CSDS: भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ साजिश और विदेशी फंडिंग का जाल – विस्तृत रिसर्च में खुलासा

                                     CSDS और विदेशी फंडिंग वाले NGO की साजिश का खुलासा
यह रिसर्च सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS: Centre for the Study of Developing Societies) के इतिहास, विचार, फंडिंग इकोसिस्टम और विदेशी संस्थाओं के साथ सहयोग की जाँच करता है। विश्लेषण की वजह ये है कि विदेशी फंडिंग वाले एनजीओ के साथ भारत के कथित थिंक टैंक और मीडिया के बीच सीएसडीएस एक गठजोड़ बनाता है, जो वैचारिक रूप से भारत, खासकर बहुसंख्यक हिंदुओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ है। इस रिसर्च में ऐसे कई रहस्योद्घाटन हुए हैं, जिससे पता चलता है कि भारत के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को प्रभावित करने, भारत के लोकतंत्र में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने और विदेशी शक्तियों के इशारे पर भारत की संप्रभुता को कमजोर करने की कोशिश की गई है। सीएसडीएस और उसके मददगारों ने कैसे दूसरे देशों की विदेश नीति के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की है, इसका भी पता चलता है।

CSDS की उत्पत्ति और विचार

सीएसडीएस की स्थापना 1963 में रजनी कोठारी ने की थी। कोठारी के क्रियाकलाप हिन्दू समाज को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित थे। वह देश की धर्मनिरपेक्षता, जातिवाद और बहुसंख्यक विरोधी सोच का व्यक्ति रहा है। यह शोधपत्र सीएसडीएस की जड़ों को एशिया फाउंडेशन जैसी प्रायोजित विदेशी संस्थाओं से जोड़ता है, जो सीआईए का एक मुखौटा है। इससे साफ होता है कि संस्थान की स्थापना के पीछे ‘बाहरी प्रभाव’ था। सीएसडीएस के नेतृत्व में दशकों से ऐसे कार्यों को बढ़ावा मिला, जो भारत के बहुसंख्यक समुदाय को टारगेट करती है। अल्पसंख्यकों के झूठे उत्पीड़न की बात करती है और भारत की संप्रभुता और एकता को कमजोर करने वालों को ‘वैचारिक सोच’ प्रदान करती है।

विदेशी अनुदान का फैला जाल: नकदी, सामंजस्य और सोच

सीएसडीएस का परिचालन और अनुसंधान बजट न केवल भारत सरकार के अनुदानों (मुख्य रूप से इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च, ICSSR) के माध्यम से संचालित होता है, बल्कि विदेशी अनुदान पर इसकी निर्भरता भी लगातार बढ़ती जा रही है। 2016 से सीएसडीएस को FCRA के माध्यम से कम से कम ₹15.6 करोड़ प्राप्त हुए हैं। हालाँकि अधूरे खुलासों के कारण पूरी राशि का पता नहीं चल पाया है। अनुमान है कि ज्ञात स्रोतों से प्राप्त आमदनी से कहीं अधिक धनराशि इन्हें मिली है। सीएसडीएस की फंडिंग के मुख्य स्रोतों की बात करें तो वो निम्नलिखित हैं:

कोनराड एडेनॉयर स्टिफ्टंग (KAS: Konrad Adenauer Stiftung): जर्मन सरकार द्वारा फंडेड ये फाउंडेशन, सीधे तौर पर सत्तारूढ़ क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) से संबद्ध है। इस फाउंडेशन ने 2016 से 2.6 करोड़ रुपए से अधिक का दान दिया है। केएएस जर्मन विदेश नीति और पश्चिमी लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाती है, जो अक्सर टारगेट वाले देशों की राजनीतिक को कमजोर करता है या इसे ‘सुधारने’ के नाम पर सत्ता परिवर्तन को हवा देता है।

अंतर्राष्ट्रीय विकास अनुसंधान केंद्र (IDRC: International Development Research Centre): आईडीआरसी कनाडा की एक क्राउन कॉपोरेशन है, जो पिछले 8 सालों से अपने थिंक टैंक के माध्यम से सीएसडीएस के सालाना बजट का एक तिहाई भाग प्रदान करता आ रहा है। आईडीआरसी कनाडाई विदेश नीति का एक हिस्सा है। ये अलगाववाद को बढ़ावा देता है। खालिस्तानी अलगाववादियों को कनाडा का खुला संरक्षण इसका उदाहरण है।

