मुख्य न्यायाधीश ने पहले ही दिन मार दिए चौक्के छक्के: ऐसे लोग सेना में रहने लायक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश से इनकार करने वाले ईसाई सैनिक की बर्खास्तगी रखी बरकरार, कहा- यह अनुशासनहीनता है


     
मुख्य न्यायधीश सूर्यकान्त ने पहले ही दिन 17 केसों कर क्या लम्बित मुकदमों को जल्दी निपटाने का संकेत है? दूसरे, यह कहना कि इमरजेंसी केस में ही किसी मुक़दमे की तुरन्त सुनवाई होने की बात कहकर शायद दलाल वकीलों पर कुठाराघात किया है। रजिस्ट्रार को भी लगता है सख्त इशारा दे दिया है। चर्चा है कि मुख्य न्यायधीश सोशल मीडिया पर सुप्रीम कोर्ट की हो रही बदनामी को बचाने सख्त कदम उठा रहे हैं। यह भी उम्मीद की जा रही है कि जमानत पर खुले घूम रहे नेताओं की जमानत पर भी कुछ सख्त कदम उठाने पर विचार चल रहा है। देखते हैं भविष्य के गर्भ में क्या है? 
भारतीय सेना में अनुशासन और एकता को सबसे ऊपर रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 नवंबर 2025) को लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने धार्मिक परेड में शामिल होने से इनकार करने पर की गई अपनी बर्खास्तगी को गलत बताया था।

कमलेसन एक ईसाई अधिकारी हैं और उन्होंने दावा किया था कि उन्हें मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया गया जबकि यह उनके ईसाई धर्म के खिलाफ है। उनकी ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि वह होली और दीपावाली जैसे कार्यक्रमों में हमेशा शामिल होते रहे हैं, बस उन्होंने अपने धार्मिक विश्वास के कारण मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में जाने से मना किया था।

कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश सुर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सेना में इस प्रकार का व्यवहार ‘गंभीर अनुशासनहीनता’ माना जाएगा और केवल इसी कारण अधिकारी को नौकरी से हटाया जा सकता था।

 चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने नौकरी से बर्खास्त हुए सैमुअल कमलेसन को खारिज करते हुए कहा, ‘”वह कैसा संदेश दे रहे हैं? यह एक आर्मी ऑफिसर की बड़ी अनुशासनहीनता है। उसे नौकरी से निकाल देना चाहिए था। इस तरह के झगड़ालू लोग मिलिट्री में रहने के लायक हैं?”

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि एक अधिकारी का कर्तव्य है कि वह अपने सैनिकों का नेतृत्व उदाहरण बनकर करे और यदि वह स्वयं पीछे हट जाए तो सैनिकों का मनोबल टूटता है। जस्टिस बागची ने यह भी बताया कि एक स्थानीय ईसाई पादरी ने साफ कहा था कि किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में प्रवेश करना ईसाई धर्म के खिलाफ नहीं है, इसलिए इसे जरूरी धार्मिक अधिकार नहीं कहा जा सकता।

संविधान का अनुच्छेद 25 केवल उन धार्मिक प्रथाओं को संरक्षण देता है जो धर्म का मूल हिस्सा हों, न कि व्यक्तिगत धार्मिक व्याख्याओं को। यह मामला 3rd कैवेलरी रेजिमेंट से जुड़ा है, जिसमें सिख, जाट और राजपूत स्क्वाड्रन होते हैं। कई बार समझाने के बावजूद कमलेसन ने अपनी व्यक्तिगत धारणा को आदेश से ऊपर रखा, जिससे यूनिट की एकजुटता पर असर पड़ा।

अंत में कोर्ट ने सजा कम करने का अनुरोध भी ठुकरा दिया और साफ कर दिया कि भारतीय सेना में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ एक-दूसरे के धर्म से अलग रहना नहीं बल्कि सबकी आस्था का सम्मान करते हुए साथ खड़े रहना है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि यह फैसला सेना में मजबूत संदेश देगा।

क्या था मामला?

यह मामला एक ईसाई सेना अधिकारी, लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन का है। उन्होंने अपनी रेजिमेंट के मंदिर में प्रवेश करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि यह उनके ईसाई धर्म के खिलाफ है। इस कारण उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। इसके बाद उन्होंने इस फैसले को चुनौती दी और 5 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में यह मामला सुना गया था।

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