चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के विधानसभा चुनावों के नतीजों की तस्वीर लगभग साफ हो गयी है। असम में भाजपा, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (TMC) और केरल में एलडीएफ की सत्ता में वापसी। बंगाल में फिलहाल बीजेपी अपनी आशा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं दिखा। फिर भी 3 सीटों से कहीं अधिक सीटें लेकर एक विपक्ष में रूप में उभर कर कांग्रेस और वामपंथ को धूल चटा दी। वैसे भी बंगाल में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए अपना ही अस्तित्व ख़त्म करना राजनीती नहीं। पुदुच्चेरी में भाजपा गठबंधन जीत हासिल कर रहा है।
जब अंतिम नतीजे आ जाएँगे तो हर दल इन चुनावों में अपने प्रदर्शन पर चिंतन करेगा। पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित मुक़ाबले में भाजपा की संभावित जीत क्यों नहीं हो सकी, आने वाले समय में यह बहस का एक बड़ा विषय होगा। तमिलनाडु में डीएमके को आशा के अनुरूप एक बड़ी जीत क्यों नहीं मिल सकी, यह भी चर्चा का विषय रहेगा।
जो 3 से 80 हुआ और 2 राज्यों में सरकार भी बना रहा है, उससे जनता नाराज है ? और
जो 80 से 0 हो गया, और 5 राज्यों में साफ हो गया उससे जनता खुश है?
यह कौन सा गणित है?
पर इन सब के बीच जिस एक आवश्यक विषय पर चर्चा शायद न दिखे, वह होगी इन चुनावों में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन। केरल, असम और तमिलनाडु में राहुल गाँधी और प्रियंका वाड्रा ने बड़ी मेहनत की थी। असम के चाय बाग़ानों में प्रियंका मजदूरों के साथ चाय पत्ती तोड़ते हुए भी दिखी थीं। इसके अलावा राहुल गाँधी ने चाय बागान बहुत इलाकों में गुजरात के व्यापारियों से अलग से पैसे लेने का वादा भी किया था। दक्षिण भारत के राज्यों में राहुल ने चुनाव प्रचार के दौरान कसरत करने से लेकर समुद्र में गोता लगाने जैसे मेहनत वाले और चुनाव प्रचार के लिए महत्वपूर्ण काम किए थे। पर उनका असर नहीं हुआ और उनके दल के प्रदर्शन में सुधार नहीं हुआ।
200 यूनिट फ्री बिजली, 2000 रूपए गृहिणी सम्मान, 5 लाख नौकरी… सब फेल
दिलचस्प बात यह है कि असम वह राज्य है जहाँ कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गाँधी ने 2 दिवसीय दौरे पर 6 रैलियाँ बैक टू बैक कीं। प्रियंका गाँधी ने दौरे के पहले दिन जोरहाट, नजीरा और खुमतई में रैली की। फिर अगले दिन उन्होंने गोलाघाट जिले के सरूपथार और नागाँव के कलियाबोर में रैली की। उनकी अंतिम रैली श्रीमंत शंकरदेवा की जन्मस्थली बाताद्रव में हुई।
केवल यही 6 रैलियाँ प्रियंका गाँधी ने चुनाव के मद्देनजर नहीं की थी, बल्कि 1-2 मार्च को भी प्रियंका गाँधी असम में बैठकें कर चुकी थीं। 2 मार्च को तेजपुर पहुँच उन्होंने राज्य की जनता को 200 यूनिट मुफ्त बिजली देना का वादा किया था।
उन्होंने यह भी कहा था कि इस कदम से जनता के 1400 रुपए बचेंगे। प्रियंका ने कहा कि यदि उनकी सरकार आई तो राज्य में सीएए लागू नहीं होने दिया जाएगा और कम से कम 5 लाख सरकारी नौकरियाँ निकाली जाएँगी।
राज्य की महिलाओं को रिझाने के लिए प्रियंका गाँधी ने 2000 रुपए हर महीने गृहणियों को भी देने का ऐलान किया। वहीं चाय के बागान में काम करने वालों के लिए ऐलान किया कि उन्हें 365 रुपए वेतन दिया जाएगा।
At a time when Nation is facing an unprecedented crisis, when Govt under PM Modi has collapsed, we find it unacceptable to not hold them accountable & instead discuss election wins & losses.
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) May 1, 2021
We @INCIndia have decided to withdraw our spokespersons from election debates.
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After fighting it hard in Kerala, Assam &Pondicherry, party did an assessment & concluded once again Rahul-Priyanka duo let us down so to save our spokesperson from embarrassment we decided to take exit route from studios just to add in other 2 states nothing was at stake
— Sumeet Bhasin (@sumeetbhasin) May 2, 2021
Inka ticket lene wale hai kya abhi bhi,,,
— Jitender jaglan (@jitender_jaglan) May 1, 2021
केवल पश्चिम बंगाल में दल की रणनीति सफल होते हुए दिखी जहाँ उन्होंने चुनाव प्रचार लगभग न के बराबर किया। उसके अलावा दल ने कहीं न कहीं अधीर रंजन चौधरी को अपना काम करने से रोका। प्रचार के दौरान ही चौधरी को लोकसभा में विपक्ष के नेता पद से हटाकर दल ने किसे फायदा पहुँचाने की कोशिश की, उसकी विवेचना शायद आने वाले दिनों में हो। अधीर रंजन का खुद को चुनाव प्रचार से लगभग अलग रखना किस रणनीति का हिस्सा था, वह शायद आज आए नतीजों से स्पष्ट हो गया है।
चुनाव परिणामों के दिन कांग्रेस पार्टी द्वारा कोरोना का हवाला दे अपने प्रवक्ताओं को न्यूज़ स्टूडियो में न भेजने का फ़ैसला क्या संदेश देता है? शायद यही कि कांग्रेस फिलहाल प्रश्न सुनने के मूड में नहीं है। पर क्या चुनावी प्रक्रिया की गर्द जम जाने के बाद भी कांग्रेस प्रश्न सुनने का मन बनाएगा? क्योंकि आज के दिन तो प्रवक्ताओं से किए गए प्रश्न इन चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में दल के प्रदर्शन के इर्द-गिर्द होते, पर भविष्य में तो और प्रश्न पूछे जाएँगे।
समय आने पर यह भी पूछा जाएगा कि कांग्रेस पार्टी भाजपा से खुद क्यों नहीं लड़ सकती? जब लड़ने का समय आता है तब अपनी भूमिका किसी और को देकर मैदान से हट जाती है? क्यों राहुल गाँधी केंद्र में तो विपक्ष की ओर से खुद को नेता के रूप में प्रस्तुत करते हैं पर चुनाव आते ही वे लघु मानव की भूमिका में आ जाते हैं? पूछा जाएगा कि इन चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन के बाद विपक्ष की राजनीति में राहुल गाँधी का कद कितना बढ़ा है? या छोटा हुआ है तो कितना छोटा हुआ है? क्या भाजपा विरोधी पार्टियों को अब कांग्रेस की किसी नीति अथवा इशारे पर काम करना चाहिए?
ममता बनर्जी ने जिस तरह से पश्चिम बंगाल में वापसी की है, उसके बाद विपक्षी राजनीति में उनका कद कितना बढ़ेगा? भाजपा के मुक़ाबले जब एकजुट होकर खड़े होने का प्रश्न उठेगा तब विपक्ष का नेता कौन होगा? ममता बनर्जी अनौपचारिक रूप से पहले ही अभिषेक बनर्जी को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर चुकी हैं। ऐसे में क्या इस संभावना से इनकार किया जा सकेगा कि वे राज्य से निकल कर केंद्र की राजनीति में नहीं जाएँगी? यदि ऐसा होगा तब विपक्ष में राहुल गाँधी की भूमिका क्या होगी? क्या कान्ग्रेस पार्टी को यह स्वीकार होगा? अगले वर्ष उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुनाव होने हैं। वहाँ प्रियंका खुद को कांग्रेस की ओर से नेता के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिशें करती रही हैं। ऐसे में इन सब के बीच राहुल गाँधी खुद को कहाँ पाते हैं?
ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर कांग्रेस पार्टी को आज नहीं तो कल उत्तर देना ही होगा और जब ये प्रश्न उठेंगे तब शायद मंच और हों और पार्टी किसी बहाने की आड़ में खुद को छिपा न सके। क्या कारण है कि राज्यों में भी कांग्रेस अपना अस्तित्व भी नहीं बचा सकी?
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