ट्रंप के टैरिफ और Dead Economy वाले बयान की अमेरिकी एजेंसी ने ही निकाली हवा, 6.9% की रफ्तार से दौड़ेगी इंडिया की इकोनॉमी


अमेरिकी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ और Dead Economy वाले बयान की हवा अमेरिका की अपनी ही एजेंसी ने निकाल दी है। ट्रंप ने भारत की रूस से तेल की खरीद पर नाराजगी जताते हुए टैरिफ को दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिया और दावा किया था कि इससे इंडिया की अर्थव्यवस्था पर ब्रेक लग जाएगा। लेकिन अमेरिकी रेटिंग एजेंसी Fitch Ratings ने अपनी ताजा रिपोर्ट में साफ कर दिया है कि इससे भारत की ग्रोथ न तो रुकने वाली है और न ही धीमी पड़ने वाली। उल्टा, एजेंसी ने वित्तवर्ष 26 के लिए भारत की ग्रोथ का अनुमान बढ़ाकर 6.9 प्रतिशत कर दिया है, जो अमेरिका की इस टॉप क्रेडिट रेटिंग एजेंसी के इसी साल जून में 6.5 प्रतिशत ग्रोथ अनुमान से 40 बेसिस प्वाइंट ज्यादा है। इसके साथ ही फिच ने अगले वित्त वर्ष 2027 को लेकर कहा है कि इकोनॉमी की ग्रोथ रेट 6.3 प्रतिशत और वित्त वर्ष 28 में 6.2 प्रतिशत रह सकता है। फिच का अनुमान है कि भारत की ग्रोथ का सबसे बड़ा इंजन घरेलू मांग होगी। फिच ने कहा है कि भारत की बाहरी मांग पर कम निर्भरता और पर्याप्त आत्म-निर्भरता के कारण अर्थव्यवस्था इसके व्यापक असर से बची रहेगी।

विश्व की सर्वाधिक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा भारत- फिच

फिच ने हाल ही में यह भी कहा है कि अगले कुछ सालों तक भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बनी रहेगी। फिच ने इसके पहले भारत की संप्रभु रेटिंग के परिदृश्य को स्थिर बताते हुए कहा कि देश का विकास मजबूत दिख रहा है। फिच रेटिंग्स ने भारत की दीर्घकालिक विदेशी मुद्रा जारीकर्ता डिफॉल्ट रेटिंग को स्थिर परिदृश्य के साथ ‘बीबीबी’ के स्तर पर रखा है। फिच ने कहा कि भारत की रेटिंग अन्य देशों की तुलना में मजबूत ग्रोथ और बाहरी वित्तीय लचीलापन दर्शा रही है, जिससे अर्थव्यवस्था को पिछले साल के बड़े बाहरी झटकों से पार पाने में मदद मिली है।

ट्रंप की टैरिफ का भारत की ग्रोथ पर नहीं पड़ेगा कोई असर- S&P

इतना ही नहीं इसके पहले हाल ही में अमेरिकी रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स ने भी कहा कि भारत पर लगाए गए अमेरिकी टैरिफ का देश पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। अमेरिकी रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी- S&P) ने साफ कहा कि अमेरिकी के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के सामान पर जो 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने की बात कही है, उसका इंडिया की ग्रोथ पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

भारत का कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा ट्रंप का टैरिफ

S&P ग्लोबल रेटिंग्स की डायरेक्टर यीफार्न फुआ ने साफ-साफ कहा कि भारत एक एक्सपोर्ट-केंद्रित इकोनॉमी नहीं है। मतलब ये कि भारत की पूरी अर्थव्यवस्था अमेरिका को सामान बेचने पर निर्भर नहीं करती। उन्होंने बताया कि भारत का अमेरिका को होने वाला निर्यात जीडीपी का सिर्फ 2 प्रतिशत है– यानी बहुत ही कम।

S&P ने जताया भरोसा- 2025 में 6.5 प्रतिशत रहेगी GDP ग्रोथ
इतना ही नहीं एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स (S&P Global Ratings) ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भरोसा जताते हुए वृद्धि दर का अनुमान 6.3 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। एजेंसी ने अपनी ताजा एशिया-पैसिफिक इकोनॉमिक आउटलुक रिपोर्ट में कहा कि भारत में घरेलू मांग में मजबूती और मॉनसून सामान्य रहने की उम्मीद के कारण अर्थव्यवस्था को वैश्विक चुनौतियों के बावजूद गति मिल रही है। इसके पहले अमेरिका की शुल्क नीति पर अनिश्चितता को लेकर एसएंडपी ने मई 2025 में भारत की वृद्धि का अनुमान कम कर 6.3 प्रतिशत कर दिया था।

2030 तक बनेगा दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था- एसएंडपी
इसके पहले रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ग्लोबल (S&P Global) ने कहा कि भारत साल 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। एसएंडपी ने ‘ग्लोबल क्रेडिट आउटलुक 2024: न्यू रिस्क, न्यू प्लेबुक’ रिपोर्ट में कहा कि भारत 2030 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए तैयार है और यह अगले तीन सालों में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2022-23 के आखिर तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3,730 अरब अमेरिकी डॉलर रहा है जो भारत 2027-28 तक 5,000 अरब डॉलर के साथ दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा।

IMF ने जीडीपी वृद्धि का अनुमान बढ़ाकर किया 6.4 प्रतिशत
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में देश की अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है और दुनिया भर में छाई अनिश्चितताओं के बाद भी भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बना रहेगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने यह कहते हुए इस साल 2025 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाकर 6.4 प्रतिशत कर दिया है। इससे पहले अप्रैल 2025 में जारी अपनी रिपोर्ट में IMF ने भारत की विकास दर 6.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था। IMF ने अपनी जुलाई 2025 की विश्व आर्थिक परिदृश्य (World Economic Outlook) अपडेट में कहा है कि भारत की इस बढ़ी हुई वृद्धि दर से यह साफ है कि देश वैश्विक और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से बढ़ने वाला देश बना रहेगा। इस वृद्धि से भारत के समक्ष आने वाले वर्षों में निवेश, निजी उपभोग और सार्वजनिक निवेश को समर्थन मिलने की उम्मीद है। इस रिपोर्ट से यह भी संकेत मिलता है कि भारत की अर्थव्यवस्था वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद मजबूत बनी हुई है और जल्द ही विश्व की प्रमुख आर्थिक ताकतों में अपनी स्थिति और भी मजबूत करेगा।

2027-28 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा-आईएमएफ
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने हाल ही में एक रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर जो अनुमान व्यक्त किया, उसके मुताबिक भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2027-28 तक 5 ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी। भारत 5.2 ट्रिलियन डॉलर के साथ विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसकी वैश्विक अर्थव्यवस्था में 4 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी। इस दौरान अमेरिकी अर्थव्यवस्था 31 ट्रिलियन डॉलर के साथ शीर्ष पर रहेगी और वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी 24 प्रतिशत होगी। इसके बाद चीन 25.7 ट्रिलियन डॉलर के साथ दूसरे स्थान पर रहेगा और वैश्विक जीडीपी में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी।

भारत की ग्रोथ की असली ताकत बड़ा घरेलू बाजार

इतना ही नहीं, फार्मास्यूटिकल्स और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे भारत के बड़े और अहम निर्यात सेक्टर, इस टैरिफ के दायरे से बाहर रखे गए हैं। इसका मतलब है कि भारत के सबसे ज्यादा कमाई करने वाले प्रोडक्ट्स को ट्रंप के इस फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। इसके अलावा, भारत की ग्रोथ की असली ताकत है उसका बड़ा घरेलू बाजार और तेजी से बढ़ता इंफ्रास्ट्रक्चर- न कि सिर्फ एक्सपोर्ट।

भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत- S&P

पिछले साल एजेंसी ने भारत की सॉवरेन रेटिंग को ‘BBB-’ से बढ़ाकर पॉजिटिव आउटलुक में कर दिया था। अब एजेंसी का कहना है कि इस टैरिफ के चलते रेटिंग में किसी तरह का बदलाव नहीं होगा, क्योंकि भारत की इकोनॉमिक फंडामेंटल्स मजबूत हैं और लॉन्ग टर्म में टैरिफ जैसे कदमों का कोई बड़ा असर नहीं होगा।

 अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों ने भारतीय इकोनॉमी को बताया सबसे सशक्त

हैरानी की बात यह भी है कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिस इकोनॉमी को डेड बता रहे हैं, उसी भारत की इकोनॉमी को उनके देश की एजेंसियां ही सबसे तेज और सशक्त बता रही हैं। एसएंडपी ग्लोबल के साथ ही हाल ही में टॉप 2 अन्य शीर्ष अमेरिकी रेटिंग एजेंसियों गोल्डमैन सेक व मॉर्गन स्टेनली ने भी भारत की अर्थव्यवस्था को सबसे सशक्त बताया है। हाल में आईएमएफ ने भी कहा है कि भारतीय इकोनॉमी सबसे तेजी से बढ़ रही है और 2025-26 में 6.4% दर से बढ़ेगी। जबकि अमेरिकी ग्रोथ रेट 2.9% है।
2031 तक डबल होकर 6.7 ट्रिलियन डॉलर की होगी हमारी इकोनॉमी
एसएंडपी ने हाल ही में यह भी कहा है कि भारतीय इकोनॉमी साल 2031 तक बढ़कर डबल हो जाएगी। इसका आकार 3.4 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर 6.7 लाख करोड़ डॉलर हो जाएगा। रेटिंग एजेंसी ने अगस्त वॉल्यूम रिपोर्ट ‘लुक फॉरवर्ड इंडिया मोमेंट’ में भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को लेकर यह जानकारी साझा की है। एजेंसी ने कहा है कि विनिर्माण और सेवाओं के निर्यात और उपभोक्ता मांग के कारण यह तेजी बनी रहेगी। एसएंडपी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि अर्थव्यवस्था लगभग दोगुनी होने से प्रति व्‍यक्ति आय भी बढ़ जाएगी। 2031 तक भारत पर कैपिटा जीडीपी 2500 से बढ़कर 4500 डॉलर तक हो जाएगी।

हार नंबर 95: अब Vice President Election में भी मिली करारी हार, राहुल गांधी के इंडी गठबंधन को जिताने के दावे फुस्स

एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन देश के 15वें उपराष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने कांग्रेस और इंडी गठबंधन के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के भारी अंतर से हराया। मंगलवार (09 सितंबर) को हुए मतदान में कुल 788 में से 767 सांसदों ने वोट डाला। एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन को उम्मीद से कहीं ज्यादा 452 वोट मिले। रेड्डी को मात्र 300 वोट मिले और 15 वोट अमान्य करार दिए गए। इतना ही नहीं कम से कम 14 विपक्षी सांसदों के क्रॉस वोटिंग कर एनडीए उम्मीदवार को वोट देने की बात भी सामने आ रही है। दरअसल, एनडीए के पास 427 सांसद हैं। वाईएसआर कांग्रेस के 11 सांसदों ने राधाकृष्णन को समर्थन दिया था, लेकिन राधाकृष्णन को इससे कहीं ज्यादा वोट मिले हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मई 2004 में अमेठी से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा और 2024 तक पांच लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। इन दो दशक के दौरान कांग्रेस पार्टी का लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रदर्शन लगातार बहुत खराब रहा है। अब कांग्रेस और राहुल गांधी को उपराष्ट्रपति चुनाव में 95वीं पराजय मिली है। इससे आने वाले समय में राहुल की राजनीति की डगर और मुश्किलों भरी हो सकती है। इस हार से इंडी गठबंधन के साथी राहुल गांधी पर और हमलावर हो सकते हैं। 

राहुल गांधी के एकजुटता के दावों की क्रॉस वोटिंग ने खोली पोल
उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे साफ संकेत दे रहे हैं कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जिस इंडी गठबंधन की जीत के बढ़-चढ़कर दावे कर रहे थे, उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। एक महत्वपूर्ण और अपरिहार्य प्रश्न यह भी है कि जिन 14 विपक्षी सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस-वोटिंग की है, क्या वह कांग्रेस और इंडी गठबंधन की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं हैं? क्योंकि यह केवल मतदान की कवायद नहीं थी – यह एकता का एक मौन उल्लंघन था, जो इंडिया ब्लॉक के भीतर आंतरिक दरारों का संकेत देता है। जबकि राहुल गांधी समेत इसके कई नेता सार्वजनिक रूप से एकजुटता के दावे करते रहे हैं।

उपराष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस गठबंधन को मिली करारी हार

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी जिस इंडी गठबंधन की जीत के बढ़-चढ़कर दावे कर रहे थे, उसे करारी हार का सामना करना पड़ा। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन उपराष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने कांग्रेस और इंडी गठबंधन के उम्मीदवार जस्टिस बी. सुदर्शन रेड्डी को 152 वोटों के भारी अंतर से हराया। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए हुए मतदान में कुल 788 में से 767 सांसदों ने वोट डाला। एनडीए के उम्मीदवार राधाकृष्णन को उम्मीद से कहीं ज्यादा 452 वोट मिले, जबकि रेड्डी को मात्र 300 वोट ही मिले।

‘यही मौलाना शिक्षक भर्ती पर डालते थे दबाव…’ CM हिमंता बोले- असम को नहीं बनने देंगे इस्लामी कट्टरपंथियों का गढ़: मौलाना अरशद मदनी ने किया कांग्रेस पर प्रेशर डाल टिकट कटाने का दावा

          हिमंता बिस्वा सरमा ने मौलाना अरशद मदनी को दिया करारा जवाब (फोटो साभार: India Today)
असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी ने विवादित टिप्पणी की। मौलाना मदनी ने दावा किया कि उन्होंने कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी को पत्र लिखकर हिमंता बिस्वा सरमा को कांग्रेस से चुनाव टिकट ना देने की माँग की थी। मदनी ने कहा कि सरमा RSS की मानसिकता से प्रभावित हैं और अब असम में आग लगा रहे हैं।

अरशद मदानी ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा, “मैंने सोनिया गाँधी को पत्र लिखा था कि कांग्रेस से हिमंता बिस्वा सरमा को टिकट न दें क्योंकि उनमें RSS की मानसिकता है। अब वही हिमंता बिस्वा सरमा पूरे असम को आग में झोंक रहे हैं।”

मदनी के बयान पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और भाजपा नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने मदनी के दावों पर करारा जवाब देते हुए कहा, “मौलाना मदनी ने खुद माना है कि असम में कांग्रेस उम्मीदवार के चयन में उनकी भूमिका थी। जब मैं कांग्रेस में था तब यही मौलाना शिक्षक भर्ती में मुझ पर दबाव बनाने की कोशिश करते थे। बीजेपी सरकार ने आते ही उनकी यह ‘दुकान’ ताला लगाकर बंद कर दी।।”

मुख्यमंत्री हिमंता ने कहा, “मौलाना मदनी, सैयदा हमीद और हर्ष मंदर जैसे लोगों का एक ही उद्देश्य है। असम को एक कट्टर इस्लामवादी प्रदेश में बदलना। लेकिन भाजपा के रहते यह कभी संभव नहीं होगा।” सीएम ने आगे कहा, “बीजेपी लगातार असम की सत्ता पर काबिज है। असम में बीजेपी काफी मजबूत है। वो हमारे खिलाफ अब कुछ नहीं कर पाएँगे। भले ही वो लगातार कुछ न कुछ करने की कोशिश जरूर करते रहेंगे।

सीएम ने कहा, “हमारा अगला चरण NRC है। घुसपैठियों की बेदखली जारी रहेगी, इसके अलावा हमारे एजेंडे में और भी बहुत कुछ है। हम अपना काम जारी रखेंगे। हमारे पास मौलाना अरशद मदनी के जैसे विचारों वाले नेताओं के खिलाफ एक लंबा एजेंडा है। असम को कट्टरपंथी इस्लामी राज्य बनाने के विचार के खिलाफ काम करेंगे।”

मौलाना मदनी के बयान पर बीजेपी नेता अमित मालवीय ने भी गुस्सा जाहिर किया। उन्होंने मदनी की टिप्पणी का वीडियो एक्स पर शेयर करते हुए कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा, “क्या अब मौलवी तय करेंगे कि कांग्रेस का टिकट किसे मिलेगा?”

अमित मालवीय ने आगे कहा, “यह बात तेजी से स्पष्ट होती जा रही है कि कांग्रेस सभ्यता संबंधी बहस में गलत पक्ष पर खड़ी है।”

कांग्रेस और INDI गठबंधन से सावधान : देश के खिलाफ ‘आग’ उगलने वाले नेता : बांग्लादेश-नेपाल तो बहाना है, इंडी गठबंधन का मोदी सरकार निशाना है

बांग्लादेश, नेपाल और अब फ्रांस में हुए एक ही तरह के हुए उपद्रवों के देखते हुए भारत की जनता को कांग्रेस और INDI गठबंधन के नेताओं के भाषणों से सतर्क रहने की बहुत जरुरत है। जो उपद्रव इन देशों में हुए वैसे ऐसी ही हरकत CAA विरोध से लेकर तथाकथित किसान आंदोलन और पहलवानों के धरने से करने की कोशिश करते रहे हैं। 26 जनवरी 2022 को लाल किले पर किये हमले पर अगर सरकार और आर्मी द्वारा कठोर उठाने पर होने वाली मौतों पर इन उपद्रवियों ने देश में यही स्थिति लाने की कोशिश थी जिसे सरकार ने नाकाम कर दिया था। वही हाल CAA विरोध में बने शाहीन बागों से की गयी थी। सनातन धर्म पर अभद्र टिप्पणियां और हिन्दू धर्म यात्राओं पर पत्थराव करना भी देश में उपद्रव करने की बराबर कोशिशे हो रही हैं। 

कांग्रेस और INDI गठबंधन के नेता नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ और अमित शाह का विरोध करते-करते देश का विरोध करने लगे हैं। इन पाखंडी नेताओं से पूछा जाए कि जिस देश की अर्थव्यवस्था विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था हो उस देश की dead economy कैसे हो सकती है? दूसरे, घुसपैठियों को संरक्षण देना क्या देशहित में है?

       

कांग्रेस और INDI गठबंधन के नेताओं को पीएम नरेन्द्र मोदी की निर्बाध और देश को निरंतर विकास की नई ऊंचाईयों पर ले जानी वाली सरकार सुहा नहीं रही है। इसीलिए वे या तो मोदी सरकार के खिलाफ अपने इकोसिस्टम से नैरेटिव तैयार कराते हैं या फिर बैसिर-पैर के आरोप लगाकर और देश के खिलाफ आग उगलने वाली बयानबाजी करके अपनी मानसिकता को जाहिर करते रहते हैं। राहुल गांधी समेत इंडी गठबंधन के नेता तो पराई आग में भी राजनीतिक रोटी सेंकने से बाज नहीं आते। यही वजह है कि जब भी भारत के किसी पड़ौसी मुल्क में हालात बदतर होते हैं या फिर उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ता है तो वे भारत में भी ऐसा होने के ख्याली-पुलाव पकाने लगते हैं। श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद अब जब नेपाल में यही स्थिति बनी तो एक बार फिर इन नेताओं की बांछें खिलने लगी हैं। लेकिन इनकी नापाक मंशा कदापि पूरी होने वाली नहीं है।

मोदी सरकार के सेवा, सुशासन और समर्पण के मंत्र के आगे इंडी गठबंधन फेल
यहां तक कि राहुल गांधी और कांग्रेस के कई नेता तो भड़काऊ बयान देकर देश की जनता को भड़काने के नापाक प्रयास भी करते नजर आते हैं। देशभर में आग लगने के दावे तक करते हैं। बांग्लादेश में तख्तापलट के आंदोलन में तो कांग्रेस नेता यह तक कहने लगे थे कि भारत में भी ऐसा ही हो सकता है। लेकिन पीएम मोदी सेवा, सुशासन और समर्पण के मंत्र और इसी भावना पर चल रही सरकार के चलते इंडी गठबंधन के नेता अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो पाए।

देश के खिलाफ ‘आग’ उगलने वाले नेता

भारत में सिखों को पगड़ी या कड़ा पहनने की इजाजत नहीं- राहुल
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने ज़ोर देकर कहा कि लड़ाई राजनीति की नहीं है, बल्कि इस बात की है कि एक सिख होने के नाते उन्हें भारत में पगड़ी पहनने और गुरुद्वारे जाने की इजाज़त है या नहीं। वर्जीनिया में भारतीय समुदाय के लोगों से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने एक व्यक्ति से उसका नाम पूछा और फिर कहा, “सबसे पहले, आपको यह समझना होगा कि लड़ाई किस बारे में है। लड़ाई राजनीति के बारे में नहीं है। यह सतही है। आपका नाम क्या है? लड़ाई इस बारे में है कि क्या…उन्हें एक सिख के रूप में भारत में पगड़ी पहनने की अनुमति दी जाएगी। या उन्हें एक सिख के रूप में भारत में कड़ा पहनने की अनुमति दी जाएगी। या एक सिख गुरुद्वारा जाने में सक्षम होगा। लड़ाई इसी बारे में है और सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि सभी धर्मों पर लागू होती है।

तीसरी बार मोदी सरकार बनी तो देश में आग लग जाएगी-राहुल
दिल्ली के रामलीला मैदान में इंडी अलाइंस की महारैली में राहुल गांधी ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि अगर तीसरी बार PM Modi सता में आए तो देश में आग लग जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि न्यायपालिका पर दबाव डाला जा रहा है, ताकि मैच फिक्स हो और भाजपा सत्ता में रहे। उन्होंने खुद को सच बोलने वाला बताते हुए कहा, “मेरी बात अच्छी तरह सुन लो। अगर हिंदुस्तान में ‘मैच फिक्सिंग’ का चुनाव भाजपा जीते और उन्होंने संविधान को बदला तो इस पूरे देश में आग लगने जा रही है, ये देश नहीं बचेगा। ये चुनाव वोट वाला नहीं, हिंदुस्तान को बेचने वाला और संविधान की रक्षा वाला चुनाव है।”

जनता को भड़काया, घरों से निकलकर आंदोलन करो- सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने कहा कि आप हम सब इसलिए यहां आए हैं क्योंकि काफी समय से देश की हालत बहुत गंभीर हो गई है। आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने जनता को भड़काते हुए कहा कि हमारी जिम्मेदारी बनती है कि अपने घरों से बाहर निकलें और इसके खिलाफ आंदोलन करें। आज वही वक्त आ गया है।  देश को बचाना है तो हमें कठोर संघर्ष करना होगा। आज हमारे युवा इस तरह की बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं जैसा दशकों में नहीं हुआ। हमारे युवाओं की लगी लगाई नौकरियां जा रही हैं। उनके सामने अंधेरा ही अंधेरा है।

नेपाल की स्थिति…देश में पैदा हो सकती है- संजय राउत
नेपाल के बवाल पर शिवसेना (यूबीटी) के राज्यसभा सांसद संजय राउत ने प्रतिक्रिया दी है। संजय राउत ने इशारों में निशाना साधा है। संजय राउत ने कहा कि सावधान, नेपाल जैसी स्थिति किसी भी देश में हो सकती है। वंदे भारत। संजय राउत ने नेपाल में आगजनी और असंतोष का वीडियो पोस्ट किया। इस पर उद्धव ठाकरे की शिवसेना के सांसद संजय राउत ने लिखा, ‘नेपाल टुडे… यह स्थित किसी भी देश में पैदा हो सकती है। सावधान! भारत माता की जय, वंदे मारतम।’ संजय राउत के इस ट्वीट की खास बात है कि उन्होंने इसमें बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ट्वीट किया है। उनका इशारा किस ओर है और उन्होंने किस पर निशाना साधा है, यह साफ है। संजय राउत के इस ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई। कई लोगों ने उन्हें खरीखोटी भी सुनाई।

तानाशाह सरकार को जनता सबक सिखाएगी- श्रीनिवास
भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने भी ट्वीट पर नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका की हिंसा को एक जैसा बताया है। उन्होंने कहा कि इन देशों की तानाशाह सरकारें भी जनता को अपनी बपौती समझकर मनमाफिक फैसले ले रही थीं। श्रीनिवास ने इशारों में केंद्र सरकार पर तंज करते हुए कहा कि वहां ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वहां भी मीडिया सरकारी थी और सोशल मीडिया पर पाबंदियां लगा दी गईं। आखिरकार जनता ने बता दिया है कि वह ही जनार्दन है।

संविधान की हत्या कर रहे हैं मोदी- मल्लिकार्जुन खरगे
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस संविधान को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। श्री खड़गे ने उपस्थित लोगों को सतर्क रहने के लिए आगाह किया और कहा कि बी.आर. अंबेडकर द्वारा प्रदत्त संविधान को खतरा है, क्योंकि भाजपा इसे कमजोर करने या बदलने की कोशिश कर रही है। यही वह संविधान है जिसने मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री और बाद में देश का प्रधानमंत्री बनने में मदद की। लेकिन अब वही मोदी संविधान की हत्या करने की कोशिश कर रहे हैं।”

भारत में भी हो सकता है बांग्लादेश जैसा- राकेश टिकैत
कांग्रेस तो कांग्रेस किसान नेता भी उनके बहकावे में आकर पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के सुर में सुर मिलाने लग गए। भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत देश में बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे हालात होने की बात कहते हुए वहां के समान रूप आंदोलन की आशंका जताई है। टिकैत ने कोलकाता घटना को निंदनीय बताते हुए मीडिया पर सवाल उठाए

बांग्लादेश को लेकर मणिशंकर अय्यर के बिगड़े बोल
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि बांग्लादेश जैसी परिस्थितियां कुछ-कुछ भारत में भी बननी शुरू हो गई हैं और लोगों के मन में चुनावों की निष्पक्षता को लेकर शक पैदा होने लगा है, इसलिए हमें पड़ोसी देश से सीख लेते हुए सावधान रहने की जरूरत है। अय्यर ने आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि भारत में भी आर्थिक विकास के बावजूद बेरोजगारी बहुत बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा, ‘वहां की परिस्थिति और हमारी परिस्थिति में काफी तुलना की जा सकती है। उनके लोकतंत्र में कमियां महसूस होने लगीं हैं। जो उनके चुनाव हुए,पहले और इस बार भी। तो विपक्ष की पार्टियों ने भाग ही नहीं लिया, क्योंकि उनको लगा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव नहीं होंगे। अय्यर ने तंज किया कि विकसित भारत बनाना अलग बात है और आजाद भारत बनाना अलग। वो आजाद भारत होगी क्या। वो लोकतांत्रिक भारत होगी क्या। मतलब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता को लगता है कि वे आजाद भारत में नहीं रह रहे हैं।

उद्धव ठाकरे और महबूबा मुफ्ती भी श्रीलंका-बांग्लादेश जपने लगे
शिवसेना यूबीटी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने जोर देकर कहा कि जो श्रीलंका में हुआ, अब बांग्लादेश में हुआ, तो सारे लोगों को समझना चाहिए कि जो सर्व सामान्य आदमी होता है, वो सबसे श्रेष्ठ होता है, बलवान होता है, उसकी सहनशीलता की मर्यादा होती है और जनता का न्यायालय सर्वोच्च होता है। दूसरी ओर पीडीपी अध्यक्ष महबूबा जो आप पॉलिसी लाते हो, कानून लाते हो, तो परतंत्र होके उनके बर्दाश्त का पैमाना टूर जाता है और उसे शेख हसीना की तरह भागना पड़ता है। मुझे लगता है कि हमारे मुल्क के लिए यह एक बहुत बड़ा सबक है।

बांग्लादेश जैसा हाल भारत में भी हो सकता है- सलमान खुर्शीद
बांग्लादेश में हुए तख्तापलट को लेकर देश में में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक साथ खड़ा है। हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री ने एक विवादित बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में जो कुछ हो रहा है वो भारत में भी हो सकता है। सलमान खुर्शीद के बयान पर भाजपा ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है।

मोदी से बड़ा झूठा और कोई नहीं-दिग्विजय सिंह
भाजपा ने हमेशा नफरत की राजनीति की है। अपने राजनीतिक इतिहास में पीएम मोदी से बड़ा झूठ बोलने वाला नहीं देखा है। यह आरोप मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सिविल लाइंस स्थित राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी के आवास पर पत्रकारों से बातचीत में लगाए। हिंदुस्तान अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने पहले गुजरात के साथ पूरे देश में नफरत फैलाया। महाराष्ट्र में असंवैधानिक बयान दिए। कर्नाटक में बजरंग बली के नाम पर वोट मांगा और अब आंखों में आंसू भर कर कह रहे हैं कि वह हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं करते हैं। दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी ने एक दशक में इतना झूठ बोले हैं कि उन्हें गिना पाना मुश्किल है।

मैं मोदी को लोकतंत्र का थप्पड़ लगाना चाहती हूं – ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को एक बार फिर पीएम मोदी को लेकर विवादित बयान दिया। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक ममता बनर्जी ने कहा कि पीएम मोदी जब पश्चिम बंगाल में आते हैं और टोलाबाजी का बयान देते है तो मैं उन्हें लोकतंत्र का थप्पड़ लगाना चाहती हूं। मैं खुद को बेचकर राजनीति नहीं करती। मैं मोदी से नहीं डरती, क्योंकि मैं इस तरह की ही जिंदगी जीती हूं।

कांग्रेस अध्यक्ष बने राहुल बोले- बीजेपी देश में आग लगा रही 
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद बतौर अध्यक्ष अपने पहले ही भाषण में बीजेपी और मोदी सरकार पर हमला बोला। उन्होंने कहा कि आज प्रधानमंत्री देश को पीछे ले जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘एक बार आग लग जाती है तो उसे बुझाना मुश्किल होता है। यही हम बीजेपी के लोगों को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। एक बार आपने देश में आग लगा दी तो उसे बुझाना मुश्किल होगा। नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने कहा कि पूरे देश में आग और हिंसा फैलाई जा रही है। पूरे देश में सिर्फ एक शक्ति है जो इसे रोक सकती है और वह है कांग्रेस। वे तोड़ते हैं, हम जोड़ते हैं। वे आग लगाते हैं, हम बुझाते हैं। वे गुस्सा करते हैं, हम प्यार करते हैं।’

पीएम मोदी शहीदों के खून की दलाली कर रहे- राहुल गांधी
सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर पीएम मोदी पर निशाना साधने वाले राहुल गांधी सियासी तौर पर घि‍रते नजर आए। राहुल ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी शहीदों के खून की दलाली कर रहे हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष के इस बयान के बाद बीजेपी के साथ साथ आम आदमी पार्टी भी राहुल गांधी पर हमलावर हो गई है। अमित शाह ने प्रेस कांफ्रेंस कर राहुल और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। अभी तक पीएम मोदी से सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी राहुल पर जमकर बरसे।

‘जहर की खेती’ करने वाले हैं मोदी- जयराम रमेश
लोकसभा चुनावों की तैयारियों को लेकर केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने राहुल गांधी की जमकर तारीफ की और बीजेपी व नरेंद्र मोदी पर जहर की खेती करने का आरोप लगाया। आज तक से बातचीत में उन्होंने कहा कि भले ही मोदी का कैंपेन आक्रामक हो पर कांग्रेस डरने वाली नहीं है। वे भी जनता के बीच जाएंगे और बीजेपी का असली चेहरा दिखाएंगे।

CSDS: भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ साजिश और विदेशी फंडिंग का जाल – विस्तृत रिसर्च में खुलासा

                                     CSDS और विदेशी फंडिंग वाले NGO की साजिश का खुलासा
यह रिसर्च सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज (CSDS: Centre for the Study of Developing Societies) के इतिहास, विचार, फंडिंग इकोसिस्टम और विदेशी संस्थाओं के साथ सहयोग की जाँच करता है। विश्लेषण की वजह ये है कि विदेशी फंडिंग वाले एनजीओ के साथ भारत के कथित थिंक टैंक और मीडिया के बीच सीएसडीएस एक गठजोड़ बनाता है, जो वैचारिक रूप से भारत, खासकर बहुसंख्यक हिंदुओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ है। इस रिसर्च में ऐसे कई रहस्योद्घाटन हुए हैं, जिससे पता चलता है कि भारत के राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को प्रभावित करने, भारत के लोकतंत्र में विदेशी हस्तक्षेप को बढ़ावा देने और विदेशी शक्तियों के इशारे पर भारत की संप्रभुता को कमजोर करने की कोशिश की गई है। सीएसडीएस और उसके मददगारों ने कैसे दूसरे देशों की विदेश नीति के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश की है, इसका भी पता चलता है।

CSDS की उत्पत्ति और विचार

सीएसडीएस की स्थापना 1963 में रजनी कोठारी ने की थी। कोठारी के क्रियाकलाप हिन्दू समाज को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित थे। वह देश की धर्मनिरपेक्षता, जातिवाद और बहुसंख्यक विरोधी सोच का व्यक्ति रहा है। यह शोधपत्र सीएसडीएस की जड़ों को एशिया फाउंडेशन जैसी प्रायोजित विदेशी संस्थाओं से जोड़ता है, जो सीआईए का एक मुखौटा है। इससे साफ होता है कि संस्थान की स्थापना के पीछे ‘बाहरी प्रभाव’ था। सीएसडीएस के नेतृत्व में दशकों से ऐसे कार्यों को बढ़ावा मिला, जो भारत के बहुसंख्यक समुदाय को टारगेट करती है। अल्पसंख्यकों के झूठे उत्पीड़न की बात करती है और भारत की संप्रभुता और एकता को कमजोर करने वालों को ‘वैचारिक सोच’ प्रदान करती है।

