प्रसून शर्म कर; ‘वाराणसी में 50 बच्चों के पिता का नाम राजकमल दास’: राहुल गाँधी के ‘वोट चोरी’ प्रोपेगेंडा को हवा देने के लिए ‘गुरु-शिष्य’ परंपरा को बदनाम कर रहा कॉन्ग्रेसी इकोसिस्टम

                                                               राहुल गाँधी के झूठ का उजागर
राजनीति में जब कोई भी दल सत्ता में होता है, तो उस पर यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह न्यायपालिका, कानून और संवैधानिक संस्थाओं की निष्पक्षता बनाए रखे। लेकिन जब लगातार कुछ विशेष लोगों को ही बार-बार अग्रिम जमानत मिलती है, तो जनता के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या न्याय सबके लिए समान है?
साभार सोशल मीडिया 
राहुल गांधी, सोनिया गांधी, रॉबर्ट वाड्रा, पी. चिदंबरम जैसे बड़े नामों को अगर हर बार बिना किसी देरी के राहत मिलती है, तो आम नागरिक सोचने पर मजबूर हो जाता है कि क्या यह कानून केवल आम जनता के लिए ही सख्त है? क्या बड़े नामों के लिए अलग मानदंड हैं? यह बात लोकतंत्र की आत्मा पर चोट करती है।
भारत का संविधान सभी नागरिकों को बराबरी का हक़ देता है, फिर चाहे वो प्रधानमंत्री हो या एक आम नागरिक। जब बार-बार एक ही परिवार या पार्टी के लोगों को आसानी से राहत दी जाती है, तो यह न्याय प्रणाली की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है। न्यायपालिका का सबसे बड़ा मूल्य है – जनता का विश्वास, और उसे टूटने नहीं देना चाहिए।
इसलिए यह बहुत आवश्यक है कि ऐसे मामलों में केवल अभियुक्तों की जांच ही नहीं, बल्कि फैसला देने वाले न्यायाधीशों की भूमिका की भी समीक्षा की जाए। इससे ना केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि न्यायपालिका में जनता का विश्वास भी मजबूत होगा।
अगर देश का आम नागरिक यह महसूस करने लगे कि उसे न्याय मिलने की संभावना कम है, लेकिन रसूखदारों को तुरंत राहत मिलती है, तो यह व्यवस्था की जड़ों को हिला सकता है। ऐसे में जांच की प्रक्रिया और निर्णय देने वाले न्यायाधीशों की निष्पक्षता पर भी नजर रखना एक ज़रूरी कदम बन जाता है।

कांग्रेस समर्थकों और कुछ कथित पत्रकारों ने इसे सच बताकर खूब प्रचारित किया। लेकिन जब इस वायरल स्क्रीनशॉट दावे की पड़ताल की तो सच्चाई कुछ और ही निकली। दरअसल यह कहानी 2023 के वाराणसी नगर निगम चुनाव की है और 48 बेटों वाली बात एक धार्मिक परंपरा का हिस्सा है, न कि कोई गड़बड़ी।

फैक्ट चेक: क्या रामकमल दास के 48 बेटे हैं?

सोशल मीडिया पर वायरल हुई वोटर लिस्ट के स्क्रीनशॉट में वाराणसी के वार्ड नंबर 51 की मतदाता सूची दिखाई गई है। इसमें एक ही पते पर रहने वाले कई मतदाताओं के पिता का नाम रामकमल दास लिखा गया है। इन सभी मतदाताओं की उम्र अलग-अलग है, जिससे यह दावा किया गया कि एक ही व्यक्ति के इतने सारे बेटे कैसे हो सकते हैं।

यह दावा पूरी तरह से गलत और भ्रामक है। सोशल मीडिया पर वायरल हो रही यह लिस्ट 2023 के वाराणसी नगर निगम चुनाव की है, जिसमें 48 वोटरों के पिता के रूप में राम जानकी मठ के महंत स्वामी रामकमल दास वेदांती का नाम दर्ज है। ये सभी उनके बच्चे नहीं, बल्कि शिष्य हैं।

जब से बिहार में चुनाव आयोग ने SIR यानी स्पेशल इंटेंसिव रिविजन शुरू करने का ऐलान किया है, तभी से विपक्ष बौखला रहा है। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इससे वोटिंग लिस्ट में गड़बड़ियाँ हो रही हैं। 7 अगस्त 2025 को कांग्रेस नेता राहुल गाँधी ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वोटर लिस्ट से जानबूझकर छेड़छाड़ की जा रही है।

इसी गर्मा-गर्मी में 2 साल पुरानी एक वायरल तस्वीर सामने आई, जिसमें दावा किया गया कि एक ही व्यक्ति के 48 बेटे हैं। इस फोटो को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की बातें की जा रही हैं।

असली सच्चाई क्या है?

वायरल तस्वीर की सच्चाई जानने के लिए हमने गूगल पर खोज की। हमें कई बड़े मीडिया प्लेटफॉर्म की खबरें भी मिलीं, जिनमें दैनिक जागरण, अमर उजाला और ईटीवी भारत शामिल है। इनमें सबसे पहले मई 2023 की एक रिपोर्ट पर ध्यान गया।

वायरल तस्वीर वाराणसी की वोटर लिस्ट की है। यह लिस्ट वार्ड नंबर 51 भेलूपुर की नगर निगम चुनाव के दौरान बनी थी। इसमें एक नाम है– रामकमल दास। उन्हें 48 लोगों का पिता बताया गया है।

अब जानिए असल बात। रामकमल दास एक साधु महात्मा हैं। वह शादीशुदा नहीं हैं। वह वाराणसी के राम जानकी मठ के महंत हैं। उनके साथ जो 48 लोग रहते हैं, वे उनके बेटे नहीं बल्कि शिष्य हैं। मठ में गुरु-शिष्य परंपरा चलती है। यहाँ शिष्य अपने गुरु को पिता जैसा मानते हैं।

जब ये शिष्य वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाते हैं तो पिता के नाम की जगह गुरु का नाम लिखते हैं। इसलिए सभी ने रामकमल दास का नाम पिता के तौर पर दिया। यह कोई धोखा या फर्जीवाड़ा नहीं है।

मठ के प्रबंधक ने भी यही बात बताई। उन्होंने कहा कि ये सभी शिष्य मठ में ही रहते हैं। कुछ तो आजीवन वहीं रहते हैं। उनकी पढ़ाई के कागजों में भी पिता के नाम पर गुरु का नाम होता है। पहले लिस्ट में 150 और नाम भी थे, लेकिन बाद में कुछ हटाए गए। अब कुल 48 शिष्यों का नाम लिस्ट में है।

हमने निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से लिस्ट भी चेक की। B, 24/19 नाम के घर में 51 वोटर्स हैं। इनमें 48 ने रामकमल दास को पिता बताया है। यह जानकारी आपको भाग-5, संख्या-725 पर मिलेगी। कई की उम्र एक जैसी है- जैसे 13 लोग 37 साल के हैं। बाकी की उम्र भी 39, 40 या 42 साल है।

रामकमल दास किसी के जैविक पिता नहीं हैं। जो नाम उनके नीचे लिखे हैं, वे शिष्य हैं, बेटे नहीं। यह परंपरा के तहत हुआ है। और यह सब कानूनी और सही तरीके से हुआ है। सोशल मीडिया पर जो बातें फैलाई गईं, वो अधूरी और भ्रामक हैं।

No comments: