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भारत में शरिया नहीं चल सकता, जिसे जाना हो पाकिस्तान जाए, कोई नहीं रोकेगा, वहां पूरा शरिया मिलेगा मुस्लिमों को; अब देश नहीं टूटेगा; AIMPLB पर महिला आयोग कार्रवाई करे

सुभाष चन्द्र

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का हनन कहा है और कहा कि यह फैसला शरीयत से मतभेद पैदा करता है और गुजारा भत्ता महिलाओं के लिए “भीख” है। अगर तलाकशुदा महिला को गुजाराभत्ता मांगना भीख है तो हज के लिए सब्सिडी भीख नहीं? 

सबसे बड़ी बात है कि AIMPLB की सदस्य प्रो.मुनिसा बुशरा आबिदी ने महिला होते हुए गुजारे भत्ते को भीख बताते हुए कहा कि “जब महिला अपने पति से सारे रिश्ते ख़त्म कर चुकी है तो उसके सामने भीख मांगने क्यों जाए? उसकी जगह वह खुद से कुछ काम-धंधा कर सकती है

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चर्चित YouTuber 
“पति-भाई भी उसका गुजारा उठा सकते हैं”, वह उस पति की बात कर रही है जिसने तलाक दे दिया और भाई पर जिम्मेदारी क्यों? यहाँ बुशरा का दोगलापन साफ नज़र आ रहा है जो इसे बताना पड़ेगा कि "पति-भाई" से क्या मतलब है? क्या महिला पति को भाई बनाए या भाई को पति बनाए? इस रिश्ते को खुलकर बताना होगा। जब पति ने तलाक दे दिया, और उससे गुजरा भत्ता लेने को भीख बता रही तो "पति-भाई" से क्या मतलब है?

मुस्लिम बोर्ड की महिला आबिदी का बयान अत्यंत शर्मनाक है वह भूल गई, गुजारा भत्ता पाना  जैसे किसी भी तलाकशुदा महिला का अधिकार होता है वैसे मुस्लिम महिला का भी है लेकिन बोर्ड का और खासकर महिला सदस्य का ऐसे अधिकार को “भीख” कहना मुस्लिम महिलाओं का घोर अपमान है और इस तरह के अपमान के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग को संज्ञान लेकर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए

मोहतरमा आबिदी और पर्सनल लॉ बोर्ड की ऐसी सोच की वजह से ही मुस्लिम पुरुषों को बढ़ावा मिलता है आए दिन महिलाओं को तलाक देकर बार बार शादी करने के लिए मैडम आबिदी, तलाक में महिला अपने पति से सारे रिश्ते ख़त्म नहीं करती, बल्कि उसका शौहर उसे तलाक देकर उससे अपने रिश्ते ख़त्म  करता है और उसके लिए उसे गुजारा भत्ता देना लाजमी है महिला तलाक नहीं देती, बल्कि मुस्लिम महिला तो “खुला” देती है जिसे शौहर माने या न माने

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो के फैसले के बाद भी उत्पात मचाया था और अब फिर वह तकरार के रास्ते पर है लेकिन शाहबानो के समय राजीव गांधी झुक गए थे लेकिन अब बोर्ड को पता है कि जिस मोदी ने ट्रिपल तलाक ख़त्म कर दिया वह उनके दबाव में नहीं आना वाला चाहे मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक से मुक्ति पाने के बाद भी मोदी को वोट नहीं दिया लेकिन मोदी ने समाज के हित में वह काम किया एक साधू की तरह और अब यह मुस्लिम महिलाओं की मूर्खता थी जो उन्होंने मोदी के उपकार को नहीं समझा

सबसे बड़ी बात यह है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठन Civil Laws के मामले में तो संविधान की दुहाई देकर शरिया के अनुसार चलने की बात करते हैं लेकिन जब मामला Criminal Laws का होता है तो उसमे शरिया के अनुसार फैसले नहीं चाहता शरिया की याद महिलाओं के अधिकार के समय ही क्यों आती है? अगर शौहर ने गलती से भी तलाक दे दिया तो बीबी को हलाला करना है, क्यों? शौहर को क्यों नहीं? इससे बड़ा दोगलापन नहीं हो सकता यह धार्मिक स्वतंत्रता नहीं है कि सब कुछ आपकी मर्जी से हो

