बहराइच : हिंदू बुजुर्ग चीख-चीखकर कह रहे- मस्जिद से ऐलान हुआ… लेकिन जाँच की जगह मोहम्मद जुबैर संग की लाइन पकड़ रही बहराइच पुलिस, क्यों? पुलिस सच्चाई से क्यों पीछे भाग रही है?

                                                    ग्राउंड रिपोर्टिंग पर बहराइच पुलिस
बहराइच के महाराजगंज में 13 अक्तूबर 2024 को दुर्गा पूजा विसर्जन के मौके पर इस्लामी भीड़ ने हमला किया था। इस हमले में 23 साल के युवक रामगोपाल मिश्रा की हत्या कर दी गई थी। वहीं अन्य जो हिंदू घायल हुए थे उनमें से एक 70 साल के विनोद मिश्रा भी हैं, जिन्होंने अलग-अलग मीडिया संस्थानों के सामने बार-बार कहा है कि घटना वाले दिन पहले मूर्ति पर पत्थर मारा गया, फिर उसके बाद मस्जिद से ऐलान हुआ और फिर हिंदुओं पर हमला हुआ।

ये बात उन्होंने आजतक के साथ भी बातचीत में कही थी और यही बात उन्होंने ऑपइंडिया के पत्रकार राहुल पांडेय के सामने कैमरे में भी कही, फिर दैनिक जागरण ने भी उनके बयान पर रिपोर्ट की और कई मीडिया संस्थानों ने भी उनकी आवाज उठाई।

अब चूँकि हर मीडिया संस्थान का पत्रकार इस घटना की सच्चाई जानने के लिए ग्राउंड पर गया था तो उन्होंने वहाँ चोटिल पीड़ित की आवाज को उठाया और स्थानीयों से बात करके पता लगाया कि आखिर इतना बवाल उस दिन शुरू कैसे हुआ।ऑपइंडिया के पत्रकार राहुल मिश्रा भी ग्राउंड जीरो से स्थिति हमारे पाठकों के सामने महाराजगंज पहुँचे। उन्होंने पीड़ितों से बात की और जो उन्होंने कहा उसकी वीडियो रिकॉर्ड की।

इसी में एक वीडियो विनोद कुमार मिश्रा की भी है। विनोद उन घायलों में से हैं जिन्हें 13 अक्तूबर को इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने निशाना बनाया। उनके अनुसार अगर वो उस दिन भागे नहीं होते तो भीड़ उन्हें मार देती। उन्होंने क्या कहा, इसे पहले पढ़िए: “पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो हिंदू तितर-बितर होगए। तब, मस्जिद से अल्लाह-हू-अकबर करके बोला गया और उसके बाद आवाज आई कि जो जहाँ मिले उसे मार दो काट दो।”

वीडियो में विनोद मिश्रा की यह बात आप साफ तौर पर 1 मिनट से पहले ही सुन सकते हैं और बाद में राहुल पांडेय को पूछते भी सुना जा सकता है कि क्या आपने ये खुद सुना?

इस पर विनोद मिश्रा ने हाँ बिलकुल सुना में जवाब देते हुए कहा, उधर से 200-300 की संख्या में भीड़ बाँका बल्लम, अवैध असलहे, तमंचे जैसे औजार लेके दौड़ी। सामने हमारी गड़ी थी। उसे हम इस बार लेकर आने। हमने गाड़ी स्टार्ट की हुई थी ये सोचकर ये सब लोग हमें जानते-पहचानते हैं हमें कुछ नहीं करेंगे। लेकिन वो 5-7 की संख्या में आए और फरसा से वार कर दिया। हमने हाथ उठाया तो वहाँ गहरा घाव हो गया और कुर्ता खून से सराबोर हो गया। हम लहूलुहान थे और उन्होंने तब तक गाड़ी का तार काट दिया। हम इतने में वहाँ से भागने लगे। जब भागे तो उन्होंने लाठी चला दी। हमारी पीठ पर काफी चोट के निशान हैं और हाथ भी टूट गया। बाद में पता चला कि गाड़ी में भी आग लगा दी गई है।”

ये पूरा बयान वीडियो में हिंसा में घायल हुए विनोद मिश्रा का है। उन्होंने ये बयान कैमरे पर दिया, बिना रुके दिया। ऐसा भी नहीं था कि राहुल पांडेय उनसे कुछ चुनिंदा सवाल कर रहे हों, उन्होंने सिर्फ घटना के बारे में पूछा और ये बयान सामने आया।

जैसा कि ऊपर बताया ऐसा नहीं था कि विनोद मिश्रा ने ये बयान सिर्फ ऑपइंडिया रिपोर्टर को दिया। उन्होंने यही घटना का विवरण हमारे रिपोर्टर से पहले आजतक को भी दिया था। जिसे उन्होंने एक्सक्लूसिव कहकर चलाया। इसके बाद जी न्यूज पर उनके बयान की कवरेज साफ तौर पर देखी जा सकती हैं और अन्य समाचार पोर्टलों पर भी।

