मुस्लिम पीड़ित का नैरेटिव VS सच्चाई: ओलंपियन शाहिद के घर पर कार्रवाई ‘मुआवजा’ और ‘सहमति’ से हुई, फिर भी लिबरल-वामपंथी और सपा-कांग्रेसी गैंग ने फैलाया प्रोपेगेंडा

ओलंपिक विजेता हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद के घर बुलडोजर से ढहाने पर लिबरल-वामपंथी-विपक्ष और इस्लामी कट्टरपंथी ने खूब रोना रोया
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ओलंपिक पदक विजेता और पद्मश्री से सम्मानित हॉकी खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद के पुश्तैनी मकान पर बुलडोजर चलाया गया। प्रशासन ने कहा कि पुलिस लाइन से कचहरी तक सड़क चौड़ीकरण किया जा रहा है और इसी कड़ी में 13 मकानों को गिराने की कार्रवाई हुई।

इन्हीं मकानों की सूची में मोहम्मद शाहिद का घर भी शामिल था। अब मोहम्मद शाहिद के घर ढहाने को लेकर लिबरल-वामपंथी गैंग ने जबरन विवाद खड़ा कर दिया है। विपक्षी दलों और लिबरल-वामपंथी गैंग ने बुलडोजर की इस कार्रवाई को बीजेपी सरकार के खिलाफ मुद्दा बना लिया और इसे ‘मुस्लिम पीड़ित’ के नैरेटिव से जोड़कर खूब प्रचारित किया।

मोहम्मद शाहिद के घर पर बुलडोजर चलाने का विरोध

विपक्ष ने बीजेपी को ‘जुल्मी सरकार’ बताते हुए ‘नाइंसाफी’ करने के इल्जाम लगाए, जो उनकी नजर में ‘अमानवीय’ तरीके से बुलडोजर कार्रवाई कर रही है। इस्लामी कट्टरपंथियों यहाँ ‘मुस्लिम पीड़ित’ का राग अलापने लग गए। दलितों के हितैषी बनने वाले चंद्रशेखर आजाद ने बीजेपी पर खिलाड़ियों का अपमान करने का आरोप लगाते हुए परिवार को मुआवजा देने की माँग की।

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, “जुल्म करनेवाले न भूलें नाइंसाफी की भी एक उम्र होती है।” उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “पूरा घर जमींदोज कर दिया। ये सिर्फ एक घर नहीं था बल्कि देश की खेल विरासत की पहचान थी। काशी की धरती पर प्रतिभाओं और सम्मानित विभूतियों का अपमान करने वाली भाजपा सरकार को जनता माफ नहीं करेगी।”

कांग्रेस नेता मोहम्मद वसीम ने ‘देश में मुसलमानों की हालत’ पर सवाल उठाए। इस्लामी कट्टरपंथी भी विरोध की इस दौड़ में पीछे नहीं रहे और योगी सरकार से मोहम्मद शाहिद के घर ढहाने के पीछे कारण पूछा। एक X यूजर मंजर हुसैन ने लिखा, “एक राष्ट्रीय नायक का घर अब मलबे में पड़ा है। सीएम योगी, कोई जवाब है?”

लिबरल-वामपंथी और कट्टरपंथी संगठनों का शोर

मामले को हवा देने के लिए इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों और लिबरल पत्रकारों ने सोशल मीडिया पर भी मोर्चा खोला। X पर मोहम्मद शाहिद के घर बुलडोजर चलाने के कई वीडियो पोस्ट किए गए। इनमें एक वीडियो में मुस्लिम व्यक्ति पुलिस अधिकारी के हाथ जोड़कर रहा है। इस वीडियो को लिबरल गैंग और इस्लामी मीडिया ने गलत संदर्भों के साथ जमकर वायरल किया।

राणा अय्यूब ने अपने X अकाउंट पर ये वीडियो पोस्ट कर लिखा, “उत्तर प्रदेश में, हॉकी के दिग्गज मोहम्मद शाहिद का घर उन 13 घरों में से एक था जिन्हें बुलडोजर से गिरा दिया गया। क्या आपको उन लोगों की चुप्पी सुनाई दे रही है जिन्हें बोलना चाहिए?”

कांग्रेस इकोसिस्टम भी मोहम्मद शाहिद के घर पर बुलडोजर चलाए जाने का विरोध करता नजर आया है। खुद को ‘गाँधीवादी’ बताने वाले सैयद फैसल इकबाल कहते हैं, “अगर यह इस्लामोफोबिया नहीं है, तो और क्या है? जब एक राष्ट्रीय नायक के परिवार को भी नहीं बख्शा जाता और जिन्हें बोलना चाहिए वे चुप रहते हैं – तो उनकी चुप्पी मिलीभगत है।”

यहाँ तक की अखिलेश यादव, चंद्रशेखर आजाद, लुटियन्स मीडिया ने भी इस वीडियो को पोस्ट कर बीजेपी सरकार पर आरोप लगाते हुए ‘मुस्लिम-विरोधी होने की छवि पेश की’ और सोशल मीडियो पर लोगों की सहानूभूति बँटोरी।

