हिन्दुओं को जाति में बाँटने वाले बेशर्म हिन्दू नेताओं के मुंह पर वारिस पठान ने झन्नाटेदार थप्पड़ मारते कहा कि 19% मुसलमान हैं, मगर कोई नहीं कहता कि मुसलमानों के अंदर कौन शेख है, कौन सैयद है


सोशल मीडिया से लेकर राष्ट्रीय चैनलों पर होने परिचर्चाओं में अक्सर ऐसे मुद्दे निकलकर आते हैं, जिन पर सियासती पार्टियों को गंभीरता से लेना चाहिए। लेकिन अपने वोट बैंक के चक्कर में नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है, जो देशहित में नहीं। मुसलमान का बच्चा पेट से बाहर बाद में आता है हिन्दू और बीजेपी विरोधी पहले। लेकिन इतनी बड़ी और अति गंभीर बात को बेशर्म एंकर ने इस बात को निकालने के लिए बोल दिया। जबकि एक नागरिक के ये शब्द सनातन विरोधी हिन्दुओं और मुसलमानों के ठेकेदारों पर जबरदस्त प्रहार था।  

80 दशक में बहुचर्चित हबीब पेंटर कव्वाल की एक कव्वाली "जब खून ही खून का दुश्मन बना . .." जो आज के परिवेश में सटीक बैठती है। कुर्सी के लालची हिन्दू ही हिन्दुओं को जातियों के नाम पर भड़काते रहते हैं। जबकि हिन्दुओं के सारी जातियां एक ही मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं और एक ही शमशान पर अंतिम संस्कार। बिहार का चुनाव कोई चुनाव नहीं बल्कि जातिवाद का चुनाव है जो भारतीय राजनीति के नाम पर धब्बा कहा जा सकता है। जातियों के नाम पर देखो कितनी पार्टियां बनी हुई है। लेकिन मुसलमानों की अपनी जातियों के नाम पर एक पार्टी नहीं। इस्लाम के नाम पर सब एक हैं।

 

वारिस पठान ने बात कही, वो बहुत गंभीर है। उन्होंने बहुत ठोंक कर कहा कि 19% मुसलमान हैं। मगर कोई नहीं कहता कि मुसलमानों के अंदर कौन शेख है, कौन सैयद है, कौन पठान है, कौन गद्दी है, कौन घोसी है, कौन मिरासी है, कौन जुलाहा है, कोई अंसारी है, ना कोई नहीं बोलता और मजे की बात यह है, कोई यह भी नहीं पूछता कि मुफ्ती मुकर्रम बारी, हाफिज, , मौलवी में कितने जो हैं वो जुलाहा, अंसारी, वे हैं। 

मजे की बात कोई नहीं पूछता उनसे कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में कितने हैं। शिया, सुन्नी, वहाबी, अहमदी आदि एक दूसरे की मस्जिद में न तो नमाज़ पढ़ सकते हैं और न ही एक दूसरे के कब्रिस्तान में मुर्दा तक नहीं दफना सकते। जबकि मरने वाले के लिए कहते हैं कि "अल्लाह की अल्लाह के पास गयी" फिर अलग कब्रिस्तान क्यों? और कई मतभेद हैं लेकिन इस्लाम के नाम पर एक रहते हैं।      

हिन्दुओं को जातियों के नाम पर भड़काने वाले बेशर्म हिन्दू नेता कभी रामायण को अपमानित करते हैं, हिन्दू देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी करने वाले सनातन विरोधियों का बेशर्मी के साथ बचाव करते हैं। उनकी ऐसी हिन्दू विरोधी हरकतों को देख इनके हिन्दू होने पर ही शक होने लगता है।    

यह होती है एकजुटता, 20%  ठोस है,

 80 पे जात की चोट है। 

20% अपना है 80 में टुकड़े करना है। 

दिखाया भी जाता है 19% मुसलमान और हिंदुओं में अभी देखिए क्या-क्या दिखाया जा रहा था, इतने ब्राह्मण, इतने भूमिहार, इतने यादव, कुर्मी, इतने सैनी, इतने शाक्य, इतने ये इतने वो।

ये बहुत गंभीर बात कही है वारिस पठान जी ने और मैं कहूंगा जो आपके लाखों करोड़ों लोग देख रहे हो बिहार के या देश के, उन्हें इनसे समझना चाहिए। जो एकजुट रहता है, उसकी बात पे झुकना पड़ता है। 

लालू प्रसाद यादव जी जिस समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं वो हिंदू समाज में माता मानी जाने वाली गौमाता का गोपालक समाज है।

वो इन वारिस पठान के लोगों को गोपाष्टमी के दिन भी गाय खाने से रोक नहीं पाए, इन लोगों ने मुहर्रम के ताजिये के आगे लालू जी के पूरे परिवार को झुकवा दिया और इमारत-ए-शरीया के कार्यक्रम में तेजस्वी यादव से अपने पक्ष में बुलवा दिया। ये होती है ताकत। जो वारिस पठान जी ने कहा जरा गंभीरता व गहराई से सोचिए।

अजमेर दरगाह क्षेत्र बना राष्ट्रविरोधी तत्वों और अवैध बांग्लादेशियों की ‘शरणगाह’


केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट में चौंकाने वाला बड़ा खुलासा हुआ है। इसमें तथ्यों के आधार पर बताया गया है कि प्रसिद्ध अजमेर दरगार के इलाके को कई राष्ट्रविरोधी तत्व, अपराधी और अवैध बांग्लादेशी सुरक्षित ‘शरणगाह’ के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। यह रिपोर्ट इसलिए भी बेहद चिंताजनक है, क्योंकि पिछले एक दशक के ज्यादा समय से इस इलाके से कई बांग्लादेशी और अपराधी पुलिस के हत्थे चढ़ चुके हैं। इतना ही नहीं अजमेर दरगाह में सालाना करीब 80 लाख जायरीन आते हैं। ऐसे में दरगाह परिसर और क्षेत्र में अतिक्रमणों, अनधिकृत दुकानों और रास्तों पर अस्थायी निर्माणों से उर्स के दौरान भगदड़ जैसे हालातों का खतरा है। दरअसल, अल्पसंख्यक मंत्रालय ने दरगार परिसर में 96 करोड़ रूपए के कामों के लिए व्यय विभाग से पैसा और अनुमति मांगी थी। गृह मंत्रालय ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में कहा है कि यहां पर पहले भी आपराधिक गतिविधियों के अलावा विकास कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। अल्पसंख्यक मंत्रालय को पहले इस बारे में स्थिति स्पष्ट करनी होगी। इसके बाद ही धनराशि देने की सिफारिश की जाएगी।

पहले हुए विकास कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अजमेर दरगाह में विकास कार्यों के लिए प्रस्तावित 96 करोड़ की रकम जारी करने से पहले गहन जांच करने की सिफारिश की है। मंत्रालय ने अपनी आंतरिक रिपोर्ट में प्रस्ताव पर आपत्ति करते हुए कहा कि यहां पहले हुए विकास कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। यही नहीं, रिपोर्ट में दरगाह क्षेत्र के राष्ट्र-विरोधी तत्वों के लिए एक सुरक्षित शरणस्थली बनने पर चिंता जताई है। इसके अनुसार पुलिस ने क्षेत्र से अपराधी, राष्ट्र-विरोधी तत्व और अवैध बांग्लादेशी नागरिक पकड़े हैं। अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने दरगाह में 96 करोड़ रुपए के कामों के प्रस्ताव बनाए थे। वित्त मंत्रालय ने उसे गृह व पर्यटन मंत्रालयों से मशविरा करने को कहा था। इसी के तहत गृह मंत्रालय की आंतरिक रिपोर्ट बनी है। अब इसे वित्त मंत्रालय के व्यय विभाग को भेजा जाएगा, जो आगे निर्णय लेगा।

उर्स में इतने जायरीन, दरगाह में भगदड़ जैसे हालात का खतरा
अजमेर दरगाह में सालाना देश-विदेश के करीब 80 लाख जायरीन आते हैं। यह आंकड़ा ताजमहल देखने आने वालों से भी कहीं ज्यादा है। रिपोर्ट में आगाह किया गया कि दरगाह में भगदड़ जैसे हालात का खतरा है, खासतौर पर सालाना उर्स के दौरान। इससे जायरीन को बचाने के लिए दरगाह के अंदर व बाहर अतिक्रमण हटाने होंगे। आवाजाही की बाधाएं दूर करते हुए नियंत्रित प्रवेश व्यवस्था लागू करनी होगी। जायरीन प्रतीक्षा क्षेत्र बनाए जा सकते हैं। जायरीन व सामान जांच व्यवस्था भी प्रभावी बनानी होगी। रिपोर्ट में कहा गया कि किसी भी वित्तीय अनुदान को स्वीकृत करने से पहले बताए गए खर्च के अनुमान की गहन जांच होनी चाहिए। यहां फिलहाल चल रहे विकास कार्यों की निगरानी जरूरी है। दरगाह समिति के अधिकारियों के अलावा दूसरे अधिकारियों से भी इन पर निगरानी रखनी चाहिए।