विदेशी अनुदान का फैला जाल: नकदी, सामंजस्य और सोच

सीएसडीएस का परिचालन और अनुसंधान बजट न केवल भारत सरकार के अनुदानों (मुख्य रूप से इंडियन काउंसिल ऑफ सोशल साइंस रिसर्च, ICSSR) के माध्यम से संचालित होता है, बल्कि विदेशी अनुदान पर इसकी निर्भरता भी लगातार बढ़ती जा रही है। 2016 से सीएसडीएस को FCRA के माध्यम से कम से कम ₹15.6 करोड़ प्राप्त हुए हैं। हालाँकि अधूरे खुलासों के कारण पूरी राशि का पता नहीं चल पाया है। अनुमान है कि ज्ञात स्रोतों से प्राप्त आमदनी से कहीं अधिक धनराशि इन्हें मिली है। सीएसडीएस की फंडिंग के मुख्य स्रोतों की बात करें तो वो निम्नलिखित हैं:

कोनराड एडेनॉयर स्टिफ्टंग (KAS: Konrad Adenauer Stiftung): जर्मन सरकार द्वारा फंडेड ये फाउंडेशन, सीधे तौर पर सत्तारूढ़ क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) से संबद्ध है। इस फाउंडेशन ने 2016 से 2.6 करोड़ रुपए से अधिक का दान दिया है। केएएस जर्मन विदेश नीति और पश्चिमी लोकतांत्रिक मूल्यों को आगे बढ़ाती है, जो अक्सर टारगेट वाले देशों की राजनीतिक को कमजोर करता है या इसे ‘सुधारने’ के नाम पर सत्ता परिवर्तन को हवा देता है।

अंतर्राष्ट्रीय विकास अनुसंधान केंद्र (IDRC: International Development Research Centre): आईडीआरसी कनाडा की एक क्राउन कॉपोरेशन है, जो पिछले 8 सालों से अपने थिंक टैंक के माध्यम से सीएसडीएस के सालाना बजट का एक तिहाई भाग प्रदान करता आ रहा है। आईडीआरसी कनाडाई विदेश नीति का एक हिस्सा है। ये अलगाववाद को बढ़ावा देता है। खालिस्तानी अलगाववादियों को कनाडा का खुला संरक्षण इसका उदाहरण है।

सीमेनपू फ़ाउंडेशन (Siemenpuu Foundation): फिनलैंड के विदेश मंत्रालय की आर्थिक मदद ये चल रहा यह फिनिश एनजीओ, सीएसडीएस और उसकी ब्रांचों (विशेषकर एसएडीईडी) को मदद करता है। सीमेनपू फाउंडेशन भारत में ‘आदिवासियों के समर्थन’ के आस-पास केंद्रित हैं, लेकिन उनके नेटवर्क और संवाद मंच नक्सल-समर्थित और हिंदू-विरोधी कथित बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं को ‘नजरिया’ प्रदान करते हैं। ये अक्सर भारत में उत्पीड़न और बेदखल जैसे मुद्दों को बढ़ावा देती है।

बर्गग्रुएन इंस्टीट्यूट (BI: Berggruen Institute): बीआई का भारत-विरोधी और हिंदू-विरोधी विचार इसकी पत्रिका “नोएमा” के माध्यम से प्रसारित होता है। इसमें भारत को सत्तावादी, सांप्रदायिक और पिछड़ा बताया जाता है और अक्सर अति-वैचारिक और तथ्यात्मक रूप से चुनिंदा लेखकों के लेख छापती है। इन लेखकों में भारत-विरोधी पश्चिमी लॉबी से जुड़े लेखक भी शामिल हैं।

फोर्ड फाउंडेशन, हेनरी लूस फाउंडेशन, ओमिडयार, ओपन सोसाइटी फाउंडेशन (Ford Foundation, Henry Luce Foundation, Omidyar, Open Society Foundations): ये अमेरिकी संस्थाएँ सत्ता परिवर्तन, समाज के कथित सशक्तिकरण और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान की राजनीति को बढ़ावा देने के लिए धन मुहैया कराती हैं। सीएसडीएस को सीधे या अपने सहयोगियों (जैसे “भारतीय मुस्लिम परियोजना”) के माध्यम से मदद करती है। ये लोग भारत और उसकी सरकार से पीड़ित होने के नेरेटिव को बढ़ावा देते हैं।

साइंसेज पीओ/एफएनएसपी (Sciences Po/FNSP): फ्रांस के प्रमुख राजनीति विज्ञान संस्थान ने, एफएनएसपी के माध्यम से, सीएसडीएस को पर्याप्त वित्तीय योगदान दिया है। इसकी फैकल्टी, खास कर क्रिस्टोफ़ जाफ़रलॉट, ने नियमित रूप से हिंदू विरोधी राजनीति और मोदी सरकार की आलोचना करते हुए शोध प्रकाशित किए हैं।

पश्चिमी मीडिया, ‘खोजी’ नेटवर्क और सत्ता-पलट तत्वों की मिलीभगत

 शोध में विस्तार से बताया गया है कि कैसे सीएसडीएस और उसका शोध/पॉलिसी इकोसिस्टम—लोकनीति, एसएडीईडी और संबद्ध शिक्षाविद के साथ पश्चिमी मीडिया और ‘खोजी पत्रकारिता’ नेटवर्क (जैसे जीआईजेएन, ओसीसीआरपी, बेलिंगकैट, रिपोर्टर्स कलेक्टिव, आरएसएफ, और अन्य) जुड़े हुए हैं। ये गठजोड़ आकस्मिक नहीं है। नेटवर्क के इस जाल को अमेरिकी विदेश विभाग, एनईडी (सीआईए की सत्ता परिवर्तन कराने वाली कुख्यात शाखा), सोरोस की ओपन सोसाइटी और यूरोपीय सरकारी एजेंसियों का समर्थन है। इन चैनल्स के माध्यम से पश्चिमी खुफिया और राजनीतिक कर्ताधर्ता भारत की मीडिया और शोध विमर्श को तय करते हैं। साथ ही उन लोगों को आर्थिक मदद देते हैं, जो पश्चिमी नीतिगत प्राथमिकताओं और भारत की विफलता की बात करता है।

गठजोड़ बनाता फीडबैक लूप: विदेशी फंड पर निर्भर भारतीय शोधकर्ता भारत के लोकतंत्र, मीडिया और सांप्रदायिक स्थिति को लेकर खौफनाक रिपोर्ट तैयार करते हैं। फिर इन्हें वैश्विक स्तर पर मीडिया के माध्यम से फैलाया जाता है। इसको भारत में ‘कुछ लोग’ सही ठहराते हैं, जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्बन नक्सल, अलगाववादियों और कट्टरपंथियों से संपर्क होता है।

बौद्धिक रणनीति: जातिगत सवाल, अल्पसंख्यक उत्पीड़न, हिंदू-विरोध और राष्ट्र-विरोध

सीएसडीएस के शोध, प्रकाशन और ‘सर्वेक्षण’ का उद्देश्य जाति, अल्पसंख्यक उत्पीड़न, हिंदू-विरोध और राष्ट्र-विरोध है। इसके इर्द-गिर्द इनकी रणनीतिक आगे बढ़ती है।

हिंदुओं का विभाजन: सीएसडीएस का शोध हिंदू विभाजन को और बढ़ाने की कोशिश करता है, खासकर दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों को उनकी हिंदू पहचान से अलग करके, और राजनीतिक परिणामों को जातिगत उत्पीड़न और ‘बहुसंख्यक अत्याचार’ के चश्मे से देखकर। इस विभाजन को बनाए रखना और बढ़ाना ‘भारत-विरोधियों’ की रणनीति का अहम हिस्सा है।

दलित-मुस्लिम नरेटिव को प्रोत्साहित करना– सीएसडीएस बार-बार दलित और मुस्लिमों को एक साथ जोड़ने का प्रयास करता है। उसका दावा है कि दलित और मुस्लिम भारत और बहुसंख्यक हिंदुओं द्वारा पीड़ित हैं। इसलिए इनके बीच एकता ‘लोकतंत्र’ के लिए बेहद जरूरी है।

