तमिलनाडु : कार्तिगई दीपम विवाद : सनातन विरोधी DMK सरकार ने HC के आदेश के बाद भी नहीं मनाने दिया उत्सव

                                कार्तिगई दीपम विवाद, प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार: AI ChatGPT)
तमिलनाडु के प्राचीन थिरुप्परनकुंद्रम मंदिर में कार्तिगई दीपम उत्सव के दौरान एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने 1 दिसंबर 2025 को स्पष्ट आदेश दिया था कि थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी के शिखर पर स्थित प्राचीन ‘दीपाथून’ स्तंभ पर पवित्र दीप जलाया जाए। लेकिन डीएमके सरकार ने इस आदेश की खुलेआम अवहेलना की।

बुधवार (3 दिसंबर 2025) की शाम 6 बजे दीप जलाने का समय था, लेकिन मंदिर प्रशासन ने पारंपरिक तरीके से उचीपिल्लैयार मंदिर के पास ही दीप जला दिया, जो पहाड़ी के नीचे है। इससे नाराज हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पें हो गईं। कोर्ट ने सरकार को ‘जानबूझकर अवज्ञा’ का दोषी ठहराया और कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।

यह घटना सिर्फ एक धार्मिक रस्म का मामला नहीं है। यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत, अदालती आदेशों की मर्यादा और राजनीतिक साजिशों का मिश्रण है। डीएमके सरकार पर हिंदू विरोधी होने का पुराना आरोप लगता रहा है। विपक्षी भाजपा और हिंदू संगठन इसे सनातन धर्म के खिलाफ साजिश बता रहे हैं।

याचिकाकर्ता राम रविकुमार ने कोर्ट में कहा कि मंदिर प्रशासन ने दीपाथून पर कोई इंतजाम नहीं किया। जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने 1 दिसंबर 2025 को आदेश दिया कि दीप जलाया जाए, क्योंकि यह मंदिर की संपत्ति है। उन्होंने साल 1923 के एक कोर्ट डिक्री का हवाला दिया, जिसपर प्रिवी काउंसिल ने भी मुहर लगाई थी।

हाई कोर्ट के आदेश के बाद बुधवार (03 दिसंबर 2025) की शाम को जब हिंदू कार्तिगई दीपम के लिए पहाड़ी पर चढ़ने लगे, तो उन्हें रोक लिया गया। हाई कोर्ट के आदेश की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई। सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगा दी। हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बैरिकेड तोड़े, पत्थर फेंके और नारेबाजी की।

एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, दर्जनों लोग घायल हुए। कोर्ट ने इसे ‘अवमानना’ करार दिया और कहा, “यह आदेश की खुली अवहेलना है। लोकतंत्र का अंत हो जाएगा अगर अधिकारी कानून से ऊपर समझें।” जस्टिस स्वामीनाथन ने याचिकाकर्ता को 10 लोगों के साथ प्रतीकात्मक रूप से दीप जलाने की इजाजत दी और सीआईएसएफ को सुरक्षा का आदेश दिया। लेकिन अपील के बाद पुलिस ने सबको रोक लिया। हालाँकि अब गुरुवार (04 दिसंबर 2025) को कोर्ट ने इस मामले में अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी है।

सरकार के सूत्रों ने सफाई दी कि वे हिंदुओं के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि शांति बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कोई सच्चा भक्त कोर्ट नहीं गया और 100 साल पुरानी परंपरा का पालन हो रहा है। लेकिन भाजपा नेता के.अन्नामलई ने कहा, “डीएमके का सनातन धर्म से दुश्मनी अब छिपी नहीं। हिंदू धार्मिक निधि विभाग खुद भक्तों के खिलाफ अपील कर रहा है।”

कार्तिगई दीपम को लेकर विवाद क्या? क्यों DMK सरकार कर रही हिंदुओं का दमन

 कार्तिगई दीपम तमिलनाडु का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो कार्तिगई मास की पहली पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह प्रकाश के विजय का प्रतीक है। थिरुप्परनकुंद्रम सुब्रमण्या स्वामी मंदिर भगवान मुरुगन के छह प्रमुख निवास स्थान में से पहला है, इस उत्सव का केंद्र रहा है।

थिरुप्परनकुंद्रम सुब्रमण्या स्वामी मंदिर छठी शताब्दी में पांड्य राजाओं द्वारा बनाया गया था और पहाड़ी को काटकर तराशा गया है। मंदिर के पुजारी रोजाना तीन बार पूजा करते हैं, जिसमें अभिषेक, अलंकरण, नैवेद्य और दीप आराधना शामिल है। ये प्रक्रिया अब भी जारी है।

लेकिन बीते कुछ समय से इस्लामी कट्टरपंथी इस पहाड़ी पर कब्जे और इसके नाम बदलने की कोशिश में हैं। कुछ समय पहले मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने पहाड़ी पर नमाज की माँग की, लेकिन पुलिस ने रोक दिया।

प्रिवी काउंसिल का फैसला और ‘सिकंदर हिल्स’ का दावा

थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का इतिहास संगम युग तक जाता है। संत नक्कीरार ने भगवान मुरुगन के 6 पवित्र निवासों में इसे पहला बताया है। यह तेवर स्थलम भी है, जहाँ शिव और मुरुगन की पूजा होती है। पहाड़ी 500 फुट ऊँची है और मंदिर चट्टान को काटकर बनाया गया। भक्त घिरी वीधी (परिक्रमा पथ) पर चक्कर लगाते हैं, जो मंदिर की संपत्ति है।

विवाद की जड़ 19वीं-20वीं शताब्दी के मुस्लिम दावों में है। कुछ लोग इसे ‘सिकंदर हिल्स’ कहते हैं, लेकिन 1931 में प्रिवी काउंसिल ने साफ किया कि यह मंदिर की संपत्ति है। पाँच सदस्यीय पैनल ने कहा, “पहाड़ी का खाली हिस्सा समय से परे मंदिर के कब्जे में है।”

प्रिवी काउंसिल ने 1923 के अधीनस्थ जज के फैसले को बहाल किया, जिसमें मस्जिद स्थल को छोड़कर पूरी पहाड़ी मंदिर की बताई गई। प्रिवी काउंसिल ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला दिया, जिसमें 1144 का दस्तावेज ‘मलाईप्रकरम’ (पहाड़ी परिक्रमा) का जिक्र है।

फैसले में कहा गया कि मुगल आक्रमणकारियों ने राजस्व भूमि छीनी, लेकिन मंदिर या पहाड़ी कभी धर्मनिरपेक्ष हाथों में नहीं गई। कुछ मस्जिदें और घर बने, लेकिन वे हिंदुओं पर जबरन कब्जे का परिणाम था। इसके अलावा ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी मंदिर के अधिकार मान्य किए थे। फैसले में प्रिवी काउंसिल ने लिखा, “कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पवित्र पहाड़ी में हस्तक्षेप किया।” यह फैसला 2025 में भी प्रासंगिक है, क्योंकि जस्टिस स्वामीनाथन ने इसे ही आधार बनाया।

जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले को नहीं मान रही डीएमके सरकार

हालाँकि हिंदू-विरोधी मिजाज वाली सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (डीएमके) सरकार ने कानून-व्यवस्था के नाम पर 1 दिसंबर 0025 के कोर्ट के निर्देश को चुनौती दी है। मामला तब और बिगड़ा जब याचिकाकर्ता राम रविकुमार सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) के जवानो के साथ कोर्ट के फैसले पर पहाड़ी चढ़ने लगे।

लेकिन मदुरै के पुलिस कमिश्नर जे. लोगनाथन के नेतृत्व वाली राज्य पुलिस ने हस्तक्षेप किया और उन्हें रोक दिया। मदुरै जिला कलेक्टर ने रोकथाम वाले आदेश जारी किए थे, दावा किया कि जनता की सुरक्षा और मौजूदा कानून-व्यवस्था की स्थिति खतरे में है।

हिंदू मुननेत्र मंड्रम संगठन के सदस्यों और अन्य कार्यकर्ताओं ने मंदिर के सामने इकट्ठा होकर मांग की कि कोर्ट के निर्देशित स्थान पर दीप जलाया जाए। कुछ लोग पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश में लगे। इससे धक्का-मुक्की हुई और एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। हिंदू मुननेत्र मंड्रम के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मंदिर प्रशासन ने हाईकोर्ट के फैसले का पालन करने के लिए बिल्कुल कोई इंतजाम नहीं किया।

खास बात ये है कि मंदिर प्रबंधन ने पहले ही कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, दावा किया कि इससे सांप्रदायिक सौहार्द खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन जज स्वामीनाथन ने सख्त हिदायत दी थी कि शाम 6 बजे तक दीप जलाना है, वरना 6:05 बजे अवमानना की कार्रवाई शुरू हो जाएगी। इसके बावजूद डीएमके सरकार और प्रशासन ने कोर्ट की नहीं सुनी।

