क्या इस किसान आंदोलन के पीछे हनी ट्रैप है? कौन-कौन इस हनी ट्रैप में लिप्त है?

   क्या इस आंदोलन के पीछे हनी ट्रैप का खेल है? सोशल मीडिया पर वायरल फोटो 
प्रदर्शनकारी किसान जहां नए कृषि कानूनों को हर हाल में वापस लेने की मांग पर अड़े हैं, वहीं मोदी सरकार कानूनों को किसानों के हित में बताकर उन्हें समझाने की कोशिश कर रही है। सरकार की दलील है कि नए कानून के तहत किसान मंडियों की गुलामी से मुक्त हो सकेंगे और अपनी इच्छा के अनुसार अपनी कीमत पर अपना कृषि उत्पाद बेच सकेंगे। सरकार और किसानों के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। दिल्ली की सीमाओं पर जमे आंदोलनकारी किसानों में बड़ी संख्या पंजाब के किसानों की है, जहां की मंडियों का कुल शुल्क सबसे ज्यादा है।

किसान आंदोलन से अधिक चर्चा इस गंभीर बात को लेकर हो रही है कि आखिर पंजाब मुख्यमंत्री किस आधार पर पाकिस्तानी डिफेंस पत्रकार के साथ लिवइन रिलेशन में हैं? इसके अलावा किस-किस पार्टी के कितने नेता हनी ट्रैप में लिप्त हैं? क्योकि नागरिकता संशोधक कानून विरोध से लेकर चल रहे किसान आंदोलन में वही सब मुद्दे यानि मांगें उठ रही हैं, जिन्हे लेकर पाकिस्तान भारत के विरुद्ध प्रचार करता रहता है। सरकार को इस हनी ट्रैप की गंभीरता से जाँच कर इस ट्रैप में लिप्त नेताओं पर नकेल डालनी पड़ेगी। 

किसानों की आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार कानून में आवश्यक संशोधन का आश्वासन दे रही है। इसके बावजूद किसान अपनी जिद पर अड़े हुए और हंगामा हर रोज बढ़ता जा रहा है, क्योंकि देश विरोधी ताकतें किसानों को बहकाने का कोई मौका नहीं चूक रहीं। ये ताकतें आंदोलन की आड़ में अपना हित साधने में लगी है। इसकी पुष्टि इस ‘आंदोलन’ में दिख रही उमर खालिद, शरजील इमाम, वरवरा राव जैसे लोगों की तस्वीरों से होती है।

मंडी लॉबी की मार का सबसे बड़ा भुक्तभोगी केंद्र सरकार

केंद्र सरकार को होता है बड़ा नुकसान जीएसटी से पहले एफसीआई अनाज खरीद के लिए जो मंडियों को विभिन्न लेवी का भुगतान करती थी, वह कई बार एमएसपी का औसतन 13 प्रतिशत तक होता था। पंजाब में तब यह 14.5 प्रतिशत तक था। मंडी लॉबी की इस मार का सबसे बड़ा भुक्तभोगी केंद्र सरकार ही रही है। मसलन, 2019-20 में केंद्र ने एफसीआई और दूसरी एजेंसियों के जरिए जो सिर्फ धान और गेहूं की खरीद की थी, उसकी एवज में उसे 7,600 करोड़ रुपये सिर्फ मंडी टैक्स और आढ़तियों के कमीशन के रूप में देने पड़ गए।

प्रदर्शन के दौरान भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) ने अपने स्टेज पर एक कार्यक्रम किया और इसमें उमर खालिद, शरजील इमाम, गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, वरवरा राव और आनंद तेलतुंबडे जैसे लोगों के पोस्टर-बैनर नजर आए। ये कार्यक्रम टिकरी बॉर्डर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर हो रहा था। पोस्टर-बैनर के जरिए मांग की जा रही थी कि गिरफ्तार लोगों को रिहा किया जाए। गौरतलब है कि इनमें से कई लोगों पर संगीन मामलों के तहत केस दर्ज हैं। कुछ तो ऐसे हैं जिन पर UAPA के तहत केस दर्ज है। जिसमें उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे लोग शामिल हैं। 

इन पोस्टरों को देखकर लगता है कि किसानों को गुमराह कर जहां सियासी दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं, वहीं टुकड़े-टुकड़े गैंग अपने एजेंडे को लागू करने में लगा है। सरकार द्वारा कई मांगों को माने जाने के बावजूद किसान सरकार की सुनने को तैयार नहीं है। वह सिर्फ कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। इससे पता चलता है कि इस प्रदर्शन के पीछे बड़ी साजिश है। टुकड़े-टुकड़े गैंग चाहता है कि नए कृषि कानूनों के रद्द होने पर सीएए को रद्द करने की मांग तेज की जाएगी।

जिस तरह से इस प्रदर्शन में देश विरोधी ताकतों की भूमिका बढ़ती जा रही है। उससे धीरे-धीरे यह प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित लगने से ज्यादा खतरे की घंटी नजर आने लगा है। वही खतरे की घंटी जिसे शाहीन बाग के दौरान नजरअंदाज किया जाता रहा और अंत में उसका भीषण रूप उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के रूप में देखने को मिला। इसी तरह किसानों की आड़ में भी किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया जा सकता है। 

उमर खालिद और शरजील इमाम के साथ गौतम नवलखा और वरवरा राव की तस्वीरें इस ओर इशारा करती है कि शाहीन बाग का वामपंथी-कट्टरपंथी गिरोह सक्रिय है। महिला किसानों के हाथों में इनके पोस्टर देखकर लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर इनका किसानों के आंदोलन से क्या लेनादेना है। अब लोग आंदोलन की असल मंशा पर ही प्रश्न उठाने लगे हैं। लोग पूछ रहे हैं कि उस शरजील इमाम को रिहा क्यों करवाना चाहेगी जो अपने भाषण में असम को भारत से काटने की बात कह रहा था? दिल्ली में दंगे करवाने के लिए गुपचुप ढंग से बैठकें करने वाले और जाकिर नाइक से मिलने वाले  उमर खालिद से आखिर किसान प्रदर्शन का क्या लेना-देना? अर्बन नक्सलियों से कृषि कानून का क्या संबंध ?

No comments: