ऐतिहासिक जीत, क्यों? मोदी को रोकने मुस्लिमों द्वारा एकमुश्त विरोध में वोट, आरएसएस का विरोध और भारत विरोधी विदेशी ताकतों द्वारा अरबों खर्च करने के बावजूद जीत ; आखिर कब तक खतरों के खिलाडी मोदी को अग्नि-परीक्षा देनी होगी?
आज(जून 9) नरेंद्र मोदी पहली बार लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री की शपथ ले रहे हैं। मोदी को नेता चुने जाने पर अपने सम्बोधन में बीजेपी जीत को ऐतिहासिक बताया। क्यों? इस रहस्य को समझना होगा। स्पष्ट है जिस मोदी को सत्ता से हटाने मुस्लिम एकमुश्त विरोध में वोट, भारत विरोधी विदेशी ताकतों द्वारा विपक्ष पर अरबों खर्च करना आदि जीत को ऐतिहासिक बनाता है। इस सबसे अधिक जीत के ऐतिहासिक बनने का कारण है आरएसएस विरोध।
आखिर क्यों संघ मोदी के विरोध में खड़ा हुआ? क्या मोदी देश और सनातन के विरुद्ध काम कर रहे थे? क्या डॉ हेडगवार ने आरएसएस का गठन सनातन और देशहित के विरुद्ध किया था? यदि नहीं, फिर संघ ने क्यों मोदी का विरोध किया? यह पहली बार नहीं हुआ है, यह विरोध तब से चल रहा है जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। मोदी और संघ के बीच मनमुटाव की कहानी से YouTube पर भरमार है। क्या संघ अपनी दादागिरी चलाता रहेगा? यदि संघ ने अपना रवैया नहीं बदला, फिर वह दिन भी अधिक दूर नहीं होगा जब जनता ही इसे उस स्थान पर पहुंचा देगी जहां जवाहरलाल नेहरू से लेकर वर्तमान विपक्ष तक पहुँचाना जा रहा है। आरएसएस को डॉ हेडगवार का सपना साकार करने मोदी विरोध त्याग मोदी के साथ खड़ा होना चाहिए। देखिए संघ विरोध का वीडियो, बहुत हैं ऐसे वीडियो :-
मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है कि नरेंद्र मोदी हर पीड़ित के साथ है, चाहे वह किसी भी संस्था और समुदाय से हो। ऑफिस में मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी को सेवानिर्वित होने पर ग्रेचुटी के नाम पर रूपए देने की बजाए 40,000 रूपए कंपनी को देने को कहा। क्या कभी किसी की ग्रेचुटी minus में हो सकती है? हम दो महीने पहले रिटायर हो गए थे। सब तरफ हाथ-पैर मारने के बाद कुछ नहीं होने पर जब मुझसे संपर्क किया, तुरन्त नरेंद्र मोदी को शिकायत भेजने को कहने पर जवाब मिला कि 'मोदी विरुद्ध कुछ नहीं करेंगे।' मैंने कहा ऐसी बात नहीं, मोदी हर पीड़ित के साथ है। यह मेरा पत्रकारिता अनुभव कहता है। जो शत-प्रतिशत सही साबित भी हुआ। संक्षेप में, जो कंपनी कर्मचारी से 40,000 रूपए मांग रही थी, उल्टे उसी कंपनी को कर्मचारी को लगभग 3,50,000 रूपए का चैक दिया। केवल उसी कर्मचारी को ही नहीं, मुझ सहित पहले रिटायर हो चुके कर्मचारियों को बुला-बुलाकर बाकी राशि दी। कंपनी इतनी शर्मसार हुई कि किसी को ऑफिस के अंदर नहीं, बल्कि स्वागत कक्ष में रोक, लेखाधिकारी द्वारा नीचे आकर चैक दिए। क्योकि कार्यवाही होने के कारण ऑफिस में प्रवेश की अनुमति नहीं। और बाद में रिटायर होने वालों को उचित ग्रेचुटी दी गयी। ये है मोदी की नियत और नीति।
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम सबके सामने हैं। देश ने NDA की गठबंधन सरकार को जनमत दिया है और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है। भाजपा को इन चुनावों में 240 सीटें हासिल हुई हैं। वह अकेले दम पर बहुमत नहीं पा सकी है। उसका वोट प्रतिशत भी देश में 37.3% से 36.6% हो गया है। भाजपा के वोट शेयर में तो मात्र 0.6% की गिरावट है लेकिन उसकी सीटों का आँकड़ा इससे गड़बड़ा गया है। भाजपा 2019 में 303 सीटें आईं थी जबकि 2024 में उसकी सीटें घट कर 240 हो गईं, यानि उसे 63 सीटों का नुकसान हुआ।
चुनाव जैसे-जैसे बढ़ा, भाजपा को हुआ नुकसान
लोकसभा चुनाव में एक ट्रेंड देखने को मिला है, भाजपा को अधिकांश चुनाव के अंतिम चरणों में नुकसान हुआ है। इसके लिए बिहार और उत्तर प्रदेश का उदाहरण लिया जाना चाहिए। भाजपा को भी सबसे बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश में देखने को मिला है। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 33 सीट हासिल हुई हैं जबकि सपा यहाँ 38 और कॉन्ग्रेस 6 सीटें जीतने में सफल रही है। चुनाव के बढ़ने के साथ ही भाजपा और सपा की जीत का फासला भी उत्तर प्रदेश में बढ़ता गया है।