बांग्लादेशी नागरिकों के लिए दरगार क्षेत्र सेफ शरणस्थली
गृह मंत्रालय ने रिपोर्ट में कहा है कि दरगाह समिति के अलावा दूसरे अधिकारियों से भी यहां निगरानी कराई जानी चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक दरगाह क्षेत्र में देश-विरोधी तत्वों के आने से हालात चिंताजनक हैं। देश-विदेश से आने वाले अधिकतर जायरीन इस क्षेत्र में बने होटलों में रुकते हैं। पुलिस ने यहां से कई बार अपराधियों, राष्ट्रविरोधी तत्वों और अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को पकड़ा है। अवैध रूप से भारत में रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों के लिए दरगार क्षेत्र सेफ शरणस्थली बन गया है। इसलिए गृह मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में यहां तैनात आरएसी कर्मियों को और अधिक सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं।

अल्पसंख्यक मंत्रालय से मांगे गए हैं स्पष्टीकरण
अजमेर दरगाह शरीफ में कई प्राचीन संरचनाएं हैं। यहां पर किसी भी तरह के सुधार या विकास कार्यों के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से परामर्श जरूरी है। अल्पसंख्यक मंत्रालय ने दरगाह में 96 करोड़ रुपए के कामों के लिए पैसा और परमीशन मांगी है। ऐसे में विभाग ने जांच के बाद मंत्रालय से कई स्पष्टीकरण मांगे हैं। दरगाह परिसर में अतिक्रमण, अनधिकृत दुकानों, रास्तों पर अस्थायी निर्माण, भीड़ का उचित प्रबंधन न होने, जांच में कमी आदि से आपात स्थिति में लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। कई पक्षों ने यह मुद्दे उठाए हैं। क्या इन्हें लेकर अल्पसंख्यक मंत्रालय ने गृह मंत्रालय से कोई बात अब तक की?

दरगाह क्षेत्र में किए गए खर्च की गहन जांच होनी चाहिए
रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी भी वित्तीय अनुदान की स्वीकृति करने से पहले बताए गए खर्च के अनुमान की गहन जांच होनी चाहिए। यहां पर फिलहाल चल रहे विकास कार्यों की निगरानी भी जरूरी है। क्या पर्यटन मंत्रालय से बात की गई, ताकि प्रस्तावित काम प्रसाद योजना तहत करवा सकें? दरगाह में अतिक्रमण व जन सुरक्षा पर खतरों की लगातार सूचनाएं मिली हैं, मानसून में परिसर का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ था। यहां मुगल व और भारतीय इस्लामी स्थापत्य के कई प्रतीक भी हैं। इसको देखते हुए क्या एएसआई से इस काम के बारे बात कर सहमति ली गई है? इसके अलावा 11 अक्टूबर 2007 को दरगाह में बम विस्फोट हुआ था, उसी राजस्थान के मुख्य सचिव ने सुरक्षा पर बैठक की थी। तब तय हुआ था कि दरगाह के प्रवेश व निकास दरवाजों की सुरक्षा सीआरपीएफ या सीआइएसएफ को सौंपने का निवेदन केंद्र सरकार से किया जाएगा। क्या इस बारे में गृह मंत्रालय से सलाह ली गई?

बिना वीजा भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पार कर अजमेर पहुंचे
दरगाह अन्दर कोट क्षेत्र घुसपैठियों की ‘शरणस्थली’ बन चुका है। बिना वीजा भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पार कर अजमेर पहुंचे घुसपैठिए यहां अपनी पहचान छुपाकर वर्षों से जमे हैं। खानाबदोश जिन्दगी बसर कर रहे इन घुसपैठियों के डेरे आबाद होने की बड़ी वजह ‘मुफ्त का खाना’ और ‘मुफ्त की जमीन’ है। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के मामले में संज्ञान लेने पर कुछ माह पहले डीआईजी (अजमेर रेंज) ओमप्रकाश व एसपी वंदिता राणा ने सीओ दरगाह के नेतृत्व में एसटीएफ का गठन किया। इससे पहले एसपी ने दरगाह व गंज थाना पुलिस के जरिए दरगाह अन्दर कोट, लाखन कोटड़ी, लौंगिया और नई सड़क के आसपास के क्षेत्र का डोर-टू-डोर सर्वे करवाया। सर्वे में 10 हजार लोगों का डेटा बेस तैयार करते हुए इलाके में 200 संदिग्धों को चिन्हित किया गया।

चार बड़ी वजह जिनके चलते घुसपैठियों की शरणस्थली
1. मुफ्त भोजन- दरगाह क्षेत्र में जायरीन लंगर का वितरण करते है। यहां खानाबदोश जीवन बसर करने वालों को मुफ्त में आसानी से भोजन मिल जाता है।
2. मुफ्त आवास-दरगाह अन्दर कोट इलाके में जालियान कब्रिस्तान, अम्बाबाव, नई सड़क, तारागढ़ पैदल मार्ग पर खाली पड़ी सरकारी जमीन पर बने झोपड़े अब मकान में तब्दील हो चुके हैं।
3.सस्ता रोजगार- बांग्लादेशी घुसपैठियों को दरगाह क्षेत्र में भिक्षावृत्ति के अलावा घरेलू कामकाज, टेंट व्यवसाय और लाइट डेकोरेशन का काम आसानी से मिल जाता है।
4. सेफ पनाह- अममेर दरगार शरीफ के आसपास के क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय का जमावड़ा है। इसके चलते बाहर से आने वाले बांग्लादेशी घुसपैठिए, राष्ट्रविरोधी तत्व आसानी से इनमें घुल-मिल जाते हैं। इनके लिए यह क्षेत्र सुरक्षित पनाहगाह बना है।

दरगाह क्षेत्र में पकड़े गए हैं बड़े आतंकी और घुसपैठिए
अक्टूबर, 2010
बेंगलूरू आतंकी बम धमाके और तमिलनाडु में बस जलाने के मामले में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी उमर फारूक और उसके तीन सहयोगियों को अजमेर से एटीएस ने गिरफ्तार किया था।
अक्टूबर, 2021
दिल्ली से गिरफ्तार पाक आतंकी मोहम्मद अशरफ 15 साल पहले भारत आया था, वह काफी समय अजमेर दरगाह क्षेत्र में छिपा रहा था। भारत में आतंकियों के लिए स्लीपर सेल चलाता था।
जनवरी, 2022
बांग्लादेश से अवैध रूप से भारत में घुसे व 12 साल से पहचान छिपाकर दरगाह क्षेत्र में रह रहे दो बांग्लादेशी मो. आलमगीर और शाहीन पुलिस ने पकड़े।
जुलाई, 2022
अजमेर दरगाह का एक खादिम गौहर चिश्ती को हैदराबाद से गिरफ्तार किया गया। उस पर भीड़ को मजहब के नाम भड़काने का आरोप था। वह उदयपुर में हुए 4 कन्हैयालाल हत्याकांड के मुख्य अभियुक्तों मोहम्मद और गौस मोहम्मद से भी मिला था।
जुलाई, 2022
भाजपा नेता रहीं नुपूर शर्मा की हत्या के लिए इनाम की घोषणा करने वाला हिस्ट्रीशीटर सलमान चिश्ती गिरफ्तार किया गया। वह दरगाह में खादिम भी था। इसे लेकर क्षेत्र में तनाव व्याप्त हो गया था।
अक्टूबर, 2022
दरगाह से जुड़े एक सदस्य के बेटे तौसीफ चिश्ती को पंजाब पुलिस ने दरगाह क्षेत्र में एक कैफे से गिरफ्तार किया। उस पर मोहाली पुलिस मुख्यालय पर ग्रेनेड फेंकने वाले खालिस्तानी आतंकियों को शरण देने का आरोप लगा।
सितंबर, 2025
दरगाह परिसर में फूल उठाने का काम करने वाला सलीम शेख अवैध रूप से बांग्लादेश से भारत में घुसने के मामले में गिरफ्तार हुआ। वह और उसके जैसे 55 बांग्लादेशी कुछ माह में क्षेत्र से पकड़े गए।

शराब पिए हुए मस्जिद में क्यों नहीं गया, मंदिर में ही क्यों गया? बेंगलुरु में देवी-देवताओं की मूर्ति पर बांग्लादेशी घुसपैठिए ने फेंकी चप्पल, मंदिर में लगाए ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे

          हिंदू मंदिर में घुसकर देवताओं की मूर्तियों का अपमान करने वाला बांग्लादेशी नागरिक गिरफ्तार
बेंगलुरु के देवराबीसनहल्ली गाँव में एक मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति को अपमानित करने के आरोप में 45 वर्षीय बांग्लादेशी नागरिक कबीर मंडल को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। आरोपित ने कथित तौर पर मंदिर में घुसकर ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारे लगाए और मूर्तियों पर चप्पल से हमला करने की कोशिश की।

जानकारी के अनुसार, स्थानीय लोगों ने उसे पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस ने आरोपित के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने और अपमान करने के इरादे से हरकतें करने के आरोप में केस दर्ज किया है। कबीर मंडल ने गर्भगृह के बाहर रखी दो मूर्तियों में से एक को निशाना बनाया। वह मूर्तियों पर चप्पल से हमला करने की कोशिश कर रहा था।

स्थानीय लोगों ने पकड़ा, पिटाई भी की

घटना के समय आरोपित कथित तौर पर शराब के नशे में था। मंदिर में हुई इस हरकत को देखकर स्थानीय लोग तुरंत हरकत में आए। उन्होंने कबीर मंडल को तुरंत पकड़ लिया और उसे एक खंभे से बाँध दिया। उन्होंने पुलिस के आने तक उसे वहीं रोके रखा। इस दौरान आक्रोशित भीड़ में से कुछ लोगों ने उसकी पिटाई भी की। बाद में, पुलिस मौके पर पहुँची और आरोपित को गिरफ्तार कर लिया।

