
साभार - वेदांतु
भारत ने 78 वर्ष बर्बाद कर दिए भारत के गौरवशाली इतिहास को सामने लाने में। यह भारत का दुर्भाग्य है कि झूठा इतिहास लिखने और बताने वालों को देश अपने सिर पर बैठाये रहा। 1555 में फ्रेंच ज्योतिष नॉस्त्रेदमस की भविष्यवाणी सच साबित हो रही है कि हिन्द(हिन्दुस्तान) को असली आज़ादी 2014 में मिलेगी। देशहित में जितनी जल्दी हो असली इतिहास सामने लाना चाहिए। एक लम्बे समय से भारत के गौरवशाली इतिहास को सामने लाने के लिए देशप्रेमी चीख रहे थे। लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथ के पैरों में अपनी पगड़ी रख चुके पाखंडी धर्मनिरपेक्ष और देशप्रेम से जनता को गुमराह करने वाले नेता और उनकी पार्टियां वास्तविक इतिहास बताने वालों को फिरकापरस्त, साम्प्रदायिक और हिन्दू मुस्लिम एकता के दुश्मन बताकर बदनाम किया जाता रहा। अब जो देश का असली इतिहास सामने आना शुरू हुआ है निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को सच्चाई से रूबरू होकर हिन्दुओं के धार्मिक स्थलों पर जल्दी निर्णय करना चाहिए। बहुत हो गयी हिन्दू मुस्लिम की नौटंकी।
इतना ही नहीं जिसे देखो यही यह कहता/सुनाता नज़र आता है कि जो जीता वही सिकंदर। मेरे पिताश्री के अनुसार सच्चाई यह कि सिकंदर द्वारा भारत की पावन धरती पर पैर रखते ही हिन्दू सम्राट पोरस ने इतनी कुटाई की कि ज़िंदगी में भारत की और मुड़कर नहीं देखने की हिम्मत नहीं हुई। अब असली इतिहास सामने आने का शंखनाद हो चुका है। इतिहास के नाम हुए सारे पाखंड क़दमों में रोंदे जायेंगे।

देखिए ऊपर 2013 में लिखा मेरा स्तम्भ। जो इस हिन्दी पाक्षिक को सम्पादित करते लिखा था। इससे पहले लिखा था शीर्षक लाल किला किसने और कब बनवाया? जिस पर मेरे अपनी गली में कुछ जेहादी प्रवत्ति के लोगों ने सिर्फ मुझे, संपादक को गालियों देने के अलावा मेरे मृतक परमपूजनीय माता-पिता के लिए भी अपमानित शब्दों का इस्तेमाल किया। आक्रांताओं जिन्हे मुग़ल बादशाह के नामों से पढ़ाया गया, नहीं मालूम पाखंडी इतिहासकारों को कि इन सनातन विरोधियों के समय में यमुना नदी सुभाष मैदान तक बहती थी। यानि लालकिला यमुना नदी के बीच था। ये तो ब्रिटिश काल में यमुना नदी का कटाव किया गया था। इसीलिए सुभाष पार्क से शांतिवन के क्षेत्र को दरिया गंज कहा जाता है। लेकिन जब उपरोक्त स्तम्भ आया सबकी बोलती बंद हो गयी।
जब शाहजहां ने दिल्ली की सल्तनत ली तब फारस(जिसे आज ईरान कहते हैं) के राजदूत का लालकिला में मिलन होता है। अब पूछो कि शाहजहां क्या लाल किला अपनी माँ के पेट से लेकर आया था?
यदाकदा ब्लॉग भी लिखता रहा हूँ कुछ का नीचे लिंक दिया गया है। ऐय्याश अकबर को महान बताने वालों से पूछो कि वो सिर्फ औरतों के लिए मीना बाजार क्यों लगाता था। जिसमे दूध पीते लड़के तक को ले जाने की इजाजत नहीं थी। और खुद बुरका ओढ़ ख़ूबसूरत हसीन लड़कियों/औरतों को तलाशता था, मिलने पर परदे में चल रहे अपने सिपाहियों को हरम में लेकर जाने का इशारा करता था। इस ऐय्याशी के मीना बाजार को बंद करवाने में हिन्दू शेरनी किरण देवी की वीरता थी। जमीन पर पटक कर अपनी कटारों से जैसे ही मारने जाने पर जिन्दगी की भीख मांगी थी कि आज के बाद कभी मीना बाजार नहीं लगाने का वायदा किया था। देखिए ऊपर पेंटिंग जो शायद बीकानेर म्युसियम में है। चरित्रोपाख्यान: अकबर और रंग कुमारी की कहानी
आगरा स्थित अकबराबाद में एक साहूकार रहा करता था। रंग कुमारी उसी की बेटी थी। कहते हैं उसका सौंदर्य ऐसा था कि जो भी एक बार देख ले मोहित हो जाता। उस समय आगरा अकबर की राजधानी थी और वह वहीं से शासन चलाया करता था। वह फतेहपुर सीकरी में अपना दरबार लगाया करता था। अकबर को शिकार का शौक था और वह अक्सर शिकार खेलने जाया करता था।
एक बार शिकार खेलने के दौरान ही अकबर की नज़र रंग कुमारी पर पड़ी और वह तुरंत ही उस पर मोहित हो गया। अकबर उसे हर हाल में पाना चाहता था। अकबर के बारे में पुस्तक लिख चुके डर्क कोलियर कहते हैं कि अकबर के महल में कम से कम 5000 महिलाएँ होती ही होती थीं। बेल्जियम के लेखक के अनुसार, अकबर अनगिनत महिलाओं के साथ सो चुका था और यह सब तभी शुरू हो गया था जब वह काफ़ी कम उम्र का था। इतिहासकारों की मानें तो अकबर की 300 के क़रीब पत्नियाँ थीं।
अकबर ने कई राजपूत राजघरानों की लड़कियों से शादी कर रखी थी। ख़ैर, वापस रंग कुमारी की कहानी पर आएँ तो अकबर ने अपनी एक दासी को उसके पास भेजा। वह दासी अकबर का सन्देश लेकर रंग कुमार के पास गई। सन्देश यही था कि अकबर ने रंग कुमारी को अपने महल में बुलाया है। रंग कुमारी चालाक महिला थीं। उन्होंने अकबर के पास जाना स्वीकार नहीं किया, लेकिन वह जानती थीं कि वह एक शक्तिशाली बादशाह है। इसीलिए, रंग कुमारी ने अकबर को अपने घर पर बुलाया।
दासी ने अकबर को जाकर रंग कुमारी का सन्देश कहा। जब अकबर रंग कुमारी के पास पहुँचा तो वह बिस्तर लगा रही थी। फिर क्या था, अकबर की ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसे लगा कि वह अपने उद्देश्य में सफल हो रहा है। लेकिन, रंग कुमारी भी पतिव्रता हिन्दू महिला थीं। रंग कुमारी ने अकबर को काफ़ी इज्जत दी। बिस्तर लगाने के बाद अकबर से कहा कि वह शौचालय से निपट कर आना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि वह जल्दी ही आ जाएँगी। ‘चरित्रोपाख्यान’ के अंग्रेजी अनुवाद का अंश (अनुवादक: प्रीतपाल सिंह बिंद्रा ) शौचालय जाने के बहाने निकली रंगा कुमारी ने दरवाजा तेज़ी से बंद कर दिया और इस तरह से अकबर अंदर कमरे में ही क़ैद हो गया। इसके बाद कुमारी अपने पति को लेकर उस कमरे में आ गईं। अपनी पत्नी के साथ छेड़छाड़ से क्रुद्ध रंग कुमारी के पति ने गुस्से में न सिर्फ़ अकबर के ताज को ज़मीन पर पटक कर अपने पैरों तले रौंद डाला बल्कि अपना जूता निकाल कर अकबर को कई जूते लगाए भी।
बादशाह अकबर अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा के डर से यह सब बर्दाश्त करता रहा। कहीं न कहीं उसके मन में यह एहसास भी हो गया कि उसने ग़लत किया है। लज्जा के मारे वह चुपचाप खड़ा रहा। इसके बाद रंग कुमारी और उसके पति ने मिल कर अकबर को एक भू-गर्भित कालकोठरी में क़ैद कर दिया। हिंदुस्तान का बादशाह होकर औरतों पर ग़लत नज़र डालने वाले अकबर की ये कहानी शायद ही कहीं और पढ़ी-पढ़ाई गई हो।
अगले दिन की सुबह होते ही पति-पत्नी अकबर को लेकर शहर के क़ाज़ी के पास पहुँचे। न्यायालय में रंग कुमारी और उसके पति ने अकबर के कुकृत्यों को बताने के बाद कहा, “यह एक संत है, चोर है, साहूकार है या फिर बादशाह है, आप ख़ुद पता कर लीजिए।” इतना कह कर निकल गए। लज्जा के मारे अकबर का सिर ऊपर उठ ही नहीं रहा था। पूरे प्रकरण के दौरान वह सिर झुकाए खड़ा रहा।
‘चरित्रोपाख्यान’ में पूछा गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस तरह से पराई स्त्री पर नज़र डालता है और उसके घर में घुस जाता है, क्या उसे दण्डित नहीं किया जाना चाहिए? बादशाह अकबर को इस घटना के बाद अच्छी सीख मिली और उसके बाद उसने किसी पराई स्त्री के घर में घुसना बंद कर दिया। उपर्युक्त कहानी सिख ग्रन्थ ‘चरित्रोपाख्यान’ में वर्णित है, जिसके रचयिता गुरु गोविन्द सिंह माने गए हैं।
Rang Kumari’s husband had no idea the intruder pursuing his wife was Emperor Akbar. He thrashed Akbar with shoes and locked him inside the room.
