| अल फलाह यूनिवर्सिटी का चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी (फोटो साभार: File/Al Falah University) |
दिल्ली में लाल किले के सामने सोमवार(10 नवंबर 2025) को बड़ा धमाका हुआ, जिससे पूरा देश दहल गया। मिनटों में जाँच एजेंसियाँ मौके पर पहुँचीं और उस ब्लास्ट की जाँच शुरू की जिसमें कम से कम 13 लोगों की जान गई।
जिस तरह अल फलाह यूनिवर्सिटी का नाम आतंकवादियों और अन्य विवादों के साथ जुड़ने की वजह से इसकी मान्यता रद्द करने की मांग भी उठ सकती है।
जल्दी ही दिल्ली लाल किला ब्लास्ट और अल-फलाह यूनिवर्सिटी का लिंक सामने आया, क्योंकि धमाका करने वाला आतंकवादी उन तीन मेडिकल डॉक्टर्स का साथी था जो यूनिवर्सिटी से जुड़े थे और हरियाणा पुलिस व जम्मू-कश्मीर पुलिस के जॉइंट ऑपरेशन में गिरफ्तार हुए थे। पुलिस ने दिल्ली ब्लास्ट से कुछ घंटे पहले गिरफ्तार डॉक्टर्स से जुड़े ठिकानों से 2,900 किलो से ज्यादा विस्फोटक बरामद किए थे।
यूनिवर्सिटी की वाइस चांसलर प्रो (डॉ) भूपिंदर कौर ने आखिरकार बयान दिया कि यूनिवर्सिटी का पकड़े गए टेरर मॉड्यूल से कोई लिंक नहीं है, लेकिन यूनिवर्सिटी के चांसलर और फाउंडर जवाद अहमद सिद्दीकी चुप रहे। हैरानी की बात है कि सिद्दीकी का डिजिटल फुटप्रिंट लगभग नहीं है।
ऑपइंडिया ने चांसलर जवाद अहमद सिद्दीकी पर उपलब्ध जानकारी खँगाली और कुछ परेशान करने वाला इतिहास मिला। उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल पर ज्यादा जानकारी नहीं है। ‘अबाउट’ सेक्शन में लिखा है, ‘मैनेजिंग ट्रस्टी: अल-फलाह चैरिटेबल ट्रस्ट 1995 से अब तक, चांसलर: अल-फलाह यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद 2014 से अब तक, मैनेजिंग डायरेक्टर: अल-फलाह इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड 1996 से अब तक।’
सोर्स: लिंक्डइनऑपइंडिया को मिल्ली गजट की जुलाई 2000 की रिपोर्ट में लिखा मिला कि जवाद अहमद सिद्दीकी नाम का शख्स अपने दो भाइयों के साथ तिहाड़ जेल में था क्योंकि अल-फलाह इन्वेस्टमेंट लिमिटेड में निवेशकों को ठगा था। कंपनी की जानकारी देखी तो पता चला कि वो 1992 में रजिस्टर्ड हुई और स्टेटस ‘स्ट्राइक ऑफ’ है, यानी कंपनी बंद हो चुकी है।
सोर्स: लिंक्डइनजौबाकॉर्प पर उपलब्ध जानकारी से पता चला कि कंपनी का सिर्फ एक डायरेक्टर था, जवाद अहमद सिद्दीकी।
सोर्स: लिंक्डइनसिद्दीकी के पुराने डायरेक्टोरियल एसोसिएशन से अल-फलाह एजुकेशन सर्विस प्राइवेट लिमिटेड का लिंक मिला। सिद्दीकी मार्च 2019 तक इस कंपनी के डायरेक्टर थे।
सोर्स: लिंक्डइनअल-फलाह एजुकेशन सर्विस प्राइवेट लिमिटेड की और जानकारी देखी तो दो पुराने डायरेक्टर मिले, जवाद अहमद सिद्दीकी और सऊद अहमद सिद्दीकी।
सोर्स: लिंक्डइनये जानकारी जरूरी थी क्योंकि जब ऑपइंडिया ने मिली गजट में बताए केस को देखा, तो दो नाम थे- जवाद और सऊद। इस केस पर बाद में आएँगे।
अल-फलाह एजुकेशन सर्विस प्राइवेट लिमिटेड और अल-फलाह यूनिवर्सिटी का कनेक्शन जोड़ने के लिए कंपनी का पता चेक किया। वो था ‘अल-फलाह हाउस, 274-ए, जामिया नगर, ओखला, नई दिल्ली।’
सोर्स: लिंक्डइनये वही पता है जो अल-फलाह यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट पर है।
सोर्स: लिंक्डइनहमने ‘jasiddiqui@rediffmail.com’ ईमेल से भी कनेक्शन जोड़ा, जो यूनिवर्सिटी प्रोफाइल वाली कई वेबसाइट्स पर ऑफिशियल ईमेल के तौर पर लिस्टेड है।
सोर्स: लिंक्डइनयूनिवर्सिटी के भारत एजुकेशन पेज पर सिद्दीकी और फरदीन दोनों के ईमेल हैं।
सोर्स: लिंक्डइनये ईमेल आईडी अल-फलाह इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड के जौबाकॉर्प पेज पर भी है, वही कंपनी जो फ्रॉड में शामिल थी।
सोर्स: लिंक्डइनसाफ है कि जो शख्स गिरफ्तार हुआ और लंबे समय तिहाड़ जेल में रहा, वही जवाद अहमद सिद्दीकी है जो अल-फलाह यूनिवर्सिटी चला रहा है।
कंपनी के मौजूदा डायरेक्टर हैं सुफयान अहमद सिद्दीकी और फरदीन बेग। सुफयान अहमद सिद्दीकी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, फरदीन बेग अल-फलाह यूनिवर्सिटी में टीचर हैं और एंटी-रैगिंग कमिटी के मेंबर भी।
सोर्स: लिंक्डइनहमारी रिसर्च में पता चला कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी 2 मई 2014 को हरियाणा प्राइवेट यूनिवर्सिटी (अमेंडमेंट) एक्ट, 2014 से स्थापित की गई, जो हरियाणा विधानसभा ने पास किया। यूजीसी से 5 जनवरी 2015 को सेक्शन 2(एफ) और 12(बी) के तहत मान्यता मिली। एक्सपर्ट कमिटी बनी और इंस्पेक्शन विजिट 29-30 मई 2015 को हुई। बाद में कमियों को पूरा करने पर यूजीसी ने मान लिया।
जवाद अहमद सिद्दीकी 2 साल से ज्यादा जेल में रहा
केस डॉक्यूमेंट्स के मुताबिक, जवाद सिद्दीकी अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज के चेयरमैन-कम-मैनेजिंग डायरेक्टर थे, और सऊद सिद्दीकी (अल-फलाह एजुकेशन सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के पूर्व डायरेक्टर में से एक) उसका डायरेक्टर था। पिटिशनर्स और उनके साथी आरोपियों ने ढेर सारे निवेशकों को अपनी कंपनीज में डिपॉजिट करवाया। कोर्ट ने नोट किया कि उन्होंने 7.5 करोड़ रुपये की रकम गबन की। शिकायत केआर सिंह ने की थी, जिन्हें 95 लाख रुपए का चूना लगाया गया था।
जजमेंट में लिखा था, “आरोप है कि पिटिशनर्स ने ढेर सारे लोगों को अपनी ग्रुप कंपनीज में डिपॉजिट करवाया लेकिन बाद में उनके सिग्नेचर फर्जी करके और डॉक्यूमेंट्स बनाकर उन डिपॉजिट्स को अपनी कंपनीज के शेयर्स में बदल दिया।”
जाँच और एफएसएल रिपोर्ट्स ने कन्फर्म किया कि निवेशकों के सिग्नेचर फर्जी थे। डिपॉजिट कुछ ऐसी कंपनीज के नाम पर लिए गए जो कभी थीं ही नहीं। फिर पैसा आरोपितों के पर्सनल अकाउंट्स में ट्रांसफर हो गया। जब कोर्ट ने ये जजमेंट पास किया, तब तक जवाद 37 महीने और सऊद 38 महीने जेल में थे।
ट्रिब्यून की जून 2004 की रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 में अल-फलाह ग्रुप ऑफ कंपनीज ने अल-फलाह सहकारी आवास समिति बनाई। ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने 1996 में समिति को 10,000 स्क्वायर मीटर अलॉट किए, जहाँ मेंबर्स और शेयरहोल्डर्स के लिए 100 फ्लैट्स बनाने थे। लेकिन कुछ फाइनेंशियल दिक्कतों की वजह से कंस्ट्रक्शन नहीं हुआ और जवाद वगैरह गिरफ्तार हो गए।
जवाद जेल में थे, तब उनके कुछ साथियों ने उन्हें ठगा और उनके सिग्नेचर फर्जी करके 13 करोड़ में कुछ फ्लैट्स बेच दिए। ट्रिब्यून रिपोर्ट में उनकी गिरफ्तारी की खबर छपी थी, जिसमें आरोपित थे एसपी यादव, मंजूर हसन जैदी और संजीव श्रीवास्तव।
जवाद अहमद सिद्दीकी को लेकर ये खुलासे अल-फलाह यूनिवर्सिटी चलाने वालों की विश्वसनीयता और बैकग्राउंड पर गंभीर सवाल उठाते हैं। फ्रॉड और फॉर्जरी के पुराने आरोपों से लेकर टेरर मॉड्यूल से जुड़ा विवाद तक, पैटर्न ऐसा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
यूनिवर्सिटी प्रशासन ने खुद को चल रही जाँच से अलग कर लिया है, लेकिन अल-फलाह की लीडरशिप को संदिग्ध फाइनेंशियल और क्रिमिनल गतिविधियों से जोड़ने वाले सबूत बताते हैं कि अल-फलाह यूनिवर्सिटी और उसके मैनेजमेंट की तेजी से गहरी जाँच जरूरी है।
(साभार :सभी ग्राफ चित्र OpIndia)
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