साभार: AI-ChatGPT
दिल्ली की हवा फिर से जहर बन चुकी है। अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में आते-आते दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) औसत ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में पहुँच गया है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के ताजा आँकड़ों के मुताबिक दिल्ली के कई इलाकों में AQI सोमवार (20 अक्टूबर 2025) दिवाली की सुबह 400 पार पहुँच गया। यानी दीवाली से पहले ही दिल्ली गैस चेंबर में तब्दील होती जा रही है।पंजाब में जबसे आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है केजरीवाल पार्टी ने पंजाब में पराली जलाने से दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में प्रदूषण की समस्या होने पर पंजाब को आरोपित करना छोड़ दिया, जबकि जब तक वहां कांग्रेस की सरकार थी ये ही केजरीवाल पार्टी दिल्ली में प्रदुषण के पंजाब को कोसती थी।
ऐसा नहीं हैं कि सरकार और अदालतें स्थिति को लेकर निष्क्रिय हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध के बजाए ‘ग्रीन फायरक्रैकर्स’ के उपयोग की अनुमति दी थी। इन पटाखों को वैज्ञानिक रूप से इस तरह बनाया गया है कि इनमें 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषक तत्व उत्सर्जित हों।
साल 2025 में अदालत ने एक बार फिर स्पष्ट किया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में केवल वही ग्रीन फायरक्रैकर्स जलाए जा सकते हैं जो वैज्ञानिक संस्था CSIR-NEERI द्वारा प्रमाणित हों और जिनकी बिक्री और उपयोग केवल तय समय के भीतर ही किए जाएँ।
बढ़ते प्रदूषण का कारण
फिर भी सवाल यह है कि जब दिवाली ‘ग्रीन’ बताई जा रही है तो हवा इतनी जहरीली क्यों है? असल में प्रदूषण के कई स्रोत हैं जो एक साथ मिलकर हवा को जहरीली बना देते हैं। सबसे बड़ा कारण मौसम में बदलाव है। अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में दिल्ली और NCR में तापमान गिरने लगता है, हवा की रफ्तार बहुत धीमी हो जाती है और नमी बढ़ जाती है। ऐसे में प्रदूषक कण ऊपर नहीं उठ पाते और जमीन के पास ही फँस जाते हैं। मौसम विभाग के अनुसार, इस हफ्ते हवा की गति केवल 4 से 6 किलोमीटर प्रति घंटा रही, जिससे प्रदूषण का फैलाव रुक गया।
पराली जलाने से बढ़ा प्रदूषण?
बढ़ते प्रदूषण का दूसरा कारण हर साल की तरह पराली जलाने की घटनाएँ हैं। पंजाब और हरियाणा में किसान धान की फसल के बाद खेतों को साफ करने के लिए पराली जलाते हैं। सैटेलाइन डेटा के अनुसार, पिछले हफ्ते पंजाब में 1200 से ज्यादा आग के मामले दर्ज किए गए जबकि हरियाणा में 400 से अधिक। हवा का रुख अगर उत्तर-पश्चिम दिशा में होता है तो इन इलाकों का धुआँ सीधे दिल्ली की ओर आता है।
दिल्ली में लागू GRAP-2
इसके अलावा दिल्ली के भीतर भी प्रदूषण के कई स्थायी स्रोत हैं। सड़क की धूल, लगातार चल रहे निर्माण कार्य, बढ़ते डीजल जनरेटर और भारी ट्रैफिक- ये सब मिलकर हवा को और गंदा बना रहे हैं। ग्रेडेड रिस्पॉन्सस एक्शन प्लान (GRAP) का स्टेज-2 लागू किया गया है, जिसमें निर्माण स्थलों पर सख्ती, पानी का छिड़काव और कचरा जलाने पर रोक जैसी शर्तें शामिल हैं। लेकिन जमीन पर इन उपायों का असर सीमित ही दिखता है क्योंकि निगरानी और पालन कमजोर है।
पटाखों से बढ़ा दिल्ली का AQI?
अब बात आती है ग्रीन पटाखों की। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बाजार में पारंपरिक पटाखे भी अवैध रूप से बिक रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर 30 प्रतिशत कम प्रदूषण देने वाले पटाखे भी बड़ी मात्रा में जलाए जाएँ तो उनका असर भी बहुत नहीं पड़ता।
नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीन क्रैकर्स तभी प्रभावी हैं जब इनका उपयोग सीमित समय और कम मात्रा में हो। लेकिन दिवाली की रात यह सीमा अक्सर क्रॉस कर जाती है, जिससे हवा में मौजूद कण और गैसें और खतरनाक स्तर पर पहुँच जाती हैं।
क्या दिवाली पर ही प्रदूषण हो सकता है नियंत्रित?
इन सबके बीच सबसे चिंताजनक बात यह है कि हालात हर साल दोहराए जाते हैं। प्रदूषण से निपटने के लिए अस्थायी उपाय जैसे पानी का छिड़काव, ट्रक एंट्री पर रोक और स्कूल करने की बात तो होती हैं लेकिन लंबे समय तक के समाधान पर प्रगति बहुत धीमी है।
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर दिल्ली-NCR को प्रदूषण से राहत चाहिए तो सिर्फ दिवाली पर ही नहीं बल्कि पूरे साल प्रदूषण स्रोतों पर नियंत्रण और हरित नीतियों का पालन करना जरूरी है।
दिवाली के बाद नहीं रहेगा प्रदूषण
इस समय दिल्ली की हवा में पीएम 2.5 स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक से करीब 20 गुना अधिक है। इसका असर बच्चों, बुजुर्गों और सांस की बीमारियों से जूझ रहे लोगों पर सबसे ज्यादा पड़ रहा है। दिवाली के बाद अगर मौसम में ठंड और बढ़ी और हवा की गति कम रही तो स्थित और खराब हो सकती है।
यानि केवल दिवाली पर ही प्रदूषण पर लगाम लगाने की जरूरत नहीं है बल्कि उसके बाद भी है और पूरे साल भी है। तो वे वामपंथी, लिबरल और फेमिनिस्ट, जो भी दिवाली पर प्रदूषण का ठीकरा फोड़ने के लिए सामने आ रही हैं। वे समझ लें कि प्रदूषण को पूरे साल नियंत्रित करने की जरूरत है तो केवल दिवाली पर प्रदूषण रोकने का ज्ञान न दें।
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