सवाल यह है कि शराब पिए हुए किसी मस्जिद में क्यों नहीं गया, मंदिर में ही क्यों गया? उपद्रवी जानता था कि शराब पीकर किसी मस्जिद में ऐसी हरकत करने का क्या अंजाम होगा। मंशा साफ है इस हरकत के लिए उसे साम्प्रदायिक तनाव बनाने के लिए भेजा गया था। रिमांड पर लेकर पुलिस को सख्ती से पूछताछ करनी चाहिए।  

पुलिस जाँच में अवैध निवास का खुलासा

पुलिस जाँच में सामने आया कि गिरफ्तार किया गया आरोपित कबीर मंडल बांग्लादेशी नागरिक है। वह बेंगलुरु में अवैध रूप से रह रहा था और मोची का काम करता था। पुलिस ने उस पर धार्मिक भावनाएँ भड़काने और अपमान करने के इरादे से की गई हरकतों के तहत भारतीय न्याय संहिता (BNS) की संबंधित धाराओं में केस दर्ज किया है।

पुलिस उसके इमिग्रेशन दस्तावेज और बेंगलुरु में रहने की वैधता की भी जाँच कर रही है। इसके साथ ही, पुलिस ने भीड़ द्वारा की गई पिटाई के मामले को भी संज्ञान में लिया है। अज्ञात लोगों के खिलाफ इस मामले में अलग से केस दर्ज किया गया है।

कांग्रेस नेता के असम में बांग्लादेश का राष्ट्रगान गाने पर हंगामा, बीजेपी बोली- इनका असली एजेंडा ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ है: Video हुआ वायरल

                    कांग्रेस की बैठक में गाया गया बांग्लादेश का राष्ट्रगान (फोटो: X/Ashok Singhal)
असम में कांग्रेस नेता के द्वारा एक बैठक में बांग्लादेश का राष्ट्रगान गान गाए जाने को लेकर विवाद हो गया है। असम के श्रीभूमि जिले के कांग्रेस सेवा दल की बैठक में सोमवार(27 अक्टूबर 2025) को वरिष्ठ कांग्रेस नेता बिधु भूषण दास ने सार्वजनिक मंच पर बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गा दिया।

वरिष्ठ कांग्रेस नेता बिधु भूषण दास द्वारा बांग्लादेश के राष्ट्रगान को गाना एक सोंची-समझी सियासत है। पाकिस्तान के साथ-साथ अब बांग्लादेश की गोद में बैठने की तैयारी हो चुकी है। यानि जहाँ-जहाँ हिन्दुओं का दमन किया जा रहा है उस देश को कांग्रेस गले लगा रही है।     

यह घटना करीमगंज (श्रीभूमि) के इंदिरा भवन में हुई, जहाँ सेवा दल की कार्यकारिणी की बैठक चल रही थी। दास ने भाषण की शुरुआत ही ‘आमार सोनार बांग्ला’ गाकर की। यह सुनते ही वहाँ मौजूद लोग हैरान रह गए।

वीडियो सोशल मीडिया पर पहुँचा तो असम के मंत्री कृष्णेंदु पॉल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “कांग्रेस कुछ भी कर सकती है। उस पार्टी में सब कुछ अजीब है, उन्हें तो यह भी नहीं पता कि कब क्या गाना है।”

असम के कैबिनेट मंत्री अशोक सिंघल ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने X पर दास का वीडियो शेयर कर लिखा, “असम के श्रीभूमि में कांग्रेस की एक बैठक में बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ गाया गया, वही देश जो पूर्वोत्तर को भारत से अलग करना चाहता है!”

उन्होंने आगे कहा, “अब यह स्पष्ट है कि कांग्रेस ने दशकों तक असम में अवैध मिया घुसपैठ को क्यों अनुमति दी और प्रोत्साहित किया और इसका मकसद वोट बैंक की राजनीति के लिए राज्य की जनसांख्यिकी को बदलना और ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ का निर्माण करना था।”

कांग्रेस ने दी सफाई

कांग्रेस की ओर से हमेशा की तरह इस बार भी लीपापोती शुरू हो गई है। करीमगंज कांग्रेस मीडिया विभाग के प्रमुख शहादत अहमद चौधरी ने बचाव करते हुए कहा है कि वह रवीन्द्र संगीत गा रहे थे। शहादत ने कहा, “दास ने तो बस एक रवीन्द्र संगीत गाया था, कोई राष्ट्रगान नहीं। वह हर स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराते हैं।”

यह वही गीत है जिसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान लिखा था और इसे आज बांग्लादेश अपने राष्ट्रीय गीत के रूप में गाता है। कांग्रेस भले ही इस पर सफाई दे लेकिन कई सवाल जरूर इससे खड़े हुए हैं।

अब जब वही गीत आज बांग्लादेश का राष्ट्रगान है तब सार्वजनिक मंच पर उसे गाना क्या देश की गरिमा का अपमान नहीं है? लोग अब यह भी पूछ रहे हैं कि फिर तो कल को कोई पाकिस्तान का राष्ट्रगान भी किसी की रचना बताकर गाना शुरू कर देगा।

