नेताओं के दोगलेपन में पिसती जनता


आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
आज नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। इस प्रदर्शन की आड़ में राजनीतिक दोलों को अपनी सियासी रोटियां सेकेंने का मौका मिल गया है। एनडीए सरकार के विरोधी तमाम पार्टियां प्रदर्शनकारी किसनों को खुलकर समर्थन दे रही हैं। लेकिन ये पार्टियां खुद ऐसे कानून लागू करने की मांग कर चुकी हैं। यहां तक कि सरकार में रहते इसके लिए राज्य सरकारों को सुझाव भी दे चुकी हैं।

कांग्रेस के घोषणा-पत्र में शामिल थे नए कानून के प्रावधान 

कांग्रेस पार्टी आज नए कृषि सुधार कानूनों का मुखर विरोध कर रही है और किसानों को गुमराह कर रही है। उसी कांग्रेस पार्टी ने इस कानून को 2019 के घोषणापत्र में शामिल किया था। उनके घोषणापत्र में साफ-साफ लिखा था, “कांग्रेस Agricultural Produce Market Committees Act को निरस्त कर देगी और कृषि उत्पादों के व्यापार की व्यवस्था करेगी… जिसमें निर्यात और अंतर-राज्य व्यापार भी शामिल होगा, जो सभी प्रतिबंधों से मुक्त होगा।” उनका यह घोषणापत्र अब भी उनकी वेबसाइट पर देख सकते हैं। ये बातें उनके मेनिफेस्टो में पेज नंबर 17 के प्वॉइंट नंबर 11 में दर्ज है।


कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया था कि वह Essential Commodities Act को खत्म कर उसकी जगह ECA 1955 के नाम से नया कानून लेकर आएगी। इसे भी उनके घोषणा पत्र के पेज नंबर 18 में देखा जा सकता है। 27 दिसंबर, 2013 को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा था कि कांग्रेस शासित राज्य APMC Act के तहत फलों और सब्जियों को delist कर देंगे, ताकि उनके दाम कम किए जा सकें। मगर आज जब हमारी सरकार ने ऐसा कर दिया तो किसानों को भड़काने में राहुल गांधी ही सबसे आगे हैं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दोहरा चरित्र 

कृषि सुधार बिल पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का दोगला चरित्र सामने आ गया है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार जब यूपीए सरकार में देश के कृषि मंत्री थे, तब ये इन कृषि सुधारों को लागू करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहे थे, परंतु आज अपने ही फैसले से यू टर्न लेकर केंद्र सरकार को नसीहत दे रहे हैं।

इसके लिए पूर्व कृषि मंत्री शरद पवार ने अगस्त 2010 और नवंबर 2011 के बीच सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा था। उन्होंने बार-बार Model APMC एक्ट को लागू करने और State APMC Acts में संशोधन के लिए कहा था। उन्होंने मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया था, ताकि किसानों को प्रतिस्पर्धा के लिए वैकल्पिक माध्यम मिल सके। उन्होंने कहा था कि इससे किसानों को बेहतर दाम मिल सकेगा।

अगस्त 2010 में लिखी चिट्ठी में शरद पवार जी ने इस बात पर जोर दिया था कि भारत के ग्रामीण इलाकों में कृषि क्षेत्रों के संपूर्ण विकास, रोजगार और आर्थिक प्रगति के लिए बेहतर मार्केट की जरूरत है और इस जरूरत को Model APMC एक्ट पूरा करता है। वहीं नवंबर 2011 में लिखी चिट्ठी में उन्होंने फिर से यही बात दोहराई और निजी तौर पर सभी मुख्यमंत्रियों से अपील की कि किसानों की बेहतरी के लिए बिना देरी करे राज्य सरकारें कदम उठाए।

मई 2012 में तत्कालीन कृषि मंत्री शरद पवार का राज्यसभा में एक औपचारिक जवाब दर्ज है। इसमें उन्होंने खुलकर Agriculture Marketing Reforms का समर्थन किया था। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा था कि “कुछ सिफारिशें पहले ही स्वीकार की जा चुकी हैं, जैसे Agri-procurement के उदारीकरण का प्रस्ताव… हमने सभी राज्यों के सहकारिता मंत्रियों से APMC एक्ट में संशोधन करने का अनुरोध किया है।” लेकिन वही शरद पवार आज इन कृषि सुधारों का न केवल विरोध कर रहे हैं, बल्कि किसानों को इसके लिए भड़का भी रहे हैं।

शिव सेना ने भी पहले अध्यादेश को लागु कर, दबाव में वापस लिया 

10 अगस्त, 2020 को महाराष्ट्र की उद्धव सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए किसान बिल के तीनों अध्यादेशों को सख्ती से लागू करने के आदेश दिए थे। महाराष्ट्र उन शुरुआती राज्यो में था, जो किसान बिल के तीनों अध्यादेश को तत्काल और सख्ती से लागू करने के आदेश दिया था। दो पेज पेज के इस ऑर्डिनेंस को 10 अगस्त, 2020 के दिन मार्केटिंग के स्टेट डायरेक्टर सतीश सोनी ने सभी बाजार समिति को सख्ती से लागू करने को कहा था। लेकिन बाद में कांग्रेस और एनसीपी के दबाव के बाद उद्धव सरकार ने अपने 10 अगस्त के विवादास्पद आदेश पर रोक लगा दी। अब शिवसेना भी किसानों के आंदोलन और भारत बंद को पूरा समर्थन दे रही है।

डीएमके ने भी बिचौलियों से मुक्ति का वायदा किया था   

डीएमके आज मोदी सरकार के कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रही है। और इस मुद्दे पर भारत बंद का भी समर्थन कर रही है, लेकिन यही डीएमके 2016 के विधानसभा चुनाव में कृषि सुधार बिल को अपने घोषणापत्र में शामिल कर चुकी है। डीएमके ने उस समय अपने मेनिफोस्टो में वादा किया था कि सरकार में आने पर वो किसानों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाजार उपलब्ध कराने के लिए एपीएमसी एक्ट में संशोधन करेगी, ताकि किसान बिना किसी बिचौलिए के अपनी उपज को अधिक से अधिक दाम पर बेच सकें। यही नहीं, इसके लिए उसने Comprehensive Agriculture Produce Marketing Exchange बनाने का भी वादा किया था।

केजरीवाल ने भी अध्यादेश को लागु करने के बावजूद विरोध 

किसानों के आंदोलन से आज दिल्ली वाले ही सबसे ज्यादा परेशान हैं। लेकिन दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का दोहरा रवैया जगजाहिर हो चुका है। खास बात ये है कि किसानों को भड़काने में और भारत बंद का आगे बढ़कर समर्थन करने वाले केजरीवाल की कथनी और करनी में बड़ा अंतर है। एक तरफ तो आम आदमी पार्टी नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही है और दूसरी तरफ उसने इस कानून को 23 नवंबर को ही लागू भी कर दिया। और इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी।

स्वराज्य पार्टी के योगेंद्र यादव की नौटंकी 

किसान आंदोलन में घुसकर चेहरा चमकाने वाले और भारत बंद का ऐलान करने वाले योगेंद्र यादव बिन पेंदी का लोटा साबित हुए हैं। स्वराज पार्टी बनाने वाले योगेंद्र यादव कुछ समय पहले तक कृषि सुधारों के नाम पर हमारी सरकार को घेरते थे, आज वो कृषि सुधार किए जाने के बाद किसानों को न केवल भड़काने में जुटे हुए हैं, बल्कि भारत बंद के नाम पर आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई को भी रोकने पर आमादा हैं। मोदी सरकार के तीन साल पूरे होने पर योगेंद्र यादव ने आरोप लगाया था कि सरकार एपीएमसी एक्ट को लेकर कुछ नहीं कर रही है। लेकिन आज वही योगेंद्र यादव यूटर्न लेकर इस पर राजनीति करने में जुट गए हैं।

अकाली दल द्वारा अध्यादेश का समर्थन, कानून का विरोध 

कृषि सुधार कानूनों पर अकाली दल का आज जो रवैया है, वो कुछ दिनों तक पहले तक नहीं था। 12 दिसंबर, 2019 को एग्रीकल्चर पर स्टैंडिंग कमेटी की बैठक में अकाली दल के सांसदों के बोल कुछ अलग ही थे। उस दिन उन्होंने कहा था कि एपीएमसी भ्रष्टाचार और राजनीति का अड्डा बन चुकी है और वहां बिचौलियों और दलालों का बोलबाला रहता है। यही नहीं उन्होंने कहा था कि एपीएमसी किसानों के हित में नहीं है। इसके बाद 3 जून, 2020 को जब इस पर अध्यादेश लाया गया, तब भी अकाली दल सरकार के उस फैसले के साथ था। अकाली दल की मंत्री हरसिमरत कौर उस निर्णय का हिस्सा थी। उस समय अकाली दल ने कोई विरोध नहीं किया था। लेकिन आज अकाली दल के सुर एकदम अलग हैं।

