यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर झूठी भ्रांतियां फैला रहे संविधान की शपथ लेने वाले

भारतीय संविधान की शपथ लेने वाले राजनेता क्या राष्ट्र को बताएंगे कि क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड देश अथवा जन विरोध में है? जनता में झूठी भ्रांतियां फ़ैलाने वाले बतायें विश्व में ऐसा कौन-सा देश है जहां ये कानून नहीं? क्यों नहीं भारत में अब तक ये कानून लागू हुआ? क्यों इतने वर्ष लग गए? आखिर जनता में भ्रांतियां फैलाकर संविधान का क्यों अपमान कर रहे हैं? देश संविधान के अनुसार चलेगा या तुम्हारी मुस्लिम तुष्टिकरण नीति के अनुसार? आखिर मुस्लिम तुष्टिकरण करते कब तक भारतीय मुस्लिम समाज को बलि का बकरा बनाते रहोगे? जिस दिन यही मुस्लिम समाज वास्तविकता जान उन्हें अपमानित किये जाने का कारण पूछेगा, तुम्हे कहीं छिपने को भी जगह नहीं मिलेगी, और वह दिन शायद ज्यादा दूर नहीं। क्योकि नूपुर शर्मा विवाद के बाद से यही बात जोर पकड़ने लगी है। नूपुर की असली वीडियो देखने के बाद मुस्लिम देश भी भारतीय मुसलमान की मानसिकता पर अचंभित हैं।    
यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) इन दिनों सुर्खियों में है। भारतीय संविधान में यूनिफॉर्म सिविल कोड का साफ-साफ जिक्र है, उसे लागू करने के लिए अब मोदी सरकार प्रतिबद्ध है। उत्तराखंड के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा सरकारों ने यूसीसी को अपने राज्यों में लागू करने की दिशा में कदम पहले ही बढ़ा दिए हैं। यूसीसी कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसे लेकर अब तक 60 लाख से ज्यादा सुझाव लॉ कमीशन के पास आ चुके हैं। यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की दिशा में मोदी सरकार की तेजी के बीच अब सोशल मीडिया पर अनर्गल भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं कि इसे लागू होना चाहिए या नहीं ? और इसके लागू होने पर किसको, क्या फायदा होने वाला है? वर्ग विशेष को क्या नुकसान होने वाला है? जबकि हकीकत यह है कि देश को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में यह बेहद मजबूत कदम साबित होगा। एक्सपर्ट बताते हैं कि यूसीसी मोटे तौर पर महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें लेकर समानता पर फोकस्ड है। खासतौर से महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने की ओर ध्यान दिया जा रहा है। चाहे वे किसी भी समुदाय से हों। इसमें महिलाओं की धार्मिक मान्यताओं, उनके पहनावे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। सिर्फ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से उन्हें मजबूत करने वाले कानूनों के दायरे में उन्हें लाया जाएगा।

अजब-गजब कुतर्क…यूसीसी आया तो हम पर भी ड्रेस में थोपा जाएगा धोती-कुर्ता
प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी ने जब से यूसीसी के बारे में बोला है, सोशल मीडिया पर #UniformCivilCode ट्रेंड कर रहा है। न्यूज चैनलों पर विश्लेषण हो रहा है कि यह कितना जरूरी है और इससे क्या कुछ बदल जाएगा। इन सबके बीच सोशल मीडिया पर ऐसी-ऐसी भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, जिसे देखकर आप सिर पकड़ लेंगे। यूसीसी लागू होने से पहले ही बगैर जाने लोग सवाल उठा रहे हैं कि हिंदू और मुस्लिमों को एक ही तरह से शादी करनी होगी? क्या महिलाओं की शादी के लिए निर्धारित उम्र में बदलाव आ जाएगा? राज्यों को अपने हिसाब से ही यूसीसी के प्रावधानों में बदलाव का अधिकार होगा? यूसीसी से लिव-इन को कानूनी मान्यता मिल जाएगी? ऐसी न जाने कितनी कपोल-कल्पित बातें हैं। यूसीसी पर वायरल एक वीडियो में तो एक शख्स कहता है कि कानून बनाने से पहले आम जनता को शिक्षित किया जाए कि देखिए आपके लिए ये चीज है। वह आगे कहता है, ‘जैसे UC… ड्रेस का है मतलब एक ही जैसा ड्रेस पहनेंगे। जब आएगा तो…अगर मान लीजिए धोती-कुर्ता ड्रेस बना तो हम पर भी थोपा जाएगा, तो हम क्या धोती-कुर्ता पहनेंगे?’ वीडियो देखकर साफ लग रहा है कि इस शख्स ने यूसीसी में पहले शब्द यूनिफॉर्म का मतलब ड्रेस निकाला है।