हिन्दुओं और भारत को विभत्स दिखाना- सीएसडीएस के कथित विद्वान, संबद्ध पत्रकार, आशीष नंदी- अनन्या वाजपेयी जैसे सहयोगी, साजिश के तहत हिंदुओं को फासीवादी, कट्टरपंथी और हिंसा फैलाने वाले के रूप में दिखाते हैं। ऐसा ये तब भी करते हैं, जब सबूत इन दावों के उलट होता है (उदाहरण के लिए, गोधरा 2002, दिल्ली हिंदू विरोधी दंगा 2020)। इनके शोध का इस्तेमाल भारतीय राष्ट्रवाद को अवैध ठहराने, बाहरी हस्तक्षेप को सही ठहराने और वैश्विक मीडिया में दुष्प्रचार के लिए किया जाता है।

भारतीय संप्रभुता को कमजोर करना: विदेशी फंडिंग वाला सीएसडीएस का शोध सत्ता विरोधी प्रदर्शन, आंदोलन और सोशल मीडिया पर ऐसे अभियानों का समर्थन करते हैं, जिससे देश की संप्रभुता और एकता कमजोर होती है। ये ऐसे तत्वों की बौद्धिक मदद भी करते हैं। देश में ऐसे बदलाव का समर्थन करते हैं, जिससे विदेशी हित साधा जा सके। ये बदलाव और नीतियाँ अक्सर लोकतांत्रिक निर्वाचित सरकार और बहुसंख्यक के खिलाफ होते हैं।

भारत विरोधी विदेशी संस्थानों के साथ गठजोड़

यह रिसर्च दर्शाता है कि सीएसडीएस का तंत्र न केवल वैचारिक रूप से भारत के खिलाफ है, बल्कि ऐसे संस्थाओं और व्यक्तियों को मदद करता है, जो इस विचार का समर्थन करते हैं और उसे संरक्षण देते हैं।

अमेरिकी डीप स्टेट के साथ जुड़ाव: सीएसडीएस के कई साझेदारों और आर्थिक मददगारों (एनईडी, आईडीआरसी, ओपन सोसाइटी, फोर्ड फाउंडेशन) की लैटिन अमेरिका, पूर्वी यूरोप और एशिया में सत्ता परिवर्तन अभियानों में सक्रिय रूप से जुड़े होने के प्रमाण मौजूद हैं।

खालिस्तान समर्थक, पाकिस्तान समर्थक, इस्लामवादी और वामपंथी समूहों से संबंध: आईडीआरसी से जुड़े लोग और मदद पाने वाले लोगों ने किसान विरोध प्रदर्शनों, सीएए, दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगों में हिस्सा लिया। सीएसडीएस या उसके सहयोगी गैर सरकारी संगठनों के अहम सदस्य नियमित रूप से अर्बन नक्सलियों, खालिस्तानी समर्थकों और भारत विरोधी लॉबी के साथ आंदोलनकारी समूहों में दिखाई देते रहे हैं।

चीन का प्रभाव: भारत विरोधी सक्रियता के लिए जाने जाने वाले कथित शिक्षाविदों और पत्रकारों (यहाँ तक ​​कि एक पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री) की मेजबानी, वित्त पोषण या उनके साथ संबद्धता के माध्यम से, न सिर्फ पश्चिमी देशों से बल्कि चीन से वित्त पोषण होने वाले चैनल (बर्गग्रुएन इंस्टीट्यूट के माध्यम से) से संबंध इनकी तटस्थता के किसी भी दिखावे को और अधिक कमजोर कर देते हैं।

एक जैसा पैटर्न और मोटिवेशन

एक व्यवस्थित पैटर्न उभरता है: विदेशी संस्थाएँ और सरकारें, कथित भारतीय थिंक टैंकों और कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग करती हैं। ये मिलकर भारत की सरकार, बहुसंख्यक समुदाय और राष्ट्र-निर्माण परियोजनाओं की आलोचना करते हैं। ये लोग संयुक्त रूप से वैश्विक स्तर पर नकारात्मक नैरेटिव को बढ़ावा देते हैं, ताकि भारत की नीतिगत दबाव डाल सकें। इसके अलावा आंतरिक सामाजिक विभाजन और राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करते हैं।
रिसर्च में कहा गया है कि इस समन्वित अभियान का उद्देश्य भारत की संप्रभुता को नुकसान पहुँचाना, वैश्विक स्थिति को कमज़ोर करना और बुद्धिजीवियों, मीडिया और अन्य लोगों के माध्यम से सत्ता को प्रभावित करना है।
इसके अलावा, हिंदू विरोधी हिंसा, धर्मांतरण और भारतीय हितों को वैश्विक स्तर पर निशाना बनाने पर इन संगठनों की चुप्पी, जबकि किसी भी कथित या मनगढ़ंत अल्पसंख्यक मुद्दे पर ओवर एक्टिव होना, इनके पूर्वाग्रह को उजागर करता है।
This is the full spider web, or the mindmap of the network around CSDS. You can download the high resolution picture (6 MB size) of this mindmap by clicking here.
सीएसडीएस के इर्द-गिर्द फैले नेटवर्क का पूरा मकड़-जाल या माइंडमैप ऊपर दिया गया है। आप इस माइंडमैप का हाई रेजोल्यूशन चित्र (6 MB की फाइल है) यहाँ क्लिक करके डाउनलोड कर सकते हैं।
सीएसडीएस और इसके सहयोगी गैर-सरकारी संगठनों, मीडिया प्लेटफॉर्म और वित्तपोषकों का गठजोड़ भारत की संप्रभुता, सांस्कृतिक अखंडता और लोकतांत्रिक वैधता के लिए एक समन्वित वैचारिक चुनौती के रूप में काम करता है। विदेशी फंड व्यवस्थित रूप से अपने शोध, आउटरीच और सक्रियता को सरकारों और वैश्विक व्यवस्था परिवर्तन तथा सामाजिक इंजीनियरिंग में निवेश करने वाले अरबपति फाउंडेशनों से संचालित होते हैं। सीएसडीएस का केस स्टडी यह उजागर करता है कि कैसे “नागरिक समाज” और “शैक्षणिक” संस्थानों को लोकतांत्रिक राज्यों के खिलाफ नैरेटिव युद्ध के औजारों में बदला जा सकता है। भारत को अपनी स्वायत्तता और राष्ट्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिए, ऐसे संगठनों के एजेंडे, वित्तीय स्रोतों और संबंधों की कड़ी जाँच, नियामक निगरानी और सार्वजनिक जवाबदेही के अधीन होना चाहिए।
रिसर्च टीम:
प्रमुख शोधकर्ता: नूपुर जे शर्मा
शोधकर्ता: आशीष नौटियाल, दिव्यांश तिवारी, प्रारब्ध राय, ध्रुव मिश्रा, रोहित कुमार पांडे, चंदन कुमार
                                                                                                                                      (साभार )

बांग्लादेश, नेपाल के बाद अब फ़्रांस जलना शुरू; नेपाल में GenZ प्रदर्शन के पीछे दो किरदार, सुदन गुरुंग- प्लानर, बालेन शाह- प्रमोटर: NGO की आड़ में बड़ा खेल तो नहीं हो गया?


