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पाकिस्तान से अलग होना चाहता है सिंध, बलूचिस्तान, गिलगित…: क्या रिपीट होगा ‘बांग्लादेश’ वाला चैप्टर, इस्लामी मुल्क में चल रहीं आजादी की कितनी लड़ाई

                           सिंध, बलूचिस्तान और गिलगित, यह सभी राज्य पाकिस्तान से आजादी चाहते हैं
"Operation Sindoor" से बहुत पहले से NSA प्रमुख डोभाल और अन्य कहते रहे हैं कि PoK अपने आप भारत में आएगा। दूसरे, पाकिस्तान के और भी टुकड़े होंगे। लेकिन 
"Operation Sindoor" के चलते उम्मीद की जा रही थी कि PoK पर भारत अपना कब्ज़ा कर लेगा। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कूटनीति के चलते ऐसा नहीं किया। अगर मोदी ने ऐसा कर लिया होता आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई दूसरा मोड़ लेकर आतंकवाद के मुद्दे को हवा-हवाई कर देता। और विपक्ष ही नहीं सारा देश मोदी से यही पूछता कि "धर्म पूछकर उनकी पैंट खोलकर धर्म देखकर सुहागनों के उजाड़ने वालों से बदला क्यों नहीं लिया।" परन्तु जानकारों के साथ राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही है कि मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं। 

राहुल गाँधी और इसके पिछलग्गू पार्टियां उल्टे-पुल्टे बयान देकर पाकिस्तान के लाडले बने हुए हैं। किसी में राहुल या कांग्रेस से यह पूछने की हिम्मत नहीं कि चीन के साथ क्या MoU हुआ है, दूसरे सोनिया गाँधी कश्मीर विरोधी कमेटी की co-chairman क्यों हैं? आखिर मोदी का विरोध करने के चक्कर में देश का क्यों विरोध किया जा रहा है? मोदी सरकार ने अपने विरोधियों को दूसरे देशों में "Operation Sindoor" के बारे में भेज जो खेल खेला है उसे भी राहुल और इसके समर्थक बिलकुल भी नहीं समझ पा रहे। जो इन सबकी मंदबुद्धि का जीता-जागता सबूत है। मोदी द्वारा भेजे इस delegation के बहुत दूरगामी परिणाम होने वाले हैं। जिसे मोदी विरोधी तो क्या गोदी-मीडिया कहलाए जाने वाला मीडिया भी खामोश है। जिस तरह पाकिस्तान सेना ने मन्दिरों और गुरुद्वारों पर बमबारी की है अगर वही बमबारी मस्जिदों और दरगाहों पर हुई होती सारे चैनल अपनी TRP बढ़ाने खूब चर्चाएं कर रहे होते।   

खैर, भारत में आतंकी भेजने और पहलगाम में निर्दोषों की हत्या के लिए खाद पानी देने वाला पाकिस्तान खुद विभाजन की तरफ बढ़ रहा है। भारत से युद्ध की गीदड़भभकी देने वाले पाकिस्तान में लगातार कई समूह आजादी की लड़ाई तेज कर रहे हैं। खराब आर्थिक हालातों से जूझता पाकिस्तान इन आवाजों को दबाने में भी विफल है।

पाकिस्तान में सिंधी, बलूच और पश्तून समुदाय लंबे समय से आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह अपना अलग देश बनाना चाहते हैं। इन समुदायों का पाकिस्तान और उसकी फ़ौज लगातार शोषण करती आई है। इनसे लगातार भेदभाव किया जाता है।

 भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए सैन्य तनाव के बीच, बलोच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तान से आजादी के लिए अपने आंदोलन को दोबारा चालू कर दिया है। उन्होंने अपनी आजादी की घोषणा भी कर दी है। बलूचों के अलावा अब पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भी आजादी की माँग उठी है।

सिंध प्रांत को पाकिस्तान से आजाद करके सिंधु देश के अलग देश के निर्माण की माँग करने वाले संगठन ‘जय सिंधु स्वतंत्रता आंदोलन’ (JSFM) ने भी पाकिस्तान सरकार के खिलाफ अपने आजादी के अभियान को तेज कर दिया है।

इसके अलावा पश्तूनिस्तान नामक अलग देश की माँग करने वाली आवाजें भी उठी हैं। पश्तूनिश्तान की माँग करने वाले खैबर पख्तूनख्वा और उत्तरी बलूचिस्तान के हिस्सों को पाकिस्तान से अलग करके अपना देश बनाना चाहते हैं।

बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई

भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव के दौरान BLA ने पाकिस्तान से आजादी की घोषणा की और संयुक्त राष्ट्र से बलूचिस्तान के लोकतांत्रिक गणराज्य को मान्यता देने का आग्रह किया। काफी कम आबादी वाले और प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बलूचिस्तान लम्बे समय से उग्रवाद से जूझ रहा है।
ऐतिहासिक रूप से, बलूचिस्तान ‘खान ऑफ कलात’ के अधीन एक स्वतंत्र देश था। हालाँकि, भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद यह मार्च 1948 में यह पाकिस्तान में शामिल हो गया। खान ऑफ कलात ने दबाव में आकर अपनी और बलूच समुदाय की इच्छा के विरुद्ध विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए थे।
इससे पहले 11 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों की निगरानी में कलात और पाकिस्तान के बीच एक स्टैंडस्टिल समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते में कलात को एक स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी गई थी। कलात को ही अब बलूचिस्तान के नाम से जाना जाता है।
1948 में समझौते के बावजूद पाकिस्तान ने खान ऑफ कलात को बलूचिस्तान को पाकिस्तान में विलय करने के लिए मजबूर किया। पाकिस्तान चाहता था कि बलूचिस्तान उसमे शामिल हो जाए। इस विलय के बाद से बलूचिस्तान में पाँच बार विद्रोह हो चुके हैं।
यह विद्रोह 1948, 1958, 1962, 1973-77 में हुए हैं। इसके बाद 2000 से चालू हुई लड़ाई आज तक जारी है। बलूच खुद को राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने, हिंसक और यातनापूर्ण दमन और संसाधनों के दोहन के चलते हथियार उठाने पर मजबूर हैं।
बलूचिस्तान की आजादी की लड़ाई का नेतृत्व अब BLA कर रही है। हाँलाकि, पाकिस्तान की 2009 में शुरू की गई नीति ‘मारो और फेंको’ के चलते इसके सदस्य लगातार मारे जा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग गायब भी किए गए हैं। हजारों की संख्या में लोगों को पाकिस्तान की फ़ौज ने उठाया और वह फिर कभी वापस नहीं लौटे।

सिंध भी चाहता है स्वतंत्रता

पाकिस्तान के सिंध प्रांत की आजादी की माँग ‘जय सिंधु स्वतंत्रता आंदोलन’ (JSFM) द्वारा की जा रही है। जो सिंधु देश के एक अलग देश के गठन की वकालत करता रहा है। सिंध के लोगों की लंबे समय से माँग रही है कि सिंध का एक अलग स्वतंत्र देश हो।
अल्पसंख्यक सिंधी समुदाय ने इस्लामी मुल्क पाकिस्तान पर उर्दू थोपने और जमीन हड़पने के आरोप लगाए हैं। सिंधियों का कहना है कि पाकिस्तान उनकी स्थानीय संस्कृति को मिटा रहा है। पिछले कुछ सालों में पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा कई स्वतंत्रता समर्थक कार्यकर्ताओं को न सिर्फ मारा और प्रताड़ित किया गया है बल्कि जबरन गायब भी कर दिया गया है।

