पंजाब : नशा और धर्मांतरण बने नासूर: केजरीवाल के इशारे पर नाचने को मजबूर मुख्यमंत्री भगवंत मान; दलित और पिछड़ी जातियों के नाम पर खुली दुकानों के दुकानदार खामोश, क्यों?

गुरुओं की जिस धरती पर गुरु गोविंद सिंह ने धर्म की रक्षा करने और सच्चे गुरुसिख बनाने के लिए अपने दो साहिबजादों को शहीद करवा दिया था, वहां पर अब धर्मांतरण और नशे का खुला खेल चल रहा है। आम आदमी पार्टी की भगवंत मान सरकार में गरीब हिंदुओं-सिखों को बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करके ईसाई बनाया जा रहा है। इसके लिए ईसाई मिशनरी तरह-तरह के ढोंग रचते हैं। वो अपने अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने का स्वांग भरते हुए गरीब और कम पढे़-लिखे लोगों को ईसाई बना रहे है। खास बात ये है कि इन नए-नकोरे ईसाइयों में से कइयों ने दस्तावेजों पर फिलहाल कुछ नहीं बदला है। दरअसल, अरविंद केजरीवाल की राजनीति पूरी तरह झूठ पर आधारित है। झूठे वादे और हसीन सपने दिखाकर ये जनता को भरमाते हैं। लेकिन अब एक के बाद एक उनके झूठ पर से पर्दा उठ रहा है। दिल्ली की जनता ने तो ‘झूठे’ केजरीवाल को सत्ता से बाहर ही कर दिया है। पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल ने गारंटी दी थी कि तीन महीने के अंदर नशा खत्म कर देंगे। लेकिन इतना समय बीत जाने के बाद भी अपना वादा पूरा नहीं किया। इसका खामियाजा यहां की युवा पीढ़ी को उठाना पड़ रहा है। आज पंजाब के युवा ड्रग ओवरडोज के शिकार हो रहे हैं और केजरीवाल-मान की गारंटी गायब है।

केजरीवाल जो चाहता है, वो मजबूर मान को करना पड़ता है
दरअसल, पंजाब सरकार के मुख्यमंत्री की अपनी मजबूरी है। दरअसल, उनकी पार्टी और सरकार दिल्ली से चलती है। कई बार मुख्यमंत्री मान भी मजबूर होते हैं। केजरीवाल जो चाहता है, वो उसको करना पड़ता है। हालांकि मैंने फाइलों पर उल्टा सीधा लिखने के क्रम को तोड़ा है। अगर पंजाब सरकार की कोई चीज समझ में नहीं आती तो बुला लेते हैं। उनसे बात करके समझने की कोशिश की। कई बार मेरी बात उनको ठीक लगती है तो वह स्वीकार कर लेते हैं। टकराव की स्थिति मतभिन्नता से बनती है।

पंजाब में नशा और धर्मांतरण दो बड़ी समस्याएं बन गई हैं

आप सरकार आने के बाद से पंजाब में नशा और धर्मांतरण दो बड़ी समस्याएं बन गई हैं और सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही हैं। पंजाब के राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया ने मीडिया से बातचीत में साफ-साफ कहते हैं कि राज्य की दो ही बड़ी समस्याएं हैं- नशा और धर्मातंरण। मुझसे मिलने आने वाले पंजाब के ज्यादातर लोग इन्हीं का जिक्र करते हैं। नशे के खिलाफ अभियान पर कटारिया ने कहा- इसके लिए मिलकर प्रयास कर सकते हैं। नशा पंजाब की जड़ों में इस कदर फैल गया है कि तत्काल सफलता तो बहुत दूर है, लेकिन कोशिश शुरू करें तो सकारत्मक परिणाम आएंगे। मैं जब से पंजाब आया हूं, रोज क्राइम रिपोर्ट देखता हूं। इसमें नशे के कारोबार और धर्मांतरण के मामले खूब आ रहे हैं।
सीमावर्ती जिलों में बच्चों में नशे की प्रवृति ने झकझोर दिया
राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया बताते है कि मैं सीमावर्ती जिलों के दौरे पर गया, वहां विलेज कमेटी के लोगों से मिला। वहां महिलाएं खड़ी थीं। उन्होंने हाथ जोड़कर कहा कि गवर्नर साहब और कुछ कर सको तो करना। हमारे बच्चों को नशे से बचा लो। उनकी आंखों में जो करुणा और दर्द था, उसने मुझे झकझोर दिया। महिला कह रही थी, जवान बेटा तड़प रहा है। उसे नशा लाकर देना होता है। हमने इसके खिलाफ अभियान शुरू किया है। मैं खुद पैदल यात्रा में शामिल हुआ। लोगों का गजब रिस्पॉन्स मिला।
