साभार
जेहादी जब कानून की गिरफ्त में आने पर victim card खेलना शुरू कर देते हैं। इन जेहादियों की वकालत करने बेशर्म वकील भी अपनी तिजोरी भरने इन गद्दारों की पैरवी करने खड़े हो जाते हैं। क्यों नहीं कोर्ट भी इन लालची वकीलों को भी उसी श्रेणी में डालते? ईरान ने गद्दारों को दे दी फांसी। कोई वकील उनके बचाव में खड़ा हुआ। लेकिन ये भारत में ही संभव है कि जहां वकीलों को गद्दारों/जेहादियों की पैरवी करने की छूट दे दी जाती है। बार एसोसिएशन ऐसे वकीलों पर क्यों नहीं कोई कार्यवाही करती? अपनी कमाई के चक्कर में गद्दारों का साथ दोगे? "पाकिस्तान ज़िन्दाबाद" गद्दार ने 62 साल की उम्र में ही लिखा है जवानी में नहीं। बार एसोसिएशन को इस गंभीर मुद्दे पर निर्णय लेना चाहिए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 62 वर्षीय अंसर अहमद सिद्दीकी को जमानत देने से इनकार कर दिया है। सिद्दीकी पर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ लिखे फेसबुक पोस्ट शेयर करने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि यह अपराध संविधान के विरुद्ध और देश की स्वतंत्रता को चुनौती देने जैसा है।
आरोपित के वकील ने कोर्ट से कहा कि वह 62 साल के वृद्ध हैं और उनका मेडिकल ट्रीटमेंट चल रहा है। लेकिन कोर्ट ने इसके बाद भी जमानत याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि आरोपित का अपराध राष्ट्रीय हित के खिलाफ है। वहीं, प्रोसेक्यूटर ने कोर्ट को बताया कि यह फेसबुक पोस्ट पहलगाम आतंकी हमले के बाद ही शेयर किया गया था।
अवलोकन करें:-
कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज करते हुए यह भी कहा, “आवेदक एक वरिष्ठ नागरिक है और उसकी उम्र से पता चलता है कि वह स्वतंत्र भारत में पैदा हुआ है। उसका गैर-जिम्मेदाराना और राष्ट्र-विरोधी आचरण उसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार की सुरक्षा माँगने का अधिकार नहीं देता है।”


No comments:
Post a Comment