सीमेनपू फ़ाउंडेशन (Siemenpuu Foundation): फिनलैंड के विदेश मंत्रालय की आर्थिक मदद ये चल रहा यह फिनिश एनजीओ, सीएसडीएस और उसकी ब्रांचों (विशेषकर एसएडीईडी) को मदद करता है। सीमेनपू फाउंडेशन भारत में ‘आदिवासियों के समर्थन’ के आस-पास केंद्रित हैं, लेकिन उनके नेटवर्क और संवाद मंच नक्सल-समर्थित और हिंदू-विरोधी कथित बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को ‘नजरिया’ प्रदान करते हैं। ये अक्सर भारत में उत्पीड़न और बेदखल जैसे मुद्दों को बढ़ावा देती है।

बर्गग्रुएन इंस्टीट्यूट (BI: Berggruen Institute): बीआई का भारत-विरोधी और हिंदू-विरोधी विचार इसकी पत्रिका “नोएमा” के माध्यम से प्रसारित होता है। इसमें भारत को सत्तावादी, सांप्रदायिक और पिछड़ा बताया जाता है और अक्सर अति-वैचारिक और तथ्यात्मक रूप से चुनिंदा लेखकों के लेख छापती है। इन लेखकों में भारत-विरोधी पश्चिमी लॉबी से जुड़े लेखक भी शामिल हैं।

फोर्ड फाउंडेशन, हेनरी लूस फाउंडेशन, ओमिडयार, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (Ford Foundation, Henry Luce Foundation, Omidyar, Open Society Foundations): ये अमेरिकी संस्थाएँ सत्ता परिवर्तन, समाज के कथित सशक्तिकरण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए धन मुहैया कराती हैं। सीएसडीएस को सीधे या अपने सहयोगियों (जैसे “भारतीय मुस्लिम परियोजना”) के माध्यम से मदद करती है। ये लोग भारत और उसकी सरकार से पीड़ित होने के नेरेटिव को बढ़ावा देते हैं।

साइंसेज पीओ/एफएनएसपी (Sciences Po/FNSP): फ्रांस के प्रमुख राजनीति विज्ञान संस्थान ने, एफएनएसपी के माध्यम से, सीएसडीएस को पर्याप्त वित्तीय योगदान दिया है। इसकी फैकल्टी, खास कर क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट, ने नियमित रूप से हिंदू विरोधी राजनीति और मोदी सरकार की आलोचना करते हुए शोध प्रकाशित किए हैं।

पश्चिमी मीडिया, ‘खोजी’ नेटवर्क और सत्ता-पलट तत्वों की मिलीभगत

 शोध में विस्तार से बताया गया है कि कैसे सीएसडीएस और उसका शोध/पॉलिसी इकोसिस्टम—लोकनीति, एसएडीईडी और संबद्ध शिक्षाविद के साथ पश्चिमी मीडिया और ‘खोजी पत्रकारिता’ नेटवर्क (जैसे जीआईजेएन, ओसीसीआरपी, बेलिंगकैट, रिपोर्टर्स कलेक्टिव, आरएसएफ, और अन्य) जुड़े हुए हैं। ये गठजोड़ आकस्मिक नहीं है। नेटवर्क के इस जाल को अमेरिकी विदेश विभाग, एनईडी (सीआईए की सत्ता परिवर्तन कराने वाली कुख्यात शाखा), सोरोस की ओपन सोसाइटी और यूरोपीय सरकारी एजेंसियों का समर्थन है। इन चैनल्स के माध्यम से पश्चिमी खुफिया और राजनीतिक कर्ताधर्ता भारत की मीडिया और शोध विमर्श को तय करते हैं। साथ ही उन लोगों को आर्थिक मदद देते हैं, जो पश्चिमी नीतिगत प्राथमिकताओं और भारत की विफलता की बात करता है।