बिखर चुकी कांग्रेस पार्टी में नेता घुटन महसूस कर रहे हैं
कांग्रेस से बहुत से नेताओं को बीजेपी में ज्वाइन करने पर कटारिया कहते हैं कि कांग्रेस तो बिखर रही है। उनकी विचारधारा को लोग पसंद नहीं करते। अब उनके नेताओं की मजबूरी है। क्योंकि वो पार्टी से जुड़े हुए हैं। कांग्रेस में पहले कई अच्छे लोग भी रहे हैं। प्रणब मुखर्जी से अच्छा व्यक्ति कौन हो सकता है, लेकिन वो भी घुटन महसूस करते थे। उनके जीवन में मूल्य बहुत प्रमुख थे, लेकिन उसके बाद तो केवल तुष्टीकरण के आधार पर देश को कमजोर करते चले गए। इससे कांग्रेस कमजोर होती गई। जो अच्छे लोग हैं, वह सब वहां अपने आप को अच्छा नहीं समझते थे। कई लोग उस कारण से भी निकले। बाहर से अच्छे लोग लेने में दिक्कत नहीं है। लेकिन कैडर उतना मजबूत हो कि बाहर वालों को अपने हिसाब से ढालकर ट्रेंड कर सकें। कोई नुकसान नहीं होगा। बीजेपी नेता अपने परिश्रम और विचार के आधार पर चुनाव लड़ते हैं। उनको जनता पहले भी पसंद करती थी। आज भी पसंद करती है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दीनदयालजी से लेकर अब पीएम मोदी तक हमारे दिग्गज नेताओं ने जिस समर्पण भाव से संगठन खड़ा किया। उसकी प्रतिष्ठा जनता के बीच में है।
धर्मांतरण के चलते पंजाब में आठ गुना से ज्यादा बढ़ चुके हैं ईसाई
पंजाब में जहां तक धर्मांतरण की बात है तो साल 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में सिखों की संख्या जहां 57.69 प्रतिशत थी तो हिंदुओं की आबादी 38.49 प्रतिशत थी वहीं पंजाब में ईसाइयों की आबादी करीब डेढ़ प्रतिशत ही थी। ऐसे में अपनी आबादी बढ़ाने के लिए ईसाइयों द्वारा गरीब सिखों और हिंदुओं को ईसाई धर्म में शामिल किया जा रहा है। पंजाब में धर्म परिवर्तन का असर यह है कि प्रदेश में ईसाइयों के चर्च की संख्या बढ़ती जा रही है। पाकिस्तान से सटे बॉर्डर इलाकों में यह चर्च बनाए जा रहे हैं। इसके साथ ही ईसाई धर्म को बढ़ावा देने के लिए दीवारों पर संदेश भी लिखे जा रहे हैं। हालात यह हैं कि अब ईसाई धर्म को मानने वाले 12 फीसदी से ऊपर जा चुके हैं। पिछले दिनों धर्मांतरण के खिलाफ निहंग सिखों ने भी जोरदार विरोध प्रदर्शन किया था। लेकिन इन सब के बीच पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं। इस अवैध धर्म परिवर्तन के खिलाफ सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। अगर इसकी तह में जाएं तो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सनातन धर्म से नफरत की बात सामने आती है। केजरीवाल ईसाई संत मदर टेरेसा के शिष्य रह चुके हैं और इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस विचारधारा से प्रेरित है।
पंजाब में मस्जिदें और चर्च बनना चिंता का विषयः  ज्ञानी हरप्रीत सिंह
अकाल तख्त की ओर से  ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि हमें धार्मिक रूप से कमजोर करने के लिए पंजाब की इस धरती पर बहुत जोर-शोर से ईसाई धर्म का प्रचार किया जा रहा है। पंजाब में विभिन्न जगहों पर मस्जिदें और चर्च बन रहे हैं, जो हमारे लिए चिंता का विषय है। पंजाब के सिखों और हिंदुओं को गुमराह कर उन्हें ईसाई बनाने की कोशिश की जा रही है और यह सब सरकार की नाक के नीचे हो रहा है।
धर्म परिवर्तन के बारे में क्या कहता है संविधान