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य मुस्लिम संगठन जिस तरह चल रहे हैं उसे देख कर लगता है वे देश तोड़ने की फ़िराक में हैं लेकिन देश तो अब नहीं टूटेगा और उन्हें अगर शरिया ही चाहिए तो उसके लिए मुस्लिम पाकिस्तान ले चुके हैं और शरिया के लिए वे वहां जा सकते हैं। भारत में न्याय से और संविधान से ही शासन चलेगा

   

जब पाकिस्तान बना था उस वक्त पाकिस्तान और उसके पूर्वी पाकिस्तान की आबादी कुल मिला कर 7.5 करोड़ थी और भारत में मुसलमान 3.5 करोड़ थे पाकिस्तान और बांग्लादेश की आबादी आज 42 करोड़ है यानी 6 गुना बढ़ी है जबकि भारत में मुसलमान 8 गुना बढ़ कर 20 से 25 करोड़ हैं, यानी गांधी और नेहरू का एक और पाकिस्तान बनाने का सपना सच करने की फ़िराक में हैं भारत के मुस्लिम 

ये मुसलमानों को सोचना होगा वो चाहते क्या है?

कांग्रेस और इंडी ठगबंधन के सभी “खलीफा” महिलाओं के गुजारा भत्ते पर खामोश हैं

‘मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देना शरिया कानून के खिलाफ’: AIMPLB सुप्रीम कोर्ट के निर्णय और UCC को देगा चुनौती, NCW बोला- सभी महिलाओं के लिए हो एक कानून; डिबेट में तस्लीम रहमानी को मुंह काला करने के बोला,देखिए वीडियो

       मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने के निर्णय और UCC को चुनौती देगा AIMPLB (साभार: ऑपइंडिया अंग्रेजी)
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने रविवार (14 जुलाई 2024) को कहा कि मुस्लिम महिलाओं से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश को वह चुनौती देगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम तलाकशुदा महिलाओं को इद्दत की अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता माँगने की अनुमति दी थी। बोर्ड उत्तराखंड में लागू समान नागरिक संहिता (UCC) को भी चुनौती देगा। वहीं, राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने कहा है कि महिलाओं से संबंधित सभी धर्मों में कानून एक समान होने चाहिए। चर्चा यह भी है कि अगर मुस्लिम महिला गुजारा भत्ते की हक़दार नहीं, फिर हज के लिए मिलने वाली सब्सिडी हलाल क्यों? हराम क्यों नहीं? 
दरअसल, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कट्टरपंथी इस मुगालते में थे, कि सरकार राजीव गाँधी की तरह सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को बदल देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और न ही कोई सम्भावना है। यह भी शक हो रहा है कि तीन तलाक के मुद्दे पर भले ही मर्दों ने औरतों को दबा दिया हो, लेकिन गुजारा भत्ते का मामला इस तरह गर्माने से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के ही अस्तित्व पर सवाल उठने शुरू हो चुके हैं। यह भी कहा जा रहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक एनजीओ है, जो तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी द्वारा पाकिस्तान को तोड़ बांग्लादेश बनवाने पर मुस्लिम वोटबैंक को कांग्रेस से घिसकता देख इस एनजीओ को बनाया था। 

दरअसल, 14 जुलाई 2024 को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कार्यसमिति की बैठक आयोजित की गई। इस बैठक में इन दोनों मुद्दों सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई। बोर्ड के प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बताया कि बैठक में आठ प्रस्तावों को मंजूरी दी गई है। इसमें पास पहला प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही है।

इलियास ने कहा, “पहला प्रस्ताव हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में था। यह फैसला शरिया कानून से टकराता है। इस्लाम में शादी को पवित्र बंधन माना जाता है। इस्लाम तलाक को रोकने के लिए हर संभव प्रयास करता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘महिलाओं के हित’ में बताया जा रहा है, लेकिन शादी के नजरिए से यह फैसला महिलाओं के लिए परेशानी का सबब बन सकता है।”

