TMC ने बंगाल में मुस्लिम निर्णायक वाली सभी 113 सीटें जीती, तो असम में कांग्रेस ने 43 मुस्लिम निर्णायक सीटें जीतीं। लेकिन 'गंगा-जमुनी तहजीब' जैसे भ्रामिक हिन्दू अपने हितों की रक्षा करने वाली पार्टी को साम्प्रदायिक बोलने में संकोच नहीं कर रहे। इन्हें मुसलमानो से सीखना चाहिए कि अपने अधिकार और मजहब का साथ देने वाले को वोट देने में संकोच नहीं करते। यह बंगाल ही नहीं, दिल्ली में भी देखा गया है कि भाजपा उम्मीदवार हिन्दू क्षेत्र से जीतता आ रहा है, लेकिन मुस्लिम बहुल क्षेत्र आते ही जमानत भी नहीं बचा पाता। प्रमाण के लिए दिल्ली के मतदान आंकड़े को देखा जा सकता है।
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में लगातार तीसरी बार तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की है। बीजेपी ने भी 2016 के तीन सीटों के मुकाबले इस बार 77 सीटें जीती है। इन चुनावों का विश्लेषण करने पर बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाकों में जहाँ मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है, वोटिंग का एक खास पैटर्न नजर आता है। इसका सीधा फायदा टीएमसी को मिला है। मसलन, मुर्शिदाबाद जिले की भागाबंगोला सीट। कभी हिंदू बहुल इस इलाके में अब मुस्लिम बहुसंख्यक हैं। इसका सबसे बड़ा कारण बांग्लादेश से घुसपैठ कर आए लोगों का यहाँ बसना माना जाता है।
1971 से नहीं कोई हिन्दू नहीं जीता
भागाबंगोला सीट से तृणमूल कॉन्ग्रेस के इदरिस अली को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले। यह कुल वोटों का 68 फीसदी से भी ज्यादा है। उनके प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार महबूब आलम को 7.39 फीसदी यानी महज 16707 वोट ही मिले। बीजेपी से ज्यादा मत तो बंगाल चुनावों में खाता भी न खेल पाने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया को मिले। उसके उम्मीदवार मोहम्मद कमल हुसैन को 21 फीसदी से ज्यादा मत यानी 47 हजार से अधिक वोट मिले।
भागाबंगोला सीट पर 1971 के बाद से कोई भी हिंदू उम्मीदवार कभी नहीं जीता है। संयोग से यह वही साल है जब बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी का बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल में आना शुरू हुआ था।
इस इलाके में हुई थी संघ कार्यकर्ता की नृशंस हत्या
भागाबंगोला से जीते टीएमसी के इदरिस अली 2007 में तस्लीमा नसरीन के कोलकाता आगमन पर पार्क सर्कस इलाके में हुए दंगे के मामले में गिरफ्तार हुए थे। उन दंगों में हिंदुओं की आबादी को निशाना बनाया गया था। इस इलाके में मुस्लिमों के दबदबे के अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी ने भी यहाँ से सीपीएम के एक पूर्व मुस्लिम उम्मीदवार को ही उतारा था।
संयोग से भागाबंगोला वही सीट है जहाँ दो साल पहले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े और पेशे से शिक्षक प्रकाश पाल और उनकी गर्भवती पत्नी और छह साल के मासूम बेटे की घर में घुसकर धारदार हथियारों से नृशंस हत्या कर दी गई थी। सत्ताधारी टीएमसी द्वारा इस मामले को संपत्ति विवाद घोषित करते हुए राजनीतिक हत्या पर पर्दा डाल दिया गया था। ये ममता बनर्जी की टीएमसी ही थी, जिसने इदरिस अली के ऊपर लगे दंगे के आरोपों को हटाते हुए उन्हें अपनी पार्टी का टिकट दिया था।
रानी नगर : यहाँ से आज तक कोई हिन्दू नहीं जीता
मुर्शिदाबाद जिले की एक और सीट रानीनगर से आज तक कोई भी हिंदू उम्मीदवार कभी नहीं जीता। 2021 विधानसभा चुनावों में इस सीट से किसी भी हिंदू उम्मीदवार ने चुनाव नहीं लड़ा। बीजेपी ने भी इस सीट से मुस्लिम उम्मीदवार (मसुआरा खातून) को उतारा था, लेकिन उन्हें मुश्किल से 10% वोट (21 हजार वोट) ही मिल सके। इस सीट पर 60 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करके तृणमूल के अब्दुल सौमिक हुसैन जीते।