मुलायम सिंह ने भी APMC का विरोध किया था 

समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और सांसद मुलायम सिंह यादव ने एग्रीकल्चर पर स्टैंडिंग कमेटी में की रिपोर्ट में 12 दिसंबर, 2019 को सुझाव दिया था कि APMC में भी भ्रष्टाचार और राजनीति है। बिचौलियों और दलालों का बोलबाला होने से किसानों को सही लाभ नहीं मिल रहा है। इसलिए APMC किसानों के हित में नहीं है। 

ममता पहले ही केंद्र से मिलता-जुलता कानून लागु कर चुकी हैं 

जहाँ एक तरफ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र के कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसानों के आंदोलन के समर्थन की बातें कर रही हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने राज्य में इससे मिलता-जुलता एक कानून 2014 में ही पारित कर लिया था। ममता बनर्जी की सरकार ने पश्चिम बंगाल में ‘एग्रीकल्चर मार्केटिंग बिल’ विधानसभा में पास कराया था। अब वो मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों का विरोध कर रही हैं।

ममता बनर्जी ने कहा है कि केंद्र की भाजपा सरकार को या तो कृषि कानूनों को वापस ले लेना चाहिए, या फिर इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने डेरेक ओ ब्रायन सहित तृणमूल कॉन्ग्रेस के अपने कुछ वफादार नेताओं को सिंघु सीमा पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के पास भेजा भी और प्रदर्शनकारी नेताओं से बातचीत की। इस दौरान योगेंद्र यादव भी देखे गए। मंगलवार (दिसंबर 8, 2020) को किसान संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान कर रखा है जिसे कई राजनीतिक दलों ने भी समर्थन दिया है।

मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों से किसानों को अपने उत्पाद कहीं भी भेजने की छूट मिलती है, साथ ही ‘कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग’ की स्थिति में प्राइवेट कंपनियों की मनमानी पर भी लगाम लगती है। इसमें क्षति की स्थिति में खरीददार पर ही सारी जिम्मेदारी डाल दी गई है और किसान इन सबसे मुक्त है। रुपए के भुगतान के लिए समयसीमा भी दी गई है। बावजूद इसके भ्रम फैला कर किसानों को बरगलाया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल सरकार ने 2014 में जो ‘एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केटिंग (रेगुलेशन) बिल’ पास कराया था, दावा किया गया था कि इससे किसानों को अपने उत्पादों के उचित दाम मिलेंगे। ममता बनर्जी सरकार ने कहा था कि बिचौलियों की गतिविधियों को रोकने के लिए ऐसा किया गया है। साथ ही कहा था कि बिचौलियों से निपटने के कड़े कदम उठाए जा रहे हैं और उनसे निपटने में ये कानून सहायक सिद्ध होगा।

आज जब मोदी सरकार यही कर रही है तो ममता बनर्जी सहित पूरे विपक्ष को दिक्कत है। पश्चिम बंगाल के उस कानून के अनुसार, इससे किसानों की पहुँच एक नए बाजार तक होगी और वो सीधे उपयोगकर्ताओं तक अपने उत्पाद बेच सकेंगे। ग्राहकों और किसानों, इसे दोनों के लिए सरकार ने लाभदायक बताया था। साथ ही कहा गया था कि दोनों को ज्यादा भरोसेमंद सिस्टम का हिस्सा बनाना राजकोष के लिए भी अच्छा होगा।

ठीक इसी तरह, NCP के संस्थापक-अध्यक्ष शरद पवार आज ‘किसानों’ के आंदोलन को समर्थन देते हुए कृषि कानूनों पर मोदी सरकार को घेर रहे हैं। शरद पवार यूपीए सरकार में लगातार 10 वर्षों तक केंद्रीय कृषि मंत्री थे और तब वो इन्हीं कृषि सुधारों की पैरवी कर रहे थे, जिनके विरोध में आज वो खड़े हैं। उन्होंने APMC सुधारों को लेकर मुख्यमंत्रियों को पत्र भी लिखा था। उन्होंने तब इन सबके लिए प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी पर जोर दिया था, जबकि आज ये भ्रम फैलाया जा रहा है कि प्राइवेट सेक्टर किसानों की जमीनें ले लेंगे और उन्हें रुपए नहीं देंगे।

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