लाल किला ब्लास्ट पर पाकिस्तान का बड़ा कबूलनामा, POK का पूर्व PM अनवारुल हक बोला- हमने दिल्ली से कश्मीर तक करवाया हमला: बलूचिस्तान का भी किया जिक्र


जिस तरह PoK के पूर्व प्रधानमंत्री अनवारुल हक ने दिल्ली में ब्लास्ट के पाकिस्तान द्वारा करवाने की बात कबूली है, देखते हैं मोदी सरकार द्वारा Operation Sindoor-2 को अंजाम दिया जाएगा।  
भारत में पाकिस्तान नेताओं और उनकी पार्टियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान जाते मुसलमानों का नारा था "हंस के लिया पाकिस्तान लड़के लेंगे हिन्दुस्तान", इतना ही नहीं ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने भी भारत से हज़ारों साल तक लड़ने की बात कही थी। इसीलिए घुसपैठियों को भेज भारत में बेगुनाहों का खून बहाते रहे। लेकिन पाकिस्तान परस्त पार्टियां पाकिस्तान आतंकियों को अपना दामाद समझ बचाने के लिए बेशर्मों ने बेकसूर हिन्दुओं को आरोपित करते "हिन्दू आतंकवाद" और "भगवा आतंकवाद" कहा गया। इतना ही नहीं, दिल्ली ब्लास्ट में पकडे जाने पर जो गन्दी सियासत कर रहे हैं उसे गद्दार नहीं कहा जाए तो क्या कहा जाए। जनता को चाहिए आने वाले चुनावों में इन सभी पार्टियों वोट देने की बजाए धूल चटवानी चाहिए।      

पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी अनवारुल हक ने एक चौंकाने वाला कबूलनामा किया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में मौजूद आतंकियों ने ही दिल्ली के लाल किले से लेकर कश्मीर के जंगलों तक भारत पर हमले किए।

इस बयान ने न केवल पाकिस्तान सरकार की भूमिका पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि शहबाज शरीफ सरकार की आतंकवाद पर दोगली नीति को भी उजागर कर दिया है। चौधरी अनवारुल हक का यह वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। इसमें उन्हें कहते हुए सुना जा सकता है कि उन्होंने अपने पद और स्थिति का इस्तेमाल कर भारत पर हमले करवाए।

बलूचिस्‍तान का बदला! 

हक की टिप्‍पणी में 10 नवंबर को लाल किले के करीब हुए ब्‍लास्‍ट का भी जिक्र था जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई थी हक का जो वीडियो वायरल हो रहा है उसमें उन्‍हें कहते हुए सुना जा सकता है, 'मैंने अपनी स्थिति और पद को सही तरह से प्रयोग किया और पीएम नरेंद्र मोदी को एक सबक सिखाया कि अगर बलूचिस्‍तान में खून बहाने से बाज नहीं आओगे तो हम लाल किले से लेकर कश्‍मीर में जंगलों तक घुसकर मारेंगे अल्‍लाह के करम से हम यह कर चुके हैं और आज वो अभी तक लाशों की गिनती नहीं कर पा रहे हैं

लाल किला ब्‍लास्‍ट सुसाइड अटैक 

इसके बाद उन्‍होंने आगे कहा, 'कुछ दिनों बाद हथियारों से लैस शाहीन दाखिल हुए और उन्‍होंने हमला किया और आज भी वो अभी तक लाशों की गिनती कर रहे हैं' हक ने कश्‍मीर के जंगलों का जिक्र इस साल अप्रैल में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के लिए किया अपनी पूरी स्‍पीच में उन्‍होंने आतंकियों को शाहीन करके संबोधित किया है दिल्‍ली में हुए आतंकी हमले के पीछे जैश-ए-मोहम्‍मद (जैश) से जुड़े संगठन को जिम्‍मेदार बताया जा रहा है राष्‍ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) के अनुसार यह एक आत्‍मघाती हमला था संगठन फरीदाबाद से ऑपरेट कर रहा था हमले को डॉक्‍टर उमर नबी ने अंजाम दिया है 

पहले भी सामने आए सच 

हक का कबूलनामा पहला कबूलनामा है, ऐसा नहीं और इससे पहले भी ऐसे ही बयान आ चुके हैं हाल ही में, खैबर पख्‍तूनख्‍वा के मुख्यमंत्री सोहेल अफरीदी ने पाकिस्‍तान की सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था अफगानिस्‍तान के टोलो न्‍यूज के अनुसार उन्‍होंने कहा था कि सरकार अपने राजनीतिक मकसद को पूरा करने के लिए 'नकली' आतंकी हमले करा रही है उन्होंने कहा कि सरकार ने अशांत सीमावर्ती प्रांत में शांति प्रयासों में भी रुकावट पैदा की है साथ ही अपने फायदे  के लिए 'आतंकवाद' को तैयार किया है  

वीडियो में चौधरी अनवारुल हक ने कहा कि “हमने पीएम नरेंद्र मोदी को एक सबक सिखाया कि अगर बलूचिस्‍तान में खून बहाने से बाज नहीं आओगे तो हम लाल किले से लेकर कश्‍मीर में जंगलों तक घुसकर मारेंगे। अल्‍लाह के करम से हम यह कर चुके हैं और आज वो अभी तक लाशों की गिनती नहीं कर पा रहे हैं।”

उन्होंने 10 नवंबर को लाल किले के पास हुए ब्लास्ट का भी जिक्र किया, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। इस हमले का मास्टरमाइंड डॉ. उमर उन नबी था। वह जैश-ए-मोहम्मद (JeM) से जुड़े ‘व्हाइट कॉलर’ आतंकी मॉड्यूल का सदस्य है, जिसका भंडाफोड़ हमले से कुछ दिन पहले फरीदाबाद में हुआ था। इस कबूलनामे ने पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही आतंकवाद की नीति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर कर दिया है।

असल में कश्मीर के जंगलों से हक का मतलब पहलगाम से है जहाँ 26 अप्रैल 2025 को आतंकी हमला हुआ था। इसमें 20 से ज्यादा हिंदू पर्यटकों का नाम पूछकर उन्हें मार दिया गया था।

अवलोकन करें:-

आतंकियों को ‘Cover fire' देना बंद करो मेहबूबा बहुत हो गया, बेशर्मो की तरह 'Victim card' मत खेलो : समस्या ‘मजहब’ ह
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भारत में इस कबूलनामे को लेकर गुस्सा और आक्रोश है। भारत पहले ही पाकिस्तान को आतंकवाद का पनाहगार कहता रहा है, और अब पाकिस्तान के ही एक बड़े नेता का यह बयान उस आरोप को पुष्ट करता है। शहबाज सरकार की पोल खुलने से पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

राष्ट्रपति/राज्यपाल के लिए बिल की मंजूरी की टाइमलाइन तय नहीं कर सकती कोर्ट: SC का फैसला, कहा- अधिक देरी हुई तो दे गवर्नर को देंगे निर्देश


सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर 2025) को एक अहम फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया कि गवर्नर और राष्ट्रपति को राज्य विधानसभाओं से आए बिलों पर फैसला लेने के लिए कोर्ट कोई टाइमलाइन तय नहीं कर सकता। कोर्ट ने कहा कि पिछले फैसले में तय की गई समय-सीमा और ‘डीम्ड असें’ (समय पर कार्रवाई न होने पर बिल को मंजूर मान लेना) संविधान के खिलाफ है। अदालत ने माना कि ऐसा करना गवर्नर और राष्ट्रपति की संवैधानिक शक्तियों में दखल होगा।

जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गवर्नर का काम किसी और संस्था से बदला नहीं जा सकता। यानी अगर गवर्नर बिल पर फैसला लेने में देर कर दें, तो भी अदालत उस प्रक्रिया में दखल नहीं दे सकती। कोर्ट तभी कदम उठा सकती है जब देरी बेहद ज़्यादा हो और उसकी कोई वजह न हो और तब भी अदालत सिर्फ इतना कह सकती है कि गवर्नर ‘उचित समय’ में फैसला लें, न कि क्या फैसला लें।

यह फैसला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा भेजे गए सवालों पर दिया गया है, जिसमें उनसे पूछा गया था कि क्या अदालत गवर्नर और राष्ट्रपति की प्रक्रिया पर समय-सीमा तय कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ऐसा करना सत्ता के विभाजन के सिद्धांत के खिलाफ है। कोर्ट ने यह भी कहा कि गवर्नर किसी ‘सुपर मुख्यमंत्री’ की तरह बर्ताव नहीं कर सकते, क्योंकि राज्य में दो सरकारें नहीं हो सकतीं।

 

राहुल की Hit and run पॉलिसी ने मजबूर किया पूर्व जजों-ब्यूरोक्रेट्स समेत 272 हस्तियों को खुला खत लिखने को, कहा- चुनावी जीत नहीं मिली, हो रहा ‘ड्रामा’: चुनाव आयोग को बदनाम कर रहे राहुल गाँधी और वामपंथी NGOs: चुनाव आयुक्तों को क्यों धमकी दी?

                                              प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान राहुल गाँधी (फोटो: मिंट)
राहुल गाँधी और अब प्रियंका वाड्रा द्वारा चुनाव आयुक्तों को धमकी देकर क्या देश में गुंडागर्दी का माहौल बना चाहते हैं? कांग्रेस में बुद्धिजीवी क्यों खामोश है? बिहार में देख ली कांग्रेस की दुर्गति। क्या परिवार भक्ति में देश को आग में झोंकना चाहती है कांग्रेस? डायन भी दस घर छोड़ देती है लेकिन इतने साल देश पर राज करनी वाली पार्टी ही देश को बर्बाद करने उत्तेजक बयान दे रही है। क्या सत्ता नहीं मिलने की वजह से देश की संवैधानिक संस्थाओं को धमकाओगे? कहाँ है राहुल को जमानत देने वाले जज? अगर कांग्रेस का यही हाल रहा वो दिन भी दूर नहीं होगा जब सुप्रीम कोर्ट तक आग की चिंगारियां पहुंचेंगी। कांग्रेस को ऐसी गन्दी सियासत को छोड़ना होगा नहीं तो देखते हैं कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील राहुल ठोकेगा या प्रियंका? 
यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन राहुल और प्रियंका जिस आग को लगा रहे थे लग गयी और ये जा रही कांग्रेस कार्यालय, राहुल और प्रियंका के बंगलों में और ये वो आग जिसे कोई फायर ब्रिगेड भी बुझा पाएगी। क्योकि इस आग को लगा रहा समाज का बुद्धिजीवी वर्ग।    
अभी भी समय है कांग्रेस संभल जाए। अभी तो 272 पूर्व जजों-ब्यूरोक्रेट्स ने जेताया है, सुप्रीम कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए। अगर भड़काऊ भाषा नहीं बदली यही लिस्ट हज़ारों में, लाखों में और बहुत जल्दी करोड़ों में पहुँच जाएगी। इस संकेत को समझे कांग्रेस। बहुत गंभीर संकेत है। देश की और जनता की असली समस्यों को उठाओ नाकि संवैधानिक संस्थाओं में बैठे अधिकारियों और उनके परिवारों को बलि का बकरा बनाया जाए।         
कांग्रेस द्वारा चुनाव आयोग के खिलाफ की जा रही बयानबाजी को लेकर 272 हस्तियों ने खुला खत लिखा है। इन हस्तियों ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी द्वारा चुनाव आयोग पर बार-बार किए जा रहे हमलों को लेकर भी अपनी चिंता जाहिर की है। इन हस्तियों में 16 जज, 14 राजदूतों सहित 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह और 133 सेवानिवृत्त सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं।

पत्र में क्या कहा गया है?

इसमें कहा गया है, “भारत का लोकतंत्र किसी हथियार से नहीं बल्कि उसकी बुनियादी संस्थाओं के खिलाफ फैल रही जहरीली बयानबाजी से चोट खा रहा है। कुछ राजनीतिक नेता असली नीतियों का विकल्प देने के बजाय, बिना सबूत के गंभीर आरोप लगाते रहते हैं।” पत्र में आगे लिखा है, “पहले उन्होंने भारतीय सेना की बहादुरी पर सवाल उठाए, फिर न्यायपालिका, संसद और संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को निशाना बनाया और अब चुनाव आयोग की बारी आ गई है।”

पत्र में राहुल गाँधी पर सीधा हमला करते हुए लिखा गया है, “लोकसभा में विपक्ष के नेता ने बार-बार चुनाव आयोग पर हमला करते हुए दावा किया है कि उनके पास सबूत है कि चुनाव आयोग वोट चोरी करा रहा है और उनकी बात 100% प्रमाणित है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त रिटायर भी हो जाएँ, तो वह उन्हें भी छोड़ेंगे नहीं।” क्या मतलब है इस धमकी का?  

आगे पत्र में कहा गया है, “इतने गंभीर आरोप लगाने के बावजूद उन्होंने अब तक कोई औपचारिक शिकायत, या शपथपत्र के साथ, दर्ज नहीं कराई। जिससे उन्हें अपनी बात के लिए जवाबदेह न होना पड़े।” राहुल और राहुल के सलाहकार अच्छी तरह जानते हैं कि जिस दिन औपचारिक शिकायत, या शपथपत्र के साथ, दर्ज करवा दी और गलत साबित हो गयी कोई कपिल, सिंघवी या फिर प्रशांत जेल जाने से रोक नहीं पाएगा। ये Hit and run पॉलिसी कांग्रेस को पाताल लोक पहुंचा रही है। इस पत्र में कांग्रेस समेत कई राजनीतिक दलों, वामपंथी झुकाव वाले NGOs और कई अन्य लोगों की EC के खिलाफ तीखी भाषा को लेकर भी सवाल उठाए हैं।

पत्र में कहा गया, “चुनाव आयोग ने अपनी SIR प्रक्रिया सार्वजनिक की है, कोर्ट से अनुमति लेकर सत्यापन कराया है, फर्जी नाम हटाए हैं और नए योग्य मतदाता जोड़े हैं। इससे साफ लगता है कि ये आरोप एक राजनीतिक हार को संकट का नाम देने की कोशिश है।”

पत्र में कहा गया है, “यह व्यवहार ‘बौखलाए हुए गुस्से’ की निशानी है जो लगातार चुनावी हार और जनता से दूर हो जाने के कारण पैदा हुआ है। जब नेता जनता की आकांक्षाओं को समझ नहीं पाते, तो वे अपनी कमियों को सुधारने की जगह संस्थाओं पर हमला करना शुरू कर देते हैं। गंभीर विश्लेषण की जगह ड्रामा ले लेता है।”

इसमें आगे लिखा है, “विडंबना यह है कि जब कुछ राज्यों में चुनाव नतीजे विपक्षी दलों के पक्ष में आते हैं, तब चुनाव आयोग पर कोई सवाल नहीं उठता। जहाँ नतीजे उनके पक्ष में नहीं आते, वहीं आयोग हर कहानी का खलनायक बन जाता है। इस तरह का गुस्सा केवल अवसरवाद दिखाता है।”

पत्र में लोगों से चुनाव आयोग के साथ खड़ा होने को कहा गया है। इसमें लिखा है, “अब समय है कि देश के लोग चुनाव आयोग के साथ मजबूती से खड़े हों चापलूसी के लिए नहीं बल्कि विश्वास और सिद्धांत के कारण। समाज को यह माँग उठानी चाहिए कि नेता बेबुनियाद आलोचनाओं और नाटकीय भाषणबाजी से इस संस्था को बदनाम न करें।”

इसमें कहा गया है, “एक बड़ा सवाल यह भी है कि देश की मतदाता सूची में कौन होना चाहिए। नकली वोटर, फर्जी लोग, गैर-नागरिक या वे जिनका भारत के भविष्य से कोई वैध संबंध नहीं उन्हें सरकार चुनने का अधिकार नहीं होना चाहिए। ऐसे लोगों को चुनावों में शामिल होने देना देश की संप्रभुता और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है। दुनिया के बड़े लोकतंत्र भी अवैध प्रवासियों के मामले में बहुत सख्त होते हैं।”

पत्र लिखने वाले लोगों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और NGT के चैयरमेन आर्दश कुमार गोयल, संजीव त्रिपाठी पूर्व RAW प्रमुख और NIA के पूर्व डायरेक्टर योगेश चंदेर मोदी जैसे लोग भी शामिल हैं।

आतंकियों को ‘Cover fire' देना बंद करो मेहबूबा बहुत हो गया, बेशर्मो की तरह 'Victim card' मत खेलो : समस्या ‘मजहब’ है, नीतियाँ होतीं तो हर युवा बारूद बाँधकर खुद को उड़ा रहा होता


दिवंगत CDS जनरल बिपिन रावत ने एक बार कहा था कि भारत को 2 मोर्चों पर नहीं ढाई मोर्च पर लड़ाई लड़नी है। 2 मोर्चे यानी पाकिस्तान और चीन हमारे सामने हैं और आधा मोर्चा देश के भीतर ही छिपा बैठा है। इसकी कोई तय सूरत नहीं है लेकिन उसकी सीरत भारत विरोध ही है। भारत के खिलाफ बयानबाजी और आतंकी व भारत विरोधी तत्वों को कवर फायर देना, यही काम इस आधे मोर्चे का है। इसका जिक्र क्यों? जब तक देश में इन बहरूपी नेताओं पर कार्यवाही नहीं होगी देश में छिपे गद्दारों, आतंकवादियों से निजात नहीं मिलेगी। पत्थरबाजों और दंगाइयों पर भी ऐसी ही कार्यवाही होनी चाहिए।    
मेहबूबा 1989 में अपनी बहन रुबैया का अपहरण कांड क्यों भूल जाती हो? तुम्हारा परिवार किस तरह आतंकवादियों को अपना दामाद मान समर्थन देता रहा है, जिस वजह से कश्मीर को अपनी कुर्सी और तिजोरी की खातिर बारूद के ढेर पर बैठा दिया। फिर कहती हो देशभक्त। जब अनुच्छेद 370 को हटाए जाने पर तुम्ही ने कहा था कि "कोई तिरंगा उठाने वाला भी नहीं मिलेगा", ये तुम्हारा ही बयान था। तुम्हारे जैसे बहरूपियों के रहते कश्मीर में "पाकिस्तान ज़िंदाबाद", "पाकिस्तान झंडे" और सुरक्षा कर्मियों को पीटा जाता था। सुरक्षाकर्मियों पर पत्थरबाज़ी होती थी।     

जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के एक बयान के कुछ हिस्से पढ़िए। उन्होंने लाल किले के सामने विस्फोट पर कहा है, “कश्मीर की मुसीबत लाल किले के सामने बोल पड़ी है।” जनसत्ता में छपे एक बयान के मुताबिक, उन्होंने कहा, “जो युवा डॉक्टर और इंजीनियर बनने के लिए तैयार थे, वे अब खुद को विस्फोट करने के लिए तैयार हैं, यह सोचने की जरूरत है।”

मुफ्ती ने कहा आगे है, “हमसे कहाँ गलती हुई। केंद्र सरकार को सोचना होगा। आपने यहाँ के युवाओं से वादा किया था कि आप उनके हाथों से पत्थर और बंदूकें लेकर उन्हें लैपटॉप देंगे। लेकिन आज आपने उसी युवा को आत्मघाती हमलावर बना दिया है।”

आतंकियों के लिए महबूबा का दर्द कोई पहली बार या नया नही हैं। आतंकी बुरहान वानी से लेकर अफजल गुरु और यासीन मलिक तक उनकी नजरों में हालात के मारे लोग रहे हैं। वो इनको मिली सजा के लिए न्याय व्यवस्था तक पर सवाल खड़े कर चुकी हैं और अब आतंक की पौध को तैयार करने का ठीकरा भी केंद्र सरकार के सिर मढ़ देना चाहती हैं।

                                     द वायर में महबूबा का अफजल और यासीन के लिए लेख

अब आते हैं महबूबा के बयान पर और समझने की कोशिश करते हैं कि वो केंद्र को निशाना बना रही हैं लेकिन क्यों? हो सकता है कि केंद्र की योजनाओं को लेकर सवाल हों, कई लोगों में नाराजगी पर भी हो सकती है लेकिन क्या इतनी नाराजगी कि लोग आतंकी बन जाएँ? जाहिर है ऐसा कतई नहीं है, तो बात साफ है कि महबूूबा मुफ्ती अपने इस बयान के सहारे किसी को तो बचाने की कोशिश कर रही हैं।

महबूबा मुफ्ती ने दोष बेशक केंद्र पर मढ़ दिया लेकिन शायद इसकी आड़ में जहर बोने वालों को बचाने की भी कोशिश चल रही है। वह उन्हें कवर फायर देने पर आमादा हैं जिनकी वजह से नौजवान किताबों और लैपटॉप से खीचकर बम-बारूद की ओर जा रहे हैं। जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन क्या दिल्ली से चलाए जाते हैं? कल को कहीं महबूबा यह सवाल ना उठा दें कि इन आतंकी संगठनों की विचारधाराएँ संसद में बैठकर लिख जा रही हैं?