तालिबान : भारत की सफल विदेश नीति और अमेरिका

डॉ राकेश कुमार आर्य
भारत के तेजी से बढ़ते कदम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बैठे तथाकथित कुछ बड़े और शक्तिशाली देशों के लिए खतरे की घंटी बन चुके हैं। भारत ने चुपचाप जिस प्रकार अफगानिस्तान के बगराम एयरबेस पर अपना कब्जा किया है , उसने अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की रातों की नींद उड़ा दी है। इस एक कदम ने ही पाकिस्तान को चारों ओर से घेर लिया है। जिसके चलते पाकिस्तान के लिए कई प्रकार की चुनौतियां खड़ी हो गई हैं ।' ऑपरेशन सिंदूर' के समय पराजित होने के उपरान्त भी पाकिस्तान ने अपने विजयी होने का दम भरा था , उसके इस पाखंड को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कहकर और अधिक हवा दे दी थी कि उन्होंने ही भारत और पाकिस्तान के बीच चले युद्ध को रुकवाया था।
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता
पाकिस्तान ने इस स्थिति का लाभ उठाते हुए इस प्रकार का दुष्प्रचार किया कि पाकिस्तान ने भारत के कई विमान मार गिराए थे और अंत में पाकिस्तान के सामने भारत को हथियार डालने पड़े। बाद में अमेरिका ने पाकिस्तान के फील्ड मार्शल आसिम मुनीर को अपने यहां आमंत्रित कर उसमें और अधिक हवा भरने का काम किया। जिससे कि भारत को नीचा दिखाया जा सके। इधर भारत के रणनीतिकारों ने अपनी नई रणनीति पर काम करना आरंभ किया। जिसके चलते आज सारा संसार भारत की नई रणनीति की योजना के सामने भौंचक्का खड़ा है । अमेरिका जैसे देशों का दम चकनाचूर हो गया है, जो अपने आप को विश्व का दादा समझते थे , वे आज भारत को विस्फारित नेत्रों से देख रहे हैं।
भारत ने जिस प्रकार बगराम एयरबेस पर अपना नियंत्रण स्थापित किया है, उस पर पेंटागन ने भारत को गंभीर परिणामों की चेतावनी दी है । यह वही बगराम एयरबेस है जहां से अमेरिका ने दो दशक तक अपनी सैनिक पकड़ बनाए रखने में सफलता प्राप्त की थी। सीआईए और आईएसआई दोनों ही भारत की इस प्रकार की रणनीतिक योजना को पकड़ नहीं सकीं। इससे पता चलता है कि मोदी का भारत अब किसी भी स्तर पर किसी की पकड़ में आने वाला नहीं है। यह निर्भीक और निडर होकर निर्णय लेने वाला भारत है, जो अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिए सब कुछ करने को तैयार है । भारत के सुरक्षित अस्तित्व का अर्थ है हिंदू का सुरक्षित अस्तित्व और हिंदू के सुरक्षित अस्तित्व का अभिप्राय है एक ऐसी सनातन संस्कृति का अस्तित्व बनाए रखना जो सारे विश्व को शांति का वास्तविक संदेश देने में सक्षम है। इसलिए प्रधानमंत्री श्री मोदी सनातन के संस्कारों को संसार में फैलाने के लिए काम करने वाले प्रधानमंत्री के रूप में इतिहास में अपना स्थान बना चुके हैं।
प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में बढ़ते हुए भारत की धमक अब बीजिंग से लेकर वाशिंगटन तक और वाशिंगटन से लेकर इस्लामाबाद तक अर्थात पूरी दुनिया में बराबर सुनी जा सकती है। बगराम में भारत ने जिस प्रकार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, उससे बीजिंग ने तुरंत आपात बैठक बुलाकर सेना को प्रत्येक प्रकार की कार्यवाही से निपटने के संकेत और संदेश दिए गए हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान ने भी सेना को प्रति क्षण किसी ' बड़ी कार्यवाही ' से निपटने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। बगराम में भारत की उपस्थिति के इस भूकंप के सबसे तीव्र झटके वाशिंगटन में अनुभव किये जा रहे हैं। जहां पर अमेरिका के बड़े रणनीतिकार भी भारत की रणनीति का तोड़ ढूंढने में अपने आप को असफल और अक्षम अनुभव कर रहे हैं । यह छोटी बात नहीं है कि वाशिंगटन की प्रत्येक खुफिया एजेंसी की आंखों में धूल झोंककर भारत ने इतनी बड़ी कार्यवाही करने में सफलता प्राप्त की है। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह जान की परवाह किए बिना अपने राष्ट्र के हितों के लिए कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है, क्योंकि राष्ट्र का अस्तित्व प्रत्येक व्यक्ति के अस्तित्व से बड़ा है। आज का भारत मोदी का भारत है। जिसके इरादों को समझकर भी विश्व के नेता यह पूछने का साहस नहीं कर पाए कि वह ऐसा क्यों कर रहा है ? आज के भारत ने अपनी कार्यशैली और आचरण से यह सिद्ध कर दिया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने में उतना ही स्वतंत्र है, जितना कोई अन्य देश स्वतंत्र है। इसलिए नैतिकता के उपदेश भी भारत स्वीकार करे या न करे , यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है। यदि कोई अन्य देश इन उपदेशों को अनसुना करता है तो भारत को भी उन्हें अनसुना करने का अधिकार है।
यही कारण है कि भारत ने बगराम में पहुंचने के उपरांत अपनी कोई तीव्र और आधिकारिक प्रतिक्रिया जारी नहीं की है। उसने इतना स्पष्ट कर दिया है कि अपनी क्षेत्रीय अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भारत कुछ भी करेगा। हमारे एनएसए श्री अजीत डोभाल और विदेश मंत्री श्री एस. जयशंकर का देश के प्रति समर्पण का भाव भी सचमुच बहुत ही सराहनीय है। उन्होंने अपनी प्रत्येक बुद्धिमत्तापूर्ण कार्यशैली से यह सिद्ध कर दिया है कि उनके लिए देश प्रथम है। वे देश के लिए जीते हैं और देश के लिए ही सोचते हैं। आज के भारत की सफल विदेश नीति के संदर्भ में इन दोनों महानुभावों की भूमिका को हम नकार नहीं सकते। इन्हीं की योजना के चलते भारत ,अफगानिस्तान और इजरायल तीनों मिलकर आज एक ही दिशा में कार्य कर रहे हैं । जिन्हें देखकर पाकिस्तान के पसीने छूट रहे हैं। जी हां, वही पाकिस्तान जो 1947 से लेकर आज तक अपने आप को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित नहीं कर पाया। वहां आज भी बलोची, पठान, पंजाबी, सिंधी और कश्मीरी तो मिलते हैं, लेकिन कोई पाकिस्तानी नहीं मिलता। एक ऐसा देश जिसे अपने आप को राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए लगभग 80 वर्ष मिले, परंतु वह अपनी परीक्षा में सफल नहीं हो पाया, भारत के लिए अनावश्यक ही एक सिर दर्द मान लिया गया था। यद्यपि उसमें 'सिरदर्द' बनने की तनिक सी भी क्षमता नहीं थी।
जैसे महात्मा गांधी जिन्ना की औकात बढ़ाते-बढ़ाते उसे सिर पर उठाये घूमते रहे तथा जिन्ना और भी अधिक नखरेबाज होता चला गया, वैसे ही कांग्रेस पाकिस्तान के बारे में करती आ रही थी। इसकी औकात बढ़ाते-बढ़ाते कांग्रेस उसे सिर पर लिए घूमती रही, परंतु यह और भी अधिक नखरेबाज होता चला गया। आज उसकी औकात को भारत के रणनीतिकारों ने अपनी सफल विदेश नीति के चलते सही स्थान पर स्थापित कर दिया है। यह अच्छा हुआ कि मोदी जी समय पर आ गए, अन्यथा कांग्रेस इसी पाकिस्तान के प्रति तुष्टिकरण की अपनी परंपरागत नीति के चलते देश का एक और विभाजन करवा डालती।
भारत ने तालिबान को आर्थिक सहयोग देकर बगराम एयरबेस को प्राप्त किया है। तालिबान को इससे अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में सहयोग मिलेगा। इसके साथ ही उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिलेगी, जबकि भारत अपने इस एक कदम से ही यह सिद्ध करने में सफल हो गया है कि वह अपनी क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने के लिए ही चिंतित नहीं है बल्कि वह अब एशिया का एक जिम्मेदार और गंभीर नेता भी है। जिसकी बिना अनुमति के इस क्षेत्र में संसार की कोई भी शक्ति अपने कदम नहीं रख सकती।
वास्तव में भारत ने जिस प्रकार अपनी विदेश नीति को नई ऊंचाइयों को पर ले जाकर स्थापित किया है, वह एक नए युग का शुभारंभ है ।
बगराम में भीतर ही भीतर बहुत कुछ घटित हो रहा है। जिसके युगांतरकारी प्रभाव और परिणाम आएंगे। यहां से विश्व राजनीति को भी नई दिशा मिलने की पूरी-पूरी संभावना है। यह शांति की दिशा में किया जाने वाला कार्य है। यह किसी को नीचा दिखाकर उसे जख्मी करने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि जख्मों पर मरहम लगाने का एक अभियान है। भारत की इसी सोच और मानसिकता पर अफगानिस्तान ने भी विश्वास किया है। तभी वहां की तालिबानी सरकार ने भारत को अफगानिस्तान में आकर रहने की अनुमति प्रदान की है , अन्यथा वह अच्छी प्रकार जानता है कि अमेरिका जैसे देश यदि किसी दूसरे देश में जाकर अपनी सेना का पड़ाव डाल देते हैं तो उन्हें निकालना कितना कठिन होता है ? तालिबान ने यदि भारत पर विश्वास किया है तो इसका अभिप्राय है कि भारत का विश्व राजनीति में विश्वास बढ़ा है जो कि एक शुभ संकेत है।

केवल दरी बिछाने वालों के नाम पर उपमुख्यमंत्री पद चाहिए; पहचान तो और भी बहुत हैं; मोदी RSS के दुश्मन बने, ये पहचान क्या कम है?

सुभाष चन्द्र

दो दिन पहले इंदौर में ऑस्ट्रेलिया की महिला क्रिकेट खिलाड़ियों से छेड़छाड़ कर देश पर बदनामी का दाग लगाने वाले कौन थे? अभी हाल ही में राम मंदिर को उड़ाने की साजिश करने वाले 19-20 साल के पकडे गए दो लड़के कौन थे? केरल के मंत्री भास्करन की बेटी को लव जिहाद में फ़साने वाला 4 बच्चों का बाप कौन है? आतंकवाद जैसे अनेक अपराध है जिनके लिए उस कौम के लोग जिम्मेदार मिलते हैं लेकिन बिहार में यह कह कर तमाशा कर दिया कि क्या “दरी बिछाने” वालों को उपमुख्यमंत्री क्यों नहीं बना सकते? 

मुस्लिमों ने अपने नेताओं का चश्मा लगा रखा है जो मोदी को हराने के लिए विदेशों से भी आकर वोट देने आते हैं और बांग्लादेश और म्यांमार से रोहिंग्या घुसपैठ किए हुए हैं जिन्हें समूचा विपक्ष समर्थन देता है। विपक्ष की बेशर्मी की हद तो देखो कि बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों की तुलना में योगी को उत्तर प्रदेश में “घुसपैठ” करने वाला कह दिया क्योंकि वह उत्तराखंड के जन्मे हैं जो कभी उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था 

लेखक 
चर्चित YouTuber 
मुस्लिमों के वोट के लिए विपक्ष 80% हिंदू समाज की परवाह नहीं करता और तबियत से हिंदुओं और उनके देवी देवताओं का अपमान करता है और आज से नहीं वर्षों से मुस्लिम वोटों की खरीद फरोख्त होती रही है उनके वोट बड़े बड़े इमामों और मुस्लिम नेताओं के इशारों पर पड़ते रहे हैं

आबादी मुसलमानों की बढ़ती गई लेकिन लोकसभा में सदस्यता में बहुत बड़ा अंतर नहीं पड़ा

पहली लोकसभा से अब तक की 18 लोकसभाओं में मुस्लिमों की संख्या यह रही है 

पहली लोकसभा - 21 (1952)

दूसरी लोकसभा -  22 (1957)

तीसरी लोकसभा - 26 (1962)

चौथी लोकसभा -  25 (1967)

पांचवी लोकसभा -28 (1971)

छठी लोकसभा -   34 (1977)

सातवीं लोकसभा -49 (1980) 

आठवीं लोकसभा -42 (1984)

नौवीं लोकसभा   -27 (1989)

दसवीं लोकसभा -25 (1991)

11वीं लोकसभा -29 (1996)

12 वीं लोकसभा -28 (1998)

13वीं लोकसभा - 31 (1999)

14वीं लोकसभा - 34 (2004)

15वीं लोकसभा - 30 (2009)

16वीं लोकसभा - 22 (2014)

17वीं लोकसभा -27 (2019)

18 वीं लोकसभा -24 (2024)

मुस्लिमों के लिए सच्चर कमेटी का गठन मार्च 2005 में हुआ और डेढ़ साल में 17 नवंबर, 2006 को रिपोर्ट भी आ गई  जिसके आधार पर मनमोहन सिंह ने कहा कि देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का है लेकिन 2006 के बाद हुए लोकसभा के चुनावों में मुस्लिमों की संख्या कम ही होती गई एक समय था जब जामा मस्जिद का इमाम बुखारी मुस्लिम वोटो का सौदा किया करता था और इंदिरा गांधी समेत गैर भाजपाई सभी दलों के नेता उसके दर पर माथा रगड़ते थे 

एक शोशा बहुत से विपक्षी दलों और अरफ़ा खानम जैसे मुस्लिम पत्रकार उठाते रहते हैं कि भाजपा किसी मुस्लिम को चुनाव में नहीं खड़ा करती और क्यों मोदी की कैबिनेट में कोई मुस्लिम नहीं होता ऐसे लोग कभी ऐसी बात मुसलमानों से नहीं कहते कि जब तुम मोदी को वोट ही नहीं देते तो वो तुम्हें चुनाव में क्यों खड़ा करे और क्यों मंत्री बनाए लेकिन फिर भी मोदी मुसलमानों को कोई सुविधाएँ देने में कोई भेदभाव नहीं करता

केंद्र सरकार के कानून को क्या कोई राज्य सरकार खत्म कर सकती है? जम्मू कश्मीर में कहा गया अगर NC/Congress गठबंधन जीता तो 370 वापस ले आएंगे क्या आ गया 370 वापस जिसके भरोसे लोगों ने इन दोनों दलों को वोट दिया। आखिर मुसलमानों को कब तक पागल बनाकर बीजेपी को दुश्मन बताते रहोगे?  

अब बिहार में नौवीं फेल मुख्यमंत्री पद का दावेदार जो कर्पूरी ठाकुर का सम्मानित पद चोरी कर खुद को “जननायक” बता रहा है, वो कह रहा है कि उनकी सरकार बनते ही “वक्फ कानून” को कूड़ेदान में फ़ेंक देंगे और मुसलमान ताली बजा रहे हैं जबकि राज्य सरकार ऐसा कर ही नहीं सकती  

महात्मा गांधी के प्रपौत्र श्रीकृष्ण कुलकर्णी का राहुल गाँधी को खुला पत्र : गांधी उपनाम का उपयोग करना एक चालाकी भरा प्रयास; गाँधी जी हत्या के लिए RSS को दोष देना बंद करो

 


राहुल गांधी द्वारा महात्मा गांधी के प्रपौत्र को लिखा गया एक पत्र...---जिसमें राहुल गांधी द्वारा कहा गया कि.. "RSS ने ही गांधी जी की हत्या की थी--", ताकि वे भाजपा के विरुद्ध कांग्रेस का साथ देने आ जायें। इसके जवाब में गांधीजी के प्रपौत्र श्रीकृष्ण कुलकर्णी ने जवाब मे राहुल गांधी को ये खुला पत्र लिखा, जिसे उन्होंने पब्लिक डोमेन में भी प्रसारित किया था।’

प्रिय राहुल गांधी जी,
यह पत्र मैं, श्रीकृष्ण कुलकर्णी, लिख रहा हूं, जो महात्मा गांधी के प्रपौत्र होने का सौभाग्य रखता हूं। हाल ही में आपने जो बयान दिया कि "RSS ने गांधी जी की हत्या की थी", उस पर मुझे गहरा खेद है। यह बयान न केवल ऐतिहासिक तथ्यों से परे है, बल्कि इसे बार-बार दोहराने से देश में भ्रम और गलतफहमियां फैलती हैं।
मोहनदास करमचंद गांधी की हत्या श्री नाथूराम गोडसे ने की थी, और यह तथ्य कई जांच आयोगों और ऐतिहासिक दस्तावेजों में स्पष्ट किया गया है। इन आयोगों में किसी ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) को गांधी जी की हत्या के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया।
मेरे दादा, स्वर्गीय रामदास गांधी, जिन्होंने अपने पिता महात्मा गांधी के जीवन और सिद्धांतों को करीब से समझा, उन्होंने भी श्री नाथूराम गोडसे को मृत्युदंड से बचाने के लिए तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल को पत्र लिखा था। यह उनके भीतर की मानवता और माफ करने की शक्ति का प्रतीक था।
1969 में जब मेरे दादा रामदास गांधी का निधन हो रहा था, उस समय नाथूराम गोडसे के छोटे भाई, गोपाल गोडसे, उनसे मिलने आए थे। मेरा परिवार इस पूरे अध्याय को पीछे छोड़ चुका है, और हमने गांधी जी की शिक्षाओं के अनुरूप आगे बढ़ने का निर्णय लिया है।
आपसे मेरा निवेदन है कि गांधी जी के नाम और उनके जीवन को बार-बार अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना बंद करें। इतिहास को समझें, और देश के हित में आगे बढ़ें। बार-बार RSS पर आरोप लगाना ठीक वैसा ही है जैसे कहना कि "सिखों ने आपकी दादी की हत्या की थी।" लेकिन यह असत्य है, क्योंकि इसमें पूरे सिख समुदाय की भागीदारी नहीं थी।
आप गांधी परिवार से नहीं हैं।
आपका परिवार और आप वर्षों से गांधी नाम का उपयोग करके देश को गुमराह करते आए हैं। गांधी उपनाम का उपयोग करना एक चालाकी भरा प्रयास है, जिसने दशकों तक भारतीय जनमानस को भ्रमित किया।
आपके दादा फिरोज खान थे, जो जूनागढ़ के नवाब खान के पुत्र थे। आपकी दादी इंदिरा गांधी ने फिरोज खान से विवाह करने के लिए इस्लाम धर्म अपनाया था। इस प्रकार, आपका डीएनए एक मिश्रण है—मुस्लिम और कैथोलिक का। न तो आप गांधी हैं, न ही हिंदू।
आपसे मेरी अपेक्षा है कि आप अब अपने वास्तविक इतिहास और पहचान को स्वीकार करें। मेरे परिवार के नाम का इस्तेमाल बंद करें और देश की जनता से माफी मांगें।
👉यह पत्र केवल सत्य और न्याय के लिए लिखा गया है, ताकि मेरे परिवार के नाम का दुरुपयोग और गलत व्याख्या न हो। --जय हिंद।

वॉशिंगटन पोस्ट के फर्जी आर्टिकल से मोदी सरकार को घेरने में जुटी Deep State की गुलाम कांग्रेस, अडानी ग्रुप में LIC के निवेश को बना रही निशाना

                                                एलआईसी, अडानी ग्रुप, वॉशिंगटन पोस्ट, कॉन्ग्रेस
भारत 1947 में आज़ाद जरूर हुआ लेकिन गुलामी मानसिकता के पोषित नेता और कुछ पार्टियां अभी तक गुलामी मानसिकता से बाहर नहीं आयी। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद से Deep State की गुलाम कांग्रेस और इसकी समर्थित पार्टियां देशभक्ति के ढोंग रच देश को गुलाम बनाने पर आमादा है। ये गुलामी मानसिकता वाले कभी आत्मनिर्भर बन भारत की आन, बान और शान को नहीं बनाना चाहते। 2014 के बाद जितने आंदोलन और धरने/प्रदर्शन हुए सभी भारत 
की आन, बान और शान के खिलाफ थे।   

कोई बाहरी देश विरोधी ताकतें तभी हरकत में आती है जब उनको बिकाऊ जयचन्द मिलते हैं। भारत को राहुल गाँधी नाम का ऐसा LoP मिला है जो अपने पद की गरिमा बनाए रखने की बजाए कलंकित करने का कोई मौका नहीं चूक रहा। जिस LoP को अपने देश की आर्थिक स्थिति और वर्तमान वस्तुस्थिति का ज्ञान न हो उसे LoP बने रहने का कोई हक़ नहीं बल्कि जनता को भी अपनी अक्ल का इस्तेमाल ऐसे लोगों को चुनाव में चारों खाने चित करें न कि वोट देकर देश पर बोझा थोपे। LoP को ऐसे शब्द बोलने जिस पर देश विश्वास कर सके। नाकि वह बोली बोले जो भारत विरोधी देश बोल रहे हों। 

वॉशिंगटन पोस्ट ने मोदी सरकार के खिलाफ एक और झूठी रिपोर्ट छापी। उसमें आरोप लगाया गया कि सरकार ने लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन यानी एलआईसी को गौतम अडानी की कंपनियों में जबरदस्ती निवेश करने को मजबूर किया। कांग्रेस पार्टी को लगा कि उसे मोदी सरकार पर हमला करने का सबसे बड़ा हथियार मिल गया है। वो इस आरोप को लेकर सरकार पर लगातार हमला कर रही है और एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कई मीम्स पोस्ट कर रही है।

कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से कई ट्वीट आए। एक में मजाक उड़ाते हुए लिखा गया- ‘केवल 3,30,00,00,00,000 रुपए मात्र’ यानी सिर्फ 33,000 करोड़ रुपए। साथ में एक मीम था जिसमें प्रधानमंत्री मोदी गौतम अडानी को एलआईसी का बहुत बड़ा चेक सौंप रहे हैं। नीचे लिखा- ‘मोदी है तो मुमकिन है’। ऐसे ही कई मीम्स और ट्वीट्स कांग्रेस ने डाले।

हालाँकि एलआईसी ने इन सारे आरोपों को साफ-साफ खारिज कर दिया। उसने कहा कि उसके सारे निवेश, जिनमें अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड में 570 मिलियन डॉलर की हिस्सेदारी भी शामिल है, पूरी तरह से स्वतंत्र रूप से किए गए। ये निवेश क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा AAA रेटिंग प्राप्त कंपनी में किया गया और पूरी जाँच-पड़ताल के बाद, पूरी ईमानदारी से हुआ।

वॉशिंगटन पोस्ट और कांग्रेस ने जो नुकसान का आरोप लगाया, वो गलत है। असल में एलआईसी को अडानी के निवेश से अच्छा-खासा मुनाफा हुआ है। खास बात ये है कि एलआईसी की रिलायंस में 6.9% हिस्सेदारी है जो करीब 1.3 लाख करोड़ रुपए की है और टाटा में 15.9% हिस्सेदारी है जो 82,800 करोड़ रुपए की है। ये अडानी से कहीं ज्यादा है, लेकिन कॉन्ग्रेस सिर्फ अडानी ग्रुप के निवेश पर ही हमला कर रही है।

जब कांग्रेस मोदी को एलआईसी का पैसा अडानी को देने का आरोप लगाकर मीम्स बना रही है, तो वो भूल गई कि उसकी अपनी सरकार ने एलआईसी के पैसे को कैसे इस्तेमाल किया था। यूपीए सरकार खासकर अपने दूसरे कार्यकाल में एलआईसी को सरकारी घाटा छुपाने और डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट पूरा करने के लिए बेलआउट खरीदार की तरह यानी निजी एटीएस की तरह इस्तेमाल करती थी।

दोहरा घाटा था, डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट पूरा नहीं हो रहे थे क्योंकि घाटे में चल रहे सरकारी उपक्रमों के शेयरों में मार्केट में कोई दिलचस्पी नहीं थी। वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा था। ऐसे में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार ने बार-बार एलआईसी को मजबूर किया कि वो इन घाटे वाले PSU शेयरों को खरीद ले। पॉलिसीधारकों का पैसा सरकार की किताबें सजाने में लगाया गया। कम रिटर्न वाले निवेश करवाए गए, सिर्फ मनमाने डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट पूरे करने के लिए।

आज जहाँ एलआईसी के निवेश पारदर्शी हैं और अच्छा मुनाफा दे रहे हैं, वहीं यूपीए ने एलआईसी को PSU डिसइन्वेस्टमेंट में जबरदस्ती शामिल कर घाटे में डाला। 2013 के इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कई PSU शेयरों में एलआईसी को सरकार बचाने के लिए खरीदे थे, उनमें 3,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ।

यूपीए का डिसइन्वेस्टमेंट प्लान कागज पर तो बड़ा था, लेकिन प्राइवेट सेक्टर से खरीदार नहीं मिल रहे थे। अर्थव्यवस्था सुस्त थी, PSU शेयर महँगे या खराब परफॉर्म कर रहे थे। प्राइवेट निवेशक दूर भाग रहे थे। ऐसे में सरकार एलआईसी पर पूरी तरह निर्भर हो गई कि वो बाकी बचे शेयर उठा ले। नतीजा ये हुआ कि डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट तो पूरे हो गए, लेकिन असल में ये प्राइवेटाइजेशन का दिखावा था। सरकार को राजस्व दिखाने और वित्तीय स्थिति सुधारने का रास्ता मिल गया।

यूपीए-2 (2009-2014) के दौरान एलआईसी ने कई बड़े ऑफर फॉर सेल (OFS) और फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) में 40 से 70 प्रतिशत तक हिस्सा लिया। कुल मिलाकर 30,000 करोड़ रुपए से ज्यादा डाले गए, सिर्फ बिक्री बचाने के लिए।

एलआईसी कई मामलों में सबसे बड़ा निवेशक थी। मिसाल के तौर पर 2010 में NTPC के FPO में एलआईसी ने 49.48% हिस्सा लिया, यानी 8,200 करोड़ के इश्यू में से करीब 4,058 करोड़ रुपए। ये उस साल NMDC समेत 10,000 करोड़ से ज्यादा के प्रयास का हिस्सा था। उसी साल NMDC के FPO में एलआईसी ने 63.72% उठाया, यानी 9,900 करोड़ के माइनिंग स्टेक सेल में से करीब 6,310 करोड़ रुपए। कम बोली आने पर एलआईसी ने मुख्य एंकर की भूमिका निभाई। 2012 में NMDC के फॉलो-अप OFS में एलआईसी ने करीब 47% यानी 597 करोड़ के ऑफर में से 278 करोड़ रुपए के शेयर लिए, क्योंकि रिटेल निवेशक नहीं आए।

साल 2013 में ये सिलसिला और तेज हुआ। ONGC के 12,700 करोड़ के OFS में एलआईसी ने 96% यानी 12,179 करोड़ रुपए के शेयर लिए। ये तेल-गैस सेक्टर में सबसे बड़ा सिंगल खरीद था। SAIL के 1,500 करोड़ के OFS में एलआईसी ने 70.57% यानी करीब 1,058 करोड़ रुपए लिए, जिससे उसकी स्टील PSU में हिस्सेदारी करीब 9% हो गई।

फरवरी 2013 में NTPC के OFS में एलआईसी ने करीब 49% हिस्सा लिया, यानी 3,570 करोड़ के ऑफर में से 1,765 करोड़ रुपए। हिंदुस्तान कॉपर के 1,225 करोड़ के OFS में एलआईसी का हिस्सा करीब 44% था, यानी 608 करोड़ रुपए। आखिर में 2014 में BHEL के 2,685 करोड़ के ब्लॉक डील को एलआईसी ने पूरी तरह उठा लिया, 5.94% हिस्सेदारी ली और इंजीनियरिंग PSU में उसकी होल्डिंग 14.99% हो गई।

ये अलग-अलग निवेश नहीं थे, बल्कि एक पैटर्न था। एलआईसी की खरीदारी से यूपीए को हर साल 40,000 करोड़ का टारगेट पूरा करने में मदद मिली, जबकि ग्लोबल निवेशक मुँह फेर चुके थे। अडानी की हाई-ग्रोथ कंपनियों के उलट इनमें से कई PSU खराब परफॉर्म कर रहे थे, जिससे एलआईसी के कोष की वैल्यू घटी।

सिर्फ डिसइन्वेस्टमेंट ही नहीं, यूपीए ने एलआईसी का और भी बुरा इस्तेमाल किया। वित्तीय घाटा छुपाने के लिए। 2011-12 में घाटा जीडीपी का 6.5% तक पहुँच गया। कर्ज महँगा हो रहा था, बॉन्ड मार्केट सरकार के कागजात नहीं ले रहा था। ऐसे में सरकार ने एलआईसी को ‘कैप्टिव फंड सोर्स’ बना दिया। लंबी अवधि के बॉन्ड खरीदने को कहा, घाटे में चल रहे बैंकों को रिकैपिटलाइज करने को एयर इंडिया और BSNL जैसे घाटे वाले PSU में पूँजी डालने को मजबूर किया।

यूपीए-2 के आखिरी सालों में एलआईसी ने कई PSU बैंकों को बचाया जो ऊँचे NPA से जूझ रहे थे। इक्विटी और बॉन्ड में निवेश किया। यूपीए सरकार द्वारा जारी हजारों करोड़ के ऑयल बॉन्ड एलआईसी ने ही खरीदे। ये ऑयल बॉन्ड भविष्य के बजट पर बोझ थे।

ये नहीं कि एनडीए सरकार में एलआईसी PSU शेयर बिल्कुल नहीं खरीदती। खरीदती है लेकिन वो रेगुलर निवेश होते हैं, बेलआउट नहीं। प्राइवेट इक्विटी और बॉन्ड में निवेश अडानी ग्रुप समेत भी रेगुलर निवेश का हिस्सा हैं, ताकि फंड पर रिटर्न मिले।

साथ ही एलआईसी की रणनीति है कि अच्छे स्टॉक्स जब गिरे हों, तब खरीदो और कीमत बढ़ने पर बेचो। ये स्टॉक मार्केट के लिए उल्टा लग सकता है, लेकिन एलआईसी की कंजर्वेटिव निवेश नीति के लिए ये बिल्कुल फिट बैठता है। यही वजह है कि हिंडेनबर्ग के आरोपों के बाद अडानी स्टॉक्स गिरे तो एलआईसी ने खरीदा और बाद में कीमत बढ़ने पर बेचकर मुनाफा कमाया।

बंगाल : ‘BJP कार्यकर्ताओं को आग लगा देंगे’: TMC विधायक ने SIR को लेकर दिया भड़काऊ बयान, मेयर हकीम बोले- बीजेपी और चुनाव आयोग की टाँगे तोड़ देंगे

                       बीजेपी कार्यकर्ताओं को TMC विधायक की धमकी (साभार : dailypioneer)
आखिर चुनाव आयोग द्वारा बंगाल में SIR से क्यों डर लग रहा है? क्या तृणमूल नेताओं द्वारा भड़काऊ बयान देने के पीछे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का समर्थन है? आखिर संवैधानिक पद पर बैठी ममता संवैधानिक संस्था के काम में क्यों दखल कर रही है? क्या ममता बंगाल राज्य में गुंडाराज को अप्रयत्क्ष समर्थन दे रही है? यदि ऐसा होता है तो ममता के राज में अब तक हुए उपद्रवों को ध्यान में रख राज्य के शांतिप्रिय लोगों को चुनावी दिनों में चोटिल होने के ड्रामे को नज़रअंदाज कर सत्ता से बाहर करने के लिए मतदान करें।      

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेताओं ने मतदाता सूची संशोधन (SIR) प्रक्रिया के बीच हिंसक और भड़काऊ बयान दिए हैं। बर्दवान (उत्तर) के TMC विधायक निशीथ मलिक ने एक रैली में खुलेआम धमकी दी कि अगर बीजेपी ने SIR के नाम पर किसी भी असली वोटर को हटाने की कोशिश की, तो वे बीजेपी कार्यकर्ताओं को सार्वजनिक रूप से आग लगा देंगे।

