इतिहास में जो दर्ज... उससे मोइनुद्दीन चिश्ती ‘सूफी संत’ कैसे? (फोटो साभार: veenaworld & MA Khan Book)
भारत के हर शांतिप्रिय हिन्दू एवं मुस्लिम, विशेषकर मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार पर जाकर माथा टेकने वालों को कांग्रेस और वामपंथियों से पूछना चाहिए कि भारत के गौरवमयी इतिहास को कालकोठरी में डाल क्यों हमें गलत एवं मिथ्या इतिहास पढ़ाया गया? इन्हे शायद नहीं मालूम कि जो देश अथवा नेता अपने वास्तविक भुला देता है, उसका लुप्त होना निश्चित है। समय लगा, लेकिन आज यही बात सार्थक हो रही है। वामपंथी तो लग गए ठिकाने, कांग्रेस भी ज्यादा पीछे नहीं। साथ ही वर्तमान मोदी सरकार के हर नेता से भी पूछे कि "गलत इतिहास लिखने वालों को अब तक ब्लैकलिस्ट क्यों नहीं किया? उनको दी जाने हर सरकारी सुविधा क्यों नहीं वापस ली गयी?" क्योकि इसी गलत इतिहास के कारण बेगुनाह हिन्दू-मुसलमानों के खून की होली खेली जाती है और कट्टरपंथी एवं छद्दम धर्म-निरपेक्ष नेता उन बेगुनाहों की लाशों पर बैठ मालपुए खाते हैं।
अजमेर अभी चर्चा में है। कट्टर इस्लामी लोग मोइनुद्दीन चिश्ती (Moinuddin Chishti) को लेकर कही गई एक बात से नाराज हैं। ये लोग कभी इसे ‘सूफी संत’ बोलते हैं, कभी हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से पुकारते हैं। पैगंबर मोहम्मद पर लिखे-पढ़े-बोले गए बातों से ‘सर तन से जुदा’ करने वाली भीड़ अब ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती या हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के लिए भी लोगों की गर्दन काटने पर आमादा हैं। आखिर कौन था यह शख्स? कहाँ से आया था? क्या करता था?
जिस शख्स के नाम पर किसी का गला काट दिया जाए, ‘सर तन से जुदा’ करने की धमकी दी जाए, उस ख्वाजा गरीब नवाज़ (Khwaja Garib Nawaz) या मोइनुद्दीन चिश्ती से जुड़ा इतिहास हिंदू-विरोधी है, मंदिर/मूर्ति-भंजक है, गौहत्या के पाप से सना हुआ है। ये सिर्फ आरोप नहीं हैं, ऐतिहासिक तथ्य हैं, वो भी सबूतों के साथ। इतिहासकार एमए खान की पुस्तक से लेकर मध्ययुगीन लेख ‘जवाहर-ए-फरीदी’ में लिखी गई बातों में इसकी कट्टरता का उल्लेख है। शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी की अखबार-उल-अख्यार ( Akhbar-Ul-Akhyar) से भी सचित्र उदाहरण लिया गया है।
‘सूफी संत’ का लिबास ओढ़ कर जो भारत आए, उन मकसद क्लियर था। इतिहास ने आपसे उनके मकसद को छिपाया, इसलिए वो ‘सूफी संत’ कहे जाते हैं, आप जाने-अनजाने जाकर चादर चढ़ा आते हैं। हकीकत में अधिकांश सूफी संत या तो इस्लामिक आक्रांताओं की आक्रमणकारी सेनाओं के साथ भारत आए थे, या इस्लाम के सैनिकों द्वारा की गई कुछ व्यापक विजय के बाद। लेकिन इन सबके भारत आने के पीछे सिर्फ एक ही लक्ष्य था और वह था इस्लाम का प्रचार। इसके लिए उलेमाओं के क्रूरतम आदेशों के साथ गाने-बजाने की आड़ में हिन्दुओं की आस्था पर चोट करने वाले ‘संतों’ से बेहतर और क्या हो सकता था?
‘शांतिपूर्ण सूफीवाद’ का मिथक, कई सदियों तक इस्लामिक ‘विचारकों’ और वामपंथी इतिहासकारों द्वारा खूब फैलाया गया है। वास्तविकता इन दावों से कहीं अलग और विपरीत है। वास्तविकता यह है कि इन सूफी संतों को भारत में इस्लामिक जिहाद को बढ़ावा देने, ‘काफिरों’ के धर्मांतरण और इस्लाम को स्थापित करने के उद्देश्य से लाया गया था।
इसी में एक सबसे प्रसिद्ध नाम आता है ‘सूफी संत’ ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (Khwaja Moinuddin Chishti) का, जिसे हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ के नाम से भी पुकारा जाता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान में हुआ था, लेकिन वो राजस्थान के अजमेर में दफनाया गया था।
एमए खान की पुस्तक का अंशइतिहासकार एमए खान ने अपनी पुस्तक ‘इस्लामिक जिहाद: एक जबरन धर्मांतरण, साम्राज्यवाद और दासता की विरासत’ (Islamic Jihad: A Legacy of Forced Conversion, Imperialism, and Slavery) में इस बारे में विस्तार से लिखा है। उदाहरण के लिए औलिया इस्लाम ने अपने शिष्य शाह जलाल को बंगाल के हिंदू राजा के खिलाफ जिहाद छेड़ने के लिए 360 अन्य शागिर्दों के साथ बंगाल भेजा था।
पुस्तक में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि वास्तव में, हिंदुओं के उत्पीड़न का विरोध करने की बात तो दूर, इन सूफी संतों ने बलपूर्वक हिंदुओं के इस्लाम में धर्म परिवर्तन में भी बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। यही नहीं, ‘सूफी संत’ मोइनुद्दीन चिश्ती के शागिर्दों ने हिंदू रानियों का अपहरण किया और उन्हें मोईनुद्दीन चिश्ती को उपहार के रूप में प्रस्तुत किया।
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