अरुणाचल प्रदेश के 27 जिलों, 26 प्रमुख जनजातियों और 100 उप-जनजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले हजारों मूल निवासियों ने धर्मांतरण विरोधी अधिनियम (APFRA 1978) को लागू करने की माँग को लेकर रैली निकाली। शनिवार (20 अक्टूबर 2025) को पारंपरिक कपड़ों में इन लोगों ने ईटानगर तक मार्च किया। राज्य के ईसाई इसका कड़ा विरोध कर रहे हैं।
धर्मांतरण को रोकने के लिए 48 साल पहले अरुणाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 1978 लागू हुआ था।
ईसाइयत के प्रचार- प्रसार की वजह से अरुणाचल के मूल निवासी यहाँ अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं। ये लोग डोनी पोलो की पूजा करते हैं, जहाँ ‘डोनी’ का अर्थ है ‘सूर्य’ और ‘पोलो’ का अर्थ है ‘चंद्रमा’। ये वे सिंबल हैं, जिस पर अरुणाचल प्रदेश के लोगों की आस्था है।
साभार- TOIडोनी पोलो, ईसाई धर्म और हिंदू धर्म के अलावा, अरुणाचल प्रदेश में महायान और थेरवाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों की भी अच्छी खासी तादाद है।
इंडिजिनस फेथ एंड कल्चरल सोसाइटी ऑफ अरुणाचल प्रदेश (IFCSAP) के अध्यक्ष एमी रूमी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि स्वदेशी आस्था को मानने वालों ने राज्य के स्वदेशी विश्वास और परंपरा को बचाने के लिए अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम (एपीएफआरए) को पूरी तरह लागू करने की माँग को लेकर रैली निकाली। उन्होंने कहा कि इस कानून को 1978 में तत्कालीन राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी, लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है।
रूमी ने कहा, “अगर यह कानून लागू होता है, तो हमारी संस्कृति, परंपरा और धार्मिक पहचान की रक्षा हो पाती।”
साभार- इंडिया टुडे
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए वकील आर.एस. लोडा ने कहा, “हम नहीं चाहते कि अरुणाचल प्रदेश मिजोरम या नागालैंड की तरह अपनी मूल पहचान खो दे, जहाँ विदेशी धर्म के प्रचार- प्रसार के कारण स्थानीय मान्यताएँ नष्ट हो गई हैं।”
अरुणाचल प्रदेश में धर्मांतरण विरोधी कानून लागू करने की माँग करने वालों का कहना है कि यह कानून किसी भी धर्म या संप्रदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह केवल ‘जनजातीय समुदाय को प्रलोभन या लालच देकर हो रहे धर्मांतरण से बचाता है’।
अरुणाचल प्रदेश के स्वदेशी आस्था और सांस्कृतिक समाज (IFCSAP) के एक प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्री मामा नटुंग से मुलाकात की और अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1978 (APFRA) को तत्काल लागू करने का आग्रह किया। उन्होंने राज्य की स्वदेशी आस्था, संस्कृति और आदिवासी पहचान की रक्षा के लिए इस अधिनियम को लागू करने पर जोर देते हुए एक ज्ञापन सौंपा।
इनका कहना है कि बाहरी प्रभावों से अरुणाचल की संस्कृति पर संकट मंडरा रहा है। इसे संरक्षित करने और जनजातीय विरासत को बचाने के लिए कानून का लागू करना जरूरी होता जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों में राज्य में ईसाई आबादी और धर्मांतरण गतिविधियों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
1971 की जनगणना के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश में ईसाई आबादी 0.79% थी, जो 2011 की जनगणना में 30.26% हो गई। 1971 में अन्य धर्मों और मतों (ORP) का हिस्सा 63.46% था, जबकि 2011 की जनगणना में यह 26.20% रह गया।
1971 में हिंदुओं की आबादी 22% थी और 2011 में यह 29.04% हो गई। 1971 की जनगणना में बौद्धों की आबादी लगभग 13% थी, लेकिन 2011 में यह घटकर 11.77% रह गई। वहीं, मुसलमानों की आबादी 1971 में 0.18% थी, जो बढ़कर 2011 की जनगणना में 1.95% हो गई।
ईसाई APFRA का कर रहे विरोध
अरुणाचल क्रिश्चियन फोरम (ACF) APFRA कानून का विरोध कर रहा है। फोरम के अध्यक्ष तारह मिरी का तर्क है कि ‘धर्मांतरण विरोधी कानून धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है और ईसाइयों को निशाना बनाता है।” फरवरी 2025 में ACF ने धर्मांतरण विरोधी कानून के विरोध में 8 घंटे की भूख हड़ताल किया था।
नागा बैपटिस्ट चर्च काउंसिल के महासचिव रेव जेलहोउ कीहो ने जनवरी 2025 में मुख्यमंत्री पेमा खांडू को एक पत्र लिखा था और दावा किया था कि APFRA का उद्देश्य पारंपरिक धर्म का संरक्षण करना नहीं, बल्कि ईसाइयों का दमन करना है।
पत्र में कीहो ने लिखा, “APFRA का असली उद्देश्य पारंपरिक धर्म का संरक्षण करना नहीं, बल्कि उस समय के एक खास धार्मिक समूह का दमन करना था… इस आधार पर यह अधिनियम असंवैधानिक है। उस वक्त आपके लोग और क्षेत्र इस विधेयक का विरोध कर रहे थे, लेकिन देश के हालात बहुत बदल गए हैं। अब आपके लोगों, खासकर आपके राज्य के ईसाईयों का क्या होगा।”
पत्र में आगे कहा गया है, “हमें यह बताने की ज़रूरत नहीं है कि देश के अन्य हिस्सों में ईसाइयों को बेवजह सताने के लिए इस कानून (धर्मांतरण विरोधी कानून) का कैसे दुरुपयोग किया जाता है। हमारी व्यावहारिक समझ हमें बताती है कि आपके शांतिप्रिय लोगों के साथ भी यही होगा, और यह पूरे क्षेत्र में फैल जाएगा।”
मुख्यमंत्री खांडू ने परंपराओं के संरक्षण की बात कही
Why are Indigenous faiths so important to preserve, unlike major religions?
