कार्तिगई दीपम विवाद, प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो साभार: AI ChatGPT)
तमिलनाडु के प्राचीन थिरुप्परनकुंद्रम मंदिर में कार्तिगई दीपम उत्सव के दौरान एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया। मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने 1 दिसंबर 2025 को स्पष्ट आदेश दिया था कि थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी के शिखर पर स्थित प्राचीन ‘दीपाथून’ स्तंभ पर पवित्र दीप जलाया जाए। लेकिन डीएमके सरकार ने इस आदेश की खुलेआम अवहेलना की।
बुधवार (3 दिसंबर 2025) की शाम 6 बजे दीप जलाने का समय था, लेकिन मंदिर प्रशासन ने पारंपरिक तरीके से उचीपिल्लैयार मंदिर के पास ही दीप जला दिया, जो पहाड़ी के नीचे है। इससे नाराज हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच झड़पें हो गईं। कोर्ट ने सरकार को ‘जानबूझकर अवज्ञा’ का दोषी ठहराया और कहा कि यह लोकतंत्र के लिए खतरा है।
यह घटना सिर्फ एक धार्मिक रस्म का मामला नहीं है। यह तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत, अदालती आदेशों की मर्यादा और राजनीतिक साजिशों का मिश्रण है। डीएमके सरकार पर हिंदू विरोधी होने का पुराना आरोप लगता रहा है। विपक्षी भाजपा और हिंदू संगठन इसे सनातन धर्म के खिलाफ साजिश बता रहे हैं।
याचिकाकर्ता राम रविकुमार ने कोर्ट में कहा कि मंदिर प्रशासन ने दीपाथून पर कोई इंतजाम नहीं किया। जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने 1 दिसंबर 2025 को आदेश दिया कि दीप जलाया जाए, क्योंकि यह मंदिर की संपत्ति है। उन्होंने साल 1923 के एक कोर्ट डिक्री का हवाला दिया, जिसपर प्रिवी काउंसिल ने भी मुहर लगाई थी।
हाई कोर्ट के आदेश के बाद बुधवार (03 दिसंबर 2025) की शाम को जब हिंदू कार्तिगई दीपम के लिए पहाड़ी पर चढ़ने लगे, तो उन्हें रोक लिया गया। हाई कोर्ट के आदेश की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई। सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) को सुरक्षा के लिए तैनात किया गया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने धारा 144 लगा दी। हिंदू संगठनों के कार्यकर्ताओं ने बैरिकेड तोड़े, पत्थर फेंके और नारेबाजी की।
एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, दर्जनों लोग घायल हुए। कोर्ट ने इसे ‘अवमानना’ करार दिया और कहा, “यह आदेश की खुली अवहेलना है। लोकतंत्र का अंत हो जाएगा अगर अधिकारी कानून से ऊपर समझें।” जस्टिस स्वामीनाथन ने याचिकाकर्ता को 10 लोगों के साथ प्रतीकात्मक रूप से दीप जलाने की इजाजत दी और सीआईएसएफ को सुरक्षा का आदेश दिया। लेकिन अपील के बाद पुलिस ने सबको रोक लिया। हालाँकि अब गुरुवार (04 दिसंबर 2025) को कोर्ट ने इस मामले में अवमानना की कार्रवाई शुरू कर दी है।
सरकार के सूत्रों ने सफाई दी कि वे हिंदुओं के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि शांति बनाए रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि कोई सच्चा भक्त कोर्ट नहीं गया और 100 साल पुरानी परंपरा का पालन हो रहा है। लेकिन भाजपा नेता के.अन्नामलई ने कहा, “डीएमके का सनातन धर्म से दुश्मनी अब छिपी नहीं। हिंदू धार्मिक निधि विभाग खुद भक्तों के खिलाफ अपील कर रहा है।”
कार्तिगई दीपम को लेकर विवाद क्या? क्यों DMK सरकार कर रही हिंदुओं का दमन
कार्तिगई दीपम तमिलनाडु का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो कार्तिगई मास की पहली पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह प्रकाश के विजय का प्रतीक है। थिरुप्परनकुंद्रम सुब्रमण्या स्वामी मंदिर भगवान मुरुगन के छह प्रमुख निवास स्थान में से पहला है, इस उत्सव का केंद्र रहा है।
थिरुप्परनकुंद्रम सुब्रमण्या स्वामी मंदिर छठी शताब्दी में पांड्य राजाओं द्वारा बनाया गया था और पहाड़ी को काटकर तराशा गया है। मंदिर के पुजारी रोजाना तीन बार पूजा करते हैं, जिसमें अभिषेक, अलंकरण, नैवेद्य और दीप आराधना शामिल है। ये प्रक्रिया अब भी जारी है।
लेकिन बीते कुछ समय से इस्लामी कट्टरपंथी इस पहाड़ी पर कब्जे और इसके नाम बदलने की कोशिश में हैं। कुछ समय पहले मुस्लिम प्रदर्शनकारियों ने पहाड़ी पर नमाज की माँग की, लेकिन पुलिस ने रोक दिया।
प्रिवी काउंसिल का फैसला और ‘सिकंदर हिल्स’ का दावा
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी का इतिहास संगम युग तक जाता है। संत नक्कीरार ने भगवान मुरुगन के 6 पवित्र निवासों में इसे पहला बताया है। यह तेवर स्थलम भी है, जहाँ शिव और मुरुगन की पूजा होती है। पहाड़ी 500 फुट ऊँची है और मंदिर चट्टान को काटकर बनाया गया। भक्त घिरी वीधी (परिक्रमा पथ) पर चक्कर लगाते हैं, जो मंदिर की संपत्ति है।
विवाद की जड़ 19वीं-20वीं शताब्दी के मुस्लिम दावों में है। कुछ लोग इसे ‘सिकंदर हिल्स’ कहते हैं, लेकिन 1931 में प्रिवी काउंसिल ने साफ किया कि यह मंदिर की संपत्ति है। पाँच सदस्यीय पैनल ने कहा, “पहाड़ी का खाली हिस्सा समय से परे मंदिर के कब्जे में है।”
प्रिवी काउंसिल ने 1923 के अधीनस्थ जज के फैसले को बहाल किया, जिसमें मस्जिद स्थल को छोड़कर पूरी पहाड़ी मंदिर की बताई गई। प्रिवी काउंसिल ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का हवाला दिया, जिसमें 1144 का दस्तावेज ‘मलाईप्रकरम’ (पहाड़ी परिक्रमा) का जिक्र है।
फैसले में कहा गया कि मुगल आक्रमणकारियों ने राजस्व भूमि छीनी, लेकिन मंदिर या पहाड़ी कभी धर्मनिरपेक्ष हाथों में नहीं गई। कुछ मस्जिदें और घर बने, लेकिन वे हिंदुओं पर जबरन कब्जे का परिणाम था। इसके अलावा ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी मंदिर के अधिकार मान्य किए थे। फैसले में प्रिवी काउंसिल ने लिखा, “कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने पवित्र पहाड़ी में हस्तक्षेप किया।” यह फैसला 2025 में भी प्रासंगिक है, क्योंकि जस्टिस स्वामीनाथन ने इसे ही आधार बनाया।
जस्टिस स्वामीनाथन के फैसले को नहीं मान रही डीएमके सरकार
हालाँकि हिंदू-विरोधी मिजाज वाली सत्ताधारी द्रविड़ मुनेत्र कढ़गम (डीएमके) सरकार ने कानून-व्यवस्था के नाम पर 1 दिसंबर 0025 के कोर्ट के निर्देश को चुनौती दी है। मामला तब और बिगड़ा जब याचिकाकर्ता राम रविकुमार सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ) के जवानो के साथ कोर्ट के फैसले पर पहाड़ी चढ़ने लगे।
लेकिन मदुरै के पुलिस कमिश्नर जे. लोगनाथन के नेतृत्व वाली राज्य पुलिस ने हस्तक्षेप किया और उन्हें रोक दिया। मदुरै जिला कलेक्टर ने रोकथाम वाले आदेश जारी किए थे, दावा किया कि जनता की सुरक्षा और मौजूदा कानून-व्यवस्था की स्थिति खतरे में है।
हिंदू मुननेत्र मंड्रम संगठन के सदस्यों और अन्य कार्यकर्ताओं ने मंदिर के सामने इकट्ठा होकर मांग की कि कोर्ट के निर्देशित स्थान पर दीप जलाया जाए। कुछ लोग पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश में लगे। इससे धक्का-मुक्की हुई और एक पुलिसकर्मी घायल हो गया। हिंदू मुननेत्र मंड्रम के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मंदिर प्रशासन ने हाईकोर्ट के फैसले का पालन करने के लिए बिल्कुल कोई इंतजाम नहीं किया।
