कई दशकों से जनता से लेकर नेता तक देश में फैले भ्रष्टाचार पर अपनी चिंता जाहिर करते रहते हैं, जलपान आदि पर हज़ारों रूपये स्वाह कर मीटिंगें होती रहती है, और मूर्ख जनता समझती है कि "देखो हमने कितनी अच्छी सरकार चुनी है।" जबकि भ्रष्टाचार का स्रोत कहाँ है जनता नहीं अपने ऐशो आराम की ज़िंदगी जीने वाले नेताओं को मालूम होता है। कोई पार्टी इस कटु सच्चाई से इंकार नहीं कर सकती। जिस दिन सियासती पार्टियां गुप्त दान लेना बंद कर देंगी, खुले दान भी एक निश्चित सीमा तक समझ लो सरकार भ्रष्टाचार पर सख्त है। अन्यथा सत्ता पाने का मात्र एक लॉलीपॉप। गरीब दास बन चुनाव लड़ते हैं, लेकिन पांच साल बाद वही गरीब दास करोड़पति होता है। कभी सोंचा। देश में अब तक कितने घोटाले हुए हैं, कभी सोंचा कितने नेताओं को जेल हुई हुई और कितनी वसूली हुई। लेकिन आम जनमानस द्वारा टैक्स चोरी करने पर कितनी सख्ती की जाती है, नेता हैं, उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने नवंबर 11 को अपनी रिपोर्ट जारी की। इसमें खुलासा किया गया है कि वित्त वर्ष 2019-20 में क्षेत्रीय दलों को मिले चंदे का 55 फीसदी से अधिक हिस्सा ‘अज्ञात’ स्रोतों से मिला था। इन स्रोतों का करीब 95 फीसदी हिस्सा यानि करीब 445 करोड़ रुपए से अधिक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिले थे।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2019-20 में देशभर के 25 क्षेत्रीय दलों को 803.24 करोड़ रुपये का चंदा मिला था। इसमें से 445.7 करोड़ रुपए कहाँ से आए, इसका कोई हिसाब नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 426.233 करोड़ रुपए (95.616%) चुनावी बांड से आए, तो वहीं 4.976 करोड़ रुपए स्वैच्छिक दान से आए।
दक्षिण की पार्टियाँ लिस्ट में सबसे आगे
सबसे अहम बात ये है कि के चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS), चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जगनमोहन रेड्डी की पार्टी YSR Congress, एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली DMK और देवेगौड़ा के नेतृत्व वाली JDS अज्ञात स्रोतों से चंदा पाने वाले क्षेत्रीय दलों की सूची में सबसे ऊपर हैं।
इसमें से TRS को 89.158 करोड़ रुपए का चंदा ‘अज्ञात’ स्त्रोतों से मिला। इसके अलावा TDP को 81.694 करोड़ रुपए, YSR Congress को 74.75 करोड़ रुपए, नवीन पटनायक की BJD को 50.586 करोड़ रुपए और DMK को 45.50 करोड़ रुपए को चंदा अज्ञात स्त्रोतों से मिला।
ज्ञात लोगों ने कुल दान का केवल 22.98% दिया
रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इन क्षेत्रीय दलों को 184.623 करोड़ रुपए का चंदा ज्ञात दानकर्ताओं द्वारा दिया गया, जो कि कुल चंदे का 22.98 फीसदी है। बता दें कि ये वो लोग हैं जिनका रिकॉर्ड चुनाव आयोग के पास उपलब्ध है। इसके अलावा 21.1 फीसदी यानी 172.843 करोड़ रुपए सदस्यता शुल्क, बैंक ब्याज, प्रकाशनों की बिक्री, पार्टी लेवी आदि जैसे ज्ञात स्त्रोतों से मिले।
23 क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का विश्लेषण करने के बाद 2018-19 के लिए भी इसी तरह के आँकड़े दर्ज किए गए हैं।
डोनर्स की लिस्ट सार्वजनिक करने की माँग
एडीआर के प्रमुख मेजर जनरल अनिल वर्मा (सेवानिवृत्त) ने News18 से बात करते हुए कहा कि राजनीतिक दलों को डोनर्स द्वारा दिए गए चंदे की लिस्ट को सार्वजनिक करना चाहिए। संगठन ने कहा, “चूँकि राजनीतिक दलों की आय के एक बहुत बड़े हिस्से के मूल दाताओं का पता नहीं होता, इसलिए सभी दाताओं की पूरी जानकारी को आरटीआई के तहत उपलब्ध कराया जाना चाहिए।” इसमें आगे कहा गया है कि विदेशी फंडिग पाने वाले किसी भी संगठन को किसी उम्मीदवार या पार्टी का समर्थन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
एडीआर ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है, “सभी दान के भुगतान का तरीका (20,000 रुपये से ऊपर), कूपन की बिक्री से आय, सदस्यता शुल्क आदि को पार्टियों द्वारा ऑडिट रिपोर्ट में बताया जाना चाहिए और इसे आयकर विभाग और चुनाव आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।”
डोनर्स नाम उजागर करने को तैयार नहीं
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (एनसीपी) समेत कई दलों के नेताओं का कहना है कि ‘अज्ञात’ चंदा ज्यादातर ऐसे संगठनों या व्यक्तियों द्वारा दिया जाता है, जो सार्वजनिक रूप से अपना नाम नहीं बताना चाहते हैं।
इन पार्टियों का कहना है कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग को ‘छुपाए नाम’ के बारे में बताते हैं। एनसीपी नेता मजीद मेमन ने कहा, “यदि फंड के मैनेजमेंट में कहीं कोई गड़बड़ी होती है तो चुनाव आयोग या राज्य चुनाव आयोग इसे राजनीतिक दलों के सामने उजागर कर सकता है।” हालाँकि, एडीआर प्रमुख ने पारदर्शिता से बचने के लिए इसे ‘सुविधाजनक कारण’ बताते हुए उनके बयानों को खारिज कर दिया।
बिना पैन विवरण के मिले 25 करोड़ रुपये से अधिक
अक्टूबर में जारी एक अन्य रिपोर्ट में एडीआर ने खुलासा किया था कि 16 से अधिक क्षेत्रीय दलों ने ऐसे 1026 चंदे (लगभग 25 करोड़ रुपये) प्राप्त किये, जिनके पैन कार्ड के विवरण नहीं थे। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि शिवसेना, AIADMK, आम आदमी पार्टी, बीजेडी और वाईएसआर-सी जैसी पार्टियों ने साल 2019-20 में सबसे अधिक चंदा पाने की जानकारी दी थी। इतना ही नहीं, AAP और समाजवादी पार्टी को 2018-19 और वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान दान से होने वाली आय में जबरदस्त वृद्धि हुई।
एडीआर क्या है?
एडीआर की वेबसाइट पर बताया गया है कि ADR की स्थापना साल 1999 में इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (IIM), अहमदाबाद के प्रोफेसरों ने मिलकर की थी। एडीआर ने उसी वर्ष दिल्ली उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर कर चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक रिकॉर्ड का खुलासा करने की माँग की थी।
इसी के आधार पर 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के लिए चुनाव आयोग के समक्ष हलफनामा दाखिल कर अपनी आपराधिक, वित्तीय और शैक्षिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी देना अनिवार्य कर दिया था।
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