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कांग्रेसी राज्यों में घोर लापरवाही, सैकड़ों वेंटिलेटर साल भर से डिब्बों में पड़े हुए हैं बंद

जैसाकि पिछले लेखों में भी लिखा है कि मोदी विरोधियों को कोरोना से जनता को बचाने की चिंता से अधिक मोदी विरोध की चिंता है। ये जन विरोधी आपदा में अवसर तलाश रहे हैं, जनता मरती है मरे, हमें लाशों पर ओछी राजनीति कर मोदी विरोध करना है। ऐसे विरोध का क्या लाभ कि जिस मोदी का तुम लोग विरोध कर रहे हो, उस व्यक्ति ने तो पहले से ही सबको वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और वैक्सीन उपलब्ध करवा रखी हैं। लेकिन उनका प्रयोग न करने की बजाए जनता को क्यों मौत के मुंह धकेल ओछी सियासत की जा रही हैं। केंद्र की मोदी सरकार को चाहिए कि जीवनरक्षक उपकरणों का प्रयोग न करने वालों के विरुद्ध कोर्ट में आपराधिक मामला दर्ज करना चाहिए।   
कोरोना संकट काल में जब देश को एकजुट होकर इस महामारी से लड़ने की जरूरत है। कांग्रेस राजनीति करने से बाज नहीं आ रही है। कोरोना शुरू होने के समय से ही कांग्रेस का नकारात्मक रवैया रहा है। कांग्रेसी राज्यों ने पहले लॉकडाउन का विरोध किया, टीकाकरण पर सवाल उठाए लेकिन जब राज्य में मामले बढ़ने लगे तो उन्होंने अपने राज्यों में लॉकडाउन के साथ टीके भी लगवाए। कोरोना संकट काल के एक साल के दौरान कांग्रेसी राज्यों ने हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पर कोई काम नहीं किया। इसके उलट अपनी नाकामी पर से ध्यान हटाने के लिए कांग्रेसी नेताओं ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेटे राहुल गांधी ने अब वेंटिलेटर को लेकर केंद्र सरकार पर आरोप लगाए हैं। लेकिन आपको यह जानकारी हैरानी होगी कि कांग्रेस शासित राज्य वेंटिलेटर का सही इस्तेमाल ही नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस शासित राज्यों में वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं। केंद्र सरकार की ओर से मिले वेंटिलेटर तो कई राज्यों में अभी तक डिब्बों में ही पैक हैं। कई राज्यों में इसे अभी तक इंस्टाल भी नहीं कराया गया है। इसकी शिकायत मिलने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को एक हाईलेवल मीटिंग में निर्देश दिया कि केंद्र सरकार की ओर से मुहैया कराए गए वेंटिलेटर्स की इंस्टालेशन और ऑपरेशन का तत्काल ऑडिट किया जाना चाहिए।

केंद्र सरकार और पीएम केयर्स फंड से पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान और झारखंड जैसे राज्यों के कई अस्पतालों में वेंटिलेटर धूल खा रहे हैं। इन वेंटिलेटर का सही तरीके से उपयोग नहीं किया गया है। कोरोना संकट काल में जहां रोज सैकड़ों मरीज दम तोड़ रहे हैं आप यह जानकर सन्न रह जाएंगे कि पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड के ज्यादातर अस्पतालों में या तो ये वेंटिलेटर अभी तक इंस्टॉल ही नहीं किए गए हैं या फिर स्टाफ की जरूरी ट्रेनिंग तक नहीं हुई है। जहां वेंटिलेटर लगाए गए हैं और स्टाफ भी है, वहां डॉक्टर इसे सही से चला नहीं पा रहे हैं।


राजस्थान

कांग्रेसी राज्य किस तरह से काम करते है इसका नमूना आप राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ से देख सकते हैं। राजस्थान को पिछले साल पीएम केयर्स फंड से करीब डेढ़ हजार वेंटिलेटर मिले। लेकिन अभी तक ये वेंटिलेटर इंस्टॉल तक नहीं हुए हैं, जबकि कई जगह स्टॉफ को सही ट्रेनिंग ना मिलने से वे इसे ठीक से चला नहीं पा रहे हैं जिससे कारण वे वेंटिलेटर को लेकर शिकायत कर रहे हैं। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, गहलोत सरकार का कहना है कि इन 1500 वेंटिलेटरों में से 230 खराब हैं। लेकिन कांग्रेस सरकार की कार्य प्रणाली आप इससे समझ सकते है कि कोरोनो संकट काल में लगातार रोज हो रही मौतों के बाद भी साल भर से ना तो रिपेयरिंग हुई है, ना ही इन्हें बदला गया है।

राजस्थान के जोधपुर में पीएम केयर्स फंड से मिले 100 में से एक वेंटिलेटर को भी चालू नहीं किया गया। इसके साथ ही पहले से खरीदे गए 164 वेंटिलेटर भी काम नहीं कर रहे। इसी तरह जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में इस साल फरवरी में 50 वेंटिलेटर लगाए गए थे। लेकिन इसे इस महीने पहले ही पहली बार इस्तेमाल में लाया गया। पिछले 6 महीनों से यहां 18 अन्य वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इसी तरह, अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी वेंटिलेटर खराब हैं। जयपुरिया में एक साल से 7 वेंटिलेटर, कांवटिया में 2, गणगौरी में 6 वेंटिलेटर खराब हैं। इसी तरह कोटा में मेडिकल कॉलेजों को 138 वेंटिलेटर दिए गए थे। इनमें से 65 वेंटिलेटर या तो इंस्टाल नहीं किए गए या फिर इनमें कमी बताकर इन्हें हटा दिया गया। उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज को 95 वेंटिलेटर मिले थे, जो एक साल तक स्टोर हाउस में बंद रहे। 

इतना ही नहीं भरतपुर के रायबहादुर अस्पताल को पीए केयर्स फंड से मिले 20 वेंटिलेटर को किराये पर निजी अस्पताल को दे दिया गया। अस्पताल प्रशासल के अनुसार सरकारी अस्पताल में इसका उपयोग नहीं हो पा रहा था इसलिए इसे लीज पर दे दिया गया। कोरोना महामारी के समय जब प्रतिदिन सैकड़ों लोग मर रहे हैं। कांग्रेसी सरकार की इस उदासीसना को आप क्या कहेंगे।


पंजाब

कोरोना की दूसरी लहर में एक तरह जहां पंजाब में बुनियादी ढांचे की कमी के कारण बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं, वहीं सैकड़ों वेंटिलेटर गोदाम में धूल फांक रहे हैं। केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्य के लिए 290 वेंटिलेटर भेजे थे, लेकिन अभी तक इन वेंटिलेटर को डिब्बे से निकाला भी नहीं गया है। पंजाब सरकार ने इन वेंटिलेटर को राज्य के अस्पतालों में भेजे ही नहीं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार राज्य के मेडिकल कॉलेजों और अन्य अस्पतालों से इसकी कोई मांग नहीं की गई, इसलिए ये पड़े हुए हैं। बताया जा रहा है कि अस्पतालों के पास इन वेंटिलेटर को चलाने लायक प्रशिक्षित लोग नहीं हैं। साल भर से कांग्रेस सरकार लोगों को इसे चलाने के लिए प्रशिक्षित भी नहीं कर पाई। ट्रिब्यून की खबर के अनुसार आपको यह जानकर भी ताजज्बु होगा कि पांच साल पहले लुधियाना के सिविल अस्पताल में 10 वेंटिलेटर भेजे गए थे, लेकिन पांच साल तक इसका इस्तेमाल ही नहीं किया गया। कांग्रेस सरकार की इससे बड़ी लापरवाही और क्या हो सकती है।

अपनी लापरवाही छिपाने के लिए पंजाब सरकार ने वेंटिलेटर में खराबी की बात फैलाई। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार वेंटिलेटर सही रखरखाब, सही तरीके से इस्तेमाल ना होने और प्रशिक्षित स्टाफ नहीं होने के कारण खराब हुए हैं। अस्पताल में ना तो फ्लो सेंसर बदला गए, ना ही वेंटिलेटरको कैलिब्रेट किए गए और ना ही ऑक्सीजन सेंसर को बदला गया।


