2013-14 में कोई मुद्दा छूटा नहीं था। महिला, दलित, मुस्लिम, महंगाई, किसान, मजदूर, आतंकवाद, कश्मीर, पाकिस्तान, चीन, डॉलर, सीबीआई, बेरोजगारी, भ्रष्ट्राचार और अगली लाइन अबकी बार मोदी सरकार। तो 60 में से 52 महीने गुजर गए और बचे 8 महीने की जद्दोजहद में पहली बार पार्टियां छोटी पड़ गईं और ‘भारत’ ही सामने आ खड़ा हो गया। सत्ता ने कहा ‘अजेय भारत, अटल भाजपा’ तो विपक्ष बोला ‘मोदी बनाम इंडिया।’ यानी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश को चलाने, संभालने या कहें सत्ता भोगने को तैयार राजनीति के पास कोई विज़न नहीं है कि भारत होना कैसा चाहिए।कैसे उन मुद्दों से निजात मिलेगी जिन मुद्दों का जिक्र कर 2014 में गद्दी पलट गई। या फिर उन्हीं मुद्दों का जिक्र कर गद्दी पाने की तैयारी है। अजेय भारत में 2019 भी सत्ता हस्तांतरण की दिशा में जा रहा है, जैसे 2014 गया था। जैसे इमरजेंसी के बाद इंदिरा की गद्दी को जनता ने यह सोचकर पलट दिया था कि अब जनता सरकार आ गई, तो नए सपने, नई उम्मीदों को पाला जा सकता है। अतीत के इन पन्नों पर गौर जरूर करें, क्योंकि इसी के अक्स तले ‘अजेय भारत’ का राज छिपा है।
बेरोजगार के लिए रोजगार नहीं था। कॉलेज छोड़कर निकले छात्रों के लिए डिग्री या शिक्षा तक की व्यवस्था नहीं थी। महंगाई थमी नहीं। भ्रष्ट्राचार खत्म करने के नारे ही ढाई बरस तक लगते रहे। सत्ता के भीतर ही सत्ता के सत्ताधारियों का टकराव इस चरम पर भी पहुंचा कि 1979 में अटल बिहारी वाजपेयी पटना के कदमकुआं स्थित जयप्रकाश नारायण के घर पर उनसे मिलने पहुंचे। वाजपेयी दिल्ली से सटे सूरजकुंड में होने वाली जनता पार्टी संसदीय दल की बैठक को लेकर दिशा-निर्देश लेने के बाद जेपी के घर से सीढ़ियों से उतरने लगे तो पत्रकारों ने सवाल पूछा, बातचीत में क्या निकला। वाजपेयी ने अपने अंदाज में जवाब दिया, ‘उधर कुंड (सूरजकुंड), इधर कुआं (कदमकुआं) बीच में धुआं ही धुआं।’अजेय भारत का सच यही है कि हर सत्ता परिवर्तन के बाद सिवाय धुएं के कुछ नज़र नहीं आता। यानी 1977 में जिस सरकार के पास जनादेश की ताकत थी। उस सरकार के पास भी अजेय भारत का कोई सपना नहीं था। हां, फॉर्जरी-घोटाले और कालेधन पर रोक के लिए नोटबंदी का फैसला तब भी लिया गया। 16 जनवरी 1978 को मोरारजी सरकार ने हजार, पांच हजार और दस हजार के नोट उसी रात से बंद कर दिए। उसी सच को प्रधानमंत्री मोदी ने 38 बरस बाद 8 नवंबर, 2016 को दोहराया। एलान कर दिया कि अब कालेधन, आतंकवाद, फॉर्जरी-घपले पर रोक लग जाएगी पर बदला क्या?
इस सन्दर्भ में अवलोकन करें:--
बीते तीन बरस में सवा लाख बच्चों को पढ़ने के लिए वीज़ा दिया गया, ताल ठोककर लोकसभा में मंत्री ही बताते हैं। इलाज बिना मौत की बढ़ती संख्या भी मरने के बाद मिलने वाली रकम से राहत दे देगी, इसका एलान गरीबों के लिए इंश्योरेंस के साथ दुनिया की सबसे बड़ी राहत के तौर पर प्रधानमंत्री ही करते हैं। ये सब इसलिए, क्योंकि अजेय भारत का मतलब सत्ता और विपक्ष की परिभाषा तले सत्ता न गंवाना या सत्ता पाना है।
सत्ता बेफिक्र है कि उसने देश के तमाम संवैधानिक संस्थानों को खत्म कर दिया। सत्ता मानकर बैठी है कि पांच बरस की जीत का मतलब न्यायपालिका उसके निर्णयों के अनुकूल फैसला दे। चुनाव आयोग सत्तानुकुल होकर काम करे। सीबीआई, ईडी, आईटी, सीवीसी, सीआईसी, सीएजी के अधिकारी विरोध करने वालों की नींद हराम कर दें। 2014 से निकलकर 2018 तक आते आते जब अजेय भारत का सपना 2019 के चुनाव में जा छुपा है तो अब समझना यह भी होगा कि 2019 का चुनाव या उसके बाद के हालात पारम्परिक राजनीति के नहीं होंगे।
भाजपा अध्यक्ष ने अपनी पार्टी के सांसदों को झूठ नहीं कहा कि 2019 जीत गए तो 50 बरस तक राज करेंगे और संसद में कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी झूठ नहीं कहा कि नरेन्द्र मोदी-अमित शाह जानते हैं कि चुनाव हार गए तो उनके साथ क्या कुछ हो सकता है। इसलिए ये हर हाल में चुनाव जीतना चाहते हैं तो आखिर में सिर्फ यही नारा लगाइए, अबकी बार...आज़ादी की दरकार। (साभार)
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