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सत्यार्थ प्रकाश में महर्षि दयानंद ने भी किया है ज्ञानवापी में स्थित शिवलिंग का उल्लेख

उगता भारत के संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य ने अपने निम्न लेख में काशी ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग के होने का जो एक और प्रमाण दिया है। जिससे ध्यान हटाने के लिए कट्टरपंथियों द्वारा जो नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के बहाने देशभर में हिंसात्मक प्रदर्शन किये जा रहे हैं। लेकिन सच्चाई उपद्रवियों के मुंह से बाहर आ ही गयी। देखिए SDPI का ये व्यक्ति भीड़ को भड़काते हुए कहता है कि ये 1992 का भारत नहीं है। वीडियो में उसे कहते सुना जा सकता है, “हमारी एक मस्जिद थी वो चली गई लेकिन अभी हमारे दिलों से नहीं गई है। आप भूल जाओ मस्जिद क्या, फव्वारा क्या… अब मस्जिद के लाइट, नल के लिए अपनी जानों को कुर्बान कर देंगे। तुमने क्या समझा है कि ये 1992 का भारत है। ये अब का भारत है… जब तक हमें इंसाफ नहीं मिलेगा तब तक हम अपनी आवाज को इसी तरह उठाएँगे। अगर रहना हो तो इज्जत से इस मुल्क में रहो। हम हर एक की कदर करना जानते हैं। अगर तुम नहीं जानते तो तुम्हारे बाप जहाँ से आए थे वहाँ चले जाओ।” जिसे नीचे दिए लिंक में विस्तार से पढ़ा एवं सुना जा सकता है।  

दुर्भाग्य यह है कि मोदी सरकार ने फेक न्यूज़ फैलाकर मुसलमानों बदनाम करने वाले जुबेर के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की, क्यों? सुनिए नूपुर की ज़ुबानी:-

https://www.facebook.com/watch/?extid=WA-UNK-UNK-UNK-AN_GK0T-GK1C&v=711695083470064  

प्रस्तुत है डॉ राकेश का लेख:-

आज ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर जिस प्रकार लोगों को अनेक प्रकार के साक्ष्य एकत्र करने पड़ रहे हैं, उनके दृष्टिगत महर्षि दयानंद के ‘ सत्यार्थ प्रकाश’ की साक्षी भी बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि शिवलिंग के रूप में डाले जाने का उल्लेख महर्षि दयानंद ने भी ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में किया है । यद्यपि उसका प्रसंग थोड़ा दूसरा है ,परंतु शिवलिंग को उस समय कूप में डाल दिया गया था यह बात तो ऋषि दयानंद जी को भी ज्ञात थी और उन्होंने उसे यथावत अपने अमर ग्रंथ ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में स्पष्ट किया है। उस प्रसंग को हम यहां यथावत प्रस्तुत कर रहे हैं :–

प्रश्न) जैसे स्त्री की पाषाणादि मूर्ति देखने से कामोत्पत्ति होती है वैसी वीतराग शान्त की मूर्त्ति देखने से वैराग्य और शान्ति की प्राप्ति क्यों न होगी?

(उत्तर) नहीं हो सकती। क्योंकि उस मूर्त्ति के जड़त्व धर्म आत्मा में आने से विचारशक्ति घट जाती है। विवेक के विना न वैराग्य और वैराग्य के विना विज्ञान, विज्ञान के विना शान्ति नहीं होती। और जो कुछ होता है सो उनके संग, उपदेश और उनके इतिहासादि के देखने से होता है क्योंकि जिस का गुण वा दोष न जानके उस की मूर्त्तिमात्र देखने से प्रीति नहीं होती। प्रीति होने का कारण गुणज्ञान है। ऐसे मूर्त्तिपूजा आदि बुरे कारणों ही से आर्य्यावर्त्त में निकम्मे पुजारी भिक्षुक आलसी पुरुषार्थ रहित क्रोड़ों मनुष्य हुए हैं। सब संसार में मूढ़ता उन्हीं ने फैलाई है। झूठ छल भी बहुत सा फैला है।

