उत्तर प्रदेश : कानपुर में 120 मंदिर बंद मिले: जिन्होंने देवस्थल को बिरयानी की दुकान से लेकर बना दिया कूड़ाघर… वे अब कह रहे हमने कब्जा नहीं किया, हम हैं ‘रखवाले’

कानपुर के मुस्लिम बहुल इलाकों में बंद पड़े 5 मंदिरों में फिर से गूँजेगा शंखनाद, कब्ज़े के शिकार एक मंदिर के आगे मेयर प्रमिला पांडेय (चित्र- वायरल वीडियो स्क्रीनशॉट)
मुस्लिम बहुल इलाकों में मौजूद बंद पड़े हिन्दू मंदिरों को कब्ज़ा मुक्त करवाने की मुहिम अब कानपुर भी पहुँच गई है। यहाँ की मेयर पुलिस फ़ोर्स के साथ शहर के 5 अलग-अलग मंदिरों पर गईं। इन मंदिरों की दुर्दशा पर मेयर ने नाराजगी जताई जिसमें एक के पीछे तो बिरयानी बेची जा रही थी। अब यहाँ की साफ़-सफाई शुरू की जा चुकी है। यहाँ रोज पूजा-अर्चना का ऐलान हुआ है। ऐसे कुल कब्ज़ा प्रभावित मंदिरों की तादाद 100 से अधिक बताई जा रही है। हालाँकि प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद मुस्लिम पक्ष खुद को कब्जेदार नहीं बल्कि मंदिरों का रखवाला बताने में जुट गया है।

दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, बेकनगंज के राम जानकी मंदिर के पीछे रहने वाले नफीस कहते हैं- “मंदिर को जैसे खोलना है, वैसे खोलें। हमको क्या लेना-देना है। मंदिर अलग है, घर अलग है। ये क्षेत्र पहले पुराना सर्राफा था। सारे हिंदू भाई यही रहते थे। फिर वो हिंदू बहुल क्षेत्रों में चले गए। मंदिर चारों तरफ से पैक है। हम लोग मंदिरों की देखभाल करते हैं। 92 के दंगों में हर जगह मंदिरों में तोड़फोड़ हुई। इसको हम लोगों ने बचाया।”

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शनिवार (21 दिसंबर 2024) को कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय 7 थानों की पुलिस फ़ोर्स के साथ मुस्लिम बहुल इलाके बेकनगंज पहुँची। बेकनगंज वही इलाका है जहाँ जून 2022 में मुस्लिम भीड़ ने भाजपा नेत्री नूपुर शर्मा के बयान के विरोध में पुलिस पर हमला कर दिया था। प्रमिला पांडेय को यहाँ कई मंदिरों पर अवैध कब्ज़े की सूचना मिली थी। इसी सूचना पर लगभग आधे घंटे तक वो बेकनगंज में रहीं।

प्रमिला पांडेय ने 30 मिनट के अंदर कुल 5 ऐसे मंदिरों को खोज निकाला जो अवैध कब्ज़े और बदहाली के शिकार हुए थे। इसमें पहले नंबर पर राम जानकी मंदिर है। इस मंदिर पर कानपुर 2022 हिंसा के मुख्य आरोपित मुख़्तार बाबा बिरयानी वाले का कब्ज़ा था। मंदिर के पीछे बिरयानी बनाई जाती थी। स्थानीय लोगों की माना जाए तो लगभग 100 साल पहले वर्ग गज में फैले इस मंदिर का अब बेहद छोटा सा ही हिस्सा शेष बचा है।

वहीं दूसरा मंदिर राधा कृष्ण का है। यह मंदिर बेहद जर्जर हालत में पाया गया। इसी इलाके में तीसरा मंदिर महादेव शिव का मिला। मंदिर में शिवलिंग के अवशेष भर मौजूद मिले। मंदिर के पीछे रिहायशी बस्तियाँ हैं। शिव मंदिर के बाद मेयर व साथ चल रही प्रशासनिक टीम को एक अन्य राधा-कृष्ण मंदिर मिला। इस मंदिर का शटर बंद मिला। शटर खोलने पर अंदर कूड़ा भरा मिला। मेयर प्रमिला ने सभी अवैध कब्जेदारों को फ़ौरन कब्ज़ा हटा लेने का आदेश दिया है। वो मंदिरों की ऐसी हालत देख कर काफी नाराज भी हुईं।

मेयर का ऐलान है कि खोजे जा रहे सभी मंदिरों के जीर्णोद्धार के बाद वहाँ पहले की तरह विधि-विधान से पूजा अर्चना शुरू करवाई जाएगी। मेयर प्रमिला पांडेय ने यह भी कहा कि मंदिर में स्थापित मूर्तियाँ कहाँ गई इसकी जाँच करवाई जाएगी। बताते चलें कि कानपुर नगर निगम के एक सर्वे के मुताबिक शहर के मुस्लिम क्षेत्रों में लगभग 120 मंदिर बंद पड़े हैं। वहीं प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद मुस्लिम पक्ष खुद को कब्जेदार के बजाय मंदिरों का रखवाला बताने में जुट गया है।

गुड़ : सेहत का खजाना


मौसम में बदलाव के साथ ही व्यक्ति की जीवनशैली के अलावा उसके खान-पान की आदतें भी बदलने लगती हैं
 इस समय हम अपनी डाइट में कई ऐसी चीजों को शामिल करते हैं जो बेहतर पोषक तत्वों के साथ-साथ हमें ठंड से भी बचाती हैं जिसमें सर्दियों के मौसम में गुड़ खाना( Benefits of jaggery) काफी फायदेमंद बताया जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार गुड़ खाने से पाचन तंत्र अच्छा रहता है। जिस तरह मूली खाने को हजम करती है और मूली को उसका पत्ता, लेकिन मूली के पत्ते को गुड़ ही हजम करता है।

गुड़ का सेवन अधिकांश लोग ठंड में ही करते हैं वह भी थोड़ी मात्रा में इस सोच के साथ की ज्यादा गुड़ खाने से नुकसान होता है। इसकी प्रवृति गर्म होती है, लेकिन ये एक गलतफहमी है गुड़ हर मौसम में खाया जा सकता है और पुराना गुड़ हमेशा औषधि के रूप में काम करता है।आयुर्वेद संहिता के अनुसार यह शीघ्र पचने वाला, खून बढ़ाने वाला व भूख बढ़ाने वाला होता है। इसके अतिरिक्त गुड़ से बनी चीजों के खाने से बीमारियों में राहत मिलती है।

गर्मियों में कई क्षेत्रों में गुड़ का शरबत भी खूब बिकता है, जिससे बार-बार लगने वाली प्यास और लू में बहुत आराम मिलता है। गर्मियों में बहुत अधिक पानी से होने वाली बीमारी में राहत मिलती है।