झारखंड

झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार भी भगवान भरोसे चल रही है। कोरोना संकट काल में भी सरकार सक्रिय नहीं दिख रही है। राज्य के सात जिलों में 60 वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं। कहीं यह अब तक डिब्बों में बंद है तो कहीं कपड़े से ढंककर छोड़ दिया गया है। प्रधानमंत्री केयर फंड से मिले वेंटिलेटर जिन अस्पतालों को दिया गया उसने इसका उपयोग करने की जहमत ही नहीं उठाई। अगर इन वेंटिलेटर का इस्तेमाल किया गया होता तो सैकड़ों लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

राज्य के लातेहार सदर अस्पताल में 12 वेंटिलेटर 5 माह से धूल फांक रहे हैं। इन्हें चादर से ढंककर छोड़ दिया गया है। गुमला में प्रशिक्षित टेक्निशियन के अभाव में 21 वेंटिलेटर का उपयोग नहीं हो रहा है। बोकारो में भी 45 वेंटिलेटर बेकार पड़े हुए है। हजारीबाग में पीएम केयर फंड से 9 वेंटिलेटर सीएचसी और पीएचसी में वैसे ही पड़े हैं। यहां एनटीपीसी से 8, डीएमएफटी फंड से 4 और एनएचआरएम से 16 समेत 28 वेंटिलेटर मिले थे। ये भी उपयोग में नहीं लाए गए। ऐसा ही हाल रामगढ़, चतरा और सिमडेगा का है। इन जिलों में टेक्निशियन के अभाव में वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं।

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दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार सिमडेगा के 10 वेंटिलेटर में से 5 को रांची भेज दिया गया, जबकि 5 टेक्निशियन नहीं होने के कारण बेकार पड़े हैं। गुमला में भी 21 वेंटिलेटर टेक्निशियन नहीं होने के कारण उपयोग में नहीं हैं। रामगढ़ में भी डॉक्टर-टेक्निशियन की कमी के कारण 12 वेंटिलेटर इन्स्टॉल ही नहीं किए गए हैं। चतरा को मिले 11 वेंटिलेटर में से 5 को रांची भेज दिया गया। बाकी 6 को कोविड वार्ड में इन्स्टॉल किया गया, पर संचालित करने के लिए टेक्निशियन नहीं हैं।

छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में भी पीएम केयर्स फंड से मिले वेंटिलेटर का यही हाल है। केंद्र सरकार की ओर से मिले वेंटीलेटर का इस्तेमाल ही नहीं किया गया। छत्तीसगढ़ के कई जिलों में कोरोना महामारी से हालत काफी खराब है, लेकिन वेंटिलेटर का उपयोग नहीं किया गया है। लोग वेंटिलेटर की कमी के कारण परेशान हैं लेकिन राज्य सरकार राजनीति में व्यस्त है।

राजस्थान सरकार की बड़ी लापरवाही, केंद्र से मिले 1500 वेंटिलेटर में से ज्यादातर 10 महीनों से डिब्बों में बंद

मोदी विरोधी किस हद तक मोदी विरोध में जनता की जानों से खिलवाड़ कर रही है, वह कांग्रेस शासित राजस्थान में दिखने को मिल रही है। 
कोरोना की दूसरी लहर देश में लोगों को तेजी से संक्रमित कर रही है। रोजाना कोरोना के नए मामले रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं। इसके बावजूद राजस्थान सरकार आँखें मूँदकर बैठी है और अपनी नाकामियों के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही है।

कांग्रेस शासित राजस्थान को पीएम केयर फंड के तहत प्राप्त 1500 वेंटिलेटर में से ज्यादातर डिब्बों में बंद पड़े हैं। ये वेंटिलेटर राज्य सरकार को 10 महीने पहले मिले थे। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, इन 1,500 वेंटिलेटरों में से 230 खराब हैं। कोरोनो महामारी के बावजूद इनकी साल भर से ना तो रिपेयरिंग हुई है, ना ही इन्हें बदला गया है।