गठजोड़ बनाता फीडबैक लूप: विदेशी फंड पर निर्भर भारतीय शोधकर्ता भारत के लोकतंत्र, मीडिया और सांप्रदायिक स्थिति को लेकर खौफनाक रिपोर्ट तैयार करते हैं। फिर इन्हें वैश्विक स्तर पर मीडिया के माध्यम से फैलाया जाता है। इसको भारत में ‘कुछ लोग’ सही ठहराते हैं, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्बन नक्सल, अलगाववादियों और कट्टरपंथियों से संपर्क होता है।

बौद्धिक रणनीति: जातिगत सवाल, अल्पसंख्यक उत्पीड़न, हिंदू-विरोध और राष्ट्र-विरोध

सीएसडीएस के शोध, प्रकाशन और ‘सर्वेक्षण’ का उद्देश्य जाति, अल्पसंख्यक उत्पीड़न, हिंदू-विरोध और राष्ट्र-विरोध है। इसके इर्द-गिर्द इनकी रणनीतिक आगे बढ़ती है।

हिंदुओं का विभाजन: सीएसडीएस का शोध हिंदू विभाजन को और बढ़ाने की कोशिश करता है, खासकर दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों को उनकी हिंदू पहचान से अलग करके, और राजनीतिक परिणामों को जातिगत उत्पीड़न और ‘बहुसंख्यक अत्याचार’ के चश्मे से देखकर। इस विभाजन को बनाए रखना और बढ़ाना ‘भारत-विरोधियों’ की रणनीति का अहम हिस्सा है।

दलित-मुस्लिम नरेटिव को प्रोत्साहित करना– सीएसडीएस बार-बार दलित और मुस्लिमों को एक साथ जोड़ने का प्रयास करता है। उसका दावा है कि दलित और मुस्लिम भारत और बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा पीड़ित हैं। इसलिए इनके बीच एकता ‘लोकतंत्र’ के लिए बेहद जरूरी है।

हिन्दुओं और भारत को विभत्स दिखाना- सीएसडीएस के कथित विद्वान, संबद्ध पत्रकार, आशीष नंदी- अनन्या वाजपेयी जैसे सहयोगी, साजिश के तहत हिंदुओं को फासीवादी, कट्टरपंथी और हिंसा फैलाने वाले के रूप में दिखाते हैं। ऐसा ये तब भी करते हैं, जब सबूत इन दावों के उलट होता है (उदाहरण के लिए, गोधरा 2002, दिल्ली हिंदू विरोधी दंगा 2020)। इनके शोध का इस्तेमाल भारतीय राष्ट्रवाद को अवैध ठहराने, बाहरी हस्तक्षेप को सही ठहराने और वैश्विक मीडिया में दुष्प्रचार के लिए किया जाता है।

भारतीय संप्रभुता को कमजोर करना: विदेशी फंडिंग वाला सीएसडीएस का शोध सत्ता विरोधी प्रदर्शन, आंदोलन और सोशल मीडिया पर ऐसे अभियानों का समर्थन करते हैं, जिससे देश की संप्रभुता और एकता कमजोर होती है। ये ऐसे तत्वों की बौद्धिक मदद भी करते हैं। देश में ऐसे बदलाव का समर्थन करते हैं, जिससे विदेशी हित साधा जा सके। ये बदलाव और नीतियाँ अक्सर लोकतांत्रिक निर्वाचित सरकार और बहुसंख्यक के खिलाफ होते हैं।

भारत विरोधी विदेशी संस्थानों के साथ गठजोड़

यह रिसर्च दर्शाता है कि सीएसडीएस का तंत्र न केवल वैचारिक रूप से भारत के खिलाफ है, बल्कि ऐसे संस्थाओं और व्यक्तियों को मदद करता है, जो इस विचार का समर्थन करते हैं और उसे संरक्षण देते हैं।

अमेरिकी डीप स्टेट के साथ जुड़ाव: सीएसडीएस के कई साझेदारों और आर्थिक मददगारों (एनईडी, आईडीआरसी, ओपन सोसाइटी, फोर्ड फाउंडेशन) की लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप और एशिया में सत्ता परिवर्तन अभियानों में सक्रिय रूप से जुड़े होने के प्रमाण मौजूद हैं।