भारतीय संविधान के (अनुच्छेद 25-28) अनुसार कोई व्यक्ति अपनी पसंद से कोई भी धर्म चुन सकता है, और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति का धर्म जबरन या लालच देकर नहीं कराया जा सकता। भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए और 298 के अनुसार यह एक दंडनीय अपराध है। इसे लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में कानून बने हैं। धर्म परिवर्तन करने के दो तरीके हैं। पहला कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए और दूसरा धार्मिक स्थल पर जाकर उनके निर्धारित शिष्टाचार का पालन करते हुए। अगर कोई अपना धर्म बदलना चाहता है तो उसे अपने ज़िले के कलेक्टर या किसी अन्य संबंधित अधिकारी को नोटिस देना होगा। नोटिस देने के 30 से 60 दिनों के अंदर धर्म परिवर्तन कराया जाएगा। इसके लिए आपको कोर्ट या किसी वकील से एक हलफनामा बनाना होगा और अपनी सारी जानकारी देनी होगी – जैसे आप किस धर्म में जा रहे हैं, नाम और पता आदि। धर्म बदलने के बाद धर्म गजट कार्यालय में अपना नया नाम और धर्म दर्ज कराना होता है।
लोगों को लुभाने के लिए मंच से चमत्कार के दावे, इसका लोग कर रहे विरोध
इस धर्मांतरण का सबसे ज्यादा विरोध इसके तरीकों को लेकर किया जा रहा है। ईसाई मिशनरी मंच पर खड़े होकर अपने अंदर ईसा मसीह की आत्मा आने की बात कहते हैं। वे तरह-तरह के स्वांग रचकर गरीब-अशिक्षित लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए कहते हैं। वे चमत्कारिक तरीके से लंबे समय से बीमार चल रहे लोगों को ठीक करने का दावा करते हैं। वे उन बीमार लोगों का भी पल भर में इलाज करने का दावा करते हैं जिन बीमारियों का इलाज संभव नहीं है। मंच से कुछ लोग इस बात का भी दावा करते हैं कि उनकी कैंसर जैसी गंभीर बीमारी लंबे समय से ठीक नहीं हो रही थी। लेकिन जैसे ही उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया, उनकी बीमारी ठीक हो गई। इससे गरीब-अशिक्षित लोग प्रभावित होकर ईसाई धर्म की ओर मुड़ जाते हैं। इस तरह के वीडियो सोशल मीडिया पर फैलाकर भी लोगों को ईसाई धर्म की ओर आकर्षित किया जाता है। वे गरीबों को यह बताते हैं कि ईसाई धर्म अपनाने से वे अमेरिकी-यूरोपीय देशों के ईसाइयों की तरह धनवान बन जाएंगे। लेकिन यह संभव नहीं है और इसका कोई आधार नहीं है। यही कारण है कि सिख समुदाय की ओर से इन दावों को गैरकानूनी बताकर इनका विरोध किया जा रहा है।
पादरियों की संख्या 65 हजार से अधिक हो चुकी
साल 2011 की जनगणना के अनुसार, पंजाब में ईसाइयों की कुल जनसंख्या 3 लाख 48 हजार थी। लेकिन आज आलम यह है कि यहां पादरियों की संख्या 65,000 के करीब हो चुकी है। यही नहीं पंजाब में ईसाइयत के प्रचार का बेड़ा उठाए लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पंजाब में सिखों को ईसाई बनाने के तमाशे ने लाखों लोगों को चर्च तक पहुंचा दिया है। यह संख्या लगातार बढ़ रही है। हालत यह है कि ईसाई मिशनरी यहां के सभी 23 जिलों में फैली हुई हैं। ये मिशनरियां माझा और दोआबा बेल्ट के अलावा मालवा में फिरोजपुर और फाजिल्का के सीमावर्ती इलाकों में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं।
पंजाब के सीमावर्ती इलाक़ों में तेजी से फैला ईसाई धर्म
