Showing posts with label pseudo-social activist. Show all posts
Showing posts with label pseudo-social activist. Show all posts

जस्टिस काटजू : हिन्दुओं को गाली, लेकिन बुर्का, शरिया, मौलाना, मदरसा पर चुप्पी, क्यों?

जस्टिस काटजू, सेकुलर गैंगसुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने हिन्दू धर्म को गाली देने वाले वामपंथी लिबरलों को जमकर लताड़ लगाई है। उन्होंने कहा है कि कन्हैया कुमार, शेहला रशीद और उमर खालिद जैसे जेएनयू के पूर्व छात्र नेता हिन्दू कट्टरवाद पर जम कर निशाना साधते हैं, लेकिन बुर्का, शरिया, मदरसा और मौलानाओं की कभी निंदा नहीं करते हैं।
मार्कण्डेय काटजू ने इसके पीछे का कारण भी बताया है। उन्होंने कहा कि ये सब चुनावों में मुसलमान वोट बैंक को ध्यान में रखकर किया जाता है। पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि इनके सेकुलरिज्म की सच्चाई भी यही है।
उन्होंने इस्लामी कट्टरवादी पत्रकार राणा अयूब का एक वीडियो भी शेयर किया है। बकौल काटजू, इस वीडियो में अयूब ‘सेकुलरिज्म चैंपियन’ हैं और हिन्दू कट्टरवाद का विरोध करती हैं, लेकिन इस्लामी पिछड़ेपन पर कोई बात नहीं करती।
काटजू ने कहा कि 2014 से भारत में जो बहुसंख्यकवाद शुरू हुआ, वो उससे पहले दशकों तक सेकुलर पार्टियों द्वारा की गई हरकतों का नतीजा था। उन्होंने इसके पीछे मुस्लिम वोट बैंक के तुष्टिकरण को कारण बताया। 
जस्टिस काटजू की इस बात में इतना वजन है, जिसका किसी भी छद्दम समाजवादी/धर्म-निरपेक्ष के पास कोई जवाब नहीं मिलेगा। ये वोट के भूखे क्या जाने सेकुलरिज्म क्या होता है या इसका क्या अर्थ होता है? क्योकि ये राजनीति नहीं सियासत करते हैं मजहब देख कर। और कपिल मिश्रा एवं पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठा(नीचे वाले वीडियो) भी वही बोल रहे हैं, जो जस्टिस काटजू  बोल रहे हैं। इनमे से किसी में इस्लामिक एक भी अपवाद को उजागर कर सके। इनके सेकुलरिज्म में ढ़ोकलापन है देखिए इस वीडियो में:-


मार्कण्डेय काटजू ने इस्लामी कट्टरवादियों को लताड़
उन्होंने गिनाया कि कैसे हिन्दू लॉ को तो हटा दिया गया, लेकिन शरिया और तीन तलाक को बरकरार रखा गया। उन्होंने राजीव गाँधी द्वारा शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदलने की भी चर्चा की।

काटजू ने कहा कि पत्रकार आरफा खानम शेरवानी का सेकुलरिज्म ज्यादा से ज्यादा पाकिस्तान में हिन्दू मंदिर के निर्माण का समर्थन करने तक ही सीमित है। उन्होंने पूछा कि क्या वो मदरसों, मौलानाओं, शरिया और बुर्का का विरोध कर सकती हैं, जिन चीजों ने मुसलमानों को हमेशा पिछड़ा बनाए रखा। उन्होंने कहा कि आरफा और अयूब अगर सच में सेकुलर हैं तो क्या वो इन चीजों को हटाने का समर्थन करते हुए मुसलमानों को आधुनिक बनाने की कोशिश कर सकती हैं।
आरफा ने यह मानने से इनकार कर दिया था कि तबलीगी जमात वाले महिलाओं के साथ बदसलूकी या उनका शोषण कर सकते हैं। उसने कहा था कि जमाती नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वाले लोग हैं, जो मजहब/समाज की सेवा के लिए दुनियादारी, यहॉं तक कि अपने परिवार से भी दूर रहते हैं।

इसी तरह राणा अयूब ने एक ऐसा वीडियो शेयर किया था, जिसमें एक मस्जिद को जलाया जा रहा था। अयूब ने इस वीडियो को दिल्ली का बता कर पेश किया था।
अवलोकन करें:-.
मार्कण्डेय काटजू ने अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा कि जब वो हिन्दू कट्टरपंथ पर बोलते हैं तो मुसलमान उनकी खूब प्रशंसा करते हैं। लेकिन जैसे ही उन्होंने इस्लामी कट्टरपंथ और ग़लत रिवाजों पर बोलना शुरू किया तो मुसलमानों ने उन्हें साम्प्रदायिक बताया ही। साथ में ये भी कहा कि वो कभी सेकुलर नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि सेकुलरिज्म ‘वन वे ट्रैफिक’ नहीं हो सकता।

PETA का दोगला चरित्र : माँसाहारी को दिया ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड

PETA, पोप
जहाँ एक तरफ PETA हिन्दुओं को शाकाहार का पाठ पढ़ाता है और उनके पर्व-त्योहारों को बदनाम करने का प्रयास करता है, वहीं दूसरी तरफ वो ईसाईयों के सर्वोच्च धर्मगुरु वेटिकन के पोप फ्रांसिस को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड देता है। लेखिका शेफाली वैद्य ने PETA के इस दोहरे रवैए की ओर सबका ध्यान आकृष्ट कराया है। क्या PETA ईसाई मिशनरियों के एजेंडे को प्रमोट करता है?
आखिर PETA ने माँसाहारी पोप को ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ का अवॉर्ड क्यों दिया? उसका कहना है कि अस्सीसी (Assisi) के संत फ्रांसिस के योगदानों को याद किया, जिन्होंने जानवरो के प्रति दया को बढ़ावा दिया था। उसका कहना है कि पोप ने 120 करोड़ रोमन कैथोलिक को कहा है कि वो जानवरों के साथ हिंसा न करें, इसीलिए उन्हें ये अवॉर्ड दिया गया है। साथ ही पोप को पर्यावरणविद भी बताया गया है।


आपको बताते हैं कि पोप खाते क्या हैं? दरअसल, पोप के ही शेफ ने बताया था कि वो सुबह-सुबह नाश्ते में अन्य चीजों के साथ कोल्ड मीट लेते हैं। 12 साल की एक बच्ची ने जब पोप को शाकाहारी बनने की चुनौती दी थी तब पोप ने उसे ‘ब्लेसिंग’ भेज दिया था लेकिन शाकाहारी बनने का आश्वासन नहीं दिया। उन्होंने कहा कि वो बच्चों को अपनी प्रार्थनाओं में याद रखेंगे और धन्यवाद दिया।
लेकिन, यही PETA श्री श्री रविशंकर के ‘आर्ट ऑफ लिविंग’ के परिसर में एक कुत्ते की ‘हत्या का प्रयास’ का आरोप होने पर जाँच और कार्रवाई के लिए कर्नाटक पुलिस को पत्र लिखता है। आखिर PETA चाहता है कि सिर्फ एक ‘कुत्ते की हत्या के प्रयास का आरोप’ पर पूरे राज्य की पुलिस मशीनरी सक्रिय हो जाए? क्या ये सब श्री श्री रविशंकर को बदनाम करने के लिए नहीं किया गया क्योंकि वो हिन्दू संत हैं?
सद्गुरु ने भी एक बार कहा था कि PETA द्वारा जल्लिकट्टु का विरोध करना ठीक नहीं है। उन्होंने समझाया था कि ऐसी संस्थाएँ स्थानीय लोगों की भावनाओं का सम्मान करना नहीं जानती हैं क्योंकि उन्हें स्थानीय मुद्दों और लोगों की समझ ही नहीं होती है। हालाँकि, PETA इंडिया खुद को PETA यूएस से अलग संस्था बता कर अक्सर पल्ला झाड़ लेता है लेकिन फिर दोनों का ‘लोगो’ एक क्यों है?
PETA के एक पूर्व-कर्मचारी ने बताया था कि वो ‘भारत में मुर्गों को ट्रांसपोर्ट के दौरान उनके साथ होने वाली क्रूरता को कैसे रोकें’ जैसे मुद्दों पर रणनीति बनाने के लिए बहस करते हैं। PETA के पूर्व कर्मचारी ने ये भी बताया कि JW Marriot जैसे बड़े पाँच सितारा होटलों में उनकी बैठकें होती हैं। बैठकों में मुर्गे, माँस और अन्य जानवरों के मीट ऑर्डर किए जाते हैं। बता दें कि जीवहत्या का विरोध करने वाले PETA के कर्मचारियों का 5 स्टार होटल में बैठ कर माँस खाना उनके दोहरे रवैए को उजागर करता है।
अवलोकन करें:-
About this website
NIGAMRAJENDRA.BLOGSPOT.COM
शेफाली वैद्य ने PETA को लेकर उसके एक पूर्व एसोसिएट (कर्मचारी) के हवाले से बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने एक स्क्रीनशॉट श...
PETA की वेबसाइट पर जानवरों की हत्या को लेकर मुसलमानों को कई सलाह दी गई है। बताया गया है कि चाकू की धार को एकदम तेज़ कर के रखें। उसे बार-बार धार दें। उसकी लम्बाई ठीक रखें। इसकी लम्बाई 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। सलाह दी गई है कि काफी अच्छे तरीके से जानवर की हत्या करें, तीन से ज्यादा बार वार न करें और जानवर को हाथ-पाँव मारने दें, ताकि खून जल्दी-जल्दी निकल जाए।

बेनकाब होता सिलेक्टिव लिब्रलिस्म

Shekhar Gurera's Cartoon for 1/27/2008
साभार 
आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार 
सरकार की किसी भी नीति का विरोध करना गलत बात नहीं है, करना भी चाहिए, जिसे हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक कहते हैं। लेकिन विरोध तर्कपूर्ण हो, जिसमें समाज भी अहित न हो, लेकिन विरोध इसलिए करना की हमने सरकार द्वारा देशहित में उठाये जाने वाले हर कदम का विरोध करेंगे ताकि हमारी कलाई न खुल सके। 
इन उदारवादियों ने अपने ही देश के गौरवमयी इतिहास को अपनी नीच सोंच के कारण धूमिल कर शर्मनाक काम किया है, जिसे इतिहास कभी माफ़ नहीं करेगा।  
आज हम उस समाज में जी रहे हैं जिसे अपने दोहरे चरित्र का प्रदर्शन करने में महारत हासिल है। वो समाज जो एकतरफ अपने उदारवादी होने का ढोंग करता है, महिला अधिकारों, मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बड़े बड़े आंदोलन और बड़ी बड़ी बातें करता है लेकिन जब इन्हीं अधिकारों का उपयोग करते हुए कोई महिला या पुरूष अपने ऐसे विचार समाज के सामने रखते हैं तो इसी समाज को यह उदारवाद रास नहीं आता और इनके द्वारा उस महिला या पुरुष का जीना ही दूभर कर दिया जाता है। वो लोग जो असहमत होने के अधिकार को संविधान द्वारा दिया गया सबसे बड़ा अधिकार मानते हैं वो दूसरों की असहमती को स्वीकार ही नहीं कर पाते।
हाल ही के कुछ घटनाक्रमों पर नज़र डालते हैं:-
1.अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की एक छात्रा को सोशल मीडिया पर धमकी दी गई है कि यूनिवर्सिटी खुलने के बाद उसे जबरन पीतल का हिजाब पहनाया जाएगा। उसका कुसूर ये था कि उसने कॉलेज में छात्राओं को जबरन हिजाब पहनने के मसले पर अपनी राय रखी थी जिसके बाद स्नातक के एक छात्र ने उसके लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उसे धमकाया।
2.कुछ दिन पहले ही मुंबई स्थित मानखुर्द में एक हिंदू लड़की ने मस्जिद में अजान के समय लाउडस्पीकर से आने वाली आवाज से परेशान हो कर उनसे नियमों का पालन करने की गुजारिश की थी, तो उसे कट्टरपंथियों के गुस्से का सामना करना पड़ा था। 
निर्भया से आसिफा तक...उदारवादियों के सिलेक्टिव ...इतना ही नहीं, पुलिस और प्रशासन भी उन कट्टरपंथियों के आगे बेबस और बौना नज़र  रहा था।
3.जब इस लड़की के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक अन्य लड़की ने आवाज उठाने की हिम्मत दिखाई तो उसे भी बेहद अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए उसका बलात्कार करने की धमकी तक दे दी गई। यह मामला इंदौर का है जहाँ इस लड़की की गुस्ताखी यह थी कि उसने उपर्युक्त लड़की के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक प्लेकार्ड की फोटो शेयर की थी जिसमें लिखा था कि अज़ान करो पर आवाज कम करो,लाउडस्पीकर से क्या साबित करना चाहते हो।लेकिन इन लड़कियों के समर्थन में कोई आवाज नहीं आई और ये अपनी लड़ाई में अकेली खड़ी हैं। दरसअल इन लड़कियों की गलती यह थी कि ये तीनों उन बातों को सच मान बैठी थीं जो इन्होंने तथाकथित उदारवादियों के मुँह से सुनी थीं। वो भूल गईं थीं कि भले ही इस देश का लोकतंत्र उन्हें “असहमत होने का अधिकार” देता है और इस देश का संविधान इन्हें अभिव्यक्ति की आज़ादी भी देता है लेकिन ये तथाकथित उदारवादीनहीं।क्योंकि इनका उदारवाद चयनात्मक है सार्वभौमिक नहीं। 
कुछ समय पहले इन्हीं शब्दों की आड़ में देश के लोकतंत्र की दुहाई देकर और संविधान की रक्षा के नाम पर CAA के विरोध में समुदाय विशेष की महिलाओं द्वारा अनिश्चितकालीन विरोध प्रदर्शन और धरना दिया जा रहा था जिसे देश भर में इन उदारवादियों का समर्थन प्राप्त था। तब उस प्रर्दशन के दौरान लोकतंत्र के नाम पर प्रदर्शनकारियों की तानाशाही और संविधान की रक्षा के नाम पर संविधान सम्मत कानून का गैरकानूनी विरोध पूरे देश ने देखा। इन महिलाओं को कड़क ठंठ में दूध पीते बच्चों को भी लाने का प्रलोभन दिया गया। लेकिन महिला अधिकारों लोकतंत्र में असहमत होने के अधिकार और संविधान द्वारा प्रदत्त विरोध करने के अधिकार के नाम पर प्रशासन के हाथ बांध दिए गए। 