पश्तूनिश्तान की लड़ाई भी हुई तेज

पंजाबियों के बाद पश्तून पाकिस्तान में दूसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है। ये पाकिस्तान की कुल आबादी का 15% हिस्सा हैं। यह समुदाय भी भेदभाव और उत्पीड़न के कारण एक स्वतंत्र देश की माँग कर रहा है।
पश्तूनों की बड़ी आबादी पाकिस्तान के पश्चिमी इलाके में रहती है। यह इलाका पश्तूनिस्तान अख्लाता है। इसका कुछ हिस्सा पाकिस्तान और कुछ हिस्सा अफगानिस्तान में आता है। पाकिस्तान और अफगान पश्तूनों ने 1893 में बनाई गई डूरंड लाइन के सीमांकन को खारिज किया है। यह सीमा अब अफगानिस्तान और पाकिस्तान को विभाजित करती है।
पश्तूनों का कहना है दोनों तरफ उनके लोग रहते हैं, ऐसे में वह इस सीमा को नहीं मान सकते। हाल के दिनों में पश्तून समुदाय के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व पश्तून तहफुज मूवमेंट (PTM) ने किया है। इसके मुखिया मंजूर पश्तीन हैं। मंजूर पश्तीन की आवाज भी लगातार पाकिस्तान दबाता रहा है।
लोगों की माँगों को उठाने के लिए बनाया गया PTM एक सामाजिक आंदोलन है। यह पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी फ़ौज की मनमानी और हर तरह के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाता है। इसके भी कई कार्यकर्ताओं को पाकिस्तान की फ़ौज ने यातनाएँ दी हैं।

गिलगित और बाल्टिस्तान में भी उठी आवाज

पाकिस्तानी फौज को गिलगित-बाल्टिस्तान में रहने वाले लोगों से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। गिलगित-बाल्टिस्तान उस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का हिस्सा है, जिसे पाकिस्तान ने अवैध रूप से कब्जा रखा है।
प्राकृतिक और भौगोलिक रुप से सुंदर इस क्षेत्र को पाकिस्तानी सरकार द्वारा नजरअंदाज किया गया है। गिलगित-बाल्टिस्तान रणनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र है, क्योंकि यह उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान कॉरिडोर, उत्तर-पश्चिम में चीन के शिनजियांग प्रांत, पूर्व में लद्दाख और दक्षिण में कश्मीर से घिरा हुआ है।
पाकिस्तानी सरकार की लापरवाही के कारण इस क्षेत्र में रहने वाले लोग मुश्किलों से भरी जिंदगी जीने के लिए मजबूर हैं। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं के साथ-साथ विकास का भी अभाव है। यहाँ के स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी फ़ौज पर उनकी जमीनों पर अवैध कब्जा करने का आरोप लगाया है।
धार्मिक आधार पर भारत को विभाजित करके बनाए गए इस्लामी देश पाकिस्तान में कई अलगाव की आवाजें उठती आई हैं। इसका कारण पाकिस्तान की अपनी कोई पहचान नहीं होना है। पाकिस्तान के चार प्रदेशों में रहने वाले लोगों को लगातार प्रताड़ित किया जाता है।
इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण यह है कि पाकिस्तान को उसकी जनता द्वारा चुनी गई सरकार नहीं बल्कि फ़ौज चलाती है। यह फ़ौज इस्लाम के आधार पर चलती है। पाकिस्तानी फ़ौज के हाथों मारे जाने के डर के चलते सिंधी हो या बलूच, सभी आजादी चाहते हैं।
आजादी की यह चिंगारी उत्तर में गिलगित बाल्टिस्तान से लेकर अफगान सीमा पर FATA और सिंध तथा बलूचिस्तान तक लग चुकी है। यह कोई पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान की फ़ौज किसी जातीय समूह पर अपनी इस्लामी थोप रही हो।
इससे पहले पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगाली लोगों के खिलाफ पाकिस्तानी फ़ौज द्वारा इसी तरह की दमनकारी नीतियाँ लागू की गई थी। इसकी वजह से 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम हुआ और बांग्लादेश के रूप में एक स्वतंत्र देश का गठन हुआ। इस बार लगी चिंगारी का अंत भी पाकिस्तान के नए विभाजनों के रूप में नजर आ रहा है।

