राजस्थान के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कौन से संविधान का पालन करते हैं, जो धर्म के चश्मे से राष्ट्रधर्म का पालन करना बताता है? जब संविधान सबको बराबर का अधिकार देता है, फिर तुष्टिकरण क्यों? आखिर कब तक तुष्टिकरण का खेल खेला जाता रहेगा? इसी तुष्टिकरण ने निफ़ाक़ के बीज बोये रखे हैं, अब इन बीजों के साथ-साथ तुष्टिकरण करने वाली पार्टियों को भी समाप्त करने का समय आ गया है, ताकि देश की जनता सुख से अपनी जीवनचर्या चला सके। जब तक देश से छद्दम धर्म-निरपेक्षता का अंत नहीं होगा, देश उन्नति की राह पर सुगमता से नहीं चल पायेगा।
कोरोना दिशा-निर्देशों का पालन कराने को लेकर राजस्थान की सरकार का दोहरा रवैया सामने आया है। जहाँ एक तरफ धौलपुर के धार्मिक आयोजन में भीड़ जुटी तो सीधा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने स्थानीय SP को फटकार लगाई, जबकि जैसलमेर में ‘सरहद का सुल्तान’ गाजी फकीर के जनाजे में उमड़ी भीड़ की तरफ से आँख मूँद ली गई। गाजी फकीर के बेटे मोहम्मद सालेह राजस्थान सरकार में वक्फ और अल्पसंख्यक विभाग के मंत्री हैं।
ये सब तब हो रहा है, जब राजस्थान कोरोना की दूसरी लहर सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों की सूची में शीर्ष 5 में पहुँच गया है। यहाँ सक्रिय कोरोना मामलों की संख्या 1,63,372 हो गई है। पिछले 24 घंटों में यहाँ 16,613 नए मामले सामने आए हैं और 120 लोगों ने कोविड-19 के कारण अपनी जान गँवा दी। राजधानी जयपुर में सबसे ज्यादा 33,324 सक्रिय मामले हैं। राजस्थान में कोरोना ने अब तक 3926 लोगों की जान ली है।
मामला कुछ यूँ है कि राजस्थान में कोरोना की दूसरी लहर के बीच धार्मिक आयोजनों पर रोक लगी हुई है। ऐसे में धौलपुर में भाजपा विधायक सुखराम खोली ने हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अखंड रामायण का पाठ कराया। इसमें 500 से अधिक लोग जुट गए। कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बैठक में यहाँ के DM-SP को सबके सामने फटकार लगा डाली। उन्होंने मुख्य सचिव को भी आदेश दिया कि वो इस मामले का स्पष्टीकरण स्थानीय प्रशासन से तलब करें।
ये हुई एक खबर। अब आते हैं उस दूसरी खबर पर, जहाँ हजारों लोगों की भीड़ तो जुटी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। ऐसा इसलिए, क्योंकि जिसका जनाजा था वो जैसलमेर, खासकर पोखरण का एक प्रभावशाली हस्ती था। इलाके में उसका दबदबा था ही, साथ ही भारत-पाकिस्तान के सिंधी मुस्लिम उसे खलीफा भी मानते थे। उसके परिवार के कई लोग बड़े-बड़े पदों पर हैं। एक बेटा अशोक गहलोत की कैबिनेट में मंत्री है।
राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के दोहरे रवैये पर ‘दैनिक भास्कर’ की खबर (साभार)
सालेह मोहम्मद के अब्बा का निधन हुआ। इसमें खुद सालेह भी शामिल हुए, जबकि मात्र 4 दिन पहले ही वो कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। वो हजारों लोगों के साथ जनाजे में शामिल हुए लेकिन राज्य सरकार या प्रशासन के कान में जूँ तक न रेंगी। मीडिया के सूत्र कह रहे हैं कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव भी आ गई थी। राजस्थान में अंतिम यात्रा में मात्र 20 लोगों के शामिल होने की अनुमति है। वहाँ की घटना के लिए मुख्यमंत्री ने कोई रिपोर्ट तलब नहीं की।
गाजी फकीर की जैसलमेर की राजनीति पर ऐसी पकड़ थी कि उनकी सलाह के बिना वहाँ कांग्रेस कोई भी निर्णय नहीं लेती थी। शायद अशोक गहलोत को डर है कि उनके परिवार के खिलाफ कार्रवाई करने का इशारा भर करने से पश्चिमी राजस्थान के मुस्लिम उनके खिलाफ हो सकते हैं, जो हर चुनाव में अपने खलीफा के फतवे का पालन करते थे। मतलब ये कि राजस्थान में पूजा-पाठ गलत है, जनाजे की भीड़ के लिए कोई बंदिश नहीं है।
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