लेबनान में अभिनेत्री ने हिजाब न पहनने पर वेश्या कहे जाने पर एक लाइव टीवी कार्यक्रम के दौरान एक मौलवी की पिटाई कर दी। लेबनान जो कभी ईसाई बहुल राज्य था, अचानक जनसांख्यिकीय परिवर्तन के बाद अब इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा शासित है। दुनिया भर में 'पोशाक पहनने के अधिकार' की वकालत करने वाली नारीवादियों को इसे देखना चाहिए।

यूनिफार्म सिविल कोड से जुड़े ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब जो भ्रांतियां हैं वो दूर हो सकें….

किसी भी धर्म के लोगों के लिए धार्मिक पहनावे पर कोई पाबंदी नहीं लगेगी
भ्रांति: यूसीसी को लेकर इस तरह की दावे सोशल मीडिया पर किए जा रहे हैं कि इसके लागू होने के बाद मुस्लिमों को भी अग्नि के फेरे लेकर निकाह करना होगा। ईसाइयों को भी शादी के तौर तरीकों को बदलना पड़ेगा। शवों को दफनाने की जगह जलाना होगा। दाढ़ी रखने और कुर्ता-पायजामा पहनने पर पाबंदी लगेगी।
हकीकत : यूसीसी का किसी भी धर्म की धार्मिक मान्यताओं, पहनावे या पूजा-पाठ पर कोई असर नहीं होगा। बुरका और गाउन दोनों पहनने में कोई परहेज नहीं होगा। यूसीसी लागू होने से किसी भी धर्म की धार्मिक मान्यताओं, पहनावे या पूजा-पाठ पर कोई असर नहीं होगा। यूसीसी का मतलब यह कतई नहीं है कि सभी धर्मों की रस्में, रीति-रिवाज एक जैसे हो जाएंगे। इसका सीधा सा अर्थ ये है कि जिस तरह चोरी, डकैती, लूट, हत्या या दुष्कर्म जैसे मामलों में सभी के लिए एक कानून लागू होता है। ठीक उसी तरह शादी, तलाक, संपत्ति पर अधिकार, उसका बंटवारा, गार्जियनशिप, गोद लेना, गुजारा भत्ता वगैरह के लिए सभी पर एक कानून लागू होगा।

यूसीसी में लिव-इन-रिलेशनशिप को कानूनी जामा नहीं पहनाया जाएगा
भ्रांति: यूसीसी में लिव-इन को कानूनी जामा पहनाने के साथ ही शादी की उम्र बदली जाएगी
हकीकत : विशेषज्ञों के मुताबिक यह तय है कि लिव इन रिलेशनशिप जैसे कंसेप्ट को यूसीसी के तहत नहीं लिया जाएगा। लिव-इन को कोई कानूनी जामा नहीं पहनाया जाएगा। अबतक इस मसले को कंसीडरेशन में नहीं लिया गया है। लिव इन को वैध करने की भी इस कानून के तहत कोई योजना नहीं है। जहां तक शादी की उम्र का सवाल है तो इसको सभी समुदायों के लिए एक समान किया जा सकता है। इसमें पुरुषों की उम्र 21 ही रहेगी। मगर महिलाओं की उम्र को 18 से बढ़ाकर 21 साल की जा सकती है। वहीं, शादी का रजिस्ट्रेशन वर्तमान की ही तरह जरूरी होगा। इसे और सख्त और सुनिश्चित करने का मसौदा तैयार हो रहा है।

आदिवासी समुदाय की प्रैक्टिसेज के साथ भी छेड़छाड़ नहीं की जाएगी
भ्रांति: आदिवासी समुदायों को सदियों से जारी अपनी परंपराएं बदलनी होंगी
हकीकत: विशेषज्ञ बताते हैं कि आदिवासियों को संविधान में जो संरक्षण प्राप्त है। उन्हें ज्यों का त्यों रखा जाएगा। सभी जनजातियों का संरक्षण यथावत रखेंगे। आदिवासी समुदाय और उनकी प्रैक्टिसेज के साथ यूसीसी में छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। यूसीसी के कानूनों से ट्राइब्ल्स को छूट मिलेगी। उनकी प्रैक्टिसेज पर किसी प्रकार से यूसीसी से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। हालांकि उनकी स्वेच्छा रहेगी कि यूसीसी की प्रैक्टिस को वे अडॉप्ट करना चाहते हैं या नहीं। संविधान के आर्टिकल 371 के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। इसे लेकर यह तर्क भी रखे गए हैं कि ट्राइबल्स में प्रोग्रेसिव प्रैक्टिसेज हैं, उनकी परम्पराएं प्रगतिशील विचारों की हैं, ऐसे में उन्हें छेड़ने की जरूरत नहीं है।