‘PoK पर हमारा अधिकार नहीं’ ; बताया ‘विदेशी क्षेत्र’ : इस्लामाबाद हाई कोर्ट

     कश्मीर का पुराना नक्शा, और पाकिस्तान के मौजूदा प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ, प्रतीकात्मक  (साभार : जागरण)
भारत में जब PoK को वापस लेने की बात होने फ़ारूक़ अब्दुल्ला जैसे पाकिस्तान परस्त नेता पाकिस्तान के nuclear से डराने का दुस्साहस करते हैं। एक चुनावी रैली में अब्दुल्ला ने PoK वापस लेने पर कहा "पाकिस्तान ने चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं।" जिसके जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "कोई बात नहीं हम पहना देंगे।" दरअसल गुलामी मानसिकता में ज़िंदगी जीने वाले क्या जाने खुली हवा में जीने में कितना मजा आता है। अब भारत में पल रहे पाकिस्तान परस्त किसकी गुलामी में ऐसी बकवास कर लोगों को डराने की कोशिश कर रहे हैं? अगर अभी भी इन लोगों ने अपने खून से पाकिस्तान परस्ती नहीं निकाली, वह दिन भी अब दूर नहीं रहने वाला जब इन लोगों को इनके आकाओं के पास भेज दिया जाएगा, लेकिन वह भी ठोकर मार एक दिन भी इन्हे अपने यहाँ रखने वाले नहीं, यानि इनकी दुर्गति निश्चित है। 
पाकिस्तान की सरकार ने अदालत में ये मान लिया है कि उसके कब्जे वाले कश्मीर यानी PoK पर उसका कोई कानूनी हक़ नहीं है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान पाकिस्तान सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि जिस व्यक्ति की तलाश की जा रही है, वो अभी ‘आजाद कश्मीर’ में एक मामले में न्यायिक हिरासत में है। चूँकि ‘आजाद कश्मीर’ हमारा नहीं है, इसलिए उसे हम पेश नहीं कर सकते। वो ‘विदेशी जमीन’ पर है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस्लामाबाद हाई कोर्ट में पाकिस्तान सरकार के वकील ने कहा कि ‘आजाद’ कश्मीर हमारी ज़मीन नहीं है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट में इस्लामाबाद से अगवा कवि अहमद फराद के मामले में सुनवाई चल रही थी। इस दौरान सरकार के वकील ने कहा कि कवि अहमद फराद इस वक्त ‘आजाद’ कश्मीर में 2 जून तक की रिमांड पर हैं। सरकारी वकील के इस दावे पर हाई कोर्ट ने भी हैरान जताई है और पूछा कि अगर आजाद कश्मीर एक विदेशी क्षेत्र है, तो फिर पाकिस्तानी रेंजर्स वहाँ कैसे पहुँच गए। कोर्ट में इस मामले में अभी सुनवाई जारी रहेगी।

पाकिस्तान ने अपने कब्जे वाले कश्मीर को दुनिया को दिखाने के लिए 2 टुकड़ों में बाँटा है। एक को वो आजाद कश्मीर कहता है, जिसके राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री भी होते हैं। इसकी राजधानी मुजफ्फराबाद है। तो दूसरे पर वो गिलगित-बाल्टिस्तान एजेंसी के नाम से राज करता है। कुछ समय पहले पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान के क्षेत्र को लेकर कुछ कानूनी बदलाव भी किए थे।

पाकिस्तान की कोशिश रहती है कि वो कश्मीर को अलग देश के तौर पर दिखाए, लेकिन उसका दोगलापन उसे हर बार एक्सपोज कर देता है। एक तरफ वो भारत के कश्मीर में आजादी के नारे लगवाता है, तो दूसरी तरफ अपने कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके को दो हिस्सों में बाँटकर राज करता है। हालाँकि भारत सरकार ने हमेशा कहा है कि पूरा कश्मीर भारत का है और भारत उसे लेकर रहेगा। ऐसे में इस्लामाबाद हाई कोर्ट में पाकिस्तान के सरकारी वकील के कबूलनामे ने पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत के कानूनी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य दावे को भी मजबूत कर दिया है।