सैयद कासिम रसूल इलियास ने आगे कहा, “अगर तलाक के बाद भी पुरुष को गुजारा भत्ता देना है तो वह तलाक क्यों देगा? और अगर रिश्ते में कड़वाहट आ गई है तो इसका खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? हम कानूनी समिति से सलाह-मशविरा करके इस फैसले को वापस लेने के बारे में विचार-विमर्श करेंगे।”

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को फैसला सुनाया कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 मुस्लिम विवाहित महिलाओं सहित सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होती है और वे इन प्रावधानों के तहत अपने पतियों से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं। इसको लेकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 इस धर्मनिरपेक्ष कानून पर लागू नहीं होगा।

वहीं, यूसीसी को लेकर कासिम इलियास ने कहा कि उनकी कानूनी टीम इसको लेकर काम कर रही है। उन्होंने कहा, “विविधता हमारे देश की पहचान है, जिसे हमारे संविधान ने सुरक्षित रखा है। यूसीसी इस विविधता को खत्म करने का प्रयास करती है। यूसीसी न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि हमारी धार्मिक स्वतंत्रता के भी खिलाफ है।”

उधर, मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा कि महिलाओं के लिए सभी धर्मों को कानून समान होने चाहिए। शर्मा ने कहा, “महिलाओं के अधिकार सार्वभौमिक होने चाहिए, धर्म के आधार पर निर्धारित नहीं होने चाहिए। महिलाओं से संबंधित सभी धर्मों के कानून भी समान होने चाहिए।”

उन्होंने कहा, “हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के बाद आपको गुजारा भत्ता मिलता है तो मुस्लिम महिला को यह क्यों नहीं मिलना चाहिए? मैं सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गई बात का स्वागत करती हूँ।” NCW प्रमुख ने कहा कि यह निर्णय इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि किसी भी महिला को कानून के तहत समर्थन और सुरक्षा के बिना नहीं छोड़ा जाना चाहिए।

महाराष्ट्र : BJP को हराने के लिए मुस्लिम हुए लामबंद, AIMPLB और मस्जिदों ने जारी किए फतवे, इंडी गठबंधन के पक्ष में एकमुश्त पड़े वोट; दोगला सेकुलरिज्म बेनकाब ; विधि के विधान को रोकने की इन इंटरनेशनल भिखारियों की कोई औकात नहीं।

        मुस्लिमों ने महाराष्ट्र में बीजेपी और उसके सहयोगियों के खिलाफ की एकमुश्त वोटिंग (फोटो साभार : जागरण)
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव परिणाम के दिन बीत रहे हैं, तपस्वी नरेंद्र मोदी को रोकने के हतकंडे सामने शुरू हो चुके हैं, लेकिन मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने पर जितने भी मोदी विरोधी है, भारत में या भारत से बाहर, सबके सीने पर सांप लोट रहे हैं, रोटी-पानी हराम हो गया, अरबों रूपए स्वाह हो गए, लेकिन तपस्वी को कोई प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोक पाया और भविष्य में रोक भी नहीं पाएगा। विधि के विधान को रोकने की इन इंटरनेशनल भिखारियों की कोई औकात नहीं। अगर दुर्भाग्य से I.N.D.I. गठबंधन सत्ता आ गया होता, देश को गाज़ियों(मुग़ल) के राज से भयंकर दौर से गुजरना पड़ता। जनता की दुर्गति होती वो अलग ये गठबंधन के सुरमा भोपाली भी नहीं बच पाते। क्योकि जो देश का नहीं हो सकता, किसी का नहीं हो सकता।   
CAA विरोध से लेकर लोकसभा चुनावों तक जितने भी मोदी विरोधी है भारत विरोधी विदेशियों के हाथ कठपुतली बने हुए हैं, यहाँ बने फिर रहे हैं बहुत बड़े जनहितैषी और देशप्रेमी। जब भी देश में कोई विदेशी मेहमान आता है आंदोलनजीवी सड़क पर आकर उपद्रव करने लगते हैं, क्या इसी का नाम देशभक्ति है?   
महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजे बेहद चौंकाने वाले रहे। यहाँ मुस्लिमों ने बीजेपी के विरोध में इंडी गठबंधन को एकमुश्त वोटिंग की। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान समेत कुछ राज्यों में भारी नुकसान की वजह से बीजेपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त कर सकी। महाराष्ट्र में आश्चर्यजनक नतीजे आए, जहाँ मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली शिवसेना ने 7 सीटें हासिल कीं और बीजेपी ने 9 सीटें जीतीं। वहीं, मुस्लिमों, कम्युनिष्टों का समर्थन पाने वाली एनसीपी (शरद पवार), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और शिवसेना (यूबीटी) जैसी पार्टियों ने क्रमशः 8, 13 और 9 सीटें हासिल कीं। इससे यह साफ जाहिर होता है कि महाराष्ट्र के मुस्लिमों ने बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के मुकाबले में खड़ी पार्टियों के पक्ष में एकजुटता के साथ वोटिंग की।