हिंदुओं को नीचा दिखाकर मुस्लिमों का पक्ष ले रही DMK सरकार

डीएमके सरकार का ये रवैया चिंताजनक तो है, लेकिन हैरान करने वाला नहीं, क्योंकि हिंदू-नफरत करने वाली द्रविड़ पार्टी का इतिहास यही है। राज्य सरकार और हिंदू धार्मिक तथा चैरिटेबल एंडोमेंट्स विभाग ने पहले ही फैसले के खिलाफ अपील कर दी है। ऊपर से डीएमके और उसके सहयोगी जिला प्रशासन से कह रहे हैं कि कोर्ट के आदेश का पालन न करें।

डीएमके कोर्ट के आदेश तोड़ने के लिए बिना झिझक तैयार है, सिर्फ हिंदू धर्म के प्रति अपनी घृणा दिखाने के लिए। न्यायपालिका ने तथ्यों और सबूतों के आधार पर हिंदुओं का साथ दिया है, लेकिन सरकार सांप्रदायिक सौहार्द का विकृत कथा चलाने पर तुली है। उनकी टेढ़ी नजर में सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता तभी बनी रहती है जब हिंदुओं के खर्च पर हो और उनके धार्मिक अधिकारों पर कब्जा हो।

वहीं, जब डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) (बैन हो चुके पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के राजनीतिक विंग) ने जब इस पवित्र स्थान पर जानवरों की कुर्बानी की कोशिश की, तो ये मूल्य कभी खतरे में नहीं पड़े। जब इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के नेता और रामनाथपुरम सांसद के. नावास कानी (आईएमयूएल) ने एक अन्य विधायक और समर्थकों के साथ पवित्र पहाड़ी पर नॉन-वेज बिरयानी खाई, तो भी खतरा नहीं था। कानी ने यहाँ तक घोषणा कर दी कि जगह वक्फ बोर्ड की है।

दिल्ली के सुल्तानों के प्रतिनिधि के नाम पर इसे सिक्कंदर हिल्स नाम देने की कोशिशें भी चल रही थीं, जो मदुरै पर शासन करते थे, जिससे हिंदुओं ने विरोध किया। डीएमके ने इन उकसाने वाली हरकतों को सौहार्द और शांति के लिए खतरा नहीं माना, सिर्फ इसलिए क्योंकि हिंदू धर्म का एक बड़ा हिस्सा अपमानित हो रहा था, जिसे पार्टी चुपचाप समर्थन देती है। लेकिन जब हिंदू कानूनी तरीके से अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, तो इनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है।

इसी तरह, हाईकोर्ट द्वारा इसे हिंदू मंदिर घोषित करने के बाद भी मुस्लिमों का पहाड़ी पर अवैध कब्जा जारी है और डीएमके सरकार ने इन उल्लंघनों को बर्दाश्त किया है।

द्रविड़वाद के झंडाबरदार हमेशा थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी से जुड़े झूठे मुस्लिम दावों का साथ देते रहे हैं और असली हिंदू चिंताओं तथा वैध अधिकारों का विरोध करते रहे हैं। यहाँ तक कि अपने प्रभाव वाले मीडिया आउटलेट्स के जरिए मामले को राजनीतिक रंग भी देने की कोशिश करती है, ताकि मुस्लिम उसके पक्ष में लामबंद हो सकें।

ऐसे ही एक मामले में तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद हिंदुओं को अन्नदान करने से रोक दिया, जबकि कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट तौर पर कहा था कि वो इस काम में अड़ंगा न लगाए। क्योंकि इसकी वजह ये थी कि डीएमके सरकार अपने ईसाई समर्थकों को खुश करने में जुटी रही। ये मामला कुछ ही समय पहले का है।

HC के आदेश का पालन न करने पर DMK पर क्यों उठाई जा रही उंगली?

आप सोच रहे होंगे कि ऐसा सिर्फ सरकार कर रही है, इसका सत्ताधारी डीएमके पार्टी से कोई लेना देना नहीं है। तो हम बता दें कि तमिलनाडु सरकार में हिंदू धार्मिक तथा चैरिटेबल एंडोमेंट्स विभाग नाम से अलग मंत्रालय है। ये मंत्रालय ही हिंदू मंदिरों से जुड़े तमाम फैसले करता है।

मौजूदा समय में थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित मुरुगन मंदिर में भी प्रशासकों की तैनाती है, जो तमिल नाडु की डीएमके सरकार की तरफ से की गई है। ऐसे में वो डीएमके के निर्देश पर ही हाई कोर्ट तक के फैसले को नहीं मान रहे। यहाँ तक कि हाई कोर्ट की कार्यवाही तक से गैर-हाजिर रहे। फिर यहाँ खुद मंदिर के प्रशासक को आगे बढ़कर हिंदुओं के हित में काम करना चाहिए था और हाई कोर्ट का आदेश भी था, लेकिन यहाँ सरकार द्वारा बिठाया मंदिर प्रशासक ही हिंदू विरोधी डीएमके सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में जुटा रहा।

इतना ही नहीं, एक तरफ तो वो खुलकर हिंदू विरोध करती है, तो दूसरी तरह हिंदू मंदिरों के पैसों को डकार भी जाती है। इन सब बातों को जानते हुए भी डीएमके को कब तक नजरअंजाद किया जाए? जब उसका अतीत ही हिंदू और सनातन विरोध से भरा पड़ा है।

सनातन का बार-बार अपमान करती रही है डीएमके

बीते कुछ समय के घटनाक्रम को देखें तो डीएमके सांप्रदायिक सौहार्द या कानून-व्यवस्था के पीछे छिप जाती है, लेकिन हिंदू धर्म और उसके अनुयायियों के प्रति अपनी नफरत जाहिर करने से कभी नहीं हिचकिचाई। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के उपमुख्यमंत्री बेटे और ‘गर्वित ईसाई’ उदयनिधि स्टालिन ने 2023 में सनातन धर्म के विनाश की खुली अपील की।

डीएमके सांसद ए राजा ने तो और आगे बढ़कर कहा कि उदयनिधि की अपमानजनक टिप्पणियाँ तो काफी हल्की थीं। सनातन धर्म की तुलना तो एचआईवी और कुष्ठ रोग से तुलना करनी चाहिए। यही नहीं, हिंदू धर्म को जंजीर कहने वाले कमल हासन को डीएमके ने बाकायदा राज्यसभा भी भेजा है। वहीं, डीएमके सरकार के मंत्री ने तो हिंदू धर्म को लेकर सेक्स पोजिशन तक की घटिया टिप्पणी की थी।

डीएमके ने न सिर्फ हिंदू धर्म को निशाना बनाया है, बल्कि ऐसे कदम भी उठाए हैं जो धर्म का अपमान करते हैं। तमिलनाडु सरकार ने जुलाई में चेन्नई के किलपुक में वाडेल्स रोड का नाम बदलकर आर्चबिशप एज्रा सरगुनम रोड रख दिया, जो मृत एंटी-हिंदू ईसाई प्रचारक और बिशप एज्रा सरगुनम को सम्मान देने के लिए था। उसने हिंदुओं को मारने का सार्वजनिक आदेश भी दिया था। यही नहीं, डीएमके सरकार में तो दुर्दांत आतंकियों की भव्य आखिरी यात्रा भी निकलती है, जो कोर्ट से सजा पाए हो।

हिंदुओं से नफरत करने वालों की डीएमके में होती है पूछ

हिंदू धर्म से नफरत करने वाले लोग डीएमके में जगह पाते हैं, क्योंकि पूरी पार्टी अपनी खतरनाक धर्मनिरपेक्षता के बहाने हिंदू-विरोध को मूर्त रूप देती है। वे (डीएमके के लोग) सनातन के कट्टर आलोचक ईवी पेरियार की पूजा करते हैं और अब्राहमिक मजहबों खासकर इस्लाम और ईसाई धर्म को आदर देते हैं।

थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर बार-बार होने वाले टकराव इसी का हिस्सा हैं। डीएमके सरकार हिंदुओं के अधिकारों पर कुचलने के लिए तुली है, भले ही इसके लिए कोर्ट के आदेश तोड़ने पड़ें या उन्हें चुनौती देनी पड़े। इसके अलावा डीएमके या ‘धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ’ कभी मुस्लिमों या अन्य मजहबों के अनुयायियों के साथ ऐसा हौसला नहीं दिखातीं, जो उनकी असली मंशा और मकसद बयान करता है।

मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के साथ, फिर CJI सूर्यकांत के खिलाफ भी महाभियोग लाने की हिम्मत करो; मंदिर का धन देवता का क्या होगा जब मंदिर में भगवान की पूजा ही नहीं करने देना चाहता विपक्ष

सुभाष चन्द्र

INDI गठबंधन की नीचता कि थिरुपरंकुन्द्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति देने के निर्णय के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को देने का दुस्साहस कर दिया। इन कालनेमि हिन्दुओं को बेनकाब करने सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली में जामा मस्जिद, निजामुद्दीन दरगाह, अजमेर दरगाह और अन्य मजारों की कमाई पर PIL दाखिल करनी चाहिए। इन जगहों की मोटी आय किन की जेब में जा रही है जबकि इनके रखरखाव पर सरकारी(वक़्फ़) पैसा खर्च किया जाता है, क्यों? जब सरकार मन्दिरों में आये चढ़ावे पर गिद्ध की नज़र रख सकती है मस्जिदों, दरगाहों और मजारों की अंधी कमाई पर क्यों नहीं?         

