आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
आखिरकार वह गैंग बाहर आ ही गया, जिसका इन्तजार था। समझ नहीं आ रहा था कि #metoo, #not in my name, #intolerance, #mob lynching, #award vapsi आदि गैंग कहाँ है, चुनावों की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन ये गैंग पता नहीं कहाँ है? चलो देर आए, दुरुस्त आए। अपनी औकात दिखाने आ ही गए। इस गैंग को केवल सिक्के का एक ही पहलु दिखता है, दूसरा नहीं। जब तक ये गैंग सक्रीय रहेगा, भारत देश में सौहार्द रह ही नहीं सकता। इस गैंग को इस वीडियो को देख माफ़ी माँगनी चाहिए:
ये वही लोग हैं, जिनके कारण देश कहीं जातियों में, कहीं दंगों में तो कहीं कट्टरपन्थी धारा में जुड़ते रहते हैं, देश की मुख्यधारा में नहीं। इस गैंग को उस समय पीना साँप पी गया था, जब कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किये जा रहे थे, उनकी माँ, बहन और बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ किया जा था। ये गैंग उस समय नहीं बोला, जब जेएनयू में देश विरोधी नारे लगाए जा रहे थे, ये गैंग उस समय कहाँ था, जब उत्तर प्रदेश में एक गरीब दलित रेहड़ी वाले द्वारा रास्ता माँगने पर तत्कालीन मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव की पार्टी के एक मुस्लिम पदाधिकारी ने उस बेचारे को अपना "पेशाब" पिला दिया था।
रंगमंच से जुड़ी देश की 600 से अधिक बड़ी हस्तियों ने एक पत्र लिख कर लोगों से कहा है कि वे ‘वोट डाल कर भाजपा और उसके सहयोगियों’ को सत्ता से बाहर करें. इन लोगों में अमोल पालेकर, नसीरूद्दीन शाह, गिरीश कर्नाड, एमके रैना और उषा गांगुली जैसी चर्चित हस्तियां भी शामिल हैं. इन लोगों ने जोर देते हुये कहा कि भारत की और इसके संविधान की अवधारणा खतरे में है.
यह ख़त अप्रैल 4 को जारी हुआ और इसे 12 भाषाओं में तैयार करके आर्टिस्ट यूनाईट इंडिया वेबसाइट पर डाला गया है. इसमें कहा गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव देश के ‘‘इतिहास के सबसे अधिक गंभीर’’ चुनाव है. इस पत्र पर शांता गोखले, महेश एलकुंचेवार, महेश दत्तानी, अरूंधती नाग, कीर्ति जैन, अभिषेक मजूमदार, कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, लिलेट दुबे, मीता वशिष्ठ, मकरंद देशपांडे और अनुराग कश्यप के हस्ताक्षर हैं.
इन लोगों ने कहा है कि, ‘आज देश की अवधारणा मुश्किल में है. आज गीत, नृत्य, हास्य खतरे में है. आज, हमारा न्यारा संविधान खतरे में है.’ उन्होंने कहा कि सरकार ने उन संस्थाओं का गला घोंट दिया है जहां तर्क, बहस और असहमति का विकास होता है.
उन्होंने पत्र में लिखा है कि किसी लोकतंत्र को सबसे कमजोर और सबसे अधिक वंचित लोग को सशक्त बनाना चाहिये. कोई जम्हूरियत बिना सवाल, बहस और सजग विपक्ष के बिना काम नहीं कर सकता. इन सभी को मौजूद सरकार ने पूरी ताकत से कुचल दिया है. पत्र में लोगों से कहा गया है कि वे ‘‘संविधान और हमारी सर्वधर्मभाव, धर्मनिरपेक्ष भावना’’ का संरक्षण करें और ‘कट्टरता, घृणा और निष्ठुरता’ को सत्ता से बाहर करें.
अवलोकन करें:-
गत सप्ताह ऐसी ही एक अपील भारतीय फिल्मकारों आनंद पटवर्धन, सनल कुमार शशिधरन और देवाशीष मखीजा ने जारी करके मतदाताओं से कहा कि वे ‘फासीवाद को हरायें.’