पाकिस्तान से आजाद होकर गिलगित-बाल्टिस्तान भारत में मिलने के लिए तैयार, लहराया तिरंगा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विजन से जम्मू-कश्मीर में पर्यटन को पंख लगे। पर्यटन बढ़ने से लोगों के लिए रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़े। इसके साथ ही प्रदेश में निवेश बढ़ा है और विकास के अनेक काम किए जा रहे हैं। इससे वहां के लोगों में समृद्धि आ रही है। वहीं पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानि POK और गिलगित-बाल्टिस्तान भी पाकिस्तान की तरह भीषण आर्थिक संकट से गुजर रहा है। POK और गिलगित-बाल्टिस्तान में एक तरफ जहां आटा और दाल के लिए मारामारी चल रही है, वहीं गिलगित बाल्टिस्तान में हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए हैं और भारत में मिलने की मांग कर रहे हैं। लिहाजा, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके), गिलगित-बाल्टिस्तान (जीबी) फिर से सुर्खियां बटोर रहा है और यहां के निवासी पाकिस्तान सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के खिलाफ भारी प्रदर्शन कर रहे हैं। पाकिस्तान की सरकार ने इन क्षेत्रों के लोगों के साथ भारी भेदभाव और शोषण किया है, लिहाजा अब यहां के निवासियों के सब्र ने जवाब दे दिया है और आए दिन प्रदर्शन होते रहते हैं।

1947 में जम्मू-कश्मीर गिलगित-बाल्टिस्तान सहित भारत का अभिन्न अंग बना
ब्रिटेन सरकार ने गिलगित के क्षेत्र को जम्मू-कश्मीर के राजा के पास से 60 सालों के लिए पट्टे पर ले लिया जो वर्ष 1995 में समाप्त होना था। इस सीमा क्षेत्र की देख-रेख के लिए ब्रिटेन ने गिलगित स्काऊट का निर्माण किया जिसमें केवल अंग्रेज अधिकारी ही थे तथा इसका प्रबंधकीय नियंत्रण कर्नल बिकन के सुपुर्द किया गया था। जुलाई 1947 में ब्रिटेन-भारत सरकार के समय से पहले अनुबंध को रद्द कर यह इलाका वापस जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के सुपुर्द कर दिया गया। एक अगस्त 1947 को डोगरा शासन की रियासत की सेना में ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को गिलगित -बाल्टिस्तान में गवर्नर नियुक्त किया गया। बाकी की रियासतों के जैसे ही जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भी भारत में शामिल होने के लिए समझौता किया। जिसकी पुष्टि गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया लार्ड माऊंटबैटन ने 27 अक्तूबर को की। इस तरह जम्मू-कश्मीर गिलगित-बाल्टिस्तान सहित भारत का अभिन्न अंग बन गया।
पाकिस्तान ने कैसे किया कब्जा?
26 अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने 1947 के जम्मू नरसंहार के साथ-साथ 1947 में कबीलों के भेष में घुसे पाकिस्तानी सैनिकों के आक्रमण के बाद भारत में शामिल होने के एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए थे। उस वक्त गिलगित, जो एक स्वतंत्र देश था, उसकी बड़ी आबादी, भारत में विलय के पक्ष में नहीं थी। जबकि क्षेत्र के निवासियों ने स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद पाकिस्तान में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की थी, वहीं पड़ोसी देश ने जम्मू और कश्मीर के साथ अपने क्षेत्रीय लिंक का हवाला देते हुए इस क्षेत्र में विलय नहीं किया। अब पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति को देखते हुए यहां के निवासी भारत के साथ पुनर्मिलन की मांग कर रहे हैं।
भारत के लिए क्यों अहम है गिलगित-बाल्टिस्तान
भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, “भारत की उत्तर दिशा में विकास की यात्रा गिलगित और बाल्टिस्तान पहुंचने के बाद पूरी होगी।” जब रक्षा मंत्री ने यह बयान दिया, तो वह 1994 के एक प्रस्ताव का जिक्र कर रहे थे, जो संसद में पारित किया गया था और जिसमें कहा गया था कि भारत इन क्षेत्रों को वापस हासिल करेगा। गिलगित बाल्टिस्तान को अक्सर जीबी के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो अपने शानदार ग्लेशियरों के लिए प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में ही इंडस नदी बहती है, जिससे पाकिस्तान को करीब 75 प्रतिशत जल की आपूर्ति होती है।
गिलगित-बाल्टिस्तान में रैली में फहराया तिरंगा