चंडीगढ़ से अमृतसर और गुरदासपुर जाते हुए रास्ते में आपको जगह-जगह ईसाई पादरियों के पोस्टर और होर्डिंग दिखाई देंगे। पाकिस्तान से लगने वाले पंजाब के इलाक़ों में ईसाई धर्म का कितना प्रभाव है। इसका अंदाज़ा गांवों में बने चर्चों से लगाया जा सकता है। इनमें से अधिकांश नए चर्च निजी तौर पर प्रचार करने वाले पादरियों द्वारा स्थापित किए जा रहे हैं। कई जगहों पर ईसाई धर्म मानने वाले लोगों ने घरों में चर्च स्थापित कर लिए हैं। वह प्रचार के विभिन्न माध्यमों से लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ख़ूब प्रचार भी कर रहे हैं। भारत के 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद हैं। यह कानून पहली बार 1967 में ओडिशा में बनाया गया था। उसके बाद इसे गुजरात, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में लागू किया गया। हरियाणा विधानसभा द्वारा भी धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया जा चुका है। इन सभी राज्यों में कानून का उल्लंघन करने पर सज़ा और जुर्माने की राशि अलग-अलग है।
ईसाई धर्म अपनाने वाले दलित समुदाय के लोग नाम नहीं बदलते
पंजाब में ईसाई समुदाय की आबादी बहुत कम हैं। जानकारों का मानना है कि कम संख्या का एक कारण यह भी है कि बहुत से लोग धर्मांतरण के बाद अपना नाम नहीं बदलते हैं। इसके पीछे कारण है दलित समुदाय के लोगों को मिलने वाला आरक्षण है। सीमावर्ती इलाक़ों में जो धर्मांतरण हो रहा है उस में ज्यादातर लोग ग़रीब और दलित वर्ग से आते है। बहुत सारे दलित असल में ईसाई बन चुके है पर कागजों में दलित ही हैं क्योकि ईसाई समुदाय को कोई आरक्षण नहीं मिलता है। इसलिए बहुत सारे लोग असल में ईसाई घर्म को मानते हैं पर वो ना तो आपना नाम बदलते है और ना ही कोई चीज़ पहनते हैं जिससे ये पता लग सके कि ये लोग आपना धर्म बदल कर ईसाई धर्म अपना चुके है। पंजाब में ईसाई समुदाय की संख्या को देखा जाए तो पता चलता है कि जिन लोगों ने धर्मांतरण किया है उन में से अधिकांश दलित समुदाय के लोग हैं।
पंजाब के कई गांवों में ईसाई हुए बहुसंख्यक
पंजाब के हालात वैसे ही हो रहे हैं जैसे 1980 और 1990 के दशक में तमिलनाडु या आंध्र प्रदेश के हुआ करते थे। गुरदासपुर के कई गांवों की छतों पर छोटे-छोटे चर्च बन गए हैं। पंजाब के सीमावर्ती इलाके में रहने वाले मजहबी सिख और वाल्मीकि हिंदू समुदायों के कई दलितों ने ईसाई धर्म अपना लिया है। यूनाइटेड क्रिश्चियन फ्रंट की मानें तो अमृतसर और गुरदासपुर जिलों में 600-700 चर्च बन चुके हैं, इनमें से 70 फीसदी पिछले पांच वर्षों में ही बने हैं। पाकिस्तान बॉर्डर से लगभग 2 किलोमीटर पहले दुजोवाल गांव पड़ता है। इस गांव में लगभग 30 प्रतिशत लोग ईसाई हैं। गांव में दो गुरुद्वारे हैं और दो ही चर्च हैं।
मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरी के रास्ते पर चल रहे शिष्य केजरीवाल
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ईसाई संत मदर टेरेसा के शिष्य रहे हैं। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि वो किस विचारधारा से प्रेरित है। आम तौर पर माना जाता है कि शिष्य पर गुरु के उपदेशों का असर होता है। केजरीवाल पर भी उनके गुरु के उपदेश का असर दिखाई दे रहा हैे। वो उन्हीं के बताये रास्ते पर चल रहे हैं। जिस तरह मदर टेरेसा ने गरीबों की मुफ्त सेवा के बहाने दलितों और आदिवासियो के बीच पैठ बनाई। उसके बाद ईसाई मिशनरियों ने चमत्कारिक मुफ्त इलाज, मुफ्त शिक्षा और पैसे का लालच देकर और ऊंच-नीच, जात-पात का एहसास दिलाकर गरीब दलितों और आदिवासियों का धर्मांतरण कराया। उसी तरह केजरीवाल भी मुफ्त रेवड़ी कल्चर के जरिए गरीब दलितों, आदिवासियों, सिखों में पैठ बनाकर उनके बौद्ध और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहे हैं।