इसी तरह वाराणसी की एक प्रशासनिक कार्रवाई विपक्ष और लिबरल-वामपंथी के लिए बीजेपी सरकार को घेरने का नया मुद्दा बन गई। वो भी बिना किसी असलियत के ज्ञान के, यही लोग जो सरकार पर विकास को लेकर सवाल उठाते हैं और धर्म की राजनीति का आरोप लगाते हैं। यहाँ साफ नजर आता है कि धर्म की राजनीति कहाँ से आती है और कैसे मुस्लिम-विरोधी प्रोपेगेंडा को हवा दी जाती है।

लिबरल-वामपंथी गैंग को आखिर चिंता किस बात की है?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस पूरे विवाद में जितने लिबरल, वामपंथी, इस्लामी कट्टरपंथी और कांग्रेसी हंगामा मचा रहे हैं, उन्हें असल में चिंता किस बात की है? क्योंकि मोहम्मद शाहिद की बीवी परवीन को इस कार्रवाई पर कोई आपत्ति नहीं है। मीडिया से बात करते हुए परवीन ने साफ कहा कि प्रशासन से उन्हें मुआवजा मिल चुका है और वे इस कार्रवाई से सहमत हैं। परवीन ने यह भी कहा, “सिर्फ हमारा घर नहीं बल्कि इलाके में दूसरे मकान भी तोड़े गए हैं।”

इतना ही नहीं घर के कुल 9 हिस्सेदारों में से 6 लोगों को बाकायदा मुआवजा दिया जा चुका है। यानि परिवार के भीतर से विरोध की कोई आवाज नहीं उठी लेकिन बाहर बैठे कथित सेक्युलर जमात और ‘खेल विरासत’ का रोना रोने वाले नेताओं को यह मौका मिल गया कि वे सरकार पर इल्जाम लगाने लगें। सवाल ये है कि जब परिवार खुद संतुष्ट है तो यह लिबरल-वामपंथी जमात क्यों मातम मना रही है?

मुस्लिम व्यक्ति का घर तोड़ा गया?

यहाँ एक और बड़ा झूठ फैलाया गया कि केवल मोहम्मद शाहिद का घर तोड़ा गया क्योंकि वो एक मुस्लिम हैं और सरकार मुस्लिम-विरोधी है। जबकि असलियत यह है कि पुलिस लाइन से कचहरी तक सड़क परियोजना के तहत सड़क चौड़ीकरण के लिए 13 मकानों को ध्वस्त किया गया। इन्हीं में मोहम्मद शाहिद का घर भी शामिल था। यानि प्रशासन ने किसी मुस्लिम को टारगेट नहीं किया बल्कि योजना के मुताबिक सभी 13 मकान तोड़े, न कि धर्म के आधार पर।

और हाँ, योगी सरकार का बुलडोजर हमेशा कानून के दायरे में ही चलता है। इस मामले में भी परिवार को पहले ही नोटिस दिया गया था। उस नोटिस में साफ-साफ लिखा था कि सड़क चौड़ीकरण के लिए जिन हिस्सों की जरूरत है, उन पर मालिकों की सहमति ली जा चुकी है। अब जब परिवार सहमत था और मुआवजा भी मिल चुका था तो फिर ‘जुल्म’ और ‘नाइंसाफी’ का झूठा नैरेटिव खड़ा करने का क्या औचित्य है?

पूरा घर जमींदोज नहीं, केवल एक हिस्सा गिराया

जहाँ तक पूरा घर जमींदोज करने की बात है और वायरल वीडियो में मुस्लिम व्यक्ति के गिड़गिड़ाने की बात है। तो PWD ने साफ कहा है कि चार मंजिला घर का केवल एक हिस्सा गिराया गया है और उनको मुआवजा दिया जा चुका है।

सरकार ने मुआवजा पहले ही दे दिया है। मोहम्मद शाहिद के घर में 9 हिस्सेदार बताए गए। इनमें से 6 को मुआवजा दे दिया गया जबकि बाकी 3 अलग-अलग वजहों से पैसा लेने से इनकार कर दिया। प्रशासन ने अपनी कार्रवाई के दौरान केवल उसी हिस्से को ढहाया जिसे मुआवजा मिल गया था। जिन्होंने मुआवजा नहीं लिया, उनके हिस्से को नहीं छेड़ा गया है।

यानी विपक्ष और लिबरल मीडिया का यह आरोप भी पूरी तरह झूठा है कि ‘पूरा घर जमींदोज’ कर दिया गया। सच यही है कि प्रशासन ने सिर्फ उतना ही हिस्सा गिराया, जिसका भुगतान पहले से कर दिया गया था।

यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है जैसी किसी भी विकास परियोजना में होती है। लेकिन चूँकि यहाँ मामला एक मुस्लिम खिलाड़ी का था तो कांग्रेस, वामपंथी, लिबरल और इस्लामी कट्टरपंथी गैंग ने इसे मुस्लिम पीड़ित बनाम बीजेपी सरकार का एजेंडा खड़ा करने का मौका समझा और इसे भुनाने की कोशिश में जुट गए।

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