इडोनेशिया के तट से नवंबर 2023 में भी लौटाए गए थे रोहिंग्या, ये तस्वीर UN ने जारी की थी। (फाइल फोटो: UNHCR/Amanda Jufrian)
भारत में मुस्लिम आबादी इसलिए नहीं बढ़ रही कि इनके द्वारा ज्यादा बच्चे पैदा किये जा रहे है, जबकि असली सच्चाई यह कि बढ़ती पाकिस्तान और बांग्लादेशी घुसपैठ और दूसरे रोहिंग्यों को देश की प्रतिष्ठा दांव पर लगा संविधान की दुहाई देने वालों द्वारा अपनी कुर्सी बचाने के लिए इनको संरक्षण देना। देश में CAA विरोध प्रदर्शन हुए, किसके लिए? कौन लोग शामिल थे इन प्रदर्शनों में? 90%रोहिंग्या, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी घुसपैठियों का जमावड़ा था, जिन्हे बाकि 10% आयोजकों और उनके समर्थकों द्वारा सुरक्षा दी जा रही थी। इन प्रदर्शनों में फलों का आहार, बिरयानी आदि का बंटना और दूसरे, यह विरोध केवल मुस्लिम बहुल इलाकों में ही क्यों हुआ? यह ऐसा षड़यंत्र था जिसे आम हिन्दू नहीं समझ पाया।
क्या हिन्दुओं ने इन पार्टियों से पूछने की हिम्मत की क्या विश्व के किसी भी मुस्लिम या गैर-मुस्लिम देश में घुसपैठियों को राजनीतिक संरक्षण दिया जाता है? लेकिन भारत में कुर्सी के भूखे नेता और उनकी पार्टियां संविधान की दुहाई देकर देश को घोर संकट में डाल रही है। इस कटु सच्चाई को हर हिन्दू को गंभीरता लेना होगा। सरकारों पर इन घुसपैठियों को बाहर धक्का देने के लिए दबाव बनाना पड़ेगा और भारतीय मुसलमानों को भी रोहिंग्यों के खिलाफ एकजुट होना पड़ेगा। हिन्दुओं के साथ रहने में उनको ज्यादा आराम है लेकिन रोहिंग्यों के रहने पर हिन्दुओं से कहीं ज्यादा इन रोहिंग्यों से होगी, ये नहीं सोंचे की आखिर हैं तो मुसलमान ही। अगर ऐसा होता कोई मुस्लिम देश इनको अपने देश में रखने में डरता नहीं।
इंडोनेशिया के आचे प्रांत के तट पर 140 रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठियों का एक समूह पहुँचा, लेकिन स्थानीय मछुआरा समुदाय के लोगों ने उन्हें जमीन पर कदम रखने ही नहीं दिया। इस घटना की वजह से तनाव की स्थिति बनी, रोहिंग्या मुस्लिमों का यह समूह, जिनमें ज्यादातर महिलाएँ और बच्चे शामिल थे, मलेशिया की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहा था। स्थानीय समुदाय ने सुरक्षा और शांति के नाम पर उनका विरोध किया और उन्हें नाव से उतरने नहीं दिया।
एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, यह घटना इंडोनेशिया के उत्तरी प्रांत आचे के दक्षिणी हिस्से में लाबुहान हाजी के पास की है। 140 भूखे और थके हुए रोहिंग्या मुस्लिमों ने लकड़ी की नाव में सवार होकर बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से लगभग दो हफ्ते की समुद्री यात्रा की थी। इस दौरान तीन लोगों की मौत हो गई थी। जब यह नाव आचे के तट से लगभग 0.60 किलोमीटर दूर पहुँची, तो स्थानीय मछुआरों और निवासियों ने उनका विरोध किया।
स्थानीय मछुआरा समुदाय के मुखिया मोहम्मद जबल ने साफ तौर पर कहा कि उनका समुदाय इन्हें उतरने की अनुमति इसलिए नहीं देगा क्योंकि पहले के अनुभवों के अनुसार, रोहिंग्या मुस्लिम जहाँ भी गए हैं, वहाँ स्थानीय लोगों के साथ संघर्ष और अशांति फैलाने की स्थिति उत्पन्न हुई है। जबल ने कहा, “हमने उन्हें खाना दिया, लेकिन हम यह नहीं चाहते कि यहाँ वही समस्या हो, जो अन्य स्थानों पर हुई है।”