इन सबसे ऊपर इन 600 खलिहर लोगों ने जो बात अपने पत्र में लिखी है वो है ‘हिंदुत्व के गुंडों’ का वर्णन! गुमनामी में जी रहे इन 600 लोगों ने भी सस्ती लोकप्रियता के लिए वही विधि अपनाई है, जो पुलवामा आतंकी हमले में समुदाय विशेष के उस भटके हुए फिदायीन ने अपनाई थी, यानि हिंदुत्व पर हमला! विपक्ष ने हमेशा से ही अल्पसंख्यकों के वोट को रिझाने के लिए हिन्दुओं को आतंकवाद और गुंडागिर्दी से जोड़ने का आसान तरीका अपनाया है। इन 5 सालों में देखा गया है कि कोई ना कोई भटका हुआ व्यक्ति हिंदुत्व को उग्र संगठन और हिंसक धर्म की पहचान देने की पुरजोर कोशिशें करता नजर आया है।
शायद इस पत्र को लिखने से पहले इन बेरोजगार कलाकारों को ये ध्यान नहीं रहा कि इनके अन्नदाता राहुल गाँधी जनेऊ और मानसरोवर की फोटोशॉप यात्राओं द्वारा हिन्दुओं के बीच अपनी छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं। या फिर ये भी हो सकता है कि अपने मालिकों द्वारा मुस्लिम लीग के साथ हुई नवीन सांठगांठ ने ही इन कलाकारों को यह बात कहने का हौंसला दिया हो।
पश्चिम बंगाल से लेकर केरल में, सम्पूर्ण उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक में जबरन धर्म परिवर्तन से लेकर हिन्दू नाबालिग लड़कियों के अपहरण और हिन्दूओं के खुलेआम निर्मम हत्या किए जाने तक पर मौन धारण कर लेने वाला मीडिया गिरोह पाकिस्तान जैसे देश के प्रति अपनी ममता और करुणा उड़ेलता देखा गया है। हर दूसरी आतंकवादी घटना, हिंसक गतिविधि, क़त्ल, अपहरण, बलात्कार में हिन्दुओं को शिकार बनाया जाता रहा है, लेकिन फिर भी हिन्दुओं को हिंसक बताना नया फैशन बनकर उभरा है। इन पाकिस्तान परस्तों ने भी इस मामले में पाकिस्तान की ही ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ वाली रणनीति को अपनाया है।
अगर देखा जाए तो वास्तव में हिन्दुओं को इस देश में इस तरह के बयान देने चाहिए, लेकिन हक़ीक़त एकदम उलट है। हिन्दुओं को इस देश में एक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा पीड़ित किया जाता रहा है, उनकी आस्थाओं को हर दूसरे दिन अपमानित करने वाले वो लोग हैं, जिन्हें इस देश ने अल्पसंख्यक होने के नाम पर खुली छूट दी है और अन्य की तुलना में ज्यादा अधिकार दिए हैं। हिन्दुओं के अधिकारों पर बात करना आपको सांप्रदायिक बना देता है, अपनी पहचान हिन्दू बताने पर आपको उग्र घोषित कर दिया जाता है।
खैर, दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है। अगर हिन्दुओं को हिंसक बताकर और मोदी के खिलाफ वोट करने की अपील से इन 600 गुमनामी में जी रहे कलाकारों को कुछ पहचान और सस्ती लोकप्रियता मिलती है, तो इन्हें अवश्य इस तरह के दो-चार और बयान देकर अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ करना चाहिए। वैसे भी मोदी सरकार के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी का जितना फायदा इन भटके हुए कलाकारों ने उठाया है।
आखिरकार वह गैंग बाहर आ ही गया, जिसका इन्तजार था। समझ नहीं आ रहा था कि #metoo, #not in my name, #intolerance, #mob lynching, #award vapsi आदि गैंग कहाँ है, चुनावों की बिसात बिछ चुकी है, लेकिन ये गैंग पता नहीं कहाँ है? चलो देर आए, दुरुस्त आए। अपनी औकात दिखाने आ ही गए। इस गैंग को केवल सिक्के का एक ही पहलु दिखता है, दूसरा नहीं। जब तक ये गैंग सक्रीय रहेगा, भारत देश में सौहार्द रह ही नहीं सकता। इस गैंग को इस वीडियो को देख माफ़ी माँगनी चाहिए:
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ये ही है वही पदाधिकारी, जिसने दलित रेहड़ी वाले को अपना पेशाब पिलाया था |

यह ख़त अप्रैल 4 को जारी हुआ और इसे 12 भाषाओं में तैयार करके आर्टिस्ट यूनाईट इंडिया वेबसाइट पर डाला गया है. इसमें कहा गया है कि आगामी लोकसभा चुनाव देश के ‘‘इतिहास के सबसे अधिक गंभीर’’ चुनाव है. इस पत्र पर शांता गोखले, महेश एलकुंचेवार, महेश दत्तानी, अरूंधती नाग, कीर्ति जैन, अभिषेक मजूमदार, कोंकणा सेन शर्मा, रत्ना पाठक शाह, लिलेट दुबे, मीता वशिष्ठ, मकरंद देशपांडे और अनुराग कश्यप के हस्ताक्षर हैं.