Niti Central Archive on Twitter: "#Cartoon: by Manoj Kureel on ...
साभार 
इसी प्रकार दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगों की साज़िश रचने के आरोप में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एक छात्रा को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। वो CAA विरोध प्रदर्शन में भी शामिल थी और उसे भी सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया था। उस समय उसके समर्थन में महिला अधिकारों की बात करने वालों की झड़ी लग गई थी। प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर एक महिला जो कि एक छात्रा भी है उसके साथ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ और उसके सम्मान के लिए आवाज उठाने वाले महिला और वामपंथी संगठन सामने आ गए थे। सही भी है चाहे वो अपराधी हो, पर महिला होने के नाते वो एक आत्मसम्मान की अधिकारी है जिसकी रक्षा किसी भी सभ्य समाज में की जानी चाहिए। लेकिन जब हिजाब के खिलाफ आवाज उठाने वाली छात्रा हो या लाउडस्पीकर पर अजान का न्यायसम्मत विरोध करने वाली महिला हो या फिर इसके समर्थन में उतरी एक अन्य छात्रा हो, इनके समर्थन में महिला अधिकारों की बात करने वाले उपर्युक्त किसी उदारवादी संगठन की कोई आवाज क्यों नहीं सुनाई दी। 
जिन वामपंथी संगठनों के महिला सशक्तिकरण के विषय में लंबे चौड़े भाषण विभिन्न मंचों पर अनेकों अवसरों पर देखे और सुने गए आज वो यथार्थ में बदलने के इंतजार में हैं।अगर आप सोच रहे हैं कि यह दोगला व्यवहार केवल महिलाओं के साथ किया जाता है तो आपको साल के शुरुआत में कन्नूर यूनिवर्सिटी में आयोजित भारतीय इतिहास कांग्रेस के मंच पर केरल के राज्यपाल आरिफ मुहमम्द खान के साथ इतिहासकार इरफान हबीब की बदसलूकी याद कर लेनी चाहिए।
24 मार्च 1943 को भारत के अतिरिक्त गृहसचिव रिचर्ड टोटनहम ने वामपंथियों पर टिप्पणी करते हुए लिखा था कि ”भारतीय कम्युनिस्टों का चरित्र ऐसा है कि वे किसी का विरोध तो कर सकते हैं, किसी के सगे नहीं हो सकते सिवाय अपने स्वार्थों के।” दरअसल जो वामपंथी मानवाधिकारों, दलित अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, महिला अधिकारों के नारे बुलंद करते हैं उनका सच यह है कि जब 1979 में उन्हीं की पश्चिम बंगाल में सरकार दलितों का भीषण नरसंहार करती है या 1993 में विरोध प्रदर्शन कर रहे युवा कार्यकर्ताओं पर खुले आम गोलियां चलवाती है जिसमें 13 लोग मारे जाते हैं या फिर जब बंगाल के वामपंथी कार्यकर्ता 2006 में तापसी मलिक नाम की एक नाबालिग लड़की का बलात्कार कर जला कर मार डालते हैं तो इनकी उदारवाद मानव अधिकार महिला अधिकार की बातें खोखले नारे बन कर रह जाते हैं। लेकिन अब शायद समय आ गया है जब इन उदारवादियों के सिलेक्टिव लिब्रलिस्म से पर्दा उठने लगा है।
अवलोकन करें:-
जनता भी अब इनके षड्यंत्रों को समझने लगी है। परन्तु पूर्णरूप से पर्दाफाश होने में अधिक नहीं कुछ समय जरूर लगेगा, तब तक हर शांतिप्रिय भारतवासी को संयम से काम लेना पड़ेगा। 2014 के चुनाव पूर्व तक देश में आतंकवादी घटनाओं को छुपाने ये ही उदारवादी "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" के नाम से भारत ही नहीं समूचे विश्व को भ्रमित किया गया था, जिसमें हमारी मीडिया ने भरपूर साथ दिया। लेकिन सत्ता परिवर्तन होते ही उदारवादियों के चेहरों से छद्दम समाजवाद का नकाब हटना शुरू होने से हो रही बेचैनी दंगों, प्रदर्शन और धरनों के रूप में सामने आ रही है। 

