राम मंदिर ध्वजारोहण होते ही भारत में पाकिस्तानपरस्त और वामपंथी से लेकर पाकिस्तान तक सब परेशान: सता रही मुस्लिम वोट बैंक की चिंता

                                  राम मंदिर के धर्म ध्वज समारोह में PM मोदी (फोटो: narendramodi.in)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राम मंदिर के मुख्य शिखर पर धर्म ध्वज की स्थापना एक रस्म से आगे बढ़कर एक ऐतिहासिक घटना है। यह वह क्षण है, जिसमें सदियों की प्रतीक्षा, संघर्ष और करोड़ों-करोड़ राम भक्तों की भावनाएँ एक प्रतीक के रूप में आसमान में लहरा उठीं।

भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के उद्घोष इस ध्वज को देश का बड़ा वर्ग गर्व, आस्था और सभ्यता के पुनरुत्थान के रूप में देख रहा है तो वहीं तथाकथित लिबरल वर्ग इससे दुखी है। वामपंथी गुटों से लेकर लिबरल्स और पाकिस्तान तक सब परेशान हैं।

इनकी परेशानी का असली कारण है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जब फैसला दिया गया था तब मस्जिद बनाने के लिए भी मिली जमीन पर मस्जिद के नाम पर नींव तक खुदी जबकि हिन्दुओं ने अपने पुरुषोत्तम श्रीराम का मन्दिर बना लिया। मन्दिर बनने से पहले ये ही लोग मन्दिर चंदे में हेराफेरी का आरोप लगाने वाले मस्जिद पर जमा हुए चन्दे का कहां इस्तेमाल हो रहा है क्यों नहीं बताते? मुसलमानों को एकजुट होकर कट्टरपंथियों से पूछना चाहिए कि हिन्दुओं ने तो भव्य मन्दिर निर्मित कर लिया तुम्हारी मस्जिद का क्या हुआ? हकीकत में बाबरी मस्जिद पर चल रही दुकान बंद होने की परेशानी इन्हे चैन से नहीं रहने दे रही।      

लिबरल्स की एक जमात इस बात से दुखी हो गई है कि राम मंदिर पर ध्वज फहराने के लिए खुद प्रधानमंत्री क्यों चले गए। जब प्रधानमंत्री मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में पहुँचे थे, तब भी इस जमात के पेट में मरोड़ उठने लगी थीं। वामपंथी पार्टी CPI के महासचिव डी राजा भी इन दुखी लोगों की जमात में शामिल हैं। राजा ने इसके विरोध में X पर एक लंबा पोस्ट लिखा है।

राजा ने लिखा, “प्रधानमंत्री मोदी देश के सामने अयोध्या में भगवा झंडा फहरा रहे हैं और इसे ‘भारतीय सभ्यता के पुनरुत्थान’ का प्रतीक बता रहे हैं। यह सिर्फ संशोधनवाद नहीं है बल्कि यह एक संकीर्ण, बहिष्कारवादी विचारधारा के साथ हमारे संवैधानिक इतिहास को फिर से लिखने का एक बेशर्म प्रयास है। यह बेहद चिंताजनक है कि देश के सर्वोच्च पद का इस्तेमाल हमारे संविधान में निहित बहुलवाद का जश्न मनाने के बजाय RSS के वैचारिक एजेंडे को वैध बनाने के लिए किया जा रहा है।”

उन्होंने कहा कि हम सबका झंडा तिरंगा है और इस घटना को तमाशा बताया है। यकीनन तिरंगा इस राष्ट्र की पहचान है जो आजादी के बाद आया है। उसका सम्मान है और पूरा राष्ट्र उसके सम्मान में नतमस्तक है। पर डी राजा ये क्यों भूल गए कि भगवा झंडा और राम राज्य का प्रतीक ध्वज हजारों वर्ष पुराने इस राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्मा का प्रतिनिधि है। हिंदुओं के मन में उसके लिए अपार श्रद्धा है।

डी राजा हिंदुओं की आस्था की तुलना तमाशे से कर सकते हैं, उन्हें कोई कुछ नहीं कहने वाला है। क्योंकि इस देश का बहुसंख्यक हिंदू समाज सहिष्णुता को अपने मन में, अपनी आत्मा में आत्मसात किए हुए है। डी राजा को समझने की जरूरत है कि क्या वो ऐसा किसी और मजहब के प्रतीक के लिए कहने की हिम्मत जुटा पाएँगे। जवाब सीधा सा है नहीं, और इसकी वजह आप-हम सब जानते हैं। डी राजा ऐसे कहने वाले अकेले नहीं है।