                                                        आजतक की रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट

सामान्य तौर पर जब किसी क्षेत्र में ऐसे बवाल सामने आते हैं तो पत्रकारों के पास दिखाने का यही तरीका होता है कि वो पीड़ित की बात जस की तस रखें। राहुल पांडेय ने भी यही किया।

उनकी इसी रिपोर्ट को जब ऑपइंडिया के पेज पर पब्लिक किया गया तो मोहम्मद जुबैर जैसे लोग एक्टिव हो गए। उन्होंने हिंदू पीड़ित के पूरे बयान को खारिज कर इसे तथ्यहीन बता दिया और बहराइच पुलिस को टैग कर दिया। इसके बाद खुद बहराइच पुलिस ने उस रिपोर्ट के नीचे रिप्लाई कर विनोद मिश्रा के बयान को ‘भ्रामक तथ्य’ करार दिया। साथ ही कहा कि जिन घटना के संबंध में साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, उन्हें बिन जानकारी प्रसारित न करें।

ग्राउंड पर उतरे पत्रकार की रिपोर्ट जिसमें वह पीड़ित की आवाज उठा रहा हो, उसे लेकर ऐसी चेतावनी मिलनी थोड़ी अजीब थी। हमने अन्य संस्थानों की रिपोर्ट चेक की जहाँ विनोद मिश्रा का बयान आधार बनाया गया था वहाँ भी पुलिस का यही कहना था। देख सकते हैं कि दैनिक जागरण की रिपोर्ट के नीचे भी ऐसा कुछ लिखा गया।

अब जब तक सोशल मीडिया पर एक हिंदू पीड़ितों के दिए बयान को खारिज करने का काम मोहम्मद जुबैर जैसे लोग कर रहे थे तब तक हमें फर्क नहीं पड़ा क्योंकि ऐसे लोगों तो रामगोपाल की हत्या को भी जायज बताने में कोई कसर नहीं छोड़े और सरफराज-तालिब के पकड़े जाने पर रोना रोते हैं… पुलिस प्रशासन द्वारा हिंदू पीड़ित (जिनका हाथ टूटा है, पीठ पर निशान हैं, गाड़ी में आग लगा दी गई है) के बयान को संज्ञान में न लेना और उसे भ्रामक कहना सबको अजीब लगा। लोगों ने बहराइच पुलिस से पूछना शुरू कर दिया कि साक्ष्य का मतलब क्या होता है। क्या पीड़ित का बयान जाँच का आधार नहीं बनाया जाता?

अगर पत्रकार ग्राउंड पर उतरेगा तो जाहिर है स्थानीयों और पीड़ितों का भी पक्ष रखेगा। अगर खुद हिंसा का शिकार पीड़ित वही बयान दे तो संस्थान इसमें कैसे भ्रामक खबर फैलाने के लिए उत्तरदायी हुआ?

बहराइच पुलिस इस मामले में क्या एक्शन लेगी ये तो नहीं पता लेकिन पत्रकारिता में पीड़ितों की आवाज जस की तस उठाने को भ्रामक जानकारी फैलाना नहीं कहा जा सकता। अगर ऐसा है रिपोर्टिंग करने के अन्य तरीके भी पुलिस को साफ कर देना चाहिए।

फिलहाल, बता दें कि इस मामले में सिर्फ दंगा करने वालों पर ही कार्रवाई नहीं हुई बल्कि घटना वाले दिन बहराइच पुलिस की सक्रियता पर भी सवाल उठ रहे हैं। सीओ को इस मामले में सस्पेंड भी किया जा चुका है और मीडिया में ही ये बताया जा रहा है कि अन्य पुलिसकर्मियों द्वारा दिखाई गई लापरवाही की भी जाँच हो रही है। जिस घर में 23 साल के रामगोपाल की हत्या हुई है उस घर के लोगों का साफ कहना है कि अगर पुलिस उस दिन थोड़ी सक्रियता दिखाती तो शायद रामगोपाल जिंदा होते…।

सच्चाई क्या है ये प्रशासन अपनी जाँच में पता लगा ही लेगा। कार्रवाई भी होगी। मगर ग्राउंड पर उतरे पत्रकारों की रिपोर्ट पर उन्हें धमकाना उचित नहीं है। सोचकर देखिए कोई भी सच्चाई जानने यदि उतरेगा तो उसकी पहली कोशिश यही होगी कि वो उन लोगों से बात करे तो उस घटना में निशाना बनाए गए। ऑपइंडिया के राहुल पांडेय ने भी यही किया है। सवाल तोड़-मरोड़ के पेश किए बिना वो घटना पूछी जो उस दिन हुई…।

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