खालिस्तान समर्थक, पाकिस्तान समर्थक, इस्लामवादी और वामपंथी समूहों से संबंध: आईडीआरसी से जुड़े लोग और मदद पाने वाले लोगों ने किसान विरोध प्रदर्शनों, सीएए, दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगों में हिस्सा लिया। सीएसडीएस या उसके सहयोगी गैर सरकारी संगठनों के अहम सदस्य नियमित रूप से अर्बन नक्सलियों, खालिस्तानी समर्थकों और भारत विरोधी लॉबी के साथ आंदोलनकारी समूहों में दिखाई देते रहे हैं।

चीन का प्रभाव: भारत विरोधी सक्रियता के लिए जाने जाने वाले कथित शिक्षाविदों और पत्रकारों (यहाँ तक ​​कि एक पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री) की मेजबानी, वित्त पोषण या उनके साथ संबद्धता के माध्यम से, न सिर्फ पश्चिमी देशों से बल्कि चीन से वित्त पोषण होने वाले चैनल (बर्गग्रुएन इंस्टीट्यूट के माध्यम से) से संबंध इनकी तटस्थता के किसी भी दिखावे को और अधिक कमजोर कर देते हैं।

एक जैसा पैटर्न और मोटिवेशन

एक व्यवस्थित पैटर्न उभरता है: विदेशी संस्थाएँ और सरकारें, कथित भारतीय थिंक टैंकों और कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग करती हैं। ये मिलकर भारत की सरकार, बहुसंख्यक समुदाय और राष्ट्र-निर्माण परियोजनाओं की आलोचना करते हैं। ये लोग संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर नकारात्मक नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं, ताकि भारत की नीतिगत दबाव डाल सकें। इसके अलावा आंतरिक सामाजिक विभाजन और राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करते हैं।
रिसर्च में कहा गया है कि इस समन्वित अभियान का उद्देश्य भारत की संप्रभुता को नुकसान पहुँचाना, वैश्विक स्थिति को कमज़ोर करना और बुद्धिजीवियों, मीडिया और अन्य लोगों के माध्यम से सत्ता को प्रभावित करना है।
इसके अलावा, हिंदू विरोधी हिंसा, धर्मांतरण और भारतीय हितों को वैश्विक स्तर पर निशाना बनाने पर इन संगठनों की चुप्पी, जबकि किसी भी कथित या मनगढ़ंत अल्पसंख्यक मुद्दे पर ओवर एक्टिव होना, इनके पूर्वाग्रह को उजागर करता है।
This is the full spider web, or the mindmap of the network around CSDS. You can download the high resolution picture (6 MB size) of this mindmap by clicking here.
सीएसडीएस के इर्द-गिर्द फैले नेटवर्क का पूरा मकड़-जाल या माइंडमैप ऊपर दिया गया है। आप इस माइंडमैप का हाई रेजोल्यूशन चित्र (6 MB की फाइल है) यहाँ क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं।
सीएसडीएस और इसके सहयोगी गैर-सरकारी संगठनों, मीडिया प्लेटफॉर्म और वित्तपोषकों का गठजोड़ भारत की संप्रभुता, सांस्कृतिक अखंडता और लोकतांत्रिक वैधता के लिए एक समन्वित वैचारिक चुनौती के रूप में काम करता है। विदेशी फंड व्यवस्थित रूप से अपने शोध, आउटरीच और सक्रियता को सरकारों और वैश्विक व्यवस्था परिवर्तन तथा सामाजिक इंजीनियरिंग में निवेश करने वाले अरबपति फाउंडेशनों से संचालित होते हैं। सीएसडीएस का केस स्टडी यह उजागर करता है कि कैसे “नागरिक समाज” और “शैक्षणिक” संस्थानों को लोकतांत्रिक राज्यों के खिलाफ नैरेटिव युद्ध के औजारों में बदला जा सकता है। भारत को अपनी स्वायत्तता और राष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए, ऐसे संगठनों के एजेंडे, वित्तीय स्रोतों और संबंधों की कड़ी जाँच, नियामक निगरानी और सार्वजनिक जवाबदेही के अधीन होना चाहिए।
रिसर्च टीम:
प्रमुख शोधकर्ता: नूपुर जे शर्मा
शोधकर्ता: आशीष नौटियाल, दिव्यांश तिवारी, प्रारब्ध राय, ध्रुव मिश्रा, रोहित कुमार पांडे, चंदन कुमार
                                                                                                                                      (साभार )

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