अपने विरोध को जताने के लिए मछुआरों ने समुद्र के किनारे बड़ा बैनर लगाया है, जिसमें लिखा है, “साउथ आचे रीजेंसी के लोग इस क्षेत्र में रोहिंग्या शरणार्थियों के आगमन को अस्वीकार करते हैं।” स्थानीय लोगों का विरोध इसलिए भी है कि जहाँ-जहाँ रोहिंग्या मुस्लिम पहुँचे हैं, वहाँ संघर्ष और अशांति फैली है।
आचे पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, रोहिंग्या मुस्लिमों का यह समूह 9 अक्टूबर को बांग्लादेश के कॉक्स बाजार से रवाना हुआ था और उनका मूल लक्ष्य मलेशिया पहुँचना था। इस यात्रा के दौरान, नाव पर सवार कुछ यात्रियों ने कथित तौर पर दूसरे देशों में पहुँचने के लिए पैसे भी दिए थे। हालाँकि, जब नाव इंडोनेशिया पहुंची, तब तक नाव पर कुल 216 लोग सवार थे, जिनमें से 50 लोग इंडोनेशिया के रियाउ प्रांत में उतर चुके थे। स्थानीय निवासियों ने हालाँकि घुसपैठियों को खाना दिया और संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी मामलों के उच्चायुक्त ने भी भोजन सामग्री प्रदान की, लेकिन उन्हें जमीन पर कदम रखने की अनुमति नहीं दी गई।
सरकारी अधिकारियों द्वारा 11 रोहिंग्या मुस्लिमों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, क्योंकि उनकी तबियत बिगड़ चुकी थी। ये लोग लम्बी यात्रा के कारण कमजोर हो चुके थे, जिसमें अधिकतर महिलाएँ और बच्चे शामिल थे। हालाँकि, स्थानीय मछुआरों और पुलिस के विरोध के कारण बाकी घुसपैठियों को वापस नाव पर ही रहना पड़ा। आचे पुलिस ने मानव तस्करी के संदेह में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। यह आरोप लगाया जा रहा है कि इन तीनों ने रोहिंग्या मुस्लिमों से पैसा लेकर उन्हें दूसरे देशों में पहुँचाने का वादा किया था।
रोहिंग्या मुस्लिमों का म्यांमार से पलायन पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है। म्यांमार के सुरक्षा बलों द्वारा 2017 में किए गए क्रूर आतंकवाद विरोधी अभियानों के बाद, करीब 740,000 रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार से भागकर बांग्लादेश में शरण लिए हुए हैं। म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों को लंबे समय से व्यापक भेदभाव और अत्याचार का सामना करना पड़ा है, और वहाँ की सरकार ने उन्हें नागरिकता देने से भी इनकार कर दिया है।
इंडोनेशिया, थाईलैंड और मलेशिया जैसे अन्य देशों की तरह संयुक्त राष्ट्र के 1951 शरणार्थी सम्मेलन का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए इन्हें शरणार्थियों को स्वीकार करने की बाध्यता नहीं है। इंडोनेशिया की आबादी में 87% लोग मुस्लिम मजहब से हैं, लेकिन वो लगातार रोहिंग्या मुस्लिमों को वापस भेजता रहा है।
बीते साल नवंबर 2023 में 250 लोगों से भरी नाव को भी वापस समंदर में लौटा दिया गया था, जिसके बारे में बात में आशंकाएँ जताई कि गई वो नाव दुर्घटना का शिकार हो गई। वहीं, मार्च 2024 में भी इंडोनेशिया के अधिकारियों और स्थानीय मछुआरों ने आचे के तट पर एक नाव से 75 लोगों को बचाय था, क्योंकि वो विरोध प्रदर्शन की वजह से वो नाव तट पर नहीं आ सकी थी और दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी, उस घटना में नाव पलटने से 67 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें से कई महिलाएँ और बच्चे थे।
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