- गुड़ में सुक्रोज 59.7 प्रतिशत, ग्लूकोज 21.8 प्रतिशत, खनिज तरल 26प्रतिशत तथा जल अंश 8.86 प्रतिशत मौजूद होते हैं।इसके अलावा गुड़ में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा और ताम्र तत्व भी अच्छी मात्रा में मिलते हैं। इसलिए चाहे हर मौसम में आप गुड़ खाना न पसन्द करें लेकिन ठंड में गुड़ जरूर खाएं।
- यह सेलेनियम के साथ एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है। गुड़ में मध्यम मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस व जस्ता पाया जाता है यही कारण है कि इसका रोजाना सेवन करने वालों का इम्युनिटी पॉवर बढ़ता है। गुड़ में मैग्नेशियम अधिक मात्रा में पाया जाता है इसलिए ये बॉडी को रिचार्ज करता है साथ ही इसे खाने से थकान भी दूर होती है।
- गुड़ और काले तिल के लड्डू खाने से सर्दी में अस्थमा परेशान नहीं करता है। रोजाना गुड़ का सेवन हाइब्लडप्रेशर को कंट्रोल करता है। जिन लोगों को खून की कमी हो उन्हें रोज थोड़ी मात्रा में गुड़ जरूर खाना चाहिए। इससे शरीर में हिमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है।
- गुड़ का हलवा खाने से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर से जहरीले तत्वों को बाहर निकालता है व सर्दियों में, यह शरीर के तापमान को विनियमित करने में मदद करता है। यह लड़कियों के मासिक धर्म को नियमित करने यह मददगार होता है।
- अगर आप गैस या एसिडिटी से परेशान हैं तो खाने के बाद थोड़ा गुड़ जरूर खाएं ऐसा करने से ये दोनों ही समस्याएं नहीं होती हैं। गुड़, सेंधा नमक, काला नमक मिलाकर चाटने से खट्टी डकारें आना बंद हो जाती हैं।
- ठंड में कई लोगों को कान के दर्द की समस्या होने लगती है। ऐसे में कान में सरसो का तेल डालने से व गुड़ और घी मिलाकर खाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।
  • सर्दियों में गुड़ खाने से मांसपेशियों को आराम मिलता है और बेहतर सांस लेने के लिए फेफड़े साफ होते हैं। 

    गुड़ का सेवन कैसे और किसके साथ करें ?

    गुड़ और गर्म पानी:

    सुबह खाली पेट एक छोटा टुकड़ा गुड़ लें और इसके साथ एक गिलास गर्म पानी पिएं। यह शरीर को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता है।

    गुड़ और दूध:

    गुड़ को दूध में मिलाकर पिएं। यह एक पौष्टिक पेय है जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। रात को सोने से पहले गर्म दूध में गुड़ मिलाना फायदेमंद होता है।

    गुड़ और सूखे मेवे:

    गुड़ के साथ सूखे मेवे जैसे बादाम, किशमिश, और अखरोट मिलाकर स्नैक के रूप में लें। यह एक स्वस्थ और ऊर्जा देने वाला नाश्ता है।

    गुड़ और हल्दी

    गुड़ के साथ हल्दी मिलाकर इसका सेवन करें। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और सर्दी-जुकाम से बचाता है।

    गुड़ और दही:

    गुड़ को दही के साथ मिलाकर सेवन करें। यह पाचन को बेहतर बनाता है और शरीर को ठंडक पहुंचाता है।

    गुड़ और फल:

    गुड़ को कटे हुए फलों जैसे सेब, संतरा या पपीता के साथ मिलाकर खाएं। इससे फल की मिठास और बढ़ जाती है।

    गुड़ कब नहीं खाना चाहिए ? 

    गुड़ बहुत से स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में इसका सेवन नहीं करना चाहिए। यहाँ कुछ स्थितियाँ दी गई हैं जब गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए | 

    गर्मी के मौसम में:

    गर्मियों में गुड़ का सेवन करने से शरीर में अधिक गर्मी पैदा हो सकती है, जिससे पित्त का संतुलन बिगड़ सकता है। इस समय ठंडे खाद्य पदार्थों का सेवन करना बेहतर होता है।

    जिगर की समस्याएँ:

    यदि आपको जिगर से संबंधित कोई समस्या है, तो गुड़ का सेवन न करें, क्योंकि यह जिगर पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है।

    पेट की समस्याएँ:

    अगर आपको पेट में जलन, गैस या उल्टी जैसी समस्याएँ हैं, तो गुड़ का सेवन करने से यह समस्याएँ बढ़ सकती हैं।

    हृदय रोग:

    यदि आपको हृदय से संबंधित कोई समस्या है, तो गुड़ का सेवन डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करें।

    प्रेग्नेंसी:

    गर्भवती महिलाओं को गुड़ का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए, क्योंकि अधिक गुड़ खाने से शरीर में गर्मी बढ़ सकती है।

    एलर्जी:

    अगर आपको गुड़ या उसकी किसी सामग्री से एलर्जी है, तो इसका सेवन न करें।

    गुड़ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं। इसलिए, इन बातों का ध्यान रखते हुए ही गुड़ का सेवन करें। किसी भी स्वास्थ्य समस्या के लिए हमेशा डॉक्टर की सलाह लेना बेहतर होता है।

    1. गुड़ का सेवन कब करना चाहिए?

    गुड़ का सेवन सुबह खाली पेट या खाने के बाद करना अच्छा होता है। सुबह इसके सेवन से पाचन तंत्र को बेहतर बनाने में मदद मिलती है, और खाना खाने के बाद यह पाचन एंजाइम्स को सक्रिय करता है।

    2. क्या गुड़ का सेवन वजन घटाने में मदद करता है?

    हाँ, गुड़ का सेवन वजन घटाने में मदद कर सकता है। यह मेटाबॉलिज्म को सुधारता है और भूख को नियंत्रित करता है, जिससे वजन प्रबंधन में सहायता मिलती है।

    3. गुड़ का सेवन करने से कौन-कौन सी स्वास्थ्य समस्याएँ दूर होती हैं?

    गुड़ का सेवन करने से कई स्वास्थ्य समस्याएँ दूर हो सकती हैं। यह पाचन समस्याओं जैसे गैस, कब्ज और अपच में राहत देता है, इसके अलावा, यह ऊर्जा बढ़ाता है, जिससे थकान कम होती है। गुड़ के सूजन-रोधी गुण जोड़ो के दर्द में राहत प्रदान करते हैं और मानसिक तनाव को भी कम करते हैं। 

    4. क्या गुड़ का उपयोग डायबिटीज मरीजों के लिए सुरक्षित है?

    डायबिटीज के मरीजों को गुड़ का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए। गुड़ में चीनी की मात्रा होती है, इसलिए इसे डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही खाना चाहिए।

  • -सर्दियों में ठंडी हवा में नमी कम होती है, जिससे त्वचा की नमी छीन जाती है। गर्म पानी से नहाने से त्वचा रूखी होती है। ऐसे में इस मौसम में गुड़ खाने से त्वचा की चमक बनी रहती है। इसमें मौजूद ग्लाइकोलिक एसिड कोलेजन प्रोडक्शन को बढ़ाता है जो स्किन को एजिंग की समस्या से बचाते हैं। 

‘गृहयुद्ध छेड़ना चाहते हैं राहुल गाँधी’: राहुल को 7 जनवरी को बरेली की कोर्ट में हाजिर होने का आदेश, सरकार बनने पर जाति गिनने और आर्थिक सर्वेक्षण का किया था वादा; सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने परिवार गुलामों ने दलित अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी ऑफिस से फेंकने वाली कांग्रेस किस मुंह से दलित प्रेम दिखा रही है?

कांग्रेस प्रारम्भ से ही जातिगत सियासत से जनता को गुमराह करती है। लेकिन वर्तमान समय में सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्ष बनाने के लिए पार्टी के गुलामों ने तत्कालीन दलित अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी ऑफिस से बाहर फेंक दिया और इस दौरान उनकी धोती तक खुल गयी थी और आज आंबेडकर और जातिगत सियासत से जनता को गुमराह किया जा रहा है। वर्तमान अध्यक्ष दलित मल्लिकार्जुन खड़गे रिमोट से चलने वाले अध्यक्ष हैं। जो परिवार के निर्देश के बिना एक शब्द अपने आप नहीं बोल सकते। यह वह कटु सच्चाई है जिसे INDI गठबंधन का हर घटक अच्छी तरह जानते हुए भी कांग्रेस की पिछलग्गू बने हुए है। गठबंधन के किसी दल में कांग्रेस से यह पूछनी की हिम्मत की इतने वर्ष कांग्रेस के सत्ता में रहते क्यों जाति आधारित पार्टियां बनी?   
खैर, 
कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी को उत्तर प्रदेश की बरेली जिला कोर्ट ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिए गए बयान पर 7 जनवरी 2024 को पेश होने के लिए समन जारी किया है। यह बयान उन्होंने आर्थिक सर्वेक्षण और जातिगत जनगणना को लेकर दिया था।

साभार: सोशल मीडिया  
बरेली की जिला जज कोर्ट ने पंकज पाठक की याचिका पर ये समन जारी किया है। उन्होंने राहुल गाँधी के बयान को ‘देश में गृहयुद्ध छेड़ने की कोशिश’ का आरोप लगाया। उन्होंने याचिका में कहा है, “हमने महसूस किया कि राहुल गाँधी ने चुनावों के दौरान जातिगत जनगणना पर जो बयान दिया था, वह देश में गृह युद्ध शुरू करने की कोशिश जैसा था।”

शुरुआत में यह याचिका एमपी-एमएलए कोर्ट में दायर की गई थी, लेकिन वहाँ इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने जिला जज कोर्ट में अपील की। पंकज पाठक ने बताया, “हमारी अपील वहाँ स्वीकार कर ली गई और राहुल गाँधी को नोटिस जारी किया गया।”

बता दें कि राहुल गाँधी ने अपनी पार्टी का प्रचार करते हुए कहा था कि यदि कॉन्ग्रेस केंद्र में सरकार बनाती है, तो वह वित्तीय और संस्थागत सर्वेक्षण करेगी। इस सर्वेक्षण का उद्देश्य समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को लाभ पहुँचाने के लिए संसाधनों का पुनर्वितरण करना होगा। राहुल ने कहा था, “जितनी आबादी, उतना हक।”

हैदराबाद की एक रैली में राहुल ने कहा था कि कि कांग्रेस सरकार बनने पर सबसे पहले जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इसके बाद आर्थिक और संस्थागत सर्वेक्षण शुरू होगा। राहुल ने कहा, “हम पहले पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यकों और अन्य वर्गों की सही जनसंख्या और उनकी स्थिति जानने के लिए जातिगत जनगणना करेंगे। फिर भारत की संपत्ति, नौकरियाँ और अन्य कल्याणकारी योजनाएँ इन वर्गों की जनसंख्या के अनुपात में बाँटी जाएँगी।”

राहुल गाँधी ने सरकारी और बड़े उद्योगों में पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों की कम भागीदारी को लेकर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “देश की 90 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यकों की है, लेकिन इनका सरकारी नौकरियों और संसाधनों में हिस्सा नहीं है।”

राहुल गाँधी के इस बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के अधिकार घटाने का आरोप लगाते हुए तंज भी कसा था। पीएम मोदी ने कहा था, “पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कहते थे कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है, खासतौर से मुस्लिमों का। लेकिन अब कांग्रेस कह रही है कि आबादी तय करेगी कि किसे पहले अधिकार मिलेंगे। क्या कांग्रेस अब अल्पसंख्यकों के अधिकार घटाना चाहती है?”

अम्बेडकर विवाद को भुनाने में अरविन्द केजरीवाल, दिल्ली चुनाव से पहले किया ‘अम्बेडकर सम्मान स्कॉलरशिप योजना’ का ऐलान; केंद्र सरकार ऐसी ही योजनाएँ पहले ही चला रही है

डॉ भीमराव अम्बेडकर को लेकर चल रहे राजनीतिक बवाल का फायदा उठाने का प्रयास आम आदमी पार्टी (AAP) ने किया है। भाजपा और कांग्रेस के बीच डॉ अम्बेडकर के सम्मान को लेकर जारी बहस के बीच केजरीवाल ने उनके नाम पर एक योजना चालू करने का ऐलान किया है। यह योजना दलित छात्रों के लिए लाई गई है।

शनिवार (21 दिसम्बर, 2024) को दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल ने इस योजना की जानकारी दी। केजरीवाल यहाँ ‘डॉक्टर अंबेडकर सम्मान स्कॉलरशिप’ का ऐलान किया, जिसका फायदा दलित बच्चों को दिया जाएगा। केजरीवाल ने कहा है कि यह योजना उन दलित बच्चों को फायदा देगी जो विदेश जाकर पढ़ना चाहते हैं। उन बच्चों को दिल्ली सरकार स्कॉलरशिप देगी।

केजरीवाल ने कहा कि विदेशों में दलित बच्चों की पढ़ाई के साथ ही उनके आने-जाने का भी खर्च भी दिल्ली सरकार उठाएगी। यह योजना उन बच्चों पर भी लागू होगी, जिनके माता-पिता सरकारी सेवा में हैं। हालाँकि, केजरीवाल ने यह नहीं बताया कि यह योजना कब से चालू होगी और इसका फायदा कैसे लिया जा सकेगा।