फ्रांस के संसदीय चुनावों में वामपंथी गठबंधन की बढ़त का संकेत देने वाले एग्जिट पोल के बाद राजधानी पेरिस समेत पूरे देश में हिंसा भड़क उठी है। रविवार को हुए दूसरे दौर के चुनावों के बाद फ्रांस की पहली कट्टर-दक्षिणपंथी सरकार बनने की कोशिशों को झटका लगा, जब एग्जिट पोल में वामपंथी गठबंधन को सबसे ज्यादा सीटें जीतने का अनुमान लगाया गया। पहले दौर में बढ़त बनाने वाली मरीन ले पेन की मुस्लिम विरोधी नेशनल रैली पार्टी को रविवार को हुए चुनाव के बाद तीसरे नंबर पर बताया गया है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की पार्टी को एग्जिट पोल में दूसरे नंबर पर बताया गया है। एग्जिट पोल के नतीजे आने के बाद प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आए और हिंसा शुरू कर दी।

देशभर में भेजी गई दंगा विरोधी पुलिस

वीडियो फुटेज में नकाबपोश प्रदर्शनकारियों को सड़कों पर आग जलाते और उपद्रव करते हुए देखा गया है। हिंसा को देखते हुए देश भर में दंगा पुलिस पुलिस को भेजा गया है। फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांसीसी चुनाव के बाद आए एग्जिट पोल में वामपंथी गठबंधन की जीत की संभावना के बाद पेरिस में जश्न और हिंसा दोनों का माहौल बन गया। धुर-वामपंथी गठबंधन के अप्रत्याशित रूप से आगे निकलने की खबर पर हजारों लोग जश्न मनाने के लिए पेरिस के प्लेस डे ला रिपप्लिक में जमा हो गए। वहीं, इस खबर से सत्ता हासिल करने की उम्मीद कर रहे मरीन ले पेन की नेशनल रैली के समर्थन हैरान रह गए।

पुलिस ने किया आंसू गैस का इस्तेमाल

इस बीच फ्रांस के विभिन्न शहरों से हिंसा की खबरें आने लगीं। जगह-जगह पर प्रदर्शनकारियों की हिंसा के वीडियो सामने आए हैं। वहीं, दंगा विरोधी पुलिस भीड़ को नियंत्रित करने की कोशिश करती नजर आई। झड़पों के बीच कई जगह पर पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया है। ब्रिटिश टैबलायड द सन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि यह पता नहीं चल पाया है कि बढ़ते तनाव के बीच सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी किस दल के समर्थक है। इसके पहले यह आशंका जताई गई थी कि अगर दक्षिणपंथी जीत जाते हैं तो हिंसा भड़क सकती है।

पहले से तीसरे स्थान पर पहुंची नेशनल रैली

इसके पूर्व हुए पहले दौर के मतदान में एक तिहाई वोट के साथ जीत हासिल करने के बाद नेशनल रैली से संसदीय चुनाव में जीत की उम्मीद की जा रही थी। लेकिन 7 जुलाई को हुए चुनाव के बाद एग्जिट पोल ने संकेत दिया कि न्यू पॉपुलर फ्रंट के बैनर तले वामपंथी दल 172 सीटें जीतेगा जबकि इमैनुएल मैक्रों की अगुवाई वाला एनसेंबल के 150 सीट जीतने का अनुमान लगाया गया। नेशनल रैली लगभग 132 के साथ तीसरे स्थान पर दिख रही थी।

प्रधानमंत्री ने दिया इस्तीफा

लेफ्ट फ्रंट की जीत की संभावना के बाद फ्रांस के प्रधानमंत्री गेब्रियल अटाल ने रविवार को खुलासा किया कि वह सोमवार सुबह राष्ट्रपि मैक्रों को अपना इस्तीफा सौंप देंगे। अटाल ने कहा, 'आज रात एनसेंबल ने अनुमानित सीटों की संख्या से तीन गुना सीटें जीती हैं, लेकिन हमारे पास बहुमत नहीं है। इसलिए मैं अपना इस्तीफा गणराज्य के राष्ट्रपति को सौंप दूंगा।'

नेपाल में GenZ प्रदर्शन के पीछे दो किरदार, सुदन गुरुंग- प्लानर, बालेन शाह- प्रमोटर

नेपाल में GenZ प्रदर्शन के दो किरदार बालेन शाह और सुदन गुरुंग
नेपाल में सबसे बड़े नागरिक आंदोलन ने सरकार को गिरा दिया है। देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति इस्तीफा दे चुके हैं। अब नेपाल को चलाने के लिए अपने अगले लीडर की जरूरत है। इस पूरे GenZ प्रदर्शन के पीछे दो किरदार सामने आ रहे हैं। पहला है काठमांडू का मेयर बालेन शाह, जिसे प्रदर्शनकारी अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। वहीं, दूसरा नाम प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले हामी नेपाल का फाउंडर सुदन गुरुंग का है।

ये दोनों नाम नेपाल में GenZ प्रदर्शनकारियों के समर्थन में सामने आए हैं। सुदन गुरुंग, जिसने पूरे प्रदर्शन का आयोजित किया। वहीं बालेन शाह, जिसने इन प्रदर्शनकारियों को भड़काया। तो आइए जानते हैं आखिर कौन है बालेन शाह और सुदन गुरुंग।

बालेन शाह की GenZ प्रदर्शन में भूमिका

बालेन शाह एक रैपर और काठमांडू का मेयर है। शाह ने ही नेपाल के युवाओं को बरगलाया और देश में सरकार के विरोध में खड़ा करने का काम किया। यह उसकी सोशल मीडिया पर सक्रियता से साफ नजर आता है। जहाँ युवा उसे अगला प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

तो ये शुरू होता हे रविवार (07 सितंबर 2025) से जब बालेन शाह ने फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए GenZ प्रदर्शन का समर्थन किया। पोस्ट में लिखा, “कल स्पष्ट रूप से GenZ का स्वतःस्फूर्त आयोजन है, वे 28 वर्ष से कम आयु के हैं, जिसके कारण मैं अभी भी बड़ा दिखता हूँ। मैं उनकी इच्छाशक्ति, उद्देश्य और सोच को भी समझना चाहता हूँ।”

                                                          बालेन शाह के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

आगे लिखा, “कल होने वाली इस स्वतःस्फूर्त रैली में किसी भी दल, नेता, कार्यकर्ता, सांसद, बहुला, इंजीनियर को अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए होशियार नहीं होना चाहिए। मैं आयु सीमा के कारण नहीं जा सकता लेकिन उन्हें समझना जरूरी है, मेरा पूरा समर्थन है। प्रिय GenZ, मुझे बताइए कि आप कैसा देश देखना चाहते हैं?”

इसके बाद सोमवार (08 सितंबर 2025) को नेपाल की राजधानी काठमांडू समेत 7 से अधिक शहरों में 13 से 28 साल की उम्र के युवा सोशल मीडिया ऐप के बैन के खिलाफ सड़कों पर उतरते हैं। सोशल मीडिया ऐप के खिलाफ शुरू हुआ प्रदर्शन अब पीएम केपी ओली के इस्तीफे की माँग तक पहुँच जाता है। इस हिंसक प्रदर्शन में 19 लोगों की मौत और 300 से ज्यादा लोग घायल हो जाते हैं।

लेकिन यह प्रदर्शन तब भी नहीं थमता बल्कि और अधिक हिंसा की ओर बढ़ जाता है। प्रदर्शन के दूसरे दिन मंगलवार (09 सितंबर 2025) को प्रधानमंत्री केपी ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल तक इस्तीफा दे देते हैं। अब बारी आती है बालेन शाह की। अब बालेन को प्रधानमंत्री बनाने की माँग बढ़ती चली जाती है।

बालेन शाह के फेसबुक पोस्ट पर ‘We want you as PM’ और ‘Please take Lead Balen’ जैसे कमेंट बढ़ने लगते हैं।

                                                        बालेन शाह की फेसबुक पोस्ट पर नेपाली युवाओं के कमेंट

इसके बाद नेपाल की स्थानीय मीडिया में भी बालेन शाह को नेपाल का अगला प्रधानमंत्री बनाने की माँग तेज होने लगती हैं। वहीं बालेन शाह भी GenZ प्रदर्शनकारियों को देश की संपत्ति को नुकसान ना पहुँचाने की अपील करते हैं।

                                          बालेन शाह के फेसबुक पोस्ट का स्क्रीनशॉट

बालेन शाह ने लिखा, “प्लीज GenZ, देश तुम्हारे हाथ में है। तुम लोग इसे संभाल लोगे। अब, चाहे कितना भी नुकसान हो, तुम हमारे ही रहोगे। अब घर वापस जाओ।”

बालेन शाह के अमेरिका से कनेक्शन

बालेन शाह यूँ तो काठमांडू के मेयर हैं लेकिन अधिकांश मेयर से विपरीत उनकी पहुँच राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक फैली है। बालेन शाह के अमेरिका से सीधे कनेक्शन सामने आए हैं। टाइम मैगजीन 2023 के टॉप-100 लोगों में बालेन शाह का नाम है। इसके अलावा द न्यूयॉर्क टाइम्स में मीडिया कवरेज भी मिल चुकी है।

इतना ही नहीं बालेन का नेपाल में अमेरिकी दूतावास में आना-जाना लगा रहता है। साल 2022 में पहली बार अमेरिकी राजदूत आर थॉम्पसन से मुलाकात की, जिनकी तस्वीरें खुद राजदूत ने अपने एक्स अकाउंट पर शेयर की।

इसके बाद साल 2024 में भी बालेन शाह की अमेरिकी राजदूत आर थॉम्पसन से मिलने की खबरें सामने आईं। इस बैठक में अमेरिकी राजदूत ने बालेन शाह को अमेरिका आने का भी न्यौता दिया था।