वोटिंग के चरणों के हिसाब से देखा जाए तो पहले चरण में हुए चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को 8 में से 3 जबकि दूसरे चरण में सभी 8 सीटों पर जीत मिली है। भाजपा पहले चरण में मुस्लिम बहुल सीटों पर ही पिछड़ी है। भाजपा को तीसरे चरण में भी काफी नुकसान हो गया। 10 में से 6 सीट तीसरे चरण में भाजपा हार गई, यह सीटें सपा ले गई। चौथे चरण में भाजपा को 13 में से 8 सीटों पर विजय श्री मिली। इसमें भी यादव परिवार की सीटों पर ही SP जीत हासिल कर सकी।
वहीं सबसे अधिक नुकसान भाजपा को पाँचवे और छठे चरण में हुआ। पाँचवे चरण में सपा-कॉन्ग्रेस गठबंधन ने 14 में से 10 सीट जीती। छठे चरण में सपा कॉन्ग्रेस गठबंधन ने 14 में से 11 सीट जीती। आखिरी सातवें चरण में 13 में से 6 सीट सपा जीत गई। ऐसे में उत्तर प्रदेश ने जहाँ चौथे चरण तक भाजपा का प्रदर्शन ठीक रहा, वहीं इसके बाद उसको बड़े झटके लगे। सपा-कॉन्ग्रेस गठबंधन की 60% से अधिक सीटें पाँचवे, छठे और सातवें चरण से आई हैं।
बिहार में भी यही कहानी
बिहार में NDA को भी सबसे बड़ा नुकसान अंतिम चरम में ही हुआ है। बिहार में NDA गठबंधन ने 40 में से 30 सीट जीती हैं। बाक़ी की 10 सीटों में 9 विपक्षी INDI गठबंधन को मिली हैं। बिहार में सातवें चरण में 8 सीटों पर चुनाव हुआ था जिसमें विपक्ष को 6 सीट मिलीं।
अंतिम चरण में राजद को पाटलिपुत्र, बक्सर और जहानाबाद की सीट मिली। कॉन्ग्रेस को अंतिम चरण में सासाराम और कम्युनिस्ट पार्टी को सीट मिली। INDI गठबंधन को मिलने वाली बाकी तीन सीटों में दो मुस्लिम प्रभाव वाले इलाकों में थी जबकि एक सीट उसे पहले चरण में ही मिल गई थी। तीसरे, चौथे और पाँचवे चरण में INDI गठबंधन का खाता तक बिहार में नहीं खुला।
देश में भी यही ट्रेंड
शुरूआती चरणों में अच्छा प्रदर्शन और अंतिम चरणों में खराब प्रदर्शन की यह कहानी मात्र उत्तर प्रदेश और बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में भाजपा के साथ घटित होती दिखाई दे रही है। देश भर में भाजपा को पहले और दूसरे चरण में 189 में से 76 सीटें मिली हैं। तीसरे और चौथे चरण में भाजपा को सबसे अधिक फायदा देश में हुआ है। तीसरे और चौथे चरण में देश की 190 सीटों पर चुनाव हुआ था और इसमें भाजपा को 96 सीटों पर जीत मिली।
पाँचवे और छठे चरण से भाजपा को बड़ा नुकसान होना चालू हुआ। पाँचवे और छठे चरण में देश में 107 सीट पर चुनाव हुए, इसमें भाजपा 50 सीट जीत पाई। अंतिम चरण में भी भाजपा का प्रदर्शन कुछ खास अच्छा नहीं रहा। अंतिम चरण की 57 सीटों पर हुए मतदान में भी भाजपा को केवल 17 सीटें मिली। ऐसे में भाजपा को देशव्यापी नुकसान आखिरी तीन चरणों में हुआ।
क्या-क्या फैक्टर रहे?
पहले चरण से अंतिम चरण की तरफ जाते हुए भाजपा को यह चुनावी नुकसान क्यों हुआ, इसके कई कयास लगाए जा रहे हैं। एक कयास यह है कि शुरूआती चरणों में देश में गर्मी कम पड़ रही थी और तब वोटर बाहर निकल रहे थे जिससे भाजपा को फायदा हुआ। बाद के चरणों में देश में गर्मी बढ़ गई और वोटर निकलने से कतराने लगे जिससे भाजपा को नुकसान हुआ। इसके अलावा एक कयास यह है कि पहले चरण में भाजपा के पास फीडबैक पहुँचा और उसने अपना चुनावी अभियान दुरुस्त किया जिसका फायदा तीसरे और चौथे चरण में मिला।
यह सुधार की गति बाद के चरणों में नहीं बनी रही जिसके कारण इन चरणों में नुकसान हुआ। चुनाव प्रचार की दिशा और हर चरण में बदलते मुद्दे भी इसका एक कारण माने जा रहे हैं। हालाँकि, यह सभी केवल कयास हैं और इनको प्रमाणित करने वाले तथ्य अभी नहीं पुष्ट हो पाए हैं, ऐसे में अभी यह नहीं कहा जा सकता कि भाजपा को शुरूआती चरणों में फायदा और बाद के चरणों में फायदा क्यों हुआ।
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