सनातन प्रेमियों को उन हिन्दुओं का सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए जो अपने शक्तिशाली देवी-देवताओं को छोड़ दरगाहों पर जाकर खून-पसीने की कमाई चढ़ा कर अपने ही विरुद्ध इस्तेमाल करने की सहायता कर रहे हैं।   

अभी कुछ दिन पहले चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा था कि मंदिर का धन मंदिर के देवता का है और उसे केवल मंदिर के हितों के लिए बचाया, संरक्षित और उपयोग किया जाना चाहिए। यह किसी सहकारी बैंक के लिए आय या अस्तित्व का स्रोत नहीं बन सकता जब विपक्ष जस्टिस स्वामीनाथन के मदुरई के थिरुपरंकुन्द्रम पहाड़ी पर कार्तिगई दीपम जलाने की अनुमति देने के निर्णय के खिलाफ उन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव संसद में ला सकता है तो फिर मंदिर के धन को देवता का धन कहने पर विपक्ष को CJI सूर्यकांत के खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव संसद में लाने की हिम्मत करनी चाहिए

जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाने वाले दलों में DMK, कांग्रेस और सपा समेत कई दल शामिल हैं ये चाहते हैं कि कोई जज हिंदुओं के संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के लिए कोई निर्णय ही न दे, उसे बस मुस्लिमों के हक़ में निर्णय देना चाहिए जस्टिस शेखर यादव ने हिंदू बहुसंख्यक समुदाय के उत्पीड़न की बात कर दी तो सिब्बल उनके खिलाफ भी महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश कर रहा था सबरीमाला मंदिर को मलिन करने के सुप्रीम कोर्ट के सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने के निर्णय पर सारा लेफ्ट लिबरल कबाड़ खुश था लेकिन उस निर्णय के खिलाफ Review Petition की सुनवाई के लिए 8 साल से बेंच तक गठित नहीं हुई है

Tamil Nadu Hindu Religious and Charitable Endowments (HRCE) Act of 1959 के जरिए तमिलनाडु सरकार करीब 40 हजार मंदिरों का धन लूट रही है लेकिन फिर भी सनातन धर्म को समाप्त करने का शोर मचाती है कांग्रेस के साथ चीफ जस्टिस सूर्यकांत को चाहिए कि वे अगर समझते हैं कि मंदिर का धन उस मंदिर के देवता का होता है तो तमिलनाडु जैसे सभी बोर्ड भंग करें और मंदिरों से धन लेना बंद करने के आदेश दें

लेखक
चर्चित YouTuber 
संविधान के अनुसार किसी जज को उसके पद से हटाने के लिए तब ही प्रस्ताव लाया जा सकता है जब उसके खिलाफ serious ethical misconduct, corruption, willful failure to perform duties, or physical/mental disability  के आरोप हो जो जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ नहीं है

एक तरफ राहुल गांधी चीख चीख कर कह रहा है कि मोदी सरकार संवैधानिक संस्थाओं पर कंट्रोल कर रही है जबकि दूसरी तरफ कांग्रेस जजों को केवल कांग्रेस की नीति के अनुरूप निर्णय देने के लिए बाध्य करना चाहती है और जो ऐसे निर्णय नहीं देते, उनके खिलाफ महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाती है तो कंट्रोल तो न्यायपालिका पर कांग्रेस चाहती है जैसा वो इंदिरा गांधी के समय से करती रही है जब कांग्रेस ने कहा था we want committed judiciary.

चीफ जस्टिस सूर्यकांत रोहिंग्याओं के विरोध में कुछ कहते हैं तो अर्बन नक्सल गिरोह के पूर्व जज और वकीलों को उनके पीछे लगा दिया जा रहा है यानी विदेशी घुसपैठियों के लिए न्यायपालिका ही नहीं चीफ जस्टिस की जुबान पर भी अंकुश लगाना चाहते हैं

अब समय आ गया है विपक्षी दलों को हिंदू एकजुट होकर हर चुनाव में जवाब दे जिससे विपक्ष की विचारधारा पर ही बुलडोज़र चलाया जा सके

जस्टिस स्वामीनाथन का हम दिल से समर्थन करते है वैसे विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव की हवा निकलना तय है क्योंकि जो बहुमत चाहिए वो उन्हें हटाने के लिए मिलना संभव नहीं है स्वामीनाथन के निर्णय के खिलाफ आप सुप्रीम कोर्ट जा सकते है लेकिन विपक्ष को अराजकता फैलाने से मतलब है जिस जज के घर से हजारों करोड़ के अधजले नोट मिले, उसे cover fire देने के लिए स्वामीनाथन के खिलाफ प्रस्ताव लाया है विपक्ष 

UNESCO ने दीपावली को घोषित किया अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर, प्रधानमंत्री मोदी ने दी बधाई


भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक और बेहद खुशी का पल है। दुनिया भर में प्रकाश और उल्लास फैलाने वाले त्योहार दिवाली को यूनेस्को (UNESCO) ने अपनी प्रतिष्ठित अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (Intangible Cultural Heritage) की लिस्ट में शामिल कर लिया है। यह न सिर्फ दीपावली के लिए, बल्कि भारत की समग्र सांस्कृति
क पहचान के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।

इस घोषणा के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुरंत देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (X) पर कहा कि “भारत और दुनिया भर के लोग बहुत खुश हैं। हमारे लिए, दीपावली हमारी संस्कृति और रीति-रिवाजों से बहुत करीब से जुड़ी हुई है। यह हमारी सभ्यता की आत्मा है। यह रोशनी और नेकी का प्रतीक है। दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर लिस्ट में शामिल करने से इस त्योहार की दुनिया भर में लोकप्रियता और बढ़ेगी। प्रभु श्री राम के आदर्श हमेशा हमारा मार्गदर्शन करते रहें।”

यह अहम फैसला यूनेस्को के 20वें सत्र में लिया गया, जो वर्तमान में दिल्ली के लालकिला में 8 दिसंबर से 13 दिसंबर तक चल रहा है। इस सत्र के दौरान हुई अहम बैठक में दीपावली को यूनेस्को की सूची में शामिल करने का निर्णय लिया गया। यूनेस्को ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पोस्ट पर इसका जानकारी साझा की। यूनेस्को ने लिखा कि ‘अमूर्त धरोहर की लिस्ट में नया नाम: दीपावली, भारत। बधाई हो!’

दिवाली को विश्व धरोहर सूची में शामिल किए जाने से भारत की पारंपरिक कला, रीतियों, सामूहिक उत्सव और सामाजिक जुड़ाव को और मजबूती मिलेगी। दीयों की रोशनी, रंगोली, पूजा-अर्चना, परिवारों का मिलन—इन सबमें समाई भारतीयता को अब दुनिया भर में एक खास पहचान मिल गई है। देश में भी इसे लेकर जबरदस्त उत्साह है। लोग इसे भारत की सांस्कृतिक कूटनीति की एक बड़ी सफलता मान रहे हैं। विदेशों में बसे भारतीयों के लिए भी यह गर्व का बड़ा मौका बन गया है, क्योंकि उनका प्रिय त्योहार अब आधिकारिक रूप से वैश्विक धरोहर बन चुका है। विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने अपने एक्स पोस्ट में खुशी जताते हुए लिखा कि यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में ‘दीपावली’ का नाम शामिल होने के बारे में जानकर खुशी हुई। यह त्योहार के बहुत ज्यादा सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और लोगों को एक साथ लाने में इसकी भूमिका को पहचान देता है।

दीपावली के जुड़ने के साथ ही, भारत की ओर से इस प्रतिष्ठित अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर सूची में कुल 16 तत्व शामिल हो गए हैं। यह संख्या वैश्विक मंच पर भारत की असाधारण सांस्कृतिक और पारंपरिक समृद्धि को दर्शाती है। इससे पहले भारत की 15 सांस्कृतिक परंपराएं, जिनमें कोलकाता की दुर्गा पूजा, गुजरात का गरबा, योग, कुंभ मेला, और वैदिक मंत्रोच्चारण की परंपरा शामिल हैं, इस वैश्विक सूची में अपनी जगह बना चुकी हैं।

नवजोत कौर ने आग लगा दी "त्याग की देवी" की कांग्रेस में; अब पंजाब पार्टी प्रधान को बताया भ्रष्ट, उधर डीके शिवकुमार भी भड़के