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने बीजेपी की भारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए नतीजों के तुरंत बाद इस्तीफा देने की पेशकश की। फडणवीस ने कहा, “महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में हमें जो भी नुकसान हुआ है, मैं उसकी पूरी जिम्मेदारी लेता हूँ। इसलिए मैं शीर्ष नेतृत्व से आग्रह करता हूँ कि मुझे मेरे मंत्री पद से मुक्त कर दिया जाए क्योंकि मुझे पार्टी के लिए काम करने और राज्य विधानसभा चुनावों की तैयारियों में अपना समय देने की जरूरत है।”

फडणवीस ने आगे कहा, “कुछ सीटों पर किसानों के मुद्दों ने अहम भूमिका निभाई, तो संविधान में बदलाव किए जाने के झूठे प्रचार ने भी कुछ वोटरों को प्रभावित किया, जिसका मुस्लिमों और मराठा समुदाय के वोटरों पर भी असर पड़ा।” देवेंद्र फडणवीस ने संकेत दिया कि मुस्लिमों ने कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (शरद पवार) को समर्थन दिया, जिससे बीजेपी के लिए प्रतिकूल परिणाम आए।

‘फतवों ने शिवसेना (यूबीटी) को मुंबई में सीटें जीतने में मदद की’: दीपक केसरकर

शिवसेना नेता और महाराष्ट्र के मंत्री दीपक केसरकर जो मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के खास माने जाते हैं। उन्होंने 6 जून 2024 को कहा कि मुस्लिमों द्वारा बीजेपी के खिलाफ जारी किए गए ‘फतवों’ की वजह से ही शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) मुंबई, सांगली, बारामती, शिरुर और डिंडोरी से अधिकाँश सीटें मिली। दीपक केसरकर ने कहा कि मुस्लिम वोटर इस बात को लेकर बिल्कुल आश्वस्त थे कि उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व की विचारधारा को छोड़ दिया है। केसरकर ने कहा, “फतवों ने शिवसेना (यूबीटी) को मुंबई में सीटें जीतने में मदद की। अगर आप इसे घटा दें, तो शिवसेना के हर उम्मीदवार को 1-1.5 लाख से ज़्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ता।”
दीपक ने कहा कि एकनाथ शिंदे की शिवसेना को मुंबईकरों और मराठी मतदाताओं के वोट मिले हैं। उन्होंने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान में एक साजिश रची गई थी। उन्होंने दावा किया, “पाकिस्तान में दो मंत्रियों ने मोदी की हार की वकालत की और अफसोस की बात है कि यहाँ कुछ लोगों ने उनकी बातों पर ध्यान दिया।” केसरकर ने आगे कहा कि विपक्ष ने दलित समुदायों को गुमराह करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने पर संविधान बदल दिया जाएगा। इसे देखते हुए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मुस्लिमों ने हकीकत में लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी के उम्मीदवारों के खिलाफ एकजुट होकर वोटिंग की।