The next day he informed the civil judge (Qazi) and handed over the intruder. Akbar was totally humiliated and couldn’t speak a word. pic.twitter.com/1H9MHSZHdn
— True Indology (@TIinExile) August 21, 2019 NCERT की कक्षा 8 की सामाजिक विज्ञान की नई किताब अब मुग़ल तथा इस्लामी आक्रान्ताओं की सच्चाई बताएगी। ‘समाज की खोज: भारत और उससे आगे भाग 1’ किताब में मुस्लिम आक्रांताओं की क्रूरता को भी बच्चों को पढ़ाया जाएगा। इस किताब में दिल्ली सल्तनत और मुगलों के शासनकाल को एक नए दृष्टिकोण से दिखाया गया है।
इस पुस्तक में बाबर को ‘क्रूर विजेता’, अकबर के शासन को ‘क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण’ और औरंगजेब को ‘मंदिरों व गुरुद्वारों को नष्ट करने वाला’ बताया गया है। किताब में सल्तनत काल को लूट, विध्वंस और धार्मिक असहिष्णुता से भरा बताया गया है।
इंडियन एक्स्प्रेस के अनुसार, NCERT ने बताया है कि यह नई पुस्तक 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच के राजनीतिक घटनाक्रम, विद्रोहों और धार्मिक संघर्षों को केंद्र में रखती है, जिसे अब पहली बार कक्षा 8 में पढ़ाया जा रहा है। इससे पहले इसे 7वीं कक्षा में पढ़ाया जाता था।
सल्तनत काल और धार्मिक स्थलों पर हमले
नई पुस्तक में बताया गया है कि अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने श्रीरंगम, मदुरै, चिदंबरम और संभवतः रामेश्वरम जैसे प्रमुख हिंदू धार्मिक स्थलों पर आक्रमण किए। दिल्ली सल्तनत के दौरान बौद्ध, जैन और हिंदू मंदिरों पर कई बार हमले हुए। किताब के अनुसार, इन हमलों का उद्देश्य केवल लूट नहीं था, बल्कि मूर्तिभंजन यानी धार्मिक प्रतीकों का विनाश भी इसका मुख्य उद्देश्य था।
जजिया कर और गैर-मुस्लिम प्रजा
पुस्तक में ‘जजिया’ कर के बारे में भी बताया गया है। बताया गया है कि कुछ मुस्लिम शासकों द्वारा गैर-मुसलमानों (हिन्दुओं) पर लगाया गया था। किताब के अनुसार, यह कर उनके लिए सार्वजनिक अपमान का कारण भी बन गया। नई किताब के अनुसार, इस कर ने इस्लाम अपनाने के लिए एक प्रकार का वित्तीय और सामाजिक दबाव पैदा किया। कक्षा 7 की पुरानी किताब में जज़िया को भूमि कर के साथ वसूला गया कर बताया गया था, जबकि नई किताब इसे एक स्वतंत्र और अलग कर के रूप में पेश करती है।
बाबर – एक विजेता की दोहरी छवि
बाबर की आत्मकथा में उसे एक सुसंस्कृत और बौद्धिक रूप से जिज्ञासु व्यक्ति बताया गया है, लेकिन नई किताब में कहा गया है कि वह एक क्रूर विजेता था। किताब में बताया गया है कि उसने कई शहरों में नरसंहार किए, महिलाओं और बच्चों को गुलाम बनाया और लूटे गए शहरों के मारे गए लोगों की खोपड़ियों से मीनारें बनवाने पर गर्व महसूस किया। वहीं, पुरानी किताब में बाबर को केवल एक ऐसा शासक बताया गया था जिसे अपने सिंहासन से हटने के बाद काबुल और फिर दिल्ली और आगरा पर कब्ज़ा करने का अवसर मिला।
अकबर – सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण
अकबर को नई किताब में एक ऐसा शासक बताया गया है जिसमें सहिष्णुता और क्रूरता दोनों के तत्व थे। नई किताब बताती है कि जब उसने चित्तौड़गढ़ के किले पर आक्रमण किया, तो लगभग 30,000 नागरिकों के नरसंहार का आदेश दिया।
