आखिर भाजपा के पास बंगाल में खोने को था ही क्या?

एक बार फिर लोकतंत्र में लोगों की आस्था बनी रह गई है! शायद ईवीएम की खराबी अब बीते दिनों की बात है। हाँ, अगर बंगाल के नतीजे उलट होते, निश्चितरूप से भाजपा विरोधी ईवीएम में गड़बड़ी करने का आरोप लगा रहे होते। मोदी-शाह के अश्वमेध के बगटूट घोड़े को बंगाल की दीदी ने थाम लिया है। ऐसी कुछ हेडलाइंस, ऐसे कुछ स्लग्स, ऐसे कुछ विश्लेषण अगले एकाध दिनों तक देखने को मिलने की संभावना है।

मज़े की बात है कि पाँच राज्यों के चुनाव में से दो में भाजपा या भाजपा नीत गठबंधन पूरे बहुमत से मज़े से सरकार बनाने जा रही है। एक राज्य में उसने तगड़ी एंट्री मारी है। लेकिन चर्चा केवल बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के सीटों की ही हो रही। वह भी तब, जब पिछले विधानसभा चुनाव में महज 10 फीसदी वोट और तीन सीटें पानेवाली भाजपा इस बार लगभग 38 फीसदी वोट और 80 सीटों के साथ दमदार विपक्ष बनकर उभरा है। इतना ही नहीं, इतने वर्ष बंगाल में राज करने वाली कांग्रेस और वामपंथ का सुपरा साफ हुआ है। 

असम में तमाम दम झोंकने के बावजूद कांग्रेस की दाल नहीं गली और भाजपा ने धमाकेदार वापसी की है। वहाँ मुस्लिम जिहादियों के साथ गठबंधन का भी कांग्रेस को फायदा नहीं मिला और भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। पुडुचेरी में भाजपा नीत गठबंधन की सरकार बनेगी और तमिलनाडु में भाजपा ने अपनी शुरुआत कर दी है। केरल में भी मेट्रो मैन श्रीधरन भले हार गए हों, पर भाजपा की धमक तो दिखने लगी है।

बंगाल की बात करें, तो ‘दीदी’ के खाते में एक पूर्ण बहुमत की सरकार आई है, लेकिन नंदीग्राम के नतीजे बताते हैं कि जनता उनसे किस तरह ऊब चुकी है। यह टीवी मीडिया और छद्म बुद्धिजीवियों की बनाई दुनिया थी, जिसने भाजपा का सब कुछ बंगाल में दाँव पर लगा हुआ बता दिया। भाजपा के पास बंगाल में खोने को था ही क्या? उसकी तीन से 80 सीटों की यात्रा बताती है कि भाजपा ने बंगाल में उम्मीदों से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।

बंगाल के नतीजों से अगर हम त्वरित आकलन निकालने की चेष्टा करें तो यही कह सकते हैं कि ममता बनर्जी के गुंडों की धांधली और बेशर्म तुष्टिकरण ही आखिरकार उनके काम आया है। जिन सीटों पर भी मुस्लिम जनसंख्या प्रभाव डालने वाली थी, वहाँ टीएमसी की जोरदार जीत हुई है। कांग्रेस और लेफ्ट का जिस तरह सफाया हुआ है, उस पर कोई बात ही करने को तैयार नहीं है। वामपंथी जहाँ 5 फीसदी वोटों और शून्य सीटों पर सिमट गए, तो कांग्रेस तीन फीसदी के बाद भी खाता खोलते नहीं दिख रही।

वोटों का यह बटखरा सीधे तौर पर तृणमूल के पक्ष में गया और उसने पलड़े को झुका दिया। ममता के शासन में उत्पीड़न झेल रहे हिन्दू अपनी नींद से नहीं जागा। हिंदू वोट हमेशा की तरह ध्रुवीकृत नहीं हुए और उसका भाजपा को नुकसान हुआ, जबकि मुसलमानों ने हमेशा की तरह निगेटिव वोटिंग की, भाजपा को हराने के लिए एकजुट हुए।

ममता बनर्जी ने खुलेआम जब मुस्लिम वोटर्स का आह्वान किया कि केवल उनको ही वोट दें, तो उसका फायदा भी उनको ही मिलना था। यह इस देश का विचित्र हाल है कि अगर आप मुस्लिम वोटों का सीधे तौर पर बाँट-बखरा करें तो आप सेकुलर हैं, लेकिन हिंदुओं के अधिकार के लिए भी अगर किसी ने आवाज़ उठा दी तो वह सांप्रदायिक है।

लोकतंत्र में हार-जीत लगी रहती है, पर असल चुनौती तो अभी बंगाल की है। शायद बंगाल की जनता अभी नर्क के उस अनुभव से नहीं गुजरी है, जहाँ से असम के लोग दो-चार हो चुके हैं। टीएमसी के गुंडों ने नतीजों के आते ही आरामबाग में भाजपा कार्यालय को जलाकर आनेवाले भविष्य के संकेत दे ही दिए हैं। कमीशनखोरी, तोलेबाजी, हरेक केंद्रीय योजना में अड़ंगा अब बंगाल का नसीब होने वाला है, रोहिंग्या और अवैध बांग्लादेशी वहॉं हरेक दिन अब एक नया कश्मीर बनाएँगे।

कूचबिहार में जब जिहादी भीड़ ने सीआरपीएफ पर हमला किया औऱ उसमें चार जिहादियों के साथ एक हिंदू भी गोलीबारी में मारा गया, तो ममता बनर्जी ने उन जिहादियों के परिवारों से मंच से बात कर अपने मुस्लिम वोटर्स को बिल्कुल साफ संदेश दे दिया था। सोचना वहाँ के हिंदुओं को है, जो ममता के साथ गए हैं। हालाँकि, भाजपा एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरी है, पर हिंदुओं को वह कितना बचा पाएगी, यह सोचने की बात है।

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स्पष्ट है कि इन चुनावों में भाजपा का कोई सीधे तौर पर कोई नुकसान नहीं हुआ है। असम उसके पाले में है। पुडुचेरी में वह सरकार बना रही है। बंगाल में शानदार डेंट लगाया है और केरल-तमिलनाडु में अच्छी शुरुआत की है। यही इबारत दीवार पर भी लिखी नज़र आ रही है।

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