पुणे में बीजेपी, शिवसेना (शिंदे) और एनसीपी (अजित पवार) के खिलाफ फतवा हुआ था जारी

मीडिया रिपोर्ट्स में 7 मई को दावा किया गया कि पुणे के इलाके में इस्लामी धर्मगुरुओं ने बीजेपी के खिलाफ फतवा जारी किया और मुस्लिम मतदाताओं से पुणे, शिरुर, बारामती और मावल निर्वाचन क्षेत्रों से क्रमशः कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) का प्रतिनिधित्व करने वाले उम्मीदवारों को ही वोट देने को कहा। इस्लामी नेताओं ने 2 मई को कोंडवा क्षेत्र में जमाती तंजीम पुणे द्वारा आयोजित ‘हज़रत मौलाना सज्जाद नोमानी की तकरीर’ कार्यक्रम में ये फतवा जारी किया।
इस कार्यक्रम का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया था। कार्यक्रम के आयोजकों में से एक व्यक्ति वीडियो में कांग्रेस और एनसीपी-शरद पवार गुट को सपोर्ट करता दिख रहा है। वो व्यक्ति वीडियो में बोलता है, “कुल जमाती तंजीम ने पुणे से कॉन्ग्रेस के कैंडिडेट रवींद्र धांगेकर, बारामती और शिरुर से एनसीपी-शरद पवार की कैंडिडेट सुप्रिया सुले और अमोल कोल्हे और मावल से शिवसेना (यूबीटी) के कैंडिडेट संजय वाघेरे को समर्थन देने का फैसला किया है। हम इन चार कैंडिडेट्स का समर्थन करते हैं और आप सभी मुस्लिमों से अपील है कि उन्हें जिताएँ, साथ ही परिवार के सदस्यों और दोस्तों से भी उनके लिए वोटिंग की अपील की।
ये घोषणा मौलाना सज्जाद नोमानी के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में की गई, जिसमें ‘मौजूदा हालात और हमारी ज़िम्मेदारी’ सब्जेक्ट पर चर्चा की गई। अपने भाषण में नोमानी ने कहा कि मुस्लिम समुदाय के सभी लोगों को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने मुस्लिमों के मन में ये डर भी पैदा किया अगर मोदी सत्ता में आए, तो सभी मजार और मदरसे तोड़ दिए जाएँगे।
नोमानी ने सरकार के खिलाफ मुस्लिमों को भड़काते हुए कहा, “अगर आप अपने अधिकारों (वोट) का सही दिशा में इस्तेमाल नहीं करेंगे तो आपका देश ऐसा है कि रोहिंग्याओं को भूल जाएगा। इस देश के नेता के पास इस देश में वक्फ व्यवस्था को खत्म करने की योजना है। आप ही हमारे मदरसों, मस्जिदों और मजारों को बचाएँगे। मोदी की यह एक योजना पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए खतरा पैदा करने वाली है।”

शिवसेना-यूबीटी की मुंबई रैली में फहराए गए इस्लामिक झंडे

शिवसेना (यूबीटी) के उद्धव ठाकरे ने कुछ साल पहले अपने पिता और शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित हिंदुत्व विचारधारा को छोड़ दिया था, जिसकी वजह से एकनाथ शिंदे और उनके साथियों ने उद्धव ठाकरे का साथ छोड़ दिया था। तब से उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी मुस्लिम समुदाय से अपने समर्थन की उम्मीद करता है। शिवसेना-यूबीटी के नेता मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़के मुद्दों पर चुप रहे, या उन्हें अच्छे से ‘संभाल’ लिया।
एक उदाहरण साल 2020 के पालघर में साधुओं की लिंचिंग के बाद राज ठाकरे की धमकी से जुड़ी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर लाउडस्पीकर पर अजान बंद नहीं की गई, तो वो हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। माना जाता है कि ऐसी घटनाओं ने उद्धव ठाकरे के पक्ष में काम किया और शिवसेना के झंडे-निशान के बिना भी महाराष्ट्र में 9 सीटें जीत ली। आपको याद दिला दें कि 14 मई 2024 की रिपोर्ट में ऑपइंडिया ने बताया था कि कैसे शिवसेना-यूबीटी की मुंबई रैली में इस्लामिक झंडे फहराए गए थे। इस्लामिक झंडे लहराने का वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसमें इस्लामिक झंडे सबसे ऊपर फहराए दिख रहे थे और मुस्लिम समर्थकों के साथ शिवसेना-यूबीटी के कार्यकर्ता पटाखे फोड़ रहे थे।
इस बीच, बीजेपी के नितेश राणे ने शिवसेना (यूबीटी) पार्टी की आलोचना की और कहा कि महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव बालासाहेब ठाकरे को खुद को हिंदू नेता बालासाहेब ठाकरे का बेटा कहने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने दावा किया कि रैली में पाकिस्तानी झंडा फहराया गया था। हालाँकि बाद में ये साफ हो गया था कि उद्धव ठाकरे की रैली में पाकिस्तानी झंडा नहीं, बल्कि इस्लामिक झंडा फहराया गया था।

शिवसेना-यूबीटी की रैली में फहराए गए कम्युनिस्टों के लाल झंडे

शिवसेना-यूबीटी का समर्थन कम्युनिष्टों ने भी किया, जिन्होंने अप्रैल 2024 में उद्धव ठाकरे गुट की रैली में कम्युनिष्टों के लाल झंडे लहराए। इस बात से जुड़ी तस्वीरें भी इंटरनेट पर वायरल हो गई थी, जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने उद्धव ठाकरे पर हिंदुत्व विचारधारा के अपमान का आरोप लगाया।
इस बीच, उद्धव ठाकरे ने 
घोषणा की कि वो मोदी का साथ कभी नहीं देंगे और न ही अपनी पार्टी का कभी बीजेपी में विलय करेंगे। ठाकरे ने पीएम मोदी को विश्वासघाती कहते हुए कहा कि वो लोकसभा का चुनाव हार जाएँगे। ठाकरे का ये बयान अजित पवार और एकनाथ शिंदे गुट के बीजेपी के साथ आने के बाद सामने आया था।
मुंबई में मुस्लिम उद्धव ठाकरे की शिवसेना के लिए उस जोश के साथ काम कर रहे हैं जो 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से नहीं देखा गया है जब आम आदमी पार्टी (आप) के अरविंद केजरीवाल ने उन्हें किनारे कर दिया था। उस समय मुस्लिमों के असंतोष से घबराई कांग्रेस ने उन्हें गुजरात 2002 का डर दिखाया और कोशिश की कि उसके वोट न बँटे। हालाँकि मुस्लिमों ने कांग्रेस की जगह आम आदमी पार्टी का साथ दिया और महाराष्ट्र में आम आदमी पार्टी के 48 उम्मीदवारों के पक्ष में लामबंद हो गए थे।
अवलोकन करें:-
साल 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को महाराष्ट्र के मुस्लिम वोट डिफ़ॉल्ट रूप से मिले। उनके पास कोई विकल्प नहीं था, कि वो बीजेपी के खिलाफ किसे वोट करें। लेकिन इस बार इंडी अलायंस सिर्फ़ मुस्लिमों के लिए ही नहीं बल्कि बीजेपी के विरोधियों के लिए भी एक स्पष्ट विकल्प बन गया। मानो मुस्लिमों और बीजेपी विरोधियों के पास कोई खास थीम हो, ‘कैंडिडेट तो मजबूरी है, इंडी अलायंस जरूरी है।’
मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) जैसी पार्टियों का भरपूर समर्थन किया, जबकि इंडी गठबंधन ने एक भी मुस्लिम कैंडिडेट नहीं उतारा था। इंडी गठबंधन न केवल महाराष्ट्र में बल्कि पूरे देश में संयुक्त रूप से अभियान शुरू करने में विफल रहा, फिर भी ‘धर्मनिरपेक्षता’ में विश्वास रखने वाले मतदाताओं ने बीजेपी और पीएम मोदी के विरोध की वजह से इंडी गठबंधन का समर्थन किया। आने वाले सालों में विशेष रूप से गैर-मुस्लिम, जो मुस्लिम वोट पाने वाले एनसीपी (शरद पवार), शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस का समर्थन करते हैं, वे समझेंगे कि बीजेपी के खिलाफ उन्हें समर्थन कर उन्होंने कितनी बड़ी गलती की।