एक कहावत है "दिल के फफोले जल उठे सीने की आग से, इस घर को आग लग गयी घर के चिराग से" नवजोत सिंह सिद्धू की धर्मपत्नी नवजोत कौर ने मुख्यमंत्री की कुर्सी की कीमत बता "त्याग की देवी" की कांग्रेस में आग लगा दी। जिस आग को बुझाने की कोशिश कर मामले को ख़त्म करने की बजाए निलंबित पार्टी नेता नवजोत कौर सिद्धू को मंगलवार (9 दिसंबर) को कानूनी नोटिस भेजा है। उनसे अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगने या कानूनी कार्रवाई का सामना करने को कहा। मामला कोर्ट में जाने पर नवजोत अगर गाँधी परिवार के बैंक खातों की CBI, ED या IncomeTax से जांच करवाने की मांग करने पर National Herald से ज्यादा मुसीबत खड़ी हो सकती है। 

जिस सोनिया गाँधी को कांग्रेस और इसके अंधभक्त "त्याग की देवी" कहकर खुद गुमराह होने के साथ-साथ देश को भी गुमराह करने वालों को नहीं मालूम की इसी "त्याग की देवी" को अध्यक्ष बनाने के चक्कर दलित अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी ऑफिस से बाहर पटक देने के बाद से कांग्रेस चुनाव दर चुनाव नीचे जा रही है। अंजाम ये हो गया है कि आज अपनी पहचान बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय पार्टियों के आगे नाक रगड़नी पड़ रही है।        

आखिरकार कांग्रेस के भीतर उस सच्चाई का ज्वालामुखी फूट ही गया, जिसे वर्षों से पार्टी राजसी कालीन के नीचे दबाती चली आ रही है। कांग्रेस नेत्री नवजोत कौर सिद्धू ने यह चौंकाने वाला खुलासा कर दिया कि कांग्रेस में “500 करोड़ लगाने वाले को मुख्यमंत्री बना दिया जाता है।” यह केवल एक आरोपित टिप्पणी-मात्र नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के भीतर की उस सड़ी हुई राजनीति का एक्स-रे है, जिसे सुनते ही पार्टी नेतृत्व बौखला गया। नवजोत कौर सिद्धू का निलंबन दिखाता है कि कांग्रेस का आलाकमान यह समझने में विफल है कि समस्या सजा देकर या आवाज़ दबाकर हल नहीं होगी। सच को दबाने का परिणाम सिर्फ विवाद को और हवा देना मात्र होता है। पार्टी ने जो कदम उठाया, उसने यह संदेश दिया कि भीतर की गंदगी को सार्वजनिक करने वाले किसी भी सदस्य को खामोश कर दिया जाएगा। इसी से जनता में यह धारणा और मजबूत हुई कि सोनिया-राहुल और अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के लिए पार्टी के भीतर पारदर्शिता और नैतिकता केवल नारे ही हैं।

‘500 करोड़ में मुख्यमंत्री बनाओ’ ने कांग्रेस पार्टी के परखच्चे उड़ाए
पंजाब कांग्रेस से अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी ने “500 करोड़ में मुख्यमंत्री बनाओ” जैसा विस्फोटक बयान दबे-छुपे अंदाज में नहीं दिया है, बल्कि मीडिया से बातचीत में खुलेआम कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति को नंगा कर दिया है। नवजोत कौर का खुला आरोप केवल एक गुस्से भरी टिप्पणी नहीं, बल्कि लम्बे समय से चल रही उस अंदरूनी संस्कृति का खुला प्रदर्शन है, जिसमें पदों की बेंचिंग, लॉबिंग और पैसों-पैसों की राजनीति ने नैतिकता और सार्वजनिक जवाबदेही को निगल लिया है। जब पार्टी ने जवाब देने के बजाय सच बोलने वाली नेता को निलंबित कर दिया, तो उसने साफ कर दिया कि वह दोष क्यों छुपाना चाहती है। क्योंकि खुली जांच और सार्वजनिक बहस से जो परदा टूटेगा वह पार्टी की रही-सही इज्जत के परखच्चे उखाड़कर रख देगा।

असंवेदनशील, गैरजिम्मेदार, नैतिक रूप से बेईमान और भ्रष्ट प्रधान हैं वड़िंग
पंजाब कांग्रेस से सस्पेंड किए जाने के बावजूद नवजोत कौर सिद्धू के तेवर और तीखे हो गए हैं। मंगलवार को अमृतसर में नवजोत कौर ने सस्पेंड किए जाने पर प्रदेश अध्यक्ष राजा वड़िंग के लिए कहा- यह कार्रवाई उस प्रधान ने की, जिसे कोई नहीं मानता। राणा गुरजीत भी इसी नोटिस से चल रहे हैं। मेरी हाईकमान से बात हो रही है। हम चोरों का साथ नहीं देंगे। अगर 4-5 लोगों को हटा दें तो फिर देखेंगे। नवजोत कौर ने कहा कि मैं एक असंवेदनशील, गैरजिम्मेदार, नैतिक रूप से बेईमान और भ्रष्ट प्रधान के साथ खड़े होने से इनकार करती हूं। मैं उन सभी भाइयों और बहनों के साथ खड़ी हूं, जिन्हें उसकी अक्षमता और गैरजिम्मेदार व्यवहार से चोट पहुंची है। मैं उसे प्रधान मानने से इनकार करती हूं। मुझे हैरानी है कि मुख्यमंत्री उसे क्यों बचा रहे हैं।

सांसद सुखजिंदर रंधावा ने नवजोत कौर सिद्धू को कानूनी नोटिस भेजा
कांग्रेस की पंजाब इकाई के वरिष्ठ नेता और गुरदासपुर से सांसद सुखजिंदर सिंह रंधावा ने निलंबित पार्टी नेता नवजोत कौर सिद्धू को मंगलवार (9 दिसंबर) को कानूनी नोटिस भेजा है। उनसे अपमानजनक टिप्पणी के लिए माफी मांगने या कानूनी कार्रवाई का सामना करने को कहा। पार्टी के राजस्थान प्रभारी रंधावा ने नोटिस में कौर द्वारा मीडिया में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जाने संबंधी बयानों पर आपत्ति जताई। कौर कांग्रेस की पंजाब इकाई के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी हैं। कांग्रेस ने नवजोत कौर को मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए 500 करोड़ रुपये वाले उनके बयान के लिए सोमवार (8 दिसंबर) को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। रंधावा के वकील ने नवजोत कौर को भेजे गए कानूनी नोटिस में कहा कि झूठे, निराधार और मानहानिकारक बयान दिए, जिनका इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारण और रिपोर्टिंग की गई।

प्रदेश अध्यक्ष पर लगे आरोप का मानवीय और राजनीतिक भार
कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी के रूप में रंधावा ने कार्य करते हुए भ्रष्टाचार किया, जिसमें रुपये के बदले पार्टी के टिकट बांटना भी शामिल है। नवजोत ने कहा कि रंधावा के स्मगलरों से संबंध हैं। रंधावा के पास इतनी फार्म लैंड कहां से आई? अपनी पत्नी को तो जिता नहीं सके। रंधावा ने सिद्धू की पीठ में छुरा घोंपा। नवजोत कौर द्वारा सीधे पार्टी अध्यक्ष पर ‘भ्रष्ट’ कहे जाने का अर्थ सिर्फ व्यक्तिगत आरोप नहीं है। यह संगठनात्मक विफलता की गम्भीर चेतावनी है। यदि पार्टी के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति ऐसे आरोपों से मुक्त नहीं है, तो छोटे स्तर पर अनुशासन और जवाबदेही की क्या बात की जाए? ऐसे आरोप पार्टी की छवि के साथ-साथ उसकी विचारधारा की भी जड़ों से हिला देते हैं। 

कौर के क्रोध से कर्नाटक के डीके की नाराजगी को मिली आग
पंजाब का मामला अकेला ही खतरनाक नहीं है। कर्नाटक में डीके शिवाकुमार की नाराजगी ने इस आग को राष्ट्रीय आकार दे दिया है। शिवाकुमार का आक्रोश यह संकेत देता है कि सत्ता के भीतर निर्णय-प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी केवल पंजाब तक सीमित नहीं, बल्कि कई राज्यों में गहरे स्तर पर मौजूद है। जब एक अनुभवी और प्रभावशाली नेता यह महसूस करे कि उसे किनारे कर दिया गया या उसके हितानुसार निर्णय नहीं लिये गये, तो वह सार्वजनिक संघर्ष की राह पकड़ लेता है। कांग्रेस के भीतर यह विभाजन जल्दी ही संगठनात्मक टूट में बदल सकता है। सबसे चिंताजनक पहलू पार्टी हाईकमान की मौन नीति है। पत्रकारों और सार्वजनिक मंचों पर जहां विपक्ष पर तीखे बोल फटते हैं, वहीं अपने घर की पोल खुलते ही गूंगी चुप्पी दिखाई देती है। यह चुप्पी नेतृत्व की विफलता की निशानी है।