उन्होंने पत्र में लिखा है कि किसी लोकतंत्र को सबसे कमजोर और सबसे अधिक वंचित लोग को सशक्त बनाना चाहिये. कोई जम्हूरियत बिना सवाल, बहस और सजग विपक्ष के बिना काम नहीं कर सकता. इन सभी को मौजूद सरकार ने पूरी ताकत से कुचल दिया है. पत्र में लोगों से कहा गया है कि वे ‘‘संविधान और हमारी सर्वधर्मभाव, धर्मनिरपेक्ष भावना’’ का संरक्षण करें और ‘कट्टरता, घृणा और निष्ठुरता’ को सत्ता से बाहर करें.
अवलोकन करें:-
इन सबसे ऊपर इन 600 खलिहर लोगों ने जो बात अपने पत्र में लिखी है वो है ‘हिंदुत्व के गुंडों’ का वर्णन! गुमनामी में जी रहे इन 600 लोगों ने भी सस्ती लोकप्रियता के लिए वही विधि अपनाई है, जो पुलवामा आतंकी हमले में समुदाय विशेष के उस भटके हुए फिदायीन ने अपनाई थी, यानि हिंदुत्व पर हमला! विपक्ष ने हमेशा से ही अल्पसंख्यकों के वोट को रिझाने के लिए हिन्दुओं को आतंकवाद और गुंडागिर्दी से जोड़ने का आसान तरीका अपनाया है। इन 5 सालों में देखा गया है कि कोई ना कोई भटका हुआ व्यक्ति हिंदुत्व को उग्र संगठन और हिंसक धर्म की पहचान देने की पुरजोर कोशिशें करता नजर आया है।
शायद इस पत्र को लिखने से पहले इन बेरोजगार कलाकारों को ये ध्यान नहीं रहा कि इनके अन्नदाता राहुल गाँधी जनेऊ और मानसरोवर की फोटोशॉप यात्राओं द्वारा हिन्दुओं के बीच अपनी छवि बनाने का प्रयास कर रहे हैं। या फिर ये भी हो सकता है कि अपने मालिकों द्वारा मुस्लिम लीग के साथ हुई नवीन सांठगांठ ने ही इन कलाकारों को यह बात कहने का हौंसला दिया हो।
पश्चिम बंगाल से लेकर केरल में, सम्पूर्ण उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक में जबरन धर्म परिवर्तन से लेकर हिन्दू नाबालिग लड़कियों के अपहरण और हिन्दूओं के खुलेआम निर्मम हत्या किए जाने तक पर मौन धारण कर लेने वाला मीडिया गिरोह पाकिस्तान जैसे देश के प्रति अपनी ममता और करुणा उड़ेलता देखा गया है। हर दूसरी आतंकवादी घटना, हिंसक गतिविधि, क़त्ल, अपहरण, बलात्कार में हिन्दुओं को शिकार बनाया जाता रहा है, लेकिन फिर भी हिन्दुओं को हिंसक बताना नया फैशन बनकर उभरा है। इन पाकिस्तान परस्तों ने भी इस मामले में पाकिस्तान की ही ‘बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा’ वाली रणनीति को अपनाया है।
अगर देखा जाए तो वास्तव में हिन्दुओं को इस देश में इस तरह के बयान देने चाहिए, लेकिन हक़ीक़त एकदम उलट है। हिन्दुओं को इस देश में एक अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा पीड़ित किया जाता रहा है, उनकी आस्थाओं को हर दूसरे दिन अपमानित करने वाले वो लोग हैं, जिन्हें इस देश ने अल्पसंख्यक होने के नाम पर खुली छूट दी है और अन्य की तुलना में ज्यादा अधिकार दिए हैं। हिन्दुओं के अधिकारों पर बात करना आपको सांप्रदायिक बना देता है, अपनी पहचान हिन्दू बताने पर आपको उग्र घोषित कर दिया जाता है।
खैर, दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है। अगर हिन्दुओं को हिंसक बताकर और मोदी के खिलाफ वोट करने की अपील से इन 600 गुमनामी में जी रहे कलाकारों को कुछ पहचान और सस्ती लोकप्रियता मिलती है, तो इन्हें अवश्य इस तरह के दो-चार और बयान देकर अपनी रोजी रोटी का जुगाड़ करना चाहिए। वैसे भी मोदी सरकार के दौरान अभिव्यक्ति की आजादी का जितना फायदा इन भटके हुए कलाकारों ने उठाया है।
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