हरियाणा हार से कांग्रेस चौराहे पर, चार महीने में ही खटाई में ‘I.N.D.I. Alliance', 'खटाखट' का फायदा लेकर अखिलेश यादव ने राहुल को दिखाया आइना


चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात या फिर मतलब और निजी स्वार्थ पर टिकी दोस्ती ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहती। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की 'खटाखट' नौटंकी का सबसे ज्यादा फायदा समाजवादी पार्टी को  मिला लेकिन हरियाणा में कांग्रेस को मिली हार ने 
‘I.N.D.I. Alliance' को ही चौराहे पर ला दिया। अगर कांग्रेस ने 'खटाखट' नौटंकी नहीं की होती कांग्रेस को 30 या 32 से ज्यादा सीटें नहीं भले ही कम हो गयी होती। यही वजह है कि आज हर पार्टी अपने आपको कांग्रेस से दूर रखने का प्रयास कर रही है। गठबंधन होने के बावजूद राहुल को अपनी रैलियों में राहुल को दूर रखने की कोशिश है। राजनीतिज्ञों का यह भी कहना कि वायनाड से प्रियंका वाड्रा को ही हराने का कांग्रेस में षड़यंत्र चल रहा है, क्योकि अगर प्रियंका जीतती है तो राहुल का महत्व कम हो जाएगा।  

लोकसभा चुनाव में केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए जो इंडी गठबंधन बनाया गया था, वो चार माह बाद ही दो राज्यों में तो छिन्न-भिन्न होने लगा है। उत्तर प्रदेश और राजस्थान के उप चुनाव में इंडी गठबंधन के दल अपनी ढपली, अपने राग पर उतर आए हैं। उप चुनाव की सीटों पर एकजुट होकर लड़ने के लिए इंडिया गठबंधन में सहमति नहीं बन पाई है। इसके चलते गठबंधन की कुछ पार्टियों ने तो एक-दूसरे के खिलाफ ही प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार दिए हैं। इन दोनों राज्यों की 16 विधानसभा सीटों पर अगले माह होने जा रहे उप चुनाव में कांग्रेस को इंडी गठबंधन के प्रत्याशियों से भी कड़ी टक्कर मिलेगी। 

हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की खराब स्थिति के साथ सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने गठबंधन को आंखें दिखा दी हैं। अब उपचुनाव को लेकर उन्होंने बड़ा ऐलान कर दिया है कि उनकी पार्टी अकेले ही सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े करेगी। दूसरी ओर कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ बनाया इंडिया गठबंधन राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव में टूट गया है। प्रदेश में 7 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने अपने सहयोगी आरएलपी और बीएपी के साथ सीटों का बंटवारा नहीं किया है। बीएपी पहले दो सीटों पर उम्मीदवार उतार कर आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर दिया है।

उत्तर प्रदेश की सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी से प्रत्याशी उतारे
उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव का मतदान होने वाला है। अखिलेश यादव ने एक बड़ा ऐलान करते हुए कहा कि सभी 9 सीटों पर गठबंधन के उम्मीदवार सपा के पार्टी सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक लंबी पोस्ट के जरिए अखिलेश यादव ने उपचुनाव को लेकर अपनी तरफ से उम्मीदवारों के खड़े करने को लेकर ऐलान किया। सपा प्रमुख को इस कारण अहम माना जा रहा है क्योंकि सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और सपा में लंबे समय से खींचतान देखी जा रही है। इस बीच अखिलेश यादव का ऐलान यूपी की राजनीति इंडिया गठबंधन की टायं-टायं फिस्स हो गई है। यूपी विधानसभा चुनाव 2027 के पहले प्रदेश में हो रहे इस बड़े चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस अपने-अपने दावे करते दिख रही है। कांग्रेस जहां इंडिया गठबंधन में बराबरी की हिस्सेदारी की मांग और उम्मीद कर रही थी। वहीं, हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की खराब स्थिति के बाद सपा ने गठबंधन में अपनी स्थिति को मजबूत कर दिया।

लोकसभा चुनाव में हार-जीत के प्रतिशत ने बदल दिया माहौल
लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इंडिया एलायंस के तहत साथ-साथ आए थे। हालांकि, दोनों दलों के बीच इससे ठीक पहले हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान खींचतान चरम पर दिखी थी। ऐसे में लोकसभा चुनाव के दौरान सपा ने 63 और कांग्रेस ने 17 सीटों पर चुनाव लड़ा। सपा ने 37 सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, कांग्रेस को मात्र 6 सीटों पर जीत मिली। समाजवादी पार्टी की जीत का प्रतिशत लगभग 59 फीसदी रहा। वहीं, कांग्रेस ने दी गई सीटों के 35 फीसदी पर जीत दर्ज करने में सफलता हासिल की। यूपी विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस ने 5 सीटों की मांग शुरू कर दी थी, लेकिन सपा इस पर तैयार होती नहीं दिखी।

उत्तर प्रदेश में हार के डर से कांग्रेस ने कदम पहले ही पीछे खींचे
यूपी विधानसभा उपचुनाव के साथ महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी हो रहे हैं। वहां पर महा विकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे पर आखिरी समय में सहमति बनती दिख रही है। अखिलेश यादव वहां 12 सीटों की डिमांड कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस ने यूपी में मिल रही सीटों पर अपनी कमजोर स्थिति को देखते हुए कदम पीछे खींचने का निर्णय लिया। सपा पहले से महाराष्ट्र में पांच सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है। एमवीए के तीनों सहयोगी दलों कांग्रेस, शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट और एनसीपी शरद पवार गुट के बीच 85-85 सीटों पर समझौता हुआ है। ऐसे में सपा के पाले में कितनी सीटें जाएंगी, यह कांग्रेस तय करेगी। राष्ट्रीय स्तर पर सपा से गठबंधन के बावजूद यूपी में कांग्रेस की स्थिति बदतर हो रही है। इसके पीछे यूपी में लोकसभा चुनाव में अपेक्षाकृत कम सीटें, हरियाणा में हार और जम्मू-कश्मीर में कमजोर प्रदर्शन को जिम्मेवार ठहराया जा रहा है।