नैतिकता का पतन, टूटती एकता और बढ़ता आंतरिक असंतोष
यदि कांग्रेस के स्वयंभू आलाकमान ने इस समय भी मजबूती से सुधार नहीं किये, तो यह संकट केवल रिपोर्ट-लाइन तक सीमित रहेगा। विविध राज्यों में इसका गंभीर असर दिखेगा। उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल और ज्यादा गिरेगा और आगामी चुनावों में उम्मीदवारों को संगठनात्मक कमजोरी का बोझ उठाना कठिन होगा। कांग्रेस का आंतरिक असंतोष बाहर निकलकर सार्वजनिक हो चुका है और यह प्रवाह तेज होने वाला है। कांग्रेस के पास अब दो रास्ते हैं। या तो यह संकट खुली ईमानदारी से स्वीकार कर पार्टी व्यवस्था का पुनर्निर्माण करे, या फिर चुप्पी और दबाव से इसे ठप कर, गिरती साख को और खो दे। नवजोत कौर के आरोपों ने सिर्फ एक बयान नहीं दिया, बल्कि उन्होंने कांग्रेस के भीतर की विषैली हवा को सार्वजनिक कर दिया है। यदि पार्टी ने तुरंत, पारदर्शी और निर्णायक प्रतिक्रिया नहीं दी तो आने वाले वर्षों में कांग्रेस का किरदार और भी घटिया और हाशिये पर चला जाएगा।

सरकार ने इंडिगो की रोजाना 110 फ्लाइट छीनी, 10 दिसंबर तक नया शेड्यूल जमा करने का भी दिया निर्देश

इंडिगो संकट पर यात्रियों को हो रही परेशानी के बाद केंद्र सरकार ने कड़ा रुख अपनाया है। सरकार ने एयरलाइन के शेड्यूल को 10 प्रतिशत कम करने का निर्देश दिया है। यानी अब रोजाना की 110 फ्लाइट इंडिगो सी छीन ली जाएँगी। फिलहाल एयरलाइन के पास रोजाना 2200 फ्लाइट संचालित करने का शेड्यूल है।

DGCA ने मंगलवार (09 दिसंबर 2025) को इंडिगो को नोटिस जारी करते हुए नए शेड्यूल जमा करने के लिए 10 दिसंबर 2025 तक का समय दिया है। DGCA ने यह भी कहा कि एयरलाइन ने अपने शेड्यूल को अच्छे से चलाने की काबिलियत नहीं दिखाई है। फिलहाल इन फ्लाइटों को किसी दूसरी एयरलाइन को देने की बात नहीं कही गई है।

इंडिगो ने पिछले 8 दिन में 5 हजार से अधिक फ्लाइट कैंसिल और उड़ान भरने में देरी की हैं, जिसके चलते एयरपोर्ट पर यात्रियों को काफी नुकसान झेलना पड़ा। हालाँकि, एयरलाइंस का कहना है कि कैंसिल की गई फ्लाइट पर यात्रियों को रिफंड दिया जा चुका है।

इंडिगो एयरलाइंस की सैकड़ों उड़ानों के अचानक रद्द होने और देरी से देशभर के हवाई अड्डों पर हजारों यात्री फंसे हुए हैं। इस मामले में विपक्षी दलों के सांसदों और नेताओं ने केंद्र सरकार और एयरलाइन कंपनी की कड़ी आलोचना की है। समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद नीरज कुशवाहा ने कहा, “यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। बड़ी संख्या में यात्री विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए हैं। मैं भारत सरकार से अपील करता हूं कि इस मामले का तुरंत संज्ञान लें और उड़ान सेवाओं को जल्द से जल्द बहाल करें।” सपा के ही एक अन्य सांसद आनंद भदौरिया ने पायलटों के नए नियमों को इसका कारण बताया। उन्होंने कहा, “कुछ दिन पहले सरकार ने पायलटों के लिए नए नियम लागू किए, जिन्हें सभी एयरलाइंस ने मान लिया। इंडिगो को लगा कि उनके पास पर्याप्त संसाधन और स्टाफ हैं। लेकिन अब पता चला है कि इंडिगो के पायलटों ने कहा है कि जब बाकी एयरलाइंस कम घंटे में उड़ानें चला रही हैं, तो हम क्यों ज्यादा काम करें?”

इंड‍िगो एयरलाइन के लगातार दिन पर द‍िन गहरा रहे रहे संकट पर सरकार ने सख्‍त कदम उठाने का ऐलान क‍िया स‍िव‍िल एव‍िएशन म‍िन‍िस्‍टर राम मोहन नायडू ने मंगलवार को सदन में संसद में बताया क‍ि इंड‍िगो के डेली फ्लाइट शेड्यूल में 5% कटौती की गई है अभी इंड‍िगो की तरफ से रोजाना 2300 उड़ान संचाल‍ित की जाती है यानी इस आदेश के बाद अब इंड‍िगो की हर द‍िन 115 फ्लाइट कम हो जाएंगी कम हुई फ्लाइट का शेड्यूल अकासा और एयर इंड‍िया एक्‍सप्रेस जैसी दूसरी एयरलाइन को द‍िया जाएगा

इंड‍िगो संकट पर स‍िव‍िल एव‍िएशन म‍िन‍िस्‍टर राम मोहन नायडू ने संसद में बोलते हुए कहा क‍ि एयरलाइन की तरफ से लगातार यात्र‍ियों का र‍िफंड प्रोसेस क‍िया जा रहा है उन्‍होंने बताया क‍ि इंड‍िगो के बड़े अध‍िकार‍ियों को नोट‍िस जारी क‍िया गया है उन्‍होंने कहा प‍िछले कुछ द‍िन में ब‍िगड़े हालात पर इंड‍िगो की ज‍िम्‍मेदारी तय की जाएगी लोगों की सुरक्षा से क‍िसी भी तरह समझौता नहीं क‍िया जाएगा यात्र‍ियों को सरकार की तरफ से लगातार मदद की जा रही है सरकार की तरफ से जो कदम उठाए गए हैं, उनके आधार पर धीरे-धीरे हालात सामान्‍य हो रहे हैं

इंडिगो एयरलाइन को डीजीसीए का बड़ा झटका
इससे पहले डीजीसीए (DGCA)ने इंडिगो एयरलाइन को बड़ा झटका दिया है
 डीजीसीए के एक आदेश के तहत रोजाना 2300 फ्लाइट वाली इंड‍िगो की हर द‍िन 5% फ्लाइट्स कम कर दी यानी अब इंड‍िगो की पहले के मुकाबले 115 फ्लाइट को कम कर द‍िया गया है इतना ही नहीं, यद‍ि हालात में सुधार नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में 5% की कटौती और की जा सकती है सूत्रों के अनुसार, इंडिगो को इस बारे में पहले ही बता दिया गया है कि क‍िन-क‍िन फ्लाइट को बंद करना है लेकिन कोशिश की जा रही है कि छोटे शहरों की कनेक्टिविटी पर असर नहीं पड़े

FDTL के कारण पायलटों की संख्या बढ़ानी थी
दरअसल, नवंबर से लागू नए पायलट ड्यूटी नियम (FDTL) के कारण पायलटों की संख्या ज्यादा चाहिए थी
 लेकिन इंडिगो ने इसके लिए पहले से तैयारी नहीं की थी इसके अलावा इंड‍िगो ने व‍िंटर शेड्यूल में अपनी घरेलू फ्लाइट की संख्‍या 6% तक बढ़ा दीं नतीजा यह हुआ क‍ि दिसंबर के पहले हफ्ते में रोजाना सैकड़ों फ्लाइट्स कैंसिल होने लगीं और एयरपोर्ट पर यात्रियों का गुस्सा फूट पड़ा इंडिगो के उलट एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस ने अपने व‍िंटर शेड्यूल में फ्लाइट की संख्‍या कम की थी

स्पाइसजेट ने 26% फ्लाइट बढ़ाईं
एयर इंडिया ग्रुप ने 3% और अकासा एयर ने 5.7% फ्लाइट को घटाया
 स्पाइसजेट ने 26% तक फ्लाइट बढ़ाईं क्योंकि एयरलाइन की तरफ से अपनी सर्विस को दोबारा शुरू क‍िया जा रहा है सवाल यह उठ रहा है क‍ि डीजीसीए ने इंडिगो को इतनी ज्यादा फ्लाइट को बढ़ाने की इजाजत ही क्‍यों दी, जबकि नए नियम के तहत उसके पास पायलट की कमी थी इंडिगो की तरफ से दी गई सफाई में कहा गया 'तकनीकी गड़बड़ियां, मौसम खराब होना, विंटर शेड्यूल चेंज और नए FDTL नियम, सभी इश्‍यू एक साथ आ गए, जिससे परेशानी बढ़ गई'

नए FDTL नियम इंडिगो के A320 फ्लीट के लिए 10 फरवरी 2026 तक होल्‍ड कर दिये गए हैं फिर भी मिनिस्ट्री की तरफ से कहा गया क‍ि इंडिगो के खिलाफ 'सख्‍त कार्रवाई' की जाएगी