वामपंथी प्रोपेगेंडा फैलाने वाले ‘द हिंदू’ की पत्रकार सुहासिनी हैदर भी इससे दुखी हैं और लोगों को भी भ्रम में डालने की कोशिश कर रही हैं। हैदर ने X पर पोस्ट कर प्रधानमंत्री मोदी पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने लिखा, “विचित्र विरोधाभास – पिछले कुछ वर्षों से अन्य सभी धर्मों के धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय तिरंगा फहराने के लिए कहा गया है लेकिन संविधान की शपथ लेने वाले प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आज धार्मिक ध्वज फहराएँगे।”

सुहासिनी हैदर जिस संविधान की दुहाई दे रही हैं क्या वो प्रधानमंत्री को अपना धर्म मानने से रोकता है? क्या वो देश के हर नागरिक को अपना धर्म मानने की आजादी का अधिकार नहीं देता है। सुहासिनी को मतलब ना संविधान से ना धर्म उन्हें बस मतलब अपने प्रोपेगेंडा से है। जाहिर है कि राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा सभी जगह फहराया जाता है, खुद राम मंदिर के परिसर में भी बीते 15 अगस्त 2025 को तिरंगा फहराया गया था।

इन वामपंथियों द्वारा तिरंगे को भगवा का विरोधी साबित करने की कोशिशें की जा रही हैं लेकिन वो भूल गए हैं कि भगवा हमेशा से इस राष्ट्र कि चेतना का आधार था, है और रहेगा। हालाँकि, इसके होने से तिरंगा की शान में ना कमी आती है और ना होगी।

सोशल मीडिया पर एक बड़ा तबका कथित ‘बाबरी मस्जिद’ को फिर से बनाए जाने की वकालत भी कर रहा है। अयोध्या से करीब 850 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में तो सत्तारूढ़ TMC के एक विधायक हुमायूँ कबीर ने 6 दिसंबर 2025 को बाबरी नाम की मस्जिद बनाने का एलान भी कर दिया है। सोशल मीडिया पर भी ऐसे स्वर दिखे हैं। ‘इंडियन मुस्लिम आर्काइव’ नाम के एक हैंडल ने फिर ‘बाबरी’ बनाने की बात कही है।

राम मंदिर के धर्म ध्वज से जुड़ी एक पोस्ट पर जवाब देते हुए हैंडल ने लिखा, “बाबरी का विनाश न तो हिंदुओं के लिए कोई सभ्यतागत उपलब्धि है और न ही व्यापक उम्माह के लिए, यह तो बस एक प्रतीक है जिसे हागिया सोफिया की तरह उलटा जा सकता है।” हैंडल से आगे लिखा गया, “इस बीच, पंजाब, सिंध, बंगाल और कश्मीर जैसे हिंदू सभ्यता के उद्गम स्थलों से हिंदू धर्म का सफाया हो चुका है, जिसे उलटा नहीं जा सकता।”

राजीव निगम नाम के एक यूजर ने धर्म ध्वज की स्थापना को नौटंकी बताया है। अभिनेता अनुपम खेर ने X पर एक पोस्ट में लिखा कि हमारे जीते जी अयोध्या में हमें श्री राम मंदिर पर ध्वजारोहण समारोह का शुभ अवसर प्राप्त हुआ इससे बड़े सौभाग्य की बात क्या हो सकती है। इस पर राजीव निगम से लिखा, “फुल नौटंकी चालू आहे” यानी पूरी तरह से नौटंकी चल रही है।

सोशल मीडिया पर ऐसे पोस्ट की भरमार है जो प्रभु राम के धर्म ध्वज की स्थापना किए जाने से दुखी हैं। भारत में वामपंथी और लिबरल तो दुखी हैं ही, साथ में ही पड़ोसी देश पाकिस्तान भी रो रहा है। वो भारत पर आरोप लगाते हुए UN तक से गुहार लगाने पहुँच गया है।

