INDI गठबंधन में चल रहा एक-दूसरे को निपटाने का खेल : हरियाणा का बदला उत्तर प्रदेश में और उत्तर प्रदेश का बदला महाराष्ट्र में… : जो सीटें माँग रही सपा उन पर MVA ने उतारे उम्मीदवार

                                                         अखिलेश यादव, अबू आजमी 
लोकसभा चुनावों में बने 
INDI गठबंधन को 'घमंडिया गठबंधन', 'परिवार बचाओ ठगबंधन' आदि कई नामों से पुकारने पर जनता भी बीजेपी और सोशल मीडिया पर हंसती थी, लेकिन कल हंसी उड़ाने वाले आज उस बात पर सच होते देख किसी कोने में बैठ आत्मचिंतन करे कि क्यों इस 'घमंडिया गठबंधन', 'परिवार बचाओ ठगबंधन' कहने वालों का मजाक बनाया? लेकिन किसी ने अपने दिमाग पर जरा-सा भी जोर नहीं दिया कि गठबंधन में सारी पारिवारिक पार्टियां है। इन्हे जनता से कहीं अधिक चिंता अपने परिवारों की है। जिस पार्टी में परिवार मुख्य मुद्दा होगा वह पार्टी देशहित नहीं कर सकती। इनका असली मकसद मोदी/बीजेपी को हटाकर खुद राज कर अपने परिवार का लालन-पालन करने का है।      

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, लेकिन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) में सीट बंटवारे पर असहमति बढ़ती जा रही है। कांग्रेस की अगुवाई वाले इस गठबंधन में समाजवादी पार्टी (सपा) की माँगों को नजरअंदाज कर उसे ठेंगा दिखाया जा रहा है। सपा ने एमवीए से पाँच सीटों–धुले सिटी, भिवंडी पूर्व, भिवंडी पश्चिम, मालेगांव सेंट्रल और मानखुर्द– की माँग की थी।

हालाँकि, 26 अक्टूबर 2024 को एमवीए के प्रमुख दलों ने इन सीटों पर सपा की जगह अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी, जिससे सपा नेतृत्व में नाराजगी फैल गई है। वैसे, इंडी गठबंधन में अखिलेश यादव को हरियाणा से लेकर मध्य प्रदेश तक कांग्रेस ने ठेंगा ही दिखाया है। ऐसे में अखिलेश यादव ने भी बयान दिया है कि वो कोई राजनीतिक बलिदान नहीं देने वाले। सहमति बनी तो ठीक, वर्ना अपने संगठन वाले इलाकों में सपा अकेले चुनाव लड़ेगी।

सपा की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष अबू आसिम आजमी ने एमवीए को पहले ही अल्टीमेटम दिया था कि अगर उनकी माँग नहीं मानी गई, तो सपा 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। एमवीए के नेताओं से बातचीत के बाद भी जब सीटों पर सहमति नहीं बन पाई, तो आजमी ने अपना गुस्सा जाहिर किया और एमवीए पर “विश्वासघात” का आरोप लगाया। अब सवाल उठता है कि सपा का यह कड़ा रुख गठबंधन को कितना प्रभावित करेगा और क्या इससे महाविकास अघाड़ी के चुनावी समीकरण बिगड़ सकते हैं।

सपा ने एमवीए में अनदेखी के बाद बढ़ाया दबाव

एमवीए में शिवसेना (यूबीटी), कॉन्ग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) जैसी तीन बड़ी पार्टियाँ शामिल हैं, जिन्होंने महाराष्ट्र चुनाव के लिए 85-85 सीटों पर लड़ने का निर्णय लिया है, जबकि सहयोगी दलों के लिए 15 सीटें रिजर्व रखी हैं। सपा ने इस आरक्षित कोटे में से अपनी हिस्सेदारी की माँग की, लेकिन इस पर अब तक कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया गया है। एमवीए के शीर्ष नेताओं के साथ हुई बैठक में भी सपा को कोई आश्वासन नहीं दिया गया, जिसके बाद आजमी ने एमवीए से अलग चुनाव लड़ने का इरादा जाहिर किया।
अबू आजमी ने मीडिया से कहा, “हमने शरद पवार जी से बात की थी और अपनी माँग उनके सामने रखी थी। उन्होंने कहा था कि आज (26 अक्टूबर 2024) इस पर निर्णय लेंगे, लेकिन मुझे आज कोई फोन नहीं आया। एमवीए के सहयोगियों द्वारा हमारे माँग वाली सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा हो गई है। ऐसा लगता है कि एमवीए में शामिल दल सपा को सीटें नहीं देना चाहते।”

अखिलेश यादव बोले- गठबंधन हुआ तो ठीक, वर्ना ‘राजनीति में कोई बलिदान नहीं’

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा, “महाराष्ट्र में सपा का प्रदेश अध्यक्ष ही निर्णय करेगा – पहले हम गठबंधन में बने रहने की कोशिश करेंगे। लेकिन, अगर महाविकास अघाड़ी हमें गठबंधन में नहीं रखना चाहती, तो हम उन सीटों पर लड़ेंगे, जहाँ हमारा संगठन मजबूत है या हमें वोट मिल सकते हैं। हम उन सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जिनसे गठबंधन को नुकसान न हो। पर राजनीति में बलिदान की कोई जगह नहीं है।”
यादव के इस बयान से सपा की रणनीति साफ हो गई है। पार्टी पहले एमवीए का हिस्सा बने रहना चाहती है, परंतु सीटों की अनदेखी होने पर अपने दम पर चुनाव लड़ने का मन बना चुकी है। बता दें कि महाराष्ट्र में 20 नवंबर को वोटिंग होने वाली है, जिसमें अब बहुत कम समय बचा है। अधिकतर दलों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।

क्या एमवीए की चुनावी समीकरणों पर असर होगा?

अगर सपा एमवीए से अलग होकर अपने उम्मीदवार उतारती है, तो इससे गठबंधन के वोट बैंक पर असर पड़ सकता है। सपा का प्रभाव खासकर मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में है, जहाँ उसकी मजबूत पकड़ है। इसके अलावा, सपा का एमवीए से अलग होकर चुनाव लड़ना मुस्लिम वोटों के विभाजन का कारण बन सकता है, जिसका सीधा फायदा महायुति (बीजेपी और सहयोगी दलों) को हो सकता है। इससे महाविकास अघाड़ी के लिए चुनौती बढ़ सकती है, जो पहले से ही महायुति के खिलाफ संघर्ष में है।
एमवीए का नेतृत्व, विशेषकर कांग्रेस, अभी तक सपा की माँगों को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठा पाया है, जो सपा के लिए निराशाजनक है। वहीं, एमवीए के शीर्ष नेताओं के बीच भी इस मामले को लेकर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं बन पाई है। अगर गठबंधन में यह असहमति बढ़ती है, तो एमवीए को इस चुनाव में कई जगहों पर नुकसान झेलना पड़ सकता है। अखिलेश यादव और अबू आजमी का कड़ा रुख और अपने दम पर चुनाव लड़ने की चेतावनी इस बात का संकेत है कि सपा अब इस मुद्दे पर कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।

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