चुनाव affadavit में गलत शिक्षा की जानकारी देने पर भी केस दर्ज हो; क्या समस्या है जांच करने में कि “सोनिया गांधी का नाम बिना नागरिकता लिए वोटर लिस्ट में जोड़ा गया”

सुभाष चन्द्र

2014 चुनाव से पहले तथाकथित नेहरू-गाँधी परिवार किसी राजा-रजवाड़े से कम नहीं समझता था। वही बीमारी आज तक चल रही है। और उसी घुमारी में राहुल गाँधी की बौखलाहट ही परिवार को संकट में डाल रही है। हवाई जहाज में जन्मदिन मनते थे, विक्रांत में बैठ मौज मस्ती की जाती थी। राहुल गाँधी और इसके गुलाम जो वोट चोरी का शोर मचाते हैं सोनिया के खिलाफ दर्ज केस सबके मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है। राहुल द्वारा संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करने की असली वजह परिवार द्वारा की गयी घोटाले नहीं खुलने की वजह है। इतना ही नहीं चुनाव नामांकन में दर्ज गलत एजुकेशनल जानकारी पर भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए। जिसकी शिकायत डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी को लिखित में दी थी, और जब अध्यक्ष द्वारा सोनिया से पूछने पर सोनिया ने कहा "typing mistake" कहा था। तत्कालीन अध्यक्ष ने मामले को रफादफा कर दिया। सोनिया ने कभी कॉलेज में कदम नहीं रखा।     

विकास त्रिपाठी, अधिवक्ता और vice president of the Central Delhi Court Bar Association of the Rouse Avenue courts ने मजिस्ट्रेट को शिकायत दर्ज करके कहा कि सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट में 1983 में भारतीय नागरिकता मिलने के 3 साल पहले 1980 और फिर 1983 में शामिल कर दिया गया था। सोनिया को नागरिकता मिलने की तारीख है 30 अप्रैल 1983

अपने 11 सितंबर, 2025 के आदेश में मजिस्ट्रेट ने बढ़िया अंग्रेजी लिख कर शिकायत खारिज करते हुए कहा “the complaint was "fashioned with the object of clothing the court with jurisdiction through allegations which are legally untenable, deficient in substance, and beyond the scope of this forum's authority". 

मजिस्ट्रेट ने आगे और भी कहा कि "mere bald assertions, unaccompanied by the essential particulars required to attract the statutory elements of cheating and forgery" cannot substitute a legally sustainable accusation.

The plea was merely relying upon an extract of the electoral roll, which was "a photocopy of a photocopy of an alleged extract of an uncertified electoral roll" of 1980”.

लेखक 
चर्चित YouTuber 
चाहे फोटोकॉपी की फोटोकॉपी थी, लेकिन यह जांच भी तो की जा सकती है कि 1980 और 1983 के शुरू में वोटर लिस्ट में सोनिया गांधी का नाम था या नहीं और इसका उत्तर तो जांच में चुनाव आयोग ही दे सकता है। फिर मजिस्ट्रेट को जांच के आदेश देने में क्या समस्या थी?

लगता है मजिस्ट्रेट ने कांग्रेस के लिए अपनी श्रद्धा भक्ति के सबूत दे दिए और बता दिया कि वह बहुत ऊपर तक जाएगा। मजिस्ट्रेट के आदेश के खिलाफ स्पेशल जज विशाल गोगने ने सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है और अगली तारीख 6 जनवरी तय की है। 

इसी के लिए SIR की जरूरत होती है लेकिन कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने तो SIR को ही गैर संवैधानिक बताते हुए कहा है कि किसी कानून में SIR का प्रावधान नहीं है। मतलब सुप्रीम कोर्ट जो कह रहा है कि SIR करना चुनाव आयोग का दायित्व है, वो भी कानून के खिलाफ भाषा बोल रहा है

प्रियंका वाड्रा अपनी माँ का बचाव करते हुए दावा कर रही है कि सोनिया गांधी ने नागरिकता मिलने के बाद ही वोट दिया था। फिर यह खुद ही बता दो कि नागरिकता कब मिली और सबसे पहली बार वोट कब डाला सोनिया गांधी ने? और यह भी बता दो कि राजीव गांधी से 1968 में विवाह के बाद 1983 तक सोनिया गांधी ने नागरिकता क्यों नहीं ली? नागरिकता मांगने पर ही दी जा सकती है, अपने आप कोई सरकार किसी को नागरिकता नहीं देती

मामला अभी तो निचली अदालत में लेकिन जब हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाएगा तो कांग्रेस का वकील अभिषेक मनु सिंघवी दलील देगा कि 45 वर्ष के बाद मामला उठाने का कोई औचित्य नहीं है। शिकायत में अगर दम था तो 1980 में ही करनी चाहिए थी। अब यह शिकायत आधारहीन ही नहीं बल्कि सोनिया गांधी को परेशान करने वाली है

एडवोकेट विकास त्रिपाठी को इस विषय में चुनाव आयोग को भी पार्टी बनाना चाहिए जो सत्यापित कर सके कि सोनिया गांधी का नाम सबसे पहले वोटर लिस्ट में कब जोड़ा गया

हरामफरमोश सलमान रुश्दी को उसके ही toolkit ‘दोस्त’ कर रहे गुमराह, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भारत में कम नहीं हुई है : इतिहास के ‘सच’ को सामने लाना छेड़छाड़ नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सलमान रुश्दी ( फोटो साभार-toi)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘कट्टरपंथियों में भी कट्टरपंथी’ और मोदी समर्थकों को टोडीज करने वाले सलमान रुश्दी एक बार फिर भारत सरकार पर ‘आजादी’ के नाम पर अमेरिका में बैठ कर आलोचना कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके ‘दोस्तों’ से भारत में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को लेकर बात होती है, तो पता चलता है कि उनके बोलने की आजादी सीमित है।

रुश्दी मियां जब 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' नहीं होने पर इतना बहुत कुछ मोदी के खिलाफ इतनी बकवासें की जा रही है। फिर भी बकवास करते हो 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' नहीं शर्म करो। किसी भी विदेशी मेहमान के भारत पर toolkit मैदान में आकर उपद्रव करता है। अगर यही काम तुम्हारे किसी मुस्लिम मुल्क होता हंगामा करने वालों का पता भी नहीं चलता। 

लेकिन उनके दोस्त ये नहीं बताते हैं कि भारत में ‘प्रेस की आजादी’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ ही है कि मोदी सरकार के हर काम पर संसद के अंदर और बाहर बहस होती है। टीवी डिबेट होते हैं और हर किसी को बोलने की आजादी होती है। सोशल मीडिया मोदी विरोधियों के पोस्ट से भरा रहता है। देश में हर बुरे काम के लिए मोदी को जिम्मेदार बताया जाता है। 

यही वजह है कि बिहार चुनाव से पहले जब दिल्ली ब्लास्ट हुआ तो लोगों ने इसे आतंकी घटना मानने में मुँह सिल लिए। कई दिनों तक मुस्लिम आतंकी मॉड्यूल को लेकर खुलासे हुए। एनआईए ने कई सबूत रखे और 3000 किलो अमोनियम नाइट्रेट जमा करने के सबूत दिये, एके-47 जैसे हथियार बरामद किए। लेकिन कांग्रेस और आरजेडी ने तो इसे चुनाव में वोट पाने के लिए ध्रुवीकरण कह कर गला फाड़ते ही रहे, बाकी विपक्षी पार्टियों ने भी उनका साथ दिया। इस मामले का पूरा खुलासा होने के बावजूद किसी भी पार्टी ने माफी नहीं माँगी।

पीएम मोदी ने खुद कहा है कि उनके हर काम को सांप्रदायिकता के नजरिए से देखा जाता है और आलोचना की जाती है। प्रधानमंत्री मोदी की हर सामाजिक कल्याण की योजनाएँ सभी धर्मों और जातियों के लिए है। ऐसा नहीं है कि किसी को नाम, जाति, धर्म के आधार पर रोका जाता है। लेकिन देश से घुसपैठियों को हटाने को लेकर अगर मोदी सरकार गंभीर है तो इसमें आपत्ति क्या है।

क्या देश से रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को निकालना गलत है? देश में साजिश के तहत डेमोग्राफी बदलाव हो रहा है। हिमाचल, उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों से लेकर सीमावर्ती इलाकों में डेमोग्राफी बदलने की कोशिश हो रही है। इन पर एक्शन लेना क्या गलत है।

पीएम मोदी ने 2022 में हटवाई थी बैन

‘द सैटेनिक वर्सेज’ के बाद विवादों में आए लेखक सलमान रुश्दी की किताब 36 साल बाद पीएम मोदी ने ही बैन हटवाई थी। पूर्व पीएम राजीव गाँधी की सरकार ने साल 1988 में इस पर मौखिक तौर पर प्रतिबंध लगाया था। उस वक्त कांग्रेस सरकार प्रचंड बहुमत के बाद भी मुस्लिम वोट बैंक की खातिर मौखिक तौर पर प्रतिबंध लगा दिया था। लेकिन पीएम मोदी ने कुछ मुस्लिम संगठनों जैसे ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के विरोध के बावजूद द सेटनिक वर्सेज से प्रतिबंध उठा लिया। इसके बाद इस किताब की भारत में जबरदस्त बिक्री हुई।

