प्रतीकात्मक फोटो साभार: Grok AI & ET)
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के ठाणे में एक दरगाह गिराने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। यह दरगाह पहले 160 स्क्वायर फीट में थी और बाद में धीमे-धीमे इसने 17 हजार स्क्वायर फीट जमीन पर कब्जा कर लिया था। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि यहाँ आने वालों की संख्या के नाम पर कब्जे की अनुमति नहीं दी जा सकती।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, “हम यह स्वीकार नहीं कर सकते कि किसी भीड़ के आने और कहीं बड़ी संख्या में ज्यादा लोगों के आने के आधार पर यह दरगाह कानूनी सरंचना साबित हो जाती है। यह जमीन हड़पने और उसके तरीके का एक क्लासिक मामला है इस तरह से जमीन हड़पने को कोर्ट अपनी मंजूरी नहीं दे सकती।”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने क्या कहा?
बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में दरगाह ट्रस्ट की तरफ से दायर याचिका को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा ट्रस्ट ने उस जमीन को कभी खरीदा ही नहीं और ना ही किसी तरह की निर्माण अनुमति ली। कोर्ट ने कहा कि केवल चैरिटी कमिश्नर द्वारा सार्वजनिक नोटिस जारी करना भूमि पर स्वामित्व या कब्जे का प्रमाण नहीं हो सकता।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ने यह जमीन एक निजी व्यक्ति की है, जिसने सिविल कोर्ट में अतिक्रमण का मुकदमा जीत लिया है। 5 अप्रैल 2025 को ठाणे के सिविल न्यायालय ने स्पष्ट रूप से माना कि ट्रस्ट ने उस जमीन पर अवैध अतिक्रमण किया है और न तो वों मालिक है और न ही कब्जेदार।
कोर्ट ने यह भी कहा कि उसके संज्ञान में आने वाले पक्ष को दावे पर सही होना चाहिए और अपने अधिकारों को साबित करने के लिए पुख्ता दस्तावेज पेश करने चाहिए। पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रस्ट ने दरगाह को मिले नोटिस के जवाब में कोई ठोस तर्क नहीं दिया और सुनवाई तक में हिस्सा नहीं लिया।
आखिरकार, बॉम्बे हाईकोर्ट ने ट्रस्ट की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ट्रस्ट न तो जमीन का मालिक है, न ही उसने किसी भी तरह की अनुमति ली है। दरगाह की संरचना पूरी तरह अवैध है और इसका कोई कानूनी अस्तित्व नहीं है।
कोर्ट ने ठाणे नगर निगम को तोड़ने की कार्रवाई को जारी रखने की अनुमति देते हुए स्पष्ट किया कि कोई भी संस्था इस तरह से सार्वजनिक या निजी भूमि पर कब्जा कर निर्माण नहीं कर सकती और फिर उसे मजहबी स्थल का नाम देकर वैध ठहराने की कोशिश नहीं कर सकती।
वहीं हाई कोर्ट के सामने दरगाह ट्रस्ट का तर्क था कि यह दरगाह 1982 के पहले से ही उस स्थान पर मौजूद है और वह ‘मजहबी केंद्र’ है। हालाँकि, उनकी कोई दलील काम नहीं आई।
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