साभार
सुभाष चन्द्र
चाहे राम भक्त हों या राम मंदिर से विमुख बैठे “नाराज़ फूफा” हों, सबके लिए श्री राम मंदिर केवल एक बार ही बनेगा और वह तो बन कर रहेगा जिसमें भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा भी होकर रहेगी, फिर रंग में भंग डालने का क्या औचित्य है, यज्ञ में आहुति डालने की जगह यज्ञ विध्वंस करने का काम तो राक्षस प्रवत्ति के लोगों का होता है। जिस कारण भगवान विष्णु को राम रूप में धरती पर आना पड़ा। संभव है कि कलयुगी रक्षक इतने वर्षों से अयोध्या में रामजन्मभूमि मन्दिर का विरोध करते आ रहे हैं। श्रीराम विरोधियों को नहीं मालूम की रावण को भी अंतिम समय "श्रीराम" कहना पड़ा था। लेखक
राम रावण युद्ध में अनेक प्रसंग हैं जिनमे देखा गया था जब रावण की सेना और लंकावासियों ने भगवान राम की सराहना की थी। जब मेघनाथ का पार्थिव शरीर लंका भेजा गया था तो उसे भगवान राम ने अपने वस्त्र से ढक कर भेजा था और तब लंकावासियों ने कहा था राम कितने भले इंसान हैं उन्होंने युवराज के शव का भी आदर किया है, लेकिन आज की “लंकिनी” की सेना में एक भी ऐसा नहीं है जिसे श्री मंदिर निर्माण और प्राण प्रतिष्ठा में कुछ भी अच्छा नज़र आ रहा हो, हर कोई यज्ञ में हड्डियां डालने को आतुर है।
राजनीतिक दलों के लोगों की मति भी लगता है भगवान राम ने भ्रष्ट कर दी है उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा, जिसके मुंह में जो आ रहा है वह बोल रहा है। उसके अलावा सबसे ज्यादा दुःख की बात है कि सभी शंकराचार्यों ने प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने का फैसला किया है। द्वारका के शंकराचार्य अविमुक्त आनन्द में स्वरूपानंद की आत्मा वास करती है लेकिन पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती कह रहे हैं कि मोदी पूजा करेगा तो वह कैसे ताली बजाएंगे, यह मंदिर विनाश लाएगा।
कोई इन शंकराचार्यों से पूछे कि श्री राम मंदिर बनाने के लिए आपने क्या योगदान किया है और आज तक हिन्दू समाज के लिए आपने क्या क्या पुण्य कार्य किये हैं जबकि आपके मठों में पैसे की कमी नहीं है। कोई शंकराचार्य, कोई गुरु, कोई जाति, कोई नेता या कोई भी समाज भगवान राम से बड़ा नहीं हो सकता लेकिन आज समाज के ऐसे प्रबुद्ध लोग रामकाज में अड़ंगे डालने का प्रयास कर रहे हैं। राजनेताओं का तो समझ आता है कि वह अपनी दुकान चलाए रखने की राजनीति के लिए विरोध कर रहे हैं लेकिन धर्माचार्यों का ऐसा आचरण समझ से परे है।
चाहे नेता हो या धर्माचार्य, सबका मकसद बस मोदी विरोध है, बस मोदी को श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी चाहिए। एक ढकोसला शुरू किया हुआ है कि राम तो सबके हैं, भाजपा अपना कार्यक्रम कैसे बना सकती है। ठीक है भाई, राम सबके हैं, तो फिर विपक्ष बताए उसने मंदिर निर्माण के लिए क्या किया था और क्या भगवान राम को काल्पनिक नहीं कहा था। आज वह काल्पनिक राम आपका हो सकता है, हमारे लिए तो सत्य सनातन श्री राम हमारे हैं।
जो नेता भगवान राम का अपमान कर रहे हैं, सबसे पहले उनकी सुरक्षा हटा देनी चाहिए, उनकी सुरक्षा पर जनता का पैसा खर्च नहीं होना चाहिए। वो लोग जब जन-जन के स्वामी भगवान राम का अपमान कर सकते हैं तो उन्हें भक्तो के बीच में खुला छोड़ देना चाहिए। आप संयम नहीं रख सकते बोलते हुए तो भक्तों को भी संयम रखने के लिए बाध्य नहीं होना चाहिए।
अभी तो श्री राम लला की प्राण प्रतिष्ठा हुई नहीं है लेकिन अभी से अयोध्या जी में श्रद्धालुओं का सैलाब दिखाई दे रहा है जिसमें विपक्ष की फैलाया हुआ जात पात का जहर दिखाई नहीं दे रहा।अपनी दुकान चलाने के लिए जात-पात इन्ही पाखंडियों द्वारा फैला हुआ है। मंदिर उद्घाटन के बाद जो प्रचंड सैलाब उमड़ेगा तब क्या होगा, विपक्ष को चिंता यह है क्योंकि वह मोदी को 400 पहुंचाने में मदद करेगा।
शंकराचार्यों को पुनर्विचार करना चाहिए वरना फिर हिन्दू समाज उन पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होगा। शंकराचार्य समाज से से हैं, समाज उनसे नहीं है। यदि समय रहते शंकराचार्य नहीं चेते निश्चित रूप से वह दिन भी अधिक दुर नहीं होगा, जब सनातनी प्रेमियों द्वारा उनका उपहास होना उन्हें शून्य में ले आएगा। राजनेता तो किसी न किसी बहाने अपनी दुकान को चलाने के लिए कोई तिकड़म कर लेंगे, जिसका समस्त बीजेपी विरोधियों द्वारा I.N.D.I.गठबंधन एक उदाहरण है। इनको मालूँम है राममंदिर पालिका से लेकर लोक सभा चुनावों तक उनकी दुकान को भारी नुकसान होने वाला है।
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