अमेरिका, नाटो और EU के रूस को अलग थलग करने की साजिश का हिस्सा नहीं बने मोदी; रूस के एक सच्चे मित्र का कर्तव्य निभाया भारत ने

 सुभाष चन्द्र

स्विट्ज़रलैंड द्वारा अपने शहर बर्गेन्स्टाक में यूक्रेन में शांति स्थापना के लिए आयोजित शिखर सम्मेलन में NATO और EU समेत 80 देशों ने भाग लिया। लेकिन जो प्रताव यूक्रेन में शांति स्थापना के लिया लाया गया, उस पर भारत ने हस्ताक्षर करने से साफ़ मना कर दिया इस सम्मेलन में रूस को निमंत्रण नहीं दिया गया और चीन ने इससे दूरी बनाई थी। 

दो दिनों की चर्चा के बाद शांति स्थापना के प्रस्ताव के अंतिम दस्तावेज़ में जो कुछ भी कहा गया उसमें क्षेत्रीय अखंडता के साथ ही (यूक्रेन की अखंडता) परमाणु सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा और बन्दियों की अदलाबदली वाले बिंदु भी थे ऐसा भी कहा गया है कि रूस को अपनी सेनाएं वापस ले जाने को कहा गया शिखर सम्मेलन में अमेरिका और EU ने ऐसा जाल बिछाया था जिससे रूस पर स्वतः ही ऐसे प्रतिबंध लग जाएं जिससे उसका जीना ही कठिन हो जाए ये 80 देश रूस से सभी संबंध विच्छेद करके उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करना चाहते थे

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लेकिन सही समय पर भारत ने शांति स्थापना के दस्तावेज में कुछ बिंदुओं को अस्पष्ट और गैर जरूरी कहते हुए पर हस्ताक्षर करने से मना करके रूस के प्रति अपनी सच्ची मित्रता निभाने का काम किया भारत ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “हम शांति स्थापना के विरुद्ध नहीं हैं और न ही युद्ध को आगे चलता देखना चाहते हैं लेकिन यह प्रस्ताव एक पक्षीय लगता है क्योंकि रूस को इस सम्मेलन में अपनी बात रखने के लिए अवसर ही नहीं दिया गया भारत के साथ ही सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, मैक्सिको, यूएई सहित 12 देशों ने भी हस्ताक्षर करने से मना कर दिया - पर्यवेक्षक के रूम में भाग लेने वाले ब्राजील ने भी हस्ताक्षर नहीं किए 

भारत ने कहा - “भारत चाहता है कि किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले रूस और यूक्रेन का एक साथ एक मंच पर होना जरूरी है ताकि दुनिया दोनों देशों की बात सुनकर अपनी राय या सहमति बनाए रिपोर्ट की मानें तो रूस को इस समिट में नहीं बुलाया गया यूक्रेन में शांति के लिए रखी गई शर्त पर भारत सहमत नहीं है”

चार दिन पहले ही इटली में प्रधानमंत्री मोदी से यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की  भेंट करके बहुत प्रसन्न थे और उसे आशा रही होगी कि भारत स्विट्ज़रलैंड में उसका साथ देगा लेकिन हुआ इसके विपरीत सभी देशों को मोदी सरकार ने खुला संदेश दे दिया कि रूस को एकतरफा फैसला करके उसे बर्बाद नहीं किया जा सकता

भारत विश्व के देशों को यह सख्त संदेश देने में इसलिए भी सक्षम है क्योंकि भारत एक बहुत बड़ा वैश्विक बाजार है और किसी भी देश के लिए भारत की अनदेखी करना संभव नहीं है और यही सफल विदेश नीति है और कूटनीति भी

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