(प्रश्न) देखो! काशी में ‘औरंगजेब’ बादशाह को ‘लाटभैरव’ आदि ने बड़े-बड़े चमत्कार दिखलाये थे। जब मुसलमान उन को तोड़ने गये और उन्होंने जब उन पर तोप गोला आदि मारे तब बड़े-बड़े भमरे निकल कर सब फौज को व्याकुल कर भगा दिया।

(उत्तर) यह पाषाण का चमत्कार नहीं किन्तु वहां भमरे के छत्ते लग रहे होंगे। उन का स्वभाव ही क्रूर है। जब कोई उन को छेड़े तो वे काटने को दौड़ते हैं। और जो दूध की धारा का चमत्कार होता था वह पुजारी जी की लीला थी।

(प्रश्न) देखो! महादेव म्लेच्छ को दर्शन न देने के लिये कूप में और वेणीमाधव एक ब्राह्मण के घर में जा छिपे। क्या यह भी चमत्कार नहीं है?

(उत्तर) भला जिस के कोटपाल, कालभैरव, लाटभैरव आदि भूत प्रेत और गरुड़ आदि गणों ने मुसलमानों को लड़के क्यों न हटाये? जब महादेव और विष्णु की पुराणों में कथा है कि अनेक त्रिपुरासुर आदि बड़े भयंकर दुष्टों को भस्म कर दिया तो मुसलमानों को भस्म क्यों न किया? इस से यह सिद्ध होता है कि वे बिचारे पाषाण क्या लड़ते लड़ाते? जब मुसलमान मन्दिर और मूर्त्तियों को तोड़ते-फोड़ते हुए काशी के पास आए तब पूजारियों ने उस पाषाण के लिंग को कूप में डाल और वेणीमाधव को ब्राह्मण के घर में छिपा दिया। जब काशी में कालभैरव के डर के मारे यमदूत नहीं जाते और प्रलय समय में भी काशी का नाश होने नहीं देते तो म्लेच्छों के दूत क्यों न डराये? और अपने राज के मन्दिरों का क्यों नाश होने दिया? यह सब पोपमाया है।

अवलोकन करें :-

‘ये 1992 का भारत नहीं है… हम मस्जिद का नल भी नहीं देंगे’ : SDPI नेताओं ने हिंदुओं को दी देश छोड़ने की धम
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‘ये 1992 का भारत नहीं है… हम मस्जिद का नल भी नहीं देंगे’ : SDPI नेताओं ने हिंदुओं को दी देश छोड़ने की धम

इस उदाहरण से स्पष्ट है कि हिंदू समाज में प्रचलित आम धारणा के आधार पर महर्षि दयानंद ने अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में इस घटना को यथावत स्थान दिया । यदि महर्षि दयानंद जैसे महापुरुष ने इस घटना का उल्लेख किया है तो निश्चय ही यह घटना उस समय तक लोगों के चित्त में बनी बैठी रही होगी। इसके अतिरिक्त महर्षि दयानंद ने इस पर पर्याप्त अध्ययन करने के उपरांत ही इसे इस प्रकार उल्लेखित किया होगा।

नेताओं को अजमेर में हिन्दू विरोधी चिश्ती की दरगाह तो याद रहती है महर्षि दयानंद का उद्यान याद नहीं रहता

राकेश कुमार आर्य,

सम्पादक, उगता भारत 
कल शाम लगभग 7:30 बजे हम अजमेर स्थित परोपकारिणी सभा पहुंचे। जहां पर महर्षि दयानंद सरस्वती जी महाराज के जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाओं का सजीव चित्रण ऋषि उद्यान के एक भवन में किया गया है। महर्षि के जीवन से जुड़ी अनेकों घटनाओं का निरीक्षण कर मन प्रसन्न हो गया।

