केंद्रीय जाँच ब्यूरो (CBI) ने 01 दिसंबर 2025 को 1989 के रूबिया सईद अपहरण कांड में नई गिरफ्तारी की है। CBI ने 35 साल बाद इस केस में श्रीनगर के हवाल इलाके से शफत अहमद शुंगलू को धर दबोचा। पहले शुंगलू को निशात पुलिस स्टेशन ले जाया गया, फिर सीबीआई (CBI) ने हिरासत में ले लिया। अधिकारियों का कहना है कि पूछताछ से कई राज खुल सकते हैं।
उस समय यह भी चर्चा थी कि यह तथाकथित अपहरण है। यह सिर्फ आतंकियों को छुड़ाने के लिए ड्रामा था। दादी उसके साथ रह रही है खाना घर से जा रहा है फिर अपहरण कैसा? और इसका किसी ओर से खंडन करने की बजाए चुप्पी साध ली गयी थी। असली कहानी अब आएगी सामने।
देखा जाए तो अपहरण हो या प्लेन हाइजेक इसकी जन्मदाता कांग्रेस ही है। मुफ़्ती मोहम्मद सईद जनता पार्टी से पहले किस पार्टी में था कांग्रेस में। दूसरे, इंदिरा गाँधी को जेल से छुड़ाने के लिए प्लेन हाइजेक किसने करवाया संजय गाँधी ने, संजय गाँधी किस पार्टी में था कांग्रेस। फिर भी महामूर्ख कहते है कांग्रेस अच्छी पार्टी है।
रूबिया अपहरण केस क्या था, जिसने हिला दिया था पूरा देश
शफत अहमद शुंगलू की ताजा गिरफ्तारी रूबिया सईद अपहरण कांड की जाँच को नई जान दे रही है, जो कश्मीर के आतंकवाद के इतिहास का एक काला अध्याय है। 8 दिसंबर 1989 को तब के गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया को जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के आतंकियों ने अगवा कर लिया था।
लाल डीड अस्पताल में डॉक्टर रूबिया बस से घर लौट रही थीं जब बंदूक की नोक पर उन्हें किडनैप कर लिया गया। यह खबर दिल्ली पहुँचते ही हड़कंप मच गया। पूरे देश में सन्नाटा छा गया, क्योंकि यह पहली बार था जब आतंकी केंद्र सरकार के मंत्री के घर तक सेंध लगा बैठे।
अपहरण के पीछे साफ मकसद था- जेल में बंद अपने साथियों को रिहा कराना। आतंकियों ने शर्त रखी: रूबिया की जान चाहिए तो पाँच खूँखार सदस्यों को छोड़ो। सरकार मुश्किल में फँस गई। एक तरफ मंत्री की बेटी की जिंदगी, दूसरी तरफ राष्ट्रीय सुरक्षा। कई दिनों तक पर्दे के पीछे बातचीत चली।
आखिरकार 13 दिसंबर को वीपी सिंह सरकार झुक गई। पाँच आतंकियों को रिहा किया गया, बदले में रूबिया घर लौट आईं। लेकिन इस सौदे ने कश्मीर का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया। विशेषज्ञों का मानना है कि इसी घटना ने आतंकियों के हौसले बुलंद कर दिए।
यासीन मलिक था अपहरण केस का मास्टरमाइंड, खुद रूबिया ने की थी पहचान
इस सौदे के केंद्र में था जेकेएलएफ का चीफ यासीन मलिक। मलिक पर अपहरण का मास्टरमाइंड होने का आरोप है। सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक, दिसंबर 1989 के पहले हफ्ते में मलिक और उसके साथियों ने साजिश रची। रूबिया को निशाना बनाकर सरकार को ब्लैकमेल करने का प्लान था।
मलिक ने खुद को अपहरण की योजना का सूत्रधार बताया। 2022 में रूबिया ने टाडा कोर्ट में मलिक समेत चार आरोपितों की पहचान की। उन्होंने कहा, “यही वो लोग थे जिन्होंने मुझे अगवा किया।” रूबिया का यह बयान केस को मजबूत करने वाला साबित हुआ। “
यासीन मलिक की भूमिका सिर्फ अपहरण तक सीमित नहीं थी। वह जेकेएलएफ का चेहरा था, जो पाकिस्तान समर्थित आतंक को कश्मीर में फैला रहा था। मलिक ने अपहरण को एक राजनीतिक हथियार बनाया। रिहाई के बाद रिहा हुए आतंकी जैसे अली मोहम्मद मीर, मोहम्मद यासिन फतेह और इकबाल अहमद गंदरू ने जेकेएलएफ को नई ताकत दी। मलिक ने इन्हें हथियारों से लैस किया और हमलों की साजिशें रचीं।
