अमेरिका के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता संबंधी आयोग ने भारत के नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू करने के भारत सरकार द्वारा जारी नियमों की अधिसूचना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि “धर्म या आस्था के आधार पर किसी को भी नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
आयोग के अध्यक्ष स्टीफन स्नेक ने कहा कि “पड़ोसी देशों से भागकर भारत में शरण लेने आए लोगों के लिए तो CAA में धार्मिक अनिवार्यता का प्रावधान है और हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों के लिए तो त्वरित नागरिकता का मार्ग प्रशस्त है लेकिन मुसलमानों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
स्टीफन स्नेक ने कहा कि इस कानून का मकसद यदि धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करना होता तो इसमें बर्मा के रोहिंग्या मुसलमान, पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान और अफगानिस्तान के हज़ारा शिया भी शामिल होते। भारत सरकार अतीत में भारत के मानवाधिकारों के रिकॉर्ड पर टिप्पणी करने के लिए USIRF के क्षेत्राधिकार को खारिज कर चुका है।
एक कहावत है - “तू कौन, मैं खामखां” और यह अमेरिकी संस्था का रोल ऐसे ही “खामखां” का रोल है भारत के लिए। स्टीफन इतने शातिर हैं कि उन्होंने इन पड़ोसी देशों का नाम नहीं लिया और यह नहीं बताया कि ये तीनो इस्लामिक देश हैं, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान और केवल इतना कहा कि लोग वहां से भाग कर आए हैं लेकिन जानबूझकर कहना भूल गए कि उन देशों से “प्रताड़ित” होकर भागना पड़ा।
अमेरिका को कभी यह दिखाई नहीं दिया कि इन तीनों देशों में अल्पसंख्यकों (हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों) की क्या हालत है खासकर हिंदुओं की जो पाकिस्तान में 1947 के 22% से घटकर 2% रह गए। इन अल्पसंख्यकों को भारत के सिवाय कौन शरण दे सकता है। ये इस्लामिक देश होते हुए मुसलमानों को भी ठीक से नहीं रख सकते तो फिर तो साफ़ है इन्होने अल्पसंख्यकों की क्या दुर्दशा की होगी, वह कल्पना से परे है।
भारत कोई धर्मशाला नहीं है जहां सभी देशों से मुसलमान आकर भारत में बस जाएं। अमेरिका को यदि लगता है रोहिंग्या, पाकिस्तान के अहमदिया और अफगानिस्तान के हज़ारा मुस्लिम पीड़ित हैं तो अमेरिका समेत सभी देश और UNO जिनकों उनसे हमदर्दी हैं, उन्हें अपने अपने देश में शरण दे सकते हैं। भारत में तो बांग्लादेशी और रोहिंग्या करोड़ों हैं, जितने मर्जी ले जाए अमेरिका क्योंकि भारत की आबादी तो 140 करोड़ है और अमेरिका की मात्र 34 करोड़ जिसके पास बहुत भूभाग है जहां उन्हें रखा जा सकता है।
अमेरिका ने इन तीन इस्लामिक देशों को छोड़िए कभी चीन को भी मुसलमानों की रक्षा के लिए प्रवचन नहीं दिए और आज ही खबर है कि ईरान ने अल्पसंख्यक बहाई समुदाय के लोगों पर बंद कमरों में भी पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया है। जाहिर है यह सभी अल्पसंख्यकों पर लागू होगा।
अमेरिका हमें उपदेश देने से पहले अपने गिरेबान में झाँक कर देखो। क्या अमेरिका ने भारत के कानून CAA से मिलता जुलता कानून नहीं बनाया है। अमेरिका ने कानून बनाया है “The Spectrum Amendment और The Lautenberg Amendment” जिसके अनुसार ईरान में रहने वाले ईसाइयों को कहा गया है कि यदि वे ईरान छोड़ कर आना चाहते हैं तो अमेरिका आ सकते हैं परंतु मुसलमानों को आने की छूट नहीं है।
CAA पर छातियां पीटने से पहले अमेरिका अपना कानून देखे। खुद मुसलमानों को नहीं लेना चाहता और हमें कहते हैं कि हर देश के मुसलमानों को शरण दे दो। कितना दोगलापन है?
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