भारत में मौखिक तौर पर प्रतिबंध का ये कारनामा कांग्रेस सरकार ने किया था, जिसे कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार कोर्ट में यह साबित नहीं कर पाई कि इस किताब पर कभी प्रतिबंध भी लगा था। इसके बावजूद रुश्दी जैसे बुद्धिजीवियों को कॉन्ग्रेस ‘लोकतांत्रिक’ नजर आती है।

क्या कहा सलमान रुश्दी ने

ताजा मामला सलमान रुश्दी के एक इंटरव्यू के बाद सामने आया है। इसमें उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी पर एक बार फिर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया है। ये इंटरव्यू ब्लूमबर्ग में 5 दिसंबर 2025 को छपा है। ये इंटरव्यू मिशल हुसैन ने लिया है।

इंटरव्यू में पीएम मोदी को लेकर पूछे गए सवाल पर सलमान रुश्दी ने कहा है कि पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी, प्रोफेसर जैसे लोग भारत में परेशान हैं क्योंकि उन्हें पूरी ‘आजादी’ नहीं है।

ये पहला मौका नहीं है जब सलमान रुश्दी ने पीएम मोदी की आलोचना की हो। 2014 से पीएम बनने के बाद से उन्होंने कई मौकों पर पीएम मोदी की आलोचना की है। यहाँ तक प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर चिंता जताई थी और कहा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में जनता की अभिव्यक्ति औ साहित्यिक गतिविधियों की आजादी खतरे में पड़ जा सकती है।

रुश्दी के मुताबिक उनके कई दोस्त, जो भारत में ही रहते हैं, उनसे बात होती है और ये जानकारी उन्होंने दी है। इस दौरान उन्होंने नायपॉल का जिक्र किया और कहा कि मोदी सरकार इतिहास से छेड़छाड़ कर रही है।

उन्होंने कहा कि मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वालों का कहना है कि उनकी सरकार ने लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किया है और प्रेस, सिविल सोसाइटी ग्रुप्स और राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई की है। फिर भी, चुनाव होते हैं, भारतीय मीडिया आउटलेट्स को पब्लिश करने के लिए परमिशन की जरूरत नहीं होती है और बुनियादी अधिकारों की संवैधानिक गारंटी लागू रहती है।

रुश्दी के मुताबिक, ऐसा लगता है कि देश का इतिहास फिर से लिखने की इच्छा है, असल में हिंदुओं को अच्छा, मुसलमानों को बुरा कहना गलत है। यह विचार कि भारत एक हिंदू सभ्यता है जो मुसलमानों के आने से घायल हो गई है। इसे साबित करने के लिए बहुत एनर्जी लगी है। वी.एस. नायपॉल ने एक बार इसे ‘घायल सभ्यता’ कहा था।

सलमान रुश्दी उन पत्रकारों में शामिल हैं जिन्होंने ‘डिवाइन इन चीफ ‘ लिखने वाले पत्रकार आतिश तासीर की OCI रद्द करने पर मोदी सरकार को पत्र लिखा था।

दादरी हत्याकांड और पाकिस्तानी गायक गुलाम अली के भारत में विरोध जैसी घटनाओं पर नाराज होकर अशोक वाजपेयी और नयनतारा सहगल समेत 40 साहित्यकारों ने अपना सम्मान लौटाया, तो सलमान रुश्दी ने भी उनका साथ दिया और सरकार के खिलाफ विरोध दर्ज कराया।

मोदी सरकार के खिलाफ जब भी मौका मिला, रुश्दी ने अपनी आवाज बुलंद की। मोदी विरोधी हर प्रोपेगेंडा का उन्होंने समर्थन किया। फिर भी ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ की कमी उन्हें भारत में नजर आती है। मोदी सरकार में भारत में बोलने की आजादी इतनी है कि हर कोई अपनी बात बेखौफ कह सकता है, चाहे वह मोदी समर्थक हो या मोदी विरोधी।

प्रधानमंत्री मोदी पर आपत्तिजनक पोस्ट : PAK से समर्थन और बीमारी के बहाने बचने की कोशिश करने वाली नेहा सिंह राठौर की जमानत याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की खारिज

नेहा सिंह राठौर और इलाहाबाद हाईकोर्ट (फोटो साभार: इंडिया टीवी)
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने लोक गायिका नेहा सिंह राठौर द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है। दरअसल, नेहा सिंह राठौर के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पहलगाम आतंकी हमले को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में FIR दर्ज की गई थी। इसी मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए नेहा हाई कोर्ट पहुँची थीं।

नेहा सिंह राठौर पर क्या हैं आरोप?

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 पन्नों के आदेश में नेहा पर लगाए आरोपों की जानकारी दी गई है। आदेश के मुताबिक, 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने धर्म पूछकर हिंदू पर्यटकों को गोली मार दी थी जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हो गई। भारत सरकार भी इस हमले का बदला लेने की तैयारी करते हुए Indus Water Treaty को रोकने समेत पाकिस्तान पर कई कड़े कदम उठाए।

आदेश में कहा गया है, “इसी माहौल में लोकगायिका और स्वयं को कवयित्री बताने वाली नेहा सिंह राठौर अपने X अकाउंट (Neha Singh Rathore @nehafolksinger) से लगातार ऐसे आपत्तिजनक पोस्ट कर रही थीं जो राष्ट्रीय एकता के खिलाफ थे और जो लोगों को धर्म और जाति के आधार पर एक-दूसरे के खिलाफ अपराध करने के लिए भड़का सकते हैं। सोशल मीडिया पर उनके द्वारा कई वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं।”

साथ ही, पाकिस्तान में नेहा सिंह राठौर के वायरल बयानों का भी जिक्र किया गया है। आदेश में लिखा है, “नेहा राठौर के सभी भारत विरोधी बयान पाकिस्तान में लगातार वायरल हो रहे हैं और वहाँ उनकी तारीफ की जा रही है। पाकिस्तान की मीडिया इन देश-विरोधी बयानों का इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर रही है और भारत पर सवाल उठाए जा रहे हैं। नेहा सिंह राठौर के भारत विरोधी बयानों से भारत के कवि समुदाय की प्रतिष्ठा ही नहीं बल्कि पूरे देश का सम्मान भी आहत हो रहा है।”

नेहा सिंह राठौर के वकील ने दीं क्या दलीलें?

नेहा सिंह राठौर के वकील ने अपने पक्ष में दलीलें देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया। वकील ने 2001 के आनंद चिंतामणि दिघे और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य फैसले का हवाला दिया। इसमें कहा गया है, “भारत के संविधान के आर्टिकल 19(1)(a) के तहत बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी को मौजूदा नजरिए से पढ़ा जाना चाहिए और सरकार के काम के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब यह नहीं है कि एप्लीकेंट (नेहा) ने देश के खिलाफ कोई अपराध किया है।”

साथ ही, वकील ने 2025 के इमरान प्रतापगढ़ी बनाम गुजरात राज्य और अन्य फैसले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का भी हवाला दिया है। इसमें कहा गया है, “विचारों और नजरियों को व्यक्त करने की आजादी के बिना, भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत सम्मानजनक जीवन जीना नामुमकिन है।” वकील ने कहा, “एप्लीकेंट द्वारा इस्तेमाल किया गया ट्विटर हैंडल अभिव्यक्ति की आज़ादी की गारंटी देता है और उसने जो कुछ भी कहा है, वह सरकार के खिलाफ उसकी असहमति वाली आवाज़ है और इसे देशद्रोह के आरोप के तौर पर नहीं माना जाना चाहिए।”

सरकार के वकील ने क्या कहा?