— Pema Khandu པདྨ་མཁའ་འགྲོ་། (@PemaKhanduBJP) July 24, 2025
Because they don’t come from books, but from land, memory, and lived tradition. They are not exported, they are rooted. They hold the soul of our people, our forests, mountains, rivers, and ancestors.… pic.twitter.com/RVhXUdqVq4
Indigenous faiths have been an integral part of humanity since time immemorial, even before the advent of organized religions. I am delighted to announce that the Department of Indigenous Affairs will now be renamed to include the words Indigenous Faith and Culture, a step… pic.twitter.com/TfIoeF54dh
— Pema Khandu པདྨ་མཁའ་འགྲོ་། (@PemaKhanduBJP) December 27, 2024
अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम क्या है?
राज्य में कई ‘स्वदेशी आस्थाओं’ की पहचान की गई। इनमें बौद्ध धर्म (मोनपा, मेम्बा, शेरदुकपेन, खम्बा, खम्पती और सिंगफो द्वारा प्रचलित), वैष्णव धर्म (नोक्टेस द्वारा प्रचलित), आका और प्रकृति पूजक (दुन्यी-पोलो के उपासकों सहित) शामिल हैं।
अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम की धारा 3 में स्पष्ट रूप से कहा गया है – “कोई भी व्यक्ति किसी व्यक्ति को बल प्रयोग, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से, प्रत्यक्ष रूप से या अन्यथा, एक धार्मिक आस्था से दूसरी धार्मिक आस्था में परिवर्तित नहीं करेगा या परिवर्तित करने का प्रयास नहीं करेगा और न ही कोई व्यक्ति ऐसे किसी धर्मांतरण के लिए उकसाएगा।”
कानून में आगे कहा गया है कि धारा 3 का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर ₹10,000 तक का जुर्माना और अधिकतम 2 वर्ष तक की कैद की सजा हो सकती है।
यह अधिनियम किसी व्यक्ति के धर्मांतरण के बारे में संबंधित जिले (अरुणाचल प्रदेश में) के जिलाधिकारी को सूचित करने का भी आदेश देता है। ऐसा न करने पर 1 वर्ष तक की कैद और ₹1000 तक के जुर्माने का प्रावधान है।
कानून की धारा 6 में कहा गया है कि इस अधिनियम के तहत अपराध को संज्ञान में लिया जाएगा और पुलिस निरीक्षक से नीचे के अधिकारी इसकी जाँच नहीं करेंगे। अधिनियम के तहत अभियोजन के लिए पुलिस उपायुक्त की पूर्व अनुमति या अतिरिक्त सहायक आयुक्त से नीचे के पद के अधिकारी से सत्यापित कराने की आवश्यकता होती है।
धर्मांतरण विरोधी कानून के कार्यान्वयन के लिए अरुणाचल प्रदेश सरकार द्वारा नियम बनाने की माँग करते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी। इस मामले में बड़ी सफलता सितंबर 2024 में मिली।
न्यायमूर्ति कर्दक एटे और न्यायमूर्ति बुदी हाबुंग की खंडपीठ ने महाधिवक्ता आई. चौधरी के जवाब की जाँच के बाद जनहित याचिका को बंद कर दिया। सरकार ने कोर्ट को बताया है कि इसके नियमों को सूचीबद्ध करने के लिए 6 महीने का वक्त चाहिए।
गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 30 सितंबर 2024 को अपने आदेश में कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि संबंधित अधिकारी अपने दायित्वों के प्रति सचेत रहेंगे और मसौदा नियमों को आज से 6 (छह) महीने की अवधि के भीतर अंतिम रूप दे दिया जाएगा।”
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री खांडू पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्देश के अनुसार, सरकार को छह महीने के भीतर मसौदा नियम तैयार करना है। यह समय सीमा अक्टूबर 2025 में समाप्त हो रही है।
यह अत्यंत आवश्यक है कि राज्य सरकार धार्मिक जनसांख्यिकी की रक्षा और स्वदेशी आस्थाओं एवं परंपराओं के संरक्षण के लिए एपीएफआरए या धर्मांतरण-विरोधी कानून लागू करे। हालाँकि ईसाई समूह इस कानून को अपनी धार्मिक पहचान पर हमले के रूप में देख रहे हैं। उन्हें ये समझने की जरूरत है कि एपीएफआरए अगर लागू होता है, तो यह ताकत से, प्रलोभन से या किसी झाँसे में आकर किए जा रहे धर्मांतरण के खिलाफ होगा।
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