शंकराचार्य हिन्दू समाज के किस काम के? 1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें श्री श्री 1008 महाचार्यों ?

                                                                                                                                                                                साभार 
सुभाष चन्द्र

अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर 'प्राण प्रतिष्ठा' (अभिषेक) समारोह होना है। खास बात है कि इस समारोह से चार शंकराचार्य शामिल नहीं होंगे। हालांकि, इन चार शंकराचार्य में से दो लोगों ने अब इस आयोजन को अपना समर्थन देने की बात कही है। इससे पहले एक वीडियो संदेश में जोशीमठ के ज्योर्तिपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा था कि चारों शंकराचार्यों में से कोई भी अयोध्या में समारोह में शामिल नहीं होगा क्योंकि यह मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने से पहले किया जा रहा है। इस संबंध में विश्व हिंदू परिषद् के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने गुरुवार(जनवरी 11) को कहा कि प्राण प्रतिष्ठा का स्वागत करने वाले द्वारका और श्रृंगेरी शंकराचार्यों के बयान पहले से ही सार्वजनिक हैं। उन्होंने कहा कि पुरी शंकराचार्य भी इस समारोह के पक्ष में हैं। कुमार ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि केवल ज्योतिर्पीठ शंकराचार्य ने समारोह के खिलाफ टिप्पणी की है, लेकिन बाकी तीन शंकराचार्यों ने स्पष्ट कर दिया है कि उनके हवाले से दिए गए बयान भ्रामक थे क्योंकि वे समारोह के पूर्ण समर्थन में हैं।

लेखक 
कभी कभी जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जिनका उपयोग व्यक्ति को समाज में अपनी पहचान बनाने के लिए करना चाहिए और यह अवसर शंकराचार्यों के लिए भी भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने से आया परंतु दुर्भाग्य से मुख्यतः 2 शंकराचार्यों ने लगता है कांग्रेस की “लंकिनी सेना” में शामिल होकर यह अवसर गंवा दिया

पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती (80 वर्षीय) और द्वारिका ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने जिस तरह राम लला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विषवमन किया है उससे लगता है ये लोग मोदी के प्रति अपने दिलों में “नफरत” संजोए बैठे हैं

आज लोग सोचने पर मजबूर हो गए हैं कि शंकराचार्यों का हिन्दू समाज के लिए क्या औचित्य है और उनका समाज के लिए कुछ योगदान है भी। आज प्रश्न खड़ा हो रहा है कि शंकराचार्यों ने आखिर हिन्दू समाज के लिए किया ही क्या है। ये लोग उस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बना रहे हैं जो सदा संत समाज के सामने नतमस्तक रहा है, जिसने देश के सभी तीर्थ स्थलों का पुनरुथान किया है। सही मायने में नरेंद्र मोदी तो आप सभी शंकराचार्यों से भी बड़ा “शंकराचार्य” है लेकिन आप लोग उसे ही नीचा दिखाना चाहते हो। 

फिल्म जरूर देखे :रामलला के लिए  किए गए 500 साल के संघर्ष और राम मंदिर निर्माण की कहानी को एक शार्ट फिल्म के जरिए इतने खूबसूरती से दिखाया गया है। यह 12 मिनट 41 सेकंड की विडियो को फेमस टीवी सीरियल चाणक्य के चंद्र प्रकाश द्विवेदी ने बनाया है। इस शार्ट फिल्म का नाम 'श्रीराम जन्मभूमि की विजयगाथा' रखा गया है। डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अपनी फिल्म 'श्रीराम जन्मभूमि की विजयगाथा' में १५२८ ई. से लेकर आज तक की कहानी दर्शाई है। फिल्म में दिखाया गया है कि, बाबर के सेनापति ने राममंदिर को कैसे ध्वस्त किया था, राजाओं व आम लोगों ने राममंदिर की लड़ाई कैसे और किन संकटों के बीच लड़ीं है। और अंत में राम मंदिर का बनना कैसे संभव हो पा रहा है। फिल्म में डा डॉ द्विवेदी ने स्वयं अपनी आवाज दी है। लघु फिल्म में १९४७ के बाद आजाद भारत में अयोध्या के राम मंदिर को लेकर महसूस किए गए श्रद्धा के उफान को भी दर्शाया गया है...!!