भारत में जम्मू-कश्मीर में समृद्धि और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में बदहाली को देखते हुए वहां के लोगों में गुस्सा चरम पर पहुंच गया है। पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में इन दिनों घमासान मचा है। कट्‌टरपंथी सुन्नी संगठनों और पाकिस्तानी सेना के दमन के खिलाफ अल्पसंख्यक शियाओं ने विद्रोह कर दिया है। उनका कहना है कि वे अब पाकिस्तानी फौज की हुकूमत वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में नहीं रहना चाहते हैं, वे भारत में मिलना चाहते हैं। अब तो आलम यह है कि वहां रैलियों में तिरंगा भी फहराया जाने लगा है।

पाकिस्तान को कुत्ता कहना कुत्ते की तौहीन है!

गिलगित-बाल्टिस्तान में अब शिया संगठन फौज के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पाकिस्तान के खिलाफ वहां रैलियों अब तो ये नारे सुनाई देने लगे हैं- पाकिस्तान को कुत्ता कहना कुत्ते की तौहीन है। वह भी पुलिस की मौजूदगी में में हिरासत में लिए जाने के बाद भी लोग ये नारे लगा रहे हैं। भारत से लगभग 90 किलोमीटर दूर स्कर्दू में शिया समुदाय के लोग भारत की ओर जाने वाले कारगिल हाइवे को खोलने की मांग पर अड़ गए हैं। उनका कहना है कि वे अब पाकिस्तानी फौज की हुकूमत वाले गिलगित-बाल्टिस्तान में नहीं रहना चाहते हैं, वे भारत में मिलना चाहते हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान की लगभग बीस लाख की आबादी में से आठ लाख शियाओं के बगावती तेवरों को देखते हुए पाकिस्तानी फौज के 20 हजार अतिरिक्त जवानों को तैनात किया गया है।

भारत में मिलने के लिए लगातार हो रहे प्रदर्शन, लग रहे नारे

गिलगित बाल्टिस्तान से जो वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, उन वीडियो में गिलगित बाल्टिस्तान के लोग लद्दाख में भारत के साथ पुनर्मिलन की मांग कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में यहां के निवासियों में भारी असंतोष और गुस्सा देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में गिलगित-बाल्टिस्तान में एक विशाल रैली दिखाई गई है, जिसमें कारगिल सड़क को फिर से खोलने और भारत के केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के कारगिल जिले में मिलने की मांग की जा रही है। लोगों का कहना है, कि वो भारत में मिलना चाहते हैं, क्योंकि पाकिस्तान में उनके साथ भीषण शोषण किया जा रहा है।