महबूबा का सवाल आतंकी कैंपों में दी जाने वाली ट्रेनिंग पर नहीं है, वहाँ फैलाई जाने वाली नफरत पर नहीं है और पाकिस्तान से आने वाली फंडिंग पर भी नहीं है। वो बस केंद्र सरकार और उसकी नीतियों को ही आतंकवाद का जिम्मेदार बताना चाहती हैं। वो उस मजहबी कट्टरता को नहीं देखती हैं जो युवाओं के मन में भरी जा रही है।

भारत 140 करोड़ लोगों का देश है। तरह की परेशानियाँ यहाँ हैं, रोजगार की दिक्कतें हैं, असमानता और संघर्ष भी है लेकिन क्या देश के लोग बारूद बनकर फट गए हैं? क्या देश के युवा अपनी समस्याओं का समाधान टिफिन या जूते में बम बाँधकर निकालता है? यह कहना कि किसी युवा के हाथ में बंदूक इसलिए आई क्योंकि सरकार ने लैपटॉप नहीं दिया, आतंकियों की विचारधारा को एक राजनीतिक तर्क में बदलने की कोशिश है।

सरकार ने कश्मीर के विकास के लिए लगातार काम किया है। शिक्षा से लेकर पर्यटन और रोजगार के अवसर बनाए गए हैं लेकिन कुछ राजनीतिक दल और अलगाववादी समूह हर समस्या के पीछे एक ही कहानी बताते हैं- नाराजगी।

इसी कथित नाराजगी का इस्तेमाल आतंकी संगठन अपने रिक्रूटमेंट के लिए करते रहते हैं। गुमराह करने वाली किताबें, उकसाने वाले भाषण, मजहबी लोगों और स्थानों से फैलाए गए कट्टर संदेश और बॉर्डर के उस पार से आने वाले हथियार-पैसे, ये जिस आतंकी इकोसिस्टम की देन है उस पर महबूबा जैसे लोग सवाल नहीं उठाते हैं।

महबूबा का तर्क है कि केंद्र ने युवाओं को पत्थर और बंदूकें छुड़ाकर लैपटॉप देने का वादा किया था। हाँ, वादा किया था और बड़े पैमाने पर दिया भी गया। जम्मू-कश्मीर में स्कूल-कॉलेजों के लिए नई इमारतें बनीं, मेडिकल कॉलेजों की सीटें बढ़ीं, पर्यटन के रिकॉर्ड टूटे, खेल के मैदान भरे, उद्योग ने दस्तक दी और युवाओं ने स्टार्टअप शुरू किए।

महबूबा कभी यह नहीं पूछतीं कि इतने सकारात्मक बदलावों के बीच भी आतंकी संगठन क्यों सक्रिय हैं, कौन उन्हें बनाए रखता है, कौन उनके लिए भर्ती करने का माहौल तैयार करता है। यह सवाल भी तो उठना चाहिए कि जो युवा पढ़ाई के लिए तैयार थे उन्हें ‘शहादत’ के नाम पर कौन तैयार करता है?

केंद्र सरकार को दोष देना आसान है। आतंकी विचारधारा से सवाल पूछना और उसके कटघरे में खड़ा करना मुश्किल हैं। कश्मीर के युवाओं के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की कोशिश कर रही महबूबा मुफ्ती को इन चालबाजियों से बाहर आने की जरूरत है। जनता ने आपको नकार दिया है और आपके इन विचारों को अपने वोट से नकार दिया है।

कश्मीर के युवाओं ने बार-बार दिखाया है कि वे खेल, शिक्षा, कला और व्यापार अन्य क्षेत्रों में भी कमाल का काम कर सकते हैं। कुछ नेता जो चाहते हैं कि उनका दर्द के बहाने वो अपनी राजनीतिक दवाई तलाश कर सकें उनसे युवाओं को बचना ही होगा।

डी वाई चंद्रचूड़ की एक और “पाप कथा” जो सवाल आज सुप्रीम कोर्ट कर रहा है तलाक़-ए-हसन पर, वो साढ़े 3 साल पहले चंद्रचूड़ भी करके एक मुस्लिम महिला का जीवन बचा सकते थे

सुभाष चन्द्र 

जब कोई मुद्दा हिन्दुओं से जुड़ा होता सुप्रीम कोर्ट के आंख और कान सब खुले रहते हैं और जब इस्लाम से जुड़ा कोई मुद्दा होता है तो टालने में महारत। अगर इस्लामिक समस्या पर फैसला देने से डर लगता है तो क्यों नहीं मौलाना, मौलवी और इस्लामिक विद्वानों को बुलाकर राय ली जाती? ऐसे मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट को निचली अदालतें पीछे छोड़ देती हैं। कुरान की जिन विवादित आयतों पर मुक़दमा दर्ज पर सुप्रीम कोर्ट जुर्माना ठोक देती है। जुर्माना ठोकने से पहले सुप्रीम कोर्ट को दिल्ली की निचली अदालत तीस हज़ारी के मेट्रोपोलिटन जज 31 जुलाई 1986 को Z A Lohat द्वारा दिए निर्णय को देखना था। इतना ही Calcutta High Court में कुरान पेटिशन की गवाहियों को देखना था, फैसला चाहे कुछ भी आया हो, देखने में सुप्रीम कोर्ट को शायद अपनी बेइज्जती महसूस हुई। दोनों मामलों में कट्टरपंथियों में मातम छा गया था। क्योकि कोई मौलाना, मौलवी, इमाम और इस्लामिक विद्वान उन विवादित आयतों के विरुद्ध नहीं बोल पाए। अगर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने मुस्लिम तुष्टिकरण करते उन्हें अमल नहीं होने दिया।      

लेखक 
चर्चित YouTuber 
मई, 2022 में गाज़ियाबाद की एक मुस्लिम महिला बेनजीर हिना ने सुप्रीम कोर्ट में उसके पति द्वारा दिए जा रहे तलाक़-ए-हसन के खिलाफ याचिका कर गुहार लगाई कि उसे अन्याय  से बचाया जाए क्योंकि वह तलाक़ इस्लामिक नहीं है। इस तरह के तलाक़ में भी 3 नोटिस दिए जाते हैं और तीसरे नोटिस से पहले अगर पति पत्नी में रजामंदी हो जाती है तो तलाक़ स्वतः रद्द हो जाता है

बेनजीर हिना ने 2 मई 2022 को पहला नोटिस पति के वकील के जरिए मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई कि उसे इस गैर-इस्लामिक तलाक़ (जैसा उसका सोचना था) से बचाया जाए लेकिन 9 दिन बाद सुनवाई में चंद्रचूड़ ने तुरंत सुनवाई करने से मना कर दिया और कहा कि -

“Due process must be followed and merely sending an email would not suffice to list a case out of turn; Parties could not dictate the court’s functioning by insisting on an immediate hearing through informal channels like email and established rules and procedures are to बे adhered to for listing of cases before SC.”

ये सारे कायदे कानून इस बेशर्म चंद्रचूड़ के चीफ जस्टिस रहते हुए 19 जुलाई, 2023 को तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने के लिए ख़ाक में मिला दिए गए थे वकील अश्वनी कुमार दुबे द्वारा दायर बेनजीर हिना की याचिका पर तुरंत सुनवाई करके उसकी शादी को चंद्रचूड़ बचा सकता था मगर “अकड़ और अहंकार” में मदमस्त रहता था बेनजीर हीना को दूसरा नोटिस 19 मई को दिया उसके पति ने और अंतिम नोटिस 20 जून, 2022 को दिया। हिना कोई आम गरीब मुस्लिम महिला नहीं थी बल्कि पढ़ी लिखी पत्रकार थी 

सुप्रीम कोर्ट में अब तक बेनजीर हिना के अलावा 9 और याचिकाएं दायर हो चुकी है जिनमे कुछ PIL भी हैं उसके पति ने इस मामले को “maintainability and Locus” के आधार पर ख़ारिज करने के लिए कहा लेकिन कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया 18 नवम्बर को ये मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइया और जस्टिस NK Singh  की पीठ में सुना गया और जस्टिस सूर्यकांत ने इसे गंभीर मानते हुए 5 जजों की संविधान पीठ को भेजने का इशारा किया

अदालत ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें gender bias साफ़ झलकता है and how it aligns with the dignity of women in a modern constitutional democracy.  

When a practice affects society at a large and if it is gross discriminatory practices, the court has to interfere; How can you promote this in 2025; should a civilized society allow this kind of practice”.

कोर्ट ने कुछ अन्य संस्थाओं से भी विचार भेजने को कहा जिससे मामले के निपटान में मदद मिल सके वे संस्थाएं है :- 

-National Human Rights Commission (NHRC);

-National Commission for women (NCW); and 

- National Commission for Protection of Child Rights (NCPCR)

मैं केवल यह दर्शाना चाहता था कि चंद्रचूड़ किस किस्म का तानाशाह जज था जो कानून और नियमों को अपने मतलब से तोड़ने मरोड़ने में माहिर था एक उसका और ड्रामा था कि कभी तो सरकार से जानकारी “Sealed Envelope” में मांगता था और जब मोदी सरकार को नीचा दिखाना होता था तो कहता था “sealed Cover” क्यों होना चाहिए, सब कुछ खुले में होना चाहिए

वैसे मुस्लिमों को Constitutional Democracy अपनी सुविधा के अनुसार ही अच्छी लगती है वरना तो उन्हें केवल शरिया ही पसंद है Gender Bias तो खुल कर दिखाई देता है इस्लामिक समाज में जिसे दूर करने के लिए ट्रिपल तलाक़ ख़त्म किया गया लेकिन किसी मुस्लिम संस्था ने उसे अभी तक सही नहीं माना है मुस्लिम समाज अब डॉक्टरों के बड़े पैमाने पर नरसंहार के षड़यंत्र के सामने आने पर भी उनका विरोध नहीं कर रहे और अब बुर्के पर प्रतिबंध की मांग भी उठ सकती है क्योंकि जब डॉक्टर के भेष में “दानव” मिल सकता है तो वह “बुर्का” ओढ़े हुए भी मिल सकता है

बिहार : बीजेपी सरकार की सुविधाओं के लाभ उठाने वाले हरामफरमोश मुस्लिमों को विकास का एजेंडा नहीं कबूल, मजहब और BJP विरोध ही अब भी मतदान का पैटर्न


बिहार विधानसभा चुनाव में विपक्षी महागठबंधन की बुरी हार हुई है। 243 सीटों वाली विधानसभा में जहाँ NDA को 200 से अधिक सीटें मिलीं तो वहीं महागठबंधन 35 सीटों पर सिमट गया है। हालाँकि, 28 सीटों पर चुनाव लड़ने वाले असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM ने भी इस चुनाव में 5 सीटें जीती हैं। ओवैसी की सारी सीटें मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में आई हैं।

इस चुनाव में AIMIM की सफलता दिखाती है कि बिहार के एक बड़े मुस्लिम वर्ग के लिए अब मजहबी पहचान पर आधारित राजनीति ही निर्णायक बनती जा रही है। मुसलमान अब ऐसे नेतृत्व की तलाश में हैं जो उनकी मजहबी पहचान के साथ और अधिक खुलकर खड़ा हो। AIMIM की राजनीति की जड़ें मजहबी पहचान में ही हैं। पार्टी खुद को एक ‘मुस्लिम प्लेटफॉर्म’ की तरह पेश करती है।

ओवैसी की इस जीत से एक बात और साफ होती है कि उन्होंने सीमांचल में दमदार ‘घुसपैठ’ कर ली है। RJD की रीढ़ माने जाने वाले MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को उन्होंने तोड़ दिया है। AIMIM के प्रदर्शन से साफ है कि ओवैसी ने RJD के मुस्लिम वोटों को अपने पाले में कर लिया है। उन्होंने अब सीमांचल में अपना एक जनाधार खड़ा कर लिया है।

हालाँकि, ये वोटर भी कब तक ओवैसी के साथ हैं, यह भी अपने आप में एक सवाल होगा क्योंकि यही वोटर बीजेपी विरोध में लंबे वक्त तक RJD के साथ खड़ा था। इन्हीं वोटरों ने अपने प्रतिनिधित्व के लिए उप-मुख्यमंत्री का पद माँगने के लिए आवाज उठानी शुरू की और RJD-कॉन्ग्रेस की तरफ से सब उन्हें यह गारंटी नहीं मिली तो वो ओवैसी की तरफ शिफ्ट हो गए। क्योंकि इन्हें जब प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो कम-से-कम एक कट्टर मजहबी पार्टी को मिल ही गई है।

आम तौर पर मुस्लिम वोटों को पैर्टन यही रहता है कि वो ऐसे दल को वोट करते हैं जिसका अपना एक तय जनाधार हो और जो उनकी नजरों में ‘सांप्रदायिक’ BJP को हरा सकता हो। जैसे उत्तर प्रदेश इसका एक उदाहरण है, यहाँ सपा के पास एक तय जातिगत वोट बैंक है तो आम तौर पर मुस्लिम उससे मिलकर BJP को हराने के लिए वोटिंग करते हैं।

बिहार में अभी ऐसे जनाधार वाला कोई दल उनको नजर नहीं है क्योंकि RJD का फिक्स माना जाने वाला यादव वोट बैंक भी उनसे छिटका-छिटका है। अगर भविष्य में कोई दल बिहार में ऐसा उभकर सामने आता है जिसका पास अपना एक जनाधार हो और जो BJP के विरोध में सरकार बनाने के लिए तैयार हो तो मुस्लिम उसके साथ भविष्य में नहीं जाएँगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। मगर अभी ओवैसी ने MY समीकरण का गणित ध्वस्त कर दिया है, यह भी पूरी तरह से सही है।

ओवैसी ने तोड़ दिया RJD का भ्रम?

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ओवैसी ने कई बार कोशिश की थी कि वह किसी भी तरह महागठबंधन का हिस्सा बन जाएँ। ओवैसी ने RJD से 6 सीटों की माँग की थी और लालू यादव को दो बार खत लिखा था। लालू यादव ने इन खतों का कोई जवाब नहीं दिया।

 खुद ओवैसी ने एक रैली में इससे जुड़ी जानकारी दी है। उन्होंने कहा था, “हमने RJD से कभी भी मंत्री पद की माँग नहीं की। अगर यह दरियादिली नहीं है तो और क्या है? हमने गठबंधन के लिए हर संभव प्रयास किए। अब फैसला RJD के हाथ में है।” तब ओवैसी को कुछ हाथ नहीं लगा लेकिन अब उन्होंने तेजस्वी को हाथ मलने को मजबूर कर दिया है।

औवेसी ने जो पाँच सीटें जीतीं हैं वो सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में हैं और उन सभी पर मुस्लिम उम्मीदवारों ने ही जीत दर्ज की है। AIMIM ने जोकीहाट, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर और बायसी सीट से क्रमश मोहम्मद मुर्शिद आलम, मौहम्मद तौसीफ आलम, मौहम्मद सरवर आलम, अखतरुल ईमान, गुलाम सरवर ने जीत दर्ज की है।

एक खास बात ये भी है कि AIMIM ने ये सीटें नजदीकी मुकाबले में नहीं जीती हैं बल्कि इन पर बड़े अंतर से जीत दर्ज की है। उनका सबसे कम जीत का अंतर ही 23,000 से ऊपर का है। इन सीटों पर मुस्लिम वोटों की भरमार है। इन सभी पाँचों सीटों पर मुस्लिमों की संख्या 64% से अधिक है। कोचाधामन में तो मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 72.4% है।

                              AIMIM द्वारा जीती गई सीटें और हार-जीत का अंतर (फोटो: ECI)

ओवैसी ने खुद को 5 सीटें जीतीं हैं इसके अलावा कम-से-कम 8 ऐसी सीटें भी हैं जहाँ उन्होंने महागठबंधन के उम्मीदवार को हराने में भूमिका निभाई है। यानी उन सीटों पर AIMIM के उम्मीदवार को मिले वोटों की संख्या हार-जीत के अंतर से अधिक रही है।

केवटी, शेरघाटी, प्राणपुर, कसबा, गोपालगंज और महुआ जैसी कम-से-कम 8 सीटें हैं, जहाँ AIMIM महागठबंधन की हार की वजह बनी है। RJD को जो यह भ्रम था कि मुस्लिम वोटों पर उसका एकमुश्त अधिकार है और मुस्लिम केवल उसके साथ ही जाएँगे यह भ्रम ओवैसी ने तोड़ दिया है।

मुस्लिमों वोटरों की प्राथमिकता- मजहबी पहचान और BJP विरोध

बिहार के इस चुनाव में एक बार फिर दिखा है कि मुस्लिम मतदाताओं की प्राथमिकताएँ दो मुख्य स्तंभों पर टिकती हैं। पहला है मजहबी पहचान और दूसरा है ऐसा राजनीतिक विकल्प चुनना जो BJP को प्रभावी रूप से चुनौती दे सके और उसे हराने की स्थिति में हो।

मुस्लिम समाज के सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह नहीं होता कि किसने कितनी सड़क बनाई या किसने कितनी योजनाएँ लागू कीं बल्कि यह कि कौन-सी राजनीतिक शक्ति उनकी मुस्लिम पहचान को मजबूत करने का काम करेगी। AIMIM को चुनकर एक बार फिर वही प्राथमिकता मुस्लिम वोटरों ने दिखाई है।

यही वजह है कि उनकी राजनीति में मजहबी पहचान, प्रतिनिधित्व और उनके विचार की प्रमुखता सबसे ऊपर रहती हैं। जब उन्हें लगता है कि कोई दल उनकी पहचान को सीधे तौर पर संबोधित कर रहा है या उन्हें एक मजहबी पहचान दे रहा है तो वे उसके साथ खड़े होते हैं।

दूसरा पहलू रणनीतिक वोटिंग है। मुस्लिम मतदाता अक्सर यह देखते हैं कि चुनावी मुकाबले में BJP के खिलाफ सबसे मजबूत दावेदार कौन है। यदि कोई गठबंधन या पार्टी BJP को हराने में सक्षम दिखती है, तो मुस्लिम वोट बड़ी संख्या में उसके पक्ष में एकजुट हो जाते हैं।

मुस्लिमों का यह वोटिंग पैटर्न पूरे भारत में नजर आता है। गैर-बीजेपी दलों के सत्ता में आने के बाद उन्हें मिलने वाली खुली छूट के चलते मुस्लिम BJP के खिलाफ लामबंद रहते हैं। अधिकतर गैर बीजेपी सरकारें मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर किसी भी तरह उन्हें अपने पाले में रखना चाहती है। इसलिए उन्हें हर काम करने की खुली छूट मिलती है।

हर चुनाव से पहले बड़ी पार्टियाँ विकास योजनाएँ, रोजगार और शिक्षा के मुद्दे गिनाती हैं लेकिन मुस्लिम मतदाता उसी विकल्प की ओर झुकते हैं जो उन्हें अपनी मजहबी पहचान की ‘सुरक्षा’ का आश्वासन देता हो। यह पैटर्न प्रदेश भर में साफ दिखाई दिया है।

जहाँ RJD या कांग्रेस मुस्लिम वोट को ‘तुष्टीकरण’ का जरिया मान रहे थे लेकिन AIMIM ने उससे आगे जाकर ‘प्रत्यक्ष नेतृत्व’ का वादा किया। इसी वजह से मुस्लिम मतदाता AIMIM को एक ऐसे विकल्प के रूप में देखने लगे हैं जो उनकी पहचान को बिना किसी समझौते के राजनीतिक रूप देता है। ओवैसी की यही ‘घुसपैठ’ कई सीटों पर इतनी गहरी हुई कि मुख्यधारा की पार्टियाँ उसका मुकाबला नहीं कर पाईं।

बिहार के मौजूदा नतीजों से यही संकेत मिलता है कि मुस्लिम वोटों में पहचान आधारित राजनीति आने वाले समय में मजबूत ही होती जाएगी। युवा मुस्लिम मतदाता सोशल मीडिया और भाषणों के जरिए ऐसे मुस्लिम नेतृत्व की ओर झुक रहे हैं जो उनकी मजहबी पहचान को खुले तौर पर प्रस्तुत करे।

अब स्टालिन के करीबी डीएमके नेता ने दी प्रधानमंत्री मोदी को जान से मारने की धमकी


कहना शायद गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की कोशिश तो उस समय से हो रही है जिस समय मोदी सिर्फ संघ के प्रचारक और बीजेपी के कार्यों में व्यस्त रहते थे। 1993 में कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के समय आतंकियों ने मोदी को धमकी देते कहा था "मोदी मत आना..." और मोदी ने पलटवार करते जवाब दिया था कि "मै आ रहा हूँ...जिसने माँ का दूध पिया है फैसला हो जाएगा।" सनातन में एक कहावत है कि जितना किसी व्यक्ति के मरने की कामना की जाती उतना ही उस व्यक्ति के कष्टों का निवारण होता है। शायद यही कारण है मोदी मुख्यमंत्री बनने के बाद आज देश के चर्चित प्रधानमंत्री हैं। विपरीत इसके विपक्ष ही गर्त में जाता दिख रहा है। उसके बावजूद गालियां देने या मौत की बात कहने से बाज़ नहीं आ रहे। अब ऐसी मानसिकता को क्या कहा जा सकता है। 2002 गोधरा दंगे की सच्चाई सामने नहीं देने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने मौत का सौदागर बोल मोदी को और शक्तिशाली बना दिया। गुजरात में कांग्रेस धरातल पर आ गयी। यही गुजरात से बाहर भी है। यही हाल मुस्लिम कट्टरपंथियों का भी होने वाला है, जब इन्ही की कौम इन्हे धुतकारेगी
 मजे की बात यह कि विपक्ष और महामूर्ख मुसलमान सच मान मोदी को आज भी गाली देते हैं। 

बिहार चुनाव में कांग्रेस के मंच से मोदी की स्वर्गीय माँ के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करने पर कांग्रेस क्षेत्रीय पार्टी से बत्तर स्थिति में आ गयी और RJD सत्ता तक पहुँचने से पहले ही ऐसी फिसली की चोटिल हो गयी। इसी बात को देखते हुए आशंका व्यक्त की जा रही है कि स्टालिन के करीबी डीएमके नेता जयपालन द्वारा नरकासुर से तुलना कर मोदी को खत्म करने को बोलने से लगता है क्या तमिलनाडु में डीएमके की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है।  

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिल रही असाधारण राजनीतिक सफलता से विपक्षी नेताओं में गहरी निराशा और बेचैनी छायी हुई है। उन्हें यह भरोसा हो गया है कि प्रधानमंत्री मोदी जनता के दिलों में इस कदर बस गए हैं कि सियासी मैदान में उन्हें हराना नामुमकिन सा हो गया है। इसीलिए विपक्ष के लिए सत्ता की राह में प्रधानमंत्री मोदी सबसे बड़ी बाधा हैं, जिनके रहते उनकी केंद्र सरकार में वापसी लगभग असंभव लगती है। इसी तरह की हताशा और निराशा से प्रेरित होकर कुछ विपक्षी नेता प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ घातक साजिशें रच रहे हैं। यहां तक कि उनकी हत्या की धमकी भी देते रहे हैं और लोगों को भी भड़काते रहते हैं। अब ताजा मामने में तमिलनाडु डीएमके के एक स्थानीय नेता जयपालन ने कथित तौर पर पीएम मोदी को जान से मारने की धमकी दी है। तेनाकासी जिले में एक विरोध प्रदर्शन के दौरान जयपालन ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना नरकासुर से करते हुए कहा कि “तमिलनाडु तभी अच्छा होगा जब मोदी को खत्म कर दिया जाए।”

Conversation

பிரதமருக்குக் கொலை மிரட்டல் விடுத்த திமுக நிர்வாகியைக் கைது செய்ய வேண்டும்! தென்காசியில் திமுக சார்பாக நடைபெற்ற நிகழ்ச்சியில், மாண்புமிகு பாரதப் பிரதமர் திரு. அவர்களுக்குத் திமுக தெற்கு மாவட்டச் செயலாளர் ஜெயபாலன் கொலை மிரட்டல் விடுத்துள்ளது கடும் கண்டனத்திற்குரியது. நாட்டின் அதிமுக்கிய பொறுப்பில் இருக்கும் ஒரு தலைவரை, அதிலும், உலகமே போற்றும் மாபெரும் தலைவரைக் குறித்து எந்தவொரு மரியாதையுமின்றி, மேடை நாகரிகமுமின்றி கொலை மிரட்டல் விடுத்திருப்பது தமிழகத்தில் சட்டம் ஒழுங்கு இருக்கிறதா எனும் சந்தேகத்தை எழுப்புகிறது. அதிலும், உடனிருந்த தென்காசி பாராளுமன்ற உறுப்பினர் திருமதி. ராணி ஸ்ரீகுமார் அவர்களும் சங்கரன்கோவில் சட்டமன்ற உறுப்பினர் திரு. ராஜா அவர்களும் மாவட்டச் செயலாளரின் கொடூரப் பேச்சைத் தடுக்காமல் மௌனம் காத்திருப்பது ஒட்டுமொத்த -த்தின் வன்முறை போக்கையும் வன்மத்தையும் வெளிப்படுத்துகிறது. இதைத் தட்டிக் கழிக்க எத்தகைய சாக்குபோக்கை திமுக கூறினாலும் ஏற்றுக்கொள்ளப்பட மாட்டாது. நமது மாண்புமிகு பாரதப் பிரதமர் தமிழகத்திற்கு வரும் வேளையில், அவரது பாதுகாப்பை அச்சுறுத்தும் வகையில் பேசியுள்ள திமுக தெற்கு மாவட்டச் செயலாளர் ஜெயபாலனை உடனடியாகக் கைது செய்ய வேண்டும் என்று திமுக அரசை வலியுறுத்துகிறேன்.
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डीएमके नेता जयपालन
तमिलनाडु तभी अच्छा होगा जब मोदी को खत्म कर दिया जाए
18/11/2025
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 19 नवंबर, 2025 को तमिलनाडु दौरे से पहले डीएमके के दक्षिण जिला सचिव जयपालन ने आपत्तिजनक बयान दिया है। वायरल हुए वीडियो में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन के करीबी डीएमके नेता जयपालन ने न केवल मोदी की तुलना “नरकासुर” से की है, बल्कि यह तक कह डाला है कि तमिलनाडु तभी सुरक्षित और समृद्ध होगा जब मोदी को “खत्म” कर दिया जाए। बीजेपी ने इसे प्रधानमंत्री की जान लेने की खुली धमकी करार दिया है, और तत्काल गिरफ्तारी की मांग की है। जयपालन ने पीएम मोदी को जान से मारने की धमकी देते हुए कहा आपके वोटों को छीनने के लिए मोदी तड़प रहे हैं, वे दूसरे नरकासुर हैं उनको खत्म करने से ही तमिलनाडु का भला हो सकता है,हमें इस लडाई को एकजुट होकर लड़ना है और जीतकर दिखाना है।
शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत
औरंगजेब से तुलना कर दी जमीन में गाड़ने की धमकी
09/05/2024

शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने महाराष्ट्र के अहमदनगर में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी को जमीन में गाड़ने की धमकी दी। प्रधाममंत्री पद और भाषा की मर्यादा भूल राउत तू-तड़ाक भी करने लगे। उद्धव ठाकरे के करीबी संजय राउत ने प्रधानमंत्री मोदी की तुलना औरंगजेब से करने के साथ मराठी में दिए गए भाषण में कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म महाराष्ट्र में हुआ और औरंगजेब का जन्म गुजरात में हुआ। आप इतिहास देखिए, औरंगजेब का जन्म नरेन्द्र मोदी के गांव में हुआ है। अहमदाबाद के बगल में दाहोद नाम का गांव है, जहां औरंगजेब का जन्म हुआ था। गुजरात में औरंगजेब का जन्म हुआ, यही कारण है कि वह हमारे साथ औरंगजेब की तरह बर्ताव कर रहे हैं। लेकिन याद रहे कि एक औरंगजेब को हमने इस महाराष्ट्र की धरती में गाड़ा है। हमने उस औरंगजेब को महाराष्ट्र की धरती में गाड़ दी। मोदी तू क्या चीज है? मोदी तू कौन है?

कांग्रेस नेता कवासी लखमा
नरेंद्र मोदी मरेगा

10/04/2024

लोकसभा चुनाव 2024 में पहले चरण के मतदान से पहले छत्तीसगढ़ में बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा ने हार नजदीक देख पीएम मोदी के लिए अपशब्द का इस्तेमाल किया। कवासी लखमा ने ग्रामीणों को गोंडी बोली में संबोधित करते हुए कहा, “कवासी लखमा जीतोड़, नरेंद्र मोदी ढोलतोर” यानी कवासी लखमा जीतेगा और नरेंद्र मोदी मरेगा, खेल खत्म, राम-राम।

राजद नेता ने पीएम मोदी को दी धमकी
15/03/2024

रांची में इंडी अलायंस की बैठक में राजद नेता अवधेश सिंह यादव ने कहा, “हम अगर मोदी की खोपड़ी में गोली मार दें तो इसे गलत कहा जाएगा क्या?”

 डीएमके नेता टी एम अनबरसन

टुकड़े-टुकड़े कर देता।
13/03/2024
तमिलनाडु की डीएमके सरकार में मंत्री टी एम अनबरसन ने पीएम मोदी के खिलाफ विवादित बयान दिया था। यह बयान एक भरी सभा में मंच पर दिया गया। अनबरसन ने कहा- “मैंने अभी शांति रखी हुई है क्योंकि मैं एक मंत्री हूं। मैं मंत्री ना होता तो उसको टुकड़े-टुकड़े कर देता।”
कांग्रेसी नेताओं ने लगाए ‘मोदी तेरी कब्र खुदेगी’ के नारे
23.02.2023
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी मामले में जब कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को गिरफ्तार किया गया तो हिरासत में लिए जाने के बाद कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली एयरपोर्ट पर खूब हंगामा किया। नारेबाजी करते हुए कांग्रेसी नेता एयरपोर्ट पर धरने पर बैठ गए और प्रधानमंत्री मोदी के लिए अपशब्द बोलने लगे। कांग्रेसी नेताओं ने कहना शुरू कर दिया कि मोदी तेरी कब्र खुदेगी।
कांग्रेस के नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया
संविधान यदि बचाना है तो मोदी की हत्या करने के लिए तत्पर रहो
11/12/2022
मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री राजा पटेरिया प्रधानमंत्री मोदी की हत्या कराना चाहते हैं। उनका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्हें कहते हुए सुना जा सकता है कि ‘मोदी इलेक्शन खत्म कर देगा। मोदी धर्म, जाति, भाषा के आधार पर बांट देगा। दलितों को, आदिवासियों को, अल्पसंख्यकों का जीवन खतरे में है। संविधान यदि बचाना है तो मोदी की हत्या करने के लिए तत्पर रहो।’ राजा पटेरिया रविवार 11 दिसंबर को मध्य प्रदेश के पन्ना में कांग्रेस के एक कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं से बातचीत कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या के लिए कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उकसाने का काम किया। मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने मामले को गंभीरता से लेते हुए पटेरिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय
मोदी हिटलर की मौत मरेगा, याद रखो मोदी
20/06/2022
कांग्रेस पार्टी ने 20 जून 2022 को दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह किया। इस दौरान झारखंड से आने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे सुबोधकांत सहाय ने मंच से प्रधानमंत्री मोदी की तुलना हिटलर से करते हुए मर्यादा लांघ दी। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री हिटलर के रास्ते पर चलेंगे तो वह हिटलर की मौत मरेंगे। सहाय ने कहा, “‘मुझे तो लगता है हिटलर का सारा इतिहास इसने पार कर लिया। हुड्डा साहब बड़े गांव की भाषा में समझा रहे थे। हिटल ने भी ऐसी संस्था बनाई थी जिसका नाम था खाकी, सेना के बीच उसने बनाया था। मोदी हिटलर की राह चलेगा तो हिटलर की मौत मरेगा। याद रखो मोदी।” सुबोधकांत सहाय ने अपने संबोधन की शुरुआत में प्रधानमंत्री मोदी को मदारी बताया था।
कांग्रेस की नागपुर इकाई के पूर्व अध्यक्ष शेख हुसैन
जैसे कुत्ते की मौत होती है, वैसे ही नरेन्द्र मोदी की मौत होगी
13/06/2022

महाराष्ट्र के नागपुर में आयोजित विरोध-प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस की नागपुर इकाई के पूर्व अध्यक्ष शेख हुसैन ने प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की धमकी दी। हुसैन ने कहा, “जैसे कुत्ते की मौत होती है, वैसे ही नरेन्द्र मोदी की मौत होगी। हो सकता है इस बयान के खिलाफ नोटिस मिल जाए। लेकिन मुझे उसकी कोई परवाह नहीं है।” जब हुसैन देश के प्रधानमंत्री के लिए आपत्तिजनक बयान दे रहे थे उस वक्त कांग्रेस के कुछ नेता ताली बजा रहे थे। बीजेपी ने कहा कि इस बयान से कांग्रेस की मानसिकता का पता चलता है। कांग्रेस के दो मंत्रियों के सामने प्रधानमंत्री मोदी को गाली दी गई। कांग्रेस घटिया और निचले स्तर पर उतर आई है। बीजेपी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा कि कांग्रेस के लोग हिंसक हो गए हैं और अब तो ये पीएम तक को मारने की धमकी दे रहे हैं। आखिर कैसे ये महात्मा गांधी के नाम पर प्रदर्शन की बात कर रहे हैं।
तेज प्रताप यादव
मोदी की खाल उधड़वा लेंगे
27.11.2017
सुरक्षा समीक्षा के बाद जब केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की जेड प्लस सिक्योरिटी हटा ली है तो इस फैसले से नाराज उनके बेटे तेज प्रताप यादव भाषा की मर्यादा भी लांघ गए। तेज प्रताप यादव ने कहा कि सुरक्षा जो वापस ली है, वो सही नहीं है. हमारा कार्यक्रम है और लालूजी भी कार्यक्रमों में जाते रहते हैं। तो ये मर्डर कराने की साजिश की जा रही है। उन्हें हम मुंहतोड़ जवाब देंगे। नरेंद्र मोदी की खाल उधड़वा लेंगे। 
सहारनपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद
मुसलमान मोदी को कड़ा सबक सिखाएंगे और उनकी बोटी-बोटी काट देंगे
28/03/2014

जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए एनडीए के उम्मीदवार थे, तब उन्हें बोटी-बोटी काट देने की धमकी खुलेआम दी गयी थी। लोकसभा चुनाव के दौरान सहारनपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार रहे इमरान मसूद ने 28 मार्च, 2014 को ये बयान देकर यूपी ही नहीं पूरे देश में नफरत की सियासत को हवा देने की कोशिश की। मसूद का एक ऐसा वीडियो सामने आया था जिसमें वह एक सभा में प्रधानमंत्री मोदी को जान से मारने की धमकी देते दिखाई दिए थे। वह कह रहे थे- ‘मोदी यूपी को गुजरात न समझें। गुजरात में सिर्फ 4 प्रतिशत मुसलमान हैं, जबकि यूपी में मुसलमानों की संख्‍या 42 प्रतिशत है। यदि मोदी ने यूपी को गुजरात बनाने की कोशिश की, तो यहां के मुसलमान मोदी को कड़ा सबक सिखाएंगे और उनकी बोटी-बोटी काट देंगे। मैं एक छोटे बच्‍चे को भी उसकी ताकत का एहसास करा दूंगा, ताकि वह किसी से भी न डरे। हम अपने साथियों के लिए किसी को भी मार देंगे या मर जाएंगे।’ प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने तो इस बयान का कोई जवाब नहीं दिया था, लेकिन जनता ने इसका करारा जवाब दिया था।
पीएम मोदी की हत्या के लिए कांग्रेस ने वामपंथियों को की थी फंडिंग
28 अगस्त, 2018 को पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं- सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वारवरा राव, अरुण फरेरा और वर्नोन गोंजाल्वेज की गिरफ्तारी के बाद मिले एक पत्र से जो खुलासे हुए, वे बेहद चौंकाने वाले थे। पहला, यह कि 01 जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव में पूरी प्लांनिग के साथ हिंसा ‘प्रायोजित’ की गई थी। दूसरा, इस हिंसा के लिए कांग्रेस ने फंडिंग की थी। तीसरा, इनके तार कश्मीर के अलगाववादियों-पत्थरबाजों से भी जुड़े थे। चौथा, प्रधानमंत्री मोदी की हत्या की सुनियोजित साजिश रची गई थी। गौरतलब है कि सुधा भारद्वाज ने एक चिट्ठी कॉमरेड प्रकाश और दूसरी कॉमरेड सुरेन्द्र को लिखी थी।