खास बात ये है कि मंदिर प्रबंधन ने पहले ही कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी, दावा किया कि इससे सांप्रदायिक सौहार्द खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन जज स्वामीनाथन ने सख्त हिदायत दी थी कि शाम 6 बजे तक दीप जलाना है, वरना 6:05 बजे अवमानना की कार्रवाई शुरू हो जाएगी। इसके बावजूद डीएमके सरकार और प्रशासन ने कोर्ट की नहीं सुनी।
हिंदुओं को नीचा दिखाकर मुस्लिमों का पक्ष ले रही DMK सरकार
डीएमके सरकार का ये रवैया चिंताजनक तो है, लेकिन हैरान करने वाला नहीं, क्योंकि हिंदू-नफरत करने वाली द्रविड़ पार्टी का इतिहास यही है। राज्य सरकार और हिंदू धार्मिक तथा चैरिटेबल एंडोमेंट्स विभाग ने पहले ही फैसले के खिलाफ अपील कर दी है। ऊपर से डीएमके और उसके सहयोगी जिला प्रशासन से कह रहे हैं कि कोर्ट के आदेश का पालन न करें।
डीएमके कोर्ट के आदेश तोड़ने के लिए बिना झिझक तैयार है, सिर्फ हिंदू धर्म के प्रति अपनी घृणा दिखाने के लिए। न्यायपालिका ने तथ्यों और सबूतों के आधार पर हिंदुओं का साथ दिया है, लेकिन सरकार सांप्रदायिक सौहार्द का विकृत कथा चलाने पर तुली है। उनकी टेढ़ी नजर में सहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता तभी बनी रहती है जब हिंदुओं के खर्च पर हो और उनके धार्मिक अधिकारों पर कब्जा हो।
वहीं, जब डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) (बैन हो चुके पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के राजनीतिक विंग) ने जब इस पवित्र स्थान पर जानवरों की कुर्बानी की कोशिश की, तो ये मूल्य कभी खतरे में नहीं पड़े। जब इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) के नेता और रामनाथपुरम सांसद के. नावास कानी (आईएमयूएल) ने एक अन्य विधायक और समर्थकों के साथ पवित्र पहाड़ी पर नॉन-वेज बिरयानी खाई, तो भी खतरा नहीं था। कानी ने यहाँ तक घोषणा कर दी कि जगह वक्फ बोर्ड की है।
दिल्ली के सुल्तानों के प्रतिनिधि के नाम पर इसे सिक्कंदर हिल्स नाम देने की कोशिशें भी चल रही थीं, जो मदुरै पर शासन करते थे, जिससे हिंदुओं ने विरोध किया। डीएमके ने इन उकसाने वाली हरकतों को सौहार्द और शांति के लिए खतरा नहीं माना, सिर्फ इसलिए क्योंकि हिंदू धर्म का एक बड़ा हिस्सा अपमानित हो रहा था, जिसे पार्टी चुपचाप समर्थन देती है। लेकिन जब हिंदू कानूनी तरीके से अपने अधिकारों के लिए लड़ते हैं, तो इनपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ता है।
इसी तरह, हाईकोर्ट द्वारा इसे हिंदू मंदिर घोषित करने के बाद भी मुस्लिमों का पहाड़ी पर अवैध कब्जा जारी है और डीएमके सरकार ने इन उल्लंघनों को बर्दाश्त किया है।
द्रविड़वाद के झंडाबरदार हमेशा थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी से जुड़े झूठे मुस्लिम दावों का साथ देते रहे हैं और असली हिंदू चिंताओं तथा वैध अधिकारों का विरोध करते रहे हैं। यहाँ तक कि अपने प्रभाव वाले मीडिया आउटलेट्स के जरिए मामले को राजनीतिक रंग भी देने की कोशिश करती है, ताकि मुस्लिम उसके पक्ष में लामबंद हो सकें।
ऐसे ही एक मामले में तमिलनाडु सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद हिंदुओं को अन्नदान करने से रोक दिया, जबकि कोर्ट ने सरकार को स्पष्ट तौर पर कहा था कि वो इस काम में अड़ंगा न लगाए। क्योंकि इसकी वजह ये थी कि डीएमके सरकार अपने ईसाई समर्थकों को खुश करने में जुटी रही। ये मामला कुछ ही समय पहले का है।
HC के आदेश का पालन न करने पर DMK पर क्यों उठाई जा रही उंगली?