इस धमकी को TMC के मंत्री और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम के बयान से और हवा मिली। हकीम ने कहा कि वे CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) का विरोध करेंगे, जिसका बीजेपी और चुनाव आयोग गठजोड़ कर रहे हैं और ‘उनके पैर तोड़ दिए जाएँगे।’ मेयर फिरहाद हकीम ने जोर देकर कहा कि जब तक ममता बनर्जी हैं, बीजेपी में यहाँ NRC लागू करने की हिम्मत नहीं है।

दोनों TMC नेताओं ने धमकी दी है कि अगर एक भी असली वोटर का नाम हटाया गया तो वे इसका कड़ा विरोध करेंगे। बीजेपी ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। बीजेपी नेता एस आर बनर्जी ने इन बयानों को अशांति पैदा करने की रणनीति बताते हुए चुनाव आयोग से केंद्रीय बलों की सुरक्षा में SIR प्रक्रिया पूरी कराने की माँग की है। 

फैयाज मंसूरी ने कहा था-‘बाबरी मस्जिद तुर्की की सोफिया मस्जिद की तरह फिर बनाई जाएगी’, सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामला रद्द करने से किया इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले फैयाज मंसूरी के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया है। याचिकाकर्ता मंसूरी के वकील ने कोर्ट में दावा किया कि उसकी पोस्ट में कोई अश्लीलता नहीं था इसलिए आपराधिक केस को रद्द कर दिया जाए।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मंसूरी द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर की गई पोस्ट में कहा गया था कि बाबरी मस्जिद एक दिन तुर्की की सोफिया मस्जिद की तरह फिर से बनाई जाएगी। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की है।

गौरतलब यह है कि मस्जिद के लिए मिली जमीन पर आज तक नींव तक खुदी। सुना है धन भी जमा है यानि "अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर बुझि टके सेर खा जा", जबकि अयोध्या में राममंदिर बनकर तैयार भी हो गया। श्रद्धालु दर्शन करने जा रहे हैं। लेकिन मस्जिद का कोई अता पता नहीं। और अपने फायदे के लिए मुसलमानों के जज्बातों से खेल अपनी तिजोरियां भरते हैं।  

वहीं, याचिकाकर्ता के वकील तल्हा अब्दुल रहमान का दावा है कि जिस पोस्ट में अश्लीलता और भड़काऊ टिप्पणी की गई थी वह किसी अन्य व्यक्ति का है। अब्दुल ने दावा किया कि उसकी जाँच नहीं की गई है।

जस्टिस कांत ने इससे सहमत ना होते हुए कहा कि कोर्ट ने याचिकाकर्ता की पोस्ट की जाँच की है। हालाँकि, जज ने चेतावनी देते हुए कहा, “हमसे कोई टिप्पणी ना माँगी जाए।” सुप्रीम कोर्ट ने अपराधिक मामले ना रद्द करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी तर्कों पर ट्रायल कोर्ट द्वारा उनके गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाएगा।

क्या है मामला?

लखीमपुर खीरी के रहने वाले याचिकाकर्ता मंसूरी के खिलाफ 6 अगस्त 2020 को FIR दर्ज की गई थी। इसमें जिसमें दावा किया गया था कि मंसूरी ने फेसबुक अकाउंट पर अपमानजनक संदेश पोस्ट किया, जिस पर समरीन बानो नामक व्यक्ति ने हिंदू समुदाय के देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी की थी।

मंसूरी के खिलाफ यह FIR भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा 153ए, 292, 505 (2), 506, 509 और सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम, 2008 (IT Act) की धारा 67 के तहत दर्ज की गई थी।

इसके बाद लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 (NSA) के तहत निरोध आदेश पारित किया। हालाँकि, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सितंबर 2021 में इसे रद्द कर दिया।

इसके बाद मंसूरी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए यह तर्क दिया कि उसका अकाउंट हैक कर लिया गया था। मंसूरी ने दावा किया कि उस पोस्ट में कोई आपराधिकता या दुश्मनी/वैमनस्य बढ़ाने का इरादा नहीं था। सितंबर में हाईकोर्ट ने उसकी याचिका खारिज कर दी और इसके बाद मंसूरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक खरगे ने गुजरात और असम के लोगों के खिलाफ की नस्लवादी टिप्पणी, कहा- इन राज्यों में नहीं है कोई ‘प्रतिभा’ और ‘इकोसिस्टम’

आखिर कांग्रेस कब तक भेदभाव कर जनता को गुमराह करती रहेगी? क्या कांग्रेस को मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है? बाप मल्लिकार्जुन सनातन के विरुद्ध बोलता है तो बेटा प्रियांक राज्यों के विरुद्ध। क्या इस तरह की जहरीली मानसिकता से कांग्रेस को एकजुट रख सकती है या देश को तोड़ने का षड़यंत्र कर रही है? क्या इस तरह की जहरीली विभाजनकारी बोली बोलकर गाँधी परिवार के प्रति अपनी अंधभक्ति दिखाई जा रही है?  
गुजरात और असम में स्थापित सेमीकंडक्टर संयंत्र इस साल के अंत तक सेमीकंडक्टर चिप्स का उत्पादन शुरू कर देंगे। कांग्रेस इसे नहीं पचा पा रही है। कर्नाटक के ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस नेता प्रियांक खड़गे ने एक बार फिर इन संयंत्रों पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि भाजपा ने कर्नाटक से ये संयंत्र ‘छीन’ लिए हैं। इन संयंत्रों का वे पहले भी विरोध कर चुके हैं। रविवार(अक्टूबर 26) को उन्होंने नस्लवादी टिप्पणी की और कहा कि गुजरात और असम में सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए कोई ‘प्रतिभा’ नहीं है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के पुत्र प्रियांक खड़गे ने सवाल उठाया कि क्या इन राज्यों में प्रतिभाओं का भंडार है? उन्होंने मोदी सरकार पर कर्नाटक से सेमीकंडक्टर निवेश हटाने का आरोप लगाया। शनिवार(अक्टूबर 25) को बेंगलुरु में पत्रकारों को संबोधित करते हुए, खड़गे ने केंद्र से उद्योगों को गुजरात और असम की ओर कथित तौर पर ‘ठेलने’ को लेकर स्पष्टीकरण माँगा। उन्होंने दावा किया कि कर्नाटक या तमिलनाडु को प्राथमिकता देने के बावजूद उद्योगपतियों को वहाँ भेजा जा रहा है।

खड़गे ने कहा, “सेमीकंडक्टर उद्योग जब बेंगलुरु आना चाहते हैं, तो असम और गुजरात क्यों जा रहे हैं? मैंने यह मुद्दा पहले भी उठाया है। कर्नाटक में आने वाला सारा निवेश केंद्र सरकार गुजरात जाने के लिए मजबूर कर रही है। गुजरात में क्या है? क्या वहाँ प्रतिभा है? असम में क्या है? क्या वहाँ प्रतिभा है?” उन्होंने आगे कहा, “जब उद्योगपति आवेदन दे रहे हैं कि वे कर्नाटक या तमिलनाडु आना चाहते हैं, तो उन्हें गुजरात क्यों भेजा जा रहा है?”

खड़गे की टिप्पणियों को अपमानजनक और विभाजनकारी करार देते हुए निंदा की गई है। असम के मंत्री जयंत मल्लाबरुआ ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस पर असम से नफरत करने का आरोप लगाया। उन्होंने एक्स पर लिखा, “कांग्रेस हमेशा से असम की प्रगति से नफरत करती रही है। जब भी राज्य एक कदम आगे बढ़ता है, कांग्रेस उसे पीछे खींचने की कोशिश करती है!” उन्होंने इसे हर मेहनती असमिया युवा का घोर अपमान बताया।

असम बीजेपी के एक अन्य नेता और मंत्री पीयूष हजारिका ने कहा कि खड़गे की टिप्पणी आश्चर्यजनक नहीं है, और यही कांग्रेस का असली चेहरा है। उन्होंने कहा, “एक ऐसी पार्टी जिसने हमेशा असम और पूर्वोत्तर को हीन माना है, हमारी क्षमता को नजरअंदाज किया है और हमारे विकास में बाधा डाली है। इस क्षेत्र के प्रति उनका तिरस्कार इतिहास में गहराई तक समाया हुआ है और आज उनके शब्द इसकी पुष्टि ही करते हैं।”

हजारिका ने यह भी याद दिलाया कि खड़गे के पिता मल्लिकार्जुन खड़गे ने असम के महानतम नेताओं में से एक डॉ. भूपेन हजारिका को भारत रत्न दिए जाने का विरोध किया था। इससे पता चलता है कि खरगे परिवार में असम विरोधी भावनाएँ अंदर तक समाई हुई हैं।

यह पहली बार नहीं है जब खड़गे ने भारत के उभरते सेमीकंडक्टर उद्योग को कुछ राज्यों स्थापित करने के बजाए, देशभर में लगाए जाने का विरोध किया हो। पिछले साल सितंबर में, उन्होंने कहा कि स्किल का कोई इकोसिस्टम नहीं होने के बावजूद गुजरात को 4 और असम को 1 सेमीकंडक्टर इकाइयाँ मिलीं।