अखिलेश यादव ने राजनीति की शतरंज की बिसात पर राहुल गांधी को दी मात
दरअसल, अखिलेश यादव ने राजनीति की शतरंज की बिसात पर राहुल गांधी को मात दे दी। सपा ने कांग्रेस के लिए गाजियाबाद सदर और अलीगढ़ की खैर विधानसभा सीट छोड़ी थी। तमाम राजनीतिक रणनीतिकार और कांग्रेस पार्टी भी दोनों को ऐसी सीट मान रही थी, जिसे कांग्रेस के लिए जीतना लगभग नामुमकिन है। भाजपा इन सीटों पर लगातार जीत दर्ज करती रही है। इसलिए कांग्रेस ने इन सीटों से चुनाव लड़ने के लिए हाथ खड़े कर दिए। कांग्रेस ने इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए अपने कदम पीछे खींच लिए। पिछले दिनों खबर आई कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच सीट शेयरिंग को लेकर बातचीत हुई। इसमें कांग्रेस को एक और सीट दिए जाने की भी बात कही गई। लेकिन, दोनों दलों के बीच बात नहीं बनी। इसका असर यूपी चुनाव 2027 में दिखेगा। अगर गठबंधन चलता है तो कांग्रेस उसमें भी आधी सीटों पर दावा कर देगी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि उपचुनाव में कांग्रेस का कदम पीछे खींचना अखिलेश यादव के गठबंधन पॉलिटिक्स पर असर डाल सकती है।

अखिलेश का मंत्र- गठबंधन नहीं, उप चुनाव में जीतता है ज्यादा जरूरी
अखिलेश यादव ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए साफ किया कि बात सीट की नहीं जीत की है। इसके मायने साफ हैं कि उन्हें भी यकीन है कि कांग्रेस यूपी में उप चुनाव जीत नहीं पाएगी। इस रणनीति के तहत ‘इंडिया गठबंधन’ के सभी 9 सीटों पर समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ के निशान पर चुनाव लड़ेंगे। अखिलेश के बयानों को कांग्रेस अन्य राज्यों में आधार बना सकती है, जहां पर पार्टी का कैडर कुछ खास नहीं है। साथ ही, अखिलेश की चुनौती विधानसभा चुनाव 2027 के दौरान भी बढ़नी तय है। दरअसल, यूपी की 10 सीटों पर उपचुनाव होना है । इसमें मैनपुरी की करहल, कानपुर की सीसामऊ, प्रयागराज की फूलपुर, अंबेडकरनगर की कटेहरी, मिर्जापुर की मझवां, अयोध्या की मिल्कीपुर, गाजियाबाद सदर, अलीगढ़ की खैर, मुजफ्फरनगर की मीरापुर और मुरादाबाद की कुंदरकी सीट शामिल हैं। अयोध्या की मिल्कीपुर सीट को छोड़कर सभी 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं।

उपचुनाव में राजस्थान में इंडिया गठबंधन टूटने से प्रत्याशी आमने-सामने
उत्तर प्रदेश की तरह ही राजस्थान के उपचुनाव में भी इंडिया गठबंधन टूट गया है। लोकसभा चुनाव में साथ रहे कांग्रेस और सहयोगी दलों के उम्मीदवार अब उप चुनाव में आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस ने सहयोगी दलों के साथ बनाया इंडिया गठबंधन राजस्थान में विधानसभा उपचुनाव में टूट गया है। प्रदेश में 7 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस ने अपने सहयोगी आरएलपी और बीएपी के साथ सीटों का बंटवारा नहीं कर पाई। आरएलपी ने कांग्रेस के टिकटों की घोषणा होने के बाद गुरुवार को खींवसर में प्रत्याशी की घोषणा कर दी। सींवसर में अब भाजपा, कांग्रेस और बेनीवाल की पत्नी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला होगा।

कांग्रेस से नाता तोड़ बीएपी ने भी उप चुनाव में दो प्रत्याशी उतारे
उधर, भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) पहले दो सीटों पर उम्मीदवार उतार चुकी थी। लोकसभा चुनाव में यह कांग्रेस गठबंधन के साथ थी, लेकिन अब राह बदल ली है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बने इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस ने नागौर लोकसभा सीट आरएलपी के लिए छोड़ी थी। वहीं, बांसवाड़ा सीट पर बीएपी को समर्थन का ऐलान किया था। इसी तरह बागीदौरा विधानसभा सीट पर बीएपी को समर्थन दिया था। इस उपचुनाव में सीट गठबंधन पर बात नहीं बनी। कांग्रेस ने टिकट वितरण में सांसदों वाली सीट पर उन्हें उम्मीदवार उतारने के लिए अधिकृत किया था। रामगढ़ में दिवंगत विधायक पुत्र को टिकट देना तय था। शेष तीन सीटों सलूंबर, चौरासी और खींवसर पर राज्य के नेताओं को चयन की कमान सौंपी गई थी। खींवसर में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद डोटासरा मुख्य भूमिका में रहे। वहीं सलूंबर और चौरासी में नए चेहरों पर दांव खेला गया है।

No comments: