बलूचिस्तान में ‘अमेरिकी खुदाई’ का बनाया जा रहा रास्ता, सोना निकालने वाली कनाडाई कंपनी ने G7 देशों से माँगे 29050 करोड़ रूपए: सऊदी अरब ने फंडिंग से कर दिया है इनकार

                                                                                                                   साभार - एक्सप्रेस ट्रिब्यून
बलूचिस्तान एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। इस बार कारण है इसके प्राकृतिक संसाधनों को लेकर बढ़ती वैश्विक दिलचस्पी। कनाडा की कंपनी बैरिक माइनिंग ने विवादित रेको दिक तांबा-सोना परियोजना के लिए 3.5 अरब डॉलर (29,050 करोड़ रुपए) की फंडिंग की माँग की है।

सऊदी अरब ने इस परियोजना में निवेश से इनकार कर दिया है। अब कंपनी अमेरिकी नेतृत्व में G7 फाइनेंसिंग पैकेज तैयार कर रही है, जिससे 2028 तक खदान से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।

बैरिक माइनिंग के सीईओ मार्क ब्रिस्टो के अनुसार, अमेरिकी सरकार, एशियाई विकास बैंक, अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC), अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय विकास वित्त निगम, कनाडा, जापान और जर्मनी के वित्तीय संस्थान इस परियोजना में गहरी रुचि दिखा रहे हैं।

उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि अमेरिका के समर्थन से पाकिस्तान को कॉपर कॉन्सन्ट्रेट (तांबे का कच्चा रूप) तक पहुँच मिलेगी, हालाँकि इसके लिए अभी और प्रोसेसिंग की आवश्यकता है। यह परियोजना न केवल पाकिस्तान के आर्थिक भविष्य के लिए अहम मानी जा रही है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे वैश्विक ताकतें बलूचिस्तान जैसे संवेदनशील क्षेत्र में संसाधनों को लेकर सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।

बलूचिस्तान की सबसे बड़ी खनिज परियोजना

रेको दिक खदान को दुनिया की सबसे बड़ी और अब तक अविकसित तांबा-सोना परियोजनाओं में से एक माना जाता है। अनुमान है कि अगले 37 वर्षों के खनन काल में यह परियोजना लगभग 70 अरब डॉलर (5.81 लाख करोड़ रुपए) का फ्री कैश फ्लो (Free Cash Flow) और करीब 90 अरब डॉलर (7.47 लाख करोड़ रुपए) का कुल ऑपरेटिंग कैश फ्लो (Operating Cash Flow) उत्पन्न कर सकती है।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना की मालिकाना हिस्सेदारी तीन पक्षों के बीच साझा है। जिसमें कनाडा की बैरिक गोल्ड कंपनी, पाकिस्तान की संघीय सरकार और बलूचिस्तान की प्रांतीय सरकार शामिल है।
इसकी फंडिंग के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से बातचीत चल रही है। इस साल की शुरुआत में टिम क्रिब ने बताया था कि रेको दिक परियोजना को अंतरराष्ट्रीय विकास संघ (IDA) और अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) से लगभग 650 मिलियन डॉलर (5,395 करोड़ रुपए) की सहायता मिलने की उम्मीद है।

वहीं, अमेरिकी निर्यात-आयात बैंक (US EXIM Bank) से 500 मिलियन से 1 अरब डॉलर (4,150 करोड़ रुपए से 8,300 करोड़ रुपए) तक की फंडिंग की संभावना जताई गई है। इसके अलावा, परियोजना जापान बैंक फॉर इंटरनेशनल को ऑपरेशन, एक्सपोर्ट डेवलपमेंट कनाडा और एशियाई विकास बैंक जैसे अन्य वित्तीय संगठनों से भी 500 मिलियन डॉलर (4,150 करोड़ रुपए) की अतिरिक्त राशि जुटाने का प्रयास कर रही है।

यह परियोजना पाकिस्तान के आर्थिक विकास के लिए एक बड़ा अवसर मानी जा रही है और इसमें वैश्विक स्तर पर बढ़ती दिलचस्पी बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों की अहमियत को भी दिखाती है।

भारत के साथ टैरिफ युद्ध के बीच ट्रंप के करीब आने की कोशिश कर रहा पाक

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर टैरिफ वॉर छेड़ दिया है। इससे भारत-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ गया है। इसी दौरान पाकिस्तान ने अमेरिका और ट्रंप से नजदीकियाँ बढ़ा ली हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और असली ताकत रखने वाले सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर ने ट्रंप की खुलकर चमचागिरी की है, जिससे अमेरिका से उनके रिश्ते मजबूत हुए हैं।

पाकिस्तानी फौज समर्थित सरकार ने कई बार ट्रंप को इस ‘दावे’ के लिए धन्यवाद दिया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम (सीजफायर) समझौते में कोई भूमिका निभाई। हालाँकि, असलियत यह है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान को सैन्य रूप से करारी हार दी थी। यह ऑपरेशन पाकिस्तान-प्रायोजित पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद किया गया था, जिसमें 26 लोग मारे गए थे।

इस शर्मनाक हार के बाद पाकिस्तान ने खुद भारत से संघर्षविराम की अपील की थी, जिसे भारत ने रणनीतिक रूप से मान लिया। इसके बाद से पाकिस्तान की फौज के प्रमुख असीम मुनीर दो बार अमेरिका का दौरा कर चुके हैं।

पाकिस्तान की खुशामदी नीति से प्रभावित होकर ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ रही बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और उसकी मजीद ब्रिगेड को ‘विदेशी आतंकी संगठन’ घोषित कर दिया है। इससे बलूच स्वतंत्रता सेनानियों को अब अमेरिका की नजर में आतंकवादी बताया गया है।

बलूचिस्तान में पाकिस्तान का विरोध

बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान का सबसे उपेक्षित और शोषित प्रांत माना जाता है, लंबे समय से प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और स्थानीय लोगों के दमन का शिकार रहा है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने वर्षों से पाकिस्तानी फौज, चीनी कर्मियों और चीन की उन परियोजनाओं पर हमले किए हैं, जो बलूच संसाधनों का दोहन करती हैं।
बलूच समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान और चीन मिलकर उनके खनिज और ऊर्जा संसाधनों का फायदा उठा रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को उसका कोई लाभ नहीं मिलता। इस बीच, अमेरिका की भूमिका भी इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल ही में पाकिस्तान के कथित विशाल तेल भंडार को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए एक नया व्यापार समझौता पेश किया था। यह ऐलान उस समय हुआ जब अमेरिका ने भारत से आयात होने वाले सामान पर भारी टैरिफ और दंडात्मक शुल्क लगाने की घोषणा की थी।
ट्रम्प ने यहाँ तक कह दिया कि एक दिन पाकिस्तान भारत को तेल बेच सकता है। इसी दौरान अमेरिका ने BLA को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया, जो ट्रम्प के पाकिस्तान समर्थक रुख और बलूचिस्तान के खनिज संसाधनों में बढ़ती अमेरिकी दिलचस्पी को और भी संदिग्ध बना देता है। बलूच स्वतंत्रता सेनानियों ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत ग्वादर बंदरगाह में चीनी प्रभाव का लगातार विरोध किया है।
अब कनाडा की कंपनी बैरिक माइनिंग रेको डिक तांबा-सोना परियोजना के लिए 3.5 अरब डॉलर की फंडिंग जुटाने में लगी है, जिसमें अमेरिकी संस्थानों की भी भागीदारी है। इससे यह साफ झलकता है कि पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान के बहुमूल्य संसाधनों को डॉलर के बदले विदेशी कंपनियों को सौंप रही है, जबकि बलूच जनता दमन और हिंसा का शिकार बनी हुई है।
इतिहास गवाह है कि बलूचिस्तान से मिलने वाली गैस और बिजली हमेशा पंजाब और पाकिस्तान के अन्य प्रांतों को दी जाती रही है, जबकि बलूच लोग खुद मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। अब विदेशी कंपनियाँ, जिनमें अमेरिकी समर्थन वाली कंपनियाँ भी शामिल हैं, बलूचिस्तान के खनिजों से अरबों का मुनाफा कमाएँगी। यह स्थिति इस ओर इशारा करती है कि बलूचिस्तान आने वाले समय में अमेरिका के लिए एक नया तेल युद्ध स्थल बन सकता है।


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