अब तक राजस्थान में 6,33,951 लोगों की कोविड-19 के लिए जाँच की जा चुकी है, जिसमें 1,89,178 एक्टिव मामले सामने आए हैं। वहीं अब तक कोरोना की वजह से राजस्थान में 4,558 लोग अपनी जान गँवा चुके हैं।

बताया जा रहा है कि जोधपुर में तो पीएम केयर फंड के 100 में से एक भी वेंटिलेटर को चालू नहीं किया गया है। इसके अलावा पहले से खरीदकर प्रदेश के अस्पतालों में लगाए गए 164 वेंटिलेटर भी काम नहीं कर रहे। वहीं, डॉक्टरों का कहना है कि मरीजों के हिसाब से अभी भी प्रदेश में 1000 और वेंटिलेटर्स की जरूरत है।

इसी तरह जयपुर के एसएमएस मेडिकल कॉलेज में आईसीयू में इस साल फरवरी में 50 वेंटिलेटर लगाए गए थे। हालाँकि, इन्हें कुछ दिनों पहले ही पहली बार इस्तेमाल में लाया गया था। पिछले 6 महीनों से यहाँ 18 अन्य वेंटिलेटर काम नहीं कर रहे हैं। इसी तरह, अन्य मेडिकल कॉलेजों में भी वेंटिलेटर खराब हैं। जयपुरिया में एक साल से 7 वेंटिलेटर, कांवटिया में 2, गणगौरी में 6 वेंटिलेटर खराब हैं।

कोटा में मेडिकल कॉलेजों को 138 वेंटिलेटर दिए गए थे। इनमें से 65 या तो स्थापित नहीं थे या इनमें कमी बताकर इन्हें हटा दिया गया था। उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज को 95 वेंटिलेटर मिले थे, जो एक साल तक स्टोर हाउस में बंद रहे। इनमें से 22 को ईएसआईसी हॉस्पिटल में इंस्टॉल किया गया, लेकिन ये बार-बार बंद हो गए। अंत में 5 अप्रैल, 2021 के बाद 32 वेंटिलेटर अपडेट किए गए।

इसके अलावा, अजमेर में 300 और भरतपुर में 60 वेंटिलेटर हैं, ये भी अस्पताल में स्थापित किए जा चुके हैं। बांसवाड़ा में 22 वेंटिलेटर्स में से 5, नागौर में 52 में से 16 वेंटिलेटर ही स्थापित किए गए हैं।

राजस्थान से पहले कांग्रेस शासित पंजाब में भी इस तरह की लापरवाही का मामला सामने आ चुका है। पंजाब में 250 वेंटिलेटर एक साल से गोदाम में पड़े थे। द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले साल 20 मार्च को केंद्र सरकार ने राज्य में लगभग 30 करोड़ रुपए की लागत से 290 वेंटिलेटर भेजे थे। लेकिन राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने एक साल बाद भी इसका इस्तेमाल नहीं किया है। उसे गोदाम में बंदकर धूल जमने के लिए रखा गया।

इन वेंटिलेटर को मेडिकल कॉलेजों या अन्य कोविड सेंटर में भेजा जाना था, जहाँ पर L-3 केयर प्रदान किया जाता है। L-3 केयर उन मरीजों को दी जाती है, जिन्हें दो या दो से अधिक ऑर्गन सपोर्ट या मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता होती है। बताया गया कि मेडिकल कॉलेजों या कोविड सेंटरों से माँग इसलिए नहीं की गई, क्योंकि वेंटिलेटर पर मरीजों की देखभाल करने वाले कुशल मैन पावर की कमी थी। 

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यह पहला मौका नहीं था जब राज्य के अस्पताल वेंटिलेटर का उपयोग करने में विफल रहे। पाँच साल पहले, 10 वेंटिलेटर सिविल अस्पताल, लुधियाना भेजे गए थे, लेकिन पाँच साल तक उनका इस्तेमाल नहीं किया गया था। बाद में विवाद होने और महामारी के बढ़ने पर एक स्थानीय निजी अस्पताल को वेंटिलेटर सौंपा गया।