50 से ज्यादा देशों ने पॉलिगैमी बैन, भारत कैसे पिछड़ा रह सकता है
भ्रांति: मुस्लिम वोट बैंक के लिए बहू-पत्नी प्रथा को जारी रखा जाएगा
हकीकत: जानकारों का तर्क है कि 50 से ज्यादा देशों ने पॉलिगैमी को बैन किया हुआ है। ऐसे में भारत कैसे पिछड़ा रह सकता है। सूत्रों का कहना है कि पॉलिगैमी या बहू-पत्नी प्रथा को पूरी तरह से यूसीसी में बैन कर दिया जाएगा। यह फिर चाहे किसी भी धर्म या प्रैक्टिस की वजह से हो, मगर इसे बैन कर दिया जाएगा। जहां तक बाल विवाह और विधवा विवाह का सवाल है तो इससे संबंधित जो कानून अभी बने हैं, वो उसी तरह चलते रहेंगे। चाइल्ड मैरिज एक्ट यथावत काम करेगा। इसे और मजबूती से लागू करने की पैरवी की जाएगी। विधवा या तलाकशुदाओं की शादी को लेकर फिलहाल जो कानून बने हुए हैं, उसी अनुसार यूसीसी में भी सभी के लिए वही कानून मान्य होंगे। विधवा या तलाकशुदा महिलाएं शादी कर सकेंगी।

यूसीसी में महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने पर पूरा फोकस
भ्रांति: महिलाओं की मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ करेगा नया कानून
हकीकत: यूनिफॉर्म सिविल कोड की हकीकत इससे बिल्कुल उलट है। यूसीसी में खासतौर से महिलाओं को सुदृढ़ और मजबूत बनाने की ओर ध्यान दिया जा रहा है। यूसीसी के एक्सपर्ट बताते हैं कि पहले फेज में यूसीसी मोटे तौर पर महिलाओं के सशक्तिकरण और उन्हें लेकर समानता पर फोकस्ड है। चाहे वे किसी भी समुदाय से हों। इसमें महिलाओं की धार्मिक मान्यताओं, उनके पहनावे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। सिर्फ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से उन्हें मजबूत करने वाले कानूनों के दायरे में उन्हें लाया जाएगा। सभी धर्म की महिलाओं को गार्जियनशिप अधिकारों की मजबूती मिलेगी। संभावना है कि फिलहाल महिलाओं को जो एक सीमा तक गार्जियनशिप का अधिकार मिलता है, उसमें उन्हें पुरुषों के साथ बराबरी का हक मिले। गार्जियनशिप के नजरिए से बहुत बड़ा कदम होगा। गार्जियनशिप, अडॉप्शन में वुमन को बराबरी के राइट मिलेंगे। इसके अलावा अभी जो अधिकार हिंदू महिलाओं को मिल रहा है, वो दूसरे धर्म के महिलाओं को भी मिलेगा। पुश्तैनी जमीन में जहां भी बराबर का हक नहीं दिया जाता है वहां बराबर का हक मिलने लगेगा।

आधी आबादी को आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से सशक्तिकरण
देश में पर्सनल लॉज को लेकर समानता लाने के लिए इसे बनाने की तैयारी है। संविधान के आर्टिकल 44 में इसका जिक्र है। इसमें भारतीय नागरिकों के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड की बात कही गई। बीजेपी के कोर इश्यूज में शामिल यूसीसी के लागू होने से देश में लैंगिक समानता कायम होगी। इस कोड के जरिए देश में सभी जाति और धर्म की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद बीजेपी संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के वादे को पूरा कर चुकी है। अब उसके लिए तीन बड़े वादों में से सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा ही बचा है, जिसे लागू करने के लिए केंद्र गंभीरता से मंथन कर रहा है। जानकार मानते हैं कि जिस प्रकार से कई समुदायों में महिलाओं के साथ असमानता है। उस असमानता को दूर करते हुए देश की आधी आबादी को आर्थिक, सामाजिक, और शैक्षिक दृष्टि से सुदृढ़ करने के लिए यह लाया जाएगा। पर्सनल लॉज से जुड़े कायदों में एकरूपता होगी। यूसीसी किसी भी व्यक्ति को धार्मिक रूप से किसी चीज के लिए बाध्य नहीं करेगा। इसका मकसद सिर्फ महिलाओं से जुड़े कानूनों में यूनिफॉरमिटी लाना होगा। किसी की भी धार्मिक मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी।

