साह बढ़ाया गया। सिख संगठनों के संघ के कुलदीप सिंह चेरू नाम के एक अन्य खालिस्तान समर्थक को भी लंदन के विरोध प्रदर्शन में देखा गया था। प्रेस और सूचना मंत्री, विश्वेश नेगी ने कहा कि विरोध भारत विरोधी अलगाववादी ताकतों द्वारा किया गया था।
नेगी ने कहा, “महामारी के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग को धता बताते हुए उच्चायोग के सामने 3,500 से 4,000 से अधिक लोग एकत्र हुए। हमेशा कि तरह यह जल्द ही स्पष्ट हो गया कि इस सभा का नेतृत्व भारत विरोधी अलगाववादियों ने किया था, जिन्होंने भारत में किसान विरोध का समर्थन करने के नाम पर अपने स्वयं के एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम किया।”
SFJ का भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन से लिंक
‘किसानों’ के विरोध प्रदर्शन में खालिस्तानी तत्वों की बड़ी भागीदारी देखी गई। खालिस्तान का समर्थन करते हुए कई ‘किसानों’ ने हिंसा और चिंताजनक नारों का सहारा लिया। खालिस्तान समर्थक और भारत विरोधी नारे लगाने के साथ हरियाणा-पंजाब सीमा पर ‘किसान विरोध’ के दौरान, पंजाब के किसानों को सरकार के विरोध में उकसाने के लिए एसएफजे की कथित संलिप्तता पर भी सवाल उठाए जा रहे थे।
पाकिस्तान द्वारा वित्त पोषित खालिस्तान संगठन एसएफजे ने पहले खालिस्तान के समर्थन के बदले पंजाब और हरियाणा में किसानों के लिए $ 1 मिलियन का अनुदान घोषित किया था।
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