ब्रह्मचारी नीलेश जी ने इस अवसर पर हमारा मार्गदर्शन किया।

हमारे यात्री दल में मैं स्वयं ,श्री तोरणसिंह आर्य जी, श्रीनिवास आर्य जी व बेटा अमन आर्य रहे।

हम सभी को इस बात पर घोर आश्चर्य व दुख हुआ कि आजादी के बाद जितने भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री ,राज्यपाल या अन्य केंद्रीय व प्रांतीय मंत्री अजमेर पधारे उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मोइनुद्दीन चिश्ती जैसे हिंदूद्रोही व्यक्ति की मजार पर जाकर तो चादर चढ़ाई परंतु महर्षि दयानंद उद्यान में आकर कभी यह कहने का साहस नहीं किया कि महर्षि दयानंद इस देश के स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रधार थे ।

 भारत के किसी नेता राजनेता ने कभी यह कहना भी उचित नहीं माना कि महर्षि दयानंद पहली बार ‘स्वराज्य’ शब्द का चिंतन इस देश को दिया और ‘वेदों की ओर’ लौटने का नारा देकर भारत में तेजस्वी राष्ट्रवाद की विचारधारा को मजबूत किया और उसे नई धार दी। निश्चित रूप से इस उपेक्षा वृत्ति के कारण देश का भारी अहित हुआ। क्योंकि स्वराज्य, वेद और वैदिक तेजस्वी राष्ट्रवाद की विचारधारा को आगे बढ़ाने में राजनीति बाधक बन गई । यदि महर्षि दयानंद के उद्यान में हमारे नेताओं का बार-बार आगमन होता रहता तो निश्चय ही महर्षि के जीवन की सुगंध उन्हें तेजस्वी राष्ट्रवाद के निर्माण के लिए प्रेरित करती रहती। लेकिन चिश्ती की दरगाह पर चादर चढ़ाने वाले मानसिक रूप से पक्षाघात का शिकार हुए राजनेता बार-बार चिश्ती की दरगाह पर जाते रहे और इस देश को सेकुलरिज्म का ऐसा बेतुका पाठ पढ़ाते रहे जिससे देश गर्त में चला गया। नेताओं के इस आचरण से ही ‘गंगा जमुनी संस्कृति’ की मूर्खता पूर्ण अवधारणा भारत में विकसित हुई जिससे हम वर्तमान की अनेकों विसंगतियों को झेल रहे हैं।

निश्चय ही यह कहना ठीक है कि उधारी मानसिकता और उधारी सोच देश, समाज और राष्ट्र का भारी अहित करती हैं। जिससे हमारी राजनीति को सबक लेना चाहिए।
महर्षि दयानंद के महान व्यक्तित्व को हम नमन करते हैं । जिन्होंने अपने समय में पौराणिक पाखंडी पंडितों के पाखंड का तो विरोध किया ही, साथ ही मुसलमानों के विज्ञान के विरुद्ध सिद्धांतों, मान्यताओं और धारणाओं का भी जोरदार खंडन किया। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों की धार्मिक ,राजनीतिक व सामाजिक सभी प्रकार की मान्यताओं का भी उतनी ही प्रबलता से विरोध किया । इस प्रकार महर्षि दयानंद एक ऐसे विशाल व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने एक ही समय में अपने लिए अनेकों चुनौतियां खड़ी कीं और उनका निर्भीकता से सामना किया।
समाज सुधारक , वेदोद्धारक, देश धर्म व संस्कृति के रक्षक और मानवता के प्रहरी महर्षि को हृदय से नमन कर हमने उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं का गंभीरता से निरीक्षण किया और उनके स्वयं के द्वारा प्रयोग की जाने वाली उन वस्तुओं को भी बहुत श्रद्धा के साथ देखा जो यहां पर यथावत रखी गई है।
अब प्रातः काल में 4:05 बजे हम ऋषि उद्यान को छोड़कर भीनमाल के लिए प्रस्थान कर चुके हैं।
अजमेर से निकलते – निकलते यह पोस्ट मैंने लिखी है।