केजरीवाल ने यह ऐलान ऐसे समय में किया है जब भाजपा डॉ अम्बेडकर के अपमान को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है और इतिहास के पन्नों से लगातार चौंकाने वाली जानकारियाँ सामने रख रही है। वहीं कांग्रेस गृह मंत्री अमित शाह पर डॉ अम्बेडकर का अपमान करने का आरोप लगा रही है। तमाम हैंडल्स ने उनका एक आधा-अधूरा क्लिप भी वायरल किया है।

केजरीवाल का यह ऐलान दिल्ली में दलित वोटरों में दायरा बढ़ाने और आगामी विधानसभा चुनाव में फायदा लेने के कदम के तौर पर देखा जा रहा है। अधिकांश शहरी जनसंख्या वाली दिल्ली में लगभग 20% वोटर दलित हैं और वह विधानसभा चुनाव में बड़ा रोल निभाते हैं। AAP को इससे पहले विधानसभा चुनावों में दलितों का अच्छा ख़ासा वोट मिला है।

बीते कुछ समय में राज कुमार आनंद जैसे दलित चेहरों ने AAP छोड़ी है। अब केजरीवाल फिर से यह दिखाना चाहते हैं कि वह दिल्ली में दलितों के हितैषी हैं और उनका वोट बटोरना चाहते हैं। राज कुमार आनंद ने इस्तीफ़ा देने के समय दिल्ली सरकार को दलित विरोधी करार दिया था। यह योजना आगामी चुनावों में कितना असर डालेगी, यह परिणाम देखकर पता चलेगा।

जिस तरह की योजना का ऐलान केजरीवाल ने किया है, केंद्र सरकार ऐसी ही योजनाएँ पहले ही चलाती है। इसके तहत पिछले कुछ वर्षों में सैकड़ों दलित छात्र विदेश पढ़ने जा चुके हैं।

‘शायद शिव जी का भी खतना…’ : महादेव का अपमान करने वाले DU प्रोफेसर को अदालत से झटका, FIR रद्द करने से किया साफ मना

शिवलिंग पर आपत्तिजनक कमेंट करने वाले DU प्रोफेसर की याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में ख़ारिज हुई (साभार- organiser.org)
ज्ञानवापी में मिले शिवलिंग को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले एक प्रोफेसर को दिल्ली हाईकोर्ट ने राहत देने से इनकार कर दिया है। हाई कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के प्रोफेसर रतन लाल पर दर्ज मुकदमा रद्द करने से इंकार कर दिया है। यह मुकदमा हिन्दुओं की भावनाओं को ठुकराने के लिए दर्ज किया गया था। हाईकोर्ट ने माना कि रतन लाल की टिप्पणियों से सामाजिक सौहार्द पर बुरा असर पड़ा था। यह आदेश मंगलवार(17 दिसंबर, 2024) को दिया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट में इस मामले की सुनवाई जस्टिस चंद्रधारी सिंह की अदालत में हुई। रतन लाल की तरफ से पेश वकीलों ने अभिव्यक्ति की आज़ादी सहित तमाम दलीलें पेश कीं। उन्होंने इस आधार पर रतन लाल के खिलाफ FIR को रद्द करने की माँग की। हालाँकि कोर्ट पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा।

अपने फैसले में अदालत ने कहा कि रतन लाल द्वारा पेश की गई दलीलों में वो तथ्य नहीं थे जिसके आधार पर आरोपित के खिलाफ FIR को रद्द किया जा सके। हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा लगता है कि प्रोफेसर रतन लाल का इरादा एक वर्ग की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का ही था। कोर्ट ने कहा कि प्रोफेसर जैसे पद वाले व्यक्ति की यह टिप्पणियाँ अशोभनीय हैं।

पूरा मामला

दिल्ली यूनिवर्सिटी में रतन लाल इतिहास विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। मई 2022 में जब ज्ञानवापी के मुकदमे में हिन्दू पक्ष ने शिवलिंग मिलने की बात कही तो तब रतन लाल ने सोशल मीडिया के अपने X और फेसबुक हैंडल पर एक आपत्तिजनक पोस्ट डाली थी। 14 मई, 2022 को डाली गई इस पोस्ट में उन्होंने लिखा, “यदि यह शिवलिंग हैं तो लगता है कि शायद शिव जी का भी खतना कर दिया गया था।” इसी पोस्ट में रतन लाल ने हंसी वाली इमोजी भी डाली थी।
प्रोफेसर रतन लाल के इस पोस्ट का स्क्रीनशॉट कुछ ही देर में सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। उनके खिलाफ एक्शन की माँग जोर पकड़ने लगी थी। 18 मई, 2022 को दिल्ली के उत्तरी मौरिस नगर साइबर थाने में रतन लाल के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई थी। धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में यह शिकायत शिवाल भल्ला नाम के व्यक्ति ने दर्ज करवाई थी। पुलिस ने इस शिकायत पर IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा 153- A और 295- A के तहत FIR दर्ज कर ली थी।
20 मई, 2022 को पुलिस ने रतन लाल को खोज निकाला और गिरफ्तार कर लिया। अगले ही दिन 21 मई को प्रोफेसर रतन लाल जमानत पा गए। अब रतन लाल इस केस को खत्म करवाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट पहुँचे थे। हालाँकि यहाँ उनकी याचिका ख़ारिज कर दी गई है।

लोकसभा अध्यक्ष के नाम संभल के सांसद जियाउर रहमान बर्क के विरुद्ध लोकसभा की आचार समिति के लिए शिकायत

सुभाष चन्द्र 

लोकसभा की आचार समिति (Ethics Committee) में किसी भी नागरिक को किसी भी सांसद के विरुद्ध शिकायत दर्ज करने की अनुमति है और ऐसी शिकायत लोकसभा अध्यक्ष को भेजी जाती है।  इसलिए नीचे श्री ओम बिरला, लोकसभा अध्यक्ष के नाम जो शिकायत लिखी गई है, उसे हर व्यक्ति अपने नाम से ईमेल से स्पीकर को भेजे उनका ईमेल address है -

speakerloksabha@sansad.nic.in

birla.om@sansad.nic.in 

माननीय ओम बिरला जी, 

लोकसभा अध्यक्ष,

संसद भवन, दिल्ली 

लेखक 
चर्चित YouTuber 

विषय: लोकसभा की आचार समिति में संभल से लोकसभा सदस्य श्री जियाउर रहमान बर्क के विरुद्ध एक सांसद के नाते किए गए कदाचार के बारे में शिकायत उन्हें लोकसभा से बर्खास्त करने की अपील यदि जांच में उनके विरुद्ध आरोप सही पाए जाएं

महोदय -

कई मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि श्री रहमान बर्क अपने निवास पर बिजली की भारी खपत कर रहे थे लेकिन बिजली का बिल 10 वर्ष से भी अधिक समय से नहीं भर रहे थे उनके घर में 2 किलोवाट का कनेक्शन था लेकिन उनके घर में इतने बिजली के उपकरण थे जो बिजली की खपत 16.48 किलोवाट की कर रहे थे ये उपकरण बताए गए है -

-AC - 3; 

-Bulbs - 83;

-पंखे - 19;

-गीज़र - 8;

-हीटर - 14;

-टीवी सेट - 9;

-फ्रिज - 4;

-माइक्रोवेव - 6;

-टोस्टर -  3;

-Dishwasher - 3;

-washing machines - 4 और अन्य भी 

उत्तर प्रदेश सरकार ने श्री जियाउर रहमान बर्क पर 1.91 करोड़ का जुर्माना लगाया है और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया है

श्री बर्क के परिवार में उनके अलावा उनकी पत्नी और एक पुत्र है जिनके लिए इतने उपकरण स्वाभाविक प्रतीत नहीं होते परिवार के लिए जितने भी उपकरण उपयोग किए जाएं, यह मायने नहीं रखता लेकिन बिजली का बिल न अदा करना अपराध की श्रेणी में आता है और यह एक सांसद के रूप में दुराचार है

सांसद किसी भी देश के हों, वे Lawmaker कहलाते हैं और क़ानूनहंता Lawmaker नहीं हो सकता श्री बर्क के कृत्यों से संसद की गरिमा को निश्चित रूप से ठेस पहुंची है जो सांसद स्वयं इस तरह की चोरी में लिप्त हो, वह अपने क्षेत्र में लोगों को भी चोरी करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है

अतः आपसे अनुरोध है कि यह शिकायत लोकसभा की Ethics Committee को भेजी जाए जिस पर गहन जांच की जाए यदि उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यवाही के संदर्भ में ये आरोप Ethics Committee द्वारा सही पाए जाते हैं तो श्री जियाउर रहमान बर्क को न केवल वर्तमान लोकसभा से बर्खास्त किया जाए बल्कि भविष्य में उन्हें कोई भी चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाए

आशा करता हूं मेरी इस शिकायत पर उचित कार्यवाही की जाएगी

जब नेहरू ने डॉ. आंबेडकर को उनके ही पीए से हरवा दिया था चुनाव! कांग्रेस ने हर मोड़ पर बाबा साहेब का करती रही है अपमान; दलित समर्पित पार्टियां क्यों नहीं कांग्रेस से पूछती?


कांग्रेस पार्टी दलित समुदाय के समर्थन के लिए 9 अप्रैल 2018 को उपवास पर बैठी। खुद राहुल गांधी ने भी दो घंटे का सांकेतिक अनशन किया। जाहिर है राहुल गांधी इस बहाने राहुल गांधी खुद को दलितों की चिंता करने वाला स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं। कांग्रेस पार्टी एक राजनैतिक दल है और उसे ऐसा करने का पूरा हक भी है, परन्तु दलितों को ये नहीं भूलना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी ने हमेशा दलितों को दबाकर ही नहीं रखा बल्कि आजादी के छह दशक तक उनका दमन किया है, दबाकर रखा है।

अमित शाह के जिस बयान पर कांग्रेस कहर बड़पा रही है और समस्त INDI गठबंधन भी इसके होने दुष्परिणामों को समझे बिना एक गुलाम की तरह पिछलग्गू बने हुए हैं। वीर सावरकर को जिस तरह ब्रिटिश दलाल कहकर अपमानित किया जाता है, ठीक उसी तरह नेहरू ने आंबेडकर को भी अपमानित किया था। समस्त महाराष्ट्रियनों को कांग्रेस को सावरकर द्वारा ब्रिटिश सरकार से माफीनामा मांगने की मांग करनी चाहिए। लेकिन समस्त महाराष्ट्र इस गंभीर आरोप पर खामोश बैठा है। 

हकीकत यह है कि जिस किसी ने भी नेहरू से लेकर वर्तमान कांग्रेस तक कांग्रेस की नीतियों का विरोध किया, कांग्रेस के इकोसिस्टम ने मुस्लिम विरोधी और जनविरोधी कहकर बदनाम किया। वीर सावरकर, डॉ भीमराव आंबेडकर, तत्कालीन भारतीय जनसंघ वर्तमान भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस आदि इसके ज्वलंत उदाहरण है।     

दरअसल ये वही कांग्रेस पार्टी है जिस पार्टी ने सोनिया गाँधी को अध्यक्ष बनाने के लिए परिवार गुलामों ने दलित नेता सीताराम केसरी को पार्टी ऑफिस से बाहर फेंक दिया था। इस दौरान उनकी धोती भी खुल गयी थी। वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की केसरी से ज्यादा दुर्गति हो रही है, जिसे एक गुलाम की तरह बर्दास्त कर रहे हैं। यानि अपनी मर्जी से जो अध्यक्ष कोई निर्णय न ले सके ऐसे अध्यक्ष से क्या फायदा? कांग्रेस ने कभी किसी दलित समुदाय को प्रधानमंत्री पद के लायक समझा है। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसने जवाहर लाल नेहरू के सामने बाबा साहेब आंबेडकर को छोटा दिखाने की हर कोशिश की। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसने जगजीवन राम को योग्यता के बावजूद प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। ये वही कांग्रेस पार्टी है जिसमें कोई दलित आज तक अध्यक्ष नहीं बना है।

नेहरू ने धारा 370 पर नहीं मानी बाबा साहेब की बात
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 जिसमें कश्मीर को कई विशेष अधिकार प्राप्त हैं उनके खिलाफ बाबा साहेब ने काफी मुखर होकर अपने विचार रखे थे। हालांकि पंडित नेहरू ने बाबा साहब की एक नहीं चलने दी और देश पर धारा 370 जबरन थोप दिया। बाबा साहेब के विचारों को इस तरह से खारिज कर कांग्रेस ने देश के नाम एक ऐसी समस्या कर दी जो किसी भी हालत में नहीं होनी चाहिए थी। गौरतलब है कि जिस दिन यह अनुच्छेद बहस के लिए आया उस दिन बाबा साहब ने इस बहस में हिस्सा नहीं लिया ना ही उन्होंने इस अनुच्छेद से संबंधित किसी भी सवाल का जवाब दिया।

बाबा साहेब को दलितों के दायरे में समेटने की कोशिश
बाबा साहब आंबेडकर युग पुरुष थे, दूर द्रष्टा थे, लेकिन कांग्रेस पार्टी ने हमेशा उन्हें दलित नेता कहकर एक दायरे में समेटने की कोशिश की। कांग्रेस पार्टी ने लगातार बाबा साहेब को अपमानित करने का भी काम किया है। कांग्रेस की ये कोशिश रही है कि उनका कद किसी नेहरू-गांधी परिवार के समकक्ष भी खड़ा नहीं हो पाए। बाबा साहेब को भारत रत्न नहीं दिया जाना कांग्रेस की इसी कुत्सित सोच का नतीजा थी।

बाबा साहेब के देहांत के 34 वर्षों बाद मिला भारत रत्न
बाबा साहेब भीमराव रामजी का देहांत 1956 में ही हो गया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने बाबा साहेब को भारत रत्न देने से इनकार कर दिया था। फिर इंदिरा गांधी ने भी इन्हें भारत रत्न नहीं दिया। राजीव गांधी ने भी बाबा साहेब को उनका वाजिब सम्मान नहीं दिया। गौरतलब है कि भारत रत्न दिए जाने की बार-बार उठने वाली मांग को भी कांग्रेस पार्टी लगातार खारिज करती रही। हालांकि 1990 में भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थित राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने सुब्रमण्यम स्वामी की पहल पर बाबा साहेब को भारत रत्न से सम्मानित किया।

बाबा साहेब का नहीं बनाया कोई राष्ट्रीय स्मारक

कांग्रेस ने बाबा साहेब की विद्वता और अस्मिता को हमेशा नीचा दिखाने का काम किया है। पंडित नेहरू तो विशेष तौर पर डॉ आंबेडकर को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते थे। यही कारण था कि कांग्रेस ने बाबा साहेब के देहांत के बाद भी कोई राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनने दिया। दूसरी ओर भाजपा के शासन काल में बाबा साहेब आंबेडकर को उचित सम्मान दिया गया। हालांकि भाजपा की सरकार ने उनके जन्म स्थान महू में बाबा साहेब का राष्ट्रीय स्मारक बनवाया। इसके साथ ही नरेन्द्र मोदी देश के पहले प्रधानमंत्री बने जिन्होंने महू जाकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि दी।

बाबा साहेब को कांग्रेस ने दो बार चुनाव हरवाया
कांग्रेस नहीं चाहती थी कि वे दलितों के नेतृत्वकर्ता के तौर पर प्रचारित हो। यही कारण था कि कांग्रेस ने उन्हें दो बार लोकसभा चुनावों में हरवाने की साजिश रची थी।  गौरतलब है कि बाबा साहेब ने आजादी के बाद 1952 में हुए पहले आम चुनाव में अनुसूचित जाति संघ के टिकट पर उत्तरी मुंबई से चुनाव लड़ा था, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्हें कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलोलर ने हराया था। 1954 में भंडारा में हुए लोकसभा उप चुनाव एक बार फिर अम्बेडकर लोकसभा का चुनाव लड़े, लेकिन इस बार भी अम्बेडकर की बुरी तरह हार हुई।

संसद कक्ष में नहीं लगने दी बाबा साहेब की तस्वीर
कांग्रेस का दलित विरोधी चरित्र हमेशा उजागर होता रहा है। विशेषकर बाबा साहेब का अपमान करने को लेकर कांग्रेस पार्टी कुछ अधिक ही उत्सुक रहती थी। आप खुद सोच सकते हैं जिस व्यक्ति को संविधान निर्माता कहा जाता है उन्हीं की कोई तस्वीर संसद के केंद्रीय कक्ष में नहीं थी। कांग्रेस ने दीवार पर जगह नहीं होने का हवाला देकर तस्वीर लगाने की मांग को हमेशा खारिज किया। 1989 में जब भारतीय जनता पार्टी की समर्थित राष्ट्रीय मोर्चा सरकार बनी तो पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने पहल कर संसद के केंद्रीय कक्ष में बाबा साहेब का चित्र शामिल कराया।

डॉ. आंबेडकर अपने ही पीए से क्यों हार गए थे चुनाव?

संविधान लागू होने के बाद साल 1951-1952 में देश में पहला लोकसभा चुनाव हुआ इसमें बाबा साहब बुरी तरह से हार गए थे. बाबा साहब को उन्हीं के पीए नारायण काजरोलकर ने हराया था और उनकी यह चुनावी हार लंबे समय तक चर्चा में रही थी. एक बार फिर डॉ. आंबेडकर बहस का विषय बन गए हैं। आइए इसी बहाने जान लेते हैं बाबा साहब की चुनावी हार का वह किस्सा

मतभेद के कारण कांग्रेस से दे दिया था इस्तीफा

दरअसल, आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में देश में बनी पहली अंतरिम सरकार में बाबा साहब विधि और न्यायमंत्री बनाए गए थे उनके नेतृत्व में बना संविधान लागू हो चुका है हालांकि, बाद में कई मुद्दों पर उनका कांग्रेस से नीतिगत मतभेद हो गया इसके कारण उन्होंने 27 सितंबर 1951 को पंडित जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखकर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया इसके बाद साल 1942 में खुद के गठित शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन यानी अनुसूचित जाति संघ को नए सिरे से मजबूत करने में लग गए इस संगठन को स्वतंत्रता संघर्ष की व्यस्तताओं के कारण वह ठीक से खड़ा नहीं कर पाए थे

आम चुनाव में खुद के बनाए संगठन से मैदान में उतरे

इसी बीच, आम चुनाव की घोषणा हो गई जिसके लिए मतदान 1951 से लेकर 1952 तक हुए. डॉ. भीमराव आंबेडकर ने पहले आम चुनाव में शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के बैनर के तले लोकसभा चुनाव में 35 प्रत्याशी खड़े किए इसमें उनके दो ही प्रत्याशी जीत हासिल कर सके इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर खुद भी लड़े पर जब नतीजे आए तो काफी चौंकाने वाले थे वह चुनाव हार गए थे

अवलोकन करें:-

आंबेडकर पर कांग्रेस के ढोंग की खुली पोल : 1946 का पत्र आया सामने, नेहरू ने लगाया था अंबेडकर पर अंग्र
आंबेडकर पर कांग्रेस के ढोंग की खुली पोल : 1946 का पत्र आया सामने, नेहरू ने लगाया था अंबेडकर पर अंग्र
 

यह वह दौर था जब डॉ. भीमराव आंबेडकर की पहचान देश भर में अनुसूचित जातियों के लिए काम करने वाले कद्दावर नेता के रूप में थी डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने उत्तरी मुंबई सीट से चुनाव लड़ने का मन बनाया तो कांग्रेस ने उनके मुकाबले में उन्हीं के पीए नारायण एस काजरोलकर को मैदान में उतार दिया था वह भी पिछड़े वर्ग से थे. इसके अलावा इस सीट से कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदू महासभा ने भी अपना-अपना प्रत्याशी खड़ा किया था

दूध का कारोबार करने वाले काजरोलकर राजनीति में नौसिखिए थे

नारायण काजरोलकर दूध का कारोबार करते थे और राजनीति में वह नौसिखिए नेता थे इसके बावजूद पंडित जवाहर लाल नेहरू की लहर पहले चुनाव में इतनी तगड़ी थी कि नारायण काजरोलकर जीत गए थे इस चुनाव में डॉ. भीमराव आंबेडकर को 1,23,576 वोट मिले थे और वह चौथे स्थान पर थे वहीं, 1,37,950 वोट पाकर काजरोलकर चुनाव जीते थे इसके बाद साल 1954 में बंडारा लोकसभा के लिए उप चुनाव हुआ था इसमें भी डॉ. भीमराव आबंडेकर खड़े हुए पर एक बार फिर उन्हें कांग्रेस से हार का समाना करना पड़ा था