आप सोच रहे होंगे कि ऐसा सिर्फ सरकार कर रही है, इसका सत्ताधारी डीएमके पार्टी से कोई लेना देना नहीं है। तो हम बता दें कि तमिलनाडु सरकार में हिंदू धार्मिक तथा चैरिटेबल एंडोमेंट्स विभाग नाम से अलग मंत्रालय है। ये मंत्रालय ही हिंदू मंदिरों से जुड़े तमाम फैसले करता है।
मौजूदा समय में थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर स्थित मुरुगन मंदिर में भी प्रशासकों की तैनाती है, जो तमिल नाडु की डीएमके सरकार की तरफ से की गई है। ऐसे में वो डीएमके के निर्देश पर ही हाई कोर्ट तक के फैसले को नहीं मान रहे। यहाँ तक कि हाई कोर्ट की कार्यवाही तक से गैर-हाजिर रहे। फिर यहाँ खुद मंदिर के प्रशासक को आगे बढ़कर हिंदुओं के हित में काम करना चाहिए था और हाई कोर्ट का आदेश भी था, लेकिन यहाँ सरकार द्वारा बिठाया मंदिर प्रशासक ही हिंदू विरोधी डीएमके सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में जुटा रहा।
इतना ही नहीं, एक तरफ तो वो खुलकर हिंदू विरोध करती है, तो दूसरी तरह हिंदू मंदिरों के पैसों को डकार भी जाती है। इन सब बातों को जानते हुए भी डीएमके को कब तक नजरअंजाद किया जाए? जब उसका अतीत ही हिंदू और सनातन विरोध से भरा पड़ा है।
सनातन का बार-बार अपमान करती रही है डीएमके
बीते कुछ समय के घटनाक्रम को देखें तो डीएमके सांप्रदायिक सौहार्द या कानून-व्यवस्था के पीछे छिप जाती है, लेकिन हिंदू धर्म और उसके अनुयायियों के प्रति अपनी नफरत जाहिर करने से कभी नहीं हिचकिचाई। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के उपमुख्यमंत्री बेटे और ‘गर्वित ईसाई’ उदयनिधि स्टालिन ने 2023 में सनातन धर्म के विनाश की खुली अपील की।
डीएमके सांसद ए राजा ने तो और आगे बढ़कर कहा कि उदयनिधि की अपमानजनक टिप्पणियाँ तो काफी हल्की थीं। सनातन धर्म की तुलना तो एचआईवी और कुष्ठ रोग से तुलना करनी चाहिए। यही नहीं, हिंदू धर्म को जंजीर कहने वाले कमल हासन को डीएमके ने बाकायदा राज्यसभा भी भेजा है। वहीं, डीएमके सरकार के मंत्री ने तो हिंदू धर्म को लेकर सेक्स पोजिशन तक की घटिया टिप्पणी की थी।
डीएमके ने न सिर्फ हिंदू धर्म को निशाना बनाया है, बल्कि ऐसे कदम भी उठाए हैं जो धर्म का अपमान करते हैं। तमिलनाडु सरकार ने जुलाई में चेन्नई के किलपुक में वाडेल्स रोड का नाम बदलकर आर्चबिशप एज्रा सरगुनम रोड रख दिया, जो मृत एंटी-हिंदू ईसाई प्रचारक और बिशप एज्रा सरगुनम को सम्मान देने के लिए था। उसने हिंदुओं को मारने का सार्वजनिक आदेश भी दिया था। यही नहीं, डीएमके सरकार में तो दुर्दांत आतंकियों की भव्य आखिरी यात्रा भी निकलती है, जो कोर्ट से सजा पाए हो।
हिंदुओं से नफरत करने वालों की डीएमके में होती है पूछ
हिंदू धर्म से नफरत करने वाले लोग डीएमके में जगह पाते हैं, क्योंकि पूरी पार्टी अपनी खतरनाक धर्मनिरपेक्षता के बहाने हिंदू-विरोध को मूर्त रूप देती है। वे (डीएमके के लोग) सनातन के कट्टर आलोचक ईवी पेरियार की पूजा करते हैं और अब्राहमिक मजहबों खासकर इस्लाम और ईसाई धर्म को आदर देते हैं।
थिरुप्परनकुंद्रम पहाड़ी पर बार-बार होने वाले टकराव इसी का हिस्सा हैं। डीएमके सरकार हिंदुओं के अधिकारों पर कुचलने के लिए तुली है, भले ही इसके लिए कोर्ट के आदेश तोड़ने पड़ें या उन्हें चुनौती देनी पड़े। इसके अलावा डीएमके या ‘धर्मनिरपेक्ष पार्टियाँ’ कभी मुस्लिमों या अन्य मजहबों के अनुयायियों के साथ ऐसा हौसला नहीं दिखातीं, जो उनकी असली मंशा और मकसद बयान करता है।