 आर्थिक संकट से जूझ रहे लोग कर रहे पाक विरोधी प्रदर्शन

पाकिस्तान एक बड़े आर्थिक संकट से जूझ रहा है और देश भर के लोग गुज़ारे के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश में बुनियादी जरूरतों के लिए लोगों को परेशान होना पड़ता है और आटा खरीदना भी पाकिस्तान के लोगों के लिए एक विलासिता बन गई हैं, क्योंकि देश में आटा की कमी है इसके दाम इतने बढ़ गए हैं कि आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। लिहाजा, गिलगित बाल्टिस्तान के लोग हजारों-हजार की संख्या में सड़कों पर आ गए हैं और कश्मीर घाटी में जाने वाले एक पारंपरिक मार्ग को व्यापार के लिए खोलने की मांग कर रहे हैं।
पाकिस्तानी फौज को दहशतगर्द बताया
पाकिस्तान की फौज के खिलाफ शियाओं मे नारा लगाया- ये जो दहशतगर्दी हैं, उसके पीछे ‘वर्दी’ है। गिलगित-बाल्टिस्तान में शियाओं का आरोप है कि पाक सेना 1947 के बाद से यहां से शियाओं को भगा रही है। सेना ने यहां सुन्नी आबादी को बसाया। कभी शिया बहुल रहे क्षेत्र में अब शिया अल्पसंख्यक हो गए हैं। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि सेना भी यहां शिया बहुल क्षेत्रों में जाने से कतरा रही है। धारा 144 लगाने के बावजूद स्कर्दू, हुंजा, दियामीर और चिलास में शिया संगठनों का प्रदर्शन जारी है। मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। जनरल जिया उल हक से लेकर पाकिस्तान की सत्ता में बैठे हर एक नेता ने इस इलाके की डेमोग्राफी बदलने की कोशिश की है।
बेरोजगारी और महंगाई से तंग लोगों में बेचैनी
पाकिस्तान सरकार की दमनकारी तथा भेदभावपूर्ण नीतियां, बेरोजगारी तथा महंगाई से तंग लोगों के अंदर बेचैनी तथा खौफ है। उल्लेखनीय है कि गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय लोगों ने उनकी जमीनों पर नाजायज कब्जों, खाद्य सामग्री पर सब्सिडी की बहाली, पावरकट तथा प्राकृतिक स्रोतों के शोषण तथा जन आंकड़ों में तब्दीली जैसे मुद्दों को लेकर कई दिनों से पाकिस्तान सरकार के खिलाफ जबरदस्त प्रदर्शन जारी रखा हुआ है। इससे साफ है कि अब गिलगित-बाल्टिस्तान के नागरिक भारत के साथ मिलना चाहते हैं।
गिलगित-बाल्टिस्तान दिल्ली सल्तनत का हिस्सा था
गिलगित-बाल्टिस्तान दिल्ली सल्तनत का हिस्सा था। सोलहवीं सदी में यह मुगल साम्राज्य में चला गया। वर्ष 1757 में एक इकरारनामे के तहत इस उत्तरी क्षेत्र का अधिकार पद मुगलों से अहमद शाह दुरानी ने ले लिया तथा यह अफगानिस्तान का हिस्सा बन गया। वर्ष 1819 में महाराजा रणजीत सिंह ने अफगानियों के ऊपर हमला कर इस क्षेत्र को अपने अधीन ले लिया। जब वर्ष 1935 में रूस ने कश्मीर से लगते क्षेत्र शिनजियांग के ऊपर जीत प्राप्त की तथा फिर यह इलाका ब्रिटेन के लिए विशेष महत्वपूर्ण हो गया। वास्तव में 1846 के आसपास इस हिस्से ने भी जम्मू-कश्मीर शहंशाही रियासत का दर्जा हासिल किया।
चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान से लगती है गिलगित बाल्टिस्तान की सीमा
पाकिस्तान के उत्तर में पड़ते नाजायज कब्जे वाले 72,791 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के भीतर गिलगित एजेंसी, लद्दाख प्रशासन का जिला बाल्टिस्तान तथा पहाड़ी रियासतें हुंजा और नगर को मिलाकर इसका नाम गिलगित-बाल्टिस्तान रखा गया है। इसको 14 जिलों में बांटा हुआ है तथा इसकी कुल आबादी पिछली जनगणना के अनुसार 12.5 लाख के करीब है। उत्तर की ओर इसकी सीमा अफगानिस्तान तथा उत्तर-पूर्व की ओर इसकी सीमा चीन के मत के अनुसार स्वायत: राज्य शिनजियांग के साथ लगती है। पश्चिम की ओर पाकिस्तान का अशांत उत्तर-पश्चिमी फ्रंटियर क्षेत्र पड़ता है। इसके दक्षिण में पाक अधिकृत कश्मीर तथा दक्षिण पूर्व की ओर जम्मू-कश्मीर की सरहद लगती है।