हरिहरपारा का भी यही हाल
मुर्शिदाबाद जिले की एक और सीट है हरिहरपारा। यहाँ 1947 में देश के आजाद होने पर पाकिस्तानी झंडा लहराकर जश्न मनाया गया था। इस सीट से भी कभी कोई हिंदू चुनाव नहीं जीता है। 2021 विधानसभा चुनावों में हरिहरपारा से टीएमसी के नईमत शेख ने 47 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करते हुए आसान जीत दर्ज की।
जलांगी से 1972 से नहीं जीता कोई हिन्दू
मुर्शिदाबाद के जलाँगी में आजादी के बाद से ही बड़ी संख्या में अवैध प्रवासियों का आना शुरू हो गया था। इस सीट पर 1972 के बाद से ही कोई हिंदू चुनाव नहीं जीता है। 2021 के विधानसभा चुनावों में इस सीट से टीएमसी के टिकट पर लड़े अब्दुर रज्जाक ने 55 फीसदी मत (कुल 1.23 लाख वोट) हासिल करते हुए जीत हासिल की।
दोमकल से नहीं जीता कोई हिन्दू
कुछ ऐसा ही हाल मुर्शिदाबाद जिले की दोमकल सीट का भी है। इस सीट से भी अब तक कोई हिंदू कभी चुनाव नहीं जीत सका है। 2021 विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने भी मुस्लिम उम्मीदवार उतारा था, लेकिन वह 5 फीसदी मत (कुल 12 हजार वोट) ही हासिल कर सका। इस चुनाव में इस सीट से कोई भी हिंदू मैदान में नहीं उतरा था। यहाँ से टीएमसी के जफिकुल इस्लाम ने 56 फीसदी (1.27 लाख वोट) से अधिक मत हासिल करते हुए जीत हासिल की।
अवैध बांग्लादेशियों के आने से बढ़ा आतंक
2011 की जनगणना के मुताबिक, मुर्शिदाबाद में मुस्लिमों की जनसंख्या 55 से बढ़कर 66 फीसदी हो गई, जबकि हिंदुओं की आबादी 44 से घटकर महज 33 फीसदी रह गई। लेकिन जनसंख्या के आँकड़ों से एक सबसे जरूरी बात पता नहीं चलती और वह है कि जनसंख्या में कमी के साथ, हिंदू पूरी तरह से राजनीतिक हाशिए पर चले गए हैं।
बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के आने से आंतकवाद बढ़ने, हिंदुओं के खिलाफ हिंसा में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है। मुर्शिदाबाद से पिछले साल एनआईए ने अलकायदा आतंकी को गिरफ्तार किया था।
मालदा में भी मुर्शिदाबाद जैसा वोटिंग ट्रेंड
मालदा पश्चिम बंगाल का एक और जिला है जहाँ बांग्लादेश से बड़ी संख्या में मुस्लिमों के आने से हिंदू अल्पसंख्यक रह गए हैं। यहाँ मुस्लिमों की आबादी 1961 के 36% से बढ़कर 2011 में 51% हो गई। यहाँ पर हिंदू आबादी 63 फीसदी से घटकर 48 फीसदी रह गई है। अब मालदा एक मुस्लिम बहुल जिला है।
मालदा में भी वोटिंग का पैटर्न मुर्शिदाबाद जैसा ही है। सुजापुर मालदा की सीट है, जहाँ अवैध प्रवासियों के आने से यहाँ की जनसांख्यिकीय बदल गई है। यहाँ 1962 से ही कोई हिंदू चुनाव नहीं जीता है और इस बार कोई हिंदू यहाँ चुनाव लड़ा ही नहीं। बीजेपी ने यहाँ से मुस्लिम उम्मीदवारा उतारा, लेकिन उन्हें महज 6 फीसदी मत ही मिले।
हरिश्चंद्रपुर मालदा की एक सीट है, जहाँ से हिंदुओं का बड़ी संख्या में पलायन हुआ है। यहाँ हिंदू आबादी घटकर 31 फीसदी रह गई है। 2021 के चुनावों में यहाँ से टीएमसी के तजमुल हुसैन ने जीत हासिल की, जबकि बीजेपी मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर भी हारी।
मलातीपुर भी मालदा की एक सीट है जहाँ बड़ी संख्या में अवैध प्रवासी आएँ हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम आबादी बढ़कर 72% हो गई है। इस सीट से टीएमसी के अब्दुर रहीम बोक्सी ने जीत हासिल की, जिन्होंने खुले तौर पर ऐलान किया था कि उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल को रोहिंग्याओं से भर देगी।
ओवैसी की पार्टी AIMIM ने भी यहाँ से अपना उम्मीदवार उतारा था, जिसे कुछ लोगों ने मुस्लिम मतदाताओं को बाँटने की कोशिश के तौर पर बीजेपी का छिपा हुआ मास्टरस्ट्रोक करार दिया था। लेकिन ओवैसी की पार्टी मुस्लिम बहुल इलाके में एक फीसदी वोट भी हासिल नहीं कर पाई।
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