मैग्सेसे विजेता को जीप में डाल कर ले गई यूपी पुलिस, भड़काऊ पोस्टर बाँट कर लोगों को उकसा रहा था

मैग्सेसे विजेता संदीप पांडेय
पुलिस से बहस करते संदीप पांडेय (बाएँ), प्रदेश में सुरक्षा को लेकर सख्त हैं सीएम योगी (दाएँ)
उत्तर प्रदेश में सीएए के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन के नाम पर हिंसा की गई, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया और पुल्सकर्मियों के साथ झड़प की गई। योगी सरकार ने फ़ैसला किया कि सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई उपद्रवियों से ही की जाएगी। अब जब प्रदर्शन को कवरेज नहीं मिल रहा है, बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग फिर से जनता को भड़काने में जुट गया है। मीडिया का एक वर्ग तो पहले से ही उलटा-पुल्टा झूठ फैला कर मोदी सरकार को बदनाम करने में लगा है। हालाँकि, योगी आदित्यनाथ की सख्ती के कारण उपद्रवियों के मंसूबे धरे के धरे रह जा रहे हैं।
ताज़ा सूचना के अनुसार, मैग्सेसे विजेता संदीप पांडेय को पुलिस उठा कर ले गई है। पांडेय भड़काऊ पोस्टर बाँट कर लोगों को उकसाने का काम कर रहे थे। वो सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ भड़काऊ बातें लिख कर लोगों में भ्रम फैला रहे थे। बता दें कि पूरे देश में एनआरसी लागू करने के संबंध में अभी कोई फ़ैसला नहीं हुआ है, लेकिन कथित बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग इसके विरोध में लगा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन पर सीआरपीसी की धारा-151 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।
धारा-151 के तहत पुलिस किसी अपराध को रोकने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है और इसके लिए मजिस्ट्रेट के ऑर्डर की ज़रूरत नहीं पड़ती। अभी तक आधिकारिक रूप से पांडेय की गिरफ़्तारी बारे में कुछ नहीं कहा गया है। उनकी पत्नी ने अरुंधति धुरु ने बताया कि लखनऊ स्थित ठाकुरगंज थाने की पुलिस उन्हें उठा कर ले गई है। अरुंधति ख़ुद भी एक्टिविस्ट होने का दावा करती हैं। पांडेय के दोस्तों ने दावा किया है कि पुलिस उन्हें जीप में डाल कर ले गई है।

संदीप पांडेय जिन भड़काऊ पोस्टरों के जरिए लोगों को उकसा रहे थे, उन पर कई अन्य तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्ताक्षर थे। उन पोस्टर्स में लिखा था- “देश को लूटने की, बाँटने की और बेचने की राजनीति नहीं चलेगी।” पोस्टर में कई आपत्तिजनक बातें लिखी होने की बात भी पता चली है। मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता संदीप पांडेय लोगों से अपील कर रहे थे कि वो देश के संविधान की प्रस्तावना को ‘वास्तविकता में बदलने के लिए’ एकजुट हों।
संदीप पांडेय के साथ-साथ उनके 9 अन्य साथियों को भी पुलिस ले गई है, जो क्षेत्र में शांति भंग करने का प्रयास कर रहे थे। पांडेय बिना अनुमति लखनऊ घंटाघर से लेकर गोमती नगर तक मार्च भी निकालने वाले थे। घंटाघर को यूपी का शाहीन बाग़ बनाने के लिए वहाँ कई मुस्लिम महिलाओं को धरने पर बिठा दिया गया है।