कौन तैयार कर रहा है यूसीसी का ड्राफ्ट, क्या रहेगी इसकी प्रक्रिया
यूसीसी का ड्राफ्ट भारत का लॉ कमीशन तैयार कर रहा है। यूसीसी लागू करने के लिए लॉ कमीशन की ओर से देशभर से सुझाव मांगे गए। अब तक देश के अलग-अलग तबके और हिस्से से लाखों सुझाव लॉ कमीशन को मिले हैं। इसके बाद कमीशन इन सुझाव पर गौर करेगा। सुझावों के आधार बैठकें की जाएगी। इसमें स्टेकहोल्डर्स, धर्मगुरु, बुद्धिजीवी सहित तमाम महत्वपूर्ण श्रेणी के लोग होंगे। उनसे चर्चा की जाएगी। इसके बाद इसका ड्राफ्ट तैयार कर सरकार को भेज दिया जाएगा। सरकार फिर इसे अपने तरीके से बिल के रूप में लोकसभा, राज्यसभा में पेश कर कानून बनाएगी। यूसीसी का ड्राफ्ट विशेष तौर से लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस रितुराज अवस्थी, लॉ कमीशन के सदस्य जस्टिस केटी संकरन और प्रोफेसर आनंद पालीवाल तैयार कर रहे हैं। इनके अलावा लॉ कमीशन से जुड़े अन्य अस्थाई सदस्य और विशेषज्ञ शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि यूसीसी क्रिमिनल लॉ, एडमिनिस्ट्रेशन लॉ, गर्वनेंस लॉ और लैंड लॉ को नहीं छेड़ेगा। फिलहाल यूसीसी में जिन चीजों को शामिल करने की बात चल रही है उनमें यूसीसी को सिर्फ पर्सनल लॉ तक ही सीमित रखा गया है।

धारा-370 और राम मंदिर के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर बढ़े कदम
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि धारा-370 और राम मंदिर के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड की ओर मोदी सरकार ने कदम बढ़ा दिए हैं। पहले दोनों अहम वादे बीजेपी पूरा कर चुकी है। ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार यूसीसी को लाना चाहती है। संविधान के भाग चार में जिस यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया गया है, उसे अब लागू करने के लिए बीजेपी कटिबद्ध है। इसी दिशा में भाजपा शासित कुछ राज्य सरकारों ने कदम बढ़ा दिए हैं। उत्तराखंड की पहल के बाद गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की सरकारों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड अपने राज्यों में लागू करने के लिए एक्सपर्ट कमेटियों का गठन करके ड्राफ्ट की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बीजेपी के कोर इश्यूज में शामिल यूनिफॉर्म सिविल कोड के लागू होने से देश में लैंगिक समानता कायम होगी। इस कोड के जरिए देश में सभी जाति और धर्म की महिलाओं के अधिकारों की रक्षा हो सकती है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में केंद्र में सत्ता में आने के बाद बीजेपी संवैधानिक प्रक्रिया को अपनाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के वादे को पूरा कर चुकी है। अब उसके लिए तीन बड़े वादों में से सिर्फ यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा ही बचा है, जिसे लागू करने के लिए राज्यों के साथ केंद्र भी गंभीरता से मंथन कर रहा है।

तीन तलाक पर कानून बनने के बाद यूसीसी की उम्मीद बढ़ी भारतीय जनता पार्टी काफी वर्षों से समान नागरिक संहिता को लागू करने के पक्ष में है। पहली बार 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता को जगह दी थी। तभी से इस पर बहस हो रही है। 2014 और 2019 के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने इसे शामिल किया। बीजेपी ने दिल्ली में अप्रैल 2019 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में पार्टी मुख्यालय में इस संकल्प पत्र को जारी किया। ऐसे में पिछले पांच साल से देश का एक बड़ा तबका समान नागरिक संहिता को लागू करने की मांग कर रहा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में मुस्लिम समाज में एक बार में तीन तलाक बोल कर शादी को खत्म करने की परंपरा (तलाक-ए-बिद्दत) पर ऐतिहासिक फैसला देते हुए इसे असंवैधानिक बताया। इसके बाद जुलाई 2019 में संसद से तीन तलाक के दंश से छुटकारा देने के लिए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून बना। इसके जरिए तीन तलाक को अवैध मानते हुए अपराध माना गया। तीन तलाक पर संसद से कानून के बनने के बाद सियासी हल्कों से लेकर आम लोगों के बीच यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने पर बहस तेज हो गई।

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