पाकिस्तान भी परेशान, UN तक लगाई गुहार

देश में तो प्रोपेगेंडा फैलाने वाले परेशान हैं हीं, पड़ोसी देश पाकिस्तान भी परेशान है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बाकायदा बयान जारी कर राम मंदिर के धर्म ध्वज की स्थापना पर सवाल उठाए हैं।

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, “पाकिस्तान ने अयोध्या में ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद की जगह पर बने तथाकथित ‘राम मंदिर’ पर झंडा फहराने पर गहरी चिंता जताई है। सदियों पुरानी इबादत गाह बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर 1992 को फासीवादी सोच से प्रेरित कट्टरपंथी भीड़ ने गिरा दिया था।”

पाकिस्तान ने आगे कहा, “भारत में बाद की कानूनी प्रक्रिया, जिसमें जिम्मेदार लोगों को बरी कर दिया गया और गिराई गई मस्जिद की जगह पर मंदिर बनाने की इजाज़त दी गई, अल्पसंख्यकों के प्रति भारतीय सरकार के भेदभाव वाले रवैये के बारे में बहुत कुछ बताती है।” पाकिस्तान ने कहा, “भारतीय मुसलमान लगातार बढ़ते सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक हाशिए पर धकेले जाने का सामना कर रहे हैं।”

पाक ने कहा, “UN और संबंधित इंटरनेशनल संस्थाओं को इस्लामिक विरासत की सुरक्षा और सभी माइनॉरिटीज के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा पक्का करने में एक कंस्ट्रक्टिव भूमिका निभानी चाहिए। पाकिस्तान भारत सरकार से अपील करता है कि वह मुसलमानों समेत सभी धार्मिक समुदायों की सुरक्षा पक्का करे।”

पाकिस्तान के दुख को समझा भी जा सकता है। वो खुद भुखमरी और गृह युद्ध जैसी स्थितियों से जूझ रहा है और फौज हर तरफ से पिट रही है। ऐसे में आवाम का ध्यान भटकाने के लिए ऐसी हरकतों का सहारा लेना पड़ रहा है। भारत के वामपंथियों की आदत ही खराब हो गई है। इस वर्ग को हर ऐसे क्षण में खामी तलाशने की आदत सी हो गई है, जैसे उन्हें भारत की आत्मा को समझना ही नहीं बल्कि उससे स्वयं को अलग रखना है।

यह वही विचारधारा है जिसने 2019 में राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी निराशा ही जताई थी। तब भी तर्कों की लंबी फेहरिस्त पेश की गई कभी सेक्युलरिज्म खतरे में है, कभी राजनीति धर्म के बिना भी चल सकती है और कभी इतिहास मिटाया जा रहा है। पर सच यह है कि जो इतिहास मिटाया गया था, वह अब फिर से स्थापित हुआ है। जिनकी स्मृति सैकड़ों वर्षों तक दबा दी गई थी, आज वह फिर सबके हृदय में प्रफुल्लित हो रही है। यह धर्म ध्वज उसी स्मृति का प्रत्यक्ष रूप है।

आज जब ध्वज फहरा रहा है, तभी यह सदा पीड़ित लिबरल समूह उसमें भी राजनीति, बहुसंख्यक वर्चस्व, राजनीतिक हिंदुत्व जैसी चीजें ढूँढ रहा है। सवाल यह है कि जब किसी समुदाय की सांस्कृतिक जड़ों का सम्मान होता है तो यह वर्ग असंतोष क्यों महसूस करता है?

ऐसा लगता है कि भारत की प्राचीन पहचान को स्वीकार करना उन्हें असुविधाजनक लगता है। यह वर्ग भूल जाता है कि राम मंदिर का निर्माण किसी सत्ता की इच्छा से कहीं आगे बढ़कर समाज की सामूहिक स्मृति और सैकड़ों वर्षों के संघर्ष का परिणाम है। आज राम मंदिर पर स्थापित धर्म ध्वज से कुछ लोगों को समस्या है, क्योंकि उन्हें यह मानना मुश्किल लगता है कि भारत का सांस्कृतिक चरित्र जाग रहा है और वह भी आत्मविश्वास के साथ। यह काल भारत के स्व: के बोध का काल है। राम मंदिर के शिखर पर फहराया यह ध्वज ‘भारत माँ’ के मस्तक पर तिलक की तरह है।

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