उन्होंने ट्वीट किया था, “पाँच सेमीकंडक्टर निर्माण इकाइयाँ, जिनमें से चार गुजरात में और एक असम में हैं, लेकिन वहाँ स्किल का कोई इकोसिस्टम नहीं है। उनके पास अनुसंधान का कोई परिस्थिति की तंत्र नहीं है। उनके पास इनक्यूबेशन का कोई पारिस्थितिकी तंत्र नहीं है। उनके पास नवाचारों का कोई पारिस्थितिकी तंत्र नहीं है…जब चिप डिज़ाइनिंग की 70% प्रतिभा कर्नाटक में है, तो मुझे समझ नहीं आता कि सरकार राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करके उन्हें दूसरे राज्य में क्यों धकेलना चाहती है। यह अनुचित है।”

इस पोस्ट पर असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कॉन्ग्रेस पर असम के विकास का विरोध करने का आरोप लगाया।

सरमा ने X पर लिखा, “एक बार फिर, कांग्रेस असम के विकास का विरोध करके अपना असली रंग दिखा रही है। कर्नाटक के मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे प्रियांक खरगे ने दावा किया है कि असम को सेमीकंडक्टर उद्योग स्थापित करने का कोई अधिकार नहीं है! मैं असम के कांग्रेस नेताओं से आग्रह करता हूँ कि वे इस विभाजनकारी सोच को खारिज करें और असम के उचित विकास और प्रगति के लिए खड़े हों।”

गौरतलब है कि देश में कई कंपनियाँ अपने सेमीकंडक्टर संयंत्र विकसित कर रही हैं। टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स गुजरात के धोलेरा में एक चिप निर्माण इकाई स्थापित कर रही है। कंपनी असम के जगीरोड में एक सेमीकंडक्टर असेंबली और परीक्षण सुविधा भी स्थापित कर रही है।

इसके अलावा, माइक्रोन टेक्नोलॉजी गुजरात के साणंद में एक सेमीकंडक्टर इकाई स्थापित कर रही है, सीजी पावर गुजरात के साणंद में एक इकाई स्थापित कर रही है, केन्स सेमीकॉन भी साणंद में एक संयंत्र स्थापित कर रही है, और एचसीएल, फॉक्सकॉन के साथ साझेदारी कर उत्तर प्रदेश के जेवर में एक सेमीकंडक्टर संयंत्र स्थापित करने की योजना बना रही है।

सेमीकंडटर संयंत्र केवल गुजरात और असम में स्थापित नहीं किए जा रहे हैं, बल्कि ये महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पंजाब और आंध्र प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी स्थापित किए जा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस नेता असम और गुजरात को ही टारगेट क्यों कर रहे हैं, ये ध्यान देने वाली बात है।

इज़रायल पर भोंकने वाले ब्रिटिश मुस्लिम पत्रकार सैमी हम्दी को अमेरिका ने गिरफ्तार किया; लेकिन भारत के खिलाफ बोलने वालों पर और पन्नु जैसे आतंकियों को छूट देता है अमेरिका

सुभाष चन्द्र

ये बात जगजाहिर है कि अमेरिका कभी किसी का दोस्त नहीं सकता। सिर्फ super power होने की वजह से कोई अमेरिका के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता। विश्व में भारत ही ऐसा पहला देश है जो अमेरिका को उसकी औकात दिखने की हिम्मत है, भारत के अमेरिका के खिलाफ खड़े होने की वजह से अन्य देश भी भारत के कदमों पर चलने लगे हैं। अगर अमेरिका ने अपने दोगली नीतियों को नहीं छोड़ा अमेरिका super power की सूची में बहुत जल्दी नीचे आ सकता है। वैसे इसका शंखनाद हो भी चूका है। 

ट्रम्प जवाब दे जब आतंकवाद का समर्थन देने के आरोप में सैमी हम्दी को गिरफ्तार किया जा सकता है फिर क्यों दुनिया में आतंकवाद के लिए कुख्यात पाकिस्तान को क्यों समर्थन देता है अमेरिका? अब इसे अमेरिका का दोगलापन नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए? झूठ बोल-बोलकर अमेरिका की जितनी साख ट्रम्प ने गिराई है किसी अन्य राष्ट्रपति ने नहीं। Operation Sindoor पर युद्ध विराम के लिए कितनी बार झूठ बोला, क्या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को शोभा देता है? आतंकवाद को पालने वाले पाकिस्तान को गोदी में बैठाया जा रहा है, ब्लैकलिस्ट होने से बचाया जा रहा है फिर किस मुंह से आतंकवाद का विरोध किया जा रहा है?          

ब्रिटिश मुस्लिम पत्रकार सैमी हम्दी को इस्लाम के नाम पर इज़रायल विरोध के आरोप में अमेरिका के ICE (Immigration & Custom Enforcement) ने सैन फ्रांसिस्को एयरपोर्ट पर लैंड करते ही गिरफ्तार कर लिया उसे टेररिज्म का समर्थन करने के आरोप में पकड़ा गया है। 

हम्दी को Council On American-Islamic Relations (CAIR) ने Pro-Palestine theme पर बोलने के लिए बुलाया था और उसकी गिरफ़्तारी को फ्री स्पीच का उल्लंघन बताया और कहा कि यह इज़रायल की आलोचना की सजा है हम्दी अमेरिका में बोलने के टूर पर था, जहां वो गाज़ा में इज़रायल की कार्रवाई पर बात कर रहा था अमेरिका ने उसका वीसा रद्द कर दिया और उसे Deport किया जाएगा CAIR का Deputy Director Edward Ahmed Mitchel भी मुस्लिम ही लगता है जिसने इस्लामिक आतंकवाद को समर्थन देने की बात से इंकार किया

लेखक 
चर्चित YouTuber 
शनिवार(अक्टूबर 25) को उसने कैलिफोर्निया में भाषण दिया था और अगले दिन CAIR के फलोरिडा चैप्टर में बोलना था लेकिन उससे पहले ICE ने उसे अपने कब्जे में ले लिया सितंबर में फ़ेडरल जज ने फैसला दिया था कि Pro-Palestine नजरिया रखने वालो को पकड़ना और डिपोर्ट करना अमेरिकी संविधान का उल्लंघन है और ये फ्री स्पीच को दबाने की कोशिश है लेकिन अमरीकी प्रशासन कहता है वो इसे जारी रखेंगे और सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती देंगे

पत्रकारिता के नाम पर इस्लामिक आतंकवाद का समर्थन और गाज़ा में इज़रायल के मिलिट्री अभियान की आलोचना करना हम्दी का पेशा है मैं कई बार लिख चुका हूं कि ये लोग फिलिस्तीन के नाम पर हमास का समर्थन करते हैं और CAIR ने भी उसे Pro- Palestine theme पर बोलने के लिए बुलाया था लेकिन बेहतर होता theme का नाम ही Pro-Hamas होता क्योंकि मकसद तो वही था अब भारत के JNU में कुछ दिन पहले भोंकने वाले सोचें कि फ्री स्पीच के नाम पर उन्हें हुड़दंग मचाने के लिए गिरफ्तार कर लिया जाता तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट संविधान का अनुच्छेद 19 खोल कर प्रवचन शुरू कर देते 

अमेरिका में भी फिलिस्तीन के नाम पर हमास के समर्थन में बहुत दिनों तक प्रदर्शन हुए और कई यूनिवर्सिटी उसकी चपेट में थी हमें किसान आंदोलन के लिए संयम बरतने की सलाह देने वाले अमेरिका ने उनके आंदोलन को कुचल दिया था  

Charlie Kirk, Conservative Activist (जो ट्रंप के करीबी थे) की जनवरी में हत्या के बाद अमेरिका कई Immigrants का वीसा रद्द कर चुका है और उन्हें डिपोर्ट कर चुका है जो फिलिस्तीन के समर्थन में इज़रायल के विरोध में हरकतें कर रहे थे लेकिन हमास के विरोध में एक शब्द नहीं बोलते थे

अमेरिका अपने खिलाफ बात करने वालो और इज़रायल को गाज़ा के लिए टारगेट करने वालों पर तो कार्रवाई करता है लेकिन अमेरिका में बैठे भारत विरोधी आतंकवादियों को छुपाए रखता है और खुली छूट देता है जिनमें गुरपतवंत सिंह पन्नू भी शामिल हैं इधर से राहुल गांधी आये दिन अमेरिका में जाकर George Soros और भारत विरोधियों के साथ मिलता है और भाषणबाजी करता है, वह अमेरिका को बहुत अच्छा लगता है अमेरिका को भारत विरोधियों को अपने धरती को मंच देना उचित लगता है तो वह भारत के साथ कभी सामान्य संबंध नहीं बना सकता

अवलोकन करें:-

डोनाल्ड ट्रंप जवाब दें, मोदी की “हत्या” की कोशिश करने में कौन शामिल था? कांग्रेस और राहुल गांधी
nigamrajendra.blogspot.com
डोनाल्ड ट्रंप जवाब दें, मोदी की “हत्या” की कोशिश करने में कौन शामिल था? कांग्रेस और राहुल गांधी
सुभाष चन्द्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के पीछे इनके विरोधी तब से पीछे पड़े हैं, जब मोदी एक प्रचारक के अलाव..... 

राहुल गांधी अमेरिका या किसी देश में जाकर कभी हमास की निंदा नहीं करता और न कभी पाकिस्तान के आतंकवाद पर कुछ बोलता है वो केवल भारत का विरोध करता है और सोनिया गांधी भारत में बैठ कर कभी हमास की निंदा नहीं करती, वो भी फिलिस्तीन की आड़ में हमास के आतंक का समर्थन करती है