किताब के अनुसार, अपनी जीत की घोषणा करते हुए उसने कहा कि उसने काफिरों के किलों और कस्बों पर कब्जा कर इस्लाम की स्थापना की और तलवार के बल पर मंदिरों को नष्ट कर काफिरों के प्रभाव को मिटा दिया। फिर अकबर ने बाद में विभिन्न धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखाई, फिर भी प्रशासन में गैर-मुसलमानों की संख्या अल्प ही रही।
औरंगजेब – धार्मिकता और राजनीति
नई किताब औरंगजेब के शासन को राजनीतिक और मजहबी दृष्टिकोणों से देखती है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि उसके कई निर्णय राजनीतिक थे, उसके फरमान यह भी दिखाते हैं कि उसमें मजहबी कट्टरता भी थी।
उसने अपने राज्य के गवर्नरों को मंदिरों और धार्मिक शिक्षण संस्थानों को नष्ट करने के आदेश दिए। उसने काशी, मथुरा, सोमनाथ के मंदिरों, जैन धार्मिक स्थलों और सिख गुरुद्वारों को ध्वस्त करने का आदेश दिया।
आर्थिक और सामाजिक स्थिति
पुस्तक यह भी बताती है कि सल्तनत और मुगल शासन के अधीन एक मजबूत प्रशासनिक ढाँचा था और 13वीं से 17वीं शताब्दी के बीच आर्थिक गतिविधियाँ काफी जीवंत थीं। शहरों और बुनियादी ढाँचे में काफी प्रगति हुई, लेकिन 1600 के दशक के अंत में आर्थिक संकट और दबाव का दौर शुरू हुआ। इसके बावजूद, भारतीय समाज ने कस्बों, मंदिरों और अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं के पुनर्निर्माण में लचीलापन और अनुकूलन क्षमता दिखाई।
मराठा और शिवाजी का योगदान
अध्याय के अंत में मराठों का वर्णन किया गया है, जिसमें शिवाजी को एक कुशल रणनीतिकार और दूरदर्शी नेता कहा गया है। उन्हें एक धार्मिक हिंदू बताया गया है जो अन्य धर्मों का सम्मान करते थे और अपवित्र हो चुके मंदिरों का पुनर्निर्माण करवाते थे।
किताब के भीतर मराठों को भारत के सांस्कृतिक विकास में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता माना गया है। पुरानी किताब में शिवाजी को केवल एक कुशल प्रशासक और मराठा राज्य की नींव रखने वाला बताया गया था, लेकिन नई किताब में उनके धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को भी महत्व दिया गया है।
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ऐय्याश अकबर को महान बताने वाले इतिहासकारों का बहिष्कार हो
पिताश्री एम.बी.एल. निगम श्री केवल रतन मलकानी अस्सी के दशक में विश्व चर्चित पत्रकार श्री केवल रतन मलकानी, मुख्य सम्प....
नई किताब में दिल्ली सल्तनत के उत्थान-पतन, विजयनगर साम्राज्य, मुगलों का शासन, उनके खिलाफ हुए प्रतिरोध और सिखों के उदय को विस्तार से दर्शाया गया है। गौर करने वाली बात यह भी है कि पहले दिल्ली सल्तनत और मुगल इतिहास की पढ़ाई कक्षा 7वीं में होती थी।
लेकिन अब नए पाठ्यक्रम संरचना में बदलाव करते हुए, इसे 8वीं कक्षा में शामिल किया गया है। यह नई किताब पहले से कहीं ज्यादा आलोचनात्मक, विश्लेषणात्मक और तथ्यों पर आधारित है। इसमें शासकों की धार्मिक और सैन्य नीतियों का खुलकर अंदाजा लगाया गया है, जिसकी जानकारी पहले की किताबों में हल्की फुलकी ही दी गई थी।
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