पिछले 35 वर्षों से जो व्यक्ति श्री राम मंदिर के लिए अपने लोगों और सहयोगी दलों के साथ संघर्ष करता रहा और जिस हिन्दू समाज को 500 वर्ष से मंदिर बनने की प्रतीक्षा थी, आज जब वह सपना साकार हो रहा है तो शंकराचार्य अपनी ढपली बजाते हुए निकल पड़े

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले करीब 100 वर्ष से हिन्दू समाज को संगठित करने के प्रयास में लगा है और कांग्रेस ने इसी RSS को ख़त्म करने के न जाने कितने प्रयास किए हैं। आज शंकराचार्य बताएं उन्होंने हिन्दू समाज के लिए क्या योगदान किया। पुरी में भगवान जगन्नाथ के मंदिर में विधर्मी घुसने का प्रयास कर रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट तक से मदद मिल रही है उन्हें लेकिन हमने कभी निश्चलानंद सरस्वती को विद्रोह करते नहीं देखा

नवंबर, 2004 में जयललिता के कांची शंकराचार्य को दीवाली की रात को गिरफ्तार किया था। क्या किसी शंकराचार्य ने विरोध किया था? 2020 में पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या कर दी गई थी, क्या कोई शंकराचार्य बोले थे? ईसाई धर्मान्तरण को रोकने वाले आसाराम बापू को जेल में डाल दिया गया मगर शंकराचार्य खामोश रहे, और दूर क्यों जाएं, कल ही बंगाल में संतो के साथ TMC के गुंडों ने दुर्व्यवहार किया, उन्हें नग्न करके पीटा गया, क्या किसी शंकराचार्य की जुबान से एक शब्द भी निकला? 

लेकिन श्री राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के लिए शंकराचार्यों की गज भर लंबी जुबान चल पड़ीशंकराचार्यों के आगे तो लोग झुकते हैं लेकिन थुलथुला स्वरूपानंद सरस्वती ईसाई पादरी के चरण छू कर उससे आशीर्वाद लेता था और उसका चेला अविमुक्तेश्वरानंद एक मजार पर माथा रगड़ रहा है, ऐसी एक फोटो सोशल मीडिया पर चल रही है

याद कीजिए जब हनुमान जी भवन समेत सुषेण वैद्य को उठा कर ला रहे थे तब सुषेण ने पूछा था मुझे कहां ले जा रहे हो, हनुमान जी ने कहा, भगवान राम की सेवा से आपके उद्धार का समय आ गया है। लेकिन शंकराचार्यों ने “राम काज” में अड़ंगा डाल कर अपने उद्धार के मार्ग स्वयं ही बंद कर लिए

कुछ लोग कह रहे हैं शंकराचार्यों के विरोध में कुछ मत कहो लेकिन जो कुछ उनके लिए कहा जा रहा है उसके लिए जिम्मेदार वे खुद ही हैं

जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था तब पितामह भीष्म चुप्पी साधकर बैठे थे। 

जब कांची कामकोटि पीठम के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी को दिवाली के दिन पूजा करते समय घसीटते हुए गिरफ्तार किया था, तब शेष तीनों शंकराचार्य मौन थे।

जब पांडवों को वनवास और अज्ञातवास पर भेजा जा रहा था, उन्हें लाक्षागृह में भस्म करने का प्रयास किया जा रहा था, तब भी भीष्म पितामह चुप थे।

जब कश्मीर में हिंदुओं का नरसंहार और निष्कासन हो रहा था, तब सभी शंकराचार्य चुप थे।

महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह ने अपनी व्यक्तिगत प्रतिज्ञा और प्रतिष्ठा को धर्म के ऊपर रखा और अस्त्र-शस्त्र लेकर अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े हो गए...

आज जब हिंदू विरोधी सेनाएँ कुरुक्षेत्र (राम-मंदिर) के मैदान में खड़े होकर हमारे ऊपर तीर पर तीर छोड़ रही हैं तब शंकराचार्य अपनी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को सर्वोपरि रखकर अधर्मियों के पक्ष में खड़े होकर तीर चला रहे हैं।

भीष्म पितामह हस्तिनापुर के समर्पित योद्धा थे, ज्ञानी थे सच्चरित्र थे लेकिन अन्याय को मौन समर्थन दिया इसलिए वह शरशय्या के अधिकारी बने, सिंहासन के नहीं...

शंकराचार्य भी कितने ही ज्ञानी हों धर्माचार्य हों (जो कि शायद ही हों) लेकिन अन्याय के समय मौन रहने और युद्ध के समय अधर्मी कौरवों के पक्ष में खड़े होने के अपराध में उन्हें भी शरशय्या पर लेटना ही होगा।

जब श्री राम टाट के टेंट में थे, ये चारों शंकराचार्य सोने के सिंघासनो पर चढ़ कर हाथी की सवारी करते थे, कोई योगदान नहीं था, इन का रामजन्मभूमि के आंदोलन में.. अब क्रुद्ध हो रहे हैं... केवल इसलिये कि इनसे प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जा रही, और कराई भी क्यों जाए, पता नहीं इन्हें कितना ज्ञान है?

जिज्ञासु मन का अति विनम्रता से एक प्रश्न:

1947 से 2024 तक, सनातन धर्म के उत्थान में अपना योगदान बतायें श्री श्री 1008 महाचार्यों ?

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