यह कथा सनातन विरोधियों को शायद रास नहीं आए, क्योकि अपने मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने पुरुषोत्तम श्रीराम को और उनके निर्मित रामसेतु को ही काल्पनिक बताने का दुस्साहस कर सकते हैं, हो सकता है कभी माता-पिता को ही काल्पनिक न कह दें।
ओडिशा में स्थित जगन्नाथ मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को धरती के बैकुंठ स्वरूप रूप में माना जाता है। माना जाता है कि पुरी का ये पौराणिक मंदिर काफी पुराना है। इस मंदिर से जुड़ा इतिहास काफी हैरान कर देने वाला है। धार्मिक मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों में आज भी भगवान श्रीकृष्ण का दिल धड़कता है।
सनातन परंपरा में जगन्नाथ मंदिर को वैष्णव परंपरा का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान माना जाता है। आस्था के इस धाम पर प्रतिदिन देश-विदेश से हजारों की संख्या में तीर्थयात्री भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। पुरी का यह मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है, लेकिन वहां पर उन्हें जगन्नाथ धाम के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म से जुड़े चार प्रमुख तीर्थ में से एक पुरी के इस मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्ति के दर्शन होते हैं।
ॐज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैं। इसे अनासरा या ज्वर लीला कहा जाता है। इस दौरान मंदिर के पट बंद रहते हैं और केवल दायित्वगण ही भगवान की सेवा में रहते हैं।
यह परंपरा भगवान जगन्नाथ के भक्त माधव दास से जुड़ी है। एक बार माधव दास बहुत बीमार थे और भगवान जगन्नाथ ने स्वयं उनकी सेवा कर रहें थे यह बात भक्त माधव दास समझ गए उनकी सेवा प्रभु हीं कर रहें हैं फिर भक्त माधव दास ने प्रभु से कहा आप मेरी सेवा कर रहें हैं यह ठीक नहीं हैं आप तो भगवान हैं मुझे ठीक क्यों नहीं कर देते जो आप मेरे लिए कष्ट सह रहें हैं।
भगवान ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में 15 दिन की बीमारी और बची है 15 दिन में ठीक हो जाओगे लेकिन माधव दास ठीक करने की हठ करने लगे प्रभु ने बहुत समझाया लेकिन माधव दास नहीं माने तब प्रभु ने माधव दास को तो ठीक कर दिए लेकिन अपने भक्त की बीमारी को अपने ऊपर ले लिए क्योकि कर्म के फल में परमात्मा भी हस्तक्षेप नहीं करते यहीं विधि का विधान हैं।
तभी से, हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए बीमार होकर एकांतवास में चले जाते हैं अपने प्रिय भक्त की पीड़ा को अपने ऊपर ले लेते हैं फिर रथ यात्रा से पहले स्वस्थ होकर भक्तों के दर्शन के लिए निकलते हैं।
भगवान जगन्नाथ 26 जून को पूर्ण स्वस्थ होकर रथ यात्रा के दौरान अपने प्रिय भक्तों को दर्शन देंगे।
प्रतिमा बनाने में स्वर्ण औजारों का प्रयोग
प्रभु की प्रतिमा में उस वृक्ष की लकड़ी का प्रयोग होता है, जिस वृक्ष पर ॐ अंकित होता है। उस वृक्ष को केवल उसी व्यक्ति को काटने की अनुमति होती है, जिसे स्वप्न में जगह और वृक्ष दिखाया जाता है। उसे उस वृक्ष पर पहुँचने पर स्वर्ण कुल्हाड़ी प्राप्त होती है। उस वृक्ष की लकड़ी को निर्धारित स्थल(प्रतिमा बनाने का स्थल) तक ठेले को उसे और उसके परिवार को ही आज्ञा होती है। कोई अन्य व्यक्ति ठेला खींचने में तनिक भी सहायता नहीं सकता।
कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा स्वयं अपने प्रभु की प्रतिमा बनाने निर्धारित स्थल पर एक बंद कक्ष में स्वर्ण छेनी एवं हथोड़ी आदि से बनाते है। और पुरानी प्रतिमा से नवनिर्मित प्रतिमा में हृदय परिवर्तित करते समय मूर्तिकार की दोनों आँखों पर पट्टी बंधी होती है। यही कारण है कि यात्रा से पहले इनके स्वास्थ्य की जाँच होती रहती है। ज्वर होने पर दवाई आदि दी जाती है। ठंठ लगने की स्थिति में गर्म वस्त्र, शाल और रात्रि शयन में लिहाफ आदि प्रदान किये जाते हैं।
जगन्नाथ पुरी मंदिर के ऐसे 5 रहस्य जो अब तक अनसुलझे
- मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तनों को एक के ऊपर एक क्रम में रखा जाता है, जिसमें सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद सबसे पहले पकता है, जबकि, नीचे की तरफ से एक के बाद एक प्रसाद पकता जाता है। जोकि अपने आप में हैरान कर देने वाला है।
- मान्यता है कि मंदिर में दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की ओर चलती है। जबकि शाम के समय हवा जमीन से समुद्र की ओर चलती है। जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर लगा झंडा हमेशा हवा के विपरीत लहराता है।
- मान्यता है कि जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई करीब 214 फीट है। ऐसे में पशु पक्षियों की परछाई तो बननी चाहिए, मगर इस मंदिर के शिखर की छाया हमेशा गायब ही रहती है।
- पुरी में समुद्र तट पर स्थित जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से न ही कभी कोई हवाई जहाज उड़ता है और न ही कोई पक्षी मंदिर के शिखर पर बैठता है। ऐसा भारत के किसी भी मंदिर में नहीं देखा गया है।
- मंदिर में हर 12 साल के भीतर भगवान जगन्नाथ समेत तीनों मूर्तियों को बदला जाता है। जिसके बाद वहां पर नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। भगवान की मूर्तियों को बदलते समय शहर की बिजली को काट दिया जाता है। इसके साथ ही मंदिर के बाहर भारी सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया जाता है। उस दौरान सिर्फ पुजारी को ही मंदिर में जाने की परमिशन होती है।
हर साल देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद 56 भोग का महाप्रसाद खाने के लिए यहां आते हैं। मान्यताओं के अनुसार यहां की रसोई दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है, जो प्रतिदिन हजारों लोगों को सेवा प्रदान की जाती है। लेकिन आपको बता दें कि जगन्नाथ पुरी के इस रहस्यों से भरे मंदिर की रसोई में जो प्रसाद बनाया जाता है उसमें टमाटर का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। लेकिन क्यों? तो आइए इस बारे में जानते हैं:-
क्यों नहीं किया जाता टमाटर का उपयोग
दरअसल, उड़िया में टमाटर को बिलाती (जो कि एक विदेशी नाम है) के नाम से जाना जाता है। इसलिए जगन्नाथ पुरी मंदिर में बनने वाले प्रसाद में टमाटर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। क्योंकि मान्यताओं के अनुसार, भारत में टमाटर को पहले के समय में विदेशियों के द्वारा उगाया जाता था और उन्हीं के द्वारा ही इसे भारत में भी लाया गया था। इसलिए इसे जगन्नाथ पुरी मंदिर में उपयोग करने पर बैन है। हालांकि यहां सिर्फ टमाटर ही नहीं। बल्कि आलू सहित कई अन्य सब्जियों पर भी बैन है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर के प्रसाद में ये सब्जियां भी हैं प्रतिबंधित
भोग में टमाटर सहित आलू, फूलगोभी, पत्तागोभी, चुकंदर, मक्का, हरी मटर, गाजर, शलजम, बेल मिर्च, धनिया, बीन्स, मिर्च, हरी बीन्स, करेला, भिंडी और खीरे जैसी सब्जियों को भी महाप्रसाद में शामिल करने से रोक दिया गया है।
क्यों प्रतिबंधित हैं विदेशी सब्जियां
दरअसल, माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर में जो महाप्रसाद भगवान को चढ़ाने के लिए तैयार किया जाता है, उसकी पूरी सामग्रियां लोकल होती हैं। इसमें स्थानीय फूड का इस्तेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं, यहां मंदिर में भोग को बनाने के लिए भी मिट्टी और ईंट से बने बर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है।
जानकारी के अनुसार, यह महाप्रसाद बनाने के लिए मिट्टी और ईंट से बने 240 स्टोव हैं। जिनमें भोग तैयार किया जाता है। प्रत्येक चूल्हे पर 9 बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर खाना पकाया जाता है। बताया जाता है कि ये 9 बर्तन का अंक 9 नवग्रह, 9 धान्य और 9 दुर्गाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं।
No comments:
Post a Comment