वहीं, सरकार के वकील ने नेहा सिंह राठौर द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही दायर की गई इसी केस से जुड़ी FIR रद्द करने की पुरानी याचिका का हवाला दिया। वकील ने बताया कि कोर्ट ने लोक गायिका की पुरानी याचिका खारिज कर उन्हें मामले में सहयोग देने को कहा गया था। हालाँकि, इसके खिलाफ नेहा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था और वहाँ भी उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी। वकील ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भी हवाला दिया।

वकील ने नेहा की अग्रिम जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें FIR में लगे आरोपों से जुड़े मुद्दों को आरोप तय किए जाते समय उठाने की आजादी दी थी। अगर चार्जशीट दाखिल हो चुकी है तो उचित समय पर अदालत में डिस्चार्ज की माँग कर सकती थीं। इसलिए हाई कोर्ट को अभी इस मामले पर विचार नहीं करना चाहिए।

सरकारी वकील ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज किए जाने के बाद आवेदक को जाँच अधिकारी के सामने पेश होना चाहिए था लेकिन वह पुलिस जाँच से बच रही हैं। इसलिए, उन्हें किसी भी तरह की राहत नहीं मिलनी चाहिए। साथ ही, इस आदेश में नेहा का कुछ ट्वीट्स को भी जिक्र किया गया है।

नेहा सिंह राठौर के ट्वीट्स (फोटो साभार: इलाहाबाद हाईकोर्ट)

बीमारी का बहाना कर जाँच से बच रहीं नेहा

कोर्ट के आदेश में हजरतगंज के थाना प्रभारी द्वारा 27 नवंबर 2025 को भेजे गए लिखित निर्देशों का भी जिक्र किया गया है। इसमें लिखा है, “नेहा सिंह राठौर की गिरफ्तारी के प्रयास जारी हैं। नेहा को उपस्थित होने के निर्देश दिए गए थे लेकिन वह बीमारी का बहाना बनाते हुए उपस्थित नहीं हुई। उनके ठिकानों पर दबिश दी गई है लेकिन उनकी कोई जानकारी नहीं मिली है। नेहा सिंह राठौर बार-बार अपना निवास बदल रही है।”

पाकिस्तान में नेहा का समर्थन

सरकारी वकील ने आगे कहा कि आवेदक का ट्विटर अकाउंट दुनिया भर में खासकर पाकिस्तान में बहुत प्रसिद्ध हो चुका है और जाँच के दौरान पाकिस्तान से भी बहुत सारे पोस्ट मिले हैं जो आवेदक के ट्वीट्स का समर्थन कर रहे हैं। वकील के मुताबिक, पहलगाम आतंकी हमले के बाद उस समय देश की सुरक्षा और अखंडता खतरे में थी और सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए हर संभव कदम उठाए थे लेकिन नेहा ने संवेदनशील स्थिति में ही ट्वीट करने शुरू कर दिए थे। ऐसे ट्वीट लोगों की भावनाओं को भड़का सकते थे।

सरकारी वकील ने यह भी दावा किया कि ऐसा लगता है कि नेहा की भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं जैसे प्रधानमंत्री के प्रति मंशा सही नहीं थी। वकील ने कहा, “उन्होंने (नेहा) हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच नफरत पैदा करने की भी कोशिश की ताकि देश का बुनियादी सामाजिक ताना-बाना बिगड़ सके।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा?

हाईकोर्ट ने कहा कि FIR को दर्ज हुए 7 महीने से अधिक का समय बीत गया है लेकिन नेहा अभी भी जाँच में सहयोग नहीं कर रही हैं। कोर्ट ने कहा, “जहाँ तक अग्रिम जमानत का सवाल है, संविधान के अनुच्छेद 19 से नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मिलता है लेकिन यह अधिकार लोक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता के लिए लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन होता है।”

जस्टिस सिंह ने कहा कि आवेदक ने कुछ ट्वीट उस संवेदनशील समय पर किए थे जब पहलगाम का दुर्भाग्यपूर्ण हमला हुआ था। कोर्ट ने कहा, “केस डायरी और FIR दोनों से यह पता चलता है कि आवेदक द्वारा किए गए ट्वीट भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ थे। प्रधानमंत्री का नाम अनादरपूर्ण तरीके से इस्तेमाल किया गया था।”

जस्टिस ब्रज लाल ने कहा कि 27 नवंबर के निर्देश और रिकॉर्ड देखने के बाद पता चलता है कि आवेदक (नेहा) जाँच में सहयोग नहीं कर रही हैं। उन्होंने कहा, “नेहा की FIR के खिलाफ दर्ज की गई रिट याचिका को इसी कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज किया था कि वहा जाँच में सहयोग करेंगी और जाँच अधिकारी के सामने पेश होंगी।” साथ ही, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी SLP पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।

हाईकोर्ट ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट ने आवेदक द्वारा दायर की गई स्पेशल लीव पिटिशन में यह कहा कि उस समय याचिकाकर्ता के वकील की दलीलें सुनने के बाद भी बगावत (mutiny) और अन्य धाराओं के तहत लगे आरोपों को रद्द करने का कोई आधार नहीं बनता था। इससे साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि जिस FIR को आवेदक ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी, उसमें उसकी दलीलों में दम नहीं है।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नेहा सिंह राठौर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी और कहा कि वह कानून के दायरे में कोई भी दूसरा उपाय अपना सकती हैं।

10 जनपथ से सोनिया ने एक और शिकार किया; डॉ सिद्धू ने जुबान खोली और फ़ना कर दी गई; फिर कहते हैं मोदी ने बोलने की आज़ादी छीन रखी है

सुभाष चन्द्र
नवजोत सिंह सिद्धू की बीबी नवजोत कौर द्वारा कांग्रेस में और कांग्रेस राज में फैले भ्रष्टाचार पर से चादर हटाते ही कांग्रेस में भूचाल आना ही था। शायद यही वजह है कि परिवार के पास खजाने की खान होने की वजह से गुलाम अपने आकाओं की गुलामी करते हैं। इस पर याद आता है कि जब दिल्ली में मटिया महल विधान सभा से आम आदमी पार्टी से विधायक बने असीम अहमद साफ कहता था कि टिकट लेने से चुनाव लड़ने तक जो रूपया खर्च किया है पहले उसे तो वसूल लूँ। अंजाम यह हुआ अगले चुनाव में केजरीवाल ने उसे टिकट नहीं दिया। 

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चर्चित YouTuber 
नवजोत सिंह सिद्धू की बीवी डॉ नवजोत कौर सिद्धू ने जुबान खोली कि कांग्रेस में वो ही CM बन सकता है जो 500 करोड़ रुपए अटैची में भर कर ऊपर तक पहुंचाए। मतलब साफ़ है 500 करोड़ 10 जनपथ जाता है। बस इतना कहना था कि डॉ सिद्दू को तुरंत प्रभाव से पार्टी से सस्पेंड कर दिया गया

लेकिन डॉ सिद्धू ने स्पष्टीकरण दिया है जैसे हर नेता देता है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया। उनका मतलब था हमारे पास पैसा देने के लिए नहीं है, औरों के पास हो सकता है और उनके पति तब तक राजनीति में वापस नहीं आएंगे जब तक कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए प्रोजेक्ट न कर दे। आजकल यह ट्रेंड बन गया है कि जो कहना है वह कह दो और फिर स्पष्टीकरण दे दो कि मेरी बात का गलत मतलब निकाला गया या मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया

मैडम सिद्धू बात को घुमाइए मत। आप स्वीकार कर रही है कि आपके पति भाजपा छोड़ कर सोनिया के चरणों में इसलिए ही गए थे जब उन्हें भरोसा था कि वो 500 करोड़ का जुगाड़ कर लेंगे क्योंकि कांग्रेस संस्कृति में यह कोई नई बात तो है नहीं। आप एक बार अपने पति से पूछ कर ये और बता दो कि भाजपा से राज्यसभा में जाने के लिए कितना चढ़ावा देना पड़ा था और भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में जाने के लिए क्या ऑफर मिला था कांग्रेस से?

लेकिन आज ही यह कहने की जरूरत आपको क्यों पड़ी जब आपके पति न घर के रहे न घाट के। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए निकृष्ट टिप्पणियां करके स्वयं ही भाजपा में आने के मार्ग बंद कर लिए। वैसे भी कांग्रेस में रहते हुए उनके बारे में रोज खबरे बाजार में रहती थी कि वो केजरीवाल के चरणों में जा रहे हैं। 

कांग्रेस में डॉ सिद्धू पहली नेता नहीं है जो कोई बयान देने पर सस्पेंड हुई हों, कांग्रेस में ऐसे नेताओं की लाइन लगी हुई है। कांग्रेस पार्टी का अपने आप में और कांग्रेस की किसी भी सरकार में भ्रष्टाचार से गहरा नाता रहा है। कोई भी नेता गद्दी पर बैठते ही माल कमाने के तरीके अमल में लाने शुरू कर देता है जिसके लिए हर तरह की प्लानिंग तैयार रहती है कांग्रेस में। राज्य चाहे भाड़ में जाए लेकिन हाई कमांड तक माल पहुँचने में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए

कांग्रेस ने पैसा कमाने के ऐसे कांड किए हुए हैं जो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। मनरेगा जैसी योजना में ही लाखों फर्जी लोगों के खाते चल रहे थे जिसका पैसा सीधा पार्टी को जाता रहा है और ये बीमारी TMC ने भी अपना ली थी।

 

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अंग्रेजों ने भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटा था। नेहरू और फर्जी गांधी परिवार ने पिछले 75 साल में न जाने कितने ट्रिलियन डॉलर लूटे होंगे, कोई कल्पना नहीं कर सकता। ये कोई अंग्रेजों से कम थोड़े हैं। अंग्रेजों ने लूटा था भारत को लेकिन आज वो ही बर्बाद हो रहा है और कल ये फर्जी गांधी भी बर्बाद होंगे क्योंकि कालचक्र तो पूरा होकर रहता है