अमेरिकी ट्रेड कोर्ट ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ‘लिबरेशन डे’ आयात शुल्क को प्रभावी होने से रोक दिया। कोर्ट का कहना है कि राष्ट्रपति ने उन देशों पर व्यापक शुल्क लगाकर अपने प्राधिकार का अतिक्रमण किया है, जो अमेरिका को खरीदने से अधिक सामान बेचते हैं।
कोर्ट ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (आईईईपीए) के तहत वैश्विक टैरिफ निर्धारित करने के लिए व्यापक अधिकार की बात कही है। लेकिन इस अधिनियम का उद्देश्य राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान “असामान्य और असाधारण” खतरों से निपटना है।
तीन न्यायाधीशों के पैनल ने कहा, “अदालत राष्ट्रपति द्वारा टैरिफ के उपयोग की बुद्धिमत्ता या संभावित प्रभावशीलता पर विचार नहीं करती है। यह उपयोग अनुचित है, इसलिए नहीं कि यह नासमझी या अप्रभावी है, बल्कि इसलिए कि (संघीय कानून) इसकी अनुमति नहीं देता है।”
न्यायाधीशों ने ट्रम्प प्रशासन को 10 दिनों के भीतर नए आदेश जारी करने का भी आदेश दिया। ट्रम्प प्रशासन ने कुछ ही मिनटों बाद अपील की अर्जी दायर की और न्यायालय के अधिकार पर सवाल उठाया। ये मामला अब अमेरिका की राजनीति, व्यापार नीति और वैश्विक बाजारों की दिशा तय करने वाला बनता जा रहा है।
टैरिफ के बचाव में ट्रंप ने कहा भारत-पाक सीजफायर की बात
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने कोर्ट में टैरिफ लगाने के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि एक प्रतिकूल फैसला परमाणु शक्तियों भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर को खतरे में डाल सकता है। उन्होने राष्ट्रपति द्वारा मध्यस्थता कराए जाने की बात भी की। हालाँकि उनका तर्क कोर्ट ने नहीं माना और ट्रंप के टैरिफ को प्रभावी होने से रोक दिया। उनका मानना था कि टैरिफ और इंडो-पाक लड़ाई का कोई मेल नहीं।
चर्चा है कि नरेंद्र मोदी के भारत के प्रधानमंत्री बनने के लगभग 16/17 महीने बाद ही CIA ने Pentagon को दी अपनी रपट में कहा था कि अब तक पाकिस्तान भारत पर हमला करता रहा है, लेकिन अब हमला हुआ तो भारत की तरफ से होगा और मोदी पाकिस्तान को उसके परमाणु इस्तेमाल करने की नौबत ही नहीं देंगे। जो सच साबित हो गया। भारत में होते आतंकी हमले होने पर भारत अमेरिका के आगे गिड़गिड़ाने नहीं आता बल्कि पाकिस्तान को उसी भाषा में जवाब देकर पाकिस्तान के बिस्तर में कांटे बिछा दिए हैं।
दरअसल टैरिफ में बदलाव कर राष्ट्रपति ट्रंप ने विदेशी देशों से आने वाले सामानों पर अमेरिकी आयातकों से टैरिफ वसूलना शुरू किया जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार की गति को बुरी तरह बाधित किया है और वित्तीय बाजारों को हिलाकर रख दिया है।
सभी आकार की कंपनियाँ ट्रम्प द्वारा टैरिफ लगाने और अचानक उलटफेर करने से परेशान हैं, क्योंकि उनका उत्पादन, स्टाफिंग और कीमतों पर इसका काफी प्रभाव देखा जा रहा है।
बुधवार को व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा कि अन्य देशों के साथ अमेरिकी व्यापार घाटा “एक राष्ट्रीय आपातकाल है जिसने अमेरिकी समुदायों को तबाह कर दिया है, हमारे श्रमिकों को पीछे छोड़ दिया है, और हमारे रक्षा औद्योगिक आधार को कमजोर कर दिया है – ऐसे तथ्य जिन पर न्यायालय ने विचार नहीं किया।”
प्रवक्ता कुश देसाई ने एक बयान में कहा, “यह तय करना अनिर्वाचित न्यायाधीशों का काम नहीं है कि राष्ट्रीय आपातकाल को कैसे ठीक से संबोधित किया जाए।”
वित्तीय बाजारों ने इस फैसले का स्वागत किया। न्यायालय के आदेश के बाद अमेरिकी डॉलर में तेजी आई, विशेष रूप से यूरो, येन और स्विस फ्रैंक जैसी मुद्राओं के मुकाबले इसमें उछाल आया। वॉल स्ट्रीट वायदा में तेजी आई और एशिया भर में इक्विटी में भी तेजी आई।
डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन से बाहर हुए एलन मस्क
इस बीच राष्ट्रपति ट्रंप के लिए एक और निराश करने वाली खबर आई। एलन मस्क ने बुधवार (27 मई 2025) को घोषणा की कि वह राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शीर्ष सलाहकार के रूप में अपनी भूमिका से हट रहे हैं।
"I think a bill can be big or it could be beautiful. But I don't know if it could be both."
— CBS Sunday Morning 🌞 (@CBSSunday) May 28, 2025
Tech billionaire Elon Musk tells CBS Sunday Morning's @Pogue he was "disappointed" to see the Trump-backed "big beautiful" spending bill, which passed in the House last week.
Musk said… pic.twitter.com/LUcuTaNYrs
टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ ने अपने स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर यह खबर साझा की। उन्होंने राष्ट्रपति ट्रम्प के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होने कहा वह संघीय नौकरशाही को सुव्यवस्थित करने और सुधारने की कोशिश में लगे थे। सरकारी दक्षता विभाग के साथ एक विशेष सरकारी कर्मचारी के रूप में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
मस्क ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब एक दिन पहले ही उन्होंने ट्रम्प के विधायी एजेंडे की आलोचना की थी और कहा था कि वे राष्ट्रपति द्वारा “बड़े आकर्षक विधेयक” कहे जाने से “निराश” हैं।
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