मदर टेरेसा को संत की उपाधि देने के कार्यक्रम में शामिल हुए थे केजरीवाल
गौरतलब है कि 4 सितंबर, 2016 को वेटिकन सिटी में मदर टेरेसा को पोप फ्रांसिस की मजूदगी में संत की उपाधि दी गई। उपाधि देने के लिए आयजित इस कार्यक्रम में दिल्ली के तत्कालीन सीएम अरविंद केजरीवाल भी शामिल हुए थे। अरविंद केजरीवाल मदर टेरेसा को बहुत मानते थे। इसी समय उन्होंने मदर टेरेसा को याद करते हुए एक लेख आउटलुक पत्रिका में लिखा था। लेख में केजरीवाल ने 1992 में मदर टेरेसा से मिलने और मिशनरीज ऑफ चैरिटी के कालिघाट आश्रम में बिताये गए पलों का जिक्र किया था। उस लेख का कुछ अंश यहां दिया जा रहा है…
मिशनरीज ऑफ चैरिटी और केजरीवाल का संस्मरण
“टाटा स्टील से इस्तीफा दे दिया और मदर टेरेसा से मिलने कोलकाता चला गया। ये सुबह का समय था और वहां लंबी कतारें लगी हुई थीं। वह सभी लोगों से कुछ सेकेंड के लिए मिल रही थी। जैसे ही मेरा नंबर आया उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और पूछा तुम क्या चाहते हो? मैंने मदर से कहा कि मां, मैं आपके साथ काम करना चाहता हूं।
उन्होंने मुझसे कलिघाट आश्रम जाने की बात कही। ये मिशनरीज ऑफ चैरिटी के अहम केंद्रों में से एक था। उन्होंने मुझसे वहां जाकर काम करने के लिए कहा। उस समय कोलकाता ऐसा स्थान था जहां दोनों तरह के लोग मिल जाते थे, जिसमें कुछ तो बहुत गरीब थे, वहीं कुछ बहुत अमीर। फिलहाल वहां अभी के हालात मुझे नहीं पता हैं। मुझे काम दिया गया कि मैं शहर में घूमकर गरीब, असहाय, बेबस लोगों को कलिघाट आश्रम ले जाऊं और उनकी सेवा करूं, मैंने ऐसा ही किया।
एक बार मैंने मदर से पूछा कि आप जरूरतमंद लोगों को सेवा मुहैया कराती हैं, आखिर आप उन्हें ठीक होने के बाद आत्मनिर्भर बनाने पर विचार क्यों नहीं करती हैं? इस पर उन्होंने कहा कि ये काम सरकार और दूसरे एनजीओ का है। उनका काम जरूरतमंदों की सेवा करना है। ये पूरा अनुभव मेरे लिए आध्यात्मिक था। मैं वहां कुछ महीने तक रहा।
जब मैं नागपुर में नेशनल एकेडमी ऑफ डायरेक्ट टैक्स की ट्रेनिंग के लिए पहुंचा, जहां आईआरएस ट्रेनियों को भेजा जाता है, वहां मुझे मदर टेरेसा का आश्रम एकेडमी के बिल्कुल पास ही मिल गया। एकेडमी में ही मेरी सुनीता (पत्नी) से मुलाकात हुई। हम अकसर सप्ताह के आखिर में आश्रम जाते थे। नागपुर का आश्रम बिल्कुल अलग था। यहां कलिघाट आश्रम की तरह वॉलंटियर नहीं बल्कि नन्स होती थी जो सेवा कार्य करती थी। इसलिए यहां हमारे लिए ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था।”
सेवा की आड़ में दलितों और आदिवासियों का धर्मांतरण
दरअसल मदर टरेसा ने गरीबों की सेवा की आड़ में ईसाई मिशनरियों के लिए भारत में एक मैदान तैयार किया, जिसमें वो धर्मांतरण का खेल बखूबी खेल सके। मदर टेरेसा ने तथाकथित नि:स्वार्थ सेवाभाव से भारतीय जनमानस में एक दीन-दुखियों के उद्धारक के रूप में अपनी छवि बनाई, उसका फायदा आगे चलकर ईसाई मिशनरियों ने भी उठाया। पश्चिमी शिक्षा से प्रभावित और खुद को प्रगतिशील बताने वाले वामपंथियों, सेक्युलर और लिबरल गैंग ने मदर टरेसा का खूब महिमामंडन किया। उन्होंने मदर टेरेसा को गरीबों का मसीहा बताकर जनता के सामने पेश किया। लेकिन मदर टेरेसा और ईसाई मिशनरियों का मकसद सेवा की आड़ में दलितों और आदिवासियों का धर्म परिवर्तन कराना था।

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