ओली सरकार के विरोध में बालेन शाह के गाने

बालेन शाह को राजनीति में आने से पहले रैपर के तौर पर जाना जाता था। उनके गाने के बोल अक्सर नेपाल की ओली सरकार की आलोचना को लेकर लिखे जाते रहे हैं। बालेन शाह के ही एक गाने के बोल हैं- “देश की रक्षा करने वाले सब मूर्ख हैं। सारे नेता चोर हैं, देश को लूटकर खा रहे हैं।”

बालेन शाह के गानों ने ही नेपाल के GenZ को सरकार के खिलाफ खड़ा करने का काम किया। खासकर बालेन का गाना ‘बलिदान’ से नेपाल के युवा देश की राजनीति के विरोध में खड़े हुए है। हालिया GenZ प्रदर्शन में भी बालने ने इस गाने को फेसबुक पर शेयर किया।

इस गाने को फेसबुक पर शेयर करते हुए बालेन शाह ने लिखा, “सरकार मुझे बोलने दे।”

मेयर का चुनाव लड़ते हुए बालेन शाह का विवादों में रहा, जब शाह ने काले ब्लेजर पर नेपाल का झंडा लगाते हुए चुनावी अभियान शुरू किया। इस मामले में बालेन के खिलाफ चुनाव आयोग से शिकायत की गई थी। इसके बावजूद शाह की लोकप्रियता युवाओं में बढ़ती गई। युवा भी शाह के सरकार विरोधी एजेंडे में फँसते चले गए, जिसका नतीजा आज नेपाल की सरकार गिराकर सामने आया है।

बालेन शाह भी भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने में आगे रहे हैं। याद हो कि आदिपुरुष फिल्म की रिलीज के समय बालेन शाह ने न सिर्फ इस फिल्म का विरोध किया, बल्कि काठमांडू के सिनेमाघरों में भारतीय फिल्मों की रिलीज तक पर रोक लगा दी थी। हालाँकि नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद बालेन को पीछे हटना पड़ा था। अब इस समय GenZ के प्रदर्शनों को भी बालेन शाह खूब भुना रहे हैं।

‘हामी नेपाल’ के सुदन गुरुंग ने ही GenZ प्रदर्शन किया प्लान

नेपाल में GenZ प्रदर्शन में दूसरा नाम 36 साल के सुदन गुरुंग का है। इस पूरे प्रदर्शन का आयोजनकर्ता। खुद को NGO ‘हामी नेपाल’ का फाउंडर बताने वाले सुदन गुरुंग ने ही देश के 28 साल से कम उम्र के युवाओं को प्रदर्शन के लिए एकत्रित किया। यहाँ तक कि युवाओं को प्रदर्शन करना भी गुरुंग ने ही सिखाया।

इंस्टाग्राम पर ‘How to Protest’ वीडियो शेयर कर नेपाल के युवाओं को भड़काया। वीडियो में गुरुंग ‘शांतिप्रिय’ प्रदर्शन की बात कहता है लेकिन साथ में यह भी कहता है कि अगर जरूरत पड़े तो उग्र होना जरूरी है।  

नेपाल में प्रदर्शनकारियों ने जो पोस्टर लिए थे उनपर भी हामी नेपाल का ही नाम था। हामी नेपाल ने ही सोशल मीडिया से लेकर जमीन तक मोबाइलाइजेशन करवाया। हामी नेपाल ने भीड़ इकट्ठा करने के लिए डिस्कोर्ड एप का इस्तेमाल किया जहाँ ग्रुप चैट में प्रदर्शन के सारे निर्देश दिए जा रहे थे। प्रदर्शनकारियों को स्कूल की यूनिफॉर्म पहनकर आने के लिए कहा गया।

इन ग्रुप चैट की छानबीन में पता लगा कि कहीं बांग्लादेश जैसे सत्ता उखाड़ फेंकने की बात की तो कोई हिंसा की ज्यादा से ज्यादा तस्वीरें इंटरनेशनल मीडिया को भेजने की बात कहता दिखा। ग्रुप में पेट्रोल बम बनाने के तरीके भी बताए गए। लोगों से अनुरोध किया जा रहा है कि वो हत्यारा सरकार लिखा हुआ डीपी लगाए।

इन ग्रुप में नेपाल पुलिस और सैन्य बल की तस्वीरों को शार्प शूटर बताकर शेयर किया गया। इस ग्रुप चैट में लगातार हिंसा और नरसंहार तक की बातें हुईं। कुछ-कुछ वैसी ही जैसा बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के समय देखा गया था।

प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाला ‘हामी नेपाल’ का रजिस्ट्रेशन साल 2020 में हुआ, जिसमें सुदन गुरुंग को सोशल एक्टिविस्ट बताया गया। नेपाल में GenZ प्रदर्शन से पहले भी ‘हामी नेपाल’ का नाम बाढ़ राहत कार्य में ही सामने आया है। लेकिन सरकार के खिलाफ इतना बड़ा प्रदर्शन करने में ‘हामी नेपाल’ का हाथ आना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है।

हामी नेपाल को विदेशी फंडिंग

सुदन गुरुंग के NGO ‘हामी नेपाल’ को कोका-कोला, वाइबर, गोल्डस्टार और मलबरी होटल्स जैसे ब्रांडों से 20 करोड़ नेपाली रुपए की वित्तीय सहायता मिली है। ये सभी विदेशी ब्रांड्स हैं। NGO ने अपनी वेबसाइट में इसकी जानकारी भी दी है।

ये वही NGO है, जिसने साल 2025 की शुरुआत में भारत के ओडिशा में एक इंजीनियरिंग कॉलेज में नेपाल की छात्रा की मौत के बाद जमकर बवाल काटा था। यहाँ तक कि नेपाल में भी भारत विरोधी भावनाओं को खूब भड़काया था। सुदन गुरुंग, जो खुद को सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में दुनिया के सामने दिखाता है। वो इस पूरे GenZ प्रदर्शन में युवाओं को भड़काने में सबसे आगे रहता है। यहाँ तक की युवाओं को बांग्लादेश और श्रीलंका का उदाहरण देते हुए देश-विरोधी गाइडेंस भी दी जाती है।

नेपाल में क्या खेल खेलने वाले हैं बालेन शाह और सुदन गुरुंग

कुल मिलाकर देखा जाए तो सुदन गुरुंग और बालेन शाह नेपाल में छिड़े हिंसक प्रदर्शन और सरकार गिराने में प्रमुख जिम्मेदार व्यक्तियों के रूप में सामने आए हैं। लेकिन इनकी प्रवृत्ति न सिर्फ भारत विरोधी है, बल्कि मूल रूप से नेपाल विरोधी भी है। सुदन गुरुंग विदेशी पैसों के दम पर नेपाल की सरकार, नेपाल के लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त कर चुका है, तो अब उसका संगठन पश्चिमी संबंधों के हिमायती बालेन शाह का नाम देश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद के लिए उछाल रहा है।

ऐसे में बालेन शाह और सुदन गुरुंग का ये गठबंधन कहीं न कहीं बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है। आपको याद हो कि कुछ समय पहले बांग्लादेश में भी इसी तरह लोकतांत्रिक रूप से देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता को उखाड़ दिया गया था। उनकी जगह पर पश्चिमी देशों के पपेट मोहम्मद यूनुस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाया गया था। वहाँ भी युवा खून का इस्तेमाल पश्चिमी देशों ने बांग्लादेश को अपनी जकड़ में लेने के लिए किया था। ठीक ऐसा ही काम नेपाल में भी पश्चिमी देश कर रहे हैं, जो NGO की आड़ में अंधाधुंध पैसा झोंक कर नेपाल की सत्ता को गिरा चुके हैं।

आने वाले समय में बालेन-गुरुंग की ये जोड़ी नेपाल को किस दिशा में लेकर जाती है, ये देखने वाली बात होगी। इस पर भारत और नेपाल के लोगों की ही नहीं, चीन-रूस जैसी महाशक्तियों की भी नजर है। चूँकि नेपाल भारत और चीन से सटा हुआ देश है। इस तरह नेपाल में कुछ भी बदलाव होता है, तो इससे प्रभावित भारत और चीन भी होंगे। ऐसे में ये 2 क्षेत्रीय महाशक्तियाँ क्या कदम उठाती हैं, इस पर भी दुनिया की नजर बनी रहेगी।