डॉ. आंबेडकर को करना पड़ा था हार का सामना

वास्तव में पहले आम चुनाव के वक्त देश में कांग्रेस की जबरदस्त लहर थी. देश नया-नया आजाद हुआ था और पंडित जवाहरलाल नेहरू जनता की नजरों में हीरो थे कहा जाता है कि तब अगर पंडित नेहरू के नाम पर बिजली के खंभे को भी चुनाव में खड़ा कर दिया जाता तो वह भी जीत जाता ऐसा ही कुछ वास्तव में हुआ जब पहले लोकसभा चुनाव के लिए मतगणना के बाद नतीजा आया कांग्रेस को बड़ी आसानी से स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ

क्या प्रियंका वाड्रा की सदस्यता रद्द होगी? चुनावी हलफनामे में दी गलत जानकारी’ : केरल High Court में याचिका; प्रियंका अब अटल बिहारी नहीं नरेंद्र मोदी की सरकार है


कांग्रेस सांसद प्रियंका वाड्रा के खिलाफ केरल हाई कोर्ट में एक याचिका डाली गई है। यह याचिका वायनाड लोकसभा उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहीं नव्या हरिदास ने डाली है। नव्या हरिदास ने आरोप लगाया है कि प्रियंका ने अपने चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी दी और वोटरों को भ्रमित किया।

इतिहास साक्षी है कि गलत जानकारी से जनता को गुमराह करना कांग्रेस के DNA में है। कहते हैं संस्कार बच्चा माँ के पेट से ही लेकर आता है। जब माँ सोनिया गाँधी अपनी शिक्षा की गलत जानकारी दे सकती है तो बेटी द्वारा गलत जानकारी देना कोई नयी बात नहीं। 

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी के कार्यकाल में सुब्रमण्यम स्वामी ने तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष मनोहर जोशी से जब सबूतों के साथ शिकायत की कि प्राइमरी सोनिया ने कभी कॉलेज नहीं गयी, ये जो डिग्रीयां सोनिया ने दर्शाई हैं सब झूठी है। जब लोक सभा अध्यक्ष ने सोनिया को बुलाकर पूछताछ करने पर, बोली कि "टाइपिंग मिस्टेक", जिस पर स्वामी ने कहा कि 'जब इतनी बड़ी गलती "टाइपिंग मिस्टेक" है, इसे Guiness Book को भेज जानी चाहिए।' प्रियंका भूल रही है कि अब अटल बिहारी नहीं नरेंद्र मोदी की सरकार है। 

नव्या हरिदास ने आरोप लगाया है कि प्रियंका वाड्रा ने अपने चुनावी हलफनामे में सम्पत्ति का गलत ब्यौरा दिया। नव्या हरिदास ने हाई कोर्ट से माँग की है कि चुनावी गड़बड़ियों के आधार पर प्रियंका वाड्रा की सदस्यता को रद्द कर दिया जाए।

नवम्बर, 2024 में सम्पन्न हुए वायनाड लोकसभा उपचुनाव में प्रियंका गाँधी को जीत हासिल हुई थी जबकि नव्या हरिदास तीसरे नंबर पर रहीं थी। 

अमेरिका कह रहा है वह सभी राजनयिकों की सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है; लेकिन जो पन्नू धमकी दे रहा है, उसे खुला कैसे छोड़ा हुआ है? भारत को डोनाल्ड लू को वीसा नहीं देना चाहिए

सुभाष चन्द्र

भारत द्वारा प्रतिबंधित संगठन SFJ के आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अमेरिका में भारत के राजदूत विनय क्वात्रा को कुछ दिनों में ही 3 बार धमकी दी है। भारत के बार बार इस विषय को अमेरिका और कनाडा के सामने उठाने पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया अब अमेरिका ने बस इतना कहा है कि वह अमेरिका में रह रहे सभी राजनयिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है

लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि बाइडन प्रशासन स्वयं क्या चाहता है जो विदेशी राजदूतों को लगातार धमकी देने वाले पन्नू को खुला छोड़ा हुआ है क्या अमेरिका का कानून और संविधान अन्य देशों के राजदूतों की हत्या की धमकी देने की अनुमति देता है?

लेखक 
चर्चित YouTuber
 
पन्नू ने कनाडा में रूस के राजदूत व्लादिमीर स्टीपानोव को भी धमकी दी थी पन्नू ने क्वात्रा और स्टीपानोव की सार्वजनिक गतिविधियों के बारे में जानकारी देने वाले को 25 हजार डॉलर का इनाम भी घोषित किया था पन्नू ने यह भी कहा कि रूस एजेंसियां भारत की मदद कर रही है और ऐसी सहायता से ही भारतीय एजेंसियों ने हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की पुतिन तक को धमका दिया कि वह मोदी के साथ मिलकर खालिस्तानियों की हत्या करने में मदद कर रहे हैं

सनद रहे अभी अमेरिका में बाइडन की ही सरकार चल रही है और भारत के खिलाफ गतिविधियां चलाने वालों को बाइडन प्रशासन पूरी तरह छूट दिए हुए है अभी सुना है ट्रंप के शपथ ग्रहण से पहले सत्ता का तख्तापलट करने में उस्ताद डोनाल्ड लू, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और म्यांमार की यात्रा पर जायेगा

भारत सरकार कितनी भी सतर्कता बरतें परंतु डोनाल्ड लू का कुछ पता नहीं Deep State और George Soros की कोई टूल किट राहुल गांधी गिरोह के हवाले कर जाए और देश में आग लगा दी जाए जो राहुल गांधी कह चुका है और कल खड़गे ने भी कहा कि देश को आग लग जाएगी ऐसी कॉल सोनिया गांधी ने CAA के लिए भी दी थी कि सड़कों पर आ जाओ और देश में दंगे हो गए थे

डोनाल्ड ट्रंप ने वैसे तो कई भारतीय मूल के लोगों और हिंदुओं को अपनी टीम में जगह दी है जिनमे शामिल है उषा वांस, तुलसी गबार्ड, विवेक रामास्वामी, जय भट्टाचार्य और काश पटेल लेकिन Harmeet K. Dhillon को  Assistant Attorney General of civil rights बनाना संदेहास्पद है

हरमीत कौर ढिल्लों गुरपतवंत सिंह ढिल्लों की करीबी है और उसने किसानों के आंदोलन को खुला समर्थन देते हुए प्रधानमंत्री मोदी को कहा था जब सिंधु बॉर्डर और गाज़ीपुर में पुलिस ने किसानो पर कार्रवाई की थी “hear them, meet with them and compromise”.

हरमीत कौर ढिल्लों ने गुरपतवंत सिंह पर कथित हमले के लिए नवंबर, 2023 में ट्वीट किया था -

“Like I said, India has sent death squads to target North American Sikhs outspoken on civil and human rights conditions in Punjab, both to Canada and now the US. Will our government do anything about it, or just pander endlessly over artificial DEI nonsense? Lives are at risk”. ऐसी महिला को अटॉर्नी बनाने का मतलब है पन्नू और अब और बड़ा सांड बनकर घूमेगा

भारत और नरेंद्र मोदी की ऐसी धुर विरोधी को ट्रंप द्वारा अपने न्यायिक विभाग में Civil Rights के लिए सहायक अटॉर्नी बनाने का क्या मतलब है? अमेरिका में पहले से दो सरकार चलती हैं, एक की लगाम राष्ट्रपति के हाथ में होती है और दूसरी की लगाम अमेरिकी प्रशासन के हाथ में होती है और वह जो करता है उसका पता राष्ट्रपति को भी नहीं चलता

जो भारतीय मूल के लोग ट्रंप ने अपनी टीम में लिए हैं, उनसे बहुत कुछ अपेक्षाएं हमें नहीं रखनी चाहिए क्योंकि वे लोग अमेरिकी पहले हैं और अमेरिका का हित उनके लिए सबसे ऊपर है वो लोग हमारे विपक्षी नेताओं की तरह नहीं हैं जो चाहे विपक्ष में रहें या सरकार में, काम भारत के विरोध में ही करते हैं

आंबेडकर पर कांग्रेस के ढोंग की खुली पोल : 1946 का पत्र आया सामने, नेहरू ने लगाया था अंबेडकर पर अंग्रेज के साथ मिल ‘गद्दारी’ करने का आरोप; जब तक आंबेडकर कांग्रेस से माफ़ी नहीं मांगते कोई बात नहीं होगी : नेहरू

कांग्रेस तो क्या उसकी लग्गू-बग्गू INDI गठबंधन में शामिल पार्टियां अपने ही बुने जाल में फंस रही है। आज आंबेडकर को भगवान कहने वाले देश को बताए इतने वर्षों तक क्यों अपमानित कर जनता को पागल बनाते रहे हैं? हकीकत यह है कि आंबेडकर ने इस्लाम के विरुद्ध अपने विचार रखे थे। जो मुस्लिम तुष्टिकरण करने वालों को रास नहीं आने के कारण कांग्रेस द्वारा उनका अपमान किया जाता रहा। अगर जवाहर लाल नेहरू ने एक नहीं दो संसदीय चुनावों में उनके विरुद्ध प्रचार किया, क्यों? 

अगर डॉ आंबेडकर संसद पहुँच गए होते, शायद देश के हालात कुछ और ही होते। नेहरू से लेकर वर्तमान कांग्रेस तक केवल चापलूस ही पसंद हैं। नेहरू सोनिया गाँधी के ससुर और राहुल प्रियंका के दादा फिरोज जहांगीर खान के विरुद्ध इसलिए नहीं बोल पाए कि वह इंदिरा गाँधी के शौहर थे। जबकि फिरोज संसद में जब भी बोलने के लिए खड़े होते ससुर नेहरू के पसीने छूटते थे।  

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस अपना प्रेम बाबा साहेब अंबेडकर के प्रति दिखाने की हर संभव कोशिश कर रही है और ऐसा जता रही है कि उनके अतिरिक्त कोई बाबा साहेब को सम्मान नहीं देता…।

वो गृहमंत्री अमित शाह की आधी-अधूरी क्लिप को साझा करके अपना प्रोपगेंडा फैला रहे थे लेकिन इसी बीच जवाहर लाल नेहरू का एक पत्र सामने आया जो बताता है कि कांग्रेस शुरुआती समय से बाबा साहेब के लिए कैसी विचार रखती थी।

ये पत्र जवाहरलाल नेहरू ने 20 जनवरी 1946 को अमृत कौर के नाम लिखा था। इसे वैसे तो nehruselectedworks.com पर पढ़ा जा सकता है लेकिन आज इसका स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर भी वायरल है।

इस पत्र में जवाहर लाल नेहरू ने बाबा साहेब के बारे में बात करते हुए कहा था “…मुझसे पूछा गया कि आखिर कांग्रेस क्यों अंबेडकर के पास नहीं जाती और उनसे सुलह कर लेती। मैंने उनसे कहा कि कांग्रेस ऐसा कुछ नहीं करने वाली। अंबेडकर ने लगातार कांग्रेस और कांग्रेस नेताओं का अपमान किया है। जब तक वह माफी नहीं माँगते तब तक कांग्रेस का उनसे लेना-देना नहीं है। मैंने निश्चित तौर पर ये नहीं कहा कि अनुसूतिच जाति के लोगों को पूना पैक्ट के तहत राजनैतिक लाभ नहीं मिलेंगे। लेकिन मेरा पूरा जोर इस बात पर था कि अंबेडकर ने ब्रिटिश सरकार के साथ गठजोड़ किया था और कांग्रेस के खिलाफ थे। हम उनसे डील नहीं कर सकते।”

इसी पत्र के अंश को हाईलाइट करके अब सोशल मीडिया पर कांग्रेस से सवाल हो रहे हैं। भाजपा नेता अमित मालवीय ने लिखा, ” ये सोच से भी परे है कि नेहरू ने अमृत कौर को लिखे पत्र में बाबा साहेब को ‘गद्दार’ कहा और उनपर ब्रिटिशों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया… संविधान के रचयिता बाबा साहेब और दलित समुदाय की इससे बड़ी बेइज्जती नहीं हो सकती।”

अमिताभ चौधरी लिखते हैं, “1946 में अमृत कौर को लिखे गए पत्र में नेहरू ने अंबेडकर को ‘गद्दार’ कहा था और उन पर ब्रिटिशों के साथ गठजोड़ करने का आरोप लगाया था। आज उन्हीं का खून राहुल गाँधी और कांग्रेस के लोग वीर सावरकर को भी ब्रिटिश एजेंट बोलते हैं।”

इस पत्र के साथ सोशल मीडिया पर लोग ये सवाल भी कर रहे हैं कि कांग्रेस आज जितना प्यार बाबा साहेब के लिए दिखा रही है, तो उन्हें ये भी बताना चाहिए कि क्या बाबा साहेब ने नेहरू के रवैये से तंग आकर 1951 में कानून मंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया था? क्या जब बाबा साहेब देश के पहले कानून मंत्री बने थे उस समय उन्हें रक्षा संबंधी, विदेश संबंधी और वित्त संबंधी हर प्रमुख निर्णय लेने में शामिल करने की बजाय, किनारे नहीं किया गया था? क्या नेहरू ने उनपर ब्रिटिशों के साथ गठबंधन करने का आरोप लगाकर गद्दार नहीं कहा गया था?