मलिक की गिरफ्तारी के बाद दोबारा खुली फाइल
साल 2019 में मलिक की गिरफ्तारी के बाद सीबीआई ने पुरानी फाइलें खोलीं। जनवरी 2024 में मलिक समेत 10 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। इसमें अपहरण, साजिश और बंधक बनाने के आरोप हैं। अब उम्रकैद की सजा काट रहे आतंकी मलिक ने कभी अपराध नहीं माना, लेकिन गवाहों के बयानों ने उसे आखिरकार न्याय के कटघरे में खड़ा कर दिया।
रूबिया अपहरण केस के बाद कश्मीर में हिंदुओं पर हुआ जुल्म
इस अपहरण ने कश्मीर में आतंकवाद को तेजी से बढ़ावा दिया। पहले कश्मीर में अलगाववाद था, लेकिन 1989 के बाद यह हिंसा का सैलाब बन गया। रिहा हुए आतंकियों ने नई भर्तियाँ कीं, हथियारों का जखीरा बढ़ाया। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस सौदे ने आतंकियों को संदेश दिया- सरकार झुक सकती है। नतीजा? 1990 में कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हो गया।
जेकेएलएफ ने हिंदू परिवारों पर हमले किए, हजारों घर जलाए। मलिक पर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार का भी आरोप है। सरकार ने 2019 में जेकेएलएफ को आतंकी संगठन घोषित किया। गृह मंत्रालय ने कहा, “यह संगठन 1989 के पंडित जेनोसाइड, आईएएफ अधिकारियों की हत्या और रूबिया अपहरण के लिए जिम्मेदार है।”
कश्मीर में आई अपहरण की बाढ़, हर तरफ आतंकी ही आतंकी
अपहरण के बाद किडनैपिंग की होड़ लग गई। 1991 में आईएएस अधिकारी ए.के. भट्टाचार्य का बेटा अपहरण हुआ। 1992 में वीसी चिल्टन का बेटा। ये सभी जेकेएलएफ की साजिशें थीं। मलिक ने इनसे फंडिंग और हथियार जुटाए। कश्मीर घाटी में ग्रेनेड हमले, सड़क किनारे बम विस्फोट आम हो गए। 1989 से 1990 के बीच आतंकी घटनाएं दोगुनी हो गईं।
पीआईबी के अनुसार, 1989 में 200 से ज्यादा हमले हुए, जो 1990 में 1000 पार कर गए। मलिक की रणनीति थी- हाई-प्रोफाइल टारगेट चुनो, सरकार को मजबूर करो। इसने अलगाववाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर पाकिस्तान को मजबूत किया।
कश्मीर में आतंकवाद के बढ़ने की वजह सिर्फ अपहरण नहीं, बल्कि मलिक जैसी साजिशें थीं। 1989 के बाद जेकेएलएफ ने आईएएफ के चार अधिकारियों की हत्या की। मलिक पर यह केस भी चल रहा है। एनआईए ने 2019 में मलिक को टेरर फंडिंग में उम्रकैद दी। ओपन मैगजीन के अनुसार, मलिक ने अपहरण से कश्मीर को ‘कॉन्सपिरेटर’ बना दिया।
इस अपहरण कांड के बाद बढ़ा था कश्मीर में आतंकवाद
सीबीआई की यह कार्रवाई दिखाती है कि कानून कभी सोता नहीं। शुंगलू की पूछताछ से बाकी फरार जैसे अली मोहम्मद मीर तक पहुँच बन सकती है। मलिक की साजिश ने कश्मीर को आग में झोंक दिया, लेकिन अब न्याय की बारी है। कश्मीर के इतिहासकार कहते हैं कि अपहरण ने ‘अलगाववाद से आतंकवाद’ का रास्ता खोला। 1990 में 1 लाख पंडित बेघर हुए। जेकेएलएफ ने 1000 से ज्यादा हमले किए। मलिक ने पाकिस्तान से ट्रेनिंग ली, हथियार मँगवाए।
बहरहाल, ताजा गिरफ्तारी से केस में नया मोड़ आ गया है। शफत अहमद शुंगलू पर अपहरण में सहयोग का आरोप है। एक चश्मदीद गवाह ने कहा, “मैंने 1989 के बाद सोपोर में शुंगलू को देखा।” कुछ आरोपित धारा 164 के तहत जुर्म कबूल कर चुके हैं। वहीं, सीबीआई इस केस को टाडा कोर्ट में चला रही है। जिसमें जनवरी 2021 में कोर्ट ने मलिक समेत 10 के खिलाफ आरोप तय किए थे। अब अगली